मेटाबोलिक सिंड्रोम :
यह एक कुछ ऐसी स्थितियों का पिटारा है ,जो किसी के लिए भी परि -हृदय -धमनी रोग(कोरोनरी आर्टरी डिजीज ) के खतरे के वजन को बढा देतीं हैं .
इन कंडीशंस में शामिल हैं :
(१)सेकेंडरी डायबिटीज़ (जीवन शैली रोग मधुमेह )(२)मोटापा (ओबेसिटी )(३)हाई -ब्लड -प्रेशर (हाई -पर -टेंशन )(४)खून में बेड कोलेस्ट्रोल का ज्यादा तथा अच्छे कोलेस्ट्रोल का कमतर रहना ,ट्राई -ग्लीस -राइड्स का भी ज्यादा होना ,जिसे कह सकतें हैं -पूअर लिपिड प्रो फ़ाइल का होना ।
ये तमाम हालात इंसुलिन के उच्चतर स्तर से पैदा हो जातें हैं ।
मेटाबोलिक सिंड्रोम में मेटाबोलिज्म में बुनियादी खोट आजाती है जिसे कहतें हैं इंसुलिन रेजिस्टेंस .यह इंसुलिन प्रति -रोध एडिपोज़ टिश्यु और मसल दोनों के लिए ही पैदा हो जाता है ।एडिपोज़ टिश्यु का मतलब होता है वे ऊतक जिनमें वसा(फैट )रहती है .ये एक सुरक्षा कवच के अलावा मुख्य अंगों को ऊर्जा ,तथा इन्सुलेशन भी मुहैया करवातें हैं .ये चमड़ी के नीचे तथा प्रधान अंगों को घेरे रहतें हैं हिफाज़ती तौर पर .
वे दवाएं जो इंसुलिन रेजिस्टेंस को कम करतीं हैं आम तौर पर ब्लड प्रेशर भी कम कर्देतीं हैं .लिपिड प्रो-फ़ाइल में भी सुधार लातींहैं .
मेटाबोलिक सिंड्रोम को -इंसुलिन रेजिस्टेंस सिंड्रोम ,सिंड्रोम एक्स ,डिस -मेटाबोलिक सिंड्रोम एक्स ,रेअवें सिंड्रोम भी कह दिया जाता है ।
१९८८ में पहली मर्तबा गेराल्ड रेअवेन ने इस सिंड्रोम की चर्चा अपने एक व्याख्यान में अमरीकी मधुमेह संघ की वार्षिक बैठाक में की थी .
बुधवार, 25 मई 2011
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