उसकी हरेक चीज़ लीक से हटकर ही थी तभी तो हम लोग उसे "बीबी नातियों वाली "बोलते थे .उम्र !हाँ उम्र तो कुछ भी नहीं थी बीसम बीस के पेटे में ही थी .हमारा उससे परिचय आकाशवाणी एक वार्ताकार के टाकर के रूप में ही था .लेकिन उसमे कुछ ऐसा था ज़रूर जो उस दौर में १९७० के दशक में युवतियों में मिलना मुश्किल था ।
चार मीनार की सिगरेट भी हमने उसे कभी कभार पीते देखा था ,खड़े होकर उस छोटे से नगर के रेडिओ -स्टेशन पर वह हर टाकर से हाथ मिलाती थी .बंधू संबोंधन उसका तकिया कलाम था ।
नक़्शे बाज़ी में उस दौर में हम भी किसी से कम न थे ,धूप के चश्मे लगाते थे .वह उसकी धूल अपने आँचल से साफ़ करके दराज़ में रख लेती थी ।
जब स्टूडियो से रिकोर्डिंग के बाद लौटते तो चस्मा देना लौटाना उसे याद रहता ।यह अपनापन हम आज तलक नहीं भूले .
वह कितनो को ही बेटा कहके बोलती थी ।
ये था उसके व्यक्तित्व का एक पहलू सबसे गरम जोशी से मिलना ,आवभगत करना ,सब टाकर्स को रिकोर्डिंग से पहले चाय पिलाना ।
हाँ !शादी नहीं की थी उसने .खुलकर बात करती थी -स्साले शादी शुदा ही मरतें हैं हम पे कोई कुंवारा दिल नहीं छिड़कता .क्या हम इतने बुरे हैं ?
शादी नहीं की तो नहीं ही की .और नफासत की नगरी लखनऊ से वह तबादला होने पर रोहतक चली आई थी .यहीं हमारा उससे परिचय हुआ था .प्रोड्यूसर थी वह .अब तो "एस डी "यानी केंद्र निदेशक होके सेवा निवृत्त भी हो चुकी है लेकिन एक स्पोंतेनिती एक सहज प्रवाह उसमे तब भी थी आज भी है ।
लोक व्यवहार में वह तब भी पटु थी आज भी है .उन दिनों हम बी बी सी के उद्घोषकों की नक़ल करते थे उसने ही बतलाया था बंधू तुम्हारी आवाज़ बहुत अच्छी है फिर ये नक़ल क्यों .थ्रो ऑफ़ वर्ड्स भी उस बीबी नातियों वाली ने हमें सिखाया था ।
हम उसके घर भी चले आते थे .घर की दुनिया और थी .पिता पार्किन्संस सिंड्रोम से ग्रस्त थे .बीमारी भी अपने अग्रिम चरणों में चली आई थी .अपने आप से पिता श्री चल भी कहाँ पाते थे उनका तो सारा ठवन ही बिगड़ा रहता था पैर घसीटते थे वह सहारा देने पर भी चल कहाँ पाते थे .स्पीच भी उनकी बस वह ही समझ पाती थी .वह उन्हें वैसे ही संभाल रही थी जैसे माँ पुत्र को .नित्य कर्म वही संपन्न करवाती थी .पुचकारती थी वैसे ही मातृत्व भाव लिए .सच मायनों में पिता उसके पुत्रवत ही थे .आप देखते तो आपको भी यही अनुभूति होती ।
फिर वही हुआ जो सबके साथ होता है .आने वाला जाता है .पिता भी चले गए ।
बीबी नातियों वाली का एक छोटा भाई था जो उन दिनों बोम्बे में था .बोम्बे उन दिनों बोम्बे ही था मुंबई नहीं बना था .पिता चले गए इस पार्थिव शरीर से विदा लेके ।
पंडितजी को बतला दिया था -अंतिम संस्कार वह ही करेगी .चिता को मुख -अग्नि उसी ने प्रज्वलित की ,उसका भाई भी शमशान में पहुंचा था लेकिन तब तक मुखाग्नी दी जा चुकी थी .
यकायक वह चिल्लाई थी -बेतहाशा !वह देखो !अरे देखो देखो पापा का पैर जल रहा है .शायद भाई के पहुँचने से वह औरत बन गई थी .वही कोमलता ,उसका नारीपन मुखर हुआ था .पापा को देखो !वो जा रहें हैं .अरे कोई तो देखो .और वो पागलों सी मुद्रा बनाए थी ।
शुक्रवार, 20 मई 2011
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3 टिप्पणियां:
"बीबी नातियों वाली " पर NICE POST....NICE THINKING.
WELCOME IN GHAZALYATRA.....आपका अनुरोध आपकी प्रतीक्षा में है....
बहुत सुन्दर और भावप्रणव!
डॉ .वर्षा सिंह जी ,डॉ .रूप चंद शास्त्री मयंक जी , तहे दिल से शुक्रिया आप विज्ञ जनों का .
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