बेहतरीन थी वह सुरों की शाम ,स्वर -संध्या ."बोलीवुड म्युज़िक कंसर्ट "के नाम थी ये शाम .आयोजन गीतमाला फाउन-डेशन ऑफ़ मिशिगन ,मिशिगन फिलहारमोनिक तथा केंटन कमीशन फॉर कल्चर ,आर्ट्स ,एंड हेरिटेज का साझा प्रयास था .
कार्यक्रम संचालन गीतमाला ,मिशिगन के संस्थापक श्री नरेंद्र सेठ ने किया .इन्हें गर्व से वोईस ऑफ़ मिशिगन कहा जाता है .भारतीय कलाओं और संस्कृति के संरक्षण श्रीवर्धन को समर्पित है यह शख्शियत ।
मुख्य गायिका थीं -रुजुता जोशी .गायक मंडल में थे -जय अन्तानी ,श्री कान्त बालाजी ,अमोल खानापुरकर तथा गेस्ट गायक डॉ .यश शाह जिन्हें मिशगन में सिंगिंग डॉ .कहा जाता है ।
कार्यक्रम का आगाज़ रुजुता जोशी ने "गीता श्लोक "से किया ।
इसके बाद कोई एक घंटा तक लोकप्रिय कर्ण -प्रिय संगीत की वर्षा होती रही ,कभी नारी कंठ बनके कभी पुरुष जुगल बंदी के रूप में और कभी दोगाना बनके ,द्वेट बनके ।जुगल बंदी चलती रही अपनी ताल अपनी लय अपने रंग के साथ .
मध्यांतर से पूर्व "तू मुस्कुरा "(फिल्म युवराज ),"तेरी ओर ..."(सिंह इज किंग ).धूम ताना (ॐ शान्ति ),ये ज़िन्दगी उसी की है (अनारकली ),तुम जो आये ज़िन्दगी में (वंस अपोन ए टाइम इन मुंबई ),भजन "मनमोहना ...."(जोधा अकबर ),गुलाबी आँखें जो तेरी देखीं ...(दी ट्रेन ),ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगें ...(शोले ),दीवानगी दीवानगी .....दीवांगी दीवांगी ....(ॐ शान्ति ॐ )गीतों ने अपना अलग समां बांधा .यहाँ सम्मिलित स्वर थे पार्श्व संगीत के जिनकी गहराई में अमरीकी फिलहारमोनिक के वाद्य संगीत के माहिर वायलिन ,वायोला ,गिटार वादक ,ओक्तोपाड्स,बॉस गिटार ,सेलो के माहिर ,की बोर्ड्स के धुरंधर पूरी तरह उतर गए थे ।
एक अलग अनुभव था यह भारत की धरती से दूर एक और भारत की निर्मिती .एक बेहतरीन संश्लेषण गोरे और कालों ,गंदुमियों का .तेरा मेरा का कोई भेद नहीं ।
चैरी हिल ,केंटन (मिशिगन )का "दी विलेज थेटर "अपनी पूरी आभा और कलात्मक वास्तु कला की निधि मुक्त कंठ से लुटा रहा था .कार्यकर्म से पूर्व हल्का नाश्ता था .ड्रिंक्स थीं (पैसा दो ड्रिंक्स लो ).मध्यांतर था दस मिनिट का जिसे खींचकर मनमानी से संगीत प्रेमियों ने ५ मिनिट आगे बढा लिया था ।
हम भारतीय कहते नहीं अघाते -गंगा जमुनी है हमारी भारतीय संस्कृति ,सर्व ग्राही ,सर्व -समावेशी भी .यहाँ आकर देखो मिश्रित स्वर क्या होतें हैं कैसे कोई कलाकार कला को पूरा समर्पित होता है .गोरों का भाव सरणी और संगीत के सुरों के उसी धरातल पर पहुँच कर संगत करना ख़ास कर अनारकली के गीत -ये ज़िन्दगी उसी की है ...साथ में रुजुता जोशी का सदा बहार स्वर भाव -सर्वोवर में डुबो गया .मेरे ढोलना का शाश्त्रीय संगीत आधारित गीत अपना नाद सौन्दर्य लिए हुए था ,संगत को नै परवाज़ दी थी गोरों ने .
मध्यान्तर के बाद संगीत का आकर्षण और भी बढ़ गया था .प्रस्तुति में थे -
मैं अगर कहूं .....(ॐ शान्ति ॐ ),ये कहाँ आ गए हम (सिलसिला ),तेरे मस्त मस्त दो नैन (दबंग ),मेरे ढोलना ...(भूल भुलैयां ),दिल की नजर से (अनाड़ी का दोगाना जिसे डॉ यश शाह और रुजुताजोशी ने प्रस्तुत किया ),आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे (ब्रह्म चारी ),तथा समापन गीत था -जय !हो !(स्लम दोग मिलियानेअर )।
ज्यादती होगी यदि तबला वादक ,पर्काशन वाद्यों पर अपनी छाप छोड़ते वादकों का ज़िक्र न किया जाए .सह गायक गायिकाओं का ज़िक्र न किया जाए और संचालक की तारीफ़ न की जाए जिसने बारहा उस दौर के संगीत की विशेषताओं का बराबर उल्लेख किया जिस दौर से वह गीत संगीत लिया गया था ।
दो घंटा बीता नहीं ठहर गया था फूलों की खुशबू सा ,रिलेक्शेशन थिरेपी की पार्श्व संगीत सा ,किसी हिप्नोटिस्ट के सम्मोहन सा .
बुधवार, 18 मई 2011
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