शनिवार, 14 मई 2011

स्ट्रोक का प्रबंधन .(ज़ारी ...)

थ्रोम्बो- लीटिकएजेंट्स :धमनी के अवरुद्ध होने से जोदिमागी दौरा पड़ रहा है ,स्ट्रोक जो ज़ारी है ,ब्रेन अटेकजो अभी थमा नहीं है उसी के प्रबंधन में थ्रोम्बो -लीटिक दवाओं का स्तेमाल किया जाता है .ये दवाएं थक्के को घुलाके स्ट्रोक को थाम लेती है .दिमाग को अवरुद्ध रक्त की आपूर्ति फिर से बहाल होने लगती है ।
एक ऐसा ही थ्रोम्बो -लीटिक एजेंट है -रिकोम्बिनेंत -टिश्यु -प्लाज्मिनोजन -एक्टिवेटर (आर टी पी ए )जिसे जीन इंजीनियरिंग द्वारा तैयार किया जाता है .यह टी पी ए (टिश्यु प्लाज्मिनोजन एक्टिवेटर )की एक किस्म है जिसे हमारा शरीर कुदरती तौर पर तैयार करता है .
यदि स्ट्रोक शुरू होने के पहले तीन घंटों में यह मयस्सर हो जाए (इंट्रा -वीनस इंजेक्शन के ज़रिये )तभी कारगर रहता है बा -शर्ते चिकित्सक (न्यूरो -लोजिस्ट )यह सुनिश्चित कर ले कि यह स्कीमिक स्ट्रोक ही है .
सावधानी पूर्वक मरीज़ का परीक्षण करने के बाद ही थ्रोम्बो -लीटिक एज्नेट्स का स्तेमाल किया जाता है क्योंकि ये दवाएं रक्त स्राव को बढ़ा भी सकतीं हैं .(हेमरेजिक स्ट्रोक के मामलों में ये रक्त स्राव को बदतर बना सकतीं है तथा इन्हें एक्यूट स्कीमिक स्ट्रोक में ही कारगर पाया गया है .(एन आई एन डी एस यानी निंड्स आर टी -पी ए स्टडी १९९६ के बाद ही टी -पी ए को अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था की स्ट्रोक के प्रबंधन के लिए स्वीकृति इसी शर्त पे मिली थी ).दूसरे थ्रोम्बो -लीटिक एजेंट्स पर क्लिनिकल ट्रायल्स चल रहें हैं ।
न्युर्रो -प्रो -टेक्तेंट्स:स्ट्रोक से पैदा सेकेंडरी इंजरी से बचाव के लिए न्यूरो -प्रो -टेक -टिव एजेंट्स का स्तेमाल किया जाता है .इनमे से भी कुछेक को ही ऍफ़ डी ए की मंजूरी मिली हुई है बाकी पर नैदानिक परीक्षण चल रहें हैं ।
इनमे शरीक है भविष्य के न्यूरो -प्रो -टेक -टेंट्स :केल्शियम एन्टगोनिस्ट ,ग्लूटा -मैटएंटागोनिस्ट्स ,ओपियेत एंटा -गोनिस्ट्स ,एंटी -ओक्सी -देंट्स,अपोप -तोसिस इन -हिबितार्स आदि ।
(ज़ारी ...)अगली पोस्ट में पढ़िए "स्ट्रोक के समाधान के लिए शल्य चिकित्सा "
इस मर्तबा का शैर भी पढ़िए :
माना कि दुनिया को न हम गुलज़ार कर सके ,
कुछ खार तो कम कर दिए गुज़रे जिधर से हम .

कोई टिप्पणी नहीं: