रिस्क फेक्टर्स :
सोशल एन्ग्जायतीमानसिक विकारों की खेप में होने वाला एक बहुत ही आम विकार है जिससे जीवन में कभी न कभी ३-१३ %तक पश्चिमी मुल्कों के लोग रु -ब -रु होतें ही हैं .
किशोरावस्था में पाँव रखते ही या फिर इसके बीचों -बीच मिड टीन्स में यह विकार सिर उठाता है .कभी कभार बचपन में या फिर जवानी में बालिग़ होते ही ।
इसके जोखिम को बढाने वाली कई चीज़ें ,कारण ,घटक हो सकतें हैं .
(१)योर सेक्स /जेंडर :महिलाओं की इसकी चपेट में आने की संभावना अपेक्षाकृत ज्यादा रहती है ।
(२)फेमिली हिस्ट्री :यदि आपके माँ -बाप (बायलोजिकल पेरेंट्स )या फिर भाई बहिनों में से किसी को यह विकार रहा है तब आपके भी इसकी चपेट में आने की संभावना बढ़ जाती है ।
(३)एन -वाय -रन्मेंट:कुछ माहिरों के अनुसार यह अर्जित व्यवहार है आप परिवार में किसी से नाहक फ़िक्र करना सीखते जातें हैं बात -बे -बात पे .दूसरों का एन्शश(हिला हुआ ,अस्थिर ,औत्सुक्य पूर्ण )व्यवहार देखते -देखते आप भी उन स्थितियों में नर्वस होने रहने लागतें हैं .कई मर्तबा माँ -बाप का अतिरिक्त नियंत्रण या फिर लाड -प्यार -संरक्षण भी "सोशल एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर "की वजह बनता है ।
(४)निगेटिव एक्स -पीरियेंसिज़ :जिन बच्चों की बचपन में अवमानना होती है हेटी होती है ,बात -बात पे जिन्हें फटकार पड़ती है तिरस्कार का सामना करना पड़ता है , उनका मज़ाक उड़ाया जाता ,शर्म शार किया जाता है सबके सामने जिन्हें उनके लिए इस विकार के खतरे का वजन बढ़ जाता है ।
अलावा इसके परिवार में चलने वाले झगडे फसाद ,रोज़ -रोज़ की कलह (कई कलह -प्रिय और कलह- प्रियाएं हर परिवार में मौजूद रहतीं हैं ),यौन शोषण भी इसके साथ सम्बद्ध होते देखा गया है ।
(५) टेम्प -रामेंट यानी आपका मिजाज़ ,स्वभाव ,रुख चीज़ों के प्रति :संकोची ,शर्मीले ,खुद में ही सिमटे सिकुड़े ,अंतर -मुखीबच्चे ,बड़े ,सभी लोगों के इस विकार से ग्रस्त होने की संभावना ज्यादा रहती है .
(६)न्यू सोशल और वर्क डिमांड्स :नएनए लोगों से मिलना ,जनता के सामने कुछ कहना ,प्रिज़ेन्तेशन प्रस्तुत करना पहली पहली मर्तबा एन्ग्जायती का सबब बन सकता है .इस लक्ष्ण के बीज आपकी किशोरावस्था से चले आतें हैं ।
वैसे सच यह भी है :स्वभाव के विपरीत आचरण करने से स्वभाव बदल जाता है .करत करत अभ्यास के जड़ मत होत सुजान .जब में एक बीस साला नव -युवक के रूप में हरियाणा शिक्षा सेवा में शरीक हुआ ,महा- विद्यालय के स्टाफ के बीच मीटिंग्स में कुछ भी खड़े होकर बोलना बहुत मुश्किल लगता था ,भाषा साथ छोड़ जाती थी ,पहली मर्तबा रेडिओ से प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का संचालन किया तो देखा पाँव काँप रहें हैं हालाकि पूर्व में वार्ताएं अनेक प्रसारित कर चुका था लेकिन ये काम जुदा था ,कई चीज़ों में समन्वयन रखना होता है ,कौन सी टीम से अगला प्रश्न पूछना है आदि .फैसला किया संभाषण की कला में प्रवीण होना है .आत्म विश्वाश आया .भाषा चेली बनके पीछे पीछे आने लगी ।
(ज़ारी ...)
शनिवार, 7 मई 2011
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