बुधवार, 11 मई 2011

स्ट्रोक के रिस्क फेक्टर्स में कोलेस्ट्रोल की भूमिका .(ज़ारी ...)

कोलेस्ट्रोल का बहुलांश शरीर में "एल डी एल" के रूप में ही है .एल डी एल रक्त प्रवाह में शामिल रहता है इसका काम अतिरिक्त कोलेस्ट्रोल जहां इसका बाहुल्य है वहां से उठाकर दूसरी जगह ले जाना है ,मसलन कोशिका झिल्लियों की मुरम्मत चलती रहती हैं जहां यह काम आता है .कोशिका झिल्ली का निर्माण भी इसी "लो डेंसिटी लिपोप्रोटिन" कहे जाने वाले कोलेस्ट्रोल से ही होता है ।
लेकिन जब ज़रुरत से ज्यादा कोलेस्ट्रोल सर्क्युलेट होने लगता है शरीर इसे खपा नहीं पाता, नतीज़न यह धमनियों की अंदरूनी दीवार पर ज़मा होने लगता है .धमनियां इसी के असर से कठोर पड़ जाती हैं अन्दर से खुरदरी भी ,यही एल डी एल का एकत्रण "आर्तीरिअल प्लाक "कहलाता है जो "स्टेनोसिस" और "आथिरो -स्केले -रो -सिस" की वजह बन जाता है .प्लाक रक्त वाहिकाओं को अवरुद्ध करने लगता है ,खून के थक्कों को हवा देता है ।
एक स्वस्थ व्यक्ति का कोलेस्ट्रोल एल डी एल लेविल १३० मिलिग्रेम प्रति -डेसी -लीटर से हर हाल कम ही रहना होना चाहिए ।
एल डी एल कोलेस्ट्रोल के स्तर का १३० -१५९ के बीच रहना किसी भी व्यक्ति के लिए आथिरो -स्केले -रो -सिस ,हार्ट डिजीज और स्ट्रोक यानी दिल और दिमाग की बीमारियों (हार्ट और ब्रेन अटेक )के खतरे को थोड़ा सा बढा देता है .
एल डी एल का खून में स्तर १६० मिलिग्रेम प्रति -डेसी -लीटर के पार चले जाना हार्ट और ब्रेन अटेक के खतरे को और भी ज्यादा बढा देता है ।इसीलिए इसे "बेड "या हार्ट -अन -फ्रेंडली कोलेस्ट्रोल कहा जाता है ।
एच डी एल को इसी लिए "गुड कोलेस्ट्रोल "/हार्ट फ्रेंडली कोलेस्ट्रोल का दर्जा हासिल है क्योंकि यह हाई -डेंसिटी -लिपो -प्रोटीन कोलेस्ट्रोल, स्ट्रोक से बचाव में अच्छी भूमिका में है ।
एच डी एल की भागे-
दारी कुल कोलेस्ट्रोल (टोटल सीरम कोलेस्ट्रोल )में बेशक कम रहती है लेकिन यह धमनियों की दीवारों पेअपने हिस्से का डेरा न डालकर लीवर में वापस चला आता है .यहीं यह अपना हिस्सा छोड़ देता है .लीवर इस अतिरिक्त कोलेस्ट्रोल को किडनी के रास्ते निर्मूल कर देता है .उन्मूलन करदेता है इस अतिरिक्त कोलेस्ट्रोल का ।
३५ से ऊपर इसका मान वांछित रहता है ।जितना ज्यादा उतना अच्छा .
हालिया रिसर्च के अनुसार इसका रक्त में स्तर ३५ से ऊपर जितना ज्यादा रहता है उसी अनुपात में हार्ट डिजीज और स्ट्रोक का ख़तरा भी कमतर हो जाता है .जबकि इसका निम्न स्तर (३५ से नीचे रहे आना )उन लोगों के लिए भी स्ट्रोक के खतरे के वजन को बढा देता है जिनका एल डी एल मान्य सीमा (१३० )से नीचे रहता है ।
कोलेस्ट्रोल लेविल को कम करके कोई भी व्यक्ति अपने लिए आथिरो -स्केले -रो -सिस और स्ट्रोक के खतरे के वजन को घटा सकता है ।
स्वास्थ्य कर खुराक तथा नियमित व्यायाम टोटल सीरम कोलेस्ट्रोल को कम रखने का सबसे बढ़िया और आसान तरीकाहै .व्यायाम करने करते रहने से "बेड- कोलेस्ट्रोल" भी "गुड- कोलेस्ट्रोल" में तबदील हो जाता है .यानी इसका मान स्वास्थ्य कर मान्य सीमा में आजाता है .
काया -चिकित्सक कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवाएं भी कुछ कंडीशंस में तजवीज़ (लिखतें ,प्रिस्क्राइब )करतें हैं इन्हें रिडक -टेज़-इन -हिबितार्स या स्टे -टीन्स कहा जाता है .हाई कोलेस्ट्रोल जिन मरीजों में रहता है उनके लिए ज्यादातर मामलों में ये दवाएं स्ट्रोक के खतरे को कम करने में सहायक रहती हैं ।
साइंसदान ऐसा मानतें हैं"स्टे -टीन्स " अपनायह काम शरीर द्वारा तैयार बेड कोलेस्ट्रोल को कम करके अंजाम देती है .साथ ही ये दवाएं शरीर के" कोलेस्ट्रोल- प्लाक" के प्रति "इन -फले-मेट्री इम्यून रिएक्शन "को भी घटातीं हैं .इसी प्लाक का आथिरो -स्केले -रो-सिस और स्ट्रोक से नाता जोड़ा जाता रहा है ।
(ज़ारी ...)।
हमेशा की तरह एक शैर आप भी पढ़िए :
न कोई वक्त ,न उम्मीद ,न कोई वायदा ,
खड़े थे रहगुज़र पर ,करना था तेरा इंतज़ार .

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