ग़ज़ल ।
करनी अनकरनी पहचान ,कहानी अन -कहनी पहचान ,
बहुत हो चुका गोल गपाड़ा,अपनी हदबंदी पहचान ।
मन तेरा हो फूल सरीखा खुशबू हो तेरी पहचान ,
अपने के तो सब होतें हैं ,गैरों पे हो जा कुर्बान ।
एकल गान सुनाया खूब ,अपना तुम्बा ,अपनी तान ,
लय में सुर में ,बजे साज़ तो ,तेरा स्वर हो वृन्द गान ।
कौन किसी के होता संग ,खुद अपनी बन तू पहचान ,
कुछ को तो ले अपने साथ ,रार सभी से मतना ठान ।
सहभाव :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "
वीरेंद्र शर्मा .
रविवार, 29 मई 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
kya likhun .....????????????????????
शुक्रिया!
एक टिप्पणी भेजें