इन्तेरो-सेप्तिव एक्स -पोज़र :बिहेवियर -थिरेपी का व्यवहार सम्बन्धी हिस्सा है -इन्टेरो -सेप्तिव थिरेपी .यह फोबियाज़ के इलाज़ में प्रयुक्त "क्रमिक डी -सेन -सिताइज़ेशन "से मेल खाता है .लेकिन इसमें केंद्र में उन भौतिक - संवेदनों को रखा जाता है जो वास्तव में पेनिक अटेक को प्रेरित करतें हैं .इनसे रू -बा -रू करवाया जाता है विकार ग्रस्त व्यक्ति को । पेनिक अटेक से ग्रस्त लोग जितना अटेक से डरतें हैं उतना विशिष्ठ चीज़ों ,घटनाओं से नहीं .फ़्लाइंग से डरने की उनकी वजह यह सोच नहीं रहती है ,हवाई जहाज बीच हवा में दुर- घटना ग्रस्त हो जाएगा ,बल्कि यह की वहां यानी ऐसी जगह उनको अटेक पड़ जाएगा जहां बचाव के लिए कोई नहीं होगा .यानी भय बरपा अटेक का है न कि हवाई जहाज में उड़ने का .
कुछ और लोग कोफी नहीं पियेंगें ,गर्माहट भरे ,वातानुकूलित कक्ष में नहीं जायेंगें यह सोचते हुए इन चीज़ों से अटेक के भौतिक लक्षण पैदा हो जायेंगें ।दिल की धड़कन बढ़ जायेगी ,होट-फ्लाशिज़ आघेरेंगें .
इन -टेरो -सेप्तिव एक्स -पोज़र इन्हें अटेक के लक्षणों से रु -बा -रु हो इन्हें महसूस करना सिखलाता है .मसलन एलीवेटिड हार्ट रेट ,हॉट फ्लेशिज़ यानी सडन हॉट फीलिंग ,पसीने का छूटना ,चेहरे का सुर्ख लाल हो जाना ,यह एहसास करवाने के लिए ये लक्षण "फुल- ब्लोन- अटेक" की वजह बनें यह ज़रूरी नहीं है .यह सारा काम नियंत्रितमाहौल और हालातों में किया जाता है ।
सिच्युएश्नल एव्होइदेन्स में भी इसका स्तेमाल किया जाता है ,कुछ चीज़ों से ,जगहों से मरीज़ यह सोच कर छिटकने लगता है वहां गए और अटेक पड़ा .(वजह पहला अटेक यहीं पड़ा था )।
"इन -वाइवो -एक्स -पोज़र "को भी फोबियाज़ का एक कारगर इलाज़ माना जाता है .इसके अंतर -गत एक भय पैदा करने वाली स्थिति को मेनेजेबिल स्टेप्स में रखा जाता है ,कदम दर कदम इसकी और बढा जाता है .एक बार में एक चीज़ का सामना किया जाता है .बस "करत -करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान ".पेनिक अटेक का डर धीरे -धीरे घटने लगता है .यहाँ एक शैर बड़ा ही मौजू सिद्ध हो सकता है :
"बाज़ जाने किस तरह हमको ये समझाता रहा ,
क्यों परिंदों के दिलों से उसका डर जाता रहा ।"-
यहाँ "बाज़ "को पेनिक अटेक के रूप में देखें ।
रिलेक्सेशन तरकीबें भी अटेक से गुज़रना सिखलातीं हैं बिना खौफ खाए .(डर गए तो मर गए ,मरना तो एक दिन है ही है फिर डर काहे का -"मौत का एक दिन मुइयन है ,नींद क्यों रात भर नहीं आती ?)"
"दीज़ टेक्नीक्स इनक्लूड ब्रेअथिंग री -ट्रेनिंग एंड पोजिटिव विश्युएलाइज़ेशन ।
कुछ माहिरों के अनुसार पेनिक अटेक से ग्रस्त लोगों में सामान्य से थोड़ी ज्यादा ब्रेअथिंग रेट वैसे भी बनी रहती है .सांस की धौंकनी औसत से ज्यादा रफ़्तार बनाए रखती है .बस इसे थोड़ा सा कम करके पेनिक अटेक से बचा जा सकता है (सांस की धौकनी को बढ़ने को ये लोग अटेक की दस्तक मामने समझने लागतें हैं )।
कुछ मामलों में दवाओं की भी ज़रुरत पड़ सकती है ।
(१)एंटी -एन्ग्जायती दवाएं तजवीज़(प्रिस- क्राइब की जातीं हैं .एंटी -डिप्रेसेंट्स भी दिए जातें हैं और कभी- कभार दिल की इर्रेग्युअल्र हार्ट बीट्स को नियंत्रित रखने , बचाव के लिए "बीटा -ब्लोकर्स "भी दिए जातें हैं .
सपोर्ट ग्रुप से भी मदद मिलती है .अच्छा मार्ग दर्शन भी खासकर उन लोगों से जिन्हें पेनिक अटेक पड़ा हो .जो इससे ग्रस्त रहें हों .यह दवा का स्थान तो नहीं ले सकती लेकिन सहायक चिकित्सा से कमतर नहीं रहती है ।
लेकिन पेनिक अटेक के मामले में आप "घर का वैद्य "नहीं बन सकते .अपने आप इलाज़ नहीं कर सकतें .एक मनो -विज्ञानी और मनो -रोगों का माहिर ही इसका सही समाधान प्रस्तुत कर सकता है सटीक और कारगर इलाज़ मुहैया करवाके ।
(ज़ारी ...).
मंगलवार, 3 मई 2011
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