गज़ल (रिमिक्स )।
सावन बदरा और घटाएं ,उसकी है परछाईं रात
बरखा की बौछारें छप -छप ,उसमें खूब नहाई रात ।
चंदा की चंदनियां में फिर , उजली धुलि धुलाई रात ,
होठों पर अश -आरे मोहब्बत ,फिर से है शरमाई रात ।
चाँद सितारे फ़रियाद हैं ,करती है सुनवाई रात ,
चाँद कटोरा लिए हाथ में ,भीख मांगने आई रात .
जाने कितने ख़्वाब मिटाकर ,हौले से मुस्काई रात ।
रिमिक्स्कार :वीरेंद्र शर्मा ,डॉ नंदलाल मेहता "वागीश ",श्री अरुण कुमार निगम ।
दूसरी किश्त जल्दी पढियेगा ।रिप्रोसेसिंग में है .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।
मूल गज़ल :दिन बीता फिर आई रात ,कैसी ये दुखदाई रात
यादों की जलती तीली ने ,धीरे से सुलगाई रात
गज़लकारा : डॉ .वर्षा सिंह .
सोमवार, 30 मई 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
ये भी मजेदार है, दूसरी का इंतजार है,
नमस्कार जी मुझे पीलिया के बारे में लेख का लिंक देने का कष्ट करे,
Bhai Sandeep Panvaar !I shall have to write on it .meanwhile you can visit hipatitis-google search ,can read Hipatitis C.
पीलिया (जौंडिस,हिपाताईतिस- सी या ए आमतौर पर होता है जिसे आम भाषा में पीलिया कहतें हैं ,हिपाताईतिस -बी तो एच आई वी एड्स की तरह खतरनाक है .)भाईसाहब परहेज़ चाहता है घी तेल का ,प्रोटीन का .लीवर पर जोर नहीं पड़ना चाहिए .लिम्का ,अमूमन ट्रांस -परेंट लिक्विड ,मूली का रस ,गन्ने का रस (सड़क के किनारे का नहीं आजकल डिब्बा बंद उपलब्ध है )नारियल पानी ,तमाम ताज़े जुईस मुफीद रहतें हैं .
क्या कहने हैं :)
एक टिप्पणी भेजें