स्ट्रोक के जोखिम को सबसे ज्यादा बढाने वाले तत्वों में हाई -पर -टेंशन के बाद दूसरे नंबर पर आतीं हैं दिल की बीमारियाँ खासकर -"एत्रीयल फिब्रिलेशन"।
इस कंडीशन में जिसे एट -रीयल फिब्रिलेशन कहा जाता है ,लेफ्ट एट्रियम की बीटिंग अनियमित हो जाती है .या दिल का बायाँ ऊपरी
कक्ष इर्रेग्युलर बीटिंग करने लगता है .इस स्थिति से ग्रस्त लोगों में वास्तव में लेफ्ट एट्रियम शेष दिल की तुलना में चारगुना तक ज्यादा तेज़ी से "लुब डुब "करने लगता है .बीट करने लगता है .इससे रक्त प्रवाह अनियमित हो जाता है तथा यदा- कदा खून के थक्के भी बनने लगतें हैं .जो दिल से चलके दिमाग तक पहुंचकर स्ट्रोक की वजह बन सकतें हैं ।
२२ लाख अमरीकी एत्रीआल फिब्रिलेशन से ग्रस्त हैं इनमे से हरेक के लिए स्ट्रोक का ख़तरा ४-६ गुना तक ज्यादा बना रहता है ।
स्ट्रोक के पेशेंट्स में १५% स्ट्रोक से पूर्व इसी स्थिति से असर ग्रस्त रहतें हैं .उम्र दराज़ लोगों में इसकी प्रिव्लेंस ज्यादा है इसका मतलब है एल्दरली लोगों की आबादी में वृद्धि के साथ ही आनुपातिक तौर पर एत्रीअल फिब्रिलेशन के मामले भी अमरीका में बढ़ जायेंगे .इसके साथ ही इन लोगों में स्ट्रोक का जोखिम उम्र के बढ़ते जाने के साथ साथ और भी बे -हिसाब बढ़ता चलता है .८० साल के ऊपर के लोगों में प्रत्येक चार स्ट्रोक के मामलों में से एक की वजह यही एत्रीअल फिब्रिलेशन बनता है .
इस कंडीशन के अलावा हार्ट वाल्वों का ठीक से न बन पाना ,हृद पेशी (हार्ट मसल )का समुचित विकास न हो पाना भी स्ट्रोक के खतरे को बढाता है ।
वाल्व से जुड़े कुछ रोग भी (मिट्रल वाल्व स्टेनोसिस ,या मिट्रल एन्युलर केल्सिफिकेशन )भी स्ट्रोक के जोखिम को दो गुना बढा देतें हैं .यह बढ़ोतरी स्वतंत्र रूप से दूसरे जोखिम से निरपेक्ष होकर होती है .
हार्ट मसल माल फोर्मेसंस :भी स्ट्रोक के खतरे को बढा देतें हैं .
पेटेंट फ़ोरामें ऑवले (पी ऍफ़ ओ )दो एत्रिआज़ के बीच एक पैसेज का बनजाना है एक होल का रह जाना है जिसे कभी कभार "शंट "भी कह दिया जाता है .
आम तौर पर खून के थक्के फेफड़ों से छनके आतें हैं ,यहीं समाप्त हो जातें है ,लेकिन पी ऍफ़ ओ में ये फेफड़ों को बाई पास कर जातें हैं ,बचके निकल जातें हैं वैकल्पिक मार्ग से पैसेज से ,और आर्टरी में सीधे दाखिल होकर दिमाग तक पहुँच जातें हैं .और बस यही स्ट्रोक की वजह बन जातें हैं .दिल के ऊतकों का एक जन्म जात विकासात्मक विकार होता है एत्रिअल सेप्टल एनियुरिज्म(ए एस ए ) ,इसमें सेप्टम बाहर को उभर आता है ,बल्ज के रूप में या फिर दिल की दीवार ही किसी एक एत्रिया में बल्ज बनके आजाती है .स्ट्रोक का ख़तरा इस स्थिति में भी बढ़ जाता है .लेकिन इससे यह जोखिम बढ़ता क्यों है यह अभी अन -अनुमेय ही है .
पी ऍफ़ ओ और ए एस ओ साथ -साथ भी अकसर होतें हैं ,ऐसे में स्ट्रोक का ख़तरा और भी बढ़ जाता है ।
लेफ्ट एत्रीयल एन लार्ज्मेंट तथा लेफ्ट वेंत्रिक्युलर हाई -पर -ट्रोफी दूसरे विकासात्मक विकार है ,हार्ट माल -फोर्मेसंस हैं जो स्ट्रोक के खतरे के वजन को बढा देतें हैं ।
पहले विकार में लेफ्ट एट्रियम का आकार सामान्य से बड़ा हो जाता है ,तथा दूसरे में लेफ्ट वेंट्रिकल की दीवार का अस्तर या दीवार ही मोटी हो जाती है ।
हार्ट सर्जरी :हार्ट माल फोरमेशन (विकासात्मक विकार )की दुरुस्ती के लिए की गई शल्य चिकित्सा (सर्जरी )भी स्ट्रोक की वजह बन सकती है .इस स्थिति में शल्य से मुक्त हुए "प्लाक "जो महा -धमनी से मुक्त होतें हैं ,रक्त प्रवाह के साथ गले और हेड की आर्टरी तक चले आतें हैं .और स्ट्रोक की वजह बन जातें हैं क्योंकि दिमाग को पूरा रक्त और ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है . कार्डिएक सर्जरी स्ट्रोक के खतरे को करीब १%बढा देती है .
(ज़ारी ...)
हमेशा की तरह एक शैर पढ़िए :
पाल ले एक रोग ,जीने के लिए ,
सिर्फ सेहत से कटती नहीं ,ज़िन्दगी .
मंगलवार, 10 मई 2011
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