बुधवार, 30 सितंबर 2009

स्टाप स्पिटिंग ,फ्लू विल गो अवे .

लोगों को हाई -जीन (स्वास्थय -विज्ञान )की ज़रा सी भी समझ हो तो स्वां इन फ्लू के इस दौर में जब की यह विश्व -मारी (पेंदेमिक )बन चुका है -लोग जगह जगह ना थूके-बचपन में एक शैर सूना था -जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठके ,या वो जगह बतादे ,जहाँ पर खुदा ना हो ।
हमें हिन्दुस्तान में कोई एक ऐसी जगह बता दे ,जहाँ लोग और जहाँ के लोग गली -कूचे में सरेआम बिना संकोच के बाकायदा "थूकते ना हों ।"
डॉक्टरों का कहना है -स्वां फ्लू के फैलाव में हमारी इस अजीबो गरीब आदत का भी बड़ा हाथ है .पैथोरिस्पाय -रेटरी वायरस के फैलाव में " जगह -जगह थूकने की बुरी आदत अपनी भूमिका निभा रही है .एयर द्रोप्लेट्स के माध्यम से इन्फ़्लुएन्ज़ा २००९ -ऐ वायरस बाकायदा जनसमुदायों में प्रसार पा रहा है ।मरीज़ से भले ही आप ६ फीट की दूरी बनाए रहें ,उसकी जगह -जगह रह चलते सरे राह थूकने की लत का क्या कीजिएगा?
काश हम फ्लू से ही कुछ सीख लेते ।
"स्टाप स्पिटिंग फ्लू विल गो अवे "

सुडोकू खेलने से आप मुटिया सकतें हैं .

एक नए अध्धय्यन के मुताबिक सुडोकू ग्रिड भरने या पहेली का हल खोजने रहने वाले लोग मुटिया सकते हैं .कनाडा में संपन्न इस अध्धय्यन के अनुसार पहेली हल करने के दौरान दिमाग वही ऊर्जा खर्च करता है जो कसरत करने के काम आती है ,व्यायाम करने में खर्च होती है .लिहाज़ा जो लोग इधर ज्यादा दिमाग लगा देंगें वह कसरत से या तो भाग खड़ें होंगे या कमतर व्यायाम ही कर पायेंगे।
अध्धय्यन के दौरान दो समूहों को ८ हफ्ता व्यायाम करने को कहा गया ,लेकिन इनमे से एक समूह को दिन में पहेली भी हल करने को कहा गया .शब्दों का समायोजन एक दिमागी कसरत hai जिसमे utni ही ऊर्जा खर्च होती है जितनी अन्य व्यायाम करने में .लिहाजा देखा गया din me दिमागी कसरत करने वाला समूह उतना मेहनतनहीं करते थे ,उनके व्यायाम से गोल रहने की संभावना बनी रहती थी ।
"यु हेव only सो मच विल पावर "शोध के अगुवाrahin कथ्लीन गिनिस का यही कहना था -"विल पावर इस लाइक ऐ मसल .इट needs तो बी चेलेंज्द तो बिल्द इत्सेल्फ़ "-कथ्लीन का यह भी कथन है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-सुडोकू केन मेक यु फेट (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर ३० ,२००९ ,पृष्ठ २१ ।)
प्रस्तुती :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

मंदी में भी कुछ अच्छाई छिपी है ?

गत शती के तीसरे दशक की महान मंदी भले ही बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के हिसाब से किसी के भी लिए अच्छी नहीं थी -लेकिन इसमे भी कुछ अच्छाई छिपी थी जो आखिरकार सेहत के मुफीद साबित हुई ।
मंदी के उस महान और अप्रत्याशित दौर (१९२९-१९३२ )के गिर्द आगे पीछे के बीस सालों के दौरान लोगों के स्वास्थय का जायजा लिया गया .मिशिगन विश्व -विद्द्यालय के शोध कर्ताओं ने पता लगाया -मंदी के इस अनकूते(अन -अनुमेय)दौर के १९२९ -१९३२ सालों में ही आम अमरीकी (औरत -मर्द ,गोरे काले ,गंदुमी चमड़ी वाले सभी की )की औसत आयु ५७ से बढ़कर ६३ वर्ष हो गई .अलावा इसके मंदी के इस दौरे -दौराँ में बीमारियों और दुर्घटना से मरने वाले लोगों की संख्या में भी कमी दर्ज की गई ।
यूनिवर्सिटी इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोसल रिसर्च के शोधकर्ता होजे तापिया ग्रानाडोस कहतें हैं भले ही उक्त तथ्य (उत्तरजीविता में वृद्धि )सहज बुद्धि ,सहज बोध को झुठलाता हुआप्रतीत हो ,लेकिन ऐसा हुआ है इसके पर्याप्त प्रमाण मौजूद हैं .आम धारणा जबकि यही रही है ,बेरोज़गारी का दौर सेहत के लिए भी बुरा है ,नुक्सान दाई है ।
उक्त नतीजे पहले निकाले गए नतीजों के अनुरूप ही हैं ,पता चला था आर्थिक संकट की वेला में विभिन्न देशों के लोगों के स्वास्थय में सुधार ही हुआ था ।
हालाकि इसकी वजह बतलाई नहीं गई है ,लेकिन अब ऐसा आभास होता है यकीनी तौर पर -आर्थिक वृद्धि के दौर में लोग जम कर शराब पीतें हैं ,धुआं उडातें हैं -बेतहाशा धूम्र -पान करतें हैं ,कम समय के लिए नींद ले पातें हैं ,ज्यादा तनाव झेलते हैं .

ऊंची एडी की सेंडिल पहनने के सबब .....

ऊंची एडी की सेडिल के चलन को खासकर भारीभरकम बदन वाली महिलाओं के लिए अच्छा नहीं बतलाया गया था .हाइपर -टेंशन के खतरे को बढ़ाने वाली शःकहा गया था ।
अब एक अध्धय्यन से पता चला है कम उम्र से ही ऊंची एडी की सेंडिल पहनने वाली महिलायें आगे चलकर प्रौढ़ होते होते भी जोडो के दर्द ,गठिया ,संधिवात (आर्थ -राइतिस )से कराह उठेंगी .जोखिम बढ़ जाता है -जोडो की पीडा का ।
मर्द फ़िर भी जूतों की बनावट की वजह से अपेक्षा कृत बचा रहता है .(फ्लेट सोल सर्वोत्तम है )।
लेकिन युवतियों को निश्चय ही सावधानी बरतनी चाहिए जूते चप्पल ,सेंडिल ,बेलीज़ के चयन में ,ताकि पैर को बराबर आराम मिले ,आगे चल कर हिंड-फ़ुट की समस्या और पीडा से बचे रहने के लिए यह ज़रूरी है .या फ़िर नियमित स्ट्रेचिंग एक्षर -साइज़ (स्ट्रेचिंग कसरतों )का सहारा लिया जाए ताकि पैरो को ऊंची एडी वाली सेंडिलों के दुष्प्रभाव से बचाया जा सके ।
बोस्टन स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ तथा इंस्टिट्यूट फार एजिंग रिसर्च ,हेब्रू सीनीयर लाइफ स्तिथ के शोध कर्ताओं ने यही सिफारिश की है .यह तमाम शोध कार्य अमेरिकन कालिज आफ रुमेतालाजी की तरफ़ से आगे बढाया गया है .अध्धय्यन में फुट वीयर और जोंट्स पेन में साफ़ अन्तर सम्बन्ध देखने को मिला है -पूअर शू चयन और आर्थ -राइतिस एक दूसरे से नत्थी हैं ।
रूमेतालाजी के तहत जोडों के दर्द ,गठिया ,संधिवात आदि रोगों का अध्धय्यन और निदान आता है .

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

रेबीज़ से मौतें -भारत और चीन में सबसे ज्यादा .

चीन सरकार द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक -रेबीज़ से मौत के माम ले में भारत पहले और चीन दूसरे नंबर पर आता है ,वहाँ इसे जन स्वाश्थ्य के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बतलाया गया है ।
चीनी स्वाश्थ्य मंत्रालय के मुताबिक गत सालों में औसतन २४०० लोग हर साल रेबीज़ से मौत के मुह में जाते रहें हैं .केवल भारत ही इन मौतों के मामले में हमसे आगे है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-इंडिया ,चाइना टॉप दी लिस्ट ऑफ़ देथ्स फ्रॉम रेबीज़ (टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,सितम्बर २९ ,२००९ ,पृष्ठ ११ ।)
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

आलमी (ग्लोबल )तापमान में २०५० तक ४ सेल्सिअस की वृद्धि .

ब्रितानी मितीओरोलाजी (met eorology office Hadley सेंटर ) ने हाल ही में जो adhdhayyan संपन्न kiyaa है ,उसके mutaabik san २०५० तक ग्लोबल taapmaanon में ४ सेल्सिअस की वृद्धि हो जायेगी .gat saptaah prakaashit इस adhdhayyan में batlaayaa gayaa है ,jalvaayu parivartan की raftaar उस bhavishayvaani से kahin jyaadaa है जो २००७ में sanyukt raashtr Intergovernmental Penal on climate change ने की थी ।
adhdhayyan के nateeze jalvaayu -parivartan kaa vaisaa ही dhaanchaa darshaa रहें हैं ,बल्कि jalvaayu में और भी ugr और dhur -parivartan हो sakten हैं .oxford यूनिवर्सिटी में संपन्न jalvaayu parivartan baithak के समक्ष इस adhdhayyan के co -author Debbie Hemming ने ukt tathay की pushti की है ।
४ सेल्सिअस की to औसत वृद्ध batlaai गई है ,जबकि kshetriy star(regional level ) पर arctic के कुछ hisse १५ सेल्सिअस से भी jyaadaa garmaahat की वृद्धि darz कर sakten हैं ,जबकि paschim और दक्षिणी africa में यह वृद्धि १० सेल्सिअस jyaadaa हो सकती है ।
alavaa इसके इसी shati(centuey) में बरसात घाट कर औसत kaa paanchvaa hissa(one fifth ऑफ़ average rainfaal ) रह जायेगी .इससे असर grast होंगे afrikaa के कुछ hisse ,kedriy amrikaa tathaa medi terranean के hisse ,tathaa tateey ausrtralia (coastal australia )।
सन्दर्भ saamigri :-ग्लोबल temp to rise 4O C by "५०,s"FIFTIES "(times ऑफ़ इंडिया ,september २९ ,२००९ .page ११
प्रस्तुति :virendr शर्मा (veerubhaai )

सोमवार, 28 सितंबर 2009

अपराधी की शिनाख्त कर पकड़वाने वाली युक्ति .

स्टीवेन स्पैल-बर्ग के निदेशन में एक फिक्शन फ़िल्म बनी थी -"माइनोरिटी रिपोर्ट "जिसका कथानक एक विज्ञान कथा पर आधारित था .फ़िल्म में एक ऐसा पोलिस स्टेशन दिखाया गया है (प्री -क्राइम पुलिस स्टेशन )जो अपराध को घटने से पहले ही रोक देता था .क्या असली जिंदगी में भी ऐसा किसी अपराध रोधी कैमरे से मुमकिन है ,जो वर्तमान क्लोज़ सर्किट कैमरों से तालमेल बिठाकर अपराध को घटने से पहले ही रोक सके ।?
क्वींस यूनिवर्सिटी बेलफास्ट ने अपने एक केन्द्र -सेंटर फार सीक्युओर इन्फार्मेशन टेक्नोलाजीज के विज्ञानियों की देख रेख में एक ऐसी ही प्रणाली -इन्तीग्रेतिद सेंसर इन्फार्मेशन सिस्टम तैयार करली है .यह एक विशेष किस्म की क्लोज़ सर्किट टी .वी .टेक्नालाजी ही है जो अपराधी के अजीबो गरीब व्यवहार ,पोशाक खासकर हुडेड टोप्स (हूडेड केप्स आदि )आदि की शिनाख्त कर एक वर्बल अलर्ट जारी कर देगी ,वारदात से पहले ही अपराधी धर दबोच लिया जाएगा ।
आइन्दा पाँच सालों में युनाईतिद किंडम में ऐसी प्राणाली काम करने लगेगी ,विज्ञानी यही दावा कर रहें हैं .ब्रिटेन के गली कूचों,बसों ,रेलगाडियों ,रेलवे स्टेशनों ,हवाई -अड्डों पर फिलाल जो क्लोज़ सर्किट कैमरे लगें हैं ,यह प्रणाली उनके साथ तालमेल बिठाकर काम करेगी ।
इसका भरोसा उस कंप्यूटर विज़न टेक्नालाजी पर बैठा हुआ है जो क्लोज़ सर्किट कैमरों द्वारा मुहैया करवाई छवियों का विश्लेषण कर अप्रत्यासित व्यवहार करने वाले व्यक्ति को अलग से पहचान लेगी .इस प्रकार एक तरह से इस प्रणाली को संदिग्ध और एंटी -सोसल व्यक्तियों की पहचान करना सिखलाया गया है .यह वैसे ही होगा जैसे स्वान (कुत्ता )किसी अजीबोगरीब डील डोल लिबास वाले व्यक्ति को देख कर भोकने लगता है ।
धीरे धीरे इस प्रणाली में मेटल और मोवमेंट दितेक्तार्स का भी समावेश कर लिया जाएगा ,माइक्रोफोन्स से भी इसे लैस करदिया जाएगा .ताकि तुरत फुरत यह अलर्ट जारी कर सके ।
यूँ ब्रिटेन भर में चालीस लाख क्लोज़ सर्किट कैमरे जगह जगह लगे हैं ,लेकिन अपराध की रोकथाम में इनका कोई विशेष योगदान नहीं है .मज़ा तो तब है -जब अपराध घटने ही ना दिया जाए .और मशीन एक देतरेंटका काम अंजाम दे .

डार्क मीटर की खोज में अब "जेप्लिन -111

सृष्ठी विज्ञानी सृष्टि में व्याप्त गोचर -अगोचर पदार्थ का प़ता लगाने में बराबर मशगूल रहें हैं इसी की एक और कड़ी है -लार्ज हेड्रान कोलाईदर के बाद अब "जेप्लिन -१११।
सृष्टि विज्ञानी अभी तलक द्रव्य की बुनियादी कणिकाओं का ,ऐसी कणिकाओं का जो अपने से और भी छोटी इकाइयों से मिलकर ना बनी हों पता लगाने में असमर्थ रहें हैं -अभी तक सृष्टि का ९५ फीसद पदार्थ अगम -अगोचर -अज्ञेय ही बना हुआ है .डार्क मैटर अपने होने की ख़बर अपने आसपास गुरुत्व बल पैदा करके देता है ,यूँ यह अद्रिशय ही बना रहता है ,गुरुत्व के आधार पर ही इसके होने का कयास लगाया जाता है ।
ब्रितानी विज्ञानियों की एक छोटी सी टोली इन दिनों उत्तरी -इंग्लेंड की जमीन से एक मील नीचेएक पोटाश माइनमें एक अति विशाल (अब तक के सबसे शक्तिशाली कण -त्वरक पर काम कर रही है .मकसद है हाथ ना आने वाले पहेली बने डार्क मैटर की तलाश ।
इस एवज ब्रितानी टीम को ४० लाख पोंड का अनुदान मिला है ।
इस पार्टिकल एक्सालेटर को "जेप्लिन -३ "कहा जा रहा है .,यह क्लीव्लेंद के बौल्ब्य में स्थापित की जा रही है .यह सुविधा क्लीव लैण्ड पोटाश निगम ने मुहैया करवाई है .कॉस्मिक किरणों की बौछार से दूर (ब्रह्मांडीय किरणों की बरसात से बचाते हुए )इस प्रयोगशाला में ऐसी मशीन और उपकरण समायोजित किए गए हैं जो उन कणोंका पता लगायेंगे जिनसे मिलकर डार्क मैटर बना है ।
इन कणों को जिनसे डार्क मैटर बना है -वीकली इन्तेरेक्तिंग मेसिव पार्तिकिल्स भी कहा जाता है .(संक्षेप में विम्प्स )।
ब्रितानी कण -भौतिकी विदों का इरादा एक ऐसी मशीन बना लेने का है -जो संभावित और वांछित कणों की टक्कर झेलने के बाद एक सिग्नल लौटाए .इस सिग्नल (विकरण ?) की पड़ताल करके संभावित कणों की प्रागुक्ति की जाए ,निष्कर्ष निकाले जाएँ ।
आप को याद होगा -लार्ज हेड्रों कोलाईदर में विपरीत दिशाओं से आने वाली शक्ति -शाली टक्कर से पैदा नए कणों की टोह ली जानी थी ,विशाल चुम्बकों में खराबी आने पर प्रयोग मुल्तवी कर दिया गया था ,दुरुस्ती के लिए .कास्मिक किरणें एक प्राकृत लेब का काम करतीं हैं ,अनेक कणों की खोज इन कणों के वायुमंडलीय कणों से टकराव के बाद पैदा नए कणों के रूप में सामने आई है .इसीलिए इस प्रकार के प्रयोग जमीन के नीचे किए जातें हैं ,ताकि कास्मिक किरणों की दखल -अंदाजी से बच्चा जा सके .इस एवज शक्ति शाली कण -तोहीपार्तिकिल दितेक्तार्स काम में लिए जाते हैं .जो डार्क मैटर के मूल भूत कणों का पता लगा सकें .योरपीय न्युक्लीअर रिसर्च ओर्गेनाइज़ेशन और बाउल्बी नवम्बर में अपने प्रयोगों को अंजाम देंगीं .महीनों चलेंगे यह प्रयोग -देखतें हैं -किसके हाथ इलुसिव पार्टिकल्स लगते हैं .जो जीता वही सिकंदर -यानी नोबेल पुरूस्कार का अधिकारी ।
सन्दर्भ सामिग्री :-यु .के. टीम टेक्स आन "सी .इ .आर .एन "इन रेस (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर २८ ,२००९ .पृष्ठ १३ )।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

मौतरमाओं मुल्तवी रख सकतीं हैं आप बुढाने को ...

औरत की सेहत से जुड़ी है पूरे परिवार की सेहत की नवज ,इसीलिए प्रसन्न -वदना ,अन्नपूर्णा मौतरमाओं का बुढापे को मुल्तवी रख तरो-ताज़ा खूबसूरत बने रहना पर्यावरण की सेहत के लिए भी ज़रूरी है .बस थोडा सा खान -पान रहनी -सहनी में बदलाव बहुत अच्छे नतीजे दे सकता है ।
दिन भर में कितनी चाय -काफ़ी और उसके मार्फ़त चीनी -केफीन आप लेतें हैं ?ग्रीन टी हर मायने बेहतर है क्योंकि यह प्राकृत अवस्था में सिर्फ़ गर्म पानी में डिप करने के बाद सीधी ले ली जाती है ,बिना चीनी और केफीन के .एंटी -ओक्सिदेतिंग ,एंटी -कार्सिनोजेनिक गुणों से भरपूर होने के अलावा ग्रीन टी हल्दी की तरह एक कुदरती एंटी -बायोटिक है ,जो रोगों से बचाए रख कर प्रति -रक्शातंत्र (इम्यून सिस्टम) को कारगर बनाए रखने में मददगार है ।
रोज़ -रोज़ का तनाव कार्टिसोल हारमोन पैदा करता है ,जबकि खुशनुमा लोगों का संग साथ ,तनाव भरे धारावाहिक से हठकर व्यंग्य -विनोद से भरपूर कार्य-क्रम एन्दोर्फींस की मात्रा बढातें हैं -एन्दोर्फिंस का मतलब है -सुखानु -भूति ,एक खुशनुमा एहसास .वैसे तो किसी ने नहीं कहा होगा -लाफ्टर इज दा बेस्ट मेडीसिन .आज इसकी ज्यादा ज़रूरत है क्योंकि जिंदगी से हंसने हँसाने के अवसर छीन गएँ हैं ।
जब आप खिलखिलाकर हँसतें हैं -बहुत सारे मसल्स में खून का दौरा बढ़ जाता है ,चेहरे से तनाव दूर भागता है -झुर्रियां और डार्क सर्किल भी -ग्रीन टी भी यही काम करती है ।
दोनों ही शरीर से तोक्सिंस को बाहर निकालतें हैं ।
फ्रूट से तैयार फेस मास्क चेहरे से मृत कोशिकाओं को हठा देता है .मसलन पपीते से तैयार पपाया प्युरीन में मौजूद एंजाइम (पापेन )ड्राई स्किन को एक्ष्फ़ोलिएत करता है ,डेड सेल्स को हठाकार.अलावा इसके फ्रूट मास्क मेलेनिन के जामा होने को कम करता है .मसलन चोप्द स्ट्राबेरी में मौजूद बीता केरोटिन और विटामिन -ऐ एक प्रोटीन कोलाजन के पुनर -उत्पादन में मदद करता है .ब्यूटी पार्लर की और दौड़ने से झुर्री और डार्क सर्किल नहीं जायेंगे ।
जामुन फालसा रेस्प -बेरी (भारतीय रसभरी ),तथा चैरी एक रंजक पदार्थ -पिगमेंट एन्थो -सायं -निंस से भरपूर है जो एक तरफ़ बीनाई (विज़न ,आंखों की रौशनी )को बढाता है दूसरी और शरीर में रक्त संचरण को .ब्ल्यू -बेरीज ,ब्लेक बेरीज ,हों या शहतूत बुढापें में होने वाले स्मृति ह्रास (मेमोरी लास )को मुल्तवी रखतें हैं .मोटर स्किल्स की सक्षमता को भी कम होने से रोक्तें हैं ।
जल को जीवन कहा गया है -यह स्किन की तर्जिदिती (फिल्स दा स्किन विथ लिकुइड )को बढाकर झुर्रियों का बनना रोकता है .शरीर में पुष्टिकर तत्वों के संवहन ,अपशिष्ट पदार्थों की निकासी में मदद गार है .पाचन और पुष्टिकर तत्वोंके अव्शोष्ण में सहायक है .शरीर के सब अंगों की सफाई के लिए पानी चाहिए -दो ग्लास पानी तो गुर्दों को ही साफ़ सुथरा रखने को चाहिए ,जो दिन रात शरीर से अवांछित पदार्थों को बाहर निकालतें हैं ,दिन रात हमारे शरीर से (त्वचा से वाष्पन के द्वारा )पानी उड़ता रहता है .कुल मिलाकर १० -१२ गिलास पानी हर व्यक्ति को रोज़ पीना चाहिए .त्वचा के लिए बेहतरीन टोनिक है पानी .जेलस की जगह पानी को दीजिये .रहीम दास ने ऐसे ही नहीं कहा था -"रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून ,पानी गए ना उबरे मोटी मानुस चुन ।"
घर का काम करने ख़ास कर कोर मसल्स को पुष्ट करने वाले काम यथा पानी से भरी बाल्टी उठाकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाना ,हथोडे से कील ठोकना ,छत पे लगे जले साफ़ करने में ज़रा भी ना हिचकें .घर का सामान कंधे पे लटका कर लाइए .अस्थि और पेशियाँ सही सलामत रहेंगी काम करती रहेंगी तो जोडों के दर्द (आर्थ्रा -इतिस )से बची रहेंगी गृहणियां .कोर मसल्स (मुख्य पेशियों )को सक्रीय रखने वाले व्यायाम घर में या जिम जाकर कीजिये नीम्बू -वंशीय फल ,संतरे ,फ्रेश लाइम्स आइसो -फ्लेवोंस से भरपूर हैं ,जो ना सिर्फ़ एक कुदरती सन स्क्रीन काया काम करतें हैं ,त्वचा को चमकदार ,लेमन -फ्रेश ,तरो -ताज़ा बनाए रहतें हैं ,होत -फ्लेशिश से भी बचाए रहतें हैं .
चीज़ ,योघर्ट (दही ),टोफू ,फ्लेक्स सीड्स और सोया केल्सिं ऍम से भर पूर सेक्स फूड्स हैं .दूध और केला भी सेक्स हेल्थ के लिए अच्छे हैं .रजो -निवृत्त (मेनोपाज़ल )महिलायें तो वैजाइना के अस्तर के ड्राई बने रहने की वजह से सेक्स में ही अरुचि रखने लगतीं हैं .लेक आफ सेक्स ड्राइव के अलावा मोटापा मेनोपाज़ल महिलाओं को आ घेरता है -केल्सिं ऍम से भर पूर खाद्य पदार्थ इस सब की भरपाई करतें हैं ।
दिन भर में कमसे कम १०,००० कदम ज़रूर चलिए -जोगिंग लसिका तरल की सफाई करती है ,रक्त संचरण को सुधारती है ,बुढापे को मुल्तवी रखता है .जोडों के दर्द का इलाज़ है -सैर .

प्रौढ़ भी बन सकतीं हैं -मुग्धा ,बस थोडा सा व्यायाम .

अमरीकी शोध कर्ताओं ने पता लगा या है -सिर्फ़ बारह हफ्तों तक यदि रोजाना प्रौढ़ महिलाएं सिर्फ़ एक घंटा व्यायाम करें तो समय का चक्का दो दशक पीछे लौटाया जा सकता है ,यानी जवानी जैसी तरोताजगी महसूस की जा सकेगी ,मुग्धा बन ख़ुद पर भी आईने के सामने रीझा जा सकेगा ।
शोध से इस बात की पुष्टि हुई है -पचास केपेटेमें आ चुकी जो महिलायें ,नियमित जिम जाकर वर्क आउट करतीं हैं ,साइकिल पर लम्बी सवारी के लिए निकलती हैं ,तैरने में दिलचस्पी लेतीं हैं ,उनमे थर्तीज़ वाली रवानी चुस्ती फुर्ती -स्फूर्ति देखी जा सकती है ।
अपेक्षतया बुजुर्ग महिलाओं पर किए गए परीक्षणों से सिद्ध हुआ है -१२ सप्ताह का नियमित व्यायाम (एक घंटा अवधि का ) उनमे भी नै ऊर्जा ,नवजीवन का संचार कर सकता है ।
केलिफोर्निया विश्व -विद्द्यालय में संपन्न दो हालिया अध्धयन पुष्ट करतें हैं -रजोनिवृत्त (मेनोपोज़ल )महिलायें भी नियमित व्यायाम से उतना ही फायदा उठा सकतीं हैं ,स्वास्थय लाभ अन्यों की ही भाँती प्राप्त कर सकतीं हैं ।
मडोना (५१ )और टी .वी .प्रिजेंटर अन्ने रोबिनसन ,हमारे आमिर ,सलमान और शाहरुख खानों की बरकरार तंदुरुस्ती का यही राज है ।
डॉक्टर जिंटा ज़रिंस ने औरतों पर की गई आज -माइशों के बाद बतलाया है ,उम्र के साथ जो हारमोन सम्बन्धी और भौतिक परिवर्तन आतें हैं ,व्यायाम से प्राप्त फायदे उनसे बेअसर रहतें हैं .आपने उम्र दराज़ ५५ साला मौतार्माओं को अपना सब्जेक्ट बनाया है ,परीक्षण किए हैं .

रविवार, 27 सितंबर 2009

दबे पाँव भी आता है दिल का दौरा -सामाने -मौत .

बाबू (हमारे नाना को सभी प्यार से बाबू कहते थे ) स्कूल में कुर्सी पर बैठे बच्चों को पढाते पढाते ही चले गए थे .सुबह के मुश्किल से नौ ही बजे थे .बाद में माँ ने बतलाया था -बाबू को दिल का दौरा पडा था .अच्छे कर्म किए थे चलते हाथ पैर चले गए ,भगवान् सब को ऐसी मौत दे .आज भगवान् यही कर रहा है -माँ ज़िंदा होती तो यही तो कहती ।
लेकिन माँ को क्या पता था -दिल का दौरा सुबह ४- १० बजे के दरमियान अकसर पड़ जाता है ,सोते सोते ही आदमी इस दुनिया से उठ जाता है .दरअसल अब पता चला है -इसी वेला (४-१० बजे प्रातः )अड्रीनल गन्थि से हारमोन एड्रीनेलिन का स्राव अधिकतम होता है .हमारे स्रावी तंत्र का एक एहम हिस्सा है -एड्रिनल ग्लेंड।
अकसर ग़लत खान पान ,भाग daud की जिन्दगी ,व्यायाम का दैनिकी से गायब होना ,धूम्र -पान की ग़लत आदत ,सामिष भोजन का चस्का कब धमनियों के अस्तर में प्लाक की एक तह बना देता है -इसका पता तब चलता है -जब एक दिन सुबह सवेरे यह प्लाक अद्रेनेलिन के स्राव से टूट जाता है ,एक khoon का thakkaa बनता है ,धमनियों में फसताहै ,और साँस की धौकनी (दिल की लुब -डूब )हमेशा हमेशा के लिए बंद हो जाती है ।
लाख कहो -दिन में आधा घंटा ज़रूर पैदल चलो ,या फ़िर रोजाना १० ,००० कदम ,४ -५ बार दिन में हरी सब्जियां और फल खाओ ,शाकाहारी रहो ,सुनता कौन है ?
इसीलिए इस मर्तबा विश्व -स्वास्थय दिवस २००९ का थीम है -वर्क फार हार्ट .वर्क प्लेस पर तनाव मुक्त माहौल बनाओ ,घर का बना साफ़ सुथरा सीधा खाना खाओ या फ़िर वहीं पर ऐसा हेल्दी फ़ूड मुहैया करवाया जाए ,१० मिनिट का काम के दरमियान ब्रेक दिया जाए ,रिलेक्षएशन थिरेपी के लिए .काम के घंटे नियमित किए जाएँ ,जैव घड़ी के साथ ,खाने के टाइम के साथ ज्यादा छेड़छाड़ ना की जाए ।
याद रखा जाए अब दिल के दौरे का स्वरूप और लक्षण भी बदल रहें हैं -आदमी ४० के ऊपर अचानक ब्रेथ लेस नेस ,नाजिया ,लाईट headed ness -(ठीक से ना सोच पाना naa chal paanaa ,दी फीलिंग आफ दिज्जिनेस ओर आफ बीइंग अबाउट तू फेंट ),काफ का गभीर दौरा ,बाजूँ में अचानक दर्द ,दम घुट कर निकलने का एहसास और बस काम ख़त्म -बुजुर्गों के मामले में दवे पाँव आने वाले ऐसे दिल के दौरे की संभावना २० फीसद ज्यादा आंकी गई है ।
साइलेंट हार्ट आतेक ऐसे ही सोते सोते कितनो के ही प्राण पखेरू ले उड़ता है ।
दुनिया भर में दवे पाँव आने वाले दिल के दौरे के मामले बढें हैं ,मसलन अमरीका में सालाना कुल १४ लाख ६० हज़ार हार्ट अतेक्स में १ लाख ९५ हज़ार यानी तकरीबन १३ फीसद मामले दवे पाँव आने वाले साइलेंट हार्ट अटक के ही हैं ।
अमरीकी ह्रदय संघ की २००९ रिपोर्ट के मुताबिक २ लाख लोग dil ke दौरे की बिना शिनाख्त हुए (बिना रोग निदान के )ही चल बस्तें हैं .,सालाना तौर पर .४० -६० फीसद मामलों की ऐसे में शिनाख्त भी नहीं हो सकती ।
मेट्रो हार्ट इंस्टिट्यूट के प्रमुख ह्रदय रोग विद पुरुषोत्तम लाल कहतें हैं ,हार्ट अटक के कुल मामलों में जो अस्पताल तक पहुँच पातें हैं ,मरीज़ का इलेक्तोकार्दियोग्रेम लेने पर पता चलता है ,दिल का दौरा इसे पहले भी पड़ चुका है ,लेकिन मरीज़ को ना तो इसका इल्म ही होता है ,ना उसमे रोग के लक्षण प्रकट होतें हैं ।
इ .सी .जी .में मौजूद क्यू वेव देमेज्द तिस्यु (हृद पेशी का विनष्ट हो चुका भाग ) की साफ़ साफ़ khabar देता है ड्यूक युनिवार्सिती मएडिकल सेंटर ने हालाकि उक्त तथ्य की पुष्टि की है ,लेकिन साइलेंट हार्ट अटक के तमाम मामलों में क्यू -वेव्स की मौजूदगी नहीं रही है ।
ऐसे में एडवांस्ड एम् आर आई तेक्नालोजीज़ का सहारा रह जाता है ,जो देमेज्द तिस्यु का पता लगा सकता है ,चाहे है वह naa maaloom sa hi kyon naa raha ho .भारत में यह तकनीक आने में अभी वक्त लगेगा .कुछ विकसित देशों में यह काम में ली जा रही है .बचाव का एक कारगर तरिका है -जीवन शैली सरल बनाइये .

यदि बीबी से करतें हैं प्यार तो ....

आज की औरत उतनी ही महत्वा -कांक्षी है ,जितना की मर्द ,जिम्मेवारी का बोझ भी उस पर तीहरा है ,घर -दफ्तर का काम ,बच्चों का काम ,बॉस की झख -झख ,मर्द की मर्दानगी सभी से उसे दो चार होना पड़ता है .घर -गृहस्थी में बराबरी की हिस्से दारी निभाने वाले मर्द हैं ज़रूर ,लेकिन कुलमिलाकर समाज में पुरूष वर्चस्व ही है ।
ऐसे में महिला शशक्ति -करन लफ्फाजी से आगे नहीं जाता .कीमत इस सबकी औरत के दिल को चुकानी पड़ रही है ,जो अब पहले की बनिस्पत दस साल पहले ही ५० के आस पास औसतन दिल की बीमारियों की चपेट में आ रहा है .यह कहना है डॉक्टर अशोक सेठ साहिब का ,आप एस्कोर्ट्स अस्पताल दिल्ली के चेअरमेन हैं ।
अलावा इसके आलमी स्तर पर भी अब १५ -२० फीसद महिलायें ह्रदय रोगों की चपेट में हैं ।
अपनी माँ -नानी -दादी के बरक्स आज की औरत ज्यादा तनाव में है ,रहनी -सहनी का ढांचा ,काम के घंटे ,कार्य -दिवस सब कुछ पहले जैसा नहीं रहा है .डॉक्टर प्रवीण चन्द्र ,निदेशक कार्डिएक केथ लेब मेक्स अस्पताल दिल्ली के अनुसार बदलती जीवन शैली ही आज की औरत को दस साल पहले दिल की बीमारियों की ज़द में ला रही है ,जबकि पहले औरत को दिल की बीमारी का ख़तरा साठाहोने पर (साठोत्तरी होने पर होता था ),माहवारी के चलते इस्ट्रोजन हारमोन भी दिल की हिफाज़त करता रहता था .गर्भ -निरोधी टिकिया ,आई -पिल जैसी शै ने यह फायदा बेअसर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है .तनाव के चलते कई गैर -शादी शुदा महिलायें उम्र से पहले मेनोपाज (रजो -निवृत्ति ,कम्प्लीट सिजेशन आफ मेंस्त्र्युअल साईं किल ) का साम ना करते देखी गई हैं तनाव की अनदेखी करने के खामियाजे औरत के दिल को भुगतने पड़ रहें हैं .आर्टेमिस अस्पताल गुडगाँव के डॉक्टर कुशाग्र कहतें हैं ,अक्सर जब पत्नियां अपने बीमार पतियों के संग आती हैं ,तो उनके ठीक होने के बाद ही अपनी बीमारी का ज़िक्र करतीं हैं ,जब की मर्ज दोनों का यकसां होता है ,लक्ष्ण भी .लेकिन औरत पहले अपने मर्द के अच्छा होने का इंतज़ार करती है ,तब तक बहुत देर हो चुकी होती है .कीमत अन्नपूर्णा के दिल को चुकानी पड़ती है ।
ज़रूरी नहीं है ,औरत के अन्दर अन्ज़ाइना के परम्परा गत लक्ष्ण (सीने में दर्द हो ,दर्द भी रेदिअतिग हो )हों -सिर्फ़ ब्रेथलेस -नेस भी हो सकती है -दर्द कहीं से भी उठ सकता है ,कमर ,उपरी बाजू ,ग्रोइन (पेट औरजांघ के बीच का भाग ,उरू -संधि ),जाज़ (जबडा ).ट्रेड -मिल टेस्ट भी धोखा दे सकता है ,अक्सर औरत के माम ले में नकारात्मक (निगेटिव आता है .).गर्भ -निरोधी टिकिया ब्लड क्लाटिंग के लिए कुसूर वार ठहराई गई है ।
ब्रेथ -लेस -नेस और अपच का दवा के बाद भी बने रहना भी दिल की बीमारी का लक्षण हो सकता है ।
समाधान एक ही है -यदि आप अपनी बीबी को प्यार करतें हैं ,माँ बहिन को तवज्जो देतें हैं ,तो तीस के पार उनके खून में घुली चर्बी ,मौजूद शक्कर की जांच होनी चाहिए ।
एक बात और -दिल की अपनी कोई नर्व नहीं होती ,अलबत्ता बाहरी झिल्ली जिसमे हृद-पेशी लिपटी रहती है ,नर्व्ज़ लिए होती है -इसीलिए दिल का दौरा पड़ने पर ,ओक्सिजन की चिल्लपों होने पर हृद पेशी की बाहरी मेम्ब्रेन में मौजूद नर्व्ज़ अन्य अंगो को दर्द की इत्तला भेज देती है -यह दर्द कहीं भी हो सकता है -ज़रूरी नहीं है -स्टर्नम (सीने की हड्डी )से उठे .औरत को पड़ने वाला दिल का दौरा मर्द के बरक्स ज्यादा गंभीर होता है ,औरत की स्मार्टर आर्तारीज़ के चलते अन्जिओप्लास्ती और कोरोनरी -आर्टरी -बाई पास ग्रेफ्टिंग भी उतनी कारगर नहीं होती ,माम ला संगीन है -दिल दा मामला है .दिल के दरवाज़े हैं आख़िर ,खुलते खुलते ,खुल्तें हैं ।
,प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

शनिवार, 26 सितंबर 2009

समय की तरह विकास की धारा सिर्फ़ आगे की ओर है .

प्राचीन प्रोटीनों को एक बार फ़िर काम में लिए जाने लायक बनाकर (रीसरेक्ट कर )आरेगन विश्व -विद्यालय के शोध छात्रों ने दर्शाया है ,विकासात्मक धारा (इवोलूशन ) सिर्फ़ और सिर्फ़ आगे की ओर है .(है ना अजीब बात ,फ़िर भी हम लोग न सिर्फ़ अतीत को खंगालते रहतें हैं ,कई तो जीते भी अतीत में है )।
शोध कर्ताओं की टीम ने पता लगाया है ,"दी पाथ्स तू दा जींस वंस प्रेजेंट इन आवर एन्सेस्तार्स आर फार एवर ब्लाक्द "इसीलिए विकास का रास्ता आगे की ओर ही है ,बस ,पीछे की और जा ही नहीं सकता ।
शोध टोली ने कंप्यूटर पुनर -सरंचना (कम्पू -तेश्नल रिकंस्त्रक्ष्ण ) का स्तेमाल प्राचीन जींस के क्रम दोबारा तैयार करनें के अलावा ,दी एन ऐ संश्लेषण ,प्रोटीन इंजिनीअरिंग के अलावा एक्स -रे -क्रिस्तालोग्रेफी का स्तेमाल एक हारमोन रिसेप्टर (अभिग्राही )के जीन को दोबारा प्रयोज्य बनाने के लिए किया था .ताकि अब से ४० करोर साल पहले हमारेरीढ़ धारी पूर्वजों में मौजूद जींस की हु -बा -हूँ ,नक़ल उतारी जा सके ।
इस एवाज़ सारी तवज्जो एक ख़ास प्रोटीन (ग्लूको -कोर्तिको -ईद रिसेप्टर ) को दी गई .यही प्रोटीन हारमोन कोर्तिसोल को बाँध के रखती है ,स्ट्रेस अनुक्रिया (स्ट्रेस रेस्पोंस ) का विनियमन ,प्रतिरक्षण ,मेटाबोलिस्म (रेत आफ बर्निंग केलोरीज़ ,यानी चय -अपचय )कुल मिलाकर रीढ़ -धारी जीवों के व्यवहार के लिए उत्तरदायी है ।
बेशक इस ग्लुकोकोर्तिको -ईद रिसेप्टर को वैसा ही गढ़ लिया गया जैसा यह कोर्तिसोल के उद्भव के वक्त था ,लेकिन जैसे ही दी एन ऐ सिक्युएंस में हेरा फेरी करके की -म्युतेस्हंस (एहम -उत्परिवर्तन ) को रिवर्स करने (पूर्वा -वस्था में लाने )की कोशिश की गई ,प्रोटीन (ग्लुकोकोर्तिकोइड रिसेप्टर )ही नष्ट हो गई .शेष रह गई ,एक डेड नॉन फंक्शनल प्रोटीन ।
सन्दर्भ सामिग्री :वन वे आणली :इवोलूशन केन आणली गो फोरवर्ड (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर २५ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

बुद्धि क्षीण होती है मारपीट से बच्चों की .

अक्सर माँ -बाप अपना गुस्सा ,खीज ,नैराश्य बच्चों पर निकाल देतें हैं ,कभी पीठ पे धोल जमाकर ,कभी थप्पड़ मार कर .स्कूलों में तो कई -मर्तबा वहशीपन की हद हो जाती है .लेकिन वो किस्सा दूसरा है .यहाँ मामला बच्चों की परवरिश के दौरान माँ -बाप द्वारा डाट -डपट से आगे निकल कर स्पेंकिंग (पीठ औ चूतड पर थप्पड़ )मारने से ताल्लुक रखता है ।
दूसरी मर्तबा बच्चों पर हाथ उठाने से पहले इस अध्धय्यन के नतीजे जेहन में ज़रूर ले आयें .न्यू हेम्पशायर यूनिवर्सिटी के शोध छात्रों ने पता लगाया है -ऐसे बच्चे दूसरे बच्चों की बनिस्पत (जिनके माँ ०बाप डाट -डपट धौल बाज़ी से परहेज़ करतें हैं .)बुद्धि के मामले में पिछड़ जाते हैं ।
भूल जाइए इस घिसे पिटे जुमले को -"स्पेअर दारोड एंड स्पाइल दा चाइल्ड "-वो ज़माना और था ।
बच्चों का बुद्धि -कोशांक इस बात से ताल्लुक रखता है -उन्हें कितनी मर्तबा सज़ा दी गई ,मार पीट की गई उनके साथ .वो बच्चे जिनके साथ रोज़ -बा -रोज़ मार पीट की जाती है -उनमे पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस दिस -ऑर्डर जैसे लक्ष्ण दिखलाई देतें हैं .ऐसे बच्चे बहुत जल्दी भयभीत औ भौचक रह जातें है ,बात -बात पर ।
ज्यादा डाट डपट से बच्चों की मानसिक क्षमता औ योग्यता छीजने लगती है ,उनका मानसिक विकास धीमा पड़ जाता है .थोडी सी डाट -डपट भी अपना असर दिखाती है -अच्छी नहीं है ।
मुर्रे श्त्रौस के नेत्रित्व में १५०० बच्चों को दो समूह में विभक्त किया गया -२-४ साला औ ५-९ साला .इस बात के मद्दे नज़र ,गत ४ सालों में उनके साथ कितनी बार औ कितना डाट डपट ,मार पीट की गई ,उनका आई .क्यु। जांचने के बाद निम्न नतीजे निकले -पहले वर्ग के बच्चों में पाँच अंकों की गिरावट दर्ज की गई उन बच्चों की बनिस्पत जिनके साथ मार पीट नहीं की गई थी ,जबकि दूसरे वर्ग के बच्चे इस मामले में २.८ अंक पीछे रहे ।
सन्दर्भ सामिग्री :स्पेंक्द किड्स में एंड अपविद लोवर आई .क्यु .(टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर २६ ,२००९ ,पृष्ठ २३ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

अपने दिमाग की बत्ती जलाओ ....

अजीब शहर है यह .यहाँ अक्सर लोग कार पार्क में आने के बाद भी विकल्स की हेद्लाइट्सआन रखतें हैं .कोई इनसे यह नहीं कहता -भाई साहिब !अपने दिमाग की बत्ती जलाओ ,मुझे अब बुझाओ ।
आजकल हमारे पी .सी .साहिब (पी .चिदम्बरम साहिब )राजधानी क्षेत्र को लेकर बड़े चिंतित हैं .कहतें हैं -आस पास के नगरों से आने वाले यात्रियों को इस शहर के तौर तरीके ,शहर की रवायत ,कायदे कानून ,ट्रेफिक रूल्स का पालन करना सीखना होगा .कामन-वेल्थ खेल सर पर खडें हैं -एक जन प्रशिक्षण अभियान शुरू होना चाहिए .ज़रूर होवे ।
माननीय प्रति -रक्षा मंत्री जी एक गुजारिश हमारी भी है -वी आई पीज़ मोवमेंट के लिए एक अलग कारीडोर बनाया जाए .बेहतर हो इन एलिएंस के लिए "किसी इतर ग्रह से उड़न तस्तरी किराए पर ली जाए "-ताकि जन जीवन औ वाहनों की आवाजाही निर्बाध बनी रहे .सुनामी से कम नहीं होता इनका गुजरना .कामन वेल्थ गेम्स के दौरान इन्हें इस हाल देख इतर देशों से आए खिलाडी पूछेंगे -"ऊधो कौन देश को वासी ....बूझतसांच ना हांसी "

एक नज़र इधर भी ....

सड़क के बीचों बीच एक पत्थर पडा था .लोग उससे बेपरवाह आ जा रहे थे .सब उससे बचके निकल रहे थे ,कोई कोई ऊपर से भी .किनारे पर पडा एक पत्थर यह सब लीला देख रहाथा ,साक्षी भाव लिए ..जब उससे रहा नहीं गया तो एक दिन वह बीच वाले पत्थर से बोला -भाई !किनारे पर आ जावो ।
"अपने आप कैसे आवूं ,लोग मेरी तरफ़ देखते ही नहीं ."-ज़वाब मिला .किनारे वाला पत्थर सोचने लगा -बड़े अजीब लोग हैं इस शहर के ,रास्ते में पडा पत्थर भी दिखाई नहीं देता है .कैसे देख रहें हैं यह लोग "विश्व नगरी बननेका सपना ?शर्म नहीं आती ?
इस शहर में मैंने किसी को फुटपाथ पर चलते नहीं देखा ,इसका मतलब यह नहीं है -फुटपाथ हैं नहीं .हैं ,पर उन पर या तो कचरा पडा रहता है ,या फ़िर फेरीवाले डेरा डाले रहतें हैं ,कहीं कहीं चाय का खोखा भी है ।
मैंने अक्सर देखा है -आबालवृद्ध (बच्चे जवान औ बुजुर्ग )सभी सड़क पर चलतें हैं ,हर जगह इनके लिए जेब्रा क्रोसिंग है ,जहाँ से यह सड़क काटें वाही जेब्रा क्रोसिंग है .एक दिन फुटपाथ एक युवा भीड़ से मुखातिब हुआ कहने लगा -बेशक आप भारत का भविष्य हैं लेकिन इस समय आप का भविष्य खतरे में है ,कहीं से भी वेगन -आर आएगी ,आपको रोंद कर निकल जायेगी ,वेगन -आर तो फुटपाथ पर भी चढ़ आई है ज़नाब ,फ़िर आप किस खेत की मूली हैं ?
रेड लाइट खड़ी खड़ी सोच रही थी -इस शहर में लोग मेरी तरफ़ देखते ही नही ,मैं अपना काम अक्सर ठीक से अंजाम देतीं हूँ ,इंडिकेटर तो कोई देखता ही नहीं .क्या हो गया है इस शहर को ?तभी आकाशवाणी हुई -अभी सदबुद्धिका इशारा नहीं हुआ है ,इसीलिए इंडिकेटर कोई नहीं देखता ।)

कार्बन डाय-ऑक्साइड को दफन करने वाले कोयला बिजली घर .

अमरीकी इलेक्ट्रिक कम्पनी ने १९८० में माउन्तेनिअर कोयला बिजली घर स्थापित किया था .तब ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा ,ग्रीन हाउस गैसों का भी कोई ज़िक्र नहीं था ,अब यही विशाल बिजली घर दुनिया में पहली मर्तबा कोयला बिजली घर से निकली कारबन -डाय -ऑक्साइड को ज़मीन में दफनाने के लिए तैयार है .चीन और भारत के प्रतिनिधि इंजीनिअर भी इसका जायजा लेने वहाँ पहुंचे हैं .कार्बन एमिशन औ बिजली घर की राख एक मेजर पोलुटेंट्स हैं ,आस पास की वनस्पति भी बिजली घर की राख से असर ग्रस्त होती है ।
इस प्रोजेक्ट के तहत इस हफ्ते ही पहले तो कार्बन -दाई -ऑक्साइड को एक तरल में तब्दील करेंगे फ़िर इसे ७८०० फीट की गहराई पर मौजूद सेंद्स्तों (बालू -पत्थर )की परतों में पम्प करके पहुंचाया जाएगा ,फ़िर उसके भी ४०० फीट नीचे इसे डोलोमाईट की परतों में भेजा जाएगा .यह वहाँ मौजूददरारों में से खारे पानी को हठाकरख़ुद पसर जाएगा ।
अमरीकी इलेक्त्री पावर (बिजली निगम )का इरादा आइन्दा २-५ सालों में १०० ,००० टनकार्बन डाय -ऑक्साइड बिजली घर के गिर्द बने कुओं में दफनाने का है ,यह मात्रा कुल निसृत कार्बन डाय -ऑक्साइड का मात्र १.५ फीसद ही है ।
यदि यह योजना किफायती साबित होती है ,औ कार्बन उत्सर्जन के ख़िलाफ़ अमरीकी सरकार लगाम कसती है तब बिजली निगम ९० फीसद तक कार्बन -डाय -ऑक्साइड दफन करने के लिए तैयार है ।
फिलवक्त इस प्रोजेक्ट के तहत सिर्फ़ दो कुँए हैं ,एक छोटी सी केमिकल फेक्ट्री है जो चिमनी से निकलने (निसृत )धुएँ को (कार्बन डाय -ऑक्साइड )एक अति शीतित (चिल्ड)अमोनिया आधारित रसायन में मिला देती है .इस मिस्र को अब गर्म किया जाता है ,इस प्रकार जो कार्बन डाय -ऑक्साइड मुक्त होती है उसे पम्प करके कुओं में भेज दिया जाता है ।
योरोप और नार्थ अफ्रिका में इससे बड़े प्रोजेक्ट कार्बन -डाय -ऑक्साइड को केप्चर कर दफन करने के लिए तैयार किए जा रहें हैं ।
नार्थ डाकोटा में :दी ग्रेट प्लेन्स सिन- फ्युएल्स प्लांट कोयले को मेथेन में तब्दील करता है ,शेष बची कार्बन डाय -ऑक्साइड को पम्प करके पाइप लाइंस के ज़रिएकनाडा भेजा जाता है ,जहाँ यह आइल प्रोदक्श्न को एड लगाती है ,स्तिम्युलेट करती है ।
लेकिन माउन्तेनिअयर दुनिया का पहला ताप बिजली घर है जो कार्बन डाय -ऑक्साइड को अलग कर जमीन में गहरे दफन करने को तैयार है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-ऐ फस्ट ,कोल -फायर्ड प्लांट त्रईज़ तू बरी इट्स कार्बन -डाइऑक्साइड (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर २३ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )विशेष :अमरीकन इलेक्ट्रिक पावर अज कार्बन डाय -ऑक्साइड केप्चर फेसिलिटी इज इन वेस्ट वर्जीनिया .

जादुई दवा एस्पिरीन -एक झलक .

सरपत या सरै सलिक्स प्रजाति का एक नरम लोचदार छरहरी टहनियों वाला पौधा या फ़िर झाडी होती है ,इसकी पत्तियाँएक दम से नेरो तथा मंजरी छोटे छोटे पुष्प लिए होती है ,अलबत्ता ये पुष्प बिना पांखुरी के होतें हैं ,अंग्रेज़ी में इस पादप को विलो कहा जाता है ।
यूनानियों ने पहली मर्तबा विलो बार्क (सरै की छाल ,वल्कल )से एसितिल -सेली -साईं -किलिक एसिड से मिलता जुलता एक दर्द नाशी नुस्खा तैयार किया था ।
एक ताज़ा अध्धय्यन के मुताबिक वे लोग जिनके खानदान में बड़ी आंत का केंसर कई पीढीयों से चला आ रहा है ,और जिन्हें कोलन केंसर होने का जोखिम ज्यादा है ,एस्पिरिन की एक टिकिया का रोजाना नियमित सेवन उनके लिए कोलन केंसर के खतरे को घटा सकता है .(देखें -एस्पिरिन रिद्युसिज़ कोलन केंसर रिस्क -टाइम्स आफ इंडिया ,सितमबर २२ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )।
१८९७ में बायर दवा निगम ने विल्लो त्री से "एसितिल -सेली -साईं -क्लिक एसिस तैयार किया .१९०० में यह दवा बाज़ार में आ गई ।
१९१४ में युद्ध ने व्यापार को असरग्रस्त किया ,एस्पिएं तैयार करने का एक और तरीका खोजा गया ।
१९२०ईज़ में एस्पिरिन का चलन एक एंटी -पाइरेतिक(ज्वर नाशी दवा ),फ्लू से पैदा दर्द निवारक के बतौर किया गया ।
१९३० इज़ एस्पिरिन जानारिक दवा के रूप में बाज़ार पे छा गई ,बायर का पेटेंट समाप्त हुआ ।
१९४० इज़ में केलिफोर्निया के चिकित्सकों को पता चला -जो लोग एस्पिरिन का सेवन करतें हैं ,वह अपेक्षया हार्ट अटक से बचे रहतें हैं ।
१९५० इज़ बच्चोंके लिए चूसीजा सकने वाली एस्पिरिन की टिकिया बाज़ार में आई ,बाद में रेज़ सिंड्रोम के डर से इसे वापस ले लिया गया ।
१९६० इज़ अपोलो चन्द्र यात्री (अन्तरिक्ष यात्री )एस्पिरिन की टिकिया अपने साथ ले गए ।
१९७० इज़ कैसे असर करती है एस्पिरिन की जादुई टिकिया -इस राज़ का खुला सा हुआ ,१९८२ का नोबेल पुरुष्कार (चिकित्सा क्षेत्र में )इसी खोज को दिया गया ।
१९८० इज़ अमरीकी फेडरल ड्रग एड्मिनिस्त्रेष्ण ने एस्पिरिन का स्तेमाल हार्ट अटक और स्ट्रोक करने की सिफारिश कर दी ।
१९९० इज़ एस्पिरिन की लो दोजेस का स्तेमाल शुरू हुआ .हार्ट अटक की बचावी चिकित्सा के बतौर ,उन के लिए जो रोग प्रवण थे ,यानी जिन्हें रोग होने का ख़तरा ज्यादा था ।
२००० एस: उन्माद और कई तरह के केंसरों के ख़िलाफ़ एस्पिरिन को असरकारी पाया गया ।
बीच में सोल्ज़र नाम से एस्पिरिन की टिकिया एस्प्रेस्सो कोल्ड ड्रिंक के रूप में भी बाज़ार में आई ,कहा गया एक दिन में ८ गोलिया तक आप ले सकतें हैं ,जल्दी ही इसे बाज़ार से वापस ले लिया गया .हमने भी नादानी के दिनों में इसे तफरीह के लिए आजमाया .दुष्प्रभावों से वाकिफ होते ही भाग खड़े हुए ।
फ़ूड एंड ड्रग एड्मिनिस्त्रेष्ण इस दवा के स्तेमाल की इजाज़त निम्न स्तिथियों के लिए देता है -
(१ )हार्ट अटक के बाद सस्तेनेंस डोज़ के बतौर मौत के खतरे को को कम करने के लिए ,अटैक की पुनरावृत्ति (वापसी )को रोकने के लिए भी ।
(२ )दर्द और ज्वर नाशी के रूप में ।
(३ )आर्थ्रा -इतिस ,लुपुस के इलाज़ में ।
आज अमरीका में बिना नुस्खे के बिकने वाली दवाओं में (ओवर दा काउंटर ड्रग्स )में एस्पिरिन औ एस्पिरिन से तैयार नुस्खों की बिक्री कुल ऐसी दवाओं की बिक्री का पांचवा हिस्सा है ।
विशेष :एवोइड एस्पिरिन इफ यु हेव -(१ )एस्मा (दमा )औ एस्पिरिन एलर्जी दर्शाने वाले सभी लोग एस्पिरिन का स्तेमाल ना करें .(२ )गभीर किडनी (गुर्दा रोग )औ लीवर डिजीज (यकृत की बिमारी से ग्रस्त लोग ) एस्पिरिन से दूर रहें .(३ )ब्लीडिंग दिसोर्दार्स से (रक्तस्राव सम्बन्धी विकारों से ग्रस्त लोग )तंग आ चुके लोग एस्पिरिन से परहेजी बरतें ।
सन्दर्भ सामिग्री :टाइम्स ट्रेंड्स -एस्पिरिन :ऐ वंडर ड्रग (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर २४ ,२००९ )पृष्ठ १७ /विल्लो -एनकार्टा कंसैसइंग्लिश डिक्शनरी
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

बुधवार, 23 सितंबर 2009

मुगालते ही मुगालते .

अरस्तु (अफलातून )को मुगालता था -पृथ्वी सृष्ठी का केन्द्र बिन्दु है .मानव आत्माओं की यह प्राकृत निवास स्थली है ,देवासुर संग्राम का कुरुक्षेत्र है .कोपरनिकस और उनके शिष्य गेलीलियो ने यह मुगालता भी दूर किया -पता चला ,पृथ्वी तो स्वयं अपने पेरेंट सितारे की परिक्रमा करती है (एक जिओसेंत्रिक सिस्टम है ।).
आदमी को एक और मुगालता था -अपने परमात्म स्वरूप का ,डार्विन ने यह मुगालता भी तोड़ दिया .विकासात्मक कड़ी में आदमी का होना एक इत्तेफाक भी हो सकता है ,एक विचलन भी ,आदमी का होना कोई कास्मिक मजबूरी नहीं हैं ।
सच भी सापेक्षिक अवधारणा मात्र है .यहाँ तो द्रव्य की कथित मूल भूत कणिकाओं का ही सिर पैर नहीं हैं ,यह ख़ुद अपने से भी ज्यादा बुनियादी कणोंकी बनी हो सकतीं हैं .आज की स्तिथि यह है -ना यह कण हैं और ना ही बुनियादी ,इन अल्पकालिक कणों का स्वरूप लगातार बदलता है ,शिफ्तीं हैं ये कणिकाएं .ये उस कार की तरह हैं जो ट्रायल के दौरान ही फेक्ट्री गेट पर क्रेश हो जाती है ।
सच के ऊपर से धुंध की एक चादर और छंटी है ,अभी तक हम प्रकृति को एक बेक्द्राप एक केनवास भर मानते थे ,और इतिहास को एक मानव केंद्रित आख्यान ,आनुवंशिक विज्ञान ने हमारे श्रेष्ठता बोध को चुनौती दी है ।
पता चला है ,कीडे -मकोडे और आधुनिक मानव की आनुवंशिक बनावट में कोई ख़ास अन्तर नहीं हैं ,२-४ जींस का ही भेद है .आदमी चूहा भी हो सकता था आदमी का कायनात में होना कोई कायनात की मजबूरी (कास्मिक नेसेसिटी नहीं है )महज एक इतीफाक है ,एक विचलन भी हो सकता है ,कास्मिक एबेरेशनभी ।
बेशक आदमी की मेधा दुर्जेय है ,लेकिन उतनी भी नहीं ,वह चंद्रमा को ही अपना उपनिवेश बनाने की सोचने लगे ,अपनी ही दृश्य -श्रव्य सीमाओं का अतिक्रमण कर साईबोर्ग (आंशिक मशीन और आंशिक मानव ),साइबरनेतिक ओर्गेनिज्म ही बनने की ठान ले (केविन वारविक से क्षमा याचना सहित -"आई -साईं -बोर्ग "किताब के लेखक और दुनिया के पहले साईबोर्ग )।
एक तरफ़ जीवन की निस्सारता का रोना ,नश्वरता का विलाप -"पानी केरा बुदबुदा ,अस मानस की जात देखत ही बूझ जाएगा ,ज्यों तारा परभात ",सिर पर लटकी ग्लोबल वार्मिंग की तलवार -एक और मुगालता "हम जायेंगे तो हमारे साथ यह सृष्ठी भी नष्ट हो जायेगी "
पारिस्तिथि -की तंत्र और प्राकृत दुर्घटनाओं का जाय जा भी हम जान माल की क्षति के हिसाब से लगातें हैं .दिव्यता को एक मानव केद्रित जामा पहनाने की यह एक और कोशिश मात्र है .जैव मंडल के सभी प्राणियों से इतर हम अपने को इस्वरीय रूप मानने का मुगालता पालें हैं ।
यहाँ एक कवि के उदगार गौर तलब हैं ,यदि मच्छियों को ख्वाब में स्वर्ग दिखलाई देगा तो उनका ईश्वर मतस्य स्वरूप ही होगा ।
वनस्पति जीवाश्म शास्त्री स्टेफेन जे गौल्ड ने कहा था ,पृथ्वी हिम युग ,उल्का पात से दो चार होती रही है -मानव निर्मित आपदाओं से भी मुकाबला कर लेगी ,लेकिन पृथ्वी या फ़िर किसी भी ग्रह की करवट आदमी को चलता कर देगी ।
आदमी का यूँ जाना एक कास्मिक नॉन इवेंट ही होगी ,कोई नैतिक संकट नहीं खडा होगा .बड़े गुमान से दार्शनिकों की एक पूरी वंश वेळ कहती आई है -यह कायनात एक अदाम्मय इच्छा शक्ति (विल )एक आइडिया का खेल है ,जिन पर सिर्फ़ मानव का एका -अधिकार है ।
चेतना से परे कायनात का कोई अस्तित्व नहीं है ,पृथ्वी पर जीवन बाद को आया -यह विचार भी एक मेंटल कांस्त्रक्त है ।
जबकि हकीकत कुछ और है -सभी ज्ञान विज्ञान धर्म दर्शन एक ही जगह पर आकर मिल जातें हैं -वास्तविकता मिथ्या है ,न्यूट्रिनो कण की तरह इलुसिव है .जगत मिथ्या है .क्वांटम फिजिक्स भी केवल प्रागुक्ति ,संभावना से आगे नहीं बढ़ पाती है -ऐसा ऐसा हो सकता है ,यह तो कहा जासकता है ,लेकिन ऐसा ही है ,कहना नामुमकिन है ,फ़िर इतना मान गुमान ,मुगालता क्यों ?
प्रकृति की अपनी व्ययवस्था है अपना ऑर्डर है ,अपनी स्वायत्तता है ,आदमी की चिंताओं से उसका विशेष लेना देना नहीं है ।
पास्कल ने एक बार कहा था -स्थूल (मेक्रो )और अति सूक्ष्म हमारे सूक्ष्म बोध से परे हैं ,आंशिक दर्शन ही कर सकतें हैं ,हम मेक्रो और इन्फिनितेसिमल का ,पूर्ण अवलोकन नहीं ।
फ़िर भी आदमी अपने से ही कायनात को नाप रहा है .ऐसे में सच से उसका सामना हो तो कैसे ?

सोमवार, 21 सितंबर 2009

और अब स्कूलों में आई- लेब्स ..

मासाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट आफ टेक्नालाजी के शोध -छात्रों को अमरीका के हाई -स्कूलों में आई -लेब्स (आन लाइन प्रयोगशालाये )चालू करने के लिए १०,००००० डालर की राशि अनुदान स्वरूप मिली है .इन आज़माइश -घरों (लेबों)को आसानी से इंटरनेट के ज़रिए स्तेमाल में लिया जा सकता है ,और यह वर्चुअल प्रयोगशालाएं नहीं हैं ,यहाँ बाकायदा काम करने के उपकरण मौजूद हैं ,जो प्रयोग के लिए आन लाइन २४ घंटा उपलब्ध रहेंगे .आप फ़िर दुनिया भर में कहीं भी क्यों ना हों आप के पास बस एक वेब केमरा और रिमोट कंट्रोल्स (दूर -नियंत्रण प्रणालियाँ )होनी चाहिए ।
यकीं मानिए यह वर्चुअल वर्ल्ड नहीं है ,हाई टेक इंस्ट्रुमेंट्स सच -मुचके हैं जिनसे छात्रों को वास्तविक आंकडे प्राप्त हो सकेंगे .दी आफिस आफ साइंस ,टेक्नालाजी ,इनजीनिअरींग एंड मेथएजुकेशन पार्टनर -शिप्स(ओ .एस ई .पी )नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी की केमी जोना कहतीं हैं ,आज कल के छात्र ना केवल हमेशा आन लाइन ही रहतें हैं ,टेक -सावी भी हैं (प्रोद्द्योगिकी पर उनकी पकड भी है .).वह उपकरण को छू नहीं सकते इस बात से वह ज़रा भी विचलित नहीं हैं ।
जोना आई -लेब्स को स्कूल पाठयक्रम के साथ समेकित कर एक ऐसी वेबसाईट हब के रूप में तैयार करना चाहतीं हैं जहांतक सब की पहुँच हो ,जिसे सब की भागेदारी बन सके .यह बिल्कुल ई -बे -टाइप मार्किट प्लेस की तरह होगी ।
फिलवक्त वेब साईट पर उपलब्ध उपकरण इस प्रकार हैं -यूनिवर्सिटी आफ क्वींस लैण्ड (ऑस्ट्रेलिया )का इन्वार्तिद पेंडुलम ,मासाचुसेट्स इंस्टिट्यूट आफ टेक्नालाजी की माइक्रो -इलेक्ट्रोनिक्स डिवाइस करेक्ट -रैजेशन लेब ,एक दाइनेमिकलसिग्नल अनेलैज़र ,एक एजुकेशनल लेबोरेटरी वर्चुअल इंस्ट्रुमेंटेशन सुइट ,एक पालीमर क्रिस्तेलाइज़ेशन एक्सपेरिमेंट ,एक शेक टेबिल ,हीट एक्सचेंजर ,ऐ फोर्स आन ऐ दाइपोललेब तथा न्युत्रों स्पेक्ट्रोस्कोपी लेब्स ।
इलिनाय के मार्क वोंद्रसक जो एडवांस्ड फिजिक्स पढातें हैंकी कक्षा में इन उपकरणों की आज़माइश शुरू हो चुकी है .,आई लेब के ज़रिए एक गाइगर काउंटर (पार्टिकल डिटेक्टर) का स्तेमाल एक रेदिओधर्मी प्रयोग के दौरान रेदिओधर्मी स्रोत से निसृत विकिरण की पड़ताल के लिए किया गया है ।
आइन्दा छात्र भी विज्ञानियों की तरह सीख समझ सकेंगे ,आजमैशें(प्रयोग )कर सकेंगे ।
ज़ाहिर है -कल क्लास रूम का माहौल भी बदलेगा ,सभी स्कूलों को समान अवसर ,समान सुविधाएं मिल सकेंगी .जोना आई -लेब्स को शिकागो पब्लिक स्कूल सिस्टम ,अन्य स्कूल जिलों तक लाना चाहतीं हैं ,ख़ास कर वहाँ जहाँ सुविधाओं की कमी है ।

भी विज्ञानियों की तरह

बिगर ओरगन =हेल्दीअर में ?

साइज़ डज़ मेटर .क्या आदमी के लिंग (शिश्न )के औसत से अपेक्षाकृत थोडा बड़े होने का सम्बन्ध उसकी अन्यों के बनिस्पत अच्छी सेहत से भी है ?
विक्टोरिया यूनिवर्सिटी ,आस्ट्रेलिया के शोध -कर्ताओं द्वारा संपन्न एक अध्धय्यन के मुताबिक सचमुच ऐसे लोग अपने पर ज्यादा भरोसा रखतें हैं और इनका कुलमिलाकर स्वास्थय भी हर लिहाज़ से बेहतर होता है .अपनी छवि निर्माण ,बाडी बिल्ड अप,सेहत के हिसाब से बेहतर तरीके से शेप अप होतें हैं ये लोग -सचेत भी .साइंस -ऐ -गोगो -वेबसाईट ने हाल ही मेंये सब बतलाया है ।
शोध के अगुवा रहीं अन्नाबेल चन इसे लोकर रूम सिंड्रोम कहतीं हैं (लोकर रूम इस,ऐ रूम कंटेनिंग लोकरस ,वेअर पीपुल चेंज देअर क्लोद्स फॉर स्पोर्ट्स आर स्वीमिंग ),जहाँ आदमी आत्म रति ग्रस्त हो जाता है . किशोरिया नग्नावस्था में शीशे के सामने ख़ुद को अकसर निहारतीं हैं ,मुग्ध होतीं हैं अपने ही शरीर पर देहयस्ती पर .मर्दों के मामले में इस दृष्टि से यह अध्धय्यन नया है ।
अपनी कद काठी देह -यष्टि की तुलना अकसर आदमी स्वीकृत आदर्श देह के प्रतिमानों से करता है .वे इस तरफ़ से निश्चिंत रहतें हैं -यौन संबंधों पर इसका क्या प्रभाव पडेगा ।
कामसूत्र में वात्सायन ने तीन प्रकार के पुरूष गिनाये हैं -अश्व,वृषभ और यह वर्गीकरण उनके लिंगाकार स्वभाव की ख़बर देता है ,बाडी ओडर,स्पर्म (शुक्राणु वीर्य की गंध की भी ).आत्म विश्वाश और ख़ुद पर भरोसे की भी ।
संदर्भित अध्धय्यन में आदमी के शिश्न के आकार (पेनिस साइज़ )बाडी इमेज और मानसिक स्वास्थय की जांच की गई है .औसत से ज्यादा शिश्न आकार वाले लोगों को आत्म विश्वाश से लबालब भरा पाया गया बरक्स उनके जिनका शिश्न आकार औसत या औसत से भी कम था .सेहत के मामले में भी पहले वर्ग के लोग हर दृष्टि से २१ थे .यह आन लाइन अध्धय्यन १८ -७६ साला ४० देशों के ७०० लोगों ने संपन्न किया है ।
अध्धय्यनमें ६ फीसद लोग आदर्श बोडीसाइज़ के बरक्स वर्तमान बोडी साइज़ से भी संतुष्ट थे ,९० फीसद आदर्श से ऊपर (बिगर )होने की तमन्ना रखते थे और ७ फीसद अपने को आदर्श साइज़ से पहले ही ऊपर मानते थे ।
सन्दर्भ सामिग्री :-बिगर ओरगन =हेल्दिअर मेन?(टाइम्स आफ इंडिया सितम्बर २१ ,२००९ ,पृष्ठ १५
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ) .

रविवार, 20 सितंबर 2009

यह सब क्या हो रहा है ?पहली किस्त ........

लोग सरे आम आतें हैं ,भारतीय समाज व्यवस्था को ,भारत -धर्मी समाज को सेंध लगाकर चले जातें हैं ,और हम हैं की उफ़ तक नहीं करते ?(गज़ब है सच को सच कहते नहीं हैं ,हमारे होंसले पोले हुए हैं ,हमारा कद सिमट कर घटगया है ,हमारे पैरहन झोले हुए हैं ,सियासत के कई ,चोले हुए हैं ."
बिंदास बोल -खुलकर बता जो महसूस करता है -अमूर्त प्रजा तंत्र (भारतीय आधुनिक प्रजातंत्र )इतना सहमा -सहामा क्यों हैं ।
अब कल की ही बात है -मौका था -एनूअल पीस दे -स्थान था -इंडिया हाबितात सेंटर -वक्ता थें /थीं -मिस्टर नौलखखा(नव्लाख्खा सन्सएंड दौतारस,बेटे -बेटियाँ )-पेनालिस्ट का नाम बताने के लिए नौलखखा काफ़ी हैं -सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे थे (बेंगन वोट बेंक है ),इसलिए सभी का नाम लेना कोई मायने नहीं रखता -एक मंतव्य सुनकर लगा -भारत में प्रतिरक्षा सेवाओं का एक ही काम है -औरतों से बलात्कार करना .दूसरे वक्ता का मूल स्वर था -"अब सुप्रीम कोर्ट फैसला करेगा -कौन सा इंधन भारत में स्तेमाल किया जाए "एक सुविख्यात नामचीन ,नामवर एक्टिविस्ट ने बतलाया -लोग आजिज़ आकर माओ -ईस्ट बनतें हैं(भारत ने क्या चीन की भैंस खोलकर बेच दी है जो चीन अरुणाचल में दलाई लामा के पैर रखने को रक्त -रंगियों के लिए ख़तरा बतला रहा है .)ये सारे पेनालिस्ट हमें लाल चीन की हिमायत करते दिखे -प्रकाश -करात के माँ -बाप लगे (तल्खी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ।
"सिर्फ़ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं ,लेकिन ये सूरत बदलनी चाहिए ,अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ,सब कमल के फूल मुझाने लगें हैं ".जब सियासत एक ढकोसला बन जाती है -तब अपेक्स -कोर्ट को सुओ -मोटो कदम उठाना पड़ता है -यह ओबामा नहीं प्यारे -कभी ना मुस्कराने वाली सोनिया का प्रजा तंत्र है -इसीलिए सब गफलत में हैं .मुखोटा तो असली चेहरा नहीं होता -मन मोहन क्या अकेला भार झोकेंगा ?सिर्फ़ मनमोहन होने से क्या होता है .

दिमाग को पैनाने ,धारदार बनाए रखने के लिए ....

एक अमरीकी अध्धय्यन के नतीजे काम की बात बतलातें हैं ,आप भी जानिए -यदि दिमाग को पैनाने औ धारदार बनाए रखने की तमन्ना बाकी है ,आप अपना आई .क्यु .(बुद्धि कोशांक )बढाना चाहतें हैं ,कला फिल्में देखिये ,खुश्वन्त्सिंघ्जी की फेंतेसीज़ पढिये ,फ्रेंज काफ्का (चेक -नाविलिस्ट ,१८८३-१९२४ )को पढिये .अस्तित्व -वाद समझ आ जाएगा ,२० वी शती की कलाकृतियाँ देखिये -सुर -रीयलिज्म को जानिए समझिये -एक ऐसा खाब आपने देखा है जिसमे एक शानदार भव्य महल है ,जो जर्जर भी है ,जीर्णशीर्ण भी है ,एक ऐसी कलाकृति देखिये जिसमे परस्पर असम्पृक्त चीज़ों को समायोजित किया गया है ,जिसमे आपका अवचेतन झाँक रहा है -बस जैसे ही आप एक भूलभुलैयाँ में शब्दों की अर्थों की प्रवेश करेंगे ,एक एब्सर्दिती से दो चार होंगे ,दिमाग के पट खुल जायेंगे ,थोडा सा ग्रे मीटर पैदा हो जाएगा (नए न्युरोंस भी शायद बन जाएँ ,दिमाग की एकल कोशिका को ही न्यूरोन कहा जाता है ).अध्धय्यन का यही संकेत है ।
इसी सबसे प्रेरित होकर शायद सहज बोध -वश हम भी बच्ची कार्कारिया ,जग -सुरैया ,शोभा दे को पढने समझने लगें हैं .केटिल-क्लास से ऊपर आने लगें हैं हम .त्वितीरात्री banne की तमन्ना है .ट्विटर एडिक्ट हुआ चाहतें हैं हम भी .वैसे आपको बत्लादें केटिल शब्द का अर्थ होता है ,हमारे जैसा एक आदमी जिसकी कोई अलग से शक्शियत ,एहमियत नाहो ,ऐ क्राउड आफ मॉस .,पीपुल आफ अन्दिफ़्रेन्शिएतिद मॉस ,भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता ।
वैसे १९ वी शती के अमरीका में गायों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए केटिल कार्स(कारें ) होती थी .आज कल इसे हवाई जहाज की इकानोमी क्लास कहा जाता है .इसे समझने के लिए आपको त्वीत्रात्त्री होना पडेगा ,त्वीत करना पडेगा .फ़िर जांच करवाइए अपने आई .क्यु .की ।
यकीं मानिए हमने जवानी में भी एक किताब पढ़ी थी -मिस्टर ताम्प्किन इन वंडर लैण्ड .किताब के लेखक ने गलती से दिन में आइंस्टाइन का सापेक्षवाद पर (ठोरी आफ रिलेटिविटी )पर भाषण सुन लिया था -रात को उसे अजीबो -गरीब खाब आए ,किताब में उनका ही हवाला है .तब से हमें भी चाट लगी है .अजीबोगरीब पढने लिखने की .आप भी पढिये देखिये एब्सर्ड चीज़ें ,अपना आई .क्यु .बढाइये .

अब डी.एन .ऐ .साम्पिल में भी हेरा फेरी .

इजराइली विज्ञानियों की एक टीम ने अपनी ताज़ा शोध के नतीजे फोरेंसिक साइंस इंटर -नेशनल -जेनेटिक जर्नल में प्रकाशित किए है .कितना अजीब है -इस बरस जेनेटिक फिंगर प्रिंटिंग की सिल्वर -जुबली है -इसी अगस्त माह में -अब तक हमारी उँगलियों के निशाँ की तरह ही हमारे आनुवंशिक हस्ताक्षर समझा जाता था -जेनेटिक फिंगर प्रिंट्स को ,बेशक डी .एन .ऐ .की रासायनिक सरंचना हम सब की यकसां हैं लेकिन हमारी वाईट ब्लड सेल्स में मौजूद डी .एन .ऐ .में बेस पैर्स का क्रम या रासायनिक यौगिक (केमिकल कंपाउंड्स )एक जैसे नहीं होते ।
इस्रायली आनुवंशिक विज्ञानियों ने पता लगाया है -अब एक आदमी की लार (सेलाइवा )और और रक्त के साम्पिल्स (नमूने )किसी और आदमी की लार और रक्त साम्पिल्स से भी गढे जा सकतें हैं ,यानी फेक साम्पिल्स अपराध विज्ञानिक जांच को भटकाने के लिए तैयार किए जा सकतें हैं ।
आरुशी ह्त्या -काण्ड में नमूने ही बदल दिए गए थे और सी .बी .आई .अंधेरे में हाथ पैर मारती रही ।
फेक डी .एन .ऐ .तैयार करने के लिए इस्राइली आनुवंशिक -विदों ने पहले तो एक औरत के खून के नमूने लेकर इसमे मौजूद वाईट और रेड ब्लड सेल्स को अलग किया .अब एक आदमी के बाल से डी .एन .ऐ .लेकर इसे आवर्धित (एम्पलीफाई )करके एक वृहद् नमूना तैयार किया गया .अब इसे उसी औरत के फ्री -रेड -ब्लड साम्पिल्स में जोड़ दिया गया .बस -यूरेका -आई हेव फा -उन्द इत -आर्किमीदीज़ ने बोले थे ये शब्द धैरिय खोकर ,और नंगे ही बाठ तब से निकल भाग खड़े हुए थे -मुकुट असली सोने का है या नकली -उन्हें इसका सुराग मिल गया था (आर्क्मीदीज़ प्रिन्सिपिल )के रूप में ।)
इस्राइली विज्ञानियों की भी यही मनास्तिथि रही होगी ?
दी ब्लड मेच्द दी मेंस जेनेटिक प्रोफाइल -इस्राइली विज्ञानियों ने यही फेक साम्पिल एक अमरीकी अपराध -विज्ञान प्रयोगशाला में जांच के लिए भेज दिया जहाँ इसकी रूटीन जांच एक आदमी के ब्लड साम्पिल के बतौर की गई ।
आपने देखा होगा -कुछ दूकानों पर लिखा होता है -किसी सामान की कोई गारंटी नहीं .तब क्या यह माना जाए अब हमारे खानदानी दस्तखत भी नकली बना लिए जायेंगे .उस यूनीक आई -देन्तिफिकेष्ण कार्ड का क्या होगा जो हमें आइन्दा तीन सालों में मिलने वाला है ?वह भी तो डी .एन .ऐ .साम्प्लिंग पर आधारित होगा ./बेशक इसे कुछ लोग अभी दूर की कौडी समझ रहें हैं ,लेकिन कौडी तो यह है ही ,एक फेक डी .एन .ऐ .फिंगर प्रिंट बनाने के नज़दीक तो हम पहुँच ही गए ।
सन्दर्भ सामिग्री :-टाइम्स आफ इंडिया (हाउ तू टेम्पर विद योर डी .एन .ऐ .-सितम्बर २० ,२००९ ,पृष्ठ २६)
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

पारसी- इड्स उल्काएं क्या हैं ?

यूनानी पौराणिक -कथाओं में ज़उस और दाने के पुत्र पारसी -एस का ज़िक्र है .पर्सिअस को हिन्दी में परशु या फरसा कहा जाता है -फरसा परशुराम का भी शस्त्र रहा है ।
राशियों के नाम पौराणिक कथा -नायकों के नाम पर ही रखे गए हैं .राशिः यानी कोंस्तेलेष्ण सितारों के उस समूह को कहा जाता है ,जो किसी पशु या फ़िर देवाकृति जैसे दिखतें हैं।
पारसी -अस उत्तरी -गोलार्द्ध का एक कोंस्तिलेसन यानी तारा समूह ग्रुप आफ स्टार्स है ।
पुरसी -इड्स उस उल्का का नाम है जो १२ अगस्त के आसपास परसु -राशि सेपैदा
होते उल्का वर्षं -अन (मेतीओर -शावर ) में मुखरित होता है ,साफ़ साफ़ दिखलाई देता है .हम पहले भी अपने चिठ्ठे में कई मर्तबा बतला चुकें हैं -उल्का यानी मेतीयोर यानी शूटिंग स्टार धूम -केतू के अंश ही है जो जब तब पृथ्वी के गुरुत्व से खींचे चले आतें हैं ,अक्सर वायु -मंडलीय घर्षण की गर्मी से गल -पिघल पूरी तरह नष्ट हो जातें हैबस कभी -कभार इनके बिना जले चट्टानी औ धातु -नुमा अंश पृथ्वी पर आ गिरतें हैं ,यही मीतियो -रोइड्स है ,मेतीयोरोइट्स पूरी तरह जल जातें हैं ,पृथ्वी पर पहुँचने से पहले ही ।
धूम केतु स्विफ्ट ततिल से जोड़ा गया है पर्सीड्स का सम्बन्ध ।
खगोल -विदों के अनुसार जुलाई माह की आधी अवधि बीत जाने के बाद साल दरसाल हर साल यह उल्का वर्ष -अन पर्सिअस कोंस्ती -लेषण से आता प्रतीत होता है तथा ९ -१४ अगस्त के बीच महत्तम हो जाता है ।
कुछ दंत कथाओं के अनुसार यह वर्षं -अन संत लारेंस के आंसू हैं जिनकी शहादत का दिन १० अगस्त माना जाता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-(१)पर्सिअस ,पर्सीड्स -पृष्ठ १०८३ -एनकार्टा कंसा -इस इंग्लिश डिक्शनरी (ब्लूम्सबरी ,माइक्रो -साफ्ट एनकार्टा ,२००१ एडिशन
(२)वाट आर पर्सीड्स (ओपिन स्पेस ,टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर २० ,२००९ ,इतवार )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

शनिवार, 19 सितंबर 2009

गलत आदतें जीवन के दस साल ले उड़तीं हैं.

प्रोढ़ -अवस्था के वह धूम्रपानी जिनके खून में चर्बी भी सामान्य से ज्यादा घुली हुई है (यानी जो हाई -कोलेस्त्रिमिया से भी ग्रस्त है )और साथ ही उच्च रक्त चापके साथ जीवन यापन कर रहें हैं ,अपनी उम्र से दस साल पहले चल बसतें हैं ।
जबकि कितने ही अध्धय्यनों से और बारहा यह पुष्ट हो चुका है ,गैर -धूम्र -पानी और स्वास्थाय्कर खूराख के साथ नियमित कसरत करने वाले इनके हमउम्र दिल की बीमारियों से अपेक्षया बचे रहतें हैं ।
लेकिन इस बात की पड़ताल की इस सबका इनकी उत्तरजीविता पर क्या प्रभाव पड़ता है ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने की है ,आपने उन आंकडों को खंगाला है जो १९६० के दशक के दौरान ४० -६९ साला १९ ,००० नौकरी पेशा लोगों (सिविल सर्वेन्ट्स )के स्वास्थय के बारे में जुटाए गए थे .इन आंकडों में इनकी पूरी मेडिकल हिस्ट्री ,जीवन शैली ,खान -पानी ,रहनी -सहनी ,वेट ,ब्लड -प्रेशर ,ब्लड शुगर ,कोलेस्ट्राल औ लँग फंक्शन दर्ज है ।
२८ बरस बाद इनमे से जिंदा बचे ७००० ,लोगों की एक बार फ़िर पूरी चिकित्सीय पड़ताल की गई ।
पता चला जो धूम्र -पान ,कोलेस्त्रीमिया ,हाई -बल्डप्रेशर जैसे तिहरे जोखिम की चपेट में थे उनकी मृत्यु का ख़तरा इस दरमियान दो -से तीन गुना ज्यादा था ,बरक्स उन हम उम्रों के जो इन व्याधियों के खतरों से मुक्त थे ।
ना सिर्फ़ औसतन इनकी उम्र १० बरस कम हुई मौत भी दिल सम्बन्धी बीमारियों से हुई ।
बेशक गत दशक के दौरान अमीर देशों में फेटल स्ट्रोक्स और हार्ट अटेक के मामले घटकर एक चौथाई रह गए ,लेकिन रिस्क फेक्टर्स में उतनी कमीबेशी दर्ज नहीं हुई .बेशक अमरीका में बेकाबू उच्च -रक्त -चाप (अन्कोंत्रोल्ड ब्लड प्रेशर )के मामले १९९९ के बाद से अबतक घट
कर १६ फीसद ,हाई -ब्लड कोलेस्ट्रोल के १९ फीसद ,एवं तम्बाखू के स्तेमाल के १५ फीसद रह गएँ हैं ।
यही बात गरीब देशों के बारे नहीं कही जा सकती ,जहाँ धूम्र -पान का चलन घटने के स्थान पर बढ़ रहा है ,दिल के मामले भी औ उच्च -रक्त चाप भी जो जीवन शैली रोग बन चले हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-बेड हेबिट्स कट लाइफ बाई १० इयर्स (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १९ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

गूगल की एस्प्रेसो बुक सर्विस .

अपनी पसंदीदा किताब सही रेक्लिनेष्ण वाली आराम कुर्सी पर बैठ कर पढने का मज़ा कुछ और ही है ,बेशक किताबों के डिजिटल संस्करण ,सी- दीज़ और इ-बुक्स का दौर है ये ,लेकिन यूज़र फ्रेंडली कंप्यूटर के साथ हर कोई कंप्यूटर फ्रेंडली भी हो यह कतईzअरूरी नहीं ।
गूगल जल्दी ही फटाफट -छाप मशीन ,एस्प्रेसो मशीन सेवा उपलब्ध कराने जा रहा है ,जो ३०० पृष्ठ की किसी भी किताब को सिर्फ़ ५ मिनिट में छाप देगी .औ गूगल के पुस्तकालय में फिलवक्त २० लाख डिजिटल किताबें हैं ।
निकट भविष्य में ऐसी विरल किताब भी आपके हाथ में आ सकेगी जो आउट आफ प्रिंट है या फ़िर लेदेकर दुनिया भर में उसकी एक ही पांडुलिपि किसी संग्रहालय में आरक्षित है ।
एस्प्रेसो बुक सर्विस ३०० पृष्ठ की पेपर बेक किताब का आप से कुल ८ डालर वसूलेगी .जहाँ अमेज़न डाट काम एवं सोनी इंक ने इलेक्ट्रोनिक रीडर पैदा किए हैं ,वहीं इंटरनेट सर्च लीडर आप के लिए लेकर आया है -असली किताब -प्रिंट एडिशन डिजिटल किताब का ।
अलबत्ता गूगल अभी एक लिटिगेशन में फंसा हुआ है -जो उन किताबों के प्रकाशन पर अपना फैसला देगा जिनका ना कोई कापी राइट है ,औ ना कोई नाम लेवा ।
सन्दर्भ सामिग्री :-डिजिटल तू गो पेपर्बेक इन अंडर ५ मिनिट्स (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १८ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

दादी माँ एक बार फ़िर देखने लगीं हैं .

मिआमी विश्व -विद्द्यालय बस्कोम पाल्मर आई इंस्टिट्यूट के आई -सर्जन विक्टर पेरेज़ नेएक साठवर्षीय महिला को एक बार फ़िर बीनाई (दृष्टि )मुहैया करवाई है जिसकी बीनाई एक बिरले रोग स्टीवंस -जॉन्सन सिंड्रोम ने छीन ली थी उक्त बीमारी से ग्रस्त होने पर महिला की कार्निया पूरी तरह नस्ट हो गई थी ,लिहाजा २००० में इस रोग के हमले के बाद से ही यह महिला दृष्टि -हीना थी .इस महिला का नाम है -थोर्न्तों .नेत्र -शल्य -विद विक्टर ने पहले इस महिला का केनाइन टूथ उखाडा (इसे आई टूथ भी कहा जाता है ,यह मोलर औ इन्सैज़र टीथ के बीच नुकीले दांतों में से एक होता है )इसके गिर्द की अस्थि को भी एक्सट्रेक्ट किया गया ,इसे तराश कर अब एक खांचा बनाया गया जिसमे कृत्रिम लेंस फिट किया जा सके .(यह एक ओप्टिकल सिलिंडर नुमा लेंस था ,जिसे पहले खांचे समेत थ्रोंतों की गालों या कंधों की चमडी के नीचे दो माह तक प्रत्यारोपित किया गया ताकि दांत का खांचा औ लेंस परस्पर बोंड बना सकें ,एक हो सकें .इसके बाद कई किश्तों में एक साकेट आँख के बीचों बीच तैयार कर उसमे लेंस को जचाया गया .आख़िर कार इसे थोरोंतों के शरीर से स्वीकृति मिल ही गई औ एक बार फ़िर उन्हें दिखलाई देने लगा ,आस -पास के चेहरों को उन्होंने पट्टी खोलने के दो घंटों बाद ही पहचान लिया औ एक सप्ताह बाद अखबार भी बांचने लगीं ।
अलबत्ता इस एवज मुकोसा में एक सूराख प्रोस्थेटिक लेंस (क्रत्रिम लेंस )को फिट करने के लिए भी बनाया गया .अब आँख अपने स्थान पर है ,लेंस बाहर की औ बस थोडा सा झलकता है ।
यह नायाब तरीका इटली में विकसित किया गया था जिसे अमरीका में पहली मर्तबा काम याबी के साथ आजमाया गया है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-टूथ इम्प्लान्तिद इन आई हेल्प्स ग्रेनी सी अगेन (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १८ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

एथेनोल इंधन के बतौर गेसोलीन की तरह ही प्रदूषण -कारी .

ब्राजील के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा संपन्न एक अध्धय्यन के मुताबिक ,एथनोल चालित वाहन भी उतना ही प्रदूषण फैलातें हैं जितना गैसोलीन से चलने वाले .अध्धय्यन गन्ने से प्राप्त एथेनोल से चालित कारों से ताल्लुक रखता है रिपोर्ट में ब्राजील की सड़कों पर कारों से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड का ज़िक्र नहीं हैं .कार्बन -ऑक्साइड एमिशन्स का हिसाब किताब नहीं रखा गया है .मंत्रालय के अनुसार ,हमारा मकसद कार उपभोक्ताओं को प्रदूषण के बारे में सतर्क करना था ,ताकि कार खरीदते वक्त इस पर भी गौर किया जाए .एमिशन ग्रीन ग्रेड्स पर ०-१० अंक वाले एक पैमाने पर तीन सेहत के लिए खतरनाक समझे जाने वाली गैसों कार्बन -मोनो -ऑक्साइड ,हाइड्रो -कार्बंस ,और नाइट्रोजन ऑक्साइडउत्सर्जन के आधार पर दर्ज किया गया .बेशक ये ग्रीन हाउस गैसें ना सही ,सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं .(कार्बन मोनो -ऑक्साइड से तो बंद कारों में वेंट सिस्टम की खराबी से रष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कई डेथ हो चुकीं हैं ,साइलेंट किलर है यह गैस ।
बेशक गन्ने की फसल कार्बन के लिए एक ब्लोटिंग पेपर का काम करती है ,कार्बन एमिशन को सोख लेती है ,इसीलिए कार्बन एमिशन जो ग्रीन हाउस गैसों औ विश्वव्यापी तापन के लिए कुसूरवार समझी जाती है ,इस गिनती से बाहर रखी गई है .हो सकता है हिसाब किताब बराबर हो जाता हो ।गन्ने की बधवार के दौरान उतनी ही कार्बन दाई -ऑक्साइड सोख ली जाती हो ,जितना कारें उगलतीं हैं .
मिस्र इंधन से चालित २५० फ्लेक्स -फ्युएल कारों (एथनोल -गैसोलीन मिस्र से चलने वाली हाई -ब्रीद कार ) की भी सूक्ष्म जांच की गई ,ब्राजील की सड़कों पर ८५ फीसद ऐसी ही कारें दौड़ रहीं हैं ,जिन कारों को लोएस्ट ग्रेड मिला उनमे ८ कारें एथनोल और कितनी ही मिक्स्ड फ्युएल चालित भी थी .इनमे फ्लेक्स इंजिन फिट थे .यद्द्य्पी २००८ में निधारित एमिशन मान डंडों पर यह सभी खरी उतरतीं थीं । सेहत के लिए तो खतरे मुह्बाये खडे हैं .
सन्दर्भ सामिग्री :-मिथ बस्तिद :एथेनोल एज पोल्युतिंग ऐ फ्युएल एज पेट्रोल (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १८ ,पृष्ठ २१ ।)
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

दुनिया भर के समुन्द्रों की गर्माहट शिखर पर .

दी वर्ल्ड इज इन हाट वाटर .राष्ट्रीय सागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशाशन ने १६ सितम्बर २००९ को बतलाया है ,दुनिया भर के समुन्द्रों की गर्माहट गत तीन माह में अब तक दर्ज रिकार्ड के मुताबिक सबसे ज्यादा पाई गई है ।
जून - अगस्त ,२००९ की अवधि के दरमियान औसतन यह तापमान १७ डिग्री सेल्सिअस दर्ज किए गए हैं .,जो इस अवधि के लिए दर्ज तापमानों से ०.५ सेल्सिअस ज्यादा हैं ।
अगस्त माह के लिए यही तापमान औसतन १६.८ सेल्सिअस रहें हैं जो इस अवधि के लिए दर्ज तापमानों से ०.५ सेल्सिअस ज्यादा रहें हैं .,यानी अगस्त माह में भी समुन्दर अब तक दर्ज गर्माहट के बरक्स ज्यादा गर्मायें हैं .नेशनल ओशनिक एंड एत्मास्फियारिक एड्मिनिस्त्रेष्ण के नेशनल क्लाइमेट डाटा सेंटर के मुताबिक यह आंकडे १८८० से अब तक दर्ज आंकडों पर आधारित हैं । .
जून -अगस्त २००९ की तिमाही में संयुक्त स्थल औ समुन्द्रों का औसत तापमान (कम्बाइन्दलैण्ड एंड वाटर टेम्प्रेचर वर्ल्ड वाइड )१६.२ सेल्सिअस दर्ज किया गया ,जो इसी अवधि में दर्ज तापमानों में तीसरा स्थान बनाए हुए है .जबकि अगस्त माह में लैण्ड -वाटर संयुक्त तापमान आलमी स्तर पर १४.५ रहा ,जो अब तक दर्ज गर्माहट में चौथा स्थान बनाए हुए है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-वर्ल्ड्स ओशंसवार्मेस्ट आन रिकार्ड दिस समर (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १८ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

अब ड्रग -फ्री गांजा के पौधे ......

मारिजुआना (गांजा )के पौधे में (केनाबिस -प्लांट )में विज्ञानियों ने उस जीन (जीवन -खंड )का पता लगा लिया है जो साइको -एक्टिव पदार्थ टेट्रा -हाइड्रो -केनाबिनोल तैयार करवाता है .आप जानतें हैं मारिजुआना एक मादक पदार्थ है जो भांग के पौधे की पत्तियों को सुखाकर चरस ,गांजा हशीश के बतौर नशा -पत्ता के लिए चोरी -छिपे स्तेमाल किया जाता है .इस पौधे के औषधीय गुन भी कम नहीं हैं ।
मिन्नेसोता विश्व -विद्द्यालय के शोध -कर्मियों ने जिस जीन की पहचान की है उसका स्तेमाल नौजिया ,पेन (दर्द -नाशी )आदि के प्रबन्धन में और बेहतर दवा बनाने में किया जा सकेगा ।
भांग के पौधे पर लगने वाले पुष्पों को जो रोमकूप (टाइनी-हेअर्स )घेरे रहतें हैं ,उन्हीं में यह जीन सक्रीय अवस्था में मौजूद रहता है ।

इस जीवन -खंड की शिनाख्त (पहचान )के बाद अगला स्वाभाविक कदम इसे साइलेंस करनें (सुप्तावस्था में ,निष्क्रिय बनाए रखना )का है .इस प्रकार केनाबिस के पौधे को ड्रग फ्री (मादकता से बरी ,मादकता शून्य )बनाने की दिशा में भी पहला कदम रख दिया गया है .(विष तो तम्बाकू में मौजूद निकोटिन का भी अलग किया जा सकता है ,कोई राजी हो तब ना ,तम्बाकू से बड़ा ख़तरा तुबेको -लाबी है ,यहाँ भी ,वहाँ भी ।)
सन्दर्भ सामिग्री :ड्रग फ्री केनाबिस प्लांट कुम्स क्लोज़र तू रिएलिटी (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १७ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

सौर मंडल के बाहर पहली मर्तबा एक चट्टानी ग्रह का पता चला .

पहली मर्तबा खगोल विज्ञानियों को एक ऐसा चट्टानी ग्रह मिला है जिसके नीचे जमीन है ,खडा हुआ जा सकता है ,जो ठोस है ,गैसीय नहीं है ,काश यह उतना गर्म ना होता .यूँ अब तक खगोलविदों ने करीब तीन सौ पार सौर -मंडलीय ग्रहों का पता लगा लिया है .लेकिन यह गैसीय ही हैं ,अब योरपीय खगोल -विदों की एक टीम ने एक राकी प्लेनेट का पता लगा या है .यह एक बड़ी खबर है क्योंकि जीवन को संभाले रखने के लिए किसी भी ग्रह का ठोस रूप होना पहली शर्त है .हमारी पृथ्वी भी तो एक चट्टानी गोल ही है ,दीगर है ,इसके अन्तर -भाग में आज भी उत्तप्त लोहा बरसता है .औ कभी यह एक आग का ही गोला थी ।
बेशक यह ग्रह अब तक के पार -सौर -मंडलीय ग्रहों में पृथ्वी जैसा है ,लेकिन यह अपने सूर्या के (सितारे के )इतना निकट बना हुआ है ,इसकासतह का तापमान ३६०० डिग्री फारेन्हाईट है .यह अपने पेरेंट सितारे की एक परिक्रमा मात्र बीस घंटों में ४,६६ ,००० ,मील प्रति घंटा की चाल से पूरी कर लेता है ,जबकि सौर मंडल के इनर प्लेनेट मरकरी (बुद्ध )को ऐसा करने में ८८ दिन लग जातें हैं ।
खगोल विज्ञानी उक्त ग्रह को लावा ग्रह (अति -उत्तप्त )कह रहें हैं .इसे नाम दिया गया है -कोरोत -७बी .इस वर्ष के शुरू में ही इसे देखा गया था ,तब से आदिनांक खगोल विज्ञानी कई बार इस के घनत्व (डेन्सिटी )का जायजा ले चुकें हैं .हर बार इसके ठोस होने की पुष्टि हुई है ।
महज इत्तेफाक है ,हमारी पृथ्वी सूरज से (अपने पेरेंट स्टार )ठीक -ठाक दूरी पर है ,एक ठीक गुरुत्व यहाँ वायुमंडल को थामे हुए है ,प्रान वायु ओक्सिजन औ नाइट्रोजन का यहाँ सही अनुपात है , अन्य गैसें जैसे अल्पांश में ही है .सुदूर अतीत में कभी हाई -द्रोजं -अन थी तो वह अंतरीक्ष में कूच कर गई ,औ यहाँ जीवन है ,जीवन के अनुकूल माहौल है .लेकिन कब तक ?हमारा कार्बन फुट प्रिंट बेतहाशा बढ़ रहा है -हम अमीर -गरीब के झगडे में फंसे हुए हैं .ओजोन कवच छीज रहा है .जलवायु करवट ले रही है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-फस्ट राकी एक्स्ट्रा -सोलर प्लेनेट दिस्कवार्ड (टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,सितम्बर १७ ,२००९ पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरू भाई )

कलर ब्लाइंड -नेस के इलाज़ की उम्मीद बंधी .

अमरीका के वॉशिंगटन औ फ्लोरिडा विश्व -विद्द्यालय के विज्ञानियों ने बंदरों को कलर ब्लाइंड -नेस से निजात दिलवा दी है .बस इनकी कोंस की रेड सेंसिटिविटी बढ़ा कर यह करिश्मा कर दिखाया है विज्ञानियों ने ।
वास्तव में कलर ब्लाइंड पर्सन ट्रेफिक सिग्नल के सही रंगों का जायजा नहीं ले पाता.या तो उसकी लाल रंग के प्रति संवेदी कोन-नुमा आँख के परदे पर मौजूद कोशिका (सेल सेंसिटिव तो रेड कलर )ख़राब होती या फ़िर नीले ,हरे .फलतायाउन्हें बाकी दो रंगों का मिस्र से बना रंग ही दिखलाई देगा ।
लाल हरा नीला कलर ट्राई -एंगिल के तीन सिरे हैं .कलर फतोग्रिफी का आधार यही कलर ट्राई -एंगिल है ।
हमारी आंखों के परदे पर दो प्रकार की कोशिकाएं होती हैं -रोड्स एंड कोंस .रोड्स ब्लेक एंड वाईट की पहचान तथा लाल हरे नीले रंगों के प्रति संवेदी कोंस रंगों की शिनाख्त ।
एक व्यक्ति ऐसा भी होता है जिसे तीनों प्राकृतिक रंगों के स्थान पर सिर्फ़ ग्रे दिखलाई देता है .ऐसा व्यक्ति -मोनो -क्रोमा -सिया से ग्रस्त होता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १७ ,२००९ ,पृष्ठ १९ /कलर ब्लाइंड -नेस -तेबर्स साईं -कलो -पीदिक मेडिकल डिक्शनरी ,१८ एडिशन ,पृष्ठ ४१५
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

मौसम और जंगल की आग की टोह लेने के लिए पेड़ों से बनेगी बिजली .

अब पेड़ों से छोटे मोटे कामों के लिए तैयार की जायेगी बिजली -यानी ग्रीन पावर ,जिसे त्री सेंसर के बतौर जंगल की आग और मौसम का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा ।
विज्ञानी जानतें हैं और अच्छी तरह से मानतें हैं ,वृक्ष बिजली के (विद्दयुत के )अच्छे वाहक हो सकतें हैं ,यानी बिजली भेज सकतें हैं ,विद्युत -धारा इनमे होकर प्रवाहित हो सकती है .ट्रीज़ कैन कंडक्ट इलेत्रिसिती ।
मासाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट आफ टेक्नालाजी के विज्ञानियों ने पता लगाया है ,पेड़ २०० मिलिवोल्ट तक(वोल्टेज )पर बिजली संजोये रख सकतें हैं ।
एक वोल्ट का हजारवां हिसा है -मिली -वोल्ट .लेमन और पोटेटो बेत्रीज़ के द्वारा हम जानतें हैं ,दो विभिन्न धातू की मदद से खाद्द्य सामिग्री में से विद्दयुत प्रवाहित की जा सकती है .(गेल्वानी ने एनीमल सेल का स्तेमाल किया था .)लेकिन पेड़ों से विद्दयुत दोहन करलेने की प्राविधि जुदा है ।
यहाँ दोनों इलेक्ट्रोड्स (परम्परागत नेगेटिव और पाजिटिव )एक ही धातु के काम में लिए गएँ हैं ।
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इलेक्ट्रिकल इंजिनीयर (को -औथोर आफ दा स्टडी )कहतें हैं -पूरी गर्मियों के मौसम में सर्वे के बाद पता लगाया गया है -ब्रोद्लीव्स वाले मापिल ट्रीज़ (द्विफल -धारी ,पाँच नोंक वाले देसिदुअस यानी पतझड़ में जिनके पत्ते झड़ जातें हैं ,ऐसे पेड़ .)से कई सौ मिली-वोल्ट तक स्टडी वोल्टेज पैदा किया जा सकता है .बेशक किसी भी विद्दयुत परिपथ (इलेक्ट्रिक सर्किट )में विद्दयुत भेजने के लिए इतना सा वोल्टेज नाकाफी है .लेकिन इसका समाधान एक ऐसा बूस्ट कन्वर्टर बना जो केवल २० मिलिवोल्ट आउट पुट को भी सँजोकर बार बार जुटा कर एक अपेक्षा कृत बड़ा वोल्टेज इकठ्ठा कर पेड़ों से बिजली के दोहन को कामयाब बना सकता है .यानी पेड़ों से प्रयोज्य पावर लेने की एक्सट्रेक्ट करने की तरकीब हाथ आ गई है ,जिससे १.१ वोल्ट तक पोटेंशियल डिफ़रेंस जुटाया जा सका है .इससे लो पावर सेंसर तो चलाये ही जा सकतें हैं ।
बेशक त्री - पावर अभी सोलर और विंड पावर (पवन -ऊर्जा )की तरह दोहनीय नहीं हैं लेकिन यह ऐसे लो पावर सेन्सर्स (तोहक )का संचालन तो कर ही सकती है जो मौसम औ जंगल की आग (फॉरेस्ट फायर )का पता लगा सकतें हैं .लो कास्ट ऑप्शन तो है ही ,वृक्षों से प्राप्त पावर ,देर सवेर इसका स्केल भी बढाया जा सकेगा ।
सन्दर्भ सामिग्री :-ग्रीन पावर :टेपिंग ट्रीज़ फार इलेक्त्रिसिती (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १७ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

दिमाग को काबू में रखता है तुरता कबादिया बासा भोजन .

आइसक्रीम औ बर्जर की चिकनाई दिमाग पे इस तरह हावी होती है ,आपको होश ही नही रहता -कितना खाना है -जी करता है -औ भूख लगे -इसी मुगालते में आप जीमे जाते हैं ,मढे रहतें हैं ,भूख शमन की इत्तला देने वाले हारमोन लेप्टिन औ इंसुलिन नाकारा हो जाते हैं ,इसीलिए जंक फ़ूड का जादू सर चढ़के बोलता है .खाने पर आपका नियंत्रण ही नहीं रहता ,ना पेट भरता है ,ना नीयत ,पेट आप का अपना है ,यह इल्म ही नहीं रहता ।
इसीलिए पोषण विज्ञानी खूराख विज्ञानी ,खूराख -विद डाएट(खूराख )में कमसे कम सेचुरेतिद फेट (संतृप्त वसा )लेने की ताकीद करतें हैं .म्युफा औ प्युफा (एकल -असंत्रिप्त औ बहु -असंत्रिप्त वसा )की हिमायत करतें हैं ,अलबत्ता कुल मिलाकर १५ ग्रेम चिकनाई एक आदमी के लिए काफ़ी बतलाई जाती है -यानी तीन चाय की चमच भर चिकनाई .लेकिन आइसक्रीम ,बर्जर ,पिजा ,चोक्लित में छिपी चिकनाई आपके दिमाग को बेकाबू किए रहती है ,नतीजा होता है ,खाए जाओ ,खाए जाओ ।
डल्लास स्तिथ यु .टी .साउथवेस्ट मेडिकल सेंटर के विज्यानिओं ने पता लगाया है ,उक्त पदार्थों में मौजूद चिकनाई सीधे दिमाग को असरग्रस्त बना ऐसे संकेत कोशिकाओं को भिज्वादेती है जो लेप्टिन औ इंसुलिन से आने वाले संकेतों की उपेक्षा औ परवाह ना करने की हिदायत ही होती है .ऐसे में अपेताएत सप्रेसिंग हारमोन लेप्टिन औ इंसुलिन नाकारा हो जातें हैं .दिमाग पर इन चिक्नाइयों का कहर तीन दिन तक बरपा रहता है ।
आम तौर पर हमारे शरीर के पास एक सक्षम साफ्ट वेअर होता यह समझने बतलाने के लिए ,हमारा पेट भर गया है ,औ अब और नहीं खाना चाहिए ।
लेकिन साहिब यहाँ तो देखते ही देखते पूरी ब्रेन केमिस्ट्री ही बदल जाती है ,चिकनाई सना भोजन दिमाग को भी सुरूर में ले आता है ,हूकिंग हो जाती है इस चिकनाई से दिमाग की औ आप देखते ही देखते इंसुलिन औ लेप्टिन रेसिस्टेंट हो जातें हैं ।
दिमाग आपको यह बतलाना भूल जाता है ,भाई साहिब और नहीं खाना ,खा लिया बस ,अब बस करो ।
विज्ञानियों ने यह भी पता लगाया है -बीफ ,बतर ,चीज़ औ दूध (होल क्रीम मिल्क )में मौजूद चिकनाई पामिटिक एसिड (पी ऐ एल एम् आई टी आई सी -एसिड ) इस पूरी प्रक्रिया को एड लगाती है ,हवा देती है ,कुसूरवार है ।
चूहों और माईस पर संपन्न यह अध्धय्यन खूराख विदों द्वारा संतृप्त वसा की मात्रा सीमित रखने की हिदायतों को बल प्रदान करता है ।
उक्त तीनोंकिस्म की वसा बहुविध चूहों को समान मात्रा तथा समान केलोरी में देने के बाद ही उक्त नतीजे निकाले गए है ।
दी एक्शन वास वेरी स्पेसिफिक तू पामिटिक एसिड विच इज वेरी हाई इन फूड्स देत आर रिच इन सेचुरेतिद फेट्स असली कुसूरवार यही है ।।
बेहतर यही है ,जो चीज़ ज्यादा अच्छी लगती है ,खाइए ज़रूर लेकिन बस थोडी सी ,चख भर लिजीये ताकि मेह्रूमियत महसूस ना हो .वेट लास का यही कारगर तरिका भी है .क्रेश खुराख के फायदे अल्प कालिक ही होतें हैं ,गेट एरा -उन्द डा साइक्लोजिकल अटेचमेंट तू फ़ूड .सारा चस्का जबान का है .परम्परागत भोजन अच्छा है लेकिन मौका लगते ही शादी -ब्याह में लोग जमकर खातें हैं ,गाहे बगाहे ट्रीट लेतें हैं ,पार्टी टाइम में फंसे रहतें हैं ।
महरूम रखने वाली परम्परा गत खुराख पाँच साल तक ही ५-२० फीसद कामयाब रहती है ,लोग फ़िर अपनी औकात पर लौट आतें हैं ,इसीलिए मोटापे को मुल्तवी रखना आज बड़ा मसला है ,केंसर का पुख्ता इलाज़ है ओबेसिटी का नहीं ,जबान के स्वाद से जुड़ी है मोटापे की नवज ।
सन्दर्भ सामिग्री :-इरेजिस्तिबिल :जंक फ़ूड कंट्रोल्स आवर ब्रेन (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १७ ,२००९ ,पृष्ठ १९ ।)
प्रस्तुती मौलिक है :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

बुधवार, 16 सितंबर 2009

दर्द -नाशी बाम (पेन क्रीम )कर सकता है हार्ट -अटेक के वक्त दिलकी नुकसानी को कम .

सिन्सिन्नती विश्व -विद्द्यालय के शोध छात्रों ने पता लगाया है -एक आम दर्द -नाशी बाम (कामन पेन किलर )अगर दिल का दौरा पड़ते ही त्वचा पर लगा दिया जाए तब दिलकी पेशी को होने वाली नुकसानी को कमतर किया जा सकता है ,लेकिन यह उसी वक्त किया जाए जब अन्य चिकित्सा उपयुक्त कदम नुकसानी को कम करने के लिए उठाये जा रहें हों ।
कीथ जोन्स कहतें हैं अपने एक प्रयोग में जब त्वचा पर ख़ास जगह केप्सासिं इन (कैप्सैसिन)क्रीम माइस को लगाई गई ,तब सेंसोरी नर्व्स (संवेदी -नर्व्सने फ़ौरन स्नायुतंत्र (नर्वस सिस्टम )को एक संदेश भेजा .पता लगा ये सिग्नल दिल में मौजूद प्रो -सर -वाइवलपाथ्वेज़ (जिंदा बच जाने के सहायक मार्गों )को सक्रीय करते देखे गए ।ये पाथ-वेज़ हृद -पेशी की नुकसानी से बचाव करतें हैं ।
केप्सा -सिन चिली -पेपर्स (तेज़ -ज़वा मिर्च ,छोटी सी बहुत तीखी लाल मिर्च )का मुख्य घटक है ,इत इज केप्सा -सिन विच प्रोदुसिज़ हाट सेंसेश्न्स .आग सी इसी की वजह से निकलती है .,लगाने के बाद शरीर के प्रभावित अंग से स्थानीय तौर पर तैयार आम नुस्खों ,दर्द -नाशी स्किन क्रीम्स का भी यह प्रभावी घटक है ।
केप्सा -सिन मलने के बाद कार्डिएक -सेल डेथ में ८५ फीसद कमी दर्ज की गई .जबकि एब्दामन
ऐ किए गए छोटे से चीरे ने नुकसानी को हृद -पेशी की ८१ फीसद कम किया ।
ऐसा प्रतीत होता है विकास क्रम में अन्य जीवो के साथ मानवीय त्वचा भी बचावी उपाय सीख गई है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-पेन क्रीम कैन प्रिवेंट डेमेज इन हार्ट अटेक .(टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १६ ,२००९ ,पृष्ठ २१ ,केपिटल एडिशन ।)
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

खतरनाक हो सकतें हैं शावर -हेड्स में पनपने वाले बेक्टीरिया .

सर अल्फ्रेड हिचकाक (१८९९-१९८० )ब्रितानी फ़िल्म निदेशक की फ़िल्म "साइको "के बाद अब तक यह स्केरिएस्त शावर ख़बर है -शावर हेड्स में पनपने वाले जीवाणु आपमें से कईयों के लिए खतरनाक हो सकतें हैं ,दमा एवं अन्य एलर्जी की वजह बन सकतें है ।
कोलोराडो यूनिवर्सिटी के शोध कर्ताओं ने पता लगा या है -शावर हेड्स से निकलने वालीखतरनाक जरासीमों (जर्म्स )की पहली बौछार आप के चेहरे को न सिर्फ़ आच्छादित कर सकती है ,बारास्ता शवसन आपके फेफडों तक भी पहुँच सकती है .शावर हेड्स जीवाणुओं के पनपने की चुनिन्दा जगहों में से एक है .नतीजा हो सकता है -ड्राई -काफ ।फेफडों का संक्रमण .
माइकोबेक्तीरियम एवियम से बचने का एक ही तरीकाहै -आप थोडी देर के लिए शावर खोल कर बाथ से बाहर आ जाएँ ,पहली बौच्छार सीधे कभी भी चेहरे पे ना आने दें.रिसर्च के अगुवा नार्मन पेस कहतें हैं -इसी में जीवाणु की लोडिंग होती है ।
पहले भी शावर हेड्स से निकलने वाले जीवाणुओं को लेकर चिंता व्यक्त की गई है ,लेकिन यह कितना खतरनाक हो सकता है ,अब तक इसका जायजा नहीं लिया जा सका था ।
ताज़ा अध्धय्यन में अमरीका के ९ नगरों में ४५ शावर हेड्स की सूक्ष्म जांच की गई इनमे से ३० फीसद में फेफडों में संक्रमण पैदा करने वाला पेथोजन (रोगकारक ओर्गेनिज्म यानी जैविक प्रणाली )माइको -बेक्तिरीयम बड़ी तादाद में मौजूद था ।
पूर्व में किए गए अध्धय्यनों में पहले ही यह आशंका व्यक्त की जा चुकी है ,विकसित देशों में फेफडा इन्फेक्शन के बढ़ते मामलों के पीछे शावर्स का बढ़ता चलन कुसूरवार है ।
ताज़ा अध्धय्यन इस आशंका को पुष्ट करता है ।
जैसे आप ४ सप्ताह बाद टूथ ब्रश बदल देतें हैं ,वैसे ही कुछ माह के बाद शावर भी बदल वाइये .जिनका रोग प्रतिरक्षा तंत्र सही सलामत है मजबूत है ,उन्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है ,लेकिन कुछ लोगों में माई -को बेक्तिरियम लंग इन्फेक्शन की एक एहम वजह बनता है ,इस केटेगरी में सिस्टिक फाइब्रोसिस ,एड्स ,केंसर इलाज जो ले रहें हैं या जिहोनें अंग -प्रत्त्या -रोप (ओर्गें -एन त्रेंस्प्लेंत )लगवाया है ,वे लोगखासकर और भी ज्यादा आतें हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-डेली शावर में मेक यु इल (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १६ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

दमेको भड़का सकता है तरणताल का क्लोरिनेतिद जल .

दमे को भड़का सकता है ,तरणताल का अति -क्लोरीन युक्त जल ,अलावा इसके हे -फीवर ,इतर रिस्पाई -रेटरीएलार्जीज़ (एलर्जिक रिएक्ष्न्स ,प्रत्त्युर्जा श्वसन सम्बन्धी )के खतरे ,वल्नेरेबिलिटी को बढ़ा सकता है स्वीमिंग -पूल का क्लोरीनिकृत पानी ।
ब्रुस्सेल्स स्तिथ केथोलिक यूनिवर्सिटी आफ लौवैन ने पता लगाया है जो किशोर -किशोरियां स्वीमिंग पूल में १०० घंटे से ज्यादा नहाते -तैरतें हैं उनमे अन्यों के मुकाबले एस्मा होने का खतरा ६ गुना ज्यादा होता है ।
कमसे कम पाँच गुना ज्यादा नुक्सान अति -क्लोरीनिकृत जल बच्चों औ किशोर -किशोरियों की स्वसन सम्बन्धी सेहत (रिस्पाय -हेल्थ )को सेकेण्ड हेंड सिगरेट -स्मोक के बरक्स पहुंचाता है ।
अल्फ्रेड बर्नार्ड (प्रोफेसर आफ तोक्सिकालाजी ) उक्त तथ्य की पुष्टि करतें हैं ।
अपने अध्धय्यन में बर्नार्ड ने १३ -१८ साला ७३३ किशोर -किशोरियों की जिन्होंने अलग अलग वक्त तक तरन,ताल में समय बिताया था ,की सेहत की तुलना उन ११४ हमउम्रों से की जिन्होंने कापर औ सिल्वर मिक्स से उपचारित ताल में समय बिताया था ।
इनमेसे ३६९ किशोर -किशोरियां क्लोरिनेतिद ताल में १०० -५०० घंटा तेरे थे ,जिनमे से २२ को दमा था यानी कुल ६फ़ीसद .इनके बरक्स १४४ में से सिर्फ़ २ को दमा निकला जिन्होंने सिर्फ़ १०० घंटा इसी ताल में बिताया था ।यानी कुल १.८ फीसद .
ज़ाहिर है -तरन ताल का अति -क्लोरीनिकृत जल एक असरकारी एलार्जं - अन (प्रत्युर्जा पैदा करने वाला पदार्थ )है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-क्लोरिन इन पूल्स अप्स एलर्जी रिस्क्स (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १६ ,२००९ ,पृष्ठ २१ ।)
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

उम्र दराज़ लोगों के लिए भी अच्छा है -व्यायाम .

उम्र दराज़ लोगों में जो सबसे ज्यादा उम्रदराज़ हैं उनकीभी उम्र बढाता है व्यायाम ,रोज़ मर्रा की सैर ,ब्रीस्क वाक् भले ही यह टुकडा टुकडा करके दिन भर में १०-१५ मिनिट के लिए कई मर्तबा की गई हो .हर हाल में अच्छी है टहल -कदमी ,पता लगाया है -इजरायली शोध कर्मियों ने ।
चार घंटे का सक्रीय व्यायाम एह हफ्तें में काफ़ी है ,उससे कम अवधि का व्यायाम एक्टिव एक्ष्सर्साइज़ में नहीं गिना जाएगा ।
अध्धय्यन में उन ओक्तोजनेरियन (८०-९० साला )बुजुर्गों को शरीक किया गया जो ८५ साला थे ,इनमे जो हर हफ्ते ४घंटा या और भी ज्यादा अवधि के लिए सप्ताह में मटरगश्ती कर लेते थे उनकी तीन साला अध्धय्यन अवधि के दरमियान सर्वाइवल रेट(उत्तरजीविता की दर)उन हमउम्रों की बनिस्पत (अपेक्षा )तीन गुना ज्यादा दर्ज की गई जो व्यायाम से दूर (इनेक्तिव )रहते थे ।
अध्धय्यन के नतीजे साफ़ -साफ़ इशारा करतें हैं -एक्ष्सर्साइज़ प्रोलांग्स लाइफ इविन इन" ओल्देस्ट ओल्ड "
ज़ाहिरहै उम्र दराज़ लोगों के लिए औ भी ज्यादा उम्रदाराज़ होने का नुस्खा है -चुस्त दुरुस्त एक्टिव रहना ,तभी डॉक्टर्स बारहा कहतें हैं -दिन भर में १० ,००० कदम चलना सेहत के लिए अच्छा भी है ,ज़रूरी भी ।
दादाजी सुबह तीन बजे जमुना में गोता लगा आते थे -अब ना वो जमुना है ,ना वो दादाजी ।
आर्काइव्स आफ इंटरनल मेडिसन में ये शोध क्षात्र लिखतें हैं -नेक काम में देरी कैसी -इत इज नेवर टू लेट टू स्टार्ट .काल करे सो आज कर ,आज करे सो अब ,पल में पिर्लय (प्रलय )आएगी ,फेर करेगा कब ?
जो अब तक निष्क्रिय पडे हुकुम फटकार रहें हैं -उनके लिए भी अच्छी है -कसरत उम्र के अनुरूप -औ दो पैर ही तो आदमी को चौपायों से अलग करतें हैं -चलने के लिए ही तो हैं -गंगा कहे कहे रे धारा ,जमुना कहे कहे रे धारा -तुझको चलना होगा ,तुझको चलना होगा ।
कसरत करने से इनकी सर्वाइवल रेट में भी दो गुना इजाफा दर्ज किया गया ,बनिस्पत उनके जो कसरत नहीं करते थे .भाई साहिब आपको सुपर -एथलीट नहीं बनना है -सिर्फ़ चलते फिरते रहना -बैठे -बैठे हुकुम नहीं फटकारना है सन्दर्भ सामिग्री :-एक्सारसा -इज प्रोलोंग्स लाइफ इविन इन "ओल्देस्ट ओल्ड ".(टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १६ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

.बारह साल अपने गुरुत्वीय -फंदे में फसाए रखने के बाद ....

गत शताब्दी के उत्तर्रार्द्ध में बृहस्पति ने जिस जटाधारी तारे (धूमकेतु ,कामेट)को अपने गुरुत्वीय जाल में कैद किया था उसे १२ साल बाद अपनी गुरुत्वीय पकड़ से छोडा था .१४ सितम्बर ,२००९,मंगलवार केदिन बर्लिन के नजदीक पोत्स्दम में योरपीय प्लेनेटरी कांग्रेस के समक्ष प्रस्तुत आंकडों में खगोल विज्ञानियों ने उक्त तथ्य का खुलासा किया है ।
सौरमंडल के इस बाहरी औ विशालतम (गुरुत्व औ द्रव्य मान की दृष्टि से )ग्रह ने इसे १२ वर्षों तक अपना चन्द्रमा (उपग्रह )बनाए रखा । यह अवधि १९४९-१९६१ तक विस्तारित थी ,पुच्छल तारे का नाम रहा है -१४७ पी /कुशिदा -मुरमत्सू .यह अब तक बंधक बनाए गए धूमकेतुओं में पांचवा है ,जिसकी शिनाख्त हो सकी है ।
बृहस्पति ने एक गोलरक्षक की तरह अक्सर पृथ्वी की औ आते अन्तरिक्षीय पिंडो को लपक लिया है ,औ पृथ्वी की आसमानी आफतों से हिफाजत की है .यूँ पृथ्वी के लिए जब तब ऐसे खतरों की संभावना व्यक्त की जाती रही है ,बचावी उपाय भी तैयार किए जा रहे है .पृथ्वी पर उल्काओं के बतौर कामेट्स की बरसात होती रही है .उल्काएं (मेतेइओरोइद्स )दरअसल धूमकेतुओं के ही टुकड़े हैं .सूरज के साथ होने वाली हर मुलाक़ात में धूमकेतु अपना १० फीसद द्रव्यामान गला उड़ा देतें हैं ।
यूँ गुरु बृहस्पति में अपनी और बढ़ते धूमकेतुओं इतर आकाशीय पिंडो का मार्ग बदल उन्हें सूरज की और वापस लौटा ले जाने की कूवत भी है.इस पूरी प्रक्रिया को जान बूझ लेने के बाद विज्ञानी पृथ्वी की और
आती आपदाओं से भी पार पा लेना और ऐसी संभावनाओं की प्रागुक्ति करना सीख रहें हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-जुपिटर स्नेच्ड कामेट ,हेल्ड इत एज मून फार १२ इयर्स (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १५ ,२००९ )पृष्ठ १७ कालम -१ ।
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).

विकासक्रम में स्पर्मेताज़ोआन (शुक्राणु )औ फिमेल एग्ग (दिम्बानु )के जुझारू होते तेवर .

बांझपन (औरत और मर्द दोनों के मामले में )अब एक और दिशा से आता दिखाई दे रहा है ,अभी तक लो स्पर्म काउंट (धूम्र पान एवं तम्बाखू सेवन से ),सेल फोन्स औ जंक फूड्स (कबाडियाबासा भोजन )को ही बाँझपन सम्बन्धी समस्याओं के लिए कसूरवार समझा जाता था ।
अब पता चला है शुक्राणु (स्पर्मेताज़ोआन )औ फिमेल एग्ग (दिम्बानु ) की परस्पर प्रतिस्पर्धा के चलते एक तरफ़ विकासक्रम में स्पर्म्स ,सुपर-स्पर्म्स में तब्दील हो रहें हैं तो दिम्बानु ने उसे मिलन मनाने से रोक बाधित कर फ़र्तिलाइज़्द एग्ग को ही विनष्ट करने की रणनीति तैयार कर ली है .नतीजन बांझपन की एक और वजह पैदा होते दिखलाई देने लगी है ।
वैकासिक जैव -विज्ञानी (एवोलुश्नरी बाय्लाजिस्त ) तेल अवीव विश्व -विद्द्यालय के ओरें हस्सन कहतें हैं -कुछ मर्द इसीलिए समस्या ग्रस्त हैं ,वह सुपर्स्पर्म पैदा कर रहें हैं .यरूशलम पोस्ट के मुताबिक यह अति -शुक्राणु बहुत ज्यादा तेज़ -तर्रार औ ताकतवर हैं .ये औरत के सुरक्षा तंत्र को भेद कर जिसके तहत एक बार में एक शुक्राणु को ही फिमेल एग्ग से मिलन मनाने का अवसर मिलता है ,ज्यादा तादाद में पहुँच जातें हैं ,नतीजन एग्ग ही विनष्ट हो जाता है ।
बायलाजिकल रिवियुज़ में हस्सन कहतें हैं ,औरत और मर्द के जननांग एक विकासात्मक आर्म्स रेस में फंस गए हैं ,यह दौड़ निरंतर जारी है ,घमासान लडाई अभी भी चल रही है .विकासक्रम में प्रजनन क्षमता बढ़नी चाहिए थी ,हो ठीक उलट रहा है ।
ऐसा प्रतीत होता है -औरत -मर्द परस्पर रिप्रोदाक्तिव एन्तागोनिस्ट (प्रजनन -विरोधी )हो गएँ हैं ,होना प्रजनन -सहायक चाहिए था ,ये निष्कर्ष एम्पाय्रिकल एविडेंस (संख्यात्मक साक्ष्य )और गणीतिय माडिल की मदद से निकाले गएँ हैं .इस निदर्श को तैयार करने में विभागीय बायो -मठेमतिक्स -उनित (जैव -गणीतिय एकक )के लुईस स्तोने भी मदद गार रहें हैं ।
हजारों सालों के विकासक्रम में औरत के शरीर ने (अनातोमी ,शरीर -क्रिया -विज्ञान )ने स्पर्म को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनादिया है ,लिहाजा इनाम स्वरूप ताकतवर ,द्रुतगामी तेजतर्रार तैराक शुक्राणु पैदा हो गएँ हैं जो ओवम (डिम्ब या दिम्बानु )के सुरक्षा कवच को बींधने में कामयाब रहतें हैं .इसी की अनुक्रिया स्वरूप मर्द के अंडकोष बेतहाशा आक्रामक शुक्राणु पैदा कर रहें हैं .मनी दज़ंस आफ मिलियंस आफ डेम तू इनक्रीज दिएर चान्सिस फार सक्सेसफुल फरती -लाइजेशन ।
लेकिन इस विकासात्मक रंनीतिक औजार के अप्रत्याशित परिणाम निकलरहें हैं .यह एक नाज़ुक संतुलन की स्तिथि है औ काल क्रम में औरत -मर्द के शरीर परस्पर लय ताल बना लेतें हैं .इस सूक्ष्म ट्यूनिंग के सिलसिले में कई मर्तबा प्रजनन -ह्रास (इन्फर्तिलिती बढ़ने लगती है )ज्यादा हो जाता है .गत दशक में शायद इसीलिए प्रजनन ह्रास के ज्यादा मामले सामने आयें हैं ।
इस सारे घटना क्रम में समय एक विधाई भूमिका में है ,जैसे ही पहला स्पर्म एग्ग से मिलन मनाता है ,फलस्वरूप उससे जुड़ता है एक जैव -विज्ञानिक अनुक्रियाऔरों को आने से रोकने लगती है .यहाँ दूसरे के अन-अधिकृत प्रवेश का मतलब -फरती -लाइज्द एग्ग की सीधे सीधे मौत है .विकासक्रम में पैदा तेजतर्रार स्पर्म यही गलती दोराराहें हैं .ऐसा लगता है ,औरत का शरीर भी इस पोलिस्पर्मी के ख़िलाफ़ कमर कसके किलेबंदी कर रहा है .यानी तू दाल -दाल मैं पांत -पांत ।
(तू एवोइड दी फेटल कांसेकुएंसस आफ पोली -स्पर्मी ,फिमेल रिप्रोदाक्तिव ट्रेक्ट हेव इवोल्व्द तू बिकम फार्मिदेबिल बेरियर्स तू स्पर्म )यानी दुर्जेय दुर्ग बना रहा है औरत का प्रजनन -मार्ग इस बहु -शुक्रानुता (पोलिस्पर्मी )के ख़िलाफ़ ."दे इजेक्ट दाय्लूट्स ,दाई -वर्त एंड किल स्पर्माताज़ोआ (शुक्राणु ).यानी प्रजनन मार्ग प्रतिरक्षा रणनीति के तहत अवांछित शुक्राणुओं को बाहर खदेड़ने के लिए तैयार है .जैसे दर्द नाशक दर्द की लहर को दिमाग तक पहुँचने से रोक्तें हैं ,वैसे ही प्रजनन मार्ग सुपर -स्पर्मेताज़ोआन को भटका देगा ,विनष्ट कर देगा ताकि एक औ सिर्फ़ एक शुक्राणु ही एग्ग से मिलन मना कामयाब गर्भाधान करवा सके ।
सन्दर्भ सामिग्री :-"सुपर- स्पर्म "में बी बिहाइंड इन्फर्तिलिती (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १५ ,२००९ ,पृष्ठ १७ )
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

बीस करोड़ बरस पहले समुन्द्रों में जीवन पनपा ....

विज्ञानियों ने आर्कीँ -अन पीरियड की प्राचीनतम चट्टानों के सी -बेड से नमूने उठा काल निर्धारण (डेटिंग )द्वारा पता लगाया है ,पृथ्वी के वायुमंडल में ओक्सिजन दाखिले के कोई बीस करोड़ बरस पहले भी समुन्दर में जीवन के रूप मौजूद थे ।
आर्कीयाँ पीरियड प्रारम्भिक भू -गर्भिक काल (जिओलाजिक्ल पीरियड )है ,इसका समय अब से ४ अरब वर्ष पीछे तक जाता है ,जब पृथ्वी पर प्राचीनतम चट्टानें मौजूद थीं (यूनानी भाषा के आर्खैओस का अर्थ है -ओल्ड यानि प्राचीन )।
इस भू -गर्भिक काल में पृथ्वी ने मीथेन ,अमोनिया इतर अनन्यविषाक्त गैसों का ओढ़ना ओढ़ रखा था ,जहरीली गैसों का कोहरा पृथ्वी को आच्छादित किए था .ज़ाहिर है ,इन विषम परिस्तिथियों में पृथ्वी की सतह के उपर जीवन के पनपने का कोई स्कोप (संभावना )नहीं था ।
अलबत्ता इस दौर में भी समुन्दरों के नीचे प्लांट लाइक बेक्टीरिया (पादप सरीखे जीवाणु )ज़रूर मौजूद थे ।
कोई दोदशमलव पाँच (२.५ ) अरब बरस पहले प्रकाश संश्लेष्ण के उप -उत्पाद स्वरूप ओक्सिजन पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल हुई ,ज़ाहिर है ओक्सिजन पैदा करने वाले जैविक स्वरूप भी इस दौर में रहें होंगे -यह पता लगाया है रुत्गेर्स विश्व-विद्द्यालय न्यू -जर्सी में कार्य -रत विज्ञानियों की एक अन्तर -राष्ट्रीय टीम ने ।
इस एवज सी बेड में संरक्षित प्राचीनतम रोक्स के नमूने (दक्षिणी अफ्रीकी समुन्द्रों से )उठाये गए -काल निर्धारण के लिए .यह नमूने अब से २-३ अरब वर्ष पहले के हैं ,जांच से (काल निर्धारण सम्बन्धी ) नाइट्रोजन चक्र की मौजूदगी का पता चला ,जो संकेत है ,फ्री ओक्सिजन की मौजूदगी का भी ,जिसके बिना नाइट्रोजन साइकिल चालू नहीं रह सकता ।ज़ाहिर है जीवन विषम परिस्तिथियों से ही फूटा है ,जो एक बार फ़िर पृथ्वी को घेरें हैं ,विज्ञानिक आशंकित हैं ,कुदरत ख़ुद इंतजाम करेगी .
जैविक प्रणालियाँ नाइट्रोजन का उपभोग कर ही संश्लेषित कार्बनिक अणुओं को बनातीं हैं (काम्प्लेक्स ओरगेनिक मालिक्युल्स नाइट्रोजन के बिना बन ही नहीं सकते )।नाइट्रोजन की मौजूदगी जीवन का ब्लू -प्रिंट ही नहीं -उँगलियों के निशाँ हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-लाइफ एग्जिस्तिद इन ओशन्स २००मिलिअन इयर्स बिफोर अर्थ हेड ओक्सिजन (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १५ ,२००९ पृष्ठ १७ ।)
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

सोमवार, 14 सितंबर 2009

जीवन शैली स्वस्थ जीवन का आधार -डॉ .फनी भूषण दास .

अभागे हैं वो देश जिनके ज्ञान की भाषा और है ,व्यवहार की और .हिन्दी दिवस पर मन थोडा भावुक हो जाता है .जी करता है -प्यास लगे और इसी प्यास ने हमें भेज दिया -इस्लामिक कल्चरल सेंटर ,नै -दिल्ली ,जहाँ हिन्दी दिवस पर पुस्तक (जीवन शैली रोग :डॉ .फनी भूषण दास )विमोचन कार्य -क्रम प्रायोजित था .प्रायोजक थे -अखिल विश्व हिन्दी समिति ,१०८ -१५६८ डॉ .फारेस्ट हिल्स न्यूयार्क ११३७५ ,यु एस ऐ ।
मोगेम्बो खुश हुआ -डॉ .फनी भूषण दास साधक निकले .आप पिट्सबर्ग में सर्जरी के प्रोफेसर रहें है (अब सेवा निवृत्त )है .आयु है ७९ वर्ष ,यानी अभी आप ओक्तो -ज्नेरियन (अस्सी वर्षीय )नहीं हुए हैं ,आपकी एक और पुस्तक प्रकाशनाधीन है ,होसला भी रखतें हैं आप एम् .बी .बी .एस .कोर्स की टेक्स्ट बुक्स लिखने का ,बशर्ते थोडा होसला भारत सरकार भी दिखाए ,क्योंकि किताबें लिखना इस दौर में खर्ची का सौदा है ,घर फूंक तमाशाई होने वाली बात है जो हो ,समारोह में जाकर हमारा होसला बढ़ा ,मुख्य अतिथि थे -डॉ .कर्ण सिंग ,अध्यक्ष सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् ,भारत सरकार .उपस्थित डॉ .जगदीश प्रसाद (चिकित्सा अधीक्षक ,सफदरजंग ,अस्पताल ,एवं प्रिन्स्पिल वर्धमान मेडिकल कालिज ),डॉ .वी .के .डोगरा .,डॉ .आर .के .श्रीवास्तव (निदेशक स्वास्थय सेवायें ,भारत सरकार )एवं लेखक फनी भूषण दास किसी ना किसी विध सफदर जंग अस्पताल से जुड़े थे .डॉ .कर्ण सिंह को छोड़ सभी शिष्य -भाव लिए फनी भूषण जी के प्रति समारोह में शिरकत कर गद गद थे ,हमारी नियति भी जुदा नाथी,क्योंकि हम रु -बा -रु थे एक ऐसी शख्सियत के जो विज्ञान औ इस देश की मिटटी के प्रति समर्पित है ।
अध्यक्षीय टिप्पणी भी लाज़वाब थी -डॉ .कर्ण सिंह ने कहा -आदमी के खान पान का सम्बन्ध वहाँ की जलवायु ,समुन्द्र तट से ऊंचाई ,आवास से है ,ज़रूरी नहीं हैं ,सब लोग शाकाहारी ही हों ,ठंडी जलवायु में सामिष भोजन लेने में कोई हर्ज़ नहीं ,जैसे -जैसे हम दक्षिण में केरल ,तमिलनाडू की औ बढतें हैं ,९० फीसद लोग शाकाहारी नजर आतें हैं .आपने पहले हार्ट सर्जन कृष -चं -अन बर्नाड का हवाला दिया ,जो अफ्रिका निवासी थे ,औ उस समय भारत के अफ्रीका के संग राजनयिक सम्बन्ध नहीं थे ,इंदिरा जी की सहमती से डॉ ,बर्नाड को मारीश्श पासपोर्ट पर बुलवाया गया .इसीलियें तो कहतें हैं ,भारतीय कुछ भी कर सकतें हैं ,नीयत भर हो कुछ करने की ।
डॉ .कर्ण सिंह ने कहा -शौच एक एहम मुद्दा है ,भारतीय कहीं भी लघु शंका कर लेतें हैं ,दुनिया भर में और कहीं भी ऐसा नहीं होता .सेहत का सम्बन्ध साफ़ शौचालय से भी उतना ही है ,जितना खान पान ,रहनी -सहनी जीवन शैली से है .सरल जीवन शैली ,सरल सीधा स्वास्थय ,जैसा भोजन वैसाही ,तन -मन और सेहत ।
पुस्तक की भूमिका में ही स्पष्ट उल्लेख है -सुश्रुत संहिता का ,जिसका पहले अरबी औ बाद को अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद हुआ .मेतीरिया - मेडिका ही आगे जाकर मेडिकल एन -साईं -कलो -पीडिया कहलाई )।
आज हम अपने ज्ञान की भाषा बोलने में शर्माते ला -जातें हैं ,सकुचातें हैं ,क्यों ?
जब की हिन्दी अब दुनिया की दूसरे -तीसरे नम्बर की भाषा है .और यह फैसला भी वोट -गिनती की तरह नहीं भाव बोध से होना चाहिए ।
हमारा मान ना है ,पुस्तक "जीवन शैलीस्वस्थ जीवन आधार "-डॉ .फनी भूषण दास
का अंग्रेज़ी में भी अनुवाद होना चाहिए -भाषा कोई भी हो ,महा -सरस्वती है .हिन्दी इसका अपवाद नहीं हैं ।
निवेदन है -हिन्दी भाषी साहित्य कारों से -"तुम तो अपने वक्त के सूरज रहे हो ,
अब भला आकाश से क्योंकर सितारे मांगते हो ?
पुस्तक प्राप्ति स्थान :अखिल विश्व हिन्दी समिति ,१०८ -१५६८ डॉ .फारेस्ट हिल्स ,न्यूयार्क ११३७५ ,यु .एस .ऐ ।(२ )सी -७०५ ,आनंद लोक ,मयूर विहार फेज़ -१ ,नै -दिल्ली ।
(३ )विश्वायतन प्रकाशन ,मेहता भवन ,राधारानी सिन्हा रोड ,मोठा -कचक ,भागल पुर ,बिहार
(४ )अखिल विश्व हिन्दी समिति ,,१०८ -१५६८ डॉ .फारेस्ट हिल्स ,न्यूयार्क ११३७५ ,यु .एस .ऐ ।

अलविदा डॉक्टर नोर्मन बोरलाग .

हरित -क्रांति के पितामह डॉक्टर नोर्मन बोरलाग शनिवार सितम्बर १२ ,२००९ को यह भौतिक शरीर छोड़ गए .डल्लास में केंसर की बीमारी से वह चल बसे ।
अति मिलनसार लम्बी कदकाठी वाले इस कृषि विज्ञानिक को २००७ में अमरीका के सर्वोच्च नागर सम्मान "कोंग्रेश्न्ल मेडल आफ आनर "से सम्मानित किया गया ,हालाकि बोरलाग ने सदैव ही पुरुष्कारों को तुच्छ समझा .,तब भी जब इनके स्वेदिश (स्वीडन )के पूर्वजों ने इन्हें नोबेल पीस प्राइज़ से नवाजा .उस समय यह खेत पर काम कर रहे थे ,अतिरिक्त उत्साह से इस सम्मान की खबर पाकर जब पत्नी इन्हें मुबारक बाद देने आईं तब आपने उन्हें यह कहकर भगा दिया -यह तो मेरी टांग खीचने जैसा है ।
भारत के लिए तो बोरलाग किसी अन्नपूर्णा की तरह थे ।
आपने भारतीय उपमहाद्वीप को सूखे औ अकाल की छाया से तब बाहर निकाला जब १९६० आदि के दशक में भारत अन्न का ना सिर्फ़ आयात करता था ,खैरात भी बटोरता था .आपने गेंहू की तेज़ी से बढ़ने वाली एक बौनी किस्म पैदा की जिसकी थिक शोर्ट स्टाउट दानों से भरी हुई बालियाँ प्रति एकड़ उपज चार गुना बढ़ाने में कामयाब रहीं .एक विचित्र जीन (जीवन -ईकाई से लैस थी गेंहू की यह अभिनव किस्म ).यहीं से हरित क्रान्ति का सूत्रपात हुआ .बाद में चावल की उपज बढ़ाने के लिए भी ऐसी ही तरकीबें कामयाब रहीं ।
सही अर्थों में धूप में तपा पगा सन -बर्न्न्त्त यह विज्ञानी भारत -रत्न का अधिकारी था ,लेकिन इसे तो अपना काम प्यारा था ,नाम नहीं ,तभी तो यह मेहनत -काश आयोवा के खेतों में जी तोड़ मेहनत करता हुआ मेक्सिको पहुंचा औ एक दशक तक वहाँ काम करने के बाद डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी -शोध पत्र का मजमून था -डिप्रेशन -इअरा यु एस ।
मेक्सिको में ही आपने नै -नै आज़माइश कृषि क्षेत्र में की जो आगे चलकर दुनिया भर में रंग लाई .लातिनी अमरीका (दक्षिणी अमरीका औ एशिया )को इसका भरपूर लाभ मिला ।
आप एक नार्वे के मेहनत -कश इंसान थे ,जो आयोवा में आ बसे ,खेत खलियानों में धूम मचाने .१९४४ में आपने मशहूर केमिकल निगम दुपोंत की नौकरी छोड़ दी .आप अब जी जान से मेक्सिको के गरीब किसान की मदद में जुट गए ।
आपके प्रयत्नों से ही भारत में १९६८ में इतना अनाज खेत से बरसा ,इसे रखने ,रख -रखाव के लिए स्कूलों को गौदाम (ग्रेंरीज़ )में तब्दील करना पडा .१९६० आदि दशक के संभावित सूखे से आपने लातिनी अमरीका समेत पूरे भारतीय महाद्वीप को भूख (मरी) से बचालिया ।
इस अन्नपूर्णा को भारत के शत -शत प्रणाम ,कोटि कोटि नमन ।
सन्दर्भ सामिग्री :-ग्रीन -रिवोल्यूशन पायोनियर डाईज .बोरलाग शोव्द इंडिया दी वे तू ओवर कम फ़ूड शोर्तेज़ (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १४ ,२००९ )
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा

रविवार, 13 सितंबर 2009

स्पर्श वचन -गरीबों के लिए भी अच्छी सेहत का वायदा .

कुछ बच्चे जन्मजात विकलांगता लिए ही इस दुनिया में आजातें हैं ,कई मर्तबा इसका कारण माल्फोर्मेष्ण तो कभी गर्भ से ही क्षतिग्रस्त मष्तिष्क (ब्रेन देमेज्द )बच्चा पैदा होता है .कोई सेरिब्रल -पालजी (जन्मजात दिमागी क्षति लिए तो किसी का दिमाग जन्म लेते वक्त भी क्षतिग्रस्त हो जाता है )से ग्रस्त तो कोई क्लब -फ़ुट (बलदारपैर ,मुडाव -दार पैर )के साथ इस दुनिया में चला आता है .कईयों के पैर ही छोटे बडे नहीं होतें ,पंजा भी गायब होता है ,जन्म से तो कईयों का होंट कटा होता है .कईयों की अस्थियाँ जन्म से ही भंगुर (भुरभुरा कर टूटने वाली )होती हैं तो कितने ही शिशु मस्क्युलो -स्केलितलअब्नार्म्लेतीज़ (पेशीय -अस्थि -पंजर सम्बन्धी विकलांगता ,दिस्लोकेतिद हिप बोन लिए ही )इस दुनिया में आ जातें हैं ।
भारत में कितने ही ऐसे परिवार हैं जिनके पास इनके इलाज़ के लिए पैसा नहीं है .देश में शल्य -चिकित्सा तो मौजूद है लेकिन गरीब गुरबों के पास नौनिहालों के इलाज़ के लिए पैसा नहीं हैं .स्पर्श -वचन इनके लिए एक खुदा की भेजी इनायत से कम नहीं है ।
आपको बतलादें -हेल्थ सिटी बेंगलुरु में स्पर्श -अस्पताल इनको मुफ्त शल्य -चिकित्सा ही नहीं ,सर्जरी के बाद पुनर-आवास (रिहेबिलेष्ण )भी मुहैया करवा रहा है .इस एवज देश भर से २०० बच्चों को यह नायाब सुविधा मुहैया करवाई जा रही है ।
दुनिया भर से कोई तीस (३० )बालरोग -अस्थि विद इसमे अपनी सेवायें देंगें .ये अपने साथ ब्रितिल बोन से ग्रस्त बालकों के लिए राड्स (जिनका घनत्व अस्थि जैसा ही होता है )भी ला रहें हैं ।
यह सुविधा स्पर्श होस्पिटल में १९ -२६ अक्तूबर,२००९ , तक उपलब्ध करवाई जायेगी .संपर्क करें :-०९००८४ -७५००० ,
०९७४३२१४८९० पर ।
अंडमान -निकोबार के बच्चे भी इस सुविधा का लाभ ले सकेंगे .अब ये बच्चे अपने भाग्य को नहीं कोसेंगे ,कुछ का लंबा इलाज़ चलेगा ,शुरू हो चुका है ।
बकौल डाक्टर योहन्नान ,निदेशक चिकित्सा सेवायें ,मुख्य एन्स्थीज़िओलाजिस्त (अनेस्थेटिक पदार्थ देकर सर्जरी को कामयाब बनाने वाला चेतना -हारी माहिर )स्पर्श होस्पिटलने कई नौनिहालों को लिम्ब -लेग्थ्निंग गेजेट लगाया है ,जिससे टांग की लम्बाई रोजाना एक मिलीमीटर बढ़ने लगी है ,इनके पैर छोटे बडे हैं .इनमे कुछ बच्चे तो अपने हाथ पैरो को हिला दुला भी नहीं पातें हैं ,दिस्लोकेतिद हिप या फ़िर सेरिब्रल -पालजी से ग्रस्त हैं .आस की एक किरण फूटी है -स्पर्श की यह अप्रितम पहल एक आन्दोलन (जन -आन्दोलन )में बदले तो बात बने ,बीडा तो उठाया गया है ,आहुति मुझे औ आपको भी डालनी है .किसी विध भी .अब कोई ये ना कहे -जेहि विधि राखे राम ,हारे को हरिनाम ।
सन्दर्भ सामिग्री :-होप शा -इन्स फार २०० किड्स विद आर्थोपिदिक प्रोब्लम्स ,डॉक्टर्स फ्रॉम आल ओवर दी वर्ल्ड विल ट्रीट डैम फ्री इन बेंगलोर .(टाइम्स आफ इंडिया ,पृष्ठ १६ ,सन्डे सितम्बर १३ ,२००९ )
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

तोही (संवेदक )दरवाज़े कैसे काम करतें हैं ?

कोई भी ऐसी प्रविधि जो किसी भी भौतिक उत्तेजन का पता भी लगा सकती है ,उसके अनुरूप वांछित क्रिया -अनुक्रिया भी कर सकती है -संवेदक या तोहक कहलाती है ।
भौतिक सम्वेदन कुछ भी हो सकता है ,जैसे गति ,प्रकाश का पड़ना (आपतन ),तापीय विकिरण आदि ।
अलबत्ता तोहक एक ऐसे उपकरण को भी कहा जासकता है ,जिसका स्तेमाल फोटों - न अर्थात प्रकाश ,हमारे शरीर अथवा किसी यंत्र से निकली गर्मी ,गति आदि का पता लगाने के लिए भी किया जाता है ।
बहुअर्थी शब्द है -सेंसर ,एक ऐसी तरकीब जिस की मदद से किसी चीज़ की मौजूदगी ,उसमे होने वाले परिवर्तन को भी दर्ज किया जा सकता है ।
सुरक्षा उपकरण मसलन एक हीट सेंसर ही है जो किसी व्यक्ति या फ़िर किसी इतर प्राणी पशु आदि की तोह ले लेता है .टोस्टर एक इलेक्ट्रोनिक सेंसर से लैस होता है जो ब्रेड पीस (डबल रोटी )की समान एकसार सिंकाई (ब्राउनिंग )का पता लगा लेता है ।
बड़े बडे स्टोर्स और माल्स में आपने देखा होगा दरवाजा आपके दाखिल होने से पहले ही खुल जाता है ,बाहर निकलते ही आप से आप बंद भी हो जाता है .ज़ाहिर है यह कोई जादू नहीं है .दरवाज़े अक्सर मोशन सेंसर या फ़िर प्रिजेंस सेन्सर्स से लैस होतें हैं ।
मोशन सेंसर जब किसी व्यक्ति या कार्ट को अपनी औ आते देखता है ,गति ताड़ कर यह सक्रीय हो जाता है ,यह भी जान लेता है ,आप आ रहें हैं या जा रहें हैं ,इसकी तरफ या इससे दूर (परे ).माइक्रोवेव टेक्नालाजी काम में लेतें हैं -मोशन सेन्सर्स में ,साथ ही डाप्लर प्रभाव का स्तेमाल किया जाता है .राडार ,सोनार और लोनार में भी यही विधि काम में आती है ।
रेलवे प्लेटफार्म पर खडे किसी की प्रतीक्षा में जब आप किसी रेलगाडी को अपनी तरफ़ आते देखतें हैं तो एक दम से धड -धड की आवाज़ का स्वरमान (पिच अथवा तारत्व )बढ़ जाता है ,औ इंजन के आपके पास से गुजर जाने के बाद घट जाता है .स्वर का (आवृत्ति ,फ्रीकुएंसी )का यही उतार चढाव डाप्लर प्रभाव है .यही सितारों के मामले में रेड शिफ्ट (आप औ सितारे के बीच की दूरी का लगातार बढ़ते जाना )औ ब्लू -शिफ्ट दूरी के कम होते चले जाने की इत्तला है .सृष्टि फ़ैल रही है ,सितारे ,मंदाकिनियाँ परस्पर दूर छिटक रहीं हैं इसकी खबर उनके रेड शिफ्ट से ही मिली है (इन पिंडों से निसृत प्रकाश लगातार स्पेक्ट्रम यानी वर्णक्रम के लाल सिरे की और खिसक रहा है ।
सृष्टि के ज्यादातर पिंड रेड शिफ्ट दर्शा रहें हैं ।
मोशन सेंसर उच्च आवृत्ति माइक्रो वेव सिग्नल छोड़तें हैं ,जो पिंड (व्यक्ति या कार्ट ,पशु आदि )से टकरा जब लौट -ते हैं ,गति के हिसाब से इन की आवृत्ति बदल जाती है .यदि पिंड पास आ रहा है तो आवृत्ति बढती है ,दूर जाने पर घट जाती है ।
प्रिजेंस सेंसर गतिशील और गतिहीन दोनों ही किस्म के पिंडों की तोह ले लेता है .इसके लिए ये तोहक इन्फ्रा रेड टेक्नालाजी का स्तेमाल करतें हैं .इनसे एक अदृश्य (अवरक्त स्पंदी संकेत )पल्स्ड इनविजिबिल लाईट सिग्नल निसृत होता है ।
हम जानते हैं -दृश्य प्रकाश की एक छोटी सी पट्टी ही हमारी आँख देख सकती है -जबकि इसके दोनों और अद्रश्य प्रकाश मौजूद है -लाल वर्ण से परे अवरक्त औ नील -बैंजनी से परे -परा -बैंजनी .हमारे शरीर से लगातार अवरक्त विकिरण निकलता रहता है ,त्वचा का स्पर्श -सुख ,छुवन की आंच के पीछे यही इन्फ्रा रेड -रेदिएष्ण है ।सीमा हमारी आँख की है प्रकाश की नहीं ,वह तो -हरी अनंत हरी कथा अनंता की तरह विस्तार लिए है ,दृश्य -अदृश्य पत्तियों में .
सन्दर्भ सामिग्री :-हाउ दो सेंसर डोर्स वर्क ( सन्डे टाइम्स आफ इंडिया ओपन स्पेस,पृष्ठ २४ )।
प्रस्तुती मौलिक एवं अन्यत्र अप्रकाशित है .

विश्व स्वास्थय संगठन ने अपनी पुरानी सलाह वापस ली .

विश्व्स्वास्थय संगठन ने एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा वाय-रस के फैलाव को रोकने के लिए भारत द्वारा अपनाई गई उस रणनीति का समर्थन किया है जिसके तहत पुणे ,दिल्ली औ कई औ स्थानों पर इस पेंदेमिक वाय रस के एक समुदाय के अन्दर औ बाहर एक औ बड़े समुदाय में फैलाव को रोके रखने के लिए एक प्रोएक्टिव -रणनीति के तहत स्कूल ,कालिज माल्स आदि बंद रखे गए ।
ऐसा करने से एक तो वाय -रस के फैलाव को बेकाबू हो बढ़ने से रोकने दूसरी तरफ़ कारगर तरीके से सामना करने के लिए कुछ और वक्त हाथ लग गया .अब दुनिया भर से जुटाए आंकडे इस रणनीति की असर्कार्ता की पुष्टि करतें हैं ,विश्व्स्वास्थय संगठन ने भारत के प्रयासों की सराहना की है ,यद्द्य्पी केन्द्रीय स्वास्थय मंत्री इससे ना -इत्तेफाक रखते थे ,स्कूल कालिज बंद रखने के पक्ष में नहीं थे ।
टाइम्स आफ इंडिया अखबार ने अपने एक सम्पादकीय में इम्पीरिअल कालिज लंदन के एक अध्धय्यन का हवाला दिया गया जिसमें बतलाया गया था -फ्लू -पेंदेमिक के दौरान स्कूल बंद रखने की रणनीति के फलस्वरूप फ्लू संक्रमण के फैलाव में ४० फीसद की कमीबेशी दर्ज की गई ।
सन्दर्भ सामिग्री :-"स्कूल क्लोज़र्स हेल्प रिड्यूस एच १ एन १ स्प्रेड (सन्डे टाइम्स आफ इंडिया ,न्यू -डेल्ही सितम्बर१३ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

इस तरह बेअसर करता है -बेक्टीरिया एंटी -बाय्तिक्स को .

न्यूयार्क विश्व्विद्दाय्लय के विज्यानिओं ने उस सुरक्षा कवच का पता लगा लिया है जिसका स्तेमाल बक्टेरियम (जीवाणु ,बेक्टीरिया बहुवचन )एंटी -बाय्तिक्स दवाओं को बेअसर करने में करता रहा है ।
यही वजह है एक तरफ़ बीमारीओं की दवा रोधी किस्में पनपी हैं ,दूसरी तरफ़ बेक्टीरिया प्रतिजैविकीय पदार्थों (एंटी -बाय्तिक्स )को मज़े से चट करता रहा है ,अलबत्ता दवा रोधी किस्में पैदा होने की वजह इलाज़ बीच में छोड़ भाग खडे होना भी रहता है ।
दरअसल बेक्टीरिया कुछ ऐसे एंजाइम (किण्वक )तैयार करता है जो अन्तिबाय्तिक दवाओं का मुकाबला करने के लिए नाइट्रिक ओक्स्साईड्स बनाते हैं .यही दवा प्रतिरोध की वजह बनतें हैं ।
अब ऐसी दवाएं तैयार की जा सकेंगी जो इन एंजाइम्स का बनना मुल्तवी रखेंगी (रोक सकेंगी ).फलस्वरूप एंटी -बायटिक दवाओं को अपनी पुरानी धार (पोटेंसी ,असर कारकता )वापस मिल सकेगी .ऐसा होने पर आम एंटी -बाय्तिक्स भी सही अर्थों में जीवाणु का खात्मा कर सकेंगे ।
फिलवक्त तो जीवाणुओं की नै से नै जेनरेशन की तलाश रहती आई है ।
अब खतरनाक सुपर्बग (एम् .आर .एस .ऐ .)मेथी -साइलीन को भी ठीकाने लगाया जा सकेगा .यह एक दवा रोधी ढीठ किस्म का बेहद खतरनाक बेक्टीरिया समझा गया है .,जिससे पार पाना दुष्कर रहा है .कई किस्म की बाधाओं का सामना चिकित्सा जगत को इस जीवाणु की बदौलत करना पडा है ,एक तरफ इसकीकाट के लिए ज़रूरी दवाओं की अपेक्षाकृत ज्यादा कीमत ,दूसरी तरफ़ सुरक्षा सम्बन्धी तमाम सवालात मुह बाए खडे रहें हैं ।
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी लंगोने मेडिकल सेंटर के एवगेनी नुद्लेर का यह अध्धय्यन विज्ञान पत्रिका "साइंस "में प्रकाशित हुआ है ।
अब नै रन-नीति के तहत मौजूदा एंटी -बाय्तिक्स की असर्कार्ता (कारगरता ,पोटेंसी ) को ही बढ़ा कर इन्हें ज्यादा सक्षम बानाया जा सकेगा ।
नए एंटी -बाय्तिक्स के अन्वेषण पर होने वाला पैसा इधर खर्च किया जाएगा .नुद्लेर कहतें हैं कई एंटी -बाय टिक्स जीवाणुओं को ठिकाने लगाने के लिए कुछ चार्ज्ड -पार्टिकल्स (आवेशित कण ,आवेशित परमाणु औ अनु )बनातें हैं जिन्हें रिएक्टिव ओक्सिजन स्पिसिज़ कहा जाता है (ओक्सिदेतिव स्ट्रेस भी यही है ।)
सन्दर्भ सामिग्री :-बेक्टीरिया यूज़ एंजाइम्स तू रेजिस्ट एंटी -बाय्तिक्स (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १२ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति मौलिक एवं अन्यत्र अप्रकाशित है ।
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

भू -तापीय परियोजना पर तकरार .

`जर्मनी के एक छोटे से नगर लान दाऊ इंदर फाल्ज़ में इन दिनों वह भूतापीय परियोजना सवालों के घेरे में है जिसे वहाँ के ऊर्जा निगम जिओक्स ने हरी झंडी दी थी .यह विवाद तब पैदा हुआ जब गत अगस्त माह के बीचों बीच एक भूकंप इस नगर में दर्ज किया गया ,हालाकि इस की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर लेदेकर कुल २.७ ही थी (इस पैमाने पर परिमाण सूचक १-१० तक अंक होतें हैं ).परियोजना के तहत डीप ड्रिलिंग की गई ,एक सूराख गहराई में जाकर बनाया गया ताकि भू -तापीय ऊर्जा का दोहन किया जा सके ।
भूकंप के बाद से लोगों में एक खौफ बरपा है ।
परियोजना के समर्थक इसे जीव -अवशेषी इंधनों से निजात दिलवाने के लिए ज़रूरी बतलातें हैं ,तो विरोधियों ने एक पेनल बिठा दिया है ,जांच के लिए ,नतीजे आने पर ही परियोजना को दोबारा शुरू किया जा सकेगा ।
अमरीका में ऐसी ही एक परियोजना जांच के दायरे में आ गई है जिसे उत्तरी केल्फोर्नियाई निगम आलता रॉक एनर्जी चला रहा है ,गत माह एक भारी तकनीकी खामी की वजह से इस परियोजना का काम रोक दिया गया था ।
स्स्वित्ज़र्लंद के बसेल में भी ऐसी ही एक परियोजना को २००६ ,२००७ के जलजले (भूकंप )के बाद रोक कर जांच बिठा दी गई है .यह परियोजना अब माहिरों के एक पेनल की बात जोह रही है ,जिसे अपना फैसला सुनाना है ।
जो हो इस सबसे भू -गर्भीय ऊर्जा की साख खतरे में आ गई है .दूध का दूध पानी का पानी हो जाए यही विज्ञान और जन हित में होगा ।
दीगर है -लान दाऊ इन्दार्फाल्ज़ का भू -कंप ना सिर्फ़ आकस्मिक था एक सोनिक बूम की आवाज़ भी साथ लिए था जब कोई वायुयान ध्वनी के वेग से ज्यादा (सुपरसोनिक या फ़िर हाई -पर सोनिक रफ़्तार पकड़ता है ,तब पृथ्वी तक एक सोनिक बूम एक शाक वेव पैदा होने से पहुँच ने लगती है .ऐसे विमान का चालक ख़ुद अपने विमान के इंजन की आवाज़ नहीं सुन सकता क्योंकि वह तो ख़ुद ध्वनी के वेग का अतिक्रमण कर रहा है )।। अलावा इसके छोटे बडे एक लाख भूकंप पृथ्वी पर हर साल आतें हैं .
सन्दर्भ सामिग्री :-जिओथार्मल प्रोजेक्ट ट्रिगर्स क्युएक्स ,स्तिर्स सेफ्टी रो (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १२ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
भी

शनिवार, 12 सितंबर 2009

"आई -साईबोर्ग "-केविन वार्विक्क .

"आई -साईबोर्ग "-नाम है उस किताब का जिसके लेखक स्वयम केविन वार्विक्क हैं .साईबोर्ग संक्षिप्त रूप है -साइबरनेतिक आर्गेनिज्म का ,यानी एक ऐसी प्रणाली ,ऐसा निकाय जो एक साथ इंसान भी हो औ आंशिक तौर पर मशीन भी .वार्विक्क अपने आपको साईबोर्ग बनने के लिए किस प्रकार औ किस विध वोलिन्तिअर करतें हैं ,निडर होकर प्रस्तुत करतें हैं ,किताब में उसका विस्मयकारी ब्योरा (विवरण )है .किताब में उनके व्यक्तिगत जीवन सेहत औ सीरत के कई पक्ष उजागर होतें हैं ।

यह कथा है उनके विज्ञानिक उद्द्यमऔ समर्पण भाव की जिसमे वह निर्मम होकर अपने बिल्कुल अपनों का भी कच्चा चिठ्ठा खोलतें हैं .दुनिया भर के विज्ञानिक ,आलमी विज्ञान जगत किताब को पढ़कर नैतिकता औ नीतिशाश्त्र सम्बन्धी सवाल उठाने लगें हैं ।

आख़िर वार्विक्क ने ऐसा क्या कर दिया जो आज पूरा विज्ञान जगत आलोडित है .ख़ुद अपने जीवन को साईबोर्ग बनने की ललक में उन्होंने क्यों दाव पर लगादिया ?क्या उनके लिए साईबोर्ग बनना सबसे एहम सवाल था ,औ था तो क्यों ?

आख़िर मानवीय शरीर का दर्जा बढ़ाने ,अपग्रेड करने की नौबत क्यों आन पड़ी ?

दरअसल वार्विक्क ऐसा मानतें हैं -मानवीय शरीर की देखने चीज़ों को पर्सीव करने की ,त्रि -आयामी दर्शन की भी एक उपरी सीमा है .उसके मन की किवाड़ आँखें हैं ,औ आँख की अपनी सीमा है ,अति सूक्ष्म दूरबीनें उस उपरी सीमा का औ रिफ्लेक्तिंग औ रिफ्रेक्तिंग टेलीस्कोपों से भी बढ़कर रेडियो दूरबीने जो सुदूर अन्तरिक्ष से आने वाले पल्सार्स ,इतर रेडियो स्रोतों को पकड निष्कर्ष निकालती हैं आदमी को औ भी बौना साबित करतीं हैं ।

अभिव्यक्ति की भी अपनी सीमा है ,मानवीय अभिव्यक्ति की औ भी ज्यादा क्योंकि उसका माद्ध्यम भाषा बनती है .(भारत जैसे मुल्कों में उसकी हदबंदी सर्वग्रासी राजनीति भी करती है ।)

वार्विक्क सवाल उठातें हैं -क्या हम प्रोद्द्योगिकी की मदद से मानवीय क्षमताओं को औ भी बढ़ा सकतें हैं ?ज़वाब भी ख़ुद ही प्रस्तुत करतें हैं ख़ुद को गिनी पिग की तरह विज्ञान औ ज्ञान की बेहतरी के लियें .,वोलान्तिअर करके आज़माइशो के लिए ।

बकौल उनके संभावनाएं मौजूद हैं -इसके लिए मशीन -इंटेलिजेंस (कृत्रिम -बुद्धि )का अतिरिक्त दोहन करना होगा ताकि मशीने पार -एन्द्रिक संवेदनों ,भाव बोध ,सहज बोध औ दूर बोध को भांप सकें ,कयास लगा सकें .औ इससब के लिए केवल विचार केन्द्रीय बल ,विधायक तत्व की भूमिका निभाये ।

इधर रिमोट का स्थान दिमाग में फिट किया गया ,एक चिप लेने लगा है ,फालिज ग्रस्त लोग इससे अपने रोजमर्रा के काम कर सकतें हैं .कल यह आमफ़हम (आम चलनमें ) भी हो सकता है ,ऐसा वार्विक्क मानतें हैं ।इसकी शुरुआत उन्होंने ख़ुद अपने से करदी है ,अपने केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम )में सेकडों इलेक्ट्रोड्स (सर्जिकल इम्प्लान्ट्स फिट करवाकर )।

आपको साइबर -नेतिक्स (संतान्त्रिकी )का पितामह इसीलियें माना जाता है .संतान्त्रिकी वह विज्ञान है जो हमारे दिमाग औ केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र में होने वाले सम्प्रेष्ण (क्मुनिकेश्न्स नेट वर्क )की तुलना मशीन एवं अन्य यांत्रिक प्रणालियों में संपन्न संचार से करता है ।

ख़ुद वार्विक्क दुनिया के पहले साईबोर्ग (मशीनीकृत इंसान या फ़िर इंसानी मशीन हैं ).वैसे कितने ही लोग जो जीवन शैली रोग ग्रस्त हैं आज तेक्नोलाजिक्ल इम्प्लांट लगाए देहव्यापार को चला रहें हैं .किसी ने इंसुलिन पम्प फिट करवा रखा है ,किसी ने पेस मेकर तो किसी ने नकली दिल ,किसी ने निकोटिन चिप ,आप चाहें तो इन्हें भी आंशिक साईबोर्ग तो मान समझ ही सकतें हैं ।

हो सकता है -कल मशीने आदमी की काबलियत को चुनोती देने लगें .अति -बौद्धिक मशीने हमारे बीच आ जाएँ औ अपना कुनबा बढ़ाने लगें ?अपना ही प्रतिरूप गढ़ने संवारने लगें ?कल सारे फैसले मशीनी मानव करने लगें .ये पूरी कायनात रोबोट चलाने लगें ?विज्ञानी इसी आशंका से ग्रस्त हैं .हमारा मानना है -"अभी तो और भी रातें सफर में आएँगी ,चरागे शब मेरेमहबूब संभाल के रख ।"

सन्दर्भ सामिग्री :-केविन वार्विक्क ,"आई ,साईबोर्ग "गूगल सर्च ।

प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ),मैं प्रमाणित करता हूँ प्रस्तुती मौलिक है ,सन्दर्भ सामिग्री स्रोत से जुताई गई है ,अनुवाद मात्र नहीं है ।

वीरेंद्र शर्मा ,दी-२ (तू ) फ्लेट्स ,फ्लेट नम्बर १३ ,वेस्ट किदवाई नगर ,नई -दिल्ली -११० -०२३

दूरध्वनी :०११ -९३५०९८६६८५

अन्तरिक्ष यात्रा के लिए ग्रेविटेशनल कारिदोर्स -कम खर्च बालानशीन .

एक दिन ग्रेविटेशनल कारिदोर्स अन्तरिक्ष यात्रा को किफायती बना देंगे विज्ञानी इस दिशा में संलग्न हैं .इस रास्ते अन्तरिक्ष की सैर वैसे ही की जा सकेगी जैसेसमुद्री धाराओं , लहरों पर सवार (शिप्स बोर्न आन ओसन करेंट्स )
जहाज .,करतें हैं .इन घुमाव दार रास्तों (ट्विस्टिंग ट्यूब्स )का मापन अमरीकी विज्ञानी इन दिनों करने में मशगूल हैं .यह एक प्रकार की ग्रेविटेशनल गल्फ स्ट्रीम जैसी होंगीं -जो ग्रहों औ उनके उपग्रहों के पारस्परिक गुरुत्वीय आकर्षण का नतीजा हैं ।
इनके बीच सर्पिल आकार एक ग्रेविटेशनल कारीडोर मौजूद है .कंप्यूटर ग्रेफिक्स ने इसकी पुष्टि की है ।
लेग्रेंज़ पाइंट्स क्या हैं ?यह ऐसे तमाम अन्त्रीक्षीय स्थल हैं जहाँ गुरुत्वीय बल परिमाण में बराबर लेकिन विपरीत दिशा में लगते हैं ,फलतयापरिणामी गुरुत्व बल शून्य रहता है ।ये विभिन्न आकाशीय पिंडों के परस्पर आकर्षण -विकार्ष्ण का नतीजा हैं .
ज़ाहिर है -ग्रह औ उनकी परिक्रमा करते उपग्रहों के बीच लो एनर्जी पाथ- वेस हैं ,ऐसे मार्ग मौजूद हैं जहाँ इंधन की खर्ची कम होगी .औ सौर मंडल की मटरगश्ती सैर -सपाटा भविष्य में किफायती होगी तो इन्ही की बदौलत ऐसा होगा ।
ब्रितानी अखबार टेलेग्राफ ने वर्जीनिया- टेक के शेन रोस के हवाले से कहा है -दीज़ आर फ्री फाल पाथ्वेस इन स्पेस एराउंड एंड बिटवीन ग्रेविटेशनल बादीज़ ,इन स्टेड आफ फालिंग डाउन ,लाइक यु दू आन अर्थ ,यु फाल अलांग दीज़ ट्यूब्स -आप जानते हैं चन्द्रमा भी पृथ्वी -चन्द्रमा के सांझे गेरुत्व में मुक्त रूप से (फ्री -फाल )गिर रहा है ,लेकिन यह गिरना गुरुत्वीय त्वरण नामालूम सा है ,पृथ्वी की सतह गोलाई लिए है ,गिरते हुए यह दूसरी औ निकल जाता है ,यदि पृथ्वी चपटी होती ,चन्द्रमा पृथ्वी से अब तक टकरा गया होता .वैसे ही अंतरीक्ष अन्वेषी यान मुक्त रूप से ट्विस्टिंग ट्यूब्स ,ग्रेविटेशनल कारिदोर्स में गिरेगा औ किसी को खबर नहीं होगी ।अलबत्ता इंधन की बचत ज़रूर होगी .
सन्दर्भ सामिग्री :-जी -कारिदोर्स तू कट स्पेस त्रेविल कास्ट (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १२ ,२००९ )पृष्ठ -१९
प्रस्तुती :मैं प्रमाणित करता हूँ आलेख की प्रस्तुती मौलिक एवं अन्यत्र अप्रकाशित है ।
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ),पूर्व -व्याख्याता ,भौतिकी ,यूनिवर्सिटी कालिज ,रोहतक ,हरयाणा -१,२४,००१