ज्यादातर माहिर इस बात से सहमत हैं ,बोध सम्बन्धी (कोगनिटिवथिरेपी यानी किसी चीज़ का संज्ञान लेना )तथा व्यवहार सम्बन्धी चिकित्सा यानी बिहेवियर थिरेपी "पेनिक डिस -ऑर्डर" (पी डी )का सबसे बढिया इलाज़ हैं .लेकिन कुछ मामलों में मेडिकेशन ज्यादा असर कारी और फिट बैठता है .
चिकित्सा का सबसे पहला अध्याय (भाग )कमोबेश अन -औपचारिक है ,कई लोगों को यदि सिर्फ यह इल्म करा दिया जाए -आखिर यह कंडीशन "पी डी "है क्या ,और क्यों और कैसे कई और इसकी चपेट में आजातें हैं ,इससे, इस अकेली बात से काफी लोगों को राहत पहुँचती है .फायदा होता है इस जानकारी का ।
कई लोगों को लगता है वे बे -काबू हो रहें हैं -दे आर गोइंग क्रेजी ,उन्हें दिल का दौरा अब पड़ा तब पड़ा ,बस पड़ने ही वाला है ,यही चिंता रहती है एक अटेक और पड़ेगा जो उनकी जान ही ले लेगा ।
कोगनिटिव री -स्त्रक्च्रिंग इसी संशय ,इसी चिंता पे चोट करती है .सोचने का नकारात्मक ढंग तबदील करती है .इन खयालातों के स्थान पर सकारात्मक और घटना को वास्तविक पहलू से देखना सिखलाती है पेनिक अटेक्स को .
संज्ञानात्मक (बोधात्मक चिकित्सा )कोगनिटिव थिरेपी ,विकार ग्रस्त व्यक्ति को "पी डी "के संभावित ट्रिगर्स (उत प्रेरक )को पहचानना सिखलाती है ।
कुछ लोगों में ये "ट्रिगर "एक विचार ,एक परिश्तिथि ,और दिल की एक धड़कन में तबदीली भी हो सकती है चाहें दिल की धड़कने बढ़ने की वजह कसरत ही क्यों न रही हो .माशूका से मिलना ही रहा हो ।
एक बार मरीज़ बस यह समझ बूझ ले -पेनिक अटेक अलग चीज़ है "ट्रिगर "अलग दोनों का परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं है ,बस ट्रिगर अपनी धार खोने लगता है ।
(ज़ारी ...)
मंगलवार, 3 मई 2011
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