हू गेट्स फ़िब्रोइद्स ?
खतरे के कुछ फेक्टर्स (तत्व )मौजूद रहतें हैं "
(१)उम्र :बढती उम्र के साथ खासकर तीस और चालीस के दशकों के बरसों में रजो निवृत्त होते होते ये गर्भाशय की दीवार में घर बनाने लगतें हैं .रजो -निवृत्ति के बाद ये सिकुड़ने सिमटने लगतें हैं ।
(२)पारिवारिक पूर्व वृत्तांत :यदि किसी महिला की माँ भी फ़िब्रोइद्स से ग्रस्त रही है तब उसके लिए भी इनका ख़तरा तकरीबन तीन गुना बढ़ जाता है ।
(३)आंचलिकता ,एथनिसिटी :अफ़्रीकी -अमरीकी महिलाओं में गोरी अमरीकी (स्वेत )महिलाओं की बनिस्पत फ़िब्रोइद्स की संभावना ज्यादा बनी रहती है ।
(४)मोटापा :मोटापे से ग्रस्त महिलाओं के लिए इन गर्भाशयीय फाइबर -नुमा गंठानों के खतरे का वजन बढ़ जाता है .बेहद मोटी (ओबेसि)महिलाओं के लिए इसके खतरे का वजन दो से तीन गुना ज्यादा हो जाता है ।
(५)खान -पान सम्बन्धी आदतें :जो महिलायें गौ तथा शुकर मांस (बीफ और हेम )का ज्यादा सेवन करतीं हैं उनके लिए फ़िब्रोइद्स का ख़तरा बढ़ जाता है ।
हरी ताज़ी तरकारियाँ ज्यादा से ज्यादा खाते रहने से औरतों के फ़िब्रोइद्स से बचे रहने के मौके पैदा हो जातें हैं .
(ज़ारी ...)।
बुधवार, 18 मई 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें