ब्रेन अटेक :इतिहास की खिड़की से -
अब से कोई २४०० बरस पहले हिपोक्रेट्स ने ब्रेन -अटेक का ज़िक्रऔर ब्योरा आकस्मिक तौर पर होने वाले पक्षा -
घात(फालिज या पेरेलिसिसी ) के तौर पर दिया था -ए सडन अटेक ऑफ़ पेरेलिसिस .अब से कुछ बरस पहले तक आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के पास इस अशक्त बना देने वाले रोग से पार पाने के लिए विशेष कुछ न था .लेकिन अब "स्ट्रोक मेडिसन "के दायरे में नित नवीन चिकित्सा प्रणालियाँ ,दवाएं रोज़ आ रहीं हैं .परि -दृश्य तेज़ी से बदल रहा है .इलाज़ तेज़ी से और फ़ौरन (फौरी तौर )पर मिलने पर मरीज़ सही सलामत बिना किसी डिस -एबिलिटी ,अक्षमता के चंद दिनों में ही घर लौट सकता है ।
अब डॉक्टरों (न्यू -रो -लोजिस्तों )के पास मरीज़ को उसके तीमारदारों को देने के लिए हाथ आ गई है इक बेश -कीमती चीज़ -आस ।
पहले पहल इसे कहा भी "अपा -प्लेक्सी "गया था जिसका मतलब होता था पक्षाघात ,लकुवा मार जाना ,किसी भी वजह से ।
अपा -प्लेक्सी से न किसी ख़ास रोगनिदान का इल्म होपाता था न वजह का ।
ब्रेन अटेक या स्ट्रोक के कारण और निदान के बारे में न मालूम सी ही जानकारी रहती थी ,बस मरीज़ को फीड करना और देखभाल ही हो पाती थी -स्ट्रोक के गुज़र जाने तक .
जोहान जाकोब वेफ्पर ने पहले पहल इसके रोगवैज्ञानिक(पैथो -लोजिकल )कारणों की व्याख्या की .१६२० में स्विट्ज़रलैंड में जन्मे इस रोग -विज्ञानी ने सबसे पहले शव परीक्षण के बाद पता लगाया ,वह व्यक्ति जो पक्षाघात का आकस्मिक तौर पर शिकार हो मर गया था उसके दिमाग में रक्त स्राव हुआ था .(ब्रेन हेम्रिज ,इंटर नल ब्लीडिंग हुई थी )।
शव परीक्षण अध्ययनों से ही इसे दिमाग को रक्तापूर्ति करने वाली "केरोटिड आर्टरी "और वर्टिब्रल आर्त्रीज़ का इल्म हुआ ।
आपने ही पहली मर्तबा बतलाया "अपा -प्लेक्सी "की वजह दिमागी रक्ता -स्राव के अलावा दिमाग को रक्त लेजाने वाली मुख्यधमनियों में आने वाला अवरोध ,रुकावट ,ब्लोकेड भी बनता है ।
बस यहीं से अपा -प्लेक्सी को अब सेरिब्रल -वैस क्युलर डिजीज कहा जाने लगा ।
"सेरिब्रल" का मतलब दिमागी ,मष्तिष्क से ताल्लुक रखने वाला तथा "वैस्क्युलर "का ब्लड वेसिल्स और आर्ट -रीज से लगाया जाने लगा .(आज इस रोग को सेरिब्रल -वैस्क्युअलर -एक्सि- डेंट या फिर ब्रेन अटेक कहा समझा जाता है ,अपा -प्लेक्सी नहीं )।
बेशक चिकित्सा विज्ञानने वेफ्पर की परिकल्पना का समर्थन किया लेकिन थिरेपी के रूप में देने के लिए उसके पास हालफिलाल तक विशेष कुछ नहीं था ।
गत दो दशाब्दियों में ही बुनियादी (बेसिक )और रोग नैदानिक (क्लिनिकल )अन्वेषकों ,इन्वेस्तिगेतर्स ने इसके बारे में बहुत कुछ जानकारी हासिल की है ।
अब न सिर्फ रोग से जुड़े जोखिम का ,रिस्क फेक्टर्स का पता लगा लिया गया है ,शल्य और दवा -चिकित्सा के बारे में भी बहुत कुछ हासिल है .बचावी दवा चिकित्सा भी उपलब्ध है ।
ख़ुशी की बात यह है एक ऐसे ड्रग ट्रीट -मेंट को अब खाद्य और दवा संस्था की स्वीकृति प्राप्त है जो मर्ज़ के लक्षणों को उलट सकती है ,व्हिच कैन रिवर्स दी सिम्पटम्स ऑफ़ दी डीज़ीज़ .स्ट्रोक ट्रीट -मेंट,स्ट्रोक रिसर्च के लिए यह एक बहुत बड़ी खबर है .
एनीमल स्टडीज़ से पता चला है स्ट्रोक के शुरूआती चंद मिनिटों में ही ऐसी ब्रेन इंजरी हो जाती है जिसकी भरपाई एक घंटा बीत जाने के बाद हो ही नहीं पाती है .शुरूआती चंद मिनिटों में ही इर्रिवार्सिबिल ब्रेन डेमेज हो जाता है ।
हम मनुष्यों में ब्रेन डेमेज स्ट्रोक के साथ ही शुरू हो जाता है और दिनोंदिन तक बना रहता है .
समय की एक छोटी सी खिड़की ही ,बस थोड़ी सी मोहलत मिलती है जिसमे इससे पार पाया जा सकता है .इसी लिए अब सर्वाइवल (बच जाने )और लक्षण मुक्त हो जाने के अवसर पैदा हो गएँ हैं .
तकरीबन ५ लाख अमरीकी हर बरस इसकी चपेट में आरहें हैं जिनमे से १,४५ ,००० स्ट्रोक से सम्बद्ध वजहों से ही मर ही जातें हैं यह तीसरा सबसे मारक रोग बना हुआ है जो व्यक्ति के साथ उसके परिवार के अन्य सदस्यों की आज़ादी को भी बंधक बनाए रख सकता है .
(ज़ारी ...)
रविवार, 8 मई 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें