मल्तिपिल स्केलेरोसिस एक ऐसा रोग है दिमाग और रीढ़ रज्जू की कोशाओं को जो जख्मी करता जाता है .वक्त के साथ यह रोग बढ़ता ही जाता है जिसमे प्रतिरक्षा तंत्र अपनी ही प्रति -रक्षी कोशाओं का अस्तर (प्रोटीन कोट ,प्रोटीन आवरण माय्लिन ) को नष्ट कर देता है इसे विजातीय समझकर ।
इन्हीं कोशाओं को पहुँचने लगने वाली चोट का नतीजा इन्द्रिय सम्बन्धी बोध ,सेंसरी या फिर मोटर (मस्क्युलर )फंक्शन के बदलाव के रूप में सामने आता है .भौतिक क्षमताओं के ह्रास और छीजते चले जाने के रूप में प्रगटित होता है ।
इस ऑटो -इम्यून डिजीज का कारण अज्ञात बना हुआ है .अलबत्ता ऐसा समझा जाता है ,आनुवंशिक ,इम्युनोलोजिकल और पर्यावरणीय तीनों तरह के तत्वों का इस रोग के पीछे कुछ न कुछ हाथ रहता है ।
जहां तक इलाज़ का सवाल है मरीज़ को दवाओं से उनके पार्श्व प्रभावों से ,खाद्य एवं दवा संस्था द्वारा प्राप्त मंजूरी तथा ड्रग टोलरेंस कैसे बढाई जाए यह सब समझाने के बाद ही थिरेपी का चयन किया जाता है . एक संवाद डॉ और मरीज़ के बीच एक पुल का काम करता है .इस रोग से पार पाने इससे तालमेल बिठाने में ।
(ज़ारी ..).
एक शैर सुनियेगा :
पलकें भी चमक उठतीं हैं सोते में हमारी ,
आँखों को अभी ,ख़्वाब छिपाने नहीं आते ,
दिल अब है एक उजड़ी सराय की तरह ,
रातों को यहाँ लोग,अब रात बिताने नहीं आते .
मंगलवार, 31 मई 2011
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