शनिवार, 30 अप्रैल 2011

सेरिब्रल पाल्ज़ी में संभावित जटिलताएं क्या हैं ?

कोम्प्लिकेसंस :
सेरिब्रल पाल्ज़ी में - पेशियों की कमजोरी ,जकड़न,स्टिफनेस,तथा पेशीय समन्वयन का अभाव बालपन में अनेक समस्याओं ,जटिलताओं और पेचीले पन की वजह बन सकता है ।
(१)कों -ट्रेक -चर(गत पोस्टों में हम बतला चुकें हैं कों -ट्रेक -चर क्या है ):पेशीय ऊतक /ऊतकों का छोटा रह जाना है कों -ट्रेक -चर जिसकी वजह पेशियों की गंभीर जकड़न ,टाईट -निंग बनती है .यही कों -ट्रेक -चर अश्थी (हड्डी/हड्डियों )की सामान्य बढ़वार के भी आड़े आने लगता है .हड्डियां टेढ़ी मेढ़ी भी हो सकतीं हैं ,जोड़, बे -जोड़ बे -तरह विकृत या डिफोर्म हो सकतें हैं .दिस्लोकेशन या आंशिक खिसकाव ,दिस -ओरियेंटेसन ,विस्थापन भी जोड़ों में देखने को मिल सकता है ।
(२)कुपोषण :क्योंकि सेरिब्रल पाल्ज़ी से ग्रस्त कई नौनिहाल ठीक से सटक निगल भी नहीं पाते इसलिए इनके कुपोषित रह जाने की संभावना बनी ही रहती है .कुपोषण से लोकल इन्फेक्संस का ख़तरा बढ़ जाता है ।
(३)डिप्रेशन :समाज से एक तरफ कटके रह जाना अकसर अवसाद की वजह बन जाती है .अपनी अक्षमताओं के साथ तालमेल बिठा पाने की कूवत भी प्रोत्साहन न मिलने पर चुकने लगती है नतीजा होता है -अवसाद (डिप्रेशन )।
(४)प्री -मेच्युओर एजिंग :सेरिब्रल पाल्ज़ी से ग्रस्त व्यक्ति जवानी और प्रौढावस्था के रोगों और मेडिकल कंडीशंस से दो चार होता है .ऐसे में तन और मन पर दोनों दवाब बना रहता है .जो व्यक्ति को समय से पहले बुढापे की ओर ले जा सकता है .विकार ग्रस्त व्यक्ति के दिल ,फेफड़ों जैसे प्रमुख अंगों का विकास भी समुचित और सामान्य तौर पर नहीं हो पाता है ..प्रमुख अंग अपनी पूरी क्षमता से काम ही नहीं कर पातें हैं .
(५)पोस्ट इं -पे -यर -मेंट सिंड्रोम :दर्द ,कमजोरी बेहद की और निरंतर बनी रहने वाली थकान इसी स्थिति के लक्षण हैं .इसकी वजह वह दवाब बनता है जो सामान्य काम करने में भी ज्यादा ऊर्जा के खर्च होने से पैदा होता है क्योंकि व्यक्ति शारीरिक अक्षमता ही तो झेल रहा है ,हर छोटे से छोटे काम के लिए उसे ज्यादा परिश्रम और प्रयास करना पड़ता है ।
(६)ओस्टियो -आर्थ -राई-टिस :जोड़ों पर हर वक्त ज्यादा दवाब पड़ते रहना ,जोड़ों का एब -नोरमल एलाइन्मेन्त जो पेशियों की जकड़न से उपजता पनपता है अप -विकासी(डि -जेंरेटिव )पीड़ा दायक जोड़ों की बीमारी "ओस्टियो -आर्थ -राई -टिस की वजह बन जाता हैइस विकार में जिसे सेरिब्रल पाल्ज़ी कहा जाता है .
(ज़ारी...).

क्या सेरिब्रल पाल्ज़ी से बचाव संभव है ?

प्रिवेंशन ?
बेशक सेरिब्रल पाल्ज़ी के ज्यादातर मामलों से बचा नहीं जा सकता लेकिन जोखिम कम ज़रूर किया जा सकता है .खासकर वो महिलायें जो गर्भ से हैं या गर्भ धारण करने की इच्छुक हैं ,इस और सोच रहीं हैं वे कुछ कदम गर्भावस्था की पूरी ४० सप्ताह की अवधि में अपनी और अपने होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए उठा सकतीं हैं . तथा गर्भावस्था में होने वाली संभावित जतिलाताओं को अपने से दूर रख सकतीं हैं .
(१)मेक स्युर(स्योर )यु आर वेक्सिनेतिद :मसलन रूबेला का बचावी टीका एक ऐसे संक्रमण से बचा सकता है जो भ्रूण के दिमाग को क्षति ग्रस्त कर सकता है .यानी फीटल ब्रेन डेमेज से सहज ही बचा जा सकता है यह टीका लगवा कर ।
(२)टेक के -यर ऑफ़ योर सेल्फ :आपकाअच्छा स्वास्थ्य गर्भावस्था की पूरी अवधि के दौरान रोग संक्रमण के जोखिम के वजन को कम रखके सेरिब्रल पाल्ज़ी के खतरे को भी कम कर सकता है .
(३)सीक अर्ली एंड कन्तिन्युअस प्री -नेटल केयर :जच्चा और बच्चा की समुचित हिफाज़त के लिए एक शेड्यूल के मुताबिक़ अपनी गाईने -कोलोजिस्त के पास जाते रहना ज़रूरी है .कोई कोताही नहीं होनी चाहिए इन विजिट्स में .सब कुछ दर्ज़ किया जाता है .बच्चे की बढ़वार,सामान्य विकास ,जो समय पूर्व प्रसव ,प्रसव के समय नवजात का लो वेट रह जाना ,संक्रमण आदि के जोखिम को कम रखने में विधायक भूमिका निभाता है .समय पूर्व पैदा हुए बच्चों में ,किसी भी प्रकार की फीटल डिस्ट्रेस से सेरिब्रल पाल्ज़ी का ख़तरा बढ़ जाता है .
(४)प्रेक्टिस गुड चाइल्ड सेफ्टी :कार सीट रखिये (सभी विदेशी कारों में इसका लाजिमी तौर पर प्रावधान रखा जाता है ).भारत में बिना सीट बेल्ट के महिलायें शिशुओं को आगे वाली सीट पे बिठाए देखी जा सकतीं हैं .ड्राविंग करते हुए गोद में भी बच्चों को देखा जा सकता है .यहाँ सीट बेल्ट न बाँधना भी कई लोग शान समझतें हैं -वी आई पी भाव से सोचते हुए "हमारा कोई क्या कर लेगा "।
बेड्स नीचे होने चाहिए ,सेफ्टी रेल्स रहनी चाहिए बच्चों के बेड्स के गिर्द .ऊंची किनारी वाली मशहरी पे हम अपने बचपन में खूब सोये हैं ।
१८ साल से कम उम्र के बच्चे को स्कूटर ,मोटर -बाइक आदि न थमाई जाए किसी भी सूरत में .आखिर ड्राइविंग की एक उम्र होती है ,लाइसेंस प्राप्ति की भी .
(ज़ारी ..)

कैसे तालमेल बिठाया जाए सेरिब्रल पाल्ज़ी से ?

कोपिंग एंड सपोर्ट :
जब परिवार में किसी बच्चे को सेरिब्रल पाल्ज़ी डायग्नोज़ हो जाता है रोग निदान होजाता है इस अक्षम बना देने वाले विकार का तब एक धक्का तो लगता है लेकिन यह कमर कसने और इस विकार को अपने बच्चे की बेहतरी के लिए एक चुनौती के रूप में स्वीकार करने का निर्णायक वक्त होता है .जिंदगी हौसले से ही जी जाती है ,एक निरंतर ज़ारी रहने वाली जंग है हालातों के साथ .
"मन के हारे हार है ,मन जीते जगजीत "
कुछ रणनीतियों को अम्ल में लाना होता है इसे हासिल करने के लिए :
(१)फ़ॉस्टर योर चाइल्ड्स इन -डिपें -डेंस :छोटे- छोटे, छोटे सेभी छोटे कदम की सराहन कीजिये बच्चे के जो उसने पहल करके उठाया है .आप कोई काम आसानी से और जल्दी से कर सकतें हैं लेकिन क्या ज़रूरी है आप ऐसा करें ही ।?
(२)बी एन एडवोकेट ऑफ़ योर चाइल्ड :आप बच्चे के स्वास्थ्य की निगरानी करने वाली टीम के एक एहम सदस्य हैं ,बच्चा ज्यादा वक्त आपके पास ही गुजारता है .अपने बच्चे की खुलके वकालत कीजिये उसके हित में जो भी बात ,संशय आपके दिलो - दिमाग में हैं उनके बाबत काय -चिकित्सक ,थिरेपिस्ट (फिजियो )आदि से खुलके बात कीजिये ,सवाल पूछिए मुश्किल से मुश्किल ।
(३)फाइंड सपोर्ट :माँ -बाप के रूप में आप अपने बच्चे के बारे में अपराध बोध से ग्रस्त हो सकतें हैं खुद अपने को उसके दुखों के लिए कोस सकतें हैं कुसूरवार मान सकतें हैं .
बहुत ज़रूरी है एक सहायक वृत्त ,सपोर्ट -दायरे की खोज जिसमे आपका चिकित्सक आपकी मदद कर सकता है .ऐसे संगठन ,सलाह मश्बिरा देने वाली सेवायें मौजूद रहतीं हैं ज़रुरत इन तक पहुँचने की होती है .फेमिली सपोर्ट प्रोग्रेम से लेकर स्कूल प्रोग्रेम और कोंसेलिंग तमाम तरह की सेवायें मौजूद हैं ,उनका दोहन करने की ज़रुरत है ।
(ज़ारी...).

चिठ्ठा कारी का मायावी संसार (ज़ारी ...).

यहाँ इस पोस्ट में हम कुछ ब्लॉग और ब्लोगिंग शब्द से ताल्लुक रखने वाले पारिभाषिक शब्दों की ही चर्चा करेंगे .साथ ही पुनरावृत्ति दोष के लिए मुआफी मांगेंगे ।
(१)ब्लॉग यानी चिठ्ठा क्या है ?
यह एक ऐसा अखबार या रिसाला है जिसके सर्वाधिकार एक ही व्यक्ति के पास होतें हैं .कह सकतें हैं -इट इज ए वन मेन शो ".एक ही व्यक्ति इसका लेखक (लिखाड़ी ),प्रूफ रीडर ,उप -सम्पादक ,सम्पादक ,मुख्य- सम्पादक ,मुद्रक ,प्रकाशक ,वितर्क ,विज्ञापक ,होकर और मालिक होता है .
(२)ब्लोगिंग :चिठ्ठा लेखन अथवा चिठ्ठाकारी ,चिठ्ठा -गिरी ,चिठ्ठाबाजी को ही ब्लोगिंग कहाजाता है अर्थात ब्लोगिंग एक प्रक्रिया एक मिकेनिज्म है चिठ्ठा जिसका परिणाम है .एक उत्पादक है दूसरा उत्पाद .
(३)टिपण्णी :इसे आप चिठ्ठा-कशी भी कह सकतें हैं बा-तर्ज़ ताना -कशी अलबत्ता यह तानाकशी से फर्क चीज़ है यहाँ सिर्फ प्रशंशा भाव ही है .वन इज तू वन रिलेशन शिप है ,नो अप -मेन -शिप .तू मेरे चिठ्ठे पे आ मैं तेरे पे आवूंगा. .(४)चिठ्ठा मोहन और चिठ्ठा मोहनियां :ये वो हस्तियाँ हैं ब्लॉग जगत की चिठ्ठों के माया लोक की जिनके चिठ्ठों पे चिठ्ठा- कशी बेतरह की जाती है .ये खुद भी करलेतें हैं .टिप्पणियों पे टिप्पणियाँ और इसीलिए टिप्पणियाँ सरकारी मंत्रालय में मंत्रियों की तरह बढती चली जाती हैं .
(५)चिठ्ठा -चौकड़ी (चिठ्ठा कॉकस ):यह चिठ्ठा मोहनों ,मोह्नियों का एक ऐसा समूह है जो निरंतर एक दूसरे के चिठ्ठों पे आते जाते रहतें हैं ।ये तमाम लोग "जंक "को भी अव्वल दर्जे की साहित्य -इक रचना घोषित कर सकतें हैं .
(ज़ारी ...)

चिठ्ठाकारी का मायावी संसार (ज़ारी...)

चिठ्ठाकशी चिठ्ठाकारी या ब्लोगिंग कुछ के लिए एक ला -इलाज़ रोग बनके रह गया है .माहिरों ने इसे एक नाम दिया है -"ब्लोग्सेसिव कम्पल्सिव डिस-ऑर्डर "।
चिठ्ठा -लिखना ,लिखते रहना ,लिखते रहने की दुर्दम्य मजबूरी इसका पीछा करती है .यह पुरानी धुरानी रचनाओं को संभाल के रखता है ,कटे हुए नाखूनों को भी यह चिठ्ठा कह और समझ सकता है ।
इसके लक्षणों में शामिल है -
सुबह उठते ही चिठ्ठा चेक करना ,उसपे कोई चिठ्ठाड़ी,चिठ्ठाकार ,ब्लोगर आया या नहीं .दिन में बारहा इसी क्रम को दोहराना ,चिठ्ठा खोलना बंद करना इसकी मजबूरी बन जाता है जिससे यह चाहकर भी पिंड नहीं छूता पाता है .मजेदार बात यह है यह यथार्थ को जानता पहचानता और मानता भी है जो कुछ यह करता है दोहराता उसकी निरर्थकता से वाकिफ रहता है लेकिन एक रिच्युअल की तरह दोहराने से इसका तनाव कम हो जाता है .लेकिन ऐसा कुछ देर के लिए ही हो पाता है .चिठ्ठा खोल कर उसे दोबारा पढने का विचार इसे पहले से भी ज्यदा आवेग से घेर लेता है ।
इलाज़ आसान हैं "
चिठ्ठा- रोधी दवाएं ,व्यवहार चिकित्सा जिसमे चिठ्ठे की निरर्थकता से इसे रु -बा -रु करवाया जाता है .इलाज़ न होने पर इसके व्यक्तिगत ,सामाजिक ,कामकाजी सम्बन्ध भी असर ग्रस्त होतें हैं ।
ऐसा नहीं है ये प्राणि रचना धर्मी या रचनात्मक ,क्रिएटिव नहीं होता -
मौलिक ख़याल ही होते हैं इसके लेकिन होते सब चिठ्ठा सम्बन्धी ही हैं ,मसलन :
(१)बेस्ट चिठ्ठा अवार्ड ऑफ़ दी ईयर :इसके तहत चिठ्ठा -वीर ,चिठ्ठा सिंह ,चिठ्ठा शिरोमणि देने की सिफारिश यह अपने चिठ्ठे पर कई बार कर चुका है ।
(२)एक अखिल -विश्व चिठ्ठा पार्टी बनाके "मान्यवर श्री उड़न तस्तरी "को उसका आजीवन मुखिया बनाने की सिफारिश यह कई बार दूसरो के चिठ्ठे पे भी जाकर कर चुका है ।
(३)बकौल इसके चिठ्ठों का वार्षिक विवरण दिया जानका चाहिए प्रत्येक ब्लोगिये के द्वारा ।
(ज़ारी ...)

ब्लोगियों का मायावी संसार .(ज़ारी ...)

धन्यवाद ज्ञापन करना मेरा परम -पावन कर्तव्य है ,चिठ्ठे पे मीठी -मीठी चुटकियाँ लेने की प्रेरणा मुझे "चिठ्ठाकार "मान्यवर श्री सुनील कुमार से मिली ।
दो पंक्तियों पर उनका आशीर्वाद चाहूँगा -
धन्य भाग हमारे ,
जो आप चिठ्ठे पे म्हारे पधारे ।
वीरुभाई .

ब्लोगिये का मायावी संसार .

शीर्षक ब्लोगियों या फिर ब्लोगिया- गरों का मायावी संसार भी हो सकता था ,चिठ्ठाकारी का मायावी संसार भी,चिठ्ठा -कारी भी लेकिन ज्यादा केची "ब्लोगिये का मायावी "संसार ही लगा ।
आखिर ब्लोगिया जो भी लिखता है मालिकाना भाव से लिखता है .भाई मामूली बात थोड़ी है ,ब्लॉग -स्वामी है वह .जो मर्जी लिखे और फिर ब्लॉग यानी चिठ्ठा किसी पार्टी के मुख- पत्र की तरह ही तो है .
कह सकतें हैं चिठ्ठा यानी ब्लॉग एक ऐसा अखबार है "ब्लोगिया "जिसका ,प्रूफ रीडर भी है ,सम्पादक भी है ,मालिक भी ,प्रिंटर और पब्लिशर भी (प्रकाशक और मुद्रक भी ).चिठ्ठे को "खेद के साथ वापस "करने वाला माई का लाल न पैदा हुआ न होगा .
चिठ्ठों का मायावी संसार दिमागी कोशिकाओं (न्युरोंस )की तरह हैं जो एक जगह से दूसरी जगह जम्प करतें हैं और फिर भी सन्देश प्रसारित हो जाता है ।सारी दुनिया फेसबुक की तरह घूम आतें हैं .तमाम तरह के शाश्त्रों ,काम -कलाओं (परफोर्मिंग आर्ट्स )का ज्ञान -संसार यहाँ मौजूद है .लोग स्यापा करने का ढंग भी सिखातें हैं अपने ब्लॉग पर .ब्लोगिया -गिरी एक विकासमान विधा है .यहाँ किसी का प्रवेश वर्जित नहीं है .न कोई नियम ,न नियामक (रेग्युलेटर ,विनियामक )।
सो जय राम जी की और राम राम भाई ।

चिठ्ठों की विषय -वस्तु में भी विविधता देखी जा सकती है .प्रयोग -व्यवहार -और प्रगति वादों का मिश्रण होता है चिठ्ठा ,चिठ्ठे ।
कोई साहिब अपने चिठ्ठे पे फिल्म संगीत सुनवा -रहें हैं तो कोई नाम -चीन ,नामवरों ,लेखक लेखिकाओं के काम को रौशनी में ला रहें हैं ,मानो अभी तक वह "काले -पानी "में था .कुछ भजन कीर्तन कर रहें हैं ,संकलन भी भजनों का .हो सकता है कल को कोई स्टाम्प कलेक्शन भी दिखलाए ।
चिठ्ठे की विशेषता यह है किसी भी रचना से खींच -खांच कर आप कहानी ,लघु -कथा ,कविता ,अ-कविता ,ग़ज़ल और नज्म होने की शर्त पूरी करवा करके उस पर बाकायदा मान्यता प्राप्त रचना का लेबल चिपका सकतें हैं .कोई आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है .एक चिठ्ठा- कार दूसरे से उसी तरह डरता है ,उसकी खिदमद ,खुशामद करता है जैसे पति बिगडैल पत्नी की .कई चिठ्ठा पीड़ित भी आपको इन ब्लोगियों के बीच मिल जायेंगें .जो बाकी ब्लोगियों के प्रति सौतिया भाव बनाए रहतें हैं .
(ज़ारी...)

राज रोग है चिठ्ठागिरी .

चिठ्ठा -गिरी को कुछ माहिरों ने राज -रोग इसलिए कहा है जिसे ये रोग लग जाता है बाकी रोग पीछे पीछे खुद -बा -खुद चले आतें हैं .यहाँ कुछ का नाम लेलेना अप्रासंगिक नहीं होगा -
(१)ब्लोगों -मोर्फिक -डिस -ऑर्डर ।
(२)ब्लोगोमेनिया ।
(३)ब्लोगों -फ्रेनिया ।
(४)ब्लोगों -प्रेसिव -डिस -ऑर्डर ।
(५)ब्लोग्सिसिज्म पर्सनेलिटी डिस -ऑर्डर ।
ब्लोगर एक डिस -ऑर्डर्स अनेक. इस लघु लेख में सबकी चर्चा करना मुमकिन नहीं है ।
बहर -सूरत "ब्लोगों -मोर्फिक -डिस -ऑर्डर "को लेतें हैं :इस रोग में चिठ्ठाड़ी(इसे लिखाड़ी का पर्यायवाची न समझें )को यही चिंता खाए जाती है उसके "चिठ्ठे "की रूपाकृति में कोई कमी रह गई है .तमाम तरह के गेजेट्स ,का -उन -टार्स(इसे -गिन -टू पढ़ें ),चल -कतरने,कोलाज़ ,छवियाँ ,अनेक -रूपा नारी कीछवियाँ इसके चिठ्ठे पे आपको मिलेंगी .साला मर्द तो होता ही है एकहरा ,एक -आयामी .यूनी पोलर ,बहु -रूपा तो बस नारी ही है .इसलिए मर्द की एक भी तस्वीर इसके चिठ्ठे पे आपको नहीं मिलेगी .परफेक्शन चाहता ढूंढता है यह ब्लोगोमोर्फिक प्राणि.इसलिए एक दिन में कई कई बार भी अपने छिठ्ठे की कोस्मेटिक सर्जरी करते हुए इसे आप पा सकतें हैं ।
(२)ब्लोगों -मेनिया :इन्हें आप ब्लोगों -मेनियाक भी कह सकतें हैं .इन्हें भ्रम हो जाता है .यह "महा -प्राण -ब्लोगर -आला "हो गए हैं .चिठ्ठा -गिरी का श्रेष्ठतम पुरूस्कार इनके चिठ्ठे को मिल चुका है ।
(३)ब्लोगोफ्रेनिया :इस चिठ्ठा खोर को लगता है सब उसी का चिठ्ठा निहार रहें हैं ,उसी के विचार चुरा रहें हैं .उसी के विचारों और चिठ्ठे की दुनियाभर में चर्चा है .यह अपने चिठ्ठे को बार खोल के देखता है इसका चिठ्ठा (ब्लॉग )चोरी तो नहीं हो गया .
(४)ब्लोगोप्रेसिव डिस -ऑर्डर :यह चिठ्ठा -बाज़ अवसाद ग्रस्त रहता है .इसके चिठ्ठे पर कोई टिपण्णी नहीं करता दिन रत यही हताशा और अवसाद इसे खाए जाता है .यह उस दिन को कोसता रहताहै जिस दिन इसनेइस सत्यानाशी सर्व -ग्रासी , चिठ्ठा -खोरी ,चिठ्ठा गिरी के बारे में जाना ।
इसका रोग ठीक हो सकता है यदि लोग इसके चिठ्ठे पर कुछ दिन रोज़ -बा -रोज़ आयें ।
(५)ब्लोगी -सिसिज्म :यह चिठ्ठा सम्बन्धी व्यक्तित्व विकार औरतों को मर्दों से दस गुना ज्यादा होता है .कारण आत्म -विमोह ,आत्म -रति ,आत्म श्लाघा कुछ भी हो सकता है .हर कविता ,हर ग़ज़ल में इसकी खुद की ही तस्वीर चस्पा होती है .अपने चिठ्ठे पे ज्यादा रीझता है या खुद पे माहिर इसका अन्वेषण कर रहें हैं .कारण अभी अज्ञात बना हुआ है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :सुनील कुमारजी का आलेख जिसमे ब्लोगर और मंचीय कवियों की तुलना की गई है ।
तमाम ब्लोगर कुमार और ब्लोगर कुमारियों से क्षमा याचना सहित ,
चिठ्ठा प्रेमी आपका
वीरुभाई ।
४३३०९,सिल्वर वुड ड्राइव ,केंटन ,मिशिगन -४८ १८८ -१७८१ ।
दूरध्वनी :००१ ७३४ ४४६ ५४५१

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

टेस्ट्स एंड डायग्नोसिस फॉर सेरिब्रल पाल्ज़ी.

यदि आपके फेमिली डॉ को लगता है ,आपके बच्चे को सेरिब्रल पाल्ज़ी हो सकता है तब वह कुछ परीक्षण के लिए कहेगा ताकि अन्य मेडिकल कंडीशंस को बरतरफ किया जा सके रुल आउट किया जा सके और सेरिब्रल पाल्ज़ी के रोग निदान की और बढा जा सके .ये परीक्षण इस प्रकार हो सकतें हैं :
(१)ब्रेन स्केन्स :इन स्केनों से ब्रेन इमेजिंग टेकनीकों से दिमाग के क्षति ग्रस्त हिस्सों और यदि कहीं कोई विकासात्मक विकार है ,गड़बड़ी रह गई तो उसका भी पता चल जाता है .इनमे शरीक रहतें हैं -
(अ)मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एम् आर आई )दिमाग का :इसमें रेडियो -वेव्ज़ तथा चुम्बकीय क्षेत्रों (मेग्नेटिक फील्ड्स )की मदद से दिमाग की त्रि -आयामीय तथा क्रोस सेक्शनल (अनु -प्रस्थ काट वाली छवियाँ )अंकित की जाती हैं .इमेजिज़ उतारी जातीं हैं .परत-दर -परत दिमाग को खंगाल लिया जाता है .कोई दर्द नहीं होता है इस परीक्षण के दरमियान अलबत्ता शोर से व्यक्ति तंग आसकता है क्योंकि कोई इक घंटा तक चल सकता है यह परीक्षण .बच्चे को माइल्ड सीदेतिव भी दिया जासकता है .यह एक पसंदीदा तरजीह प्राप्त परीक्षण है जिसे प्रिफरेंस दिया जाता है .
सीदेटिव है क्या ?
सीदेतिव इज ए ड्रग देत हेज़ ए कामिंग इफेक्ट .इट रिलीव्ज़ एन्ग्जायती एंड टेंशन यानी बे -चैनी को तनाव को कम करने वाला कोई भी रासायनिक एजेंट (अभिकर्मक जो चित्त को शांत रखे ,घबराहट न होने दे ).दीज़ आर लोवर दोज़िज़ ऑफ़ हिप्नोटिक ड्रग्स देन डोज़ नीडिद फॉर स्लीप .दे प्रो -ड्यूज ए रेस्ट्फुल स्टेट ऑफ़ माइंड ।
(आ )क्रेनियल अल्ट्रा -साउंड :कपाल /खोपड़ी के अन्दर जो एक हड्डियों का बना मज़बूत संदूक है हमारा दिमाग हिफाज़त से रखा रहता है इसी का अल्ट्रा साउंड ब्रेन की छवियाँ दे देता है .इसमें उच्च आवृत्ति की ध्वनी तरंगों (अल्ट्रा -सोनिक -फ्रिक्युवेंसीज़ )का स्तेमाल किया जाता है .बेशक इसमें व्यापक ब्योरा इमेजिज़ का नहीं होता है लेकिन यह सस्ता और जल्दी से होने वाला परीक्षण है .और आरंभिक जायजा तो दिमाग का यह दे ही देता है ।
दी अल्ट्रा -साउंड डिवाइस इज प्लेस्ड ओवर दी सोफ्ट स्पोट (फोंतानेल )ऑन दी टॉप ऑफ़ ए बे-बीज हेड .
(इ)कम्प्युट -राइज्द(कम्प्यु -टिड)टोमो -ग्रेफ़ी :यह एक विशेषीकृत एक्स -रे -टेक्नोलोजी ही है जिसमे एक्स रेज़ एक साथ दिमाग का भेदन कई दिशाओं से करतीं हैं .कंप्यूटर इनका संशाधन करता चलता है तथा नतीजे एक स्क्रीन पर दिखला देता है .इस प्रकार दिमाग का क्रोस -सेक्शनल व्यू प्रस्तुत हो जाता है ।
स्केनिंग में कुल २० मिनिट लगतें हैं तथा कोई पीड़ा नहीं होती है इस परीक्षण में .अलबत्ता मरीज़ को हिलना मना है इसलिए बच्चे को अकसर हल्का सीदेतिव दे दिया जाता है ।
(ई )इलेक्ट्रो -एन -सी -फेलोग्रेफी (इलेक्ट्रो -एन -सी फेलो -ग्रेम ,ई ई जी ):यह एपिलेप्सी को रुल आउट करने के लिए किया जाता है क्योंकि बच्चे को सीज़रभी होने पर सेरिब्रल पाल्ज़ी के मामले में एपिलेप्सी भी साथ में हो सकती है .इसमें बच्चे को गंजा करके उसके स्केल्प(खोपड़ी की चमड़ी ,वल्क में ) में नन्ने नन्ने अनेक इलेक्ट्रोड्स फिट कर दिए जातें हैं .बस बच्चे के दिमाग की विद्युत् एक्टिविटी दर्ज़ हो जाती है .इस रिकार्ड को ही एन -सी -फेलो -ग्राम कहा जाता है .जो एन -सी -फेलो -ग्रेफ़ी का नतीजा होता है .दिमाग का विद्युत् आरेख है ई ई जी .ब्रेन वेव्ज़ के पैट्रंस से एपिलेप्सी होने पर उसका पता चल जाता है .ब्रेन वेव्ज़ का नोर्मल पैट्रन बदल जाता है एपिलेप्सी होने पर ।
(उ )लेब टेस्ट्स :ब्लड क्लोतिंग डिस -ऑर्डर्स को रुल आउट करने के लिए ख़ास रक्त परीक्षण भी किये जातें हैं क्योंकि खून में थक्का बनने की प्रवृत्ति स्ट्रोक (ब्रेन अटेक)की वजह बन सकती है तथा स्ट्रोक के लक्षण ,साइंस और सिम्पटम्स कई सेरिब्रल पाल्ज़ी जैसे ही होतें हैं .इसलिए इसे रुल आउट करना ज़रूरी होता है ।
जेनेटिक तथा मेटा -बोलिक(अपचयन /चय -अपचय )प्रोब्लम्स के लिए भी स्क्रीनिंग की जासकती है इन परीक्षणों के द्वारा .
(ऊ )एडिशनल टेस्टिंग :
विज़न इम-पेयर्मेंट(नजर का कमज़ोर पड़ना ),श्रवण ह्रास ,संभाषण सम्बन्धी समस्याएँ (स्पीच डिलेज़ एंड इम -पेयार्मेंट्स ),बौद्धिक अवमंदन ,बौद्धिक क्षमताओं में कमी ,विकास सम्बन्धी अनेक अन्य चीज़ों (डेव -लप -मेंटल डिलेज़ )आदि की भी जाँच की जाती हैं जो सहज ही सेरिब्रल पाल्ज़ी के साथ चली आ सकतीं हैं ।
(ज़ारी ...).

थिरेपीज़ फॉर सेरिब्रल पालजी .

थिरेपीज़ फॉर सेरिब्रल पाल्ज़ी :
नॉन -ड्रग थिरेपीज़ सेरिब्रल पाल्ज़ी से ग्रस्त व्यक्ति की सामर्थ्य और क्षमता को ,फंक्शनल एबिलितीज़ को धीरे - धीरे बढ़ाती हैं इसलिए इस विकार के प्रबंधन में इनका बड़ा योगदान है :
फिजिकल थिरेपीज़ (फिजियो -थिरेपी ):इसके तहत मसल ट्रेनिंग तथा व्यायाम आतें हैं जो असरग्रस्त व्यक्ति की स्ट्रेंग्थ (कूवत ,क्षमता )फ्लेक्ज़िबिलिती ,संतुलन ,मोटर डेव -लप -मेंट तथा मोबोलिती में सहायक रहतीं हैं ।
बच्चे को ब्रेसिज़ या फिर स्प्लिन्ट्स की भी सिफारिश की जाती है .इन सब सपोर्ट से फंक्शन में सुधार आता है ,मसलन चलना फिरना थोड़ा मुमकिन और आसान लगने लगता है .
स्टिफ मसल की स्ट्रेचिंग भी कई फिजियो करवातें हैं ताकि कोंत्रेक्चर्स से बचाव हो सके ।
कों -ट्रेक -चर :इज परमानेंट टाईट -निंग ऑर शोर्ट -निंग ऑफ़ ए बॉडी पार्ट सच एज ए मसल ,ए टेंडन ऑर दी स्किन ओफ्तिन -टाइम्स रिज़ल्टिंग इन दिफोर्मितीज़ ।
ए टेंडन इज एन इलास्टिक कोर्ड ऑर बेंड ऑफ़ टफ वाईट फाइब्रस कनेक्तिव टिश्यु देट अतेचिज़ ए मसल टू ए बोन ऑर अदर पार्ट .
(२)अक्युपेश्नल थिरेपी :बच्चे को आत्म निर्भर होने की दीक्षा देती है यह नॉन -ड्रग -चिकित्सा .इसमें वैकल्पिक रणनीतियों और कई अपनाने योग्य एदेप्तिव इक्यूपमेंट्स का भी स्तेमाल किया जाता है .नतीज़न वह दैनिक गतिविधियों में घर बाहर स्कूल और समाज में भाग लेने में अपने को समर्थ पाता है .रोजमर्रा के कामों के साथ तालमेल बिठा पाता है .
(३)स्पीच थिरेपी :
इसके तहत साइन लेंग्विज का स्तेमाल करके बच्चे को सम्प्रेषण की काबलियत दी जाती है ,साफ़ साफ़ बोलना बोल पाना भी सिखाया जाता है ।
रोजमर्रा काम आने वाली चीज़ों की तस्वीरें भी सम्प्रेषण के लिए स्तेमाल की जातीं हैं . कोलाज़ की तरह इन्हें इक बोर्ड पर दर्शाया जाता है ।
तस्वीरों की तरफ इशारे करके वाक्य बनाना भी सिखलाया जाता है ।
खाने और निगलने में स्तेमाल होने वाली पेशियों की दिक्कत दूर करने में भी स्पीच थिरेपी मदद करता है .
सर्जिकल ऑर अदर प्रो -सीज़र्स यूज्ड फॉर सेरिब्रल पाल्ज़ी :

(१)पेशियों की जकड़ टाईट -नेस और हड्डियों के विकारों के प्रबंधन के लिए -
ऑर्थो -पीडिक सर्जरी आजमाई जाती है .बालकों के मामलों में गंभीर कोत्रेक्चर्स और दिफोर्मितीज़ की दुरुस्ती के लिए अश्थियों और जोड़ों की सर्जरी भी करनी पड़ती है ताकि बाजुओं और टांगों का एलाइन्मेन्त ठीक किया जा सके ,इन अंगों को उनके सही स्थान पर बिठाया जचाया जा सके ।
शल्य छोटे रह गई पेशियों और टेंदंस की लम्बाई को थोड़ा बढाने में भी कारगर सिद्ध हुई है .ये तमाम करेक्टिव सर्ज्रीज़ एक तरफ दर्द में राहत पहुंचाती हैं दूसरी तरफ मोबिलिटी को भी बढ़ातीं हैं ,गति -करने चलने फिरने में सुधार लाती हैं .
ब्रेसिज़ और वाकर या फिर बैसाखियों के सहारे चलना पहले से आसान हो जाता है ।
(२)नाड़ियों को काटके भी फैंका जाता है (सेवेरिंग नर्व्ज़):
खासे गंभीर मामलों में जब और कोई ट्रीट -मेंट असर नहीं दिखा पाता तब -सर्जन मे कट दी नर्व्ज़ सर्विंग दी स्पाज्तिक मसल्स .बस मसल भी रिलेक्स हो जाता है दर्द में भी आराम आजाता है .लेकिन इसकी वजह से नंब -नेस भी आसकती है .

ट्रीट -मेंट फॉर सेरिब्रल पाल्ज़ी मे इन -क्लूड.........

आइसो -लेटिद-स्पाज़ -टिसिती:जब स्पाज़ टिसिती केवल एक पेशीय समूह तक ही सीमित रहती है तब माहिर "बोटोक्स "यानी ओना -बोतुलिनम -तोक्सिन ए की सुइयां सीधे सीधे असर ग्रस्त पेशी या फिर नाडी या फिर दोनों में भी लगवाने की सिफारिश कर सकतें हैं ।
इसके अवांछित प्रभाव के कारण असर ग्रस्त व्यक्ति बेहद की कमजोरी महसूस कर सकता है .साँस लेने और कुछ भी सटकने (स्वालोइंग )में भी दिक्कत पेश आ सकती है ।
आपको याद दिलादें -स्पाज़ -टिसिती (स्पाज़ -टिक सेरिब्रल पाल्ज़ी )में विकार ग्रस्त व्यक्ति लिम्ब्स पर नियंत्रण नहीं रख पाता है इसका असर सारे शरीर पर भी पड़ सकता है जिसे क्वाड्री- प्लीजिक स्रेइब्रल पाल्ज़ी कह देतें हैं ,शरीर के केवल एक तरफ (पार्श्व ,साइड )के हिस्से को भी विकार की यह किस्म असर ग्रस्त कर सकती है जिसे हेमी -प्लीजिक सेरिब्रल पाल्ज़ी कह दिया जाता है ,दोनों टांगों पर भी असर हो सकता है उस स्थिति को डाई -प्लीजिक सेरिब्रल पाल्ज़ी के तहत रखा जाता है .
जन्रेलाइज़्द स्पाज्तिसिती :यदि पूरी बॉडी ही असर ग्रस्त होती है (क्वाद्रिप्लीजिक )तब कई मर्तबा "ओरल मसल रिलेक्सेंत"(मुंह से खाने वाली ऐसी गोलियां जो पेशियों की जकड़न को कम करती है ) भी अपना असर -कारी अच्छा और कारगर प्रभाव छोड़तें हैं .स्टिफ और कोंट्रेक्तिद मसल्स को आराम देतें हैं ये मसल- रिलेक्सेंत ।
डायजेपाम (वेलियम ,डायजेपाम इन्तेंसोल ),टीज़ा -नि -डीन (ज़नाफ्लेक्स ),डान -ट्रियम,बक्लोफें आदि इसी वर्ग की दवाएं हैं ।
बेशक दाय्जापाम पर दीर्घावधि सेवन के बाद निर्भरता बढ़ जाती है ,आदत में शुमार होने लगती है इसलिए दीर्घावधि सेवन के लिए इसे तजवीज़ करने से बचा जाता है ।
इसके पार्श्व प्रभावों में उनींदापन ,कमजोरी तथा मुख से लार(सेलाइवा ) निकलती रहती है .
टीज़ा -निडीन के अवांछित प्रभावों में कमजोरी ,स्लीपिनेस ,निम्न रक्त चाप तथा लीवर डेमेज शामिल हैं ।
स्लीपिनेस बाकी दोनों दवाएं भी पैदा कर सकतीं हैं ।
बक्लोफें को सीधे सीधे एक ट्यूब से स्पाइनल कोर्ड (रीढ़ रज्जु )तक भी पहुंचाया जाता है .उदर (एब्दोमन )के नीचे एक पम्प को इम्प्लांट कर दिया जाता ऐसा करने के लिए ही .
(ज़ारी ॥)
अगली पोस्ट में पढ़िए :थिरेपीज़ फॉर सेरिब्रल पाल्ज़ी .

ट्रीट -मेंट्स एंड ड्रग्स फॉर सेरिब्रल पाल्जी.

बच्चों और बालिगों को सेरिबल पाल्जी के लिए कमोबेश एक दीर्घावधि इलाज़ की ज़रूरत पडती है जिसे माहिरों की एक टीम करती है .इस टीम में सम्मिलित रह सकतें हैं :
(१)बाल -रोगों या फिर मनो -रोगों (दोनों के भी हो सकतें हैं ज़रुरत के अनुरूप )के माहिर ।इलाज़ की पूरी आयोजना (ट्रीट मेंट -प्लान )और चिकित्सा देखभाल की निगरानी करना इनका मुख्य काम होता है .
(२)पीडि -याट -रिक न्यूरो -लोजिस्ट (बच्चों को होने वाले नर्वस सिस्टम ,स्पाइनल कोलम और नर्व्ज़ के रोगों के माहिर ).आप बच्चों के तमाम स्नायु -तंत्र से सम्बंधित विकारों के रोग निदान में भी महारथ हासिल किये रहतें हैं .
(३)ओर्थो -पीडिस्ट(अस्थि /हड्डी के रोगों ,पेशीय रोगोंके माहिर ):पेशी और अश्थी विकारों की निगरानी करतें हैं आप ।
(४)अक्युपेश्नल थिरेपिस्ट :रोज़ मर्रा के कामों ,हुनर आदि के विकास के माहिर होतें हैं आप .सेरिब्रल पाल्जी विकार से ग्रस्त व्यक्ति यह सब नहीं कर पाता है .उसे बाकायदा प्रशिक्षित किया जाता है .अडेप्तिव प्रोडक्ट्स को स्तेमाल करना भी इन्हें सिखलाया जाता है इन माहिरों के द्वारा ।
(५)डेव -लप -मेंटल थिरेपिस्ट :आयु के अनुरूप विकार ग्रस्त बच्चे को व्यवहार करना सिखलातें हैं ये माहिर डेव- लप -मेंटल चिकित्सा के तहत .सोसल स्किल्स(समाज में उठ बैठ ,इन्टेरेक्त करना आदि ) तथा इंटर -पर्सनल स्किल्स (कम्युनिकेशन स्किल्स आदि )भी सिखलातें हैं .
(६)मेंटल हेल्थ प्रो -व्हाई -डर:मनो -विज्ञानी ,मनो -रोगों के माहिर आदि इसी वर्ग में आयेंगें ।
(७ )सोसल वर्कर :सेवाओं तक पहुँचने में ये असर ग्रस्त व्यक्ति के परिवार की मदद करतें हैं .आयोजना में भी एक से दूसरी जगह जाने में इनका मार्ग दर्शन मिलता है ।
(८)स्पेशल एज्युकेशन टीचर :आजकल इनका बड़ा महत्व है बेशक भारत जैसे गरीब देश में अभी इन तक पहुँच और उपलब्धता दोनों ही सीमित हैं .सीखने समझने में रह गई कमियों को समझकर यह हर बच्चे को उसकी आवश्यकता के अनुरूप सक्षम बनातें हैं ,उचित शैक्षिक संशाधन बच्चे की आवश्यकताओं को पहचानकर मुहैया करवाना ।
मेडिकेसंस :पेशियों की जकड़न(स्टिफनेस)को कम करने के लिए कुछ दवाएं कामकर पाने की कूवत (क्षमता )को सुधारने ,दर्द कम करने तथा स्पाज़ -टिसिती से पैदा जटिलता के प्रबंधन के लिए दी जातीं हैं .
अलबत्ता ड्रग ट्रीट -मेंट के अवांच्छित प्रभाव और असर ग्रस्त व्यक्ति के लिए उसकी उपयोगिता और औचित्य के बारे में परिवार के दूसरे सदस्यों को डॉ से खुलकर पूछना चाहिए .नोलिज इज पावर .देखना यह होता है दवा के अवांछित असर ज्यादा हैं या फायदे ।
दवा का (मेडिकेशन )का चयन इस तथ्य पर आधारित रहता है ,विकार कुछ चुनिन्दा पेशियों (आइसो -लेतिद मसल्स )पर असर डाले हुए है या फिर पूरे शरीर पर .
ड्रग ट्रीटमेंट में क्या- क्या शामिल रहता है इसकी चर्चा अगली पोस्ट में करेंगें ।
(ज़ारी ...).

सेरिब्रल पालजी कारण और बचाव ?(ज़ारी...)

सेरिब्रल पालजी के कारण और उनसे बचाव ?
गत पोस्ट से आगे ....
१९८० के दशक के बीच की बरसों में सेंटर फॉर डि -जीज़िज़ कंट्रोल ने दस साला बच्चों में इस विकार के कारणों का पता लगाने के लिए एक अध्ययन और करवाया ।
इनमे से भी १६%में सेरिब्रल पालजी की वजहें तभी पैदा हो गईं थीं जब ये तीस दिन के ही थे .इनमे से आम वजहें रहीं रोग संक्रमण (इन्फेक्संस ),हेड इंजरी तथा ब्रेन अटेक (स्ट्रोक ).
सेरिब्रल पालजी के कुछ कारणों से बचा जा सकता है :
मसलन बाइक- हेल्मेट्स तथा कार सीट्स (बेल्ट्स )हेड इन्जरीज़ से बचा सकतीं हैं जो सेरिब्रल पालजी की वजह बन सकती हैं ।
केर्निक्टेरुस से भी बचा जा सकता है जो एक प्रकार का ब्रेन डेमेज ही है जो नवजात शिशु को बहुत ज्यादा जौंडिसहोने से हो सकता है ।
कुछ नवजातों में यकृत (लीवर )में बिलीरूबिन (यलो पिगमेंट )के ज्यादा पैदा होने से चमड़ी और आँखों का सफ़ेद हिस्सा (वाईट ऑफ़ दी आई) भी पीला पड़ने दिखने लगता है .यही पीलिया (हिपेताई -टिस )का प्रमुख लक्षण है .थोड़ा बहुत बिलीरूबिन कोई समस्या पैदा नहीं करता है ,अकसर माइल्ड जौंडिस नवजातों को हो भी जाता है और कुदरती तौर पर खुद बा खद ठीक भी हो जाता है .(सेल्फ लिमिटिंग डिजीज )।
लेकिन कुछ शिशुओं में बहुत ज्यादा यलो पिगमेंट बन जाता है ,समुचित इलाज़ इस स्थिति में न हो पाने पर ब्रेन डेमेज हो सकता है नवजातशिशु का .
केर्निक्टेरुस अकसर सेरिब्रल पालजी तथा श्रवण ह्रास (हीयरिंग लोस )की वजह बनता है लेकिन कुछ बच्चों में यह इन्तेलेक्च्युअल डिस -एबिलितीज़ (बौद्धिक अक्षमताओं )की वजह भी बन जाता है ।
फोटो -थिरेपी से इसका कारगर इलाज़ संभव है .इससे केर्निक्टेरुस से बचाव संभव है .शिशुओं पर आजमाए जाने वाली अन्य थिरेपीज़ का भी सहारा लिया जा सकता है इससे बचाव के लिए ।
सेरिब्रल पालजी से व्यक्ति रोग मुक्त तो नहीं हो सकता .लेकिन इलाज़ व्यक्ति को घर परिवार ,स्कूल ,कोलिज दफ्तर तक जाने में अधिक से अधिक समर्थ बनाने में मदद करता है .
इलाज़ ही इलाज़ हैं :
(१)फिजिकल थिरेपी (फिजियो -थिरेपी )।
(२)अक्युपेश्नल थिरेपी ।
(३)मेडिसन ।
(४)ऑपरेशंस तथा ब्रेसिज़ ।
इनकी चर्चा अगली पोस्ट में होगी ।
(ज़ारी ).

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

व्हाट कौज़िज़ सेरिब्रल पालजी ?कैन इट बी प्रीवेंतिद?

सेरिब्रल पालजी की वजह ब्रेन डेमेज बनता है जो किसी भी असर ग्रस्त बच्चे की पेशियों को नियंत्रित करने की क्षमता को प्रभावित करता है .दिमाग का क्षति ग्रस्त हिस्सा तय करता है बाकी शरीर के किस अंग पर इस नुकसानी का असर पड़ेगा .दिमाग को नुकसानी अनेक वजहों से पहुँच सकती है ।
इनमे कुछ कारण ऐसे होतें हैं जो दिमाग के विकास को पहले ६ महीनों में प्रभावित करतें हैं .इनमे कुछ कारण आनुवंशिक हालातों,जेनेटिक कंडीशंस के अलावा दिमाग को ऑक्सीजन की आपूर्ति में आने वाली समस्या से ताल्लुक रखतें हैं .कुछ वजहें इस विकार की भ्रूण के मष्तिष्क के पूर्ण रूप विकसित होने के बाद पैदा हो सकतीं हैं .ये वजहें गर्भावस्था के आखिरी चरण में भी पैदा हो सकतीं हैं प्रसव के दौरान भी(फीटल डिस्ट्रेस ) तथा शिशुकाल में भी (०-२ ईयर्स ,जीवन के शुरूआती वर्षों में भी ).इनमे बेक्तीरिअल मेनिंन - जाई- टिस,जीवाणु से पैदा होने वाली दिमाग की झिल्ली की सूजन और शोथ /रोग संक्रमण तथा कुछ अन्य रोग संक्रमण ,दिमाग में होने वाला रक्त स्राव ,दिमाग को ऑक्सीजन की ठीक से आपूर्ति न हो पाना ,तथा हेड इन्जरीज़ आदि शामिल हैं ।

समय से पूर्व पैदा शिशु (गर्भावस्था की सामान्य अवधि ४० सप्ताह है ,३६ सप्ताह या और भी पहले पैदा हुए बच्चे समय पूर्व पैदा हुए ,प्रीमीज़ कहातें हैं .)या फिर वे नवजात जिनका बर्थ वेट १५००ग्राम (डेढ़ किलोग्राम )से भी कम रह जाता है उनमे अकसर ऐसी समस्याएं पैदा हो जातीं हैं जो सेरिब्रल पाल्ज़ी की वजह बन सकतीं हैं .
इन्फेक्शन (रोग संक्रमण ),ब्लीडिंग (रक्त स्राव )तथा गर्भावस्था के दौरान रेज्ड टेम्प्रेचर (हाई फीवर )भी इन कारणों में शुमार हो सकतें हैं ।
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने ३-१० साला बच्चों में १९९१ में सेरिब्रल पाल्ज़ी की वजहों की पड़ताल के लिए एक अध्ययन करवाया था .इनमे से १० %५ में सेरिब्रल पाल्ज़ी के कारण तभी पैदा हो गए थे जब ये तीस दिन के थे .इन कारणों में मेनिंन -जाई -टिस ,चाइल्ड एब्यूज ,स्ट्रोक (ब्रेन अटेक)तथा कार दुर्घटनाएं प्रमुख रूप से शामिल थीं ।
(ज़ारी...).

सेरिब्रल पाल्ज़ी(टाइप्स )....

सेरिब्रल पाल्ज़ी ......
गत पोस्ट से आगे .....
(३)स्पाज़ -टिक क्वाड्री -प्लीइज़िया :सीपी की यह किस्म पूरे हिस्से को असर ग्रस्त करती है ,सभी अंग इसकी चपेट में आतें हैं -चेहरा ,धड ,टांगें ,हाथ ।
(४)दिस -काइनेटिक (अथे -टोइड):इसमें अंगों का ट्विस्टिंग ,स्कार्मिंग मूवमेंट होता है .इन- वोलंटरी होता है यह रिदिंग मूवमेंट ,स्वयं चालित ,आपसे आप धीरे धीरे .ज़ाहिर है व्यक्ति का इस आंगिक गति पर कोई बस नहीं चलता .हाथ ,बाजू ,पैर और टांगें असर ग्रस्त हो सकतीं है -दिस -काइनेटिक सेरिब्रल पाल्ज़ी में .कई दफा चेहरा और ज़बान (जीभ ,टंग)भी असर ग्रस्त होती है और इसीलिए इस विकार से ग्रस्त व्यक्ति बहुत मुश्किल से ही बात कर पाता है धैर्य पूर्वक सुनना चाहिए इनकी बात को .बेहद की परेशानी महसूस करता है बात कहने में इसविकार से ग्रस्त व्यक्ति .मसल टोन इस विकार में रोज़ -बा -रोज़ और एक दिन में भी कई दफा बदल सकती है .
१०-२०%लोग इसी विकार से ग्रस्त रहतें हैं ।
(५)अटाक्सिक (या अतोक्सिक हाइपो -टोनिक ):इसमें संतुलन कमज़ोर और गति समन्वयन प्रभावित होता है .गति अ-समन्वित रहती है .डेप्थ परसेप्शन में भी दिक्कत आती है .चलते समय लडखडाहट अ -संतुलन देखा जा सकता इन मरीजों में .लिखते समय खासी दिक्कत आती है खासकर जब तेज़ी से लिखना हो परीक्षा आदि में ,इसीलिए इन्हें ज्यादा समय दिया जाना चाहिए .किसी चीज़ को उठाते समय साधे रखने में उस चीज़ को इन्हें खासी दिक्कत आती है चाहे वह चम्मच ही सही .हाथों और बाजुओं का संतुलन बनाए रखना मुशकिल पेश करता है .इनकी मसल टोन बढ़ी हुई भी रह सकती है घटी हुई भी .५-१०%लोग सेरिब्रल पाल्ज़ी की इसी किस्म से ग्रस्त मिलतें हैं ।
(६)मिक्स्ड (मिश्रित सेरिब्रल पाल्ज़ी ):कई लोगों को सीपी की एक से ज्यादा किस्म घेरे रह सकतीं हैं .स्पाज़ -तिसिती तथा डिस -काइनेटिक (अथी -टोइड )मूवमेंट्स आमतौर पर एक साथ देखने में आतें हैं ।
रोग के लक्षण हर व्यक्ति में अलग अलग हो सकतें हैं .समय के साथ इनका स्वरूप भी बदल सकता है .(बट दी डिस -ऑर्डर रिमेन्स नॉन -प्रोग्रेसिव यानी समय के साथ लक्षण उग्र नहीं होतें हैं रोग बढ़ता नहीं है )।
सेरिब्रल पाल्ज़ी से गंभीर रूप से ग्रस्त व्यक्ति हो सकता है उम्र भर चल ही न सके ता -उम्र उसे देखभाल संभाल की ज़रुरत रहे ।
दूसरी तरफ माइल्ड सेरिब्रल पाल्ज़ी से ग्रस्त व्यक्ति भले ही बे -सलीका ,बे -ढबचले ,आक्वर्द्ली ,चल तो सकता ही है .ज़रूरी नहीं है उसे किसी ख़ास मदद की ज़रुरत पड़े ही .
इस विकार से ग्रस्त व्यक्तियों में सीज़र्स डिस -ऑर्डर्स ,बीनाई का कमजोर पड़ना (विज़न इमपे -यर्मेंट),सुनाई कम देना (हीयरिंग लोस ),कई बौद्धिक अक्षमताएं भी साथ साथ दिखलाई दे सकतीं हैं ।
फिर से दोहरा दें-
सेरिब्रल पाल्ज़ी मूवमेंट (हमारे हिलने डुलने ,गति करने )तथा पोश्चर (मुद्रा )से सम्बन्धी एक विकार है जो समय के साथ बढ़ता नहीं है तथा विकासशील भ्रूणके पनपते हुए दिमाग को पहुचने वाली क्षति का नतीजा होता है .पनपते दिमाग को यह नुकसानी प्रसव से पहले प्रसव के दौरान और प्रसव के फ़ौरन बाद भी पहुची हो सकती है ।
विकासशील पनपते दिमाग को पहुँचने वाली इस नुकसानी की वजह -
(१)दिमाग को आक्सीजन की आपूर्ति पूरी तरह न हो पाना भी हो सकती है ,
(२)भ्रूण के रक्त में ग्लूकोज़ की कमीबेशी (लो ब्लड ग्लूकोज़ लेविल्स ,हाइपो -ग्लाई -सीमिया )भी हो सकती है ।
(३)गर्भावस्था का कोई संक्रमण ,विकासात्मक विकार ,समय पूर्व प्रसव भी हो सकता है ।
शैशव अवस्था के इस विकार के साथ चली आती हैं -लर्निंग एंड हीयरिंग डि -फी- कल्तीज़ ,पूअर स्पीच ,पूअर बेलेंस तथा एपिलेप्सी .
(ज़ारी...).

सेरिब्रल पाल्ज़ी:एक विहंगावलोकन .

विआरों का एक पूरा समूह है सेरिब्रल पाल्ज़ी जो किसी व्यक्ति के हिलने डुलने गति बनाए रखने ,संतुलन और पोश्चर (मुद्रा )को प्रभावित करता है .
सेविंग ग्रेस यही है बस यह एक नॉन -प्रोग्रेसिव दिमागी असामान्यता है जो समय के साथ बढती नहीं है .हालाकि लक्षण ज्यों के त्यों नहीं रहतें हैं उम्र भर लेकिन विकार बढ़ता नहीं है अल जाई -मार्स जैसी प्रोग्रेसिव डिजीज की तरह केवल लक्षणों का स्वरूप बदल सकता है .
इस विकार में दिमाग का वह हिस्सा क्षति ग्रस्त हो जाता है जो "मसल टोन" को नियंत्रित करता है ।
मसल टोन एक पारिभाषिक शब्द है जिसका मतलब है :किसी भी पेशी में गति का प्रतिरोध कितना है -अमाउंट ऑफ़ रेजिस्टेंस टू मूवमेंट इन ए मसल इज काल्ड "मसल टोन ".
यह मसल टोन ही जिसके चलते आप एक मुद्रा में बैठे रहतें हैं आराम से अनायास बिना किसी प्रयास के .क्योंकि आपकी पेशियाँ समर्थ हैं .उनका संचालन करता दुरुस्त हैं ।
मसलन आप सीधे बैठे रहतें हैं सिर उठाए ,सही पोश्चर में इसी मसल टोन के चलते .मसल टोन में आने वाले समर्थ परिवर्तन ही आपको चलाते हैं ,चलने देतें हैं .
मसलन आप अपना हाथ मुंह तक लाना चाहतें हैं ये तभी मुमकिन होता है जब आपकी बाइसेप मसल की सामने के हिस्से की टोन तो बढे लेकिन साथ ही बाजू के पीछे वाले हिस्से की घटे .
सही सलामत निर- विरोध ,सहज तरीके से चलने के लिए पेशीय समूहों की टोन में संतुलन बने रहना ज़रूरी होता है .सीपी में यह संतुलन चरमरा के टूट जाता है ।
सीपी के चार प्रमुख प्रकार हैं :
(१)स्पास्टिक :जिन लोगों में यह विकार होता है उनमे मसल टोन बढ़ जाता है .नतीज़न पेशियाँ लोच खोके कठोर पड़ जाती हैं (.स्टीफ़ मसल्स ।)
इसीलिए चाल भदेस लगती है ,आक्वर्ड तरीके से ,बे -सलीका ,से चलते दिखेंगें ये लोग .७०-८०%लोगों में यही विकार होता है .(स्पास-टिसिती)।
इसकी भी आगे किस्मे हैं :
मसलन -
(१)स्पाज़ -टिक डाई -प्लीज़िया :इसमें दोनों टांगें असर ग्रस्त होतीं हैं .इसमें दोनों टांगों पर से नियंत्रण हट जाता है .(२)हेमी -प्लीज़िया :इसमें शरीर के एक तरफ हिस्सा ही सर ग्रस्त होता है ,एक तरफ के आंगिक संचालन पर से नियंत्रण हट जाता है .

अकेले नहीं आती है सेरिब्रल पाल्ज़ी?(ज़ारी..)

अकसर सीपी से ग्रस्त लोगों में दिमाग के समुचित विकास से ताल्लुक रखने वाली अन्य अनेक अ-सामान्यताओं से जुडी कंडीशंस भी देखी जातीं हैं मसलन बौद्धिक अक्षमताएं (इन्तेलेक्च्युअल डिस -एबिलितीज़ ,बोध और संज्ञान से जुडी कमियाँ खामियां ),बीनाई (नजर ,दृष्टि ,विज़न )तथा श्रवण सम्बन्धी समस्याएँ ,सीज़र्स (फिट्स ,कन्वाल्सन)यानी दौरों की चपेट में भी आजाना ।
ए ब्रोड स्पेक्ट्रम ऑफ़ ट्रीट -मेंट्स मे हेल्प मिनिमाइज़ दी इफेक्ट ऑफ़ सेरिब्रल पाल्ज़ी एंड इम्प्रूव पर्सन्स फंक्शनल एबिलितीज़ .लेकिन यह एकबड़ी चुनौती होती है जिसे स्वीकार करते हुए ही सामान्य जीवन औरों की तरह जिया जासकता है ।
(ज़ारी...).

क्या है सेरिब्रल पाल्ज़ी?

माँ -बाप बहुत ही हर्षित होकर बतलातें हैं हमारे बच्चे ने पहला शब्द ये बोला था अमुक दिन(फलां दिन ) उसने चलना सीखा था ,धरा पे पहला कदम रखा था लेकिन सेरिब्रल पाल्ज़ी से ग्रस्त कितने ही बच्चे यह पहला शब्द नहीं बोल पाते ,पहल नहीं कर पाते ठुमक ठुमक चलने की .
इनमे से कितने ही बच्चे वील चेयर्स का कितने ही बैशाखियों (क्रचिज़ ,ब्रेसिज़ )का स्तेमाल करतें हैं .कितने ही बोल नहीं पाते ,चल नहीं पाते खा नहीं पाते ,पोश्चारिंग में दिक्कत आती है ।
हमारा दिमाग ही बाकी शरीर को बताता है कब क्या करना है सेंसरी न्युरोंस सूचना लातें हैं और मोटर न्युरोंस आदेश लेके लौटतें हैं गति का ,पोश्चर का संचालन करतें हैं .दिमाग की एक कोशिका को ही न्यूरोन कहा जाता है .पूरा टेलीफोन एक्सचेंज है हमारा दिमाग .
और दिमाग ही असर ग्रस्त होता है इस कंडीशन में जिसे सेरिब्रल पाल्ज़ी कहा जाता है ,सीपी कहतें हैं ।
इसीलिए जहां तक -
परिभाषा :
का सवाल है तो सेरिब्रल पाल्ज़ी को मूवमेंट ,मसल टोन,या पोश्चर का एक विकार कहा जाता है जिसकी वजह गर्भस्थ भ्रूण के पनपते दिमाग को पहुँचने वाली कोई चोट ,विकास सम्बन्धी कोई अ-सामान्यता बनती है .दिमाग को चोट प्रसव के दौरान भी पहुँच सकती है इसके फ़ौरन बाद भी ।
सीपी के लक्षण शैशव काल में ही या फिर प्री -स्कूल ,प्ले -स्कूल डेज़ में ही प्रकट हो जातें हैं ,मुखर हो जातें हैं .
सेरिब्रल का मतलब दिमाग से सम्बंधित तथा पाल्ज़ी का मतलब कमजोरी समस्या महसूस करना है चलने में एक ढाल उठने बैठने में मुद्रा सुनिश्चित करने में ।
अब दिमाग का कौन सा हिस्सा डेमेज हुआ है ,जन्म से भी पहले,कौन सा हिस्सा विकार ग्रस्त हुआ है विकाशशील दिमाग का फीटस के , गर्भ में , प्रसव के दौरान या फिर प्रसव के फ़ौरन बाद वही तय करता है कि कबकौन से हिस्से के क्षतिग्रस्त होने पर बच्चा बोल नहीं पायेगा कब पेशियों पर काबू नहीं रख सकेगा ,कब कोई सुनिश्चित मुद्रा में उठ बैठ नहीं सकेगा .हज़ारों बच्चे सीपी से असर ग्रस्त होतें हैं हर साल .
(ज़ारी...).

जटिलताएं ही जटिलताएं हैं एपिलेप्सी में .

कोम्प्लिकेसंस इन एपिलेप्सी :
कुछ मौके ऐसे होतें हैं जब सीज़र खतरनाक हालातों में ले आता है असरग्रस्त व्यक्ति को भी उससे जुड़े लोगों को भी .मसलन :
(१)अगर आप सीज़र के शुरू होते ही गिर गए तब आपकी हड्डी भी टूट सकती है सिर में भी खतरनाक ढंग से चोट लग सकती है .सीज़र के रूप भी तो अनेक हैं देखने वाले को पता ही नहीं चलता है कई मर्तबा मसलन असरग्रस्त व्यक्ति का " ब्लेंक स्टेअर "हो जाना वह बस एक- टक किसी चीज़ को निहारने लगता है .उसे कोई गंध आने लगती है जिसका आसपास के व्यक्ति को कोई पता नहीं चलता है .लड़ -खडाता है और गिर जाता है ,अशक्त होकर .
(२)पानी में डूबके मर जाने का ख़तरा :यदि आपको सीज़र ज़ारी रहतें हैं तब आपके तैरते वक्त आकस्मिक दौरे से डूब जाने के खतरे बाकी लोगों की बनिस्पत १५ गुना बढ़ जातें हैं ।
(३)यदि सीज़र के दौरान आपको बे होशी या नीम -होशी रहती है तब आपके लिए कार चलाना वाजिब नहीं है ,जरा सा ध्यान भंग ऐसे में किसी बड़ी दुर्घटना की भी वजह बन सकता है .यही बात किसी भी मशीन पर काम करते हुए भी लागू होती है ।
तीन महीने से लेकर दो साल तक यदि आपको सीज़र का ख़तरा नहीं रहता है ,सीज़र दवा से थमे रहतें हैं कुछ अमरीकी राज्यों में तभी आपको ड्राइविंग लाइसेंस मिलतें हैं .इसी आशंका से ।
(४)गर्भावस्था के दौरानभावी - माँ और गर्भस्थ दोनों के लिए गिर कर चोट ग्रस्त हो जाने का एकसमान ख़तरा बना रहता है .सीज़र्स से बचाव इस दौर में और भी ज्यादा ज़रूरी होता है .कदम दर कदम डॉ की सलाह पे चलना अनुदेश मानना स्वस्थ बच्चे के लिए आश्वश्त भी करता है ,स्वस्थ बच्चा पैदा भी होता है एपिलेप्टिक गर्भवती महिलाओं को ।
अलबत्ता कई एंटी -एपिलेप्टिक दवाएं बर्थ डि-फेक्ट्स के खतरे को बढा सकतीं हैं ,ये खबरदारी रखना होना डॉ के लिए भी ज़रूरी रहता है ।
कुछ पेचीला -पन कभी कभार बिरले ही देखने में आतें हैं :
मसलन स्टेटस एपिलेप्तिकस मामलों को लें -यह वह स्थिति है जिसमे सीज़र ५ मिनिट से ज्यादा देर तक बने रहें और पिंड न छोड़े व्यक्ति का बारहा फिट्स पडतें ही रहें ,मरीज़ को बीच के अंतराल में होश भी न रहे ,बे -होशी ही बनी रहे ।
ऐसे लोगों के लिए "परमानेंट ब्रेन डेमेज का ख़तरा भी बढ़ जाता है ,मौत का भी ।
(५)सडन अन -एक्स -प्लेंड डेथ इन एपिलेप्सी (एस यु डी ईपी ):जिन लोगों का रोग पर नियंत्रण बहुत गया बीता ,बहुत ही पूअर रहता है ,उनके लिए इस प्रकार की समझ न आने वाली आकस्मिक मौत का ख़तरा भी मौजूद हो जाता है ।
कुलमिलाकर १००० के पीछे एक व्यक्ति की ऐसे ही मामलों में आकस्मिक और समझ ना आने वाली मौत हो जाती है .जिसकी किसी के पास कोई व्याख्या नहीं रहती है ।
यह उन मामलों में ज्यादा देखी गईं हैं जिनमे सीज़र दवा से काबू में नहीं आतें हैं ।
सीज़र की एक ख़ास किस्म में (जन्रेलाइज़्द टोनिक -क्लोनिक सिज़र्स ) जबकि ये बारहा होते भी रहें यह ख़तरा खासतौर पर बढा हुआ रहता है .
(ज़ारी...).

रिस्क फेक्टर्स फॉर एपिलेप्सी .

कुछ फेक्टर्स (घटक ) एपिलेप्सी के जोखिम को बढा सकतें हैं :
(१)आपकी उम्र क्या है ?एपिलेप्सी की शुरुआत अकसर या तो बचपन के शुरूआती दौर में होती है या फिर ६ ५ साल की उम्र के पार चले आने पर .यूं यह रोग ,इस कंडीशन की गिरिफ्त में कोई भी, कभी आ सकता है ।
(२)आपका लिंग (जेंडर /सेक्स ):मर्दों में यह कंडीशन औरतों के बनिस्पत थोड़ी सी ज्यादा देखी जाती है ।
(३)आपका पारिवारिक इतिहास ,वंशवेल में रोग का पूर्व वृत्तांत :सीज़र डिस -ऑर्डर का ख़तरा थोड़ा सा तब ज़रूर बढ़ जाता है जब परिवार में वंशवेल में यह रोग कहीं चलता रहा हो .
(४)सिर की चोटें (हेड इन्जरीज़ ):कितने ही एपिलेप्सी के मामलों में हेड -इन्जरीज़ सीज़र डिस-ऑर्डर की वजह बनती है .कुछ सावधानिया बरतकर इस खतरे को घटाया जा सकता है .कार में बैठते वक्त सीट बेल्ट का प्रयोग किया जाए .केलिफोर्निया राज्य में जो लोग पीछे की सीटों पर बैठतें हैं उनके लिए भी सीट बेल्ट बाँधना ज़रूरी है कानूनी तौर पर ।
हिन्दुस्तान में आपको कई ऐसे परिवार मिल जायेंगे जो दिल के टुकड़ों को गोद में लेकर आगे की सीट पर बैठ जायेंगें .सीट बेल्ट बाँधने के लिए कहो तो कहतें हैं हमारा कोई क्या कर लेगा (पद प्रतिष्ठा पीड़ित ऐसे ही कितने लोगों को आप भी जानतें होंगें .).किशोर किशोरियां (१८ की उम्र के नीचे )गली मोहल्लों में मोटर साइकिल स्कूटर पर करतब दिखलातें मिल जायेंगें .हेलमेट का तो सवाल ही नहीं होता गली कूचों में .यहाँ अमरीका में मैंने देखा है बच्चे भी छोटी छोटी साइकिलें चलाते वक्त हेलमेट पहनते हैं .
स्की -इंग करते वक्त भी हेलमेट पहना जाना चाहिए . मोटर साइकिल ,साइकिल चलाते वक्त भी .
यहाँ तो स्पीड -इए (स्पीड और दौलत के नशे में रहने वाले )कितने ही लोग राह - चलतों को मारके निकल जातें हैं .
(५)ब्रेन अटेक(आघात ,सेरिब्रल -वैस्क्युअलर -एक्सीडेंट )तथा अन्य वाहिकीय रोग (वैस्क्युलर डि -जीज़िज़ ):ये तमाम कंडीशंस ब्रेन डेमेज की वजह बन सकतीं हैं और ब्रेन डेमेज एपिलेप्सी की ।
एल्कोहल और सिगरेट की तलब से बचे रहकर आप इस रोग के खतरे को कम कर सकतें हैं .शराब का सेवन कम तो कर ही सकते हैं सोसल ड्रिंकिंग में कोई हर्ज़ भी नहीं है गलत है रोज़ ग्लास लेकर बैठ जाना .गम गलत करना शराब और सिगरेट से ,सेहत ही गलत हो जाती है गम तो क्या होता है ।
स्वास्थ्य कर खुराक और व्यायाम भी रोग और सीज़र के खतरे को कम करता है ।
(६)दिमागी संक्रमण (ब्रेन इन्फेक्संस ):ब्रेन और स्पाइनल कोर्ड की सोजिश /शोथ /इन्फ्लेमेशन (मेनिंन -जाई -टिस)भी एपिलेप्सी के खतरे के वजह को बढा सकती है ।
(७)दीर्घावधि तक बचपन में सिज़र्स का बने रहना (प्रो लोंग्द सीजर्स इन चाइल्ड -हुड ):कई मर्तबा बहुत तेज़ ज्वर (हाई डिग्री फीवर १०२-१०५/१०६ फारेन्हाईट )भी बचपन में सिज़र्स की वजह देर तक बना रहता है जिसका नतीजा आगे चलकर एपिलेप्सी के रूप में भी भुगतना पड़ सकता है .खासकर तब जब परिवार में एपिलेप्सी का पूर्व वृत्तांत (इतिहास ) भी रहा आया हो ।
( ज़ारी ....).

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

एपिलेप्सी इज देयर ए जेनेटिक लिंक टू दिस कंडीशन ?

आनुवंशिक (जीवन इकाई सम्बन्धी )वजहें हैं भी या नहीं इस कंडीशन की ?
बेशक कुछ ख़ास किस्म के सीज़र (एपिलेप्सी ) कुछ परिवारों में देखे जा सकतें हैं लेकिन सभी सीज़र इस केटेगरी में नहीं आयेंगें ।
यहीं से एक आनुवंशिक सम्बन्ध दिखलाई सा देता ज़रूर है लेकिन एक नहीं दो नहीं तकरीबन ऐसी ५०० जीवन इकाइयां (जींस ,जीवन के सूत्र ,बुनियादें ईंटें जीवन की ऐसी हैं ,ऐसा प्रतीत होता है )जिनका सम्बन्ध कुछ ख़ास किस्म की एपिलेप्सी से सीज़र्स से हो भी सकता है ।
कितने ही रिसर्चर जीन्स को केवल एक आंशिक वजह ही मानते हैं जो संभवतया व्यक्ति को उसके पर्यावरण के प्रति ज्यादा संवेदी ,बना देतें हैं और एन -वाय्रंमेंतल फेक्टर्स फिट्स के लिए एक ट्रिगर बन जातें हैं ।
५० % मामलों में जीवन इकाइयों अन्य खानदानी वजहों का कोई हाथ नहीं होता है .
गैर आनुवंशिक वजहों में मेडिकल डिस -ऑर्डर्स खासकर ब्रेन -अटेक्स (स्ट्रोक्स )और हार्ट अटेक्स का नंबर आता है जो दिमाग को नुकसान पहुंचा सकतें हैं और एपिलेप्सी की वजह भी .
६ ५ साल से ऊपर के जो लोग एपिलेप्सी की चपेट में आतें हैं उनमे से आधे मामलों में एपिलेप्सी की वजह स्ट्रोक बनता है ।
डिमेंशिया भी उम्र दराज़ (ओल्डर एडल्ट्स )में एपिलेप्सी की एक प्रमुख वजह बना हुआ है ।
मष्तिष्क तंतु शोथ (मनिन -जाई -टिस),एच आई वी एड्स ,तथा एन -सी -फेलाई -टिस भी एपिलेप्सी की वजह बन सकतें हैं ।
हेड ट्रौमा तो एक ज्ञात वजह है ही (कार एक्सिदेंट्स वगैरा जिसकी वजह बनते हैं )एपिलेप्सी की .
गर्भस्थ को माँ का कुपोषण ,रोग संक्रमण तथा पूरी ऑक्सीजन न मिल पाना भी रोग की ज़द में ले आता है ,ला सकता है .बच्चों में सेरिब्रल- पाल्सी की वजह यही कारण बनतें हैं .और बच्चों में तकरीबन २०% सीज़र्स की वजह

यही सेरिब्रल पाल्सी तथा अन्य न्युरोलोजिकल अ-सामान्यताएँ बनतीं हैं ।
डेवलप मेंट डिस -ऑर्डर्स में "ऑटिज्म "और "डाउन सिंड्रोम "भी एपिलेप्सी की वजह बन सकतें हैं .
(ज़ारी..)

एपिलेप्सी: व्हेन तू सी ए डॉ ?

व्हेन टू सी ए डॉ ।?
(१)जब पहली बार ही आपको दौरा /फिट /कन्वाल्सन पड़ा हो .(बेशक एक अकेले दौरे का मतलब एपिलेप्सी नहीं होता है कमसे कम दो ऐसे एपिसोड्स होने चाहिए जिनका कोई ज्ञात कारण न दिखता हो ।).
(२)यदि दौरा पांच मिनिट से ज्यादा देर तक ज़ारी रहे ।
(३)ब्रेअथिंग(सांस की धौंकनी का चलना ) और चेतना दौरा रुकने के बाद भी लौटती न दिखे .
(४)पहले दौरे के फ़ौरन बाद दूसरा भी पड़ जाए .
(५)यदि महिला गर्भवती है ।
(६)यदि व्यक्ति मधुमेह ग्रस्त भी है ।
(७ )दौरे के दरमियान व्यक्ति चोट खा गया हो ।
ये तमाम वजहें डॉ के पास जाने के लिए काफी हैं ।देर करने से आकस्मिक नुकसान की आशंका रहती है .
(ज़ारी ...).

क्या एपिलेप्सी से बचाव संभव है ?

प्रिवेंशन ?
(१)आम तौर पर इसका कोई भी तरीका किसी को भी नहीं मालूम फिर भी उचित आहार ,पर्याप्त नींद ,नशीली दवाओं से परहेजी ,शराब से परहेजी ,जिन लोगों को एपिलेप्सी है उन्हें फिट्स से बचाए रह सकती है .सीजर्स के ऐसे ही कुछ ट्रिगर्स से बचा जा सकता है ।
(२)जोखिम के काम करते वक्त हेलमेट पहना जाए ,किसी भी विध हेड इंजरी से बचा जाए ,एपिलेप्सी के इस रिस्क फेक्टर को आप टाले रख सकतें हैं .
(३)जिन लोगों के फिट्स दवा लेते रहने पर भी काबू में नहीं है उन्हें गाडी नहीं चलाना चाहिए .अलबत्ता अमरीका के अनेक राज्यों में अपने क़ानून है जो तय करतें हैं एपिलेप्सी के साथ रहते हुए भी कौन लोग ड्राइव कर सकतें हैं और कौन नहीं ।
(४)सीज़र्स यदि अनियंत्रित बने हुए हैं तब व्यक्ति को उन कामों से बचना चाहिए जहां ज्यादा सावधानी की ज़रुरत रहती है और ज़रा सी चूक भी बड़ी दुर्घटना का कारन बन जाती है मसलन ऊंची चढ़ाइयों पर चढ़ना ,अकेले साइकिल चलाना ,तैरना अकेले -अकेले बिना किसी कम्पनी के ।
ऐसे में आपका "मेडिकल आई डी "भी क्या कर लेगा ?
बचाव में ही बचाव है .
(ज़ारी..).

एपिलेप्सी में जटिलताएं .

कोम्प्लिकेसंस (पेचीलापन और जटिलताएं क्या- क्या पेश आ सकतीं हैं एपिलेप्सी में )?
(१)सीखने में लर्निंग में ,दिक्कत पेश आ सकती है .
(२ )फिट पड़ने के दरमियान तरल फेफड़ों में दाखिल हो सकता है .जिसकी वजह से एस्पिरेशन न्युमोनिया भी हो सकता है ।
(३)गिरने से चोट लग सकती है ,सीज़र के दौरान व्यक्ति अपनेही किसी अंग को भी काट सकता है अपने ही मुंह से .
(४)ड्राइविंग के दौरान किसी मशीन पर काम करते हुए दौरा (फिट्स )पड़ने पर गंभीर चोट लग सकती है ,दुर्घटना में मृत्यु भी हो सकती है ।
(५)कई एंटी -कन्वाल्सन दवाओं के पार्श्व प्रभाव में ,अ-वांच्छित असर में बर्थ दिफेक्ट्स भी शामिल हैं .ऐसे में संतान की इच्छुक एपिलेप्टिक महिलाओं को अपने डॉ से सलाह करनी चाहिए ताकि वह मेडिकेशन को एडजस्ट कर ले ।
(६)परमानेंट ब्रेन डेमेज भी हो सकता है ,एकके बाद एक दौरे पड़ते रहने से ,ब्रेन स्ट्रोक या कोई और नुकसानी भी उठानी पड़ सकती है .
(७)स्टेटस एपिलेप्तिकस:इन मामलों में सीजर्स दीर्घावधि बने रहतें हैं ,एक के बाद एक दौरे पड़ते रहतें हैं ,रिकवरी बिलकुल नहीं होती ।
(८)एंटी -कन्वल्शन मेडिकेसंस के अपने अवांछित पार्श्व प्रभाव हैं .ये प्रभाव भी कई तरह की समस्याएं पैदा करतें हैं ।
(ज़ारी ...).

प्रोग्नोसिस (एक्स -पेक -टेसंस)फ्रॉम एपिलेप्सी .

प्रोग्नोसिस फॉर एपिलेप्सी ?एक्स -पेक -टेसंस फॉर एपिलेप्सी ?क्या रहता है रोग मुक्ति के लिए पूर्वानुमान ,भविष्य कथन ?
कुछ लोगों के मामले में सीज़र्स /फिट्स /कन्वाल्संस एंटी -कन्वाल्सन दवा दिए जाने पर कुछ अरसे में ही बिलकुल समाप्त हो जातें हैं बेशक ये लोग दवाएं लेते रहतें हैं लेकिन कई सालों तक दौरे नहीं पड़ते .कुछ किस्म के सीज़र्स में ऐसा होते देखा गया है .सीज़र्स का स्वरूप अलग अलग लोगों में जुदा किस्म का होता है ।
बचपन की एपिलेप्सी कुछ मामलों में उम्र के साथ किशोरावस्था के पार ,युवा होते हुए बीसम बीस के दशक के शुरूआती सालों तक बिलकुल ठीक हो जाती है .
लेकिन कुछ केलिए यह उम्र भर का रोग बन जाती है .इट मे बी ए लाइफ लॉन्ग कंडीशन फॉर सम .आजकल मेडिकल कंडीशन कहने का चलन है .,रोगों को ।इन मामलों में दवा लेते रहना ज़रूरी होता है ।
दिमाग के एक हिस्से की मौत होना या दौरे से इस हिस्से का बिलकुल नष्ट प्राय होना बिरले ही देखा जाता है .लेकिन दीर्घावधि बने रहने वाले सीज़र्स ,दो दो -तीन तीन या और भी ज्यादा दौरों का एक साथ पड़ते रहना (स्टेटस एपिलेप्तिकस)दिमाग को मुकम्मिल तौर पर भी क्षति ग्रस्त कर सकता है ।
"डेथ ऑर ब्रेन डेमेज आर मोस्ट ओफतिन काज़्द बाई प्रो -लोंग्द लेक ऑफ़ ब्रीथिंग (ब्रेअथिंग ),व्हिच कौज़िज़ ब्रेन टिश्यु टू डाई फ्रॉम लेक ऑफ़ ऑक्सीजन .देयर आर सम केसिज ऑफ़ सडन डेथ इन पेशेंट्स विद एपिलेप्सी ।".
गाडी चलाने के दौरान दौरा पड़ने पर गंभीर हादसा हो सकता है ,मशीन पे काम करते वक्त भी चोट लग सकती है यदि काम करने के दौरान ही फिट पड़ जाए .
इसीलिए जब तक गुड दाय्बेतिक कंट्रोल की तरह सीज़र्स भी अच्छी तरह काबू में न आजायें ड्राइविंग से मशीन पे काम करने से बचना चाहिए .
लेकिन जिनको कभी कभार ही दौरा पड़ता है उनके लिए ऐसी कोई पाबंदी नहीं रहती है ।
(ज़ारी ....)

एपिलेप्सी के साथ जीनी वालों के लिए ज़रूरी है ....

पर्सन्स विद एपिलेप्सी शुड वीयर "मेडिकल एलर्ट ज्यूलरी"सो देट प्रोम्प्ट मेडिकल ट्रीट -मेंट कैन बी ओब्तैन्द इफ ए सीज़र अकर्स।
यह ए बी सी डी ई कार्ड की तरह ही आपके एपिलेप्टिक स्टेटस से औरों को वाकिफ कराने के लिए है ।
ए इज फॉर आर्थ -राइटिस ।
बी इज फॉर ब्लड प्रेशर ।
सी इज फॉर कार्डिएक स्टेटस
डी इज फॉर डायबिटीज़ .
ई इज फॉर एपिलेप्सी /एपिलेप्टिक .

लिविंग विद एपिलेप्सी .

लिविंग विद एपिलेप्सी :
मज़े से और औरों की तरह ही जिन्दगी को जीसकता है व्यक्ति एपिलेप्सी के साथ ,एक दम से सामान्य .कितने ही खिलाड़ियों ,राजनेताओं ,लेखकों ,उद्यमियों ,डॉक्टर्स ,कला क्षेत्र के लोगों ने अपने अपने क्षेत्र में ऊंचाइयों को छुआ है इस बीमारी के साथ ।
एपिलेप्सी आपको न तो सांस्कृतिक गति -विधियों में हिस्सेदार से रोकती है न ही डेटिंग से ,न कोई कामकाज,कामधंधा अपनी मर्जी का करने से ।
बस अपने डॉ के दिए निर्देशों ,हिदायतों पर चलते रहना है बताई गई सावधानियों पर मौके के अनुरूप काम करना है ,अपनी हिफाज़त करनी है .किशोर -किशोरियां एपिलेप्सी के रहते भी तैराकी कर सकतें हैं लेकिन अकेले नहीं ,कम्पनी में ,और यार दोस्तों को भी पता होना चाहिए आपकी एपिलेप्सी के बारे में जैसे घर के सभी लोगों को किसी एक की डायबिटीज़ के मामले में पता होता है .
जब तक एपिलेप्सी दवा दारु से मेडिकल कंट्रोल में है ,आप ड्राइविंग भी कर सकतें हैं .गर्ज़ ये की कुछ सावधानी बरतते हुए व्यक्ति वह सभी काम कर सकता है गतिविधियों का लुत्फ़ उठा सकता जो बाकी लोग करतें हैं .
अलबत्ता आपके परिवेश में जब भी जो भी व्यक्ति हों उन्हें आपकी एपिलेप्सी के बारे में तथा सीज़र्स के समय क्या करना चाहिए आपको क्या माफिक आता है उसकी खबर और प्रशिक्षण दोनों होना चाहिए फिर आप निश्चिन्त होके रहिये ,करिए जो भी इरादे हैं लक्ष्य हैं हासिल करने को ।
दोस्तों के लिए कुछ बातें ज़रूरी हैं दौरे (सीज़र के दौरान ):
(१)शांत रहें ,घबराएं नहीं ।
(२)मदद ज़रूर कीजिये लेकिन जोर ज़बरिया व्यक्ति को एक करवट लिटाने की कोशिश न करिए .बेशक सोफ्ट सर्फेस पर ही उसे लेटने में मदद दीजिये और सिरहाने उस समय जो कुछ भी आपके पास है कपड़ा लत्ता वही लगा दीजिये ताकि सिर थोड़ा सा ऊंचा रहे धड से ।
(३)व्यक्ति के चश्मे हटा लीजिये,यदि गला लिबास से कसा दिख रहा है तो कपडे गर्दन के गिर्द जो भी हैं उन्हें थोड़ा ढीला कर दीजिये ।
(४)पकडिये ,रोकिये मत व्यक्ति को .डोंट रेस्ट्रेंन ऑर होल्ड दी पर्सन .
(५)आसपास कोई धार -दार नुकीली चीज़ें कोई हैं तो उन्हें हटा लीजिये ।
(६)व्यक्ति के साथ बने रहिये .अपने आपको आश्वशत कीजिये कोई न कोई उसका दोस्त हमदर्द उसके साथ बना रहे (७)सीजर से निकल आने पर व्यक्ति को आश्वश्त करिए .शांत चित्त से उसे तसल्ली दीजिये ।बताइये की सब ठीक है ,कुछ नहीं हुआ है उलट पुलट ।
(८)गौर से सब कुछ अपने जेहन में रखिये क्या हुआ था ,सीज़र से पहले ,इसके दरमियान तथा इसके बाद अब क्या हो रहा है व्यक्ति को .
(९)सीज़र के समय व्यक्ति के मुह में कोई भी चीज़ न रखिये (मैंने देखा है कई लोग चम्मच फंसा देते हैं इस आशंका से की कहीं मरीज़ अपनी जीभ न काट ले ,दांतों के बीच आने पर .(रिफ्लेक्स एक्शन खुद बचाता है मरीज़ को .कई लोग चप्पल जूते सूंघा देते हैं ,बिलकुल वाहियात बात है यह जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है ।).
बेशक यदि मरीज़ गिरके घायल हो गया है या फिर उसे कोई और भी मेडिकल कन्डीशन है डायबिटीज़ है या फिर सीज़र थमने का नाम ही नहीं ले रहें हैं तब आपातकालीन सेवायें जो भी उपलब्ध हों उनका लाभ दीजिये मरीज़ को ,संपर्क कीजिये इमरजेंसी /हेल्प लाइन से ।
एपिलेप्सी भयावह लग सकती है लेकिन इसका प्रबंधन आसान है मुश्किल नहीं है .बस अपने ट्रीटमेंट प्लान पे कायम रहिये .आठ घंटे की नींद लीजिये .खान- पान सही रखिये .थोड़ा कसरत कुसरत,व्यायाम ,टहल कदमी भी कीजिये अपने आपको बे -डौल न होने दीजिये ,फिर जिंदगी खुशनुमा ही खुशनुमा है .
(ज़ारी...)।
विशेष :इस ब्लॉग पर सेहत से सम्बन्धी जो भी लिखा जा रहा है उसका मकसद रोगों और स्वस्थ जीवन शैली की अपनी माँ -तृ -भाषा में जानकारी मुहैया करवाना है .इसका थिरापेतिक अर्थ न लगाया जाए .हम सिर्फ जानकारी आपके साथ सांझा कर रहें हैं .इलाज़ और रोग निदान के लिए आपका चिकित्सक ही विधाई भूमिका निभाएगा ,उसी पे भरोसा रखियेगा ।
वीरुभाई .

एपिलेप्सी के रोग निदान के लिए ....

व्हाट डू डॉक्टर्स डू ?
दिमाग और नर्वस सिस्टम (स्नायु -तंत्र )से ताल्लुक रखने वाले रोगों के माहिर को न्यूरोलोजिस्ट कहा जाता है .यदि आपको दौरा (सीज़र )पड़ा है ,दौरे पड़ते रहें हैं ,आपको यह बात अपने पारिवारिक चिकित्सक को बतानी चाहिए .वह आपको न्यूरोलोजिस्ट के पास रोग निदान (एपिलेप्सी का पता लगाने के लिए )भेज सकता है ।
आपका फिजिकल एग्जामिनेशन (काया परीक्षण )करने के बाद स्नायुतंत्र विज्ञानी एवं दिमागी और स्नायु तंत्र के रोगों का माहिर आपकी वर्तमान चिंताओं ,लक्षणों ,पूर्व में रही आई आपकी सेहत के बारे में ,यदि कोई दवा आप लेतें रहें हैं ,किसी दवा विशेष या समूह से आपको एलर्जी है ,आदि के बारे में दरयाफ्त करेगा .आपका चिकित्सा इतिहास जानना चाहेगा .सबसे ज़रूरी है किसी ऐसे आदमी को साथ लेकर जाना जिसने आपको सीज़र्स के दरमियान देखा हो ,और उसका सही सही ब्योरा डॉ को बता सके .बेशक लिख कर ले जाया जाएँ उन लक्षणों को ।
काय परीक्षण के अलावा ई ई जी ,दिमाग का सी टी स्कैन ,एम् आर आई आदि आजकल रूटीन में ही किया जाता है ताकिअसर ग्रस्त व्यक्ति जिसे दौरे पड़ते रहें हैं उसके दिमाग में चलने वाली विद्युत् गति -विधि (इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी ) का जायजा लिया जा सके .इन परीक्षणों में किसी प्रकार की तकलीफ मरीज़ को नहीं होती है ।
एपिलेप्सी का रोग निदान पुख्ता होने पर डॉ .उचित इलाज़ करने की सिफारिश करता है नुश्खा लिखता है ।
मेडिकेशन (दवा दारु )के अलावा कई मर्तबा कई और चिकित्साएँ भी आजमाई जातीं हैं ।
सबका ध्येय सीज़र्स की प्रभावी तरीके से रोक थाम करना होता है ।
कई बार न्यूरोलोजिस्ट दिमाग के प्रभावित हिस्से में एक नर्व स्तिम्युलेटर (वेगस)इम्प्लांट कर देता है .इस प्रत्या रोप का मकसद भी दौरों की प्रभावी रोक थाम करना ही होता है .कई मर्तबा कुछ नाड़ियों को काट कर ही फैंक देना पड़ता है .नर्व स्तिम्युलेटर वेगस नर्व में से होकर जो गले में स्थित होती है सिग्नल भेजता है ताकि सीज़र रोके जा सकें ।
जिन्हें सिर्फ दवाओं से आराम नहीं आता उन्हें ख़ास खुराक भी तजवीज़ की जाती है जिसे केटोजेनिक डाईट कहा जाता है ।
दिमागी ऊतकों पर भी शल्यसीधे सीधे आजमाया जाता है .हर मामला दूसरे से जुदा होता है ।
केटोजेनिक डाईट इज वन देट प्रोमोट्स दी फोरमेशन ऑफ़ कीटोन्स बॉडीज इन दी तिश्युज़ .इन दिस डाईट दी प्रिंसिपल एनर्जी सोर्स इज फैट रादर देन कार्बो -हाई -ड्रेट्स .यानी चिकनाई बहुल होती है यह खुराक ताकि ऊतकों में कीटोन्स बॉडीज को बढावा दिया जा सके .
(ज़ारी ...).

व्हाट काज़िज़ एपिलेप्सी ?

यह एक नाज़ुक और चकराने वाला सवाल है जिसका कोई सीधा सीधा दो टूक ज़वाब नहीं है .किसी एक ख़ास व्यक्ति में (और हर व्यक्ति अपने आप में ख़ास ही होता है इस मामले में )चिकित्सक इसकी वजह रेखांकित नहीं कर सकता ,सटीक वजह नहीं बतला सकता इसकी ।
अलबत्ता साइंसदान इतना ज़रूर जानतें हैं कौन -कौन सी चीज़ें हैं परिस्थितियाँ हैं , रोगात्मक स्थितियां ,रोग संक्रमण हैं जो एपिलेप्सी की संभावना को बढा सकतें हैं ।
(१)दिमाग में लगने वाली ज़ोरदार चोट (कार क्रेश ,मोटर -साइकिल एक्सीडेंट )
(२)गर्भावस्था के दरमियान कोई रोग संक्रमण जिसका विकासमान भ्रूण (डेवलपिंग फीटस )पर प्रभाव पड़ा हो ।
(३)प्रसव के दौरान नवजात के दिमाग को पर्याप्त ऑक्सीजन न मिल पाना ।
(४)मेनिंन -जाई -टिस(मष्तिष्क तंतु शोथ ),एन -सी -फे -लाइ -टिस या फिर कोई भी ऐसा रोग संक्रमण (इन्फेक्शन )जो दिमाग पे असर करता हो ,दिमाग को असर ग्रस्त कर सकता हो ।
(५)ब्रेन ट्यूमर्स या फिर स्ट्रोक्स (ब्रेन अटेक)।
(६)ज़हरवाद यानी पोइजनिंग मसलन लेड पोइजनिंग ,एल्कोहल पोइजनिंग .
एपिलेप्सी कोई छूतहां रोग नहीं है .किसी और को है इसीलिए आपको नहीं होगा उसके संपर्क से ।
खानदानी विरासत में भी उस तरह नहीं मिलता है ये रोग जैसे नीली आँखें या ब्राउन बाल चले आतें हैं .बेशक यदि किसी का कोई फस्ट डिग्री रिश्तेदार (माँ -बाप ,भाई -बहिन आदि ..)यदि इस रोग से ग्रस्त हो तो उस व्यक्ति के लिए रोग का ख़तरा थोड़ा सा बढ़ ज़रूर जाता है .यह ख़तरा उनके बरक्स ही बढ़ता है जिनके परिवारमें इसका पूर्व वृत्तांत नहीं रहा है .अलबत्ता एपिलेप्सी के आधे मामलों में रोग का कोई पूर्व इतिहास नहीं होता ,पहली बार ही हुआ होता है उस परिवार में यह रोग ।
(ज़ारी..).

कब माना जाए किसी को एपिलेप्सी ही है सीज़र्स के आधार पर ?

एपिलेप्सी नर्वस सिस्टम की इक कंडीशन है जिससे २५ लाख अमरीकी ग्रस्त है ,हर बरस इक लाख अस्सी हजारं से ज्यादा लोगों को एपिलेप्सी का रोग निदान (डायग्नोसिस )किया जाता है .
किसी को एपिलेप्टिक फिट (सीज़र )पड़ते देख आप को धक्का लगसकता है ,डर भी सकतें हैं आप ,असरग्रस्त व्यक्ति बेहोश भी हो सकता हैअकसर हो भी जाता है ,यह भी हो सकता है वह नीम होश रहे लेकिन यह न जान सके उसके आस पास हो क्या रहा है ,आप उसे अपने शरीर के कई अंगों को बेतहाशा पटकते झटकते देख सकतें हैं लेकिन इस सब पर उसका कोई नियंत्रण नहीं रहता है ,इन -वोलंटरी मूवमेंट होतें हैं ये सब .एकदम से अजीब एहसास भी होसकता है सीज़र ग्रस्त व्यक्ति को ,अनजाना डर भी .कई अजीबोगरीब स्पर्श भी .अन्य अनुभूतियाँ भी जिन्हें वह व्यक्त नहीं कर सकता ।समझ नहीं पाता .
सीज़र के बाद व्यक्ति एक दम से कमज़ोर ,अशक्त ,भ्रमित बना रह सकता है ।
सीज़र की वजह क्या रहती है ?
आकस्मिक रूप से दिमाग में प्रसारित विद्युत् संकेत(इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स ) मिस फायर करने लगतें हैं .विद्युत् विसर्जन होने लगता है यकायक दिमाग में .इसी के साथ दिमाग में चलने वाली सामान्य प्रक्रियाएं विच्छिन्न हो जातीं हैं .नतीज़न नर्व सेल्स में चलने वाला संचार टूट जाता है अस्थाई तौर पर .न्यूरोन -से न्यूरोन का संवाद थम जाता है .ओवर एक्टिव इलेक्ट्रिकल दिश्चार्जिज़ ही इस संचार पुल के टूटने की वजह बनतें हैं .एक तरह का यह दिमागी इलेक्ट्रिकल ब्रेकडाउन होता है अस्थाई तौर पर ।
कितने ही लोग बचपन या फिर किशोरावस्था में एपिलेप्सी की चपेट में आजातें हैं ,कुछ को बाद के बरसों में एपिलेप्सी हो जाती है ,कोई उम्र नहीं होती कोई वक्त नहीं होता किसको कब एपिलेप्सी पहली बार हो जाए .बुढापे में भी हो सकती है ।
(ज़ारी...).

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

हाव विल माई एपिलेप्सी अफेक्ट मी ?

हाव विल माई एपिलेप्सी अफेक्ट मी ?
प्रत्येक व्यक्ति के लिए इसका अलग मतलब है .जैसे हर व्यक्ति अलग है ऐसे ही उसका रोग और उसकी वजहें अलग अलग हो सकतीं हैं .मसलन कुछ के लिए यह बचपन की एक अवस्था हो सकती है जो आगे चलके और भी बढ़ जाती है,बड़ी हो गई है . .कुछ लोगों को यह ज्यादा असर ग्रस्त कर सकती है ।
सीज़र्स का दौरे -दौरा इनके लिए ड्राइविंग ,कामकाज (धंधा -धौरी,वर्किंग ),सामाजिक अवसरों को हासिल करने के मौकों के भी आड़े आसकता है .इनके आत्म -सम्मान को भी ठेस पहुँच सकती है ।
लेकिन आप इसके प्रति अपना रवैया बदल सकतें हैं ।इसे एक चुनौती और अन्य रोग की तरह ही स्वीकृति देकर .
सही इलाज़ के जरिये आप अपनी जिन्द्ज़ी अपनी ढाल (अपने तरीके से )जी काट सकतें हैं .
सीज़र्स के ज्यादा तर मामले निपट लिए जाते हैं .काबू में आजातें हैं सीज़र्स .कुछ को पहला इलाज़ ही जादू सा असर करता है .सीज़र्स ऐसे जातें हैं जैसे गधे के सिर से सींग .
कुछ अन्य लोगों को अपने न्यूरोलोजिस्ट और एपिलेप्तो -लोजिस्ट के संग साथ सही दवा ,दवा मिश्र ,और खुराक तलाशनी होती है ।
कितने ही लोगों को दवा माफिक आतीं है रोग में आराम आता है .लेकिन कुछेक और को सीज़र्स के ख़ास स्रोत को शल्य द्वारा निकलवाना पड़ता है ।असल बात है चुनौती को स्वीकार करना ।
गिरतें हैं सह -सवार ही ,मैदाने जंग में ,वो तिफ्ल क्या जो रैंग कर घुटनों के बल चले .
सह -सवार :घोड़े की सवारी करने वाला ,अश्वारोही ,
तिफ्ल :जीव -आत्मा ?व्यक्ति
(ज़ारी...).

कितने अमरीकी एपिलेप्सी ग्रस्त हैं ?

अनुमानों के अनुसार १४ -२७ लाख अमरीकी एपिलेप्सी ग्रस्त हैं .यह रोग निदान के लिए स्तेमाल में लिए गए क्राइटेरिया और तथा स्टडी मेथड पर निर्भर करता है इसलिए यह वेरिएशन देखने को मिलता है .
एपिलेप्सी किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन अकसर युवाओं तथा एल्दरली (अधेड़उम्र )लोगों में ज्यादा दिखलाई देता है ।
(ज़ारी ...)
विशेष :अगले पोस्ट में पढ़ें :हाव विल माई एपिलेप्सी अफेक्ट मी ?

व्हाट आर दी डिफरेंट टाइप्स ऑफ़ शीज़र्स ?

पहचानिए और भेद करिए सीज़र्स और सीज़र्स में :
दौरे के स्वरूप को पहचान कर ही उसके अनुरूप चिकित्सा हासिल करना बेहतर सिद्ध होता है .एक झलक लेतें हैं इन दौरों की :
(१)पार्शियल सीज़र्स :पार्शियल सीज़र्स बिगिन इन स्पेसिफिक पार्ट्स ऑफ़ दी ब्रेन .दीज़ इन्क्ल्युद -
(अ)सिम्पिल पार्शियल :इसमें चेतना असर ग्रस्त नहीं होती है ,होश नहीं खोता है व्यक्ति सिम्पिल पार्शियल सीज़र में लेकिन इन्द्रिय बोध असर ग्रस्त होता है व्यक्ति को दुर्गन्ध का अनुभव हो सकता है हाथ पैर भी झटक सकता है वह अपने .ही /शी मे प्रोड्यूस मोटर मूवमेंट सच एज जर्किंग ऑफ़ एन आर्म ।
(ब )कोम्प्लेक्स पार्शियल :इनमे व्यक्ति के होशो -हवाश में बदलाव आता है एक भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है .
(स)कोम्प्लेक्स पार्शियल विद सेकेंडरी जन्रेलाइज़ेसन :ऐसे दौरों की शुरुआत तो कोप्म्लेक्स पार्शियल की तरह ही होती है लेकिन ये जन्रेलाइज़्द सीज़र्स में ही तब्दील हो जातें हैं ,दिमाग के दोनों अर्द्ध गोलों को असर ग्रस्त करतें हैं ये ।
विशेष :जन्रेलाइज़्द सीज़र्स अफेक्ट बोथ साइड्स ऑफ़ दी ब्रेन .दीज़ इन्क्ल्युद :
(अ )एब्सेंस :पहले इन दौरोंको पेटिट मॉल कहा जाता था ,इनमे चेतना थोड़ी देर के लिए ही जाती है असर ग्रस्त होती है ,बेहोशी से .बच्चों में अकसर ये सीज़र्स देखने को मिल जातें हैं ।
(आ )अटोनिक:पहले इन्हें "ड्रॉप अटेक"कहा जाता था .इनमे पेशीय नियंत्रण एक दमसे छीज जाता है ,व्यक्ति अकसर गिर जाता है .पेशीय संतुलन नहीं बनाए रख पाता .
(इ )म्योक्लोनिक :ट्रिगर्स सदन जर्किंग इन दी मसल्स ,ओफतिन इन दी आर्म्स एंड लेग्स .हाथ पैर झटके से पटकने लगता है असर ग्रस्त व्यक्ति इन सीज़र्स के असर से ।
(ई )टोनिक -क्लोनिक :पहले व्यक्ति गिरता है खड़े खड़े या चलते फिरते अचानक (टोनिक फेज़ )और फिर और फिर हाथ पैर झटकने पटकने लगता है ।
सीज़र्स और भी हैं :
(उ )फेब्रिले(फेब -राइल)सीज़र्स :तेज़ ज्वर में ये छोटे बच्चों में देखे जा सकतें हैं ,इनका मतलब हमेशा एपिलेप्सी नहीं होता है ।
(ऊ )स्टेटस एपिलेप्तिकस:गंभीर और एक दम से घातक ,बने रहने वाला स्वरूप है यह दौरों का .ये पार्शियल सीज़र्स भी हो सकतें हैं जन्रेलाइज़्द भी ।
(ज़ारी ...).

सीज़र और एपिलेप्सी में फर्क क्या है ?

सीश्जर तो लक्षण है एपिलेप्सी का .सीश्जर तो परिणाम है ब्रेन की एक न्युरोलोजिकल कंडीशन का जिसमे हमारा दिमाग आकस्मिक तौर पर विद्युत् विसर्जन (सदेंन इलेक्त्रिक्स्ल डिस- चार्ज )करने लगता है इससे दिमाग के दूसरे काम ठप पड़ जातें हैंया फिर विच्छिन्न होजातें हैं .
एपिलेप्सी इज दी अंडर -ला -इंग टेंदेंसी ऑफ़ दी ब्रेन टू रिलीज़ इलेक्ट्रिकल एनर्जी देत डिस -रप्ट्स अदर ब्रेन फंक्शन्स .सीश्जर इज दी सिम्तम ऑफ़ डिस अंडर ला -इंग कंडीशन .
केवल एक सीश्जर पड़ने का मतलब यह नहीं है व्यक्ति एपिलेप्सी से ग्रस्त हो गया है .
कार्य कारण सम्बन्ध ज़रूर है :सीश्जर और एपिलेप्सी का ,सीश्जर परिणाम है ,एपिलेप्सी कारण है ।
(ज़ारी..)

एपिलेप्सी :एक जानकारी

एपिलेप्सी :एपिलेप्सी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना ही इसके खिलाफ एक ताकत हासिल करना है .नोलिज़ इज पावर .इससे कोई फर्क नहीं पड़ता आप सालों साल से इसकी चपेट में हैं या अभी हाल फिलाल में ही डायग्नोज़ हुआ है ,निदान हुआ है इस रोग का ,जितना आप इसके बारे में जानिएगा उतना ही ताल मेल बिठा पायेंगें रोज़ मर्रा के काम आराम से कर पायेंगें रह पायेंगें ,लय -ताल बनाए रखकर जी पायेंगें इस रोग के साथ ।
इसीलिए शुरुआत बुनियादी बातों से ही करेंगें :
व्हाट इज एपिलेप्सी (अपस्मार क्या है ?मिर्गी का दौरा नहीं है ये, न ही हिस्टीरिया है )?
यह एक न्युरोलोजिकल कंडीशन है जिसकी वजह से दिमाग में आकस्मिक तौर पर विद्युत् विसर्जन होने लगता है , बर्स्ट्स ऑफ़ इलेक्ट्रिकल एनर्जी टेक्स प्लेस इन दी ब्रेन ,ठीक वैसी ही विद्युत् विसर्जन की घटना हैयह जैसी बादलों के बीच आप देखतें सुनतें हैं ।
दिमाग के ठीक से सामान्य काम काज करते रहने के लिए एक संतुलन ज़रूरी होता है -एक्सिटेशन (उत्तेजन )यानी इन्क्रीज्द एक्टिविटी में तथा मर्यादा में (प्रतिबंधित सीमित और नियंत्रित सक्रियता और इनहिबिशन में ),जब यह संतुलन टूटता है ,मरीज़ को दौरा पड़ जाता है वह सीश्जर की चपेट में आजाता है ।
कौन से चिकित्सक के पास जाइयेगा एपिलेप्सी के इलाज़ के लिए ?
ये डॉ .न्यूरोलोजिस्ट (स्नायु रोग विज्ञान के माहिर ),पीडियाट्रिक न्यूरोलोजिस्ट ,पीडि-आट -रिशियंस (शिशु या बाल रोग विज्ञानी )यानी बालकों के रोगों के माहिर ,या फिर आपके पारिवारिक काया -चिकित्सक (फेमिली फिजिशियन )भी हो सकतें हैं ।
न्यूरोलोजिस्ट :दिमागी रोगों ,स्पाइनल कोर्ड (रीढ़ रज्जू ),नाड़ियों (नर्व्ज़)और पेशियों के रोगों का माहिर होता है न्यूरोलोजिस्ट यानी स्नायु -रोग -विज्ञानी ।
वह स्नायु -रोग -विज्ञानी जिसे एपिलेप्सी के इलाज़ में महारथ हासिल होती है वह "एपी-लेपटो -लोजिस्ट "कहलाता है .
क्यों हो जाता है "एपिलेप्सी रोग "?क्या कारण रहतें हैं इस रोग के ?
यह एक जन्म -विकार का भी नतीजा हो सकता है .दिमागी चोट (हेड इंजरी ),दिमागी ट्यूमर (मलिग्नेंट )या फिर कोई दिमाग में कोई रोग संक्रमण (इन्फेक्शन इन दी ब्रेन )भी इसकी वजह बन सकता है ।
वंशानुगत (खानदानी विरासत में मिला )एक रोग भी हो सकती है एपिलेप्सी .लेकिन सच यह भी है तकरीबन आधे मरीजों में इसकी वजह का पता ही नहीं चल पाता है ।
छूतहा (कंटा -जियस )रोग नहीं है एपिलेप्सी ।
पहली मर्तबा , कभी भी ,किसी को भी, हो सकता है यह रोग ,बुढापे में भी हो सकता है यह रोग ।
सीश्जर (सीज़र ,दौरा )क्या है ?
यह हमारे इन्द्रिय बोध में आने वाला एक बदलाव है .सीज़र इज ए चेंज इन सेंसेशन .यह हमारी चेतना ,जागरूकता ,व्यवहार सभी को असरग्रस्त करता है जिसकी वजह दिमाग में विद्युत् विक्षोभ (इलेक्ट्रिकल डिस तर्बेंस )बनतें हैं .
एक आम लक्षण है एपिलेप्सी का सीज़र जिसके अनेक रूप हो सकतें हैं .एक अकेली ऊंगली की झं -झनाहट,तिन्ग्लिंग से लेकर नीम -होशी, बे -होशी तक (जन्रेलाइज़्द सीज़र ,ग्रांड मॉल सीज़र ).हाथ पैर के अन्य पेशीय अकड़ाव से लेकर जर्क्स तक तमाम तरह के लक्षण देखे जा सकतें हैं सीज़र्स में .
ग्रांड मॉल (सीश्जर ):ग्रांड मॉल इज ए सीरियस फॉर्म ऑफ़ एपिलेप्सी इन व्हिच दे -यर इज लोस ऑफ़ कों -शश नेस एंड सीवीयर कन्वाल्संस ।
पेटिट मॉल :इज ए फॉर्म ऑफ़ एपिलेप्सी मार्कड बाई एपिसोड्स ऑफ़ ब्रीफ लोस ऑफ़ कों -शश -नेस विदाउट कन्वाल्संस और फालिंग .फ्रेंच भाषा में इसका मतलब "स्माल इलनेस "होता है .यानी छोटी मोटी बीमारी ./बीमारी का ऐसा रूप जो गंभीर न हो ।
(ज़ारी ...).

हिस्टीरिया (ज़ारी ...).

मानसिक दुःख भोग पीड़ा की अभिव्यक्ति ,प्रकटीकरण अलग अलग संस्कृति और सभ्यताओं में अलग तरीके से हुआ है .ओमान में दौरे की वजह दुष्ट आत्माओं द्वारा सताए जाने को माना गया है ,हिन्दुस्तान में प्रेत बाधाओं द्वारा तंग करना सताना ,दुष्ट आत्मा का भटकाव और अपने स्वजनों से कुछ चाहते रहना ,बारहा आकर दुःख भोग देकर ।
बालाजी (राजस्थान जातें हैं कितने ही लोग भूत -प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए ,प्रेत उतरवाने ,लोक विश्वाश ही कुछ ऐसा है )।
कुछ औरतों को बाल खोलकर सिर हिलाते बेतरह देखा जा सकता है बालाजी में .हाथ पैर सिर में जलन महसूस करता है असरग्रस्त व्यक्ति .कांपनाबेहिसाब फड-फडाना ,दिल की धड़कन का बढना दूसरे आम कायिक लक्षण देखे जातें हैं कथित प्रेत बाधा ग्रस्त व्यक्ति में .
वन स्टडी ऑफ़ ब्रिटिश वेटरंस फाउंड देट ओवर दी कोर्स ऑफ़ दी २०एथ सेंच्युरी ,पोस्ट ट्रौमेतिक डिस -ऑर्डर्स डिड नोट डिस -एपियर ,बट रादर चेंज्ड फॉर्म :दी गट रिप्लेस्ड दी हार्ट एज दी मोस्ट कोमन लोकस ऑफ़ वीकनेस .
हिस्टीरिया की व्याप्ति और रोग का लगातार सदियों से बने रहना इस और इशारा करता है -हिस्टीरिया एक सहज अनुक्रिया है ,रेस्पोस्न्स है "थ्रेट परसेप्शन के लिए ".थ्रेट के प्रति ।
ऐसे में पेरेलिसिस जैसे लक्षणों का आना दिखना एक आमान्य परिस्थिति के प्रति कोई अनसुनी अनदेखी बात नहीं है .(रात को अचानक आँखों पर हेड लाईट पड़ते ही हिरनों या फिर नील गाय का भागना देखा है आपने ,कुछ कुछ ऐसा ही यहाँ हो रहा हो सकता है ).एक भय की व्याप्ति और उसके प्रति एक सहज अनुक्रिया ।
हिस्टीरिया को लेकर साइंसदान सहमत हैं :इस एक बात पर जितना जाना जा चुका है उससे ज्यादा जानना अभी बाकी है .शुरुआत हो चुकी है धुंध से बाहर आने की ।
"(समाप्त )."-नहीं इसे भी शुरुआत ही माना जाए ।
४३,३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,केंटन ,मिशिगन -४८ १८८ -१७८१ (यूएसए )

जो समझ न आये वो हिस्टीरिया ?

गत पोस्ट से आगे ......
"हिस्टीरिया हेज़ बीन ए डंपिंग ग्राउंड फॉर दी अन -एक्स -प्लेंड"।
हिस्टीरिया का नाम बदल कर "कन्वर्शन डिस -ऑर्डर " तो ज़रूर कर दिया गया लेकिन इसका निदान दुरूह बना रहा -दीर्घावधि तक यह एक समझ न आने वाला ,बेहद मुश्किल तंग करने वाला रोग निदान बना रहा .क्योंकि यह नकारात्मक सबूत पर आधारित था -मतलब यदि आपके साथ कोई और गडबड नहीं है (काय रोग नहीं है )तो हो सकता है आपको कन्वर्शन "डिस -ऑर्डर "हो ।
जो समझ न आता था उसे हिस्टीरिया कह दिया जाता था .इसी सोच के चलते एक समय था जब "एपिलेप्सी "तथा सिफिलिस (एक यौन सम्बन्धी रोग )को भी हिस्टीरिया के तहत रखा जाता था .समय के साथ इन बीमारियों के रोग निदान के नए टूल्स हमारे हाथ में आने से इनकी जैव -चिकित्सकीय व्याख्याएं सामने आईं.अब सभी जानतें हैं 'एपिलेप्सी "दिमाग के आकस्मिक इलेक्ट्रिकल डिस -चार्ज़िज़ का नतीजा होता है .और सिफलिस एक यौन -संचारी रोग है ।
बेशक अब हिस्टीरिया के रोग निदान में उतनी गफलत और त्रुटियाँ नहीं रह गईं हैं लेकिन संदेह होना रहना अभी बाकी है ।
अकसर १९६५ के उस अध्ययन का बाकायदा हवाला दिया जाता है ,जिसके अनुसार जिन मरीजों को रोग निदान के बाद कन्वर्शन डिस -ऑर्डर (हिस्टीरिया रोग) बतलाया गया था उनमे से आधे मामले बाद में न्युरोलोजिकल डिसीज़ के साबित हुए .लेकिन हालिया अध्ययन अब इस त्रुटी का होना बस ४-१० %मामलों में ही मानतें हैं .शेष मामले सही डायग्नोज़ हो जाते हैं ।
फंक्शनल इमेजिंग ने इस रोग निदान में बड़ी मदद की है .अब रोग निदान और इलाज़ में एक तारतम्य है ।
अब मरीज़ आपको आकर यह नहीं कहता "आई एम् आफ -रेड "बल्कि यह कहता है "आई एम् पेरेलाइज़्द"।
"फंक्शनल इमेजिंग हेड मेड दी ट्रीट -मेंट एंड डायग्नोसिस इन दी सेम लेंग्विज ".दी डॉ गोज़ टू दी पेशेंट विद बोडिली लेंग्विज ,इट हेल्प्स ,देयर इज नो कन्फ्यूज़न "।
यही भौतिक साक्ष्य चिकित्सकों की झिझक को भी कम करेंगें ,जो हिस्टीरिया के मरीजों से छिटक -तें रहें हैं .डॉ रोगी को बहाने बाज़ मानते रहें हैं उन्हें लगता रहा है यह बीमार नहीं है बीमारी का नाटक कर रहा है औरों से तवज्जो चाहने के लिए .क्योंकि इनमे न्युरोलोजिकल साइन दिखलाई ही नहीं देते थे .डॉ कहता -आप अपनी टांग हिला डुला सकतें हैं यह फालिज (लकवा या पेरेलिसिस नहीं है ,आपकी पेशियाँ और नाड़ियाँ दुरुस्त हैं ).
हकीकत यह है डॉ इन्हें ठीक भी नहीं कर पाते थे (रोग निदान ही कहाँ हो पाता था )।
(ज़ारी ...)

हिस्टीरिया (ज़ारी ...).

हिस्टीरिया क्या कहतें हैं नवीन न्युरोलोजिकल अध्ययन ?
हिस्त्रेइकल पेरेलेसिसी से ग्रस्त मरीजों पर गत दशक में कई ब्रेन इमेजिंग अध्ययन हुए हैं .पता चला इन मरीजों की नाड़ियाँ (नर्व्ज़)और पेशियाँ (मसल्स )हर मायने में स्वस्थ हैं .लकवा ग्रस्त मरीज़ की नाड़ियों और पेशियों से मेल नहीं खातीं हैं ।
इनकी समस्या संरचनात्मक (स्ट्रक्चरल )न होकर फंक्शनल यानी प्रकार्यात्मक है .दिमाग के उच्चतर क्षेत्रों में ज़रूर ऐसा कुछ अ -शुभ और बुरा घटित हुआ है जिसका सम्बन्ध गति (मूवमेंट )और गति करने की इच्छा से है ।
दी डम्ब एक्ट्रेस इन दिस डांस आर फाइन (गुड परफोरमर्स ),इट इज दी ब्रिएलेंट बट कोम्प्लेक्स डायरेक्टर देत हेज़ ए प्रोब्लम .
हम जानतें हैं गति तो एक परिणाम है ,अनेक चरणों वाली एक प्रक्रिया का ,पहल (इनिशियेशन ,मुझे चलना है ,गति करनी है ),आयोजन (प्लानिंग ,मुस्तैदी चलने की )जिसमे पेशियाँ समन्वित एक्शन के लिए तैयार होतीं हैं ,और अंत में इस पहल को अंजाम तक लेजाना ।
सिद्धांत -तय फालिज या लकवा (पेरेलेसिस )इन चरणों में से किसी एक चरण के ठीक से काम न करपाने का नतीजा होती है हो सकती है ।
साइंसदानों ने १९९७ में एक ऐसी महिला के दिमाग का विश्लेषण किया जिसके शरीर का बायाँ हिस्सा लकवा ग्रस्त हुआ था ,सबसे पहले विविध परीक्षणों द्वारा जो खासे खर्चीले भी थे यह सुनिश्चित किया गया कि कहीं कोई आई -देंटी -फाई -एबिल ओरगेनिक लीश्जन तो नहीं है ।
जिस समय यह औरत अपने लकवा ग्रस्त अंग को हिलाने डुलाने की कोशिश करती है ,उसका प्राई -इमारी मोटर कोर्टेक्स (दिमाग का एक हिस्सा जिसका गति करने से सम्बन्ध रहता है )सक्रिय नहीं हुआ ,जिसे आम तौर पर सक्रिय होना चाहिए था ,लेकिन इसके स्थान पर उसका "राईट एन्टीरियर-सिंगुलेट कोर्टेक्स सक्रिय हो गया है .यह दिमाग का वह हिस्सा है जिसका सम्बन्ध एक्शन और इमोशन दोनों से रहता है ।
तर्क को आगे बढाते हुए साइंसदानों ने कहा-दिमाग के संवेगात्मक हिस्से गति का शमन करने (सप्रेशन ऑफ़ मोशन )के लिए जिम्मेवार थे .,उसकी लकवा ग्रस्त टांग की .
मरीज़ में इच्छा थी टांग को हिलाने की गति देने की लेकिन इसी इच्छा ने प्रेरित किया प्राई -मितिव ओर्बितल फ्रन्टल एरिया को साथ ही एन्टीरियर सिंग्युलेट को भी एक्टिवेट कर दिया -उन अनुदेशों को रद्द करने के लिए ,आदेश दे दिया यानी टांग को न हिलाया जाए .नतीज़न उसके चाहने के बावजूद टांग टस से मस्स न हुई ज़रा भी न हिली ।
बाद के अध्ययनों ने इस धारणा को बल दिया ,दिमाग के कुछ हिस्से जो गति से ताल्लुक रखतें हैं उन मरीजों में पूरी तरह एक्टिवेट ही नहीं हो पातें है जो कन्वर्शन दिस -ऑर्डर से ग्रस्त रहतें हैं .यही हिस्से दिमागी सर्किट के उन हिस्सों को बाधित करतें हैं रोकतें हैं जो दिमाग के सामान्य काम काज के लिए ज़रूरी होतें हैं खासकर जो गति ,स्पर्शइन्द्रिय बोध और दृष्टि (विजन )से ताल्लुक रखतें हैं .
यही इमेजिंग टूल्स एक दिन रोग नैदानिक सिद्ध होंगी ।
"कन्वर्शन डिस -ऑर्डर हेज़ लॉन्ग बीन ए ट्रबुल -इंग -बुलींग डायग्नोसिस बिकाओज़ इट हिन्जिज़ ऑन निगेटिव प्रूफ :इफ नथिंग एल्स इज रोंग विद यु ,मे बी यु हेव गोट इट ."यानी जब आपमें कोई आंगिक गडबडी नहीं है तब रोग के (हिस्टीरिया )के लक्षण हो सकतें हैं .सब हाल चाल ठीक ठाक है लेकिन .....हिस्टीरिया के लक्षण मौजूद हैं .
(ज़ारी ...)

हिस्टीरिया (ज़ारी ...)

इज हिस्टीरिया रीयल ब्रेन इमेज़िज़ सेज यस .(गत पोस्टों से आगे ....)।
योरोपीय डॉ बरसों बरस ऐसा मानते रहे -किसी कायिक परेशानी से पैदा होता है -हिस्टीरिया .वजहें हो सकतीं हैं :
(१) अन -हेपी यूट्रस (बॉडी फ्लुइड्स न मिलने से जो सूखा होकर शरीर में इधर उधर भटकने लगता है )।
(२)नर्व्ज़ देट वर टू थिन.
(३)ब्लेक बाइल फ्रॉम दी लीवर (यकृत का काला रंग का पित्त बनाना ).
दौरों (सीज़र्स )के मूल में कुछ बुनियादी गड़बड़ शरीर में ही रहती है .बेतरह चिल्ला ने चिल्लाते रहने (दौरों का ही एक रूप है यह भी ),अ -व्याख्येय दर्द तथा पीड़ा का एहसास (स्ट्रेंज एक्स एंड पैंस)।
फ्रायड इस क्रम को उलट देते हैं उनके अनुसार चित्त और मन के उलझे सवालातों ,विरोधाभासों ,मुसीबतों को शरीर अभियक्त करता है अभिनीत करता है कुछ कायिक बहरूपिये लक्षणों के रूप में ।
बेशक स्नायुविक विज्ञान (न्यूरो -साइंस )तथा साइंसदान ऐसा कोई विभाजन "फिजिकल ब्रेन "एंड माइंड में मानने को तैयार नहीं हैं ।
दिमागी प्रकार्य को आज विच्छिन्न होते (डिस -रप्त )होते रिकार्ड किया जा सकता है इमेजिंग अधुनातन तरकीबों द्वारा ।
हिस्त्रेइक दिमाग में क्या कुछ चल रहा है यह अब जानने बूझने के उपाय आगएं हैं .यानी मन का भौतिक खाका खींचा जा सकता है ।
बेशक अभी अनेक सवाल अन -उत्तरित हैं ,सवाल ही ज्यादा हैं उनके ज़वाब कम हैं ,लेकिन नतीजे इशारा करने लगें हैं -संवेगों की दिमागी संरचना (दिमागी खाका ,रूप रेखा )आखिर किस प्रकार नोर्मल सेंसरी (बोध ,ज्ञानेन्द्रिय सम्बन्धी )तथा मोटर न्यूरल सर्किट्स (मूवमेंट से सम्बंधित )को संशोधित कर सकती है कैसे मन (दिमाग )शरीर को नचा सकता है उसकी फिरकनी बनाके घुमा सकता है ,चकमा दे सकता है ,मिमिक कर सकता है लक्षणों को ।
(ज़ारी...).

हिस्टीरिया (ज़ारी...).

गत पोस्ट से आगे ....
ग्रीक भाषा में एकशब्द होता है हिस्टेरा जिसका इक अर्थ यूट्रस भी होता है .प्राचीन चिकित्सक औरतों के अनेक रोगों ,रोगात्मक स्थितियों ,रुग्ण -ताओं का सम्बन्ध "स्तार्व्द तथा मिसप्लेस्ड "वोम्ब (गर्भाशय ,बच्चेदानी )से जोड़ते रहें हैं ।
हिप्पोक्रेट्स ने ही यूटेराइन थिअरी (हिस्टीरिया के गर्भाशय सम्बन्धी सिद्धांत )का विकास किया था .इलाज़ के तौर पर उसने शादी करने की सिफारिश की थी .ताकि "ड्राई "तथा वां -डरिंग यूट्रस शांत हो सके .

फिर दौर आया -ऊपरी हवा का ."देन केम दी सेंट्स ,दी शमंस ,एंड दी डेमन्स पज़ेस्द ".पीर फकीरों आध्यात्मिक गुरुओं के करिश्मो का ,भविष्य कथनों का ,प्रेत बाधाओं के मरीज़ को अवश करने का ।
सत्रहवीं शती में हिस्टीरिया ज्वर के बाद दूसरा व्यापक और आम रोग था ।
उन्नीसवीं शती में फ्रांस के स्नायुविक रोगों के माहिर जें मार्टिन चरकात तथा पिएर्रे जनेत ने हिस्टीरिया के प्रति समकालीन रुख को एक नै दिशा दी ।
चरकात के शिष्य सिगमंड फ्रायड ने हिस्टीरिया को दिनानुदिन लोकप्रिय किया ,नै मनो वैज्ञानिक ज़मीन मुहैया करवाई .सम्मोहन का ज़िक्र किया इसके सन्दर्भों में और चिकित्सा में भी ।
फ्रायड ने ही हिस्टीरिया के मरीजों की नीम होशी या बेहोशी में चले जाने दौरे पड़ने की व्याख्या की .आपने ही सबसे पहले "कन्वर्शन "शब्द का स्तेमाल किया .और बतलाया -अचेतन की अ -विभेदित कशमकश (अन -कों -शश -कों -फ्लिक्त, अन -रिज़ोल्व्द मुद्दे बहरूपिया बन आतें हैं भौतिक लेकिन प्रतीकातमक लक्षणों के रूप में ।
फ्रायड के शब्दों में काया और काया के काल्पनिक लक्षण मन को अभिनीत करते हैं ।
"हिज़ फंडा -मेंटल इन -साईट -देट दी बॉडी माईट बी प्ले -इंग आउट दी ड्रामाज़ ऑफ़ दी माइंड -हेज़ यट टू बी सप -लान -टिड ."
(ज़ारी...).

हिस्टीरिया (ज़ारी ....).

हिस्टीरिया के बारे में दो बातें सभी मरीजों के बारे में आमतौर पर देखी जातीं हैं :
(१)ये लोग अपनी बीमारी का बहाना नहीं बना रहें हैं ।
(२)व्यापक परीक्षणों के बाद भी इनमे कुछ भी ऐसा नहीं मिलता है जो इनके मेडिकली रोंग होने की पुष्टि करता हो .काया रोग हाथ नहीं आता है कोई भी .इन मरीजों में छानबीन के बाद ।
कन्वर्शन डिस -ऑर्डर पर वैज्ञानिक अध्ययन हुए ज़रूर है लेकिन उनकी सीमाएं खुलकर सामने आ गईं हैं .इक तो सेम्पिल साइज़ छोटा रहा है इन अध्ययनों का ,मेथेदोलोजिकल दिफ्रेंसिज़ भी नाम मात्र को रहें हैं इनमे .इसलिए अलग अलग साइंटिफिक टीम्स को मिले नतीजों की परस्पर तुलना नहीं की जा सकती है .इसीलिए आम नतीजे भी निकालना मुश्किल रहा है ।
जहां तक हिस्टीरिया का सवाल है यह शब्द प्रयोग तो फ्रायड से बहुत पीछे तक जाता है .ग्रीक भाषा के इक शब्द हिस्टेरा से हिस्टीरिया की व्युत्पत्ति हुई है जिसका एक अर्थ होता है -

हिस्टीरिया ब्रेन केमिस्ट्री के झरोखे से ...(ज़ारी ...)

क्या जब हिस्टीरिया का नाम लेना गुनाह हो गया था हिस्टीरिया नदारद था एक रोग के रूप में ?कुछ डॉ कहतें हैं हिस्टीरिया कहीं नहीं गया था यहीं कहीं था ,बिना रोग निदान के .सिडनी (ऑस्ट्रेलिया )के वेस्ट -माड स्थित चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल ,के मनो रोगों के माहिर कसिया कोज्लो -व्सका ने हिस्टीरिया के २००५ के पुनर -आकलन में "दी हारवर्ड रिव्यू ऑफ़ साइकियेट्री" में एक ई -मेल में लिखा :जो लोग कहतें हैं अब हिस्टीरिया का कोई नामो निशाँ नहीं है वे तर्शरी अस्पतालों में आके देखें यहाँ काम करें उन्हें हिस्टीरिया के अनेक मरीज़ मिल जायेंगें .
बेशक इसका नाम बदल दिया गया -१९८० में अमरीकी मनो रोग संस्था ने "डी एस एम् -३ "के प्रकाशन में इसे "हिस्तेरिकल न्युरोसिस ,कन्वर्शन टाइप "की जगह रोग निदान के नज़रिए से :कन्वर्शन "डिस -ऑर्डर "कहना शुरू कर दिया था ।
इस पर आश्वश्त होते हुए डॉ .विलियम ई .नर्रो ने कहा ;चलो अच्छा हुआ इस शब्द से छुटकारा मिला जो औरतों के लिए अवमानना और आलोचना का सबब बना हुआ था .आप अमरीकी मनोरोग संस्था के शोध प्रभाग के सहायक निदेशक रहें हैं ।
कुछ मान्य पर्यायवाची शब्द हिस्टीरिया के लिए इस दरमियान अन -औपचारिक तौर पर प्रयुक्त किये गए -"फंक्शनल ,नॉन -ओरगेनिक ,साइको -जेनिक ,मेडिकली अन -एक्स -प्लैंड "आदि ।
"मेडिकली अन -एक्स -प्लैंड "तथा" फंक्शनल "का दायरा बहुत बड़ा रहा है जिसमे डिस्ट्रेस का एक बड़ा इलाका आजाता है ,कन्वर्शन डिस -ऑर्डर के अलावा और इसके साथ -साथ ., ४० % मरीज़ ऐसे ही होतें हैं जिनके लक्षणों की ठीक से व्याख्या ही नहीं हो पाती है ।
क्लिनि -शियन अदबदाकर मरीज़ के गुस्से से बचने के लिए उनके एक दम से अशक्त बना देने वाले सीज़र्स को जो वास्तव में हिस्तेरिक मूल के होतें हैं "हिस्तेरिक सीश्जर्स न बतलाकर "गोल मोल ब्लांदरशब्दावली" का स्तेमाल करतें हैं .
नामकरण की इसी बदलती धुंध के बीच लोग इस इलनेस से घिरे रहें हैं .लक्षण भी रोग के बदले नहीं हैं ।
कन्वर्शन डिस -ऑर्डर के वर्गीकरण को लेकर भी तथा रोग निदान के क्राइटेरिया को लेकर भी काया चिकित्सक एक राय नहीं है .रोग के बुनियादी लक्षणों ,कारणों ,एक समूह में इसके पाए जाने ,रोग निदानिक कारणों को लेकर भी खासी धुंध व्याप्त रही है .फिर भी एक अनुमान के अनुसार पश्चिम के अस्पतालों में १-४%रोग निदान के सभी मामलों में से कन्वर्शन डिस -ऑर्डर के ही हैं ।
अलावा इसके -पेशेंट्स हेव हेट्रोजिनियास (विषम लक्षण देखने को मिलतें हैं मरीजों में किसी में कुछ किसी कुछ और )सिम्टम्स देट अफेक्ट एनी नंबर ऑफ़ वोलंटरी ,सेंसरी ऑर मोटर फंक्शन्स ,लाइक-ब्लाइंड -नेस ,पेरेलिसिस ऑर सीज़र्स ।
(ज़ारी ...).

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

इज हिस्टीरिया रीअल ?ब्रेन इमेज़िज़ से यस .

इज हिस्टीरिया रीअल ? ब्रेन इमेज़िज़ सेज यस .
हिस्टीरिया इज ए ४,०००-इयर ओल्ड डायग्नोसिस देट हेज़ बीन एप्लाइड टू नो मीन परेड ऑफ़ विचिज़ ,सेंट्स एंड ऑफ़ कोर्स ,अन्ना ओ ।
गत ४ ,००० सालों से काबिज़ है ये रोग और इसका रोग निदान ,सिर्फ भूत प्रेत और संतों ,दुष्टों का मेला, आना जाना नहीं है।
लेकिन सच यह भी है पिछले ५० बरसों में यह शब्द प्रयोग "हिस्टीरिया "कमतर होता चला गया है ।
१९६० के दशक से ही इसकी शुरुआत हो गई थी . जबकि विक्टोरिया युग में हर रोग में ये चला आता था इसके लक्षण फिट हो जाते थे ।
उन्नीसवीं शती की यह एक फ़िज़ूल बेमानी निरर्थक बातलगने लगी थी . केवल साहित्य सम्बन्धी विश्लेषण भर के लिए , इसकी उपयोगिता शेष रह गई थी .समसामयिक विज्ञान की सरहदों से इसे देश निकाला दे दिया गया था .विज्ञान के दायरे के लिए यह एक बे -मानी शब्द रह गया था ।
इसे औरतों की हेटी करने वाला उनकी सेक्स ओब्जेक्ट के रूप में साख को गिराने वाला एक गंदा लफ्ज़ माना जाने लगा ,फ्रायड की दिमागी खपत भी जिसने इसे सिद्धान्तिक जामा पहनाया था .
मोर देन वन डॉ .हेज़ काल्ड इट "दी डायग्नोसिस देट डे-यर नोट स्पीक इट्स नेम ".
अब तक दिमागी साइंस और साइंसदानों ने भी ,ब्रेन साइंस ,ब्रेन केमिस्ट्री ने भीहिस्टीरिया के रोग निदान को भी कोई तवज्जो नहीं दी थी .सच बात तो यह थी इधर ध्यान ही नहीं दिया गया ।
बीसवीं शती के तकरीबन पूरे दौर में इस रोग के स्नायुविक रोग वैज्ञानिक (न्युरोलोजिकल बेसिस ) आधार का अन्वेषण ही नहीं किया गया .अवहेलना की गई इसकी ।
दिमागी रोग निदानिक सहूलियतों ,डायग्नोस्टिक टूल्स के आने के साथ ही इस स्थिति में कुछ फर्क दिखलाई दिया है .बेशक अब दिमाग की कार्य प्रणाली को देखा परखा जा सकता है ,कौन सा हिस्सा क्या कर रहा है इसकी इमेजिंग की जासकती है .अब हालात बदलने लगें हैं हिस्टीरिया के प्रति नज़रिया भी ।
अब दिमागी गतिविधियों में आने वाले बदलावों की टोह लेने के लिए "फंक्शनल न्यूरो -इमेजिंग टेक्नोलोजीज (सिंगिल फोटोन एमिशन कप्यूट -राइज्द टोमो -ग्रेफ़ी यानी एस.पी. ई. सी .टी .स्पेक्ट तथा पोज़ी -ट्रोंन एमिशन टोमो -ग्रेफ़ी या पी ई टी यानी पेट )के आने से साइंसदान दिमाग में होने वाले सक्रिय बदलावों को लगातार मोनिटर करतें हैं .
बेशक उस ब्रेन मिकेनिज्म को अभी भी समझना बाकी है जो हिस्टीरिया जैसी बीमारी की ठीक ठीक वजह बनती है लेकिन अब कायिक साक्षी हाथ आने की उम्मीद पैदा हुई है उस रोग के बारे में जो सदियों से रहस्य के परदे में रहा है तथा जो न्यूट्रिनो की तरह होली ग्रेल ऑफ़ मेडिसन ही रहा है ,वजहें जिसकी बूझी नहीं जा सकीं हैं .नए अध्ययन भौतिक प्रमाण जुटा रहें हैं ."न्यू स्टडीज़ हेव स्टार्तिद टू ब्रिंग दी माइंड बेक इनटू दी बॉडी ."
(ज़ारी ...).

हिस्टीरिया (ज़ारी...).

आधुनिक मनोरोग विज्ञान की शब्दावली अब उन दोनों मानसिक विकारों में भी फर्क कर रही है जिन्हें हिस्टीरिया के तहत "हिस्टीरिया ":सोमाटो -फॉर्म एंड डिसो -शियेटिव कह दिया गया था ।
डिसो -शियेतिव दिस -ऑर्डर्स के अंतर गत अब आतें हैं :
(१)डिसो -शियेटिव एम्निज़िया ।
(२)डिसो -शियेटिव फुगुए ।
(३)डिसो -शियेटिव आई -डें -टीटी डिस -ऑर्डर ।
(४)डि -पर्सोनेलाइज़ेशन डिस -ऑर्डर .
(५)डिसो -शियेटिव डिस -ऑर्डर नोट अदर -वाइज़- स्पेसिफाइड।
जबकि सोमाटो -फॉर्म डिस -ऑर्डर के तहत रखा गया है :
(१)कन- वर्शन डिस -ऑर्डर ।
(२)सोमातिज़ेशन डिस -ऑर्डर को ।
(३)पैन डिस -ऑर्डर ।
(४)हाइपो -कों -ड्री -या -सिस .(रोग भ्रमी होने का लक्षण /गुणधर्म )।
(५)बॉडी डिस -मोर्फिक डिस -ऑर्डर ।
हम अपने ब्लॉग पर इनमे से कई विकारों की विस्तार से अलग से चर्चा कर चुकें हैं .खोजबीन आप कर देखें ।
होता क्या है "सोमाटो -फॉर्म डिस -ऑर्डर्स में "?
मरीज़ इन विकारों में कायिक लक्षणों यथा कमर के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत करता है .लगता यूं भी है उसके हाथ -पैरों को लकवा (फालिज ,पेरेलिसिस )मार गया है .लेकिन इन लक्षणों का कोई भी स्पष्ट कारण मौजूद नहीं रहता है .(मसलन लकवा है लेकिन पेशियों में जान है यह परीक्षण से पुष्ट हो जाएगा )।
फिल्म "वोमेन ऑन दी वर्ज ऑफ़ ए नर्वस ब्रेकडाउन "में एक ऐसी मनोरोग सम्बन्धी फिनोमिना का दिग्दर्शन करवाया गया है जिसकी परिधि में सोमाटो -फॉर्म तथा डिसो -शियेटिव सिम्टम्स आ ज़रूर जातें हैं लेकिन इनका सम्बन्ध अतीत के मनोवैज्ञानिक सदमों से रहता है .ऐसे हादसे जो अन -रिज़ोल्व्द चले आये अव -चेतन की परतों में बने रहें कहीं गहरे दफन हुए ।
हालिया "न्यूरो -साइंटिफिक रिसर्च "क्या कहती है हिस्टीरिया के बाबत ?"।
हिस्त्रेइक एक्तिवितिज़ से जुड़े ख़ास पैट्रन इधर असरग्रस्त रोगियों के दिमाग का अध्ययन करने पर दिखलाई दिए हैं .
"दे -यर आर करेक्टर- स्टिक पैट्रंस ऑफ़ ब्रेन एक्टि -विटी असो -शियेतिद विद दीज़ स्टेट्स .आल दीज़ डिस -ऑर्डर्स आर थोट टू बी अन -कोंशश,नोट फेएंड,प्री -टेंदिद ऑर इन -टेंश्नल मालिन्गेरिंग.".यानी अचेतन में है जो कुछ भी है या हो सकता है मरीज़ द्वारा की गई कलाकारी ,ड्रामे -बाज़ी ,बहाने -बाज़ी नहीं है .
मॉस हिस्टीरिया भी होता है कई मर्तबा जैसे विश्वनाथ प्रताप सिंह -जी के दौर में "मंडल आरक्षण आन्दोलन "के दरमियान हुआ थाएक के बाद एक युवा आत्म ह्त्या करने लगे थे . ,एक बार गणेशजी ही दूध पीने लगे थे ,दुनिया बावली हो उठी थी ।
बेशक जापान की हालिया सुनामी के समय ऐसा नहीं हुआ (हो सकता था )क्योंकि पब्लिक में "नीयर पेनिक रिएक्शन "तो था ही .न्यूज़ आइटम्स ,पब्लिक - वेव ,यु ऍफ़ ओज ,पोपुलर मेडिकल प्रोब्लम्स (प्लेग ,फ़ूड पोइजनिंग ऑन ए मॉस स्केल ),एचाईवी एड्स इन्फेक्तिद गेंग ऑन दी रन ,ब्लेड गेंग हर्टिंग यंग वोमेन आल कैन क्रियेट मॉस हिस्टीरिया .विस्तृत चर्चा फिर कभी .
(ज़ारी...).

हिस्टीरिया (ज़ारी...).

हिस्टीरिया के बारे में जो साइंसदान अब तक जान चुके हैं उससे ज्यादा बड़ा सच वह है जो वह अभी जान नहीं सकें हैं इस मनोवाज्ञानिक (?)रोग के बारे में जिसके कायिक लक्षण तो होतें हैं कायिक रोग नहीं ,तब क्या यह अन -सुलझे ,अ -विभेदित रहे आये अतीत का तमाशा मात्र है ?
जो हो इस विचार को कि हिस्टीरिया एक मनो -वैज्ञानिक विकार है एक फ्रांसीसीन्यूरोलोजिस्ट जें -मार्टिन चरकात के काम ने आगे बढाया है .अपने जीवन के आखिरी दस साल इस स्नायु -रोग -विज्ञानी ने हिस्टीरिया के न्यूरो -पैथोलोजिकल अन्वेषण में बिताए.एक प्रकार से आपने ही हिस्टीरिया के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए आगे के लिए ज़मीन तैयार की .पुनर्वास किया इस रोग का वैज्ञानिक अध्ययन के एक विषय के रूप में .सिगमंड फ्रायड ने इनकी मृत्यु का आलेख लिखते वक्त इनके जीवन वृत्त के बारे में इस योगदान विशेष उल्लेख किया ।
लेकिन फ्रायड चरकात के इस विचार से सहमत नहीं थे ,आनुवंशिक कारण ,खानदानी विरासतही इस रोग की एक विशिष्ठ वजह बनती है .
लेकिन फ्रायड ने चरकात की सम्मोहन विद्या की भूरी भूरी प्रशंशा की जिसमे इस स्नायु विज्ञानी ने यह दिखलाया कि किस प्रकार मनो -वैज्ञानिक कारण ,नॉन -ओरगेनिक ट्रौमाज़"हिस्तेरिकल पेरेलिसिस "की वजह बनतें हैं .हिप्नोसिस (सम्मोहन विद्या )से चार्कोट ने इसे सिम्युलेट करके दिखलादिया ।
अब आधुनिक स्नायु -विज्ञान भी मानता है कहीं हायर इन दी ब्रेन कुछ होता है जो इस "हिस्तेरिकल पेरेलिसिस "की वजह बनता है .हालाकि वह फिजिकल और नॉन -फिजिकल माइंड में विभेद नहीं करता है .ए माइंड इज जस्ट माइंड ।
फ्रायड के अनुसार बाद के अन्वेषकों ने (पिएर्रे जनेत तथा जोसेफ ब्रयूएर )नेहिस्टीरिया के बारे में जिन नए मतों का प्रतिपादन किया वे मध्य -युगीन "खंडित चेतना :स्प्लिट कोंशाशनेस के ज्यादा करीब आजातें हैं .अंतर बस इतना है पुरानी अवधारणा में मरीज़ के ऊपर "डेमोनिक प्ज़ेशंस"भूत प्रेत बाधा के असर जैसे गैर वैज्ञानिक विचारों को तरजीह मिल रही थी और अब मनोवैज्ञानिक परिकल्पनाएं और अवधारणायें उनका स्थान लेने लगीं थीं ।
१८९० के दशक में खुद फ्रायड ने हिस्टीरिया पर अनेक लेख लिखे जिनके द्वारा आपने चरकात के शुरूआती काम को ही लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया .अपने विचारों को भी फ्रायडने एक नै परवाज़ दी हिस्टीरिया के बारे में ।
१९२० के दशक के बरसों में फ्रायड का सिद्धांत ब्रिटेन और अमरीका में खासा लोकप्रिय हुआ ।
फ्रायड ने जिस साइको -एनेलेतिक स्कूल ऑफ़ साइकोलोजी के ज़रिये हिस्टीरिया का समाधान प्रस्तुत किया वह खासा विवादित रहा ।
फ्रायड की साइको -एनेलेतिक थियरी के अनुसार मरीज़ में "हिस्तेरिकल सिम्टम्स"उसके अवचेतन मष्तिष्क से चले आतें हैं जो मरीज़ को साइकिक स्ट्रेस से बचाने का एक तरीका बनके आतें हैं (डिफेन्स मिकेनिज्म )।
साइकिक स्ट्रेस :चित्त के वे दवाब जिनका सम्बन्ध परा -शक्तियों से भी हो सकता है जो विज्ञान के दायरे से बाहर रहतें हैं मन के ऐसे कार्य -व्यापार ,दवाब आदि .साइकिक स्ट्रेस के तहत आयेंगें
"सब -कोंशाश मोतिव्ज़ इन्क्ल्युद प्रा -इमारी गैन ,इन व्हिच दी हिस्तेरिक सिम्टम्स रिलीव्ज़ दी स्ट्रेस एंड सेकेंडरी गैन इन व्हिच दी सिम्टम्स प्रोवाइड एन इन्दिपेन्देन्त एडवांटेज ऑफ़ स्टे -इंग होम फ्रॉम एन हेटिद जॉब .
सम क्रिटिक्स हेव नोतिद दी पोसिबिलिती ऑफ़ ए तर्शरी गैन व्हेन ए पेशेंट इज इन -दयुज्द सब -कानशश्ली टू डिस्प्ले ए सिम्तम बिकाओज़ ऑफ़ दी दिजायार्स ऑफ़ अदर्स .यानी जिनकी तवज्जो नहीं मिलती उनसे वह हासिल कर लेना हिस्टीरिया के लक्षणों की आड़ में ।"।
"दे -यर नीड बी नो गैन एट आल हाव -एवर इन ए हिस्तेरिकल सिम्तम "।
मसलन एक बच्चा होकी खेलते खेलते गिर सकता है .घंटों वह नहीं उठ पाता है क्योंकि उसने हाल ही में एक नाम चीन खिलाड़ी को होकी खेलते गिरते देखा था जिसकी गर्दन ही टूट गई थी ,और वह उठ नासका था .
(ज़ारी...)

हिस्टीरिया :इतिहास के झरोखे से .

हिस्टीरिया इतिहास के झरोखे से :
पश्चिमी जगत में १७वी शती तक हिस्टीरिया को इक ऐसी मेडिकल कंडीशन से जोडके देखा जाता था जिसका सम्बन्ध औरतों से है तथा महिलाओं के गर्भाशय में होने वाले विक्षोभ (डिस्टर्बेंस )से ,विकारों से इसका नाता है । ग्रीक भाषा में हिस्टेरा का मतलब ही यूट्रस है ।
इस शब्द प्रयोग का श्रेय हिप्पोक्रेट्स को ही दिया जाता है हालाकि हिप्पोक्रेट्स के आलेखों में यह शब्द प्रयोग नहीं मिलता है ।
बेशक हिप्पोक्रेटिक कोर्पस में सफोकेशन तथा हेराक्लेस डिजीज का ज़िक्र है जिसके होने की वजह औरत के शरीर में यूट्रस के भ्रमण को ही बतलाया गया है ,समझा जाता था , यह कुछ बोडिली- फ्लुइड्स के कम होजाने पर हल्का और सूख जाता है और इसीलिए शरीर में इक जगह से दूसरी जगह जाने घूमने लगता है ।
गर्भ धारण करने को इसके समाधान के रूप में प्रस्तुत किया गया है हिप्पोक्रेट्स के आलेखों में .अनुमान यह रहा है इस धारणा के पीछे ,मैथुन क्रिया गर्भाशय को आद्रता प्रदान करती है तथा रक्त प्रवाह को द्रुत कर देती है .सर्क्युलेशन में सुधार लाती है ।
१८५० के आने तक हिस्टीरिया का ज़िक्र(खासकर फिमेल हिस्टीरिया का चर्चा ) सेक्स्युअल डिस -फंक्शन के रूप में किया जाने लगा .
समाधान बतलाया गया -काय -चिकित्सक (फिजिशियन द्वारा )द्वारा असर ग्रस्त महिला के प्रजनन अंगों का मसाज (स्तिम्युलेशन)।
बाद में यही काम वाटर -स्प्रेज़ और वाइब्रे -टार्स से किया जाने लगा ।
(ज़ारी ...).

डिसो -शियेतिव डिस -ऑर्डर ?

इट इज एनी वन ऑफ़ ए ग्रुप ऑफ़ मेंटल डिस -ऑर्डर्स एक्स -प्लेंड साइको -एना -लिटी -कलि एज एक्सट्रीम डिफेन्स मिकेनिज्म्स .यानी मानसिक विकारों के समूह में से एक ऐसा मानसिक विकार है डिसो -शियेटिव डिस -ऑर्डर जिसकी व्याख्या के लिए मनो -विश्लेषण का सहारा लिया जाता है ताकि उन परले दर्जे की एक दम से दूर बचावी रणनीतियों के दिखावे (एक्स ट्रीम डिफेन्स मिकेनिज्म्ज़ )को समझा जा सके जिनका असर ग्रस्त व्यक्ति सहारा लेता है .मसलन ऐसे लक्षणों का दिखलाई देना जिनकी काया रोग से व्याख्या न की जा सके ।
ऐसे ही लक्षणों में शामिल हो सकतें हैं -
(१)अपने ही बारे में बहुत ख़ास निजी बातों को भूल जाना (एम्नेज़िया )।
(२)अपने आप को कोई और शख्श समझ घर से बाहर घूमते रहना ।
(३)ट्रांस -लाइक स्टेट्स विद सिवीयारली रिड -यूस्ड रेस्पोंस टू एक्सटर्नल स्तिम्युली ।
अंडर इंटर -नेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ़ डि -जीज़िज़ -१० (आई सी डी -१० ) कन्वर्शन डिस -ऑर्डर इज क्लासिफाइड विद डिसो -शियेटिव डिस -ऑर्डर्स एज डिसो -शियेटिव कन्वर्शन डिस -ऑर्डर्स ।
(ज़ारी...).

कन्वर्शन डिस -ऑर्डर ?

कन्वर्शन डिस -ऑर्डर ?
कन्वर्शन डिस -ऑर्डर एक मनोवैज्ञानिक कशमकश है एक कोंफ्लिक्ट है ,ज़रुरत है जो एक ओरगेनिक डिस -फंक्शन (आंगिक अक्षमता /विकार ) या कायिक लक्षण के रूप में प्रकट होता है .
असर ग्रस्त व्यक्ति अंधत्व के लक्षणों का प्रदर्शन भी कर सकता है ,बहरेपन का भी ,इन्द्रिय बोध से च्युत हो जाने का भी (लोस ऑफ़ सेंसेशन का ),गैट-एब -नोर्मेलिती (ठवन /चाल में अ-सामान्यता ),कई अंगों की अपंगता का भी ।
बेशक ओरगेनिक डिजीज से इन सबकी व्याख्या नहीं की जा सकती .
इसे ही शुरुआत में हिस्टीरिया कहा जाता था ।
इंटर -नेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ़ डि -जीज़िज़ के तहत इसे "डिसो -शियेटिव डिस -ऑर्डर्स "में रखा गया है .जहां इसे डिसो -शियेटिव कन्वर्शन डिस -ऑर्डर्स में गिना गया है ।
इसे सोमाटो -फॉर्म डिस -ऑर्डर्स में भी जगह दी गई है .
(ज़ारी...)

सोमाटी -जेशन डिस -ऑर्डर ?

यह एक प्रकार का मनोविकार है -जिसके कायिक लक्षण अनेक हैं लेकिन ऐसे कायिक विकार मौजूद नहीं रहतें हैं जो इन कायिक लक्षणों की व्याख्या कर सकें .यानी काय (काया )विकारों के बिना ही रोगी काया से सम्बन्धी लक्षणों की शिकायत करता है .
यह एक देर तक बने रहने(दीर्घावधि रहने वाला ) वाला विकार है तथा साथ में अवसाद(डिप्रेशन ) और एन्ग्जायती भी लाता है ।इससे निजी और पारिवारिक रिश्ते तो टूटते विच्छिन्न होते बिखरतें ही हैं निर- अर्थक बिना बात के ही चिकित्सा और शल्यभी होता है .
अलबत्ता कई मर्तबा इसके इलाज़ के लिए -
(१)कोगनिटिव बिहेवियर थिरेपी (बोध सम्बन्धी या संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा )।
(२)मनो -वैज्ञानिक चिकित्सा (सलाह मशबिरा क्लिनिकल मनो -विज्ञानी द्वारा रोगी के साथ सलाह मशबिरा )यानी साइको -थिरेपी भी आजमाई जाती है .
(३)या फिर अवसाद -रोधी दवाएं भी आजमाई जातीं हैं सोमाटी -जेशन के इलाज़ और प्रबंधन के लिए .
(ज़ारी...).

किस चिड़िया का नाम है "हिस्टीरिया "?

हिस्टीरिया :आम बोल चाल की भाषा में ,अन-औपचारिक बातचीत में ही बस ,अब हिस्टीरिया उन अतिरिक्त संवेगों के लिए प्रयुक्त होता है जो बे -काबू हो जातें हैं (अन -मेनेजिबिल -इमोशनल एक्सेसिज़ )।
जो लोग हिस्टेरिकल हो जातें हैं उनका खुद पर से ही नियंत्रण हट जाता है .उनके ऊपर बेहद का डर बरपा हो जाता है जो अतीत की उन अनेक घटनाओं से जिनके मूल में कोई गंभीर विरोधाभास रहा हो ,कोंफ्लिक्ट रहा हो ,अ -निर्णीत रही आई हो ये विचारों की ज़द्दोज़हद ,रस्साकशी .
ये भय शरीर के किसीएक हिस्से पर भी केन्द्रित हो सकता है ,उस हिस्से से ताल्लुक रखने वाले किसी कल्पित रोग से (काल्पनिक समस्या से उस अंग की )।भी .
आम शिकायतकाल्पनिक बीमारी की ही रहती है -वैसे यह बॉडी डिस -मोर्फिक डिस-ऑर्डर जैसा भ्रम भी हो सकता है जिसकी अति होजाती है ,मरीज़ यही सोचता रहता है उसके नैन नक्श ठीक नहीं हैं ,इस विकार में ।
रोग भ्रमी भी हो सकता है ऐसा व्यक्ति जिसे हाइपो -कोंद्रीयाक कह दिया जाता है ।
कह देतें हैं न बेकार का हिस्टीरिया पाले रखा है अमुक व्यक्ति ने ।
इसीलिए आधुनिक चिकित्सा अब एक रोग निदान के तहत आने वाले रोग के रूप में हिस्टीरिया का कोई ज़िक्र ही नहीं करती है .
अलबत्ता हिस्टीरिया का स्थानापन्न अब एक काया -विकार बन गया है जिसे -"सोमातिज़ेशन डिस -ऑर्डर "कह दिया जाता है ।
१९८० में अमरीकी मनो -रोग संघ ने औपचारिक तौर पर "हिस्टेरिकल न्युरोसिस ,कन्वर्शन टाइप"के रोग निदान (डायग्नोसिस )को "कन्वर्शन डिस -ऑर्डर "के बतौर डायग्नोज़ करना शुरू कर दिया था ।
(ज़ारी...).

रविवार, 24 अप्रैल 2011

हिस्टीरिया (ज़ारी...).

गत पोस्ट से आगे .......गत पोस्ट में ग्रस्त को "फ्रास्ट "लिखा गया ,तथा महारथ को "काहरत",कई मर्तबा एडिटिंग अनजाने ही छूट जाती है ,लेखन में उत्तेजना आने की वजह से होता है यह सब .खेद व्यक्त करता हूँ -वीरुभाई ।
बीसवीं शती :
बीसवीं -शती के आने के बाद हिस्टीरिया के डायग्नोज़ड मामलों में कमी आती चली गई ,आज इसे इक मान्यता प्राप्त रोग का दर्जा भी हासिल नहीं है ।
शायद इसकी एक वजह आम आदमी की समझ बूझ में "कन्वर्शन डिस -ऑर्डर्स" का आना है ,इसके मनो वैज्ञानिक पहलू से लोग वाकिफ होने लगें हैं .ध्यान रहे -हिस्टीरिया को अब एक "कन्वर्शन -डिस -ऑर्डर्स "में से एक विकार ही माना जाता है .
डायग्नोज़ करने के लिए उपकरण भी अब बे -तरह उपलब्ध हैं जो हिस्टीरिया (कन्वर्शन डिस -ऑर्डर )को एपिलेप्सी से अलग कर देतें हैं ।
ईईसी (इलेक्ट्रो -एनसी -फेलो -ग्रेफ़ी ,दिमागी बिजली का आरेख ,आकस्मिक विद्युत् -विसर्जन का रिकार्ड ,एनसी -फेलो -ग्राम ) ने इस भ्रम को हटाया है .भाई साहिब मिर्गी का दौरा ,हिस्टीरिया ,एपिलेप्सी (अपस्मार )सब अलग अलग हैं ,उनकी चर्चा आगे के आलेखों ,पोस्टों में की जायेगी )।
सिगमंड फ्रायड ने हिस्टीरिया के अनेक भ्रमित करने वाले प्रकट रूपों को अपने पुनर -वर्गीकरण में -एन्ग्जायती -न्यू -रोसिस ही कहा है हिस्टीरिया नहीं ।
बेशक आज भी हिस्टीरिया बह -रुपिये की तरह दूसरे मनो -रोगों के प्रकट लक्षण के रूप में हाज़िर हो सकता है -शिजो-फ्रेनिया में ,कन्वर्शन डिस -ऑर्डर में ,एन्ग्जायती अटेक्स में .
कई मनो -रोग -चिकित्सक (मैं इन्हें और ऐसों को मनोरोगिये बोलता समझता हूँ ) हिस्टीरिया बतला कर मनो -रोगी को आते ही बिजली लगा देतें हैं (इलेक्ट्रो -कन्वल्शन -थिरेपी ,बिजली के हलके झटके ,माइक्रो -लेविल करेम्ट्स लगातें हैं दिमाग में इलेक्ट्रोड लगाकर ,बिना एनस-थीज़िया दिए ,जबकि मोडी -फाइड-ई सी टी ही इस दौर में दिया जाता है ,मान्य है .).अच्छे पैसे बनतें हैं इनके ,आज भी लोग "कन्वर्शन -डिस -ऑर्डर "को दैवीय प्रकोप /ओपरा /ऊपर की हवा /भूत -भूतनी का मरीज़ के सिर चढ़ के बोलना ,दैवी का आना और पता नहीं क्या क्या बोलेतें हैं , जबकि यह एक मेडिकल कंडीशन हैं जिसका बा -कायदा इलाज़ होना चाहिए ।
(ज़ारी ...)

विक्टोरिया युग में हिस्टीरिया .

१८५९ में एक काया चिकित्सक ने ज़ोरदेकर कहा-"एक चौथाई औरतें हिस्टीरिया से फ्राट्स रहतीं हैं "।
एक काय चिकित्सक ने ७५ पन्नों में इस रोग के लक्षणों के बारे में विस्तार से लिखा ,फिर भी कहा अभी सूची अधूरी है .लक्षण अभी और भी हैं इस रोग के जो गिनती में नहीं आयें हैं .हालत ये थी इन लक्षणों में उस दौर के बाकी सभी रोगों के लक्षणों का समावेश था .काय चिकित्सकों की उस दौर की सोच के अनुसार -आधुनिक जीवन के तमाम दवाब ,तनाव ने उस दौर की औरत को स्नायु तंत्र के विकारों के प्रति ज्यादा ससेप्तिबिल (रोग प्रवण)ही नहीं बना दिया था ,प्रजनन ट्रेक्ट के भी विकारग्रस्त विकास के मौके पैदा कर दिए थे ।
अमरीका में भी नर्वस सिस्टम के इन विकारों से औरतों को योरोपी औरतों की तरह ग्रस्त होते देख उस वक्त के एक नामचीन काय चिकित्सक ने ख़ुशी ज़ाहिर की थी -चलो हम योरोप से टक्कर ले रहें हैं हिस्टीरिया के मामलें में ,डॉ तो यही चाहतें हैं लोग बीमार रहें ,उनका धंधा चलता रहे ,यही इस सोच के पीछे चलने वाला विचार था ।
क्योंकि इस बीमारी से मौत का तो कोई ख़तरा नहीं था लेकिन इलाज़ लगातार और लंबा चलता था .बेशक वेजिनल मसाज (योनी की उंगलियों से योनी की मालिश )का घंटों का काम उन्हें गैर -दिलचस्प ही नहीं मुश्किल भी लगता था .इसे ही पेल्विक मसाज कह दिया जाता था (यही काम आज वाइब्रेटर वफादारी के साथ करता है ).क्योंकि "हिस्तेरिकल पेरोक्सिसिज्म "में ओर्गेज्म तक महिला को ले जाने के लिए उन्हें बाकायदा प्रशिक्षण की ज़रुरत पडती थीं .मिड -वाइव्ज़ के पास मरीजा को भेजने का मतलब अपनी कमाई से हाथ धोना था ,जो अकसर इस काम में काहारत हासिल किये रहतीं थीं ।
वाइब्रेटर ने आकर इस काम को आसान बना या घंटों का काम चंद मिनिटों में निपटने लगा ।
उन्नीसवी शती के आते ही ,हाई -ड्रो -थिरेपी तरकीबों का स्तेमाल नहाते वक्त किया जाने लगा .हाई -प्रो-फ़ाइल बेडिंग रिज़ोर्ट्स में अमरीका और ब्रिटेन में यह एक मुख्य आकर्षण बनने लगा ।
१८७० में बाकायदा वाई -ब्रेटर आगया काय- चिकित्सक का सहायक बनके .१८७३ में फ्रांस के एक असाइलम में हिस्टीरिया के इलाज़ में पहली मर्तबा "इलेक्ट्रो -मिकेनिकल -वाई -ब्रेटर "का स्तेमाल किया गया .यह एक क्लोक वर्क -चालित -वाई -ब्रेटर था ।
पूर्व में स्पेक्युलम का स्तेमाल खासे विवादों के केंद्र में आगया था .बीसवीं शती में "वाई -ब्रेटर "सहज ही उपभोक्ता बाज़ार में जगह बना गया .अब इसका स्तेमाल घर की निजता और एकांत में होने लगा ।
सीयर्स केटालोग ऑफ़ होम इलेक्ट्रिकल एप्लाइयेन्सिज़ में एक उठाऊ (सम्वाहीय ,पोर्टेबिल )वाई -ब्रेटर के बारे में कुछ यूं लिखा गया -"वेरी यूजफुल एंड सेतिस्फेक्तरी फॉर होम सर्विस "-ए पोर्टेबिल वाई -ब्रेटर विद एतेच्मेंट्स।
हिस्टीरिया की दूसरी चिकित्सा में "बेड रेस्ट ",बिना मिर्च मसाले का भोजन (ब्लेंड फ़ूड ),सेक्ल्युज़न(एकांतवास ),दिमागी कामों से परहेज़ (पढ़ना ,लिखना आदि ),सेंसरी डिप -राई -वेशन (ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त सुख से दूर -दूर रहना ,न नैन सुख न ...).
(ज़ारी...).

व्हाट इज "फिमेल हिस्टीरिया "?

व्हाट इज फिमेल हिस्टीरिया ?
मोड्रिन- मेडिसन हिस्टीरिया को एक मेडिकल डिस -ऑर्डर के रूप में स्वीकार नहीं करती है लेकिन एक वक्त था जब इस रोग का निदान अकसर औरतों के मामले में किया जाता था ।
पश्चिमी योरोप में इसका रोग निदान (डायग्नोसिस )और इलाज़ सैंकड़ों सालों तक एक आम बीमारी के रूप में किया जाता रहा ।
विक्टोरिया युग के चिकित्सा साहित्य में इसकी व्यापक चर्चा रही .इसकी गिरिफ्त में जो महिलायें देखी गईं उनमे लक्षण विविधता लिए हुए थे ।
(१)नीम -होश या बे -होशी (फैंट -नेस )।
(२)नर्वसनेस (बे -चैनी ),
(३)अनिद्रा (इन -सोम्निया )।
(४)फ्लुइड रिटेंशन (तरल निरोधन )।
(५)उदर में भारीपन ,पथ्थर सा महसूस होना ।
(६)पेशीय एंठन (मसल स्पाज्म )।
(७)सांस की धौंकनी का जल्दी जल्दी चलना ।
(८)चिड- चिडा -पन ।
(९)भूख प्यास और यौनेच्छा का गायब हो जाना ।
(10)व्यवहार में दुष्टता (ए टेंडेंसी टू काज ट्रबुल)।

प्राचीन काल से ही हिस्टीरिया के समाधान के रूप में हिस्टीरिया से ग्रस्त औरतों को "पेल्विक मसाज "दी जाती थी .(हाथ और उँगलियों से यौनांगों को उत्तेजन प्रदान किया जाता था ,काम शिखर तक पहुंचाया जाता था .(ओर्गेज़म -बाई मैन्युअल स्तिम्युलेशन ऑफ़ जेनितल्स).
प्रारम्भिक इतिहास :
"हिप्पोक्रेटिक कोर्पस" में हिस्टीरिया का बा -कायदा ज़िक्र है . इसे यूट्रस का एक विकार बतलाया गया था .वास्तव में ग्रीक मूल के शब्द "हिस्टेरा"का एक अर्थ ही यूट्रस है -बच्चे दानी ,गर्भाशय ।
दूसरी शती के मशहूर (नामचीन ) काया चिकित्सक (फिजिशियन )गालेंने इसे(हिस्टीरिया को ) सेक्स्युअल डिप -राइवेशन का नतीजा बतलाया .इसे पेश्नेट वोमेन का रोग कहा खासकर वह जिसे सेक्स से महरूम रखा गया हो (एक यौन वर्जना के तहत यौनेच्छा रखने वाली औरतों को ,या औरतों के लिए यौनेच्छा को बुरा समझा जाता था ,यौनेच्छा न रखने को कुलीनता )।
इस दौर में डॉ गालें के मुताबिक़ हिस्टीरिया कुंवारियों में ,नन्सऔर विधवाओं में ,कभी कभार शादी शुदा औरतों में भी आम तौर पर देखने को मिल जाता था ,एक बीमारी का लक्षण बनके .
मध्य काल से लेकर समाधान एक ही सुझाया गया ,मैथुन ।
शादी -शुदा के लिए सलीके से मैथुन -रत होना ,कुंवारियों के लिए विवाह रचाना या फिर पेल्विक मसाज (वाईब्रेटर तो तब था नहीं )जो मिड -वाइफ (दाई/दाइयां करतीं थीं ,बाकायदा मेहनताना मिलता था इस एवज़).
(ज़ारी...).

प्यार या आकर्षण ?-निवेदिताजी की कविता पर एक प्रतिक्रया . .

प्यार या आकर्षण -निवेदिता जी की कविता ने प्रतिक्रिया लिखने को मजबूर किया -टिपण्णी में हिंदी में नहीं कर पाता इसीलिए अपने ब्लॉग पर कर रहा हूँ -



ये प्यार है या आकर्षण .....निवेदिताजी की कविता है ।
उसी पर एक प्रतिक्रया दे रहा हूँ -
प्यार !हाँ प्यार ,बस प्यार ही तो गूंगे के गुड सा है -
कबीर के निर्गुनिया ब्रह्म सा है -
जो भी है -एक एहसास का अतिक्रमण करता इन्वोलंतरी एक्शन सा है प्यार -
साँसों की एक ऐसी धौंकनी सा जिसकी सांस कोई भी अपनी नहीं ,
दिल की लुब डूब साउंड सा प्यार ही तो है वो -
जब खून आशिक का और हीमोग्लोबिन माशूक सा -
और लस्ट एग स्क्र्मबल्ड सा -
फोड़े जा चुके अंधे के खोल सा -
आकर्षण पल्लवित हो सकता है -
बूढ़े बरगद सा जिसकी शाखाएं ,प्रशाखाएं फिर से एक और पेड़ बनने लगतीं हैं ।
पर प्रेम तो हो .

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

डॉ .के नुश्खें में आर एक्स का मतलब क्या है ?

आर एक्स का मतलब होता है -इन दी नेम ऑफ़ गोड यानी डॉ .कहता है "मैं यह नुश्खा लिखता हूँ ठीक परमात्मा करता है "-आई ट्रीट ही क्युओर्स ।
कई रोग वहमी भी डॉ के पास आ जातें है -इन्हें रोग तो कोई होता नहीं है अलबत्ता रोग का वहम छटे छमासे बना रहता है -डॉ इन्हें खाली हाथ नहीं भेजता -"प्लेसिबो" लिख देता है यानी दवा नहीं होती है वह न्यूट्रल साल्ट होता है ,आम भाषा में कहें तो -डॉ मीठी गोली दे देता है -व्यंग्य विनोद में कह सकतें हैं -गोली दे देता है ।
एक बात और लिखी जाती है नुश्खे पर -किसी भी दवा के आगे -
"एस ओ एस "इसका मतलब है जब ज़रूरी हो मसलन एनाल्जेसिक दवा है ,तो सिर्फ तब तब लें जब दर्द हो ,अन्यथा नहीं .एज ओफतिन -टाइम्स एज रिक्वायर्ड .

डॉ .का नुश्खा क्या कहता है ?

डॉ .का नुश्खा क्या कहता है ?
सबसे पहले नुश्खे (प्रिस्क्रिप्शन )पर बीमारी का नाम लिखा जाता है जिसे कहतें हैं डायग्नोसिस यानी रोग निदान इसके लिए अकसर डॉ एक संकेत "ट्रा -इ -एंगिल "का बनाता है उसके आगे रोग का नाम लिखा जाता है ।
मसलन :सी ए डी यानी -कोरोनरी आर्टरी डिजीज विद हाई -पर -टेन -शन।
इसके नीचे दवाओं के नाम लिखे जातें हैं इन अनुदेशों के साथ ,उन्हेंकैसे और कब कितनी बार लेना है ।
मसलन :
१.इकोस्पिरिन -१५० एमजी १ ओ डी (ओडीका मतलब वंस ए दे यानी रोजाना एक गोली )

२.मेट्रोप्रोल लोल -25 mg . 1bd (वन टेबलेट बीडी का मतलब है एक गोली सुबह एक शाम )
३.अटोर्वा -स्टेटिन1० मिलिग्रेम १ एच एस (यानी एक गोली आवर ऑफ़ स्लीप सोते वक्त )।
इसीप्रकार 1 "टी डी एस "का अर्थ होता है दिन में तीन बार,ek ek goli subh ,dopahar aur shaam . तथा १ई डी का अर्थ होता है एक दिन छोड़ के एक दिन यानी हर तीसरे दिन .

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

पार्किन्संज़ डिजीज :परिभाषा

पार्किन्संज़ रोग एक वक्त के साथ और खराब रुख धरता बद से बदतर होते चले जाने वाला रोग है .यह हमारे नर्वस सिस्टम से ताल्लुक रखने वाला एक विकार है जिसका सम्बन्ध मूवमेंट से है अंग संचालन से है .हिलने डुलने ,गति से है ।
आहिस्ता आहिस्ता ही इसकी शुरुआत होती है नाम मात्र के एक ही हाथ के कम्पन से (अकसर ,वैसे यह कोई नियम भी नहीं है सभी मामलों में ऐसा ही हो शुरुआत ऐसे होई हो ).जहां ट्रेमर इस रोग का खासा जाना पहचाना लक्षण हो सकता है वहीँ यह विकार या तो गति को घटा देता है हमारी या एक दम से जड़ कर देता है .कुर्सी पर बैठा मरीज़ उठने की पहल नहीं कर सकता . गर खडा हो गया तो पहला कदम आगे बढाने मूवमेंट को इनिशिएट करने में खासी दिक्कत महसूस करेगा .कदम घसीट कर छोटे छोटे ही वह आगे बढ़ सकता है धीरे धीरे .अकसर किसी के सहारे की ज़रुरत भी पड़ जायेगी ऐसा करने में भी ।
सबसे पहले मरीज़ के यार दोस्तों परिवार के सदस्यों को यह इल्म होता है कि उसका चेहरा एक मुखौटे की तरह निर -भाव ,सपाट भाव शून्य ,एनिमेटिड फेस सा होने लगा है ,हाथ भी नहीं हिलते डोलते हैं चलते समय ,कोई दोलन ओस्सिलेशन नहीं टू एंड फ्रो मोशन नहीं होता चलते हुए .(राज कपूर साहिब अपना किरदार निभाते हुए कई फिल्मो में ऐसे ही चलते थे सायास लेकिन चेहरे पे गज़बकी मासूमियत तब भी चस्पा रहती थी .

स्पीच मरीज़ की एक दम से सोफ्ट और माम्ब्लिंग हो जाती है जैसे फ़ुस- फुसा भर रहा हो .रोग के बढ़ने के साथ ये लक्षण बदतरीन होते चले जातें हैं .निगलना सटकना भी मुमकिन नही रहता ,न नींद ले पाना मुमकिन रह पाता है न खुद करवट ले पाना .अवसाद घेर लेता है मरीज़ को .कब्ज़ भी ।
कोई इलाज़ बेशक नहीं है फिलवक्त पार्किन्संज़ का लेकिन शुरूआती लक्षणों में तेज़ी से सुधार लाने वाली कई दवाएं हैं -लीवोडोपा के संग साथ कार्बी- डोपा .दवाओं के काम न कर पाने पर आखिरी चरण में सर्जरी भी की जाती है ।
(ज़ारी ..)