स्ट्रोक :कौन कौन से वो ख़ास जोखिम हैं जिनसे महिलाओं को सावधान रहना चाहिए ?
प्रग्नेंसी ,चाइल्ड बर्थ और मिनो -पोज़ (कम्प्लीट सिज़ेशन ऑफ़ दी मेन्श्त्र्युअल् साइकिल ,औरत का रजस्वला होना ),अपने खतरे लिए रहता है जिसकी वजह बनता है हारमोनो का उतार चढ़ाव तथा जीवन के अनेक पडावों में आने वाले ऐसे ही बदलाव ,बदलाव और बदलाव ।
रिसर्च के अनुसार १९६० और १९७० आदि के दशकों में चलन में आये ओरल कोंत्रा -सेप्तिव औरतों के लिए स्ट्रोक के खतरे का वजन बढाते रहें क्योंकि इनमे हारमोन की लोडिंग ज्यादा ही रहती थी .(हाई -डोज़ -ओरल कोंत्रा -सेप्तिव थे ये ।).
गनीमत है अब कमतर इस्ट्रोजन युक्त मुख से ली जाने वाली गर्भ निरोधी गोलियां उपलब्ध हैं ,अध्ययन के अनुसार इनसे स्ट्रोक का ख़तरा उतना नहीं बढ़ता है जिसे तूल दी जाए ।
कुछ अध्ययनों से पता चला है गर्भावस्था तथा प्रसव दोनों ही औरत के लिए स्ट्रोक के खतरे के वजन को बढा सकतें हैं ।
गर्भावस्था स्ट्रोक के खतरे का वजन ३-१३ गुना बढा देती है .बेशक प्रजनन क्षम युवा महिलाओं में शुरुआत में कम ही रहता है यह ख़तरा ,लेकिन एक मोडरेट रिस्क स्ट्रोक का बना ही रहता है जिसे कमतर ही माना जाता है ।
गर्भावस्था और प्रसव की वजह से हरेक एक लाख महिलाओं में से ८ महिलायें स्ट्रोक की चपेट में आजातीं हैं .लेकिन दुर्भाग्य यह है इनमे से २५ %मामलों की परिणिति मौत या फिर हेमोरेजिक स्ट्रोक में होती है .विरल ही सही लेकिन अमरीका में प्रसव के दौरान महिलाओं की मृत्यु की अभी भी यह एक प्रमुख वजह बना हुआ है ।
खासकर सब -आर्च -नोइड स्ट्रोक से एक लाख के पीछे पांच महिलाओं की मौत हो जाती है .
प्रसव के बाद के पहले ६ हफ़्तों में यह ख़तरा अपने शीर्ष पर पहुँच जाता है ,जबकि "स्कीमिक स्ट्रोक" का प्रसवोत्तर ख़तरा नौ गुना बढ़ जाता है ,और हेमो -रेजिक स्ट्रोक का और भी ज्यादा बढ़कर २८ गुना होजाता है बरक्स उनके जो न तो गर्भ वतीं हैं और न जिनका प्रसव अभी हाल फिलाल ही हुआ है ।
ऐसा क्यों होता है "नॅशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्युरोलोजिकल डिस -ऑर्डर्स 'एंड स्ट्रोक द्वारा संपन्न अध्ययनों से आदिनांक भी पता नहीं चल सका है .
इसी तरह प्रजनन क्षम अवधि की आखिरी चरण में भी महिलाओं के लिए स्ट्रोक का ख़तरा उसी तरह बढ़ जाता है जैसे गर्भावस्था और प्रसव के समय हारमोनों में आने वाले बदलावों से बढ़ जाता है .
इसी तरह प्रजनन क्षमता के अवसान के वक्त औरत के रजस्वला होने पर भी इन्हीं हारमोनो के बदलाव की वजह से स्ट्रोक के खतरे का वजन बढ़ जाता है ।
कुछ अध्ययनों के "मुताबिक़ हारमोन रिप्लेसमेंट थिरेपी "इस खतरे के वजन को हारमोनों की आपूर्ति कराके कम कर देती है ।
फिल वक्त नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्युरोलोजिकल डिस -ऑर्डर्स एंड स्ट्रोक के सौजन्य से इस बात की पड़ताल करवाई जा रही है ,क्या इस्ट्रोजन की भरपाई मिनो -पोज़ल वोमेन रजस्व्लाओं में ,खासकर उनमे जिनमे ट्रांस -ईएनट स्कीमिक अटेकअल्प कालिक स्ट्रोक ) की हिस्ट्री रही है .,मौत के खतरे के साथ -साथ रिकरेन्ट स्ट्रोक के खतरे के वजन को भी कम करती है .जिस विध इस्ट्रोजन पोस्ट मिनोपोज़ल महिलाओं को फायदा पहुंचा सकता है उसी विध कोलेस्ट्रोल को भी कम करने में अपना रोल अदा कर सकता है ।?
अध्ययनों से यह ज़रूर पता चला है ,इस्ट्रोजन भरपाई- चिकित्सा "एच डी एल कोलेस्ट्रोल" (मित्र कोलेस्ट्रोल )को बढ़ाती है तथा एल डी एल (बेड या अमित्र कोलेस्ट्रोल )को भी कम करती है ।
(ज़ारी ...)।
हमेशा की तरह इस बार का शैर पढ़िए :
आंसू सूखा कहकहा हुआ ,पानी सूखा तो हवा हुआ ,
उसके जैसा चेहरा देखा एक पीला तोता हरा हुआ ।
कहता है फूंक फूंक गज़लें शायर दुनिया का ज़ला हुआ ,
आंसू सूखा .......
फुलवारी का शौक़ीन मिला, हर घर पत्थर का बना हुआ ,
उसके जैसा ,चेहरा देखा एक पीला तोता हरा हुआ .
आंसू सूखा .......
रविवार, 15 मई 2011
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4 टिप्पणियां:
शहरी जीवन शैली ही अपने आप में काफी है स्ट्रोक की संभावनाओं के लिए.
स्ट्रोक के लिए आराम और घी तेल ही काफ़ी है | और कहाँ तक रोग गिनवाये, सभी ने हमको घेरा है
सार्थक पोस्ट , आभार
आपकी पोस्ट बड़ी जानकारीपरक, ज्ञानवर्धक और लाभदायक है.आभार.
stress ko bhee jimmedar samjh sakte hai hum log .
sarthak post
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