शनिवार, 7 मई 2011

ट्रीट -मेंट फॉर सोशल एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर .

हालाकि सोशल एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर एक(ता -उम्र ) बने रहने वाला रोग है लेकिन साइको -थिरेपी की एक विशेष पद्धति "कोगनिटिव बिहेवियर थिरेपी "और दवा -दारु से लक्षणों में न सिर्फ ७५ %तक आराम आजाता है आप अपने आपको सोशल सिच्युएशन में अन -फिट नहीं पाते हैं .आत्म -विश्वाश लौटता है .
कोगनिटिव बिहेविअर थिरेपी में आपको यह सिखलाया जाता है बाहर उतना कुछ नहीं है जो कुछ है वह आपके सोचने के ढंग में है .नकारात्मक स्वरूप है उसका जिससे नर्वस नेस पैदा होती है बाहर स्थितियां उतनी खराब नहीं हैं .बाहर के लोग और स्थितियां आपके व्यवहार का निर्धारण नहीं करती है आपकी सोच ही जो सब कुछ करवाती है ।बेहूदा और अटपटा खुद को समझना यही सोच करवा रही है .
भले बाहर की स्थितियां न बदलें आपके अनुक्रिया -प्रति -क्रिया करने का ढंग बदल जाता है ।
अवांच्छित स्थितियां तो आएँगी उन्हें मेनेज करने का उनके साथ तालमेल बिठाने का ,पोजिटिव रहने का ढंग आप सीख जातें हैं "बोध या संज्ञान चिकित्सा "के तहत .धीरे -धीरे आप अपने बारे में खुद के नकारात्मक रवैये और सोच को पहचानने लगतें हैं .
एक्सपोज़र थिरेपी को भी साइको -थिरेपी का एक हिस्सा बनाया जाता है जिसमे व्यक्ति को उन स्थितियों से वाकिफ करवाया जाता है जो नर्वसनेस का सबब बन जातीं हैं .धीरे- धीरे इन स्थितियों का आप सामना करने लगतें हैं जो कभी डर पैदा कर रहीं थीं .
सोशल स्किल्स भी आपको सिखलाई जातीं हैं .अपने ही सीखे हुए हुनर को पक्का करने के लिए आपको रोल प्लेइंग इन स्किल्स भी सिखलाई जाती है .धीरे धीरे आप दूसरों से रिलेट करना सहज रहना उनके साथ सीख जातें हैं ।
रिलेक्शेशन और स्ट्रेस मेनेजमेंट तरकीबें भी इस चिकित्सा के तहत सिखलाई जातीं हैं .
(ज़ारी ...).

2 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

भाई साहेब आप तो मुफ्त में ज्ञान बाँट रहे है अगर किसी डाक्टर के पास जाते तो वाह काउंसलिंग के नाम पर ही बिल बना देता , ज्ञानवर्धक पोस्ट आपका आभार ....

virendra sharma ने कहा…

सुनील भाई !इस जानकारी को आगे बढाने वाली इक लड़ी अप भी बन रहें हैं .विद्या बाटनें से बढती है अन्दर समोए रखने से छीजती है और फिर नित नया सीखने का अपना थ्रिल होता है .अल्ज़ाइमर्स रोग से व्यक्ति बचा रहता है .नए न्यूरल सर्किट्स (न्यूरोन -न्यूरोन सम्प्रेषण केंद्र खड़े होतें हैं ,हमारा दिमाग इक टेलीफोन एक्सचेंज के मानिंद ही काम करता है ,सेंसरी न्यूरोन ,इन्द्रियों से प्राप्त संवेदन ,स्पर्श ,रूप गंध स्वाद से सम्बन्धी सूचना लातें हैं दिमाग तक ,मोटर -न्युरोंस आदेश लेकर वापस लौटतें हैं .अंग संचालन कर वातें हैं.