चिकित्सा का लक्ष्य अटेक के लक्षणों में तेज़ी से सुधार लाना होता है .इस एवज स्तेरोइड्स दवाएं स्तेमाल की जासकतीं हैं .
अटेक्स की संख्या को घटाना है .एम् आर आई लीश्जंस की तादाद भी कम करना रखना है ।
रोग के समय के साथ प्रसार ,बढ़ते चले जाने को रोकना है ।ऐसे में "डिजीज मोदिफ़ाइन्ग ड्रग्स "(डी एम् डी 'ज )का स्तेमाल किया जाता है .
जटिलताओं से राहत दिलावाना है .ओर्गंस के फंक्शन्स के ह्रास से जटिलताएं पैदा हो जातीं हैं इस रोग में .विशिष्ठ लक्षणों के सुधार के लिए ऐसे में दवाएं दी जातीं हैं ।
रिलेप्सिंग रेमितिंग मल्तिपिल स्केलेरोसिस (आर आर एम् एस )का रोग निदान सुनिश्चित हो जाने पर ज्यादातर न्यूरोलोजिस्ट डी एम् डी 'ज को ही वरीयता देतें हैं ।
कुछ माहिर पहले अटेक के वक्त से ही इलाज़ शुरू कर देतें हैं क्योंकि रोग निदानिक ट्रायल्स से पुष्ट हुआ है ,जिन मरीजों का इलाज़ लक्षणों के प्रगटीकरण के बाद देर से शुरू होता है उन्हें उतना फायदा नहीं मिलता है इलाज़ से जितना उनको जिनका ,इलाज़ जल्दी शुरू हो जाता है ।
अलबत्ता मरीजों को इलाज़ शुरू करवाने से पहले चिकित्सक से खुल कर बात करनी चाहिए ,क्योंकि डी एम् डी 'ज के स्तेमाल में बड़ा फर्क है ,मसलन कुछ में इस चिकित्सा का मकसद समय के साथ बढती भौतिक अक्षमता को थामना होता है ,पहले अटेक का इलाज़ करना नहीं ,दूसरी किसी डी एम् डी चिकित्सा का मकसद रिलेप्स से बचाना हो सकता है ,लेकिन बढती हुई अक्षमता को कम करना उससे से पार पाना नहीं .
सपोर्ट ग्रुप का सहयोग और कोंसेलिंग मरीज़ और उनके तीमारदार दोनों को लाभान्वित कर सकता है .एक बार चिकित्सा का लक्ष्य तय हो जाने पर आरंभिक चिकित्सा में ही अटेक्स और लक्षणों या दोनों के लिए दवा दी जा सकती है .
पार्श्व प्रभावों से, दवाओं के , बा -खबर रहना उतना ही ज़रूरी रहता है क्योंकि इन्हीं की वजह से कई मरीज़ इलाज़ छोड़ खड़े होतें हैं ।
वैकल्पिक चिकित्सा की शरण में भी जा सकतें हैं कई मरीज़ऐसी जिसके उतने अवांछित प्रभाव नहीं होतें हैं ,थोड़ा जो आराम भी दिलवादे ।
मरीज़ और डॉ के बीच संवाद और समझ दोनों ही ज़रूरी रहती है ।
मल्तिपिल स्केलेरोसिस के प्रबंधन में उन दवाओं को केंद्र में रखा जाता है जो रोग प्रति -रोधी तंत्र पर प्रभाव डालती हैं ,वही तो इस रोग में अपने पराये की पहचान भूल जाता है ,ऑटो -इम्न्युन डिजीज है एम् एस ।
शुरू मेंकोर्टी -को -स्तिरोइड्स मसलन प्रेड्निसोंन (डेल्टा -सोन,लिक्विड प्रेड,डेल्टा -सोन ,ओरासोंन ,प्रेड- निसेंन -एम् )या फिर मिथाइल -प्रेड्नी-सोलोन (मेड्रोल ,डेपो -मेड्रोल ,आदि )व्यापक तौर पर स्तेमाल में ली गईं थीं.
लेकिन क्योंकि इम्यून सिस्टम पर एक तो इनका प्रभाव नॉन -स्पेसिफिक रहता है दूसरे अनेक पार्श्व प्रभाव भी सामने आतें हैं ,इसलिए अब इनका स्तेमाल केवल एम् एस के गंभीर मामलों में ,सीवीयर मल्तिपिल स्केलेरोसिस अटेक्स
के प्रबंधन में ही किया जाता है .
यानी केवल उन मामलों में जो भौतिक अक्षमता और दर्द की वजह बनतेंहैं .
(ज़ारी ...).
सोमवार, 30 मई 2011
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