स्ट्रोक का पता लगाने के लिए माहिर अनेक इमेजिंग तेक्नीकों का स्तेमाल करतें हैं इनमे से कम्प्युतिद टोमो ग्रेफ़ी (आम भाषा में कहें तो सी टी स्केन्स ) शीर्ष स्थान बनाए हुए है ,क्योंकि यह जल्दी से नतीजे प्रस्तुत कर देती है लिहाजा इलाज़ भी जल्दी से शुरू हो जाता है .तकरीबन सभी केन्द्रों पर यह सहज सुलभ है तथा हेड और ब्रेन की क्रोस -सेक्शनल इमेजिज़ की एक खेप की खेप उतार ली जाती है . ए सीरिज़ ऑफ़ इमेज़िज़ आर टेकिन विद इन नो टाइम .इसी लिए "एक्यूट स्ट्रोक" के रोग निदान के लिए इसे वरीयता ,प्राथमिकता और तरजीह दी जाती है ।
अलावा एक्यूट स्ट्रोक के यह हेमरेज का भी तुरंत पता लगा लेती है ,रुल आउट भी कर सकती है इसे ,संभावित ट्यूमर का भी अन्वेषण कर लेती है .ट्यूमर भी अकसर स्ट्रोक की नक़ल उतार सकता है .
"इन्फार्क्शन" को भी यह समय पूर्व ताड़ लेता है जिसके बारे में स्ट्रोकसिम्पटम्स के लक्षणों के प्रगटीकरण के ६-८ घंटा बाद ही सी टी स्केन से खबर लग पाती है .
यदि स्ट्रोक की वजह हेमरेज बना है ,स्ट्रोक के फ़ौरन बाद ही इसके लक्षण प्रगट हो जातें हैं ,ऐसे में दिमाग में रक्त स्राव का स्केन से तुरंत पता चल जाता ।
स्ट्रोक की वजहहेमरेज होने पर "थ्रोम्बोलितिक चिकित्सा "नहीं दी जाती है .जबकि एक्यूट (स्कीमिक अटेक )की यह सर्वमान्य चिकित्सा है .यह ट्रीट -मेंट ब्लीडिंग को और भी बढा देता है ,हेमरेज को बदतर कर देता है इसीलिए केवल स्कीमिक अटेक के पुख्ता होने पर ही थ्रोम्बोलितिक थिरेपी (एक्यूट स्ट्रोक )के मामलों में दी जाती है ।
एम् आर आई स्केन :मेग्नेटिक रेजोनेंस इमजिंग शक्ति शाली चुम्बकीय क्षेत्रों की मदद से दिमागी ऊतकों में होने वाले सूक्ष्मतर बदलावों का पता लगाताहै .
साइटों -टोक्सिक -एडीमा :यानी दिमागी ऊतकों की कोशाओं में ज्यादा पानी भर जाने का पता एम् आर आई स्केन से चल जाता है .स्ट्रोक होने पर ही एडीमा होता है जिसकी खबर जल्दी से जल्दी भी कुछ घंटों बाद ही चल पाती है .ऐसे में ज़रूरी और बेशकीमती समय बर्बाद हो सकता है ,क्योंकि एम् आर आई स्केन में वैसे भी ज्यादा समय लग जाता है जबकि सी टी स्केन तुरता नतीजे देता है ।
बेशक एम् आर आई स्केन" स्माल इन्फाक्शन" का अन्वेषण स्ट्रोक केफ़ौरन बाद ही कर लेता है जो सी टी स्केन नहीं कर पाताहै .यही इसका विशेष फायदा है .लेकिन न तो यह तमाम अस्पतालों में उपलब्ध है दूसरे प्रोसीज़र काफी समय साध्य और खर्चीला है ।
अलावा इसके हेमरेज के मौजूद होने पर यह सटीक रोग निदान नहीं कर सकता ।
ट्रीटमेंट को यदि यह आगे खिसकाता है ,निलंबित रहता है इलाज़ देर तक तब इसे नहीं अपनाया जाना चाहिए ।
"मेग्नेटिक रेजोनेंस एन्जियोग्रेफी "तथा" फंक्शनल मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग" टेकनीकें भी आजमाई जाती हैं ।
पहली इमेजिंग टेकनीक का स्तेमाल "स्टेनोसिस "ब्लोकेज ऑफ़ ब्रेन आर्टरी ,का पता लगाने के लिए किया जाता है इसके लिए कपाल में बहने वाले रक्त प्रवाह का मापन किया जाता है ।
जबकि दूसरी तरकीब "फंक्शनल मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग" एक चुम्बक का स्तेमाल करती है जो ऑक्सीजन से युक्त हो चुके रक्त (ओक्सी- जिनेतिद -ब्लड ).से संकेत ग्रहण करती है ,तथा यह तरकीब दिमागी गति -विधियों को लोकल ब्लड फ्लो की मदद से दर्शाती है .
डुप्लेक्स डोपलर अल्ट्रा -साउंड तथा आर्तिरीरियो -ग्रेफ़ी का स्तेमाल यह पता लागने के लिए किया जाता है ,क्या असर ग्रस्त व्यक्ति के लिए "केरोटिड एंदार -टेरेक-टामी "नामक शल्य विधि बेहतर रहेगी या नहीं ?
यह शल्य, केरोटिड आर्त्रीज़(गर्दन की धमनियों ) से वसीयपदार्थों का ज़माव हटाने के लिए आजमाया जाता है ...यह शल्य स्ट्रोक को मुल्तवी रखवा सकता है .
डोपलर अल्ट्रा -साउंड एक पीड़ा -हीन प्राविधि है ,प्रोसीज़र है ,जिसमे अति -स्वर -ध्वनी तरंगें (हमारे कान के लिए अ -श्रव्यबनी रहने वाली ,हाई -फ्रीक्युवेंसी वेव्ज़ )गर्दन पर डाली जाती हैं फोकस्ड तरीके से ।
धमनियों के ऊतकों और प्रवाहित रक्त से टकराके लौटने वाली एकोज़ (प्रति -ध्वनियाँ ) एक प्रति -बिम्ब प्रस्तुत करतीं हैं .यह एक द्रुत गामी तरीका है ,पीड़ा हीन ,बिना किसी शल्य (चीड फाड़ )के किया जाता है .सस्ता भी है एम् आर आई और आर्तीरियो -ग्रेफ़ी से .लेकिन इसे उतना सटीक ,त्रुटी हीन ,दोष -हीन,एक्यूरेट नहीं माना जाता है .
आर्तीरियो -ग्रेफ़ी एक्स रे होता है ""केरोटिड आर्टरी" का .इसे लेने से पहले एक विशेष डाई इंजेक्ट की जाती है ,जो गर्दन की धमनी तक पहुंचाई जाती है एक्स रे उतारने से पहले .
इस प्राविधि का अपना रिस्क है ,स्ट्रोक .हालाकि यह ख़तरा कम ही पैदा होता है .मंहगा भी है यह प्रोसीज़र .लेकिन केरोटिड आर्टरी की स्टेनोसिस का पता लगाने के लिए यह सबसे भरोसे मंद प्रोसीज़र माना जाता है ।
दिनानुदिन नॉन इनवेसिव तेक्नीकों में और भी प्रगति हो रही है जिनमे फंख्स्नल मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग भी शामिल है ।
(ज़ारी ...)
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तुझपे बेजा तो नहीं मारतें हैं मरने वाले .
मंगलवार, 10 मई 2011
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