हू गेट्स फ़िब्रोइद्स ?

खतरे के कुछ फेक्टर्स (तत्व )मौजूद रहतें हैं "
(१)उम्र :बढती उम्र के साथ खासकर तीस और चालीस के दशकों के बरसों में रजो निवृत्त होते होते ये गर्भाशय की दीवार में घर बनाने लगतें हैं .रजो -निवृत्ति के बाद ये सिकुड़ने सिमटने लगतें हैं ।
(२)पारिवारिक पूर्व वृत्तांत :यदि किसी महिला की माँ भी फ़िब्रोइद्स से ग्रस्त रही है तब उसके लिए भी इनका ख़तरा तकरीबन तीन गुना बढ़ जाता है ।
(३)आंचलिकता ,एथनिसिटी :अफ़्रीकी -अमरीकी महिलाओं में गोरी अमरीकी (स्वेत )महिलाओं की बनिस्पत फ़िब्रोइद्स की संभावना ज्यादा बनी रहती है ।
(४)मोटापा :मोटापे से ग्रस्त महिलाओं के लिए इन गर्भाशयीय फाइबर -नुमा गंठानों के खतरे का वजन बढ़ जाता है .बेहद मोटी (ओबेसि)महिलाओं के लिए इसके खतरे का वजन दो से तीन गुना ज्यादा हो जाता है ।
(५)खान -पान सम्बन्धी आदतें :जो महिलायें गौ तथा
शुकर मांस (बीफ और हेम )का ज्यादा सेवन करतीं हैं उनके लिए फ़िब्रोइद्स का ख़तरा बढ़ जाता है ।हरी ताज़ी तरकारियाँ ज्यादा से ज्यादा खाते रहने
से औरतों के फ़िब्रोइद्स से बचे रहने के मौके पैदा हो जातें हैं .(ज़ारी ...)।




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