सोमवार, 24 नवंबर 2014

Some musings from Bhagvad Gita

भोक्तारं यज्ञतपसाम् सर्वलोकमहेश्वरम् ,

सुहृदयम् सर्वभूतानां ज्ञात्वा माम् ,शान्तिम् ऋच्छति।

                                                          (५। २९ )

भगवान कहते हैं जो मुझे तत्व से जान लेता है वह परम शांति को प्राप्त होता है। वह फिर स्वयं को भी जान

लेता है वह फिर यह भी जान लेता है कि भगवान -और मुझमे कोई फर्क नहीं है। वह असीम है। रचता है मैं

उसकी रचना हूँ। दिव्यता दोनों में है। खुद को शरीर मान लेने की भूल से मैं सीमित हो गया हूँ। वासनाओं को

भुगताने  के लिए मैं आ जा रहा हूँ एक से दूसरे चोले में। मेरा कारण शरीर ये वासनाएं ही हैं। वासनाएं समाप्त

हो

जाएं तो मैं मुक्त हो जाऊँ।

खुद को जानकर मैं असीम हो सकता हूँ। अमर हो सकता हूँ।

I can drop my body for ever .But I have to live through the Prarbdh (प्रारब्ध ).

I KNOW I AM AN APPEARENCE IN TIME .I LIVE THROUGH TIME .I AM A TENURE .MY

STAY

HERE IS A TENURE .



He is the cosmic enjoyer of every thing  .Only He enjoys all the austerities and Tapah (तप :) I am a

 limited enjoyer of sukh and dukh at my personal level .He is the Lord of the entire world (Lord of all

the universes ).He is a friend to everybody without expecting any returns from anybody .

He is the Ocean .I am an individual wave essentially of the same nature as Bhagvan .I am Jeeva .My

reality is water .Wave is my outer form which under goes a change .But water (THE JEEVA )

remains the same .

When meditation happens my ego now completely vanishes .Since now I know my true nature .I am

not this body (wave ).I am the soul (water ).

I am not the pot space in the pot .I am the cosmic space in which the pot is situated .I and He are one

.I am Shivoham (shiv -aham ),He and I.

भगवान अर्जुन से कहते हैं पहले तुम कर्मयोगी बनो। तुम्हारे लिए कर्म योग ही श्रेष्ठ है। तुम अपना सौ फीसद

कर्म को दो।

Enjoy your duty and give your 100% to it .Become one with it .Then acquire knowledge .Then only

you will know .You are neither the doer nor the enjoyer .

कर्तृत्व और भोक्तृत्व तब तुम्हारा स्वयं ही गिर जाएगा। यही कर्मसंन्यास है।

To know that you are neither the doer nor the enjoyer is renunciation(कर्म संन्यास ).

कर्म संन्यास का मतलब कुछ छोड़ना नहीं है। जानना है कि मैं न तो करता हूँ न भोक्ता। प्रकृति ही सारे कर्म

करती है।

Actions takes place .You are only the witness .The doers are the three GUNAS (SATV -RAJAS -

TAMS ).

RAVAN IS ILLUSTRATIVE OF ACTION(RAJAS ).

His desires are never fulfilled .He has queens from all the three worlds yet He aspires for Sita .

Kumbkaran eats and sleeps .He illustrates tamoguna .And Vibhishan illustrates Satoguna .You are

the

mixture of all three .But one guna predominates and decides your nature .








रविवार, 16 नवंबर 2014

पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात , देखत ही बुझ जाएगा ,ज्यों तारा परभात

पानी केरा बुदबुदा अस मानस  की जात ,

देखत ही बुझ जाएगा ,ज्यों तारा परभात।

यहाँ देखना शब्द महत्वपूर्ण है देखना साधरण देखना (किसी के दोष किसी के गुण देखना नहीं है )अवेर्नेस में

देखना है यह स्थिति जीवन का मर्म सार तत्व जान ने की स्थिति है। विडंबना यह है जब तक यह ज्ञानोद्य

होता है देखना,  असली देखना बनता है।जीवन चुक  जाता है।


जीवन पानी से उत्पन्न पानी से पैदा उस बुलबुले की तरह है जो प्रतीयमान  है आभासी है। वास्तव में तो

उसका

सच स्वयं पानी ही है।बुलबुला क्षणिक  है -प्राकट्य है आभासी "होना" है।

The underlying reality of a bubble is water .The bubble is just an appearance .It forms and disappears

.When

the water is quiet there is no bubble .

दिन और रात्रि की पुनरावृत्ति क्रमिक है। दिन के बाद रात और रात के बाद फिर दिन  जग और  जीवन की

यही रीत है। पौ फटते ही उषा के आते ही तारा गण विलीन हो जाते हैं।

बीती विभावरी जाग री ,

अंबर पनघट में डुबो रही ,

तारा घट उषा नागरी।

सुबह होती है शाम होती है ,

उम्र यूं ही तमाम होती है।

फिर भी मैं मैं -मैं के मुगालते में हूँ। संसार की नश्वरता को मैं (the feeling of I)नहीं जानता।

महाकवि संत कबीर चेता रहा है :

चेत  सके तो चेत -जीवन तो जा रहा है।

The world is only like this .It is an appearance in time ,like day an night in a sequence .

विशेष :जीव अपने असली स्वरूप आत्मन (आत्मा ) को नहीं जानता। परमात्मा की मटीरियल एनर्जी जो

परमात्मा

की


रचनात्मक शक्ति है उस माया में ही फंसके रह जाता है इसीलिए उसका सारा जीवन रागद्वेष में ही बीत

जाता

है। वह यह नहीं जान पाता की यह सृष्टि परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है। परमात्मा ही इसका उपादान

(MATERIAL CAUSE )और निमित्त (नैमित्तिक कारण ,efficient cause )दोनों है।

घड़ा (मिट्टी )भी वही है कुम्हार भी वही है। किसी भी चीज़ का "होना "existence वही है। जीव जीव में फर्क नहीं

है

एक

ही

चेतना सबमें व्याप्त है। व्यक्ति के स्तर (at an individual level )पर हम उसे जीवात्मा कह देते हैं । समष्टि

(totality )के स्तर पर ईश्वर। परमात्मा। अपोज़िट्स का भेद मिटे तब देखना देखना हो जाए। अभी तो तेरे मेरे

का भेद है। अभी तो me ,mine and I मेरे सबसे बड़े संबंधी हैं।यही आध्यात्मिक दृष्टि है महाकवि कबीर की इस

साखी में।


Kabir Doha "Pani Tera Budbuda"

पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात , देखत ही बुझ जाएगा ,ज्यों तारा परभात।

पानी केरा बुदबुदा अस मानस  की जात ,

देखत ही बुझ जाएगा ,ज्यों तारा परभात।

यहाँ देखना शब्द महत्वपूर्ण है देखना साधरण देखना (किसी के दोष किसी के गुण देखना नहीं है )अवेर्नेस में

देखना है यह स्थिति जीवन का मर्म सार तत्व जान ने की स्थिति है। विडंबना यह है जब तक यह ज्ञानोद्य

होता है देखना,  असली देखना बनता है।जीवन चुक  जाता है।


जीवन पानी से उत्पन्न पानी से पैदा उस बुलबुले की तरह है जो प्रतीयमान  है आभासी है। वास्तव में तो

उसका

सच स्वयं पानी ही है।बुलबुला क्षणिक  है -प्राकट्य है आभासी "होना" है।

The underlying reality of a bubble is water .The bubble is just an appearance .It forms and disappears

.When

the water is quiet there is no bubble .

दिन और रात्रि की पुनरावृत्ति क्रमिक है। दिन के बाद रात और रात के बाद फिर दिन  जग और  जीवन की

यही रीत है। पौ फटते ही उषा के आते ही तारा गण विलीन हो जाते हैं।

बीती विभावरी जाग री ,

अंबर पनघट में डुबो रही ,

तारा घट उषा नागरी।

सुबह होती है शाम होती है ,

उम्र यूं ही तमाम होती है।

फिर भी मैं मैं -मैं के मुगालते में हूँ। संसार की नश्वरता को मैं (the feeling of I)नहीं जानता।

महाकवि संत कबीर चेता रहा है :

चेत  सके तो चेत -जीवन तो जा रहा है।

The world is only like this .It is an appearance in time ,like day an night in a sequence .

विशेष :जीव अपने असली स्वरूप आत्मन (आत्मा ) को नहीं जानता। परमात्मा की मटीरियल एनर्जी जो

परमात्मा

की


रचनात्मक शक्ति है उस माया में ही फंसके रह जाता है इसीलिए उसका सारा जीवन रागद्वेष में ही बीत

जाता

है। वह यह नहीं जान पाता की यह सृष्टि परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है। परमात्मा ही इसका उपादान

(MATERIAL CAUSE )और निमित्त (नैमित्तिक कारण ,efficient cause )दोनों है।

घड़ा (मिट्टी )भी वही है कुम्हार भी वही है। किसी भी चीज़ का "होना "existence वही है। जीव जीव में फर्क नहीं

है

एक

ही

चेतना सबमें व्याप्त है। व्यक्ति के स्तर (at an individual level )पर हम उसे जीवात्मा कह देते हैं । समष्टि

(totality )के स्तर पर ईश्वर। परमात्मा। अपोज़िट्स का भेद मिटे तब देखना देखना हो जाए। अभी तो तेरे मेरे

का भेद है। अभी तो me ,mine and I मेरे सबसे बड़े संबंधी हैं।यही आध्यात्मिक दृष्टि है महाकवि कबीर की इस

साखी में।


Kabir Doha "Pani Tera Budbuda"


मंगलवार, 11 नवंबर 2014

"नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा "


"नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा "


हो या फिर -

कलियुग केवल नाम अधारा ,

सुमरि सुमरि नर उतरहिं पारा। 

जैसे सूत्र वाक्य हों या फिर तीन अक्षरी ब्रह्म वाचक (ओंकार )शब्द ॐ 

(ओम =अ +उ +म) हो ,या फिर नम : हो सबके सब सूक्तियाँ हैं मन्त्र हैं 

,aphorism हैं। 

नम : का अर्थ है :NOTHING BELONGS TO ME  .EVERYTHING 

BELONGS TO HIM .

इस घोर कलिकाल (कलियुग )में इन मन्त्रों का बड़ा सहारा है जबकि धर्म 

की तीन टांगें कट चुकी हैं। वह लँगड़ाके बा -मुश्किल चल पा रहा है।

धर्म का अर्थ है :धारयति इति धर्म :

Dharma is a code of conduct which holds the society together at all 

times ,in all spaces .Dharma is indicative of values which are 

eternal 

,whose existence does not depend on space and time .

सत्यम वद धरमं चर 

Speak the truth lead a righteous life .

परहित सरस धर्म नहीं भाई। 

अर्थात दूसरे की भलाई करना दूसरे के हितार्थ कार्य करना जरूारतमन्द 

की 

मदद करना  ही श्रेष्ठ धर्म है। प्रकृति के कण कण में हरेक जीव में 

वनस्पति में 

नदी -नाले पर्वत में भगवान है उसे किसी मंदिर गिरजे में जाकर ढूंढने की 


आवश्यकता  नहीं है व्यक्ति में देखो उसे। पूरी कायनात में उसे ही देखो। 

ईशावास्यम इदं सर्वं ,यत किञ्च जगत्यां जगत ,

तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृध : कस्य स्विद् धनम्। 

Everything animate (living )or inanimate (inert or non -living )that 

is within the universe is controlled and owned by the Lord .One 

should therefore accept only those things necessary for himself 

,which are set aside as his quota ,and one should not accept other 

things ,knowing well to whom they belong .

हम ये सारा फलसफा भूल गए इसीलिए आज अकेलापन हमारा सबसे 

बड़ा 

दुश्मन  है। 

No research in material sciences or life sciences could eliminate 

this modern malady .No immunization against it is available .TO 

remove this loneliness one gets married and produce children but 

loneliness ever remains .

Our true  friend is Mantra .It helps us when the outside world fails 

us .When we are disappointed from the outside world Mantra helps 

us .

It gradually becomes a shield against the disturbances from the 

outside world .It has the capacity to modify our behavior .

We are not effected from the vagaries of the outside world when 

we befriend a Mantra .Any Mantra from any  language short or 

long ,one two or 

 many syllables .

It can be as short as नम : or om (ॐ ) and or as long as :

ॐ पूर्णमद : पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते ,

पूर्णस्य पूर्मादाय पूर्णमेवावशिष्यते। 

ॐ शान्ति शांति शान्ति। 

This all is full .Idam comes for the universe .Tat comes for the 

Brahman (who is the biggest and full and complete ever ).All this 

world has come from the Brahman which is perfect and full .What 

will come out of the full will also be full and perfect .The world all 

full in the beginning ,intermediate states and also at the end . 

 That God is infinite (Perfect )and this world (universe 

)which emanated from Him is also infinite .For infinite gives rise 

to 

infinite .You take out anything from infinity it remains infinity 

.You add anything to infinity it remains infinity as ever .When this 

world springs back into the God (the infinity ),what remains is also 

infinity .

For God is existence infinite ,knowledge (consciousness )infinite 

and bliss infinite .

A Mantra helps you to know your own nature .But unfortunately 

your greatest friend is your body .You treat yourself as Body Mind  

senses complex .

इसीलिए हमारे तमाम सम्बन्ध देहात्मक स्तर पर हैं। देहात्म बुद्धि से 

परिचालित हैं।

Remember this mind and intellect is inert  .It is of material nature 

.It is finite and limited .Finite can give you finite pleasure only 

.Anything added to finite remains finite .This world which in in a 

constant flux and is a fleeting experience can not give you pleasure .

Know yourself and become infinite .Mantra will help you in this 

endeavor .

you are also that existence which is consciousness all pervading 

and eternal and bliss infinite .You are the Brahman .

It gives you solace from your mind .It tells you -you are not your 

mind .It tells you happy is who is solely relying on the universal 

law ,the Lord .

It is a bridge which helps you come out of the maze  of Maya ,the 

illusion or appearance of the phenomenal world .

Time of transition (transmigration of the soul to another body ):

आखिरी वक्त में जब प्राण छूटता है तब न मुख से कोई शब्द निकलता है 

न ज़बान खुलती है। आप का शेष जगत से जब संपर्क संबंध टूटने लगता 

है 

तब यही दो अक्षरी /एकाक्षरी मंत्र ही आपके काम आता है। 

नम :

You are that ,though art .

tat tvam asi .

When conscious mind fails ,you are in a state of deep darkness like 



to deep sleep state .Use then your Mantra  as a witness as a Guide 

.Its energy is subtler than that of an atom and is more powerful 

than that .Make Mantra your trust worthy friend .

But never ever use it for petty things .

During jap of a Mantra a stage comes when Mantra becomes the 

leader and your mind follows the Mantra and becomes silence .

This 


leads to quietude ,the state of being quiet ,peaceful , or tranquil .

This is called a -japa jap .jap now happens without jap .


जयश्रीकृष्ण। 
















सोमवार, 10 नवंबर 2014

श्रुति और दृष्टि से हमारा मन बनता है। मन से जब वाक (वाणी )मिल जाती है तो चेतना भी इसमें आ जुड़ती है

Maya Mari Na Man Mara, Mar Mar Gaye Shareer

Asha Trishna Na Mari, Keh Gaye Das Kabir




माया मरी न मन मरा , मर -मर गए शरीर ,

आशा तृष्णा न मरी ,कह गए दास कबीर।



श्रुति और दृष्टि  से हमारा मन बनता है। मन से जब वाक (वाणी )मिल जाती है तो चेतना भी इसमें आ जुड़ती है।श्रुति

और दृष्टि जिसके पास नहीं हो तो उसकी बुद्धि का विकास नहीं होता।

माया और मन दोनों की साधना करनी होगी। एक को साधे कुछ नहीं होगा। क्योंकि माया मन को आकर्षित करती है

और मन माया से आबद्ध हो जाता है।

 माया का

क्षेत्र बाहर की ओर  है आभासी जगत की जगत की ओर  है और मन का अंदर की ओर । लेकिन मन जब बाहर की

ओर  देखता है माया को भीतर ले आता है।

माया से विमोहित हो जाता है।

माया अनादि है। जो है नहीं लेकिन जिसके होने की प्रतीति होती है वह माया है।

To know that which is not there is Maya ,an optical illusion 


a mirage in simplistic terms .

हमारा मरना जीना देह के स्तर पर होता है इसीलिए देह मरती रहती है हम आते जाते रहते हैं। लेकिन

वासनाओं की पूर्ती कभी नहीं होती। वासनाओं  की पूर्ती के लिए ही हम दोबारा आते हैं। परमात्मा बार बार मौक़ा

देता है इस देहात्मक बुद्धि से ऊपर उठो। मन को अमन


करो।

जब परमात्मा से लगेगा तो मन अमन हो जाएगा। जन्म जन्मानतरों के कर्म बंधन ,संचित- कर्म नष्ट हो

जाएंगे । प्रारब्ध को भुगतकर व्यक्ति मुक्त हो सकता है।  इसीलिए कृष्ण गीता में कहते हैं -हे अर्जुन तुम

अपना

मन और बुद्धि सिर्फ मेरे में लगाओ। एक मेरा ही ध्यान करो और अपना कर्तव्य कर्म करो।


Neither illusion nor the mind, only bodies attained death


Hope and delusion did not die, so Kabir said.


To understand this doha(Sakhi ) correctly, one must understand first the word 'Maya'. This word is

like an

unsolved riddle and hard to translate. For want of a proper word, it is loosely translated as illusion. In

its depths, 'Maya' perhaps means, Nature on the go...ever changing...hence an illusion.

In this doha, Kabir says while the physical body that is born, lives and eventually dies, the world of

Maya goes on as does the Mind (that intelligent governing Self). Hope and the deceptive greed or

delusion does not die either. Even in his death bed, one continues to cling with the perishable - the

body, with one's aspirations, desires - and the cravings, the urges, the yearnings (trishna) dies not. In


fact, the play of the world "leela" goes on because of this.


Maya, maha thagini hum jaani...

Bhagatan key bhaktini hoyey baithi, Brammah key brammbhani, Kahat Kabir suno ho santo, Yeh sab akath kahani, Maya, yeh sab ...

रविवार, 9 नवंबर 2014

माया मरी न मन मरा , मर -मर गए शरीर , आशा तृष्णा न मरी ,कह गए दास कबीर।

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Maya Mari Na Man Mara, Mar Mar Gaye Shareer

Asha Trishna Na Mari, Keh Gaye Das Kabir




माया मरी न मन मरा , मर -मर गए शरीर ,

आशा तृष्णा न मरी ,कह गए दास कबीर।



श्रुति और दृष्टि  से हमारा मन बनता है। मन से जब वाक (वाणी )मिल जाती है तो चेतना भी इसमें आ जुड़ती है।श्रुति

और दृष्टि जिसके पास नहीं हो तो उसकी बुद्धि का विकास नहीं होता।

माया और मन दोनों की साधना करनी होगी। एक को साधे कुछ नहीं होगा। क्योंकि माया मन को आकर्षित करती है

और मन माया से आबद्ध हो जाता है।

 माया का

क्षेत्र बाहर की ओर  है आभासी जगत की जगत की ओर  है और मन का अंदर की ओर । लेकिन मन जब बाहर की

ओर  देखता है माया को भीतर ले आता है।

माया से विमोहित हो जाता है।

माया अनादि है। जो है नहीं लेकिन जिसके होने की प्रतीति होती है वह माया है।

To know that which is not there is Maya ,an optical illusion 


a mirage in simplistic terms .

हमारा मरना जीना देह के स्तर पर होता है इसीलिए देह मरती रहती है हम आते जाते रहते हैं। लेकिन

वासनाओं की पूर्ती कभी नहीं होती। वासनाओं  की पूर्ती के लिए ही हम दोबारा आते हैं। परमात्मा बार बार मौक़ा

देता है इस देहात्मक बुद्धि से ऊपर उठो। मन को अमन


करो।

जब परमात्मा से लगेगा तो मन अमन हो जाएगा। जन्म जन्मानतरों के कर्म बंधन ,संचित- कर्म नष्ट हो

जाएंगे । प्रारब्ध को भुगतकर व्यक्ति मुक्त हो सकता है।  इसीलिए कृष्ण गीता में कहते हैं -हे अर्जुन तुम

अपना

मन और बुद्धि सिर्फ मेरे में लगाओ। एक मेरा ही ध्यान करो और अपना कर्तव्य कर्म करो।


Neither illusion nor the mind, only bodies attained death


Hope and delusion did not die, so Kabir said.


To understand this doha(Sakhi ) correctly, one must understand first the word 'Maya'. This word is

like an

unsolved riddle and hard to translate. For want of a proper word, it is loosely translated as illusion. In

its depths, 'Maya' perhaps means, Nature on the go...ever changing...hence an illusion.

In this doha, Kabir says while the physical body that is born, lives and eventually dies, the world of

Maya goes on as does the Mind (that intelligent governing Self). Hope and the deceptive greed or

delusion does not die either. Even in his death bed, one continues to cling with the perishable - the

body, with one's aspirations, desires - and the cravings, the urges, the yearnings (trishna) dies not. In


fact, the play of the world "leela" goes on because of this.


Maya, maha thagini hum jaani...

Bhagatan key bhaktini hoyey baithi, Brammah key brammbhani, Kahat Kabir suno ho santo, Yeh sab akath kahani, Maya, yeh sab ...






यस्य सत्ता न अस्ति एवं गते तद् प्रतीयते अर्थात जिसकी सत्ता नहीं है पर वह प्रतीत हो वह माया है







रँगी  को नारंगी कहे ,देख कबिरा रोया। 

चलती को गाड़ी कहे ,खरे  दूध को  खोया ,

रंगी को नारंगी कहे ,देख कबीरा रोया। 

We say "being lost "to very essence of milk (milk product 


Khoya,is obtained when milk is boiled for a long time on slow and 

steady  heat ,and becomes milk extract Khoya,

the semi solid remnant )extract and people say  colorless to a 

colored fruit .

Narangi (orange coloured citrous fruit) .

कबीर कहते हैं इस संसार की रीति बड़ी उलटी है चलती हुई चीज़ को लोग 

गढ़ी  हुई (गाढ़ी 

रुकी हुई )

कह रहे हैं। तथा दूध का जो सत्व (मालतत्व ,खोया /मावा है )उसे कह रहे हैं 

खोया हुआ (जिसे खो दिया गया हो ). 

जो पहले से ही रँगी हुई है उसे कह रहे हैं ना -रंगी (अर्थात रंगी हुई नहीं है ) बिना 

रंग की रंगहीन चीज़। 

भावार्थ क्या है कबीर का आशय क्या है यहां ?

कबीर कहतें हैं संसार प्रतीयमान है। 

It is an empirical (pragmatic )reality ,a relative reality and not an 

absolute one .It is an appearance which is time dependent ,space 

dependent ,that which is in a flux and is constantly undergoing a 

change .The world is inside the mind .There is nothing outside of 

the mind .And the mind is an illuminator (a relative illuminator 

)with respect to the world but itself the mind is an illumined body 

w.r.t the world .Therefore the mind  exists only with the blessings 

of 


the consciousness .If consciousness is not there the mind vanishes 

.Along with the mind the world also vanishes .

So the world is an appearance (प्रतीति ). 

ऐसे आभासी संसार में संसारी लोग जो कुछ देख रहे हैं वह सब उलट पुलट है 

यथार्थ से दूर है। इस प्रतीयमान (आभासी )संसार में व्यक्ति की बुद्धि भ्रमित 

रहती है। इसीलिए संसारी जीव जो गढ़ गई  उस गढ़ी हुई ,गाढ़ी जा चुकी चीज़  

गाड़ी को चलती हुई  कह रहे हैं। और रंगहीन चीज़ को रंगीन नारंगी। 

लोगों के अपने सापेक्षिक ज्ञान में जिसे वह यथार्थ ज्ञान समझ रहे हैं के वस्तुओं 

के 

प्रति सम्बोधन भ्रम पैदा करते हैं। इसीलिए पदार्थों के वाचक शब्द भरम पैदा 

करते हैं। यह वस्तुओं के वास्तविक गुणधर्म बतलाने वाले नहीं होते। पदार्थ कुछ 

और है और संसारी लोग कुछ और कह रहे हैं। 

माया का पर्दा इतना पड़ा है की ये लोग यथार्थ को जान ही नहीं पाते। 

यस्य सत्ता न अस्ति एवं गते तद् प्रतीयते अर्थात जिसकी सत्ता नहीं है पर वह 

प्रतीत हो वह माया है। 

माया :मा Ma means know ,या Ya means that ."that which is not 

there 

is Maya .

In physics (optics ,the science of light )we call it Mirage where in  



dear sees a pool of water in Hot desert due to the combined 

phenomina of refraction and total internal reflection of light . 

जयश्रीकृष्णा। 

शनिवार, 8 नवंबर 2014

चलती को गाड़ी कहे ,मालतत्व को खोया , रँगी को नारंगी कहे ,देख कबिरा रोया।

चलती को गाड़ी कहे ,मालतत्व को खोया ,

रँगी  को नारंगी कहे ,देख कबिरा रोया। 

चलती को गाड़ी कहे ,खरे  दूध का खोया ,

रंगी को नारंगी कहे ,देख कबीरा रोया। 

We say "being lost "to very essence of milk (milk product 


Khoya,is obtained when milk is boiled for a long time on slow and 

steady  heat ,and becomes milk extract Khoya,

the semi solid remnant )extract and people say  colorless to a 

colored fruit .

Narangi (orange coloured citrous fruit) .

कबीर कहते हैं इस संसार की रीति बड़ी उलटी है चलती हुई चीज़ को लोग 

गढ़ी  हुई (गाढ़ी 

रुकी हुई )

कह रहे हैं। तथा दूध का जो सत्व (मालतत्व ,खोया /मावा है )उसे कह रहे हैं 

खोया हुआ (जिसे खो दिया गया हो ). 

जो पहले से ही रँगी हुई है उसे कह रहे हैं ना -रंगी (अर्थात रंगी हुई नहीं है ) बिना 

रंग की रंगहीन चीज़। 

भावार्थ क्या है कबीर का आशय क्या है यहां ?

कबीर कहतें हैं संसार प्रतीयमान है। 

It is an empirical (pragmatic )reality ,a relative reality and not an 

absolute one .It is an appearance which is time dependent ,space 

dependent ,that which is in a flux and is constantly undergoing a 

change .The world is inside the mind .There is nothing outside of 

the mind .And the mind is an illuminator (a relative illuminator 

)with respect to the world but itself the mind is an illumined body 

w.r.t the world .Therefore the mind  exists only with the blessings 

of 


the consciousness .If consciousness is not there the mind vanishes 

.Along with the mind the world also vanishes .

So the world is an appearance (प्रतीति ). 

ऐसे आभासी संसार में संसारी लोग जो कुछ देख रहे हैं वह सब उलट पुलट है 

यथार्थ से दूर है। इस प्रतीयमान (आभासी )संसार में व्यक्ति की बुद्धि भ्रमित 

रहती है। इसीलिए संसारी जीव जो गढ़ गई  उस गढ़ी हुई ,गाढ़ी जा चुकी चीज़  

गाड़ी को चलती हुई  कह रहे हैं। और रंगहीन चीज़ को रंगीन नारंगी। 

लोगों के अपने सापेक्षिक ज्ञान में जिसे वह यथार्थ ज्ञान समझ रहे हैं के वस्तुओं 

के 

प्रति सम्बोधन भ्रम पैदा करते हैं। इसीलिए पदार्थों के वाचक शब्द भरम पैदा 

करते हैं। यह वस्तुओं के वास्तविक गुणधर्म बतलाने वाले नहीं होते। पदार्थ कुछ 

और है और संसारी लोग कुछ और कह रहे हैं। 

माया का पर्दा इतना पड़ा है की ये लोग यथार्थ को जान ही नहीं पाते। 

यस्य सत्ता न अस्ति एवं गते तद् प्रतीयते अर्थात जिसकी सत्ता नहीं है पर वह 

प्रतीत हो वह माया है। 

माया :मा Ma means know ,या Ya means that ."that which is not 

there 

is Maya .

In physics (optics ,the science of light )we call it Mirage where in  



dear sees a pool of water in Hot desert due to the combined 

phenomina of refraction and total internal reflection of light . 

जयश्रीकृष्णा। 






किं आश्चर्यम

किं आश्चर्यम 

महाभारत में वृत्तांत है यक्ष ने युधिष्ठिर से जो ६० सवाल पूछे थे उनमें से एक यह 

भी था ,कि युधिष्ठिर यह बतलाओ इस विश्व में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है। तब 

युधिष्ठिर ने जो कहा वह इस प्रकार था :

अहानि अहानि भूतानि ,गच्छन्ति यम मन्दिरम् । 

शेषा : जीवितुं इच्छन्ति किं आश्चर्यम अत : परं .  

इसका अर्थ कुछ कुछ यूं होगा प्रतिदिन जितने  भी प्राणि है मृत्यु की तरफ जा 

रहे 

हैं। यह देखते हुए भी शेष जो लोग हैं वह जीवन की जो आशा है उसके मोह से 

मुक्त नहीं हो रहे हैं। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है। 

Perhaps intuitively one knows that there is some portion of us 

which never dies .But why then there is fear of death ?

The answer is ignorance of the self .

"that I am that consciousness which is eternal and all pervading ."

"सत्यं  ज्ञानम् अनन्तं "

Once they know that ,the fear will vanish .

शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

भारतीय परिवार के लिए एक अनुकरणीय प्रतीक है शिव परिवार

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विरुद्धों का सामंजस्य है शिवजी का परिवार

 भारतीय परिवार के लिए एक अनुकरणीय प्रतीक है शिव

परिवार। इसीलिए इस परिवार के सभी सदस्य देश के हर कोने में पूजे जाते हैं।शिवजी कोबरा (विषपति सर्प

)धारण किए हुए हैं तो इनके पुत्र गणपति (जो सभी गणों के पूज्य माने जाते हैं )मूषक पर विराजमान हैं। अब

यहां देखिये की चूहा, सर्प का स्वाभाविक भोजन है। लेकिन दोनों सुख पूर्वक एक ही परिवार में रह रहें हैं।

शिव का वाहन नंदी है और पार्वती (दुर्गा )का शेर (चीताः 'टाइगर ) लेकिन दोनों में वैर नहीं है।कार्तिकेय दक्षिण

भारत में मान्य हैं तो शेष परिवार उत्तर में।

यह भी देखिये कि भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है और सर्प मोर का स्वाभाविक भोजन है लेकिन यहां शिव

कुनबे में दोनोँ  में सामंजस्य  है। परिवार भावना है।

हाथी बल और बुद्धि का प्रतीक है स्वभाव से शाकाहारी है किसी पर हमला नहीं करता लेकिन संकट आने पर

टाइगर को भी सूंड में लपेटकर दूर फैंक देगा। रक्षक है यह परिवार का। ऐसा ही होना चाहिए परिवार का

मुखिया।


यहां हमारे लिए सन्देश यह है की परिवार में रहकर परिवार के अन्य सदस्यों के कल्याण के लिए काम करो।

पति पत्नी के लिए काम करे। उसकी ज़रुरत से पहले समझ ले उसे क्या चाहिए और वही चीज़ उसे मुहैया

करवा दे। और पत्नी पति की इच्छा जानकर कर्म करे उसे पूरा करे। दोनों मिलकर बच्चों की इच्छा जानें और

उसकी पूर्ती करें।

परिवार का मुखिया सभी के हितार्थ कर्म करे।

synthesis of the opposites  and living in synergy saves our energy 

and produces more output then the total of the individual efforts 

(output ).This is the bottom line here .This is the carry home 

message .

विशेष :देखिये भगवान शंकर के बारे में क्या कहा गया है। प -वर्गीय 


देवता होने पर भी शिवजी अ -पवर्गीय फल प्रदान करते हैं : 

पार्वती  फनि बालेन्दु ,

भस्म मंदाकिनी युता। 

प -वर्ग मण्डिता मूर्ति ,

अ -पवर्ग फलप्रदा। 

अर्थात शिवजी का अस्तित्व प -वर्ग से मंडित (भूषित )है लेकिन 

मोक्षप्रदायनी है। 

पार्वती हमारे जीवन में प्रेम और विशुद्ध बुद्धि का प्रतीक हैं। प्रेम की 

जननी गृहस्वामिनी स्त्री ही होती है। घर प्रेम से ही चलता है। अगर हमारी 


बुद्धि विशुद्ध हो गई तो फिर समझो पार्वतीजी हमारे जीवन में 

प्रतिष्ठित हो गईं। 

फणी मतलब सर्प फ़न वाला (कोबरा )

जीवन में हर प्रकार की  प्रतिकूलता का स्वीकार शिव हैं। भगवान ने सर्प 

को आभूषण बनाया हुआ है। जिसको दुनिया दूषण मानकर तिरस्कृत 

करती  है शिव उसे भी भूषन में बदल देते हैं। 

द्वितीया के चाँद  बालेन्दु  को भी उन्होंने धारण किया हुआ है आभूषण 

बनाया हुआ है। जो जीवन में उत्तरोत्तर विकास का प्रतीक है। 

गंगा (मंदाकिनी )जीवन में पवित्रता और भस्म वैराग्य (non attachment 

,dispassion )का प्रतीक है। प्रेम  का अंतिम स्वरूप भी नान -अटेचमेंट है। 

भगवान कार्तिकेय पराक्रम का प्रतीक हैं। आप तारकासुर का वध करके 

अभय प्रदान करते हैं।