गुरुवार, 19 मई 2011

व्हाट इफ आई बिकम प्रेग्नेंट एंड हेव फिब -रोइड्स ?

व्हाट इफ आई बिकम प्रेग्नेंट एंड हेव फिब -रोइड्स ?
बेशक जिन महिलाओं को फ़िब्रोइद्स की शिकायत है उन्हें गर्भ -काल और प्रसव में ज्यादा मुश्किलें पेश आने की आशंका पैदा हो जाती है .लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता है ,मुश्किलें आयेंगी ही .ज्यादातर मामलों में फिब -रोइड्स के संग साथ भी सामान्य प्रसव हो जाता है ।
अलबत्ता पेश आने वाली समस्याएं इस प्रकार हो सकतीं हैं :
(१)सीजेरियन सेक्शन :सीजेरियन सेक्शन का ख़तरा इन महिलाओं के लिए ६ गुना बढ़ जाता है ।
(२)बेबी इज ब्रीच :इसका मतलब यह होता है बच्चे की गर्भाशय में अवस्थिति सामान्य यौनिक प्रसव(वेजिनल डिलीवरी ) के अनुरूप अनुकूल नहीं रहती है .
(३)लेबर फेल्स टू प्रोग्रेस :लेबर शीर्ष पर नहीं पहुँच पाताशुरू होने पर ही छीज जाता है ।
(४)प्लेसेन्टल एब्रप्शन :प्रसव से पहले ही प्लेसेंटा बच्चेदानी की दीवार से छिटक कर अलग हो जाता है .ऐसा होने पर फीटस को (भ्रूण या गर्भस्थ को )पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है ।
(५)प्रसव समय पूर्व हो जाता है .(प्री -टर्म डिलीवरी उसे कहतें हैं जिसमें बच्चा गर्भकाल की सामान्य अवधि ४० सप्ताह से चारसे ज्यादा हफ़्तों पहले पैदा हो जाए .).यानी ३६ सप्ताह से भी बहुत पहले ।
अलबत्ता यदि आपको फिब -रोइड्स की शिकायत है और गर्भ भी धारण कर लिया है ,अपने स्त्री रोग और प्रसूति विज्ञान के माहिर से बात करनी चाहिए .सभी ओब्स टेट -री- शी -यंस को फिब -रोइड्स के साथ गर्भावस्था के प्रबंधन का तजुर्बा रहता है ,.अमूमन हाई -रिस्क प्रेग्नेंसीज़ के माहिरों के पास जाने की नौबत नहीं ही आती है ।
(ज़ारी ...).
हमेशा की तरह इस मर्तबा का शैर पढ़िए :

ग़ज़ल :धूप साया नदी हवा औरत (एक री -मिक्स ).

"ग़ज़ल "-धूप साया नदी हवा औरत .....

इस ग़ज़ल को लिखने की प्रेरणा यहाँ तक के कुछ प्रतीक भी डॉ .वर्षा सिंह की ग़ज़ल "धूप पानी नदी हवा औरत ,
ज़िन्दगी का पता औरत" से ली गई है ".आजकल री -मिक्स का दौर है एक री -मिक्स यह भी -
धूप साया नदी हवा औरत ,
इस धरा को नेमते खुदा ,औरत ।
नफरतों में जला दी जाती है ,
ख्वाबे मोहब्बत की जो अदा औरत ।
गाँव शहर या कि फिर महानगर ,
हादसों से भरी एक कथा औरत .
मर्द कैसा भी हो ,कुछ भी करे ,
पाक दिल है तो भी ,खता औरत ।
हो रिश्ता, बाज़ार या कि सियासत ,
है चाल तुरुप की ,बला औरत ।
कहानी ,नज़्म मुशायरा और ग़ज़लें ,
किताबे ज़िन्दगी का हर सफा ,औरत ।
समाज अपना है ,नाज़ करे कैसे ,
मुसल्सल पेट में होती है फना औरत .
है सच यही ,ज़रा इसे समझो ,
इंसानियत का मुकम्मल पता औरत ।
घर ,बाहर या फिर कहीं भी हो ,
दिल से निकली हुई दुआ ,औरत ।
री -मिक्स प्रस्तुति :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश ".डी .लिट
एवं वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
डॉ .मेहता मेरे पूर्व सहयोगी और गुरु समान मित्र हैं .संस्कृति विशेषज्ञ हैं ।
आपका डी .लिट का विषय रहा है :भारतीय शब्द चेतना के स्वरूप को गढ़ने वाले कौन से कारक तत्व हैं .ऐसे १०८ शब्दों को लिया गया है जिनमे ६५ आध्यात्मिक ,४० सामाजिक और ५ साहित्यिक जगत से ताल्लुक रखतें हैं ।
इन शब्दों के समकक्ष अंग्रेजी भाषा में कोई शब्द नहीं है ऐसा मनीषियों का मामना है ।
विशेष :आज अपने जन्म दिन(पांच मई १९४७ ) पर गुरु समान मित्र को याद किया है .आपका आवास है :
डॉ ,नन्द लाल मेहता "वागीश ",१२१८ ,शब्द -लोक ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव -१२२-००१ (हरियाणा )।
वीरुभाई ,४३३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,केंटन ,मिशिगन ४८ १८८ -१७८१
दूर -ध्वनी :००१ -७३४-४४६ -५४५१ .

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कैन फिब -रोइड्स टार्न इनटू कैंसर ?

कैन फिब -रोइड्स टर्न इनटू कैंसर ?
गर्भाशयीय गठाने अमूमन बिनाइन यानी निरापद ,असंक्राम्य (न्यूट्रल जिनसे दीर्घावधि भी कोई ख़तरा नहीं पहुंचता है ,बनी रहती हैं )।
अलबत्ता १००० फिब -रोइड्स के मामलों में कोई एक कैंसर -कारी (मलिग्नेनेट ) भी हो सकता है .इसे तब कहा जाता है -"लियो -मायो -सर्कोमा"।
माहिरों का ऐसा भी मानना है ये कैनसर्स(लियोमायोसर्कोमा ) पहले से मौजूद फिब -रोइड की वजह से नहीं होता है ।
फ़िब्रोइद्स का बना रहना मलिग्नेंत /कैन -सरस /कैंसर पैदा करने वाले फिब -रोइड के जोखिम को नहीं बढाता है .न ही गर्भाशयके दूसरी किस्म के कैंसरों के खतरे को बढाता है .

व्हाट कौज़िज़ फ़िब्रोइद्स ?

व्हाट कौज़िज़ फिब -रोइड्स ?
ठीक ठीक तो फिब -रोइड्स के पनपने की वजह साइंसदानों को भी नहीं पता है .शोध कर्ताओं के अनुसार एक से ज्यादा कारण इनके पैदा होने में अपनी भूमिका निभातें हैं ।

(१)हार्मोनल :हारमोनों के स्तर को इस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्त्रों दोनों ही प्रभावित करतें हैं ।
(२)आनुवंशिक कारण :कुछ परिवारों में इनकीरोग - प्रवणता (प्री -डिस -पोजीशन )देखी गई है .
निश्चय पूर्वक न इनके पनपने के बारे में कुछ कहा जा सकता है न सिमटने सिकुड़ने के ।
गर्भ काल में (जेस्टेशन पीरियड में )जब हारमोनों का स्तर ज्यादा रहता है गर्भाशयीय फ़िब्रोइद्स (गठाने )तेज़ी से पनपतीं बढ़तीं हैं ।
एंटी -हारमोन चिकित्सा अपनाने पर फ़िब्रोइद्स श्रिंक होतें हैं अपना आकार घटाते घटाते विलीन भी हो जातें हैं ।
इनका विकसनामहिलाओं के रजो निवृत्त होने पर (चेंज ऑफ़ लाइफ या मिनोपोज़ल होने पर )थम जाता है ,श्रीन्केज शुरू होजाता है ।
(ज़ारी...)।
इस मर्तबा का शैर पढ़िए :
तौलतें हैं लोग रिश्तों को यहाँ ,
कुछ घटाने कुछ बढाने के लिए ।
रेत की दीवार सारी ढह गई ,
हम चले थे घर बनाने के लिए ।
कुछ तो ऐसे गीत लिखते जाइए ,
काम आयें गुनगुनाने के लिए ।
ग़ज़ल कार :मर्मज्ञ ज्ञान चंद जी (शब्द साधक मंच ).

क्या हैं यूटेराइन फ़िब्रोइद्स के लक्षण ?

क्या हैं फ़िब्रोइद्स के लक्षण ?
ज्यादातर मामलों में लक्षणों का प्रगटीकरण ही नहीं होता है लेकिन जिनमें ये लक्षण मुखर होतें हैं वे इस प्रकार हो सकतें हैं :
(१)बेहद रक्त स्राव (हेवी ब्लीडिंग )जो एनिमीया के लक्षण पैदा कर सकती है ,महावारी (मेन्स्त्र्युअल् पीरियड्स )को कष्टप्रद बना सकती है ।
(२)फीलिंग ऑफ़ फुल नेस इन दी पेल्विक एरिया (लोवर स्टमक एरिया ).श्रोणी क्षेत्र और पेडू में भारीपन ,प्रेशर महसूस होना ।
(३)एन -लार्जमेंट ऑफ़ दी लोवर एबडोमन(पेट के निचले हिस्से का बढ़ जाना ।
(४)बार -बार पेशाब की हाज़त ,मूत्र त्याग ,फ्रिक्युवेंत युरिनेशन ।
(५)मैथुन या सहवास ,सम्भोग के दौरान पीड़ा का अनुभव (पैन फुल कोइटस)।
(६)कमर के निचले हिस्से में दर्द रहना ।
(७)गर्भावस्था तथा प्रसव पूर्व पीड़ा में जटिलताएं पैदा होना .सिजेरियन सेक्शन के जोखिम का ६ गुना बढ़ जाना .
(८)प्रजनन सम्बन्धी समस्याएं मसलन बांझपन जो बिरले ही कुछ मामलों में सामने आता है ।
(ज़ारी...).
इस मर्तबा का शैर पढ़िए (गजलकार हैं मर्मज्ञ ज्ञानचंद जी ):
ज़िन्दगी है मुस्कुराने के लिए ,
मुश्किलों को आजमाने के लिए ,
वक्त की कीमत समझ पाया न जो ,
रह गया आंसू बहाने के लिए ।
दो तरह की बात होती है यहाँ ,
एक बताने एक छुपाने के लिए ,
तौलतेंहैं लोग रिश्तों को यहाँ ,
कुछ घटाने कुछ बढाने के लिए .

व्हेयर कैन फ़िब्रोइद्स ग्रो ?


व्हेयर कैन फ़िब्रोइद्स ग्रो ?
ज्यादातर फ़िब्रोइद्स बच्चेदानी की दीवार में ही पनपतें हैं .अलबत्ता फ़िब्रोइद्स की बढवार कहाँ हो रही है इसी के आधार पर माहिर इनका वर्गीकरण करतें हैं ।
(१)सब -म्युकोसल फ़िब्रोइद्स :ये गर्भाशय गठानें बच्चेदानी की केविटी (विवर या गुहा )में पैदा होतीं हैं ।
(२)इंट्रा -म्यूरल फ़िब्रोइद्स :ये तंतुमय रेशे जैसी गांठें गर्भाशय की दीवार में ही पैदा होतीं हैं ।
(३)सब -सेरोसल :ये गर्भाशय से बाहर की तरफ पैदा होतीं हैं .
सम फ़िब्रोइद्स ग्रो ऑन स्टाल्क्स(स्लेन्दर सपोर्टिंग पार्ट )देट ग्रो आउट फ्रॉम दी सर्फेस ऑफ़ यूट्रस और इनटू दी केविटी ऑफ़ दी यूट्रस .ये मशरूम्स(कुकुर -मुत्तों से ) की तरह दिख सकतें हैं .इन्हें कहतें हैं -"पिह -दुहन -क्यू -ले- टेड फ़िब्रोइद्स" .
(ज़ारी ...)
इस मर्तबा का शैर पढ़िए :
ज़िन्दगी है मुस्कुराने के लिए ,
मुश्किलों को आजमाने के लिए ,
वक्त की कीमत समझ सके न जो ,
रह गए आंसू बहाने के लिए .


हू गेट्स फ़िब्रोइद्स ?

हू गेट्स फ़िब्रोइद्स ?
खतरे के कुछ फेक्टर्स (तत्व )मौजूद रहतें हैं "
(१)उम्र :बढती उम्र के साथ खासकर तीस और चालीस के दशकों के बरसों में रजो निवृत्त होते होते ये गर्भाशय की दीवार में घर बनाने लगतें हैं .रजो -निवृत्ति के बाद ये सिकुड़ने सिमटने लगतें हैं ।
(२)पारिवारिक पूर्व वृत्तांत :यदि किसी महिला की माँ भी फ़िब्रोइद्स से ग्रस्त रही है तब उसके लिए भी इनका ख़तरा तकरीबन तीन गुना बढ़ जाता है ।
(३)आंचलिकता ,एथनिसिटी :अफ़्रीकी -अमरीकी महिलाओं में गोरी अमरीकी (स्वेत )महिलाओं की बनिस्पत फ़िब्रोइद्स की संभावना ज्यादा बनी रहती है ।
(४)मोटापा :मोटापे से ग्रस्त महिलाओं के लिए इन गर्भाशयीय फाइबर -नुमा गंठानों के खतरे का वजन बढ़ जाता है .बेहद मोटी (ओबेसि)महिलाओं के लिए इसके खतरे का वजन दो से तीन गुना ज्यादा हो जाता है ।
(५)खान -पान सम्बन्धी आदतें :जो महिलायें गौ तथा शुकर मांस (बीफ और हेम )का ज्यादा सेवन करतीं हैं उनके लिए फ़िब्रोइद्स का ख़तरा बढ़ जाता है ।
हरी ताज़ी तरकारियाँ ज्यादा से ज्यादा खाते रहने से औरतों के फ़िब्रोइद्स से बचे रहने के मौके पैदा हो जातें हैं .
(ज़ारी ...)।



व्हाई शुड वोमेन नो एबाउट यूटेराइन फ़िब्रोइद्स ?

क्यों ज़रूरी और उपयोगी है गर्भाशयीय गांठों के बारे में जानना ?
तंतु जैसे याफिर तंतुओं , रेशों से ही बने होते हैं ,फाइबर -नुमा ऊतकों की ही निर्मिती होतें हैं फ़ाइब्रोइद्स जो अकसर गर्भाशय की दीवार में ही विकसित होतें हैं और निरापद (बिनाइन )होतें हैं ।
२०-८० फीसद महिलाओं में ये उनके पचास साला होते होते गर्भाशय दीवार में विकसित होने लगतें हैं .चालिसे और पचासे के दशक के बरसों में फ़िब्रोइद्स आम देखे जातें हैं .इनका विकसित होना आम बात मानी जाती है .
बेशक उन सभी महिलाओं मेंसे हरेक में ज़रूरी तौर पर इनके लक्षणों का प्रगटीकरण नहीं होता है जिनके गर्भाशय की दीवार में ये घर बना लेतें हैं .
लेकिन जिनमे इन लक्षणों का प्रगटीकरण होता है उन्हें इनके साथ बने रहना मुश्किल लगता है .कष्टप्रद भी .कुछ में लोवर एब्दोमन (पेडू )में दर्द के अलावा माहवारी में ज़रुरत से ज्यादा रक्त स्राव हो जाता है .(हेवी मेन्स्त्र्युअल् ब्लीडिंग )।
मूत्राशय पर दवाब बना रहता है (दे एक्स्पीरेइयेन्स प्रेशर ऑन दी ब्लेडर ),बार -बार पेशाब की हाज़त पेशाब का आना बना रहता है .
रेक्टल प्रेशर भी पैदा होता है ।
रेक्टम या मलाशय बड़ी आंत का निचला हिस्सा होता है जो जो "कोलन "और तथा" एनल केनाल" (गुदा नाली )के बीच में रहता है ।
फाब्रोइड्स के बहुत अधिक बढ़ जाने पर महिला का पेट बाहर को वैसे ही उभर आता है जैसे गर्भ- काल की तीसरी तिमाही में .
(ज़ारी ...)

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