सोमवार, 30 नवंबर 2009

क्या आप जानतें हैं ...?

डैरी-उत्पाद और मांस -मच्छी की खपत २०५० तक आज से दोगुनी हो जायेगी .जलवायु पर इसका बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पडेगा .संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के अनुसार जुगाली करने वाले पशु जितनी ग्रीनहाउस गैस मीथेन उगलतें हैं (जुगाली करने और डकार मारने के दरमियान )विश्व -व्यापी तापन (ग्लोबल -वार्मिंग ) में उसका असर दूसरी ग्रीन हाउस गैस कार्बन -दाई -आक्साइड से २३ गुना ज्यादा ठहरता है .इसीलियें एक और विज्यानी अब प्रयोगशाला में पार्क ,बीफ ,चिकिन और लेम्ब तैयार करलेना चाहतें हैं और दूसरी और ऑस्ट्रेलियाई विज्यानी भेड़ों की एक ऐसी ब्रीद (किस्म )तैयार कर रहें हैं ,जो बहुत कम डकार लेगी .डकार के दरमियान भेड़ग्रीन हाउस गैस मीथेन छोड़तें हैं ,अलबत्ता बहुत कम मात्रा में गुदा के ज़रिये भी (पादने )ऐसा होता है ।
प्रयोग शाला में तैयार गोश्त से तरह तरह की चटनियाँ ,सासेज़िज़ भी तैयार की जा सकेंगी अन्यसंसाधित उत्पाद भी .इससे लाखों पशुओं को जहाँ जीवन दान मिलेगा पर्यावरण -पारिस्तिथिकी की सेहत भी थोड़ी सुधरेगी .

भेड़ों की नै किस्म विश्व -व्यापी तापन कम करने के लिए ..

ऑस्ट्रेलियाई विज्यानी भेड़ों की एक ऐसी किस्म तैयार कर रहें हैं जिससे पर्यावरण को होने वाली नुकसानी थोड़ी कम की जा सकेगी .एक अनुमान के अनुसार कुल कृषि कर्म से ऑस्ट्रेलिया में १२ फीसद ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित होतीं हैं इसमे से ७० फीसद हिस्सेदारी जुगाली करने वाले पशुओं की ठहरती है .डकारने (डकार लेने )के दरमियान जुगाली करने वाले (र्युमिनेंत एनिमल्स )मीथेन गैस छोड़तें हैं अलबत्ता गुदा के द्वारा ना के बराबर कमतर गैस ही यह पशु छोड़तें हैं ।
न्यू -साउथ वेल्स डिपार्टमेंट ऑफ़ इंडस्ट्री एंड इन्वेस्टमेंट के जॉन गूपी के मुताबिक़ भेड़ों के मामले में ग्रीन हाउस गैसों का योगदान उनकी जुगाली करने और डकार मारने की आदत की वजह से ही बहुलांश में है .इसी लिए प्रजनन के ज़रिये अब नै किस्म (ब्रीद )तैयार की जा रही है .

प्रयोगशाला में तैयार हुआ पार्क

जिंदा शूकरसे चंद कोशिकाएं लेकर पेत्रिदिश में तैयार कर लिया गया है "सोगी पार्क "(गीला वेस्तिद मसल तिस्यु सा शुकर maअंस ).पशुओं के प्रति दया भाव रखने वाली उन्हें क्रूर्व्यव्हार से बचाने वाली संस्था "पेटा"ने इस प्रकार तैयार मीत का स्वागत किया है ।
आइन्दा पाँच सालों में इस गोश्ततरह तरह की चटनियाँ (सौसेज़िज़ )तथा संसाधित अन्यउत्पाद भी तैयार किए जा सकेंगे ।
विज्यानियों ने इस गोश्त को तैयार करने के लिए एक जीवित शूकर की पेशियों से कुछ कोशिकाएं लेकर इन्हें अन्य पशु उत्पाद शोरबे में पनपने के लिए रख छोड़ा .देखते ही देखते कोशिका द्विगुणित होकर पेशी ऊतकों में तब्दील हो गईं ।
नीदर्लेन्ड की इस शोध टीम के मुताबिक़ अब केवल एक पशु के गोश्त से टनों गोश्त तैयार किया जा सकेगा .इस प्रकार लाखों पशुओं एक नया और अनोखा जीवन दान मिलेगा यह कहना है एंधोवें यूनिवर्सिटी के मार्क पोस्ट का .आप के नेत्रित्व में ही नीदर्लेन्ड सरकार से अनुदान प्राप्त राशि से यह शोध कार्य आगे बढाया जा रहा है ।
अलबत्ता अभी तैयार गोश्त की गुणवत्ता का जहाँ तक सवाल है यह गोश्त सोगी है (वेट एंड अन्प्लेसेंज़ ला -इक वेस्तिद मसल तिस्यु )।
अलबत्ता इस अनुसंधान का पर्यावरण की दृष्टि से भी बड़ा महत्व है .पशु ग्रीन हाउस गैसों का एक पर्मुख स्रोत हैं .२०५० तक जहाँ गोश्त की खपत दोगुनी हो जायेगी वहीं ग्रीन हाउस गैस एमिशन में पशुओं का योगदान पहले ही १८ फीसद है कुल उत्सर्जन का .क्रत्रिम (प्रयोगशाला में तैयार किया गया गोश्त )गोश्त अतिरिक्त ग्रीन हाउस गैसों से निजात दिलवा सकेगा ।
इससे पहले भी न्युयोर्क में गोल्ड फिश मसल से "फिश फिलेट्स "(बोन लेस वाईट मीत फ्रॉम फिश )तैयार किए गए हैं इस प्रकार एक रास्ता खुल गया है प्रयोग शाला में चिकिन बीफ और लेम्ब तैयार करने का .

पिल्स में हाज़िर है -वोदका

नायाब आइडिया है दो गोली वोदका की ताज़े पानी के साथ लो और सुरूर में आ जाओ .३-४ लो और टल्ली हो जाओ .(लेकिन हुज़ूर टल्ली होना ठीक नहीं है ना सेहत और ना समाज के लिए )।
सोलिड फ़ूड के रूप में वोदका प्रस्तुत करने की प्रोद्योगिकी हाज़िर की है रसियन प्रोफ़ेसर एवगेनी मोस्कलेव ने .आप सेंटपीटर्सबर्ग विश्व -विद्यालय में कार्यरत हैं .बकौल आपके अब एल्कोहल को सीधे सीधे पाउडर में तब्दील कर उसकी गोलियां बनाई जा सकतीं हैं ।
विस्की हो या कोग्नाक (एक प्रकार की फ़्रांस में तैयार की जाने वाली ब्रांडी )वाइन हो या बीयर या फ़िर रसियन ड्रिंक
वोदका सभी को पहले पाउडर और फ़िर गोलियों में परोसा जा सकेगा पार -टियों में ।
अब बाज़ार से "ड्राई "वोदका कागज़ में रेप करके या फ़िर जेब में रख कर भी आप ला सकेंगें .बड़ी बोतल लेकर चलने संभालने का झंझट ख़त्म ।
(दी टेक्नोलोजी हेज़ बीन टेस्तिद ओं स्पिरिट ऑफ़ ९६ पर सेंट प्यूरिटी )
इस प्रोद्योगिकी की आज़माइश ९६ फीसद शुद्ध स्पिरिट पर की जा चुकी है .

रविवार, 29 नवंबर 2009

कार्य स्थल पर काम के दौरान गुस्से को पी जाने का मतलब .....

कार्य स्थल पर होने वाली ज्यादतियों को चुपचाप सह जाना व्यक्ति की सेहत की नव्ज़से जुडा है .एकस्वीडन में किए गए अध्धय्यन के मुताबिक़ जो लोग कार्यस्थल पर होने वाली ज्यादतियों पर मन मसोस कर रह जातें हैं अन्दर अन्दर घुट ते रहतें हैं उनके लिए दिल का दौरा पड़ने और किसी एक दौरे में मर जाने का ख़तरा पाँच गुना बढ़ जाता है .,बरक्स उनके जो हिसाब किताब बराबर कर लेतें हैं बॉस और अन्यों के साथ ।
स्टोकहोम यूनिवर्सिटी केस्ट्रेस रिसर्च इंस्टिट्यूट के शोध छात्रों ने २७५५ मुलाज़िमों का जिन्हें१९९२ -२००३ तक
तक दिल का दौरा नहीं पडा था ब्योरा जुटायाथा ।
अध्धय्यन के आख़िर तक ४७ भागीदार या तो मर चुके थे या फ़िर इन्हेंदिल का दौरा पडा था .यह सभी वहीथे जिन्हें कार्य स्थल की घुटन खाए जा रही थी .बुझदिली में यह किसी तरह काम चला रहे थे । इन सभी की उम्र आर्थिक सामाजिक पहलू ,जोखिम पूर्ण व्यवहार ,काम का तनाव और और जैविक खतरों पर गौर करने के बाद साफ़ साफ़ एक अन्तर सम्बन्ध बुझदिली से किए गए समझोते (कवर्ट कोपिंग )और दिल के बड़े दौरे (मायो -कार्डिएक इन्फार्क्सन )और कार्डिएक डेथ (दिल के दौरे से हुई मौत )के बीच देखा गया ।
यह भी देखा गया जो लोग अक्सर अपनी भावनाओं को दबाये सब कुछ सहते रहते थे उनके लिए दिल के दौरे का ख़तरा २- ३ गुना ज्यादा बढ़ गया था बरक्स उनके जो अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर गुस्सा निकाल देते थे ।
अलबत्ता शोध छात्र यह बतलाने में असमर्थ हैं ,कार्य स्थल पर ताल मेल और बेहतर और कामयाब ताल मेल बिठाने की हेल्दी कोपिंग स्ट्रेटेजी किसे कहा समझा जाए .ज्यादतियों का सीधे सीधे और तभी विरोध किया जाए ,बाद में स्तिथि के गुजर जाने के बाद हिसाब किताब किया जाए या फ़िर ताल मेल बिठाए रखा जाए लेदेकर .या फ़िर चीखा चिल्लाया जाए पलट कर ?
अध्धय्यन के नतीजे "एपिदेमियोलोजी और कम्युनिटी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर २५ ,२००९ पृष्ठ २३ (स्पीक अप :स्तिफ्लिंग एंगर अत वर्क कैन किल ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

स्पर्म काउंट घटाती है नेट सर्फिंग की आदत

एक अध्धय्यन के मुताबिक़ जो लोग इंटरनेट सर्फिंग ज्यादा करतें हैं उनके शुक्राणु तादाद में कमतर हो सकतें हैं सामान्न्य संख्या से .(स्वस्थ आदमी में प्रति घनमीटर इनकी एक क्रांतिक संख्या रहती है ।).
एनद्रोपेथी(रिलेटिड तू मेल आर मस्क्यूलिन - दिसीज़िज़ ) विभाग गुंग्क्सी ज्हुंग ,चीन के शोध छात्रों ने अपने एक अध्धय्यन में २१७ स्वयंसेवियों से स्पर्मेताज़ोआन (शुक्राणुओं )के नमूने जुटाए (पर इजेक्युलेषण ) जिसमे इस क्षेत्र के १९ विश्व -विद्यालयों और सम्बद्ध महा -विद्यालयों के छात्र शामिल थे .अलावा इसके १६४० छात्रों के बाहरी जननांग (तेस्तीज़ एंड पेनिस )का निरिक्षण किया गया ।
पचास फीसद छात्रों में स्पर्म काउंट (एक बार के डिस्चार्ज /इजेक्युलेषण से प्राप्त वीर्य में शुक्राणुओं की प्रति घन सेंटीमीटर तादाद )लो यानी सामान्य से कमतर पाया गया .जबकि ५६.७ फीसद छात्रों (सभी पुरूष छात्र थे पूरे अध्धय्यन में )के मामले में जो विश्व -विद्यालय में अध्धय्यन रत थे स्पर्मकाउंट एब्नोर्मल पाया गया ।
एक और अध्धय्यन में (जो उक्त अध्धय्यन से सम्बद्ध नहीं था )गत सप्ताह बतलाया गया है ,जो पुरूष घरेलू काम काज करतें हैं उनमे बच्चे पैदा करने के मौके कमतर हो जातें हैं ।
स्टेफोर्ड यूनिवर्सिटी ,केलिफोर्निया के शोध छात्रों ने मेल स्वयं सेवियों को विद्युत् -चुम्बिकीय क्षेत्र पैदा करने वाले उपकरण से काम करवाया ,पता चला वेक्युमिंग करने से (एक्सपोज़र तू वेक्युमिंग ) पुअर क्वालिटी स्पर्म काउंट का जोखिम दोगुना ज्यादा हो गया .यानी शुक्राणुओं की तादाद के संग गुणवत्ता भी गिरने का ख़तरा दोगुना ज्यादा हो गया . ।
शोध के अगुवा दे -कुन ली उन दम्पतियों को एलेक्त्रोमेग्नेतिक वेव्स के कमसे कम संपर्क में (इलेक्त्रोमेग्नेतिक वेव्स पैदा करने वाले उपकरणों से दूर रहने की सलाह देतें हैं जो संतान चाहतें हैं ,बच्चे पैदा करने को उत्सुक हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-"इंटरनेट सर्फिंग अफेक्ट्स स्पर्म काउंट "(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर २८ ,२००९ .,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

क्या हैं वोर्म्होल्स ?

यूँ एक उम्र बहुत थोड़ी है अन्तरिक्ष यात्रा के लिए लेकिन अन्तरिक्ष में कुछ काल्पनिक लघुतर रास्तें हैं (शोर्ट -कट्स )हैं .अन्तरिक्ष के दूरदराज़ के दो हिस्सों को मिलाने वाला यही मार्ग वोर्म होल कहलाता है ।
आइन्स्टाइन के मुताबिक़ घुमाव दार स्पेस -टाइम इन दो स्थानों को मिलाता है .,परस्पर कनेक्ट करता है ।
अलबत्ता वोर्म होल शब्द का इस्तेमाल अमरीकी भौतिकी विद जान ऐ वीलर ने सबसे पहले१९५७ में किया .प्रेरणा था वह कीड़ा जो एपल के एक सिरे से प्रवेश लेकर वाया सेंटर दूसरे तक आराम से पहुँच जाता है इसी प्रकार वोर्म होल के ज़रिये अन्तरिक्ष के एक से दूसरे हिस्से तक आसानी से पहुंचा जा सकता है ।
चौंकने चौकाने वाली बात यह भी है ,अन्तरिक्ष की यह सुरंगें (वोर्म होल्स )"टाइम त्रेविल "की कल्पना को पंख लगातीं हैं .यद्यपि किसी ने भी अन्तरिक्ष की यह अवधारणात्मक सुरंगें आदिनांक देखी नहीं हैं अलबत्ता अलबर्ट आइन्स्टाइन ने अपने गुरुतुव सम्बन्धी सापेक्षवाद में वोर्म होल्स की प्रागुक्ति की थी ।
उक्त सिद्धांत के मुताबिक़ अन्तरिक्ष में भारी भरकम पिंडों यथा ग्रहों सितारों की मौजूदगी आकाश -काल (स्पेस-टाइम जिसे एक ही भौतिक राशि समझा गया है )को एक कर्वेचर प्रदान कर देती है ,घुमाव दे देती है ।
जब ऐसे ही दो या दो से अधिक पिंड अन्तरिक्ष को विकृत (वोर्प )कर देतें हैं ,तोड़ मोड़ देतें हैं ,तब दो दूर दराज़ के अन्तरिक्ष भागों के बीच एक टनेल बन जाती है ।
(दी ईजी एस्ट वे तू थिंक अबाउट दिस इज इन तू दाय्मेंसंस .थिंक ऑफ़ स्पेस एंड टाइम एज ऐ पीस ऑफ़ पेपर बेंत ओवर ओं इत्सेल्फ़ .इफ ऐ वेट इज पुट ओं टॉप ऑफ़ डा पेपर ईट विल साग टुवर्ड्स डा सेंटर .इफ देयर इज एनादर वेट ओं डा अपोजिट साइड ईट विल आल्सो साग टुवर्ड्स डा सेंटर .इफ डा तू बल्ज़िज़ एवेंच्युँली मीत ऐ वोर्म होल कूद फॉर्म एंड ज्वाइन तू रीजन्स ऑफ़ स्पेस ।)
कल्पना कीजिये आप एक अन्तरिक्ष यात्रा पर निकले हैं ,लक्ष्य है अपनी गेलेक्सी का सूदूर सिरा (छोर ),आप अपने अन्तरिक्ष यान सहित एक वोर्म होल में प्रवेश करके प्रकाश की गति से तेज़ चलकर वहाँ पहुँच सकतें हैं .ऐसी है माया वोर्म होल्स की .

शनिवार, 28 नवंबर 2009

मानसिक रोगों के लिए जिम्मेवार जीवन खंड मिला ....

स्कोट लेंड के शोध कर्ताओं ने एक ऐसे जीन (जीवन इकाई )की शिनाख्त कर ली है जिससे मानसिक रोगों पर नै रौशनी पड़ सकती है .दिमागी रोगों के बारे में हमारी समझ में इजाफा हो सकता है ।
एडिनबरा यूनिवर्सिटी के माहिरों की देखरेख में अन्तर -राष्ट्रीय साइंस दानों की एक टीम ने एक जीन "ऐ बी सी ऐ १३का पता लगाया है .इससे मानसिक रोगियों के कारगर इलाज़ के लियें दवा इजाद करने में मदद मिल सकती है ।
अक्सर मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों में इस जीवन इकाई को फाल्ट -इ (दोषपूर्ण )पाया गया है .जबकि सेहत मंद लोगों में इसका ठीकठाक संस्करण देखने को मिला है .

अति महत्वपूर्ण है खाने का वक्त भी ...

क्या खातें हैं आप इसके अलावा यह भी देखना सेहत के लिहाज़ से लाज़िम है ,कब खातें हैं आप ?
एक संयुक्त भारत -अमरीकी अध्धय्यन में चूहों पर किए गए प्रयोगों से पता चला , यकृत (लीवर )में मौजूद हज़ारों जीवन खंड (जींस )की सक्रियता में घट बढ़ का सीधा सम्बन्ध खाने के वक्त सेतो है ही है , इस बात से और भी ज्यादा है ,आप खाते क्या हैं ।
केलोरीज़ को ठिकाने लगाने वाला मेटाबोलिक रेट्स का विनियमन करने वाला यकृत और वहाँ मौजूद हज़ारों जींस की वेक्सिंग और वेनिंग इस बात से प्रभावित होती है ,असर ग्रस्त होती है आप खातेंक्या हैं ।
बकौल सच्चिदानंद पांडा (आप साल्क इंस्टिट्यूट फॉर बाय लोजिकल स्टडीज़ में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के बतौर कार्य रत हैं )यदि स्वतंत्र रूप से केवल इस बात पर जीवन खण्डों की फौज की सक्रियता निर्भर करती है ,रोजाना अपनी दैनिकी में आप कब खातें हैं ,कब व्रत रखतें हैं ,कब भूखों रहतें हैं ,तब इसका बहुत ही महत्वपूर्ण असर पडेगा हमारी रेत ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ पर .,मेताबोलिस्ज्म पर ,कुल मिलाकर हमारी सेहत पर ।
(इफ फीडिंग टाइम दितार्मिंस डा एक्टिविटी ऑफ़ ऐ लार्ज नंबर ऑफ़ जींस कम्प्लीटली इन्दिपेन्देन्त ऑफ़ दा सर्कादियन क्लोक ,व्हेन यु ईट एंड फास्ट ईच दे विल हेव ऐ ह्यूज इम्पेक्ट ओं यूओर मेटाबोलिज्म सेज सच्चिदानंद पांडा )
क्या इस अध्धय्यन से अब यह बात समझी जा सकती है ,आख़िर क्यों शिफ्ट वर्कर्स को मधुमेह ,हाई -पर कोलेस्त्रिमियाँ और मोटापे का ख़तरा बना रहता है .

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

खासने का इलाज़ लंग्स में ही छिपा है ......

ब्रितानी विज्यानियों की एक टीम ने पता लगाया है ,फेफड़ों की नसों (स्नायु ,नर्व्स)के सिरों पर कुछ अभिग्राही प्रोटीन होतीं हैं जो इर्रितेंट्सके प्रति अनुक्रिया करतीं हैं ,नतीज़ा होता है कफ (खांसना ).यह जलन पैदा करने वाले उत्तेजक पदार्थ कुछ भी हो सकतें हैं .कुछ
लोग लगातार खांसते रहतें है कारण इन्हीं अभिग्राही प्रोटीनों की उत्तेजना बनती है जो नर्व्स एन्दिंग्स पर मौजूद होतें हैं .दीज़ रिसेप्टर्स प्रोम्प्ट कफ रिफ्लेक्स ।
ब्रितानी नेशनल हार्ट एंड लंग इंस्टिट्यूट के चिकित्सा कर्मियों के अनुसार इन अभिग्राहियों (रिसेप्टर्स )को बंद करके (अवरुद्ध ,ब्लोक )करके खांसी (खासने की प्रक्रिया )को मुल्तवी रखा जा सकता है .इम्पिरिअल कोलिज लन्दन और हल यूनिवर्सिटी के चिकित्सा कर्मियों ने भी यही पता लगाया है ।
लाइलाज कफ कुछ लोगों के लिए लगातार कष्ट का सबब बना रहता है .कुछ लोगों की तो जीवन धारा को ही बदल देता है कफ ,हताश निराश हो जातें है यह लोग .जीवन की गुणवत्ता असर ग्रस्त हो जाती है ।
कुछ लोगों के अनुसार आस पास की हवा में ही ऐसा कुछ होता है (फ़िर चाहे वह मौसमी अलार्ज्न्स ,एलर्जी कारक पदार्थ जैसे पोलेंस (पोलें न) हो हवा में तैरते या कुछ और एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थ )खासने की प्रक्रिया को यही एड लगातें हैं .जो हो चोर पकड़ा गया है .चिकित्सा कर्मियों को यह इल्म हो गया है खांसने के दौरान फेफड़ों में होता क्या है ?
अब पुष्ट यही होना करना है ,क्या इन रिसेप्टर प्रोटीनों को ब्लोक किया जा सकता है प्रभावी तरीके से .इन अभी- ग्राहियों को मिलने वाला उत्तेजन ,दह न ,इर्रिटेशन ही खांसी पैदा करता है ।
गिनी पिग्स और कुछ स्वयं -सेवियों पर की गई आजमाइशों से पता चला है ,नसों के सिरों पर टी आर पी ऐ १ प्रोटीन होती है जो सिगरेट के धुयें (सेकेंडरी स्मोक ),वायु में तैरते प्रदूषक से उत्तेजन प्राप्त कर सक्रीय (स्विच आन )हो जाती है .इसी से कफ रिफ्लेक्स पैदा होता है ,नतीज़ा होता है -खांसी (गले की फांसी ,लेकिन हूजूर मामला गले का नहीं है ,फेफड़ों से ताल्लुक रखता है ।).
गिनी पिग्स में दवाओं से जब इन अभिग्राहियों को अवरुद्ध कर दिया गया तब कफ रिफ्लेक्स भी जाता रहा ,सिगरेट स्मोक और प्रदूषक उत्तेजन ही प्रदान नहीं कर सके ।
इस शोध को पुष्ट करने के लिए माईस ,पिग्स और ह्युमेंस से नसें लेकर भी आज़माइश
की गई ,ताकि स्वयं सेवियों से प्राप्त नतीजे दोहराए जा सकें ।
सन्दर्भ सामिग्री :-क्युओर फॉर कफ इज इन डा लंग्स ,नोट थ्रोट (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर २४ ,२००९ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

अभिग्राही प्रोटीन होतीं हैं

बुधवार, 25 नवंबर 2009

कुदरत का नायब एंटी बायटिक यानी विटामिन डी

कुदरत का बख्शा नायाब तोहफा है -विटामिन" डी ".हालिया शोधों से इल्म हुआ है -यह हमारी सेहत के लिए एक बेहतरीन और राम बाण पुष्टिकर (न्युत्रिएन्त )है . एक प्राकृत प्रति जैविकीय पदार्थ है ,एंटी बायटिक है ।
यह हमारे रोग प्रति रोधी तंत्र (इम्यून सिस्टम )के हाथ मजबूत कर हमें हृद रोगों से बचाए रहता है ।
ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोध छात्र हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य (ओवर आल हेल्थ )के लिए विटामिन डी को एक क्रिटिकल (एकदम से ज़रूरी )पुष्टिकर तत्व मानते है .

बटन को हाथ लगातें ही गर्म दूध देगा बेबी फीडर

आधी रात के बाद उनींदी आँख लिए बेबी फीड तैयार करना दुधमुहे के लिए माँ बाप के लिए एक ज़रूरीलेकिन कष्टकर ड्यूटी सा होता है ।
जिम शेइख भी इसी परीक्षा से गुजरे थे अपने बेटे के लालन पालन के दरमियान .नीम रात दूध गर्म करना लाडले का और सोचते रहना "फीडर अपने आप गर्म नहीं हो सकता बटन को हाथ लगाते ही ."कहतें हैं -आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है ,और इसी से सामने आया जिम शेख का "टच बटन फीडर "यानी दूध से भरे फीडरके बटन को हाथ लगाइए और एक मिनिट में कुदरती दूध (स्तन से रिसने वाले दूध )की तरह गर्म उतने ही तापमान वाला दूध तैयार ।
(बेबी बोटिलहीट्स अप विद डा टाच ऑफ़ ऐ बटन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर २५ ,पृष्ठ २३ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

नकली एच दी एल का मतलब ?

चिकित्सा कर्मियों ने असली हाई -डेंसिटी -लिपो प्रोटीन कणों के गुन धर्म वाले ही अब नकली कण प्रयोग शाला में तैयार किए हैं जो रक्त प्रवाह में शामिल होकर असली कणों की तरह ही धमनियों को खुला रखने में मदद गार होंगें .कचरा यानी प्लाक धमनियों की अंदरूनी दीवारों पर ज़मा होकर इन्हें अवरुद्ध कर देता है इसी प्लाक के रप्चर होने पर "सेरिब्रो वेस्क्युलर एक्सीडेंट "आम भाषा में कहें तो स्ट्रोक और हार्ट अतेक्स का ख़तरा पैदा होता है ।
कोलेस्ट्रोल के लेब निर्मित कण एक दिन आर्टरी डीज़ीज़ के रोग निदान और कारगर इलाज़ में समान रूप से कारगर सिद्ध होंगें ।
इन कणों को मेडिकल इमेजिंग में कारगर बना ने के लियें इनके केन्द्रक (कोर )को गोल्ड और इतर मेटल्स से तैयार किया गया है .इन की मदद से प्लाक के बन ने की बेहतर तरीके से मानिटरिंग की जा सकेगी .नार्थ वेस्त्रँ यूनिवर्सिटी के शिकागो स्तिथ केम्पस में "एच दी एल नेनो पार्टिकल्स "तैयार कर लिए गए हैं .इन कणों की खूबी यह है ,जहाँ असली एच दी एल कणों की कोर वसा युक्त होती है ,वहीं इनकी कोर गोल्ड से तैयार की गई है .स्वर्ण की बनी यह कोर एक स्केफोल्ड की भांति ही काम करगी जिसके गिर्द असली कोलेस्ट्रोल की तरह ही चर्बी के अनु चस्पां हो जायेंगें ।
इस प्रकार से तैयार "सिंतेथिक एच दी एल "किसी भी तरह से असली कोलेस्ट्रोल से कम नहीं हैं यह कोलेस्ट्रोल से ज़बर्जस्त तरीके से नत्थी हो उसे सर्क्युलेशन से बाहर कर देता है .आजमाइशों से इस तथ्य की पुष्टि हुई है ।
एच दी एल ला -इक नेनो पार्टिकल्स "इमेजिंग और डायग्नोसिस "दोनों का ही काम करेंगें .आथीरो -इस्केलो -रितिक प्लाक से यही कण एक दिन निजात दिलवाएंगे .

क्रत्रिम तौर पर तैयार किया गया -गुड कोलेस्ट्रोल

हामारे खून में चर्बी घुली रहती है जिसे आम तौर पर कोलेस्ट्रोल कह दिया जाता है .वास्तव में इनमे से कुछ कण कोलेस्ट्रोल के खून की नालियों से चिपक जातें हैं ,नालियां खुरदरी यानी कठोर हो जाती हैं ,यही बेड कोलेस्ट्रोल है जबकि कुछ अन्यकणइस चर्बी को अंदरूनी दीवारों पर ज़मा होने से ना सिर्फ़ रोकतें हैं यकृत तक ले जातें हैंऔर यह सर्क्युलेशन से बाहर हो जातें हैं और इस प्रकार धमनियों को साफ़ सुथरा खुली रखने में मदद गार होतें हैं .इन्हें ही गुड कोलेस्ट्रोल कहा जाता है ।
व्यायाम करने से लगातार और नियमित सैर करने से यही बेड कोलेस्ट्रोल गुड कोलेस्ट्रोल में तब्दील हो जाता है ।
अब विज्यानी गुड कोलेस्ट्रोल से मिलते जुल्तें कण प्रयोगशाला में रचने में कामयाब हो गए है जो प्लाक (चिकनाई रुपी कचरे ,ट्राई ग्लीस -राइड )को बन्ने से पहले ही खुरच कर बाहर कर देतें हैं सर्क्युलेशन से असली के गुड कोलेस्ट्रोल कणों की तरह ।
इन रचे गए कणों की सतह को फेट्स और प्रोटीनों से ढांप दिया गया है ताकि यह चिपचिपे कोलेस्ट्रोल कणों से नत्थी हो जाएँ .और असली कोलेस्ट्रोल कणों की तरह रक्त प्रवाह में शामिल हो जाएँ
एक दिन इन्हीं कणों का स्तेमाल कार्डियो वेस्क्युलर डीज़ीज़ के इलाज़ में किया जा सकेगा .यही कहना है नेनो मेडिसन विभाग के चीएफ़ ( मुखिया) और "सेंटर फॉर एन्वाय्रण मेंटल इम्प्लीकेशंस ऑफ़ नेनो teknaalaaji के निदेशक आंद्रे नेल का ।
इन क्रत्रिम कणों को वैसे ही गुन देने की कोशिश की गई है जैसे vaastav में हदल कणों में होतें हैं(हाई density lipoprotin )को ही गुड कोलेस्ट्रोल कहा जाता है .बेड kahlaataa है -Low Density Lipo-protin .

चन्द्रमा की कलाओं का रिश्ता हो सकता है एपिलेप्टिक फिट्स से ...

चन्द्र कलाओं -ईद का चाँद ,दूज का चाँद ,पूर्णिमा का पूर्ण चन्द्र ,अर्द्ध चन्द्रऔर चन्द्र हीन अमावस्या का ज़िक्र साहित्य और कलाओं तक ही महदूद नहीं हैं -पूर्णिमा की रात का आत्म ह्त्या के उद्दीपक के तौर पर भी ज़िक्र किया जाता रहा है ।
अब विज्यानी एक अन्तर सम्बन्ध एपिलेप्टिक फिट्स की बारंबारता (फ़्रीक्युएन्सि )और फेज़िज़ ऑफ़ दा मून में भी तलाश रहें हैं ।
अपस्मार (एपिलेप्सी या आम जुबान में मिर्गी )के दौरों की आवृत्ति (फ़्रीक्युएन्सि ,बारंबारता )एक दम से घट जाती है "पूर्णिमा "को ,फुल मून नाइट्स में ,जबकि घुप्प अँधेरी रातों में (कृष्ण पक्ष )के दौरान आवृत्ति बढ़ जाती है ।
चिकित्सा कर्मियों के मुताबिक़ ऐसा होने के पीछे शायद मेलेटोनिन का हाथ है जिसका स्राव अँधेरी रातों (आम तौर पर घुप्प अंधेरे में अपेक्षा कृत ज्या दा होता है ,इसीलियें लोग बेड रूम में अन्धेरा पसंद करते हैं सोने के वक्त .)में ज्यादा होता है ।
यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन के चिकित्सा छात्रों ने एक पूर्णतया समर्पित (देदिकेतिद )एपिलेप्टिक यूनिट से जहाँ २४ घंटा फिट्स का हिसाब किताब लोग -इन किया जाता है ना सिर्फ़ आंकड़े जुटाए शुक्ल पक्ष (चांदनी रातों के दरमियान पड़ने वाले दौरों )फिट्स का मिलान क्रष्ण पक्ष के करेस्पोंडिंग फिट्स से किया ।
यानी शुक्ल पक्ष की पहली रात को आने वाले फिट्स का मिलान कृष्ण पक्ष की पहली रात को पड़ने वाले सीज़र्स से किया गया ।इसीतरह बाकी रातों को पड़ने वाले सीज़र्स का जायजा लिया गया .
अध्धय्यन से उक्त निष्कर्ष निकाले गए -आलोकित रातों को दौरों की आवृत्ति कम हो जाती है जबकि अँधेरी रातों में अपेक्षा कृत बढ़ जाती है ।
हम जानतें हैं -अपस्मार या मिर्गी के साथ जो लोग रह रहें हैं उनके दिमाग के एक हिस्से में अचानक न्यूरोन डिस्चार्ज (बिजली का स्राव )होने लगता है ,हाथ पाँव एंठने लगतें हैं ,मुख से झाग उबलने लगता है ,जीभ के दांतों के बीच आ जाने का ख़तरा पैदा हो जाता है .२-३ मिनिट के लिए मरीज मूर्छा में चला जाता है या फ़िर एक दम से भाव शून्य और निष्क्रिय हो जाता है .लेकिन इस स्तिथि का बाकायदा इलाज़ है ,शल्य भी उपलब्ध है .

रविवार, 22 नवंबर 2009

मक्का में मौजूद है एच१ एन१ इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ

मक्का से सउदी लौटे चार यात्री लौटने के २-३ दिन दिन बाद ही स्वाइन फ्लू से ग्रस्त होकर चल बसे .इन चारों को ही एच१ एन१ रोधी बचावी टीके नहीं लगे थे .सउदी kऐ स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है ।
इसके साथ ही विश्व -स्वास्थ्य संगठन की चिंता आगामी २६ नवम्बर से आरम्भ हो रही हज -यात्रा को लेकर बढ़ गई है ।
गौर तलब है मुसलामानों के इस पाकीज़ा मजहबी स्थल पर (तीर्थ )पर १६० देशों से तक़रीबन ३० ,००० लोग हर बरस पहुंचतें हैं .अंदाजा लगाया जा सकता आगे क्या कुछ हो सकता है .

टेमी फ्ल्यू रोधी किस्म मिली एच१ एन१ इन्फ़्ल्युएन्ज़ा टैप -ऐ की

स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक़ उत्तरी केरोलिना में चार लोगों में जांच के बाद एच१ एन१ विषाणु की ऐसी किस्म मिली है जिस पर तेमिफ्ल्यु असर कारी साबित नहीं होती है .ये चारोंइसी किस्म के साथ पाजिटिव हैं .,खून की जांच के बाद यह पुष्ट हुआ है .ड्यूक यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में गत ६ सप्ताहों में यह अब तक का सबसे बड़ा समूह है ।
स्वाइन फ्ल्यू के विरुद्ध प्रभावी रहने वाली दो दवाओं में से "टेमी -फ्ल्यू "एक असर कारी दवा रही है .स्वास्थ्य अधिकारी इस बात पर निगाह रखे हुए हैं ,कहीं वायरस एच१ एन१ अपना बाहरी कोट बदल कर म्युतेत (उत्परिवर्तित )तो नहीं हो रहा है ?आख़िर दवा बे -असर क्यों और कैसे हो रही है ?
अप्रैल २००९ से लेकर अब तक दुनिया भर में ५० मामले स्वाइन फ्ल्यू के दवा रोधी (तेमिफ्ल्यु -रेज़िस्तेंत )पाये गए हैं .

म्युतेतिद स्ट्रेन (उत्परिवर्तित किस्म )मिली इन्फ़्लुएन्ज़ा टैप ऐ एच १ एन १ वायरस की

नोर्वे में दो लोगों की एच १ एन १ इन्फ़्ल्युएन्ज़ा वायरस -ऐ से मौत के बाद उनके जिस्म से इस विषाणु की खतरनाक उत्परिवर्तित किस्म मिली है .जबकि एक व्यक्ति अभी गंभीर रूप से बीमार है इसी विषाणु से संक्रिमित होने के बाद ।
यह नोर्वे में इस म्युतेतिद किस्म से होने वाली पहली मौतें हैं .दोनों के ही शरीर से नमूने लेकर विश्व -स्वास्थ्य संगठन जांच के काम में जुट गया है .अलबत्ता अभी इस बात की किसी को भी भनक नहीं है ,क्या यह उत्परिवर्तित किस्म अन्यइंसानों को भी कहीं संक्रमण की चपेट मेंतो नहीं ले लेगी ।
चिंता यह भी है ,एच १ एन१ इन्फ़्ल्युएन्ज़ा वायरस अब पूर्वी यूरोप और एशिया की तरफ़ बढ़ रहा है ,पश्चिमी यूरोपके कुछ हिस्सों के अलावा और अमरीका में भी यह पहले ही शीर्ष को छू चुका है ।
विश्व -स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ उत्तरी गोलार्द्ध के कुछ हिस्सों में इस बीमारी ने शिखर को छू लिया है .अप्रेल २००९ में स्वेन फ्ल्यू की इस नै किस्म के दिखलाई देने के बाद से अब तक दुनिया भर में कुल ६७७० लोग इस बीमारी से ग्रस्त होने के बाद मौर के मुह में चले गए है .अब इस संक्रमण को अंदरूनी स्वास्नी क्षेत्र (डीपर एंड इनर रेस्पैरेत्री ट्रेक्ट )को खतरनाक तरीके से असर ग्रस्त बनाने वाली उत्परिवर्तित किस्म ने चिंता को और भी बढ़ा दिया है .

गर्म होने पर ही प्रभावी होती है -आयरन (बिजली की प्रेस )

कलफ लगें हों या साधारण ,सूती हों या फ़िर गर्म हाट आयरन ही निकालती है कपड़ों की शिकन .यूँ ठंडा लोहा भी काम कर सकता है लेकिन गर्म होने पर लोहा (बिजली की प्रेस )आयरन मुलायम हो जाता है .कपड़े पर आराम से आगे पीछे घुमाया जा सकता है ,मन मुताबिक़ कम या ज्यादा ,मोड़ा जा सकता आयरन करने के दौरान ।
असलमें बिजली से सम्पर्कित करने या फ़िर कोयले से गर्म करने पर आयरन साफ्ट हो जाता है ,इसके अणु तेज गति करने इधर उधर हर दिशा में .(रेंडम मोशन बढ़ जाता है लोहे में ,जिसकी वजह से लोहा नम्यहो जाता है ,गादुले लुहार और हमारे पुराने कारीगर लुहार आदि इस तथ्य से भली भाँती वाकिफ थे .ये लोग तरह तरह के हथियार अन्यलोह पात्र उपकरण आदि बना लेतें हैं ,अंग्रेज़ी में मुहावरा है -बेंड दी आयरन व्हेन हाट .)

क्या मतलब होता है "स्पा "का ?

आम भाषा में खनिज की धारा निकालने का स्थान "स्पा "कहलाता है ।
एक कुदरती गरम पानी का सोता जहाँ जल कुदरती तौर पर खनिजों से भी भरपूर रहता है -स्पा कहलाता है ।
एक इतिहासिक सपा टाउन भी है -पूरबी बेल्जियम में जहाँ लोग खनिज परिपूर्ण जल का सेवन और स्नान के लियें आतें हैं ।
यहाँ तैरने की भी सुविधा दी गई है ।
इन दिनों "हेल्थ्स्पा 'का बोलबाला है जहाँ स्वास्थ्य सचेत लोग तैरने के अलावा अनेक तरह के व्यायाम ,ब्यूटी त्रीत्मेंट्स के लिए भी आतें हैं .यहाँ सौन्दर्य प्रसाधन और सौन्दर्य प्रसाधक दोनों एक साथ उपलब्ध हैं ,जो कुदरती तौर पर आपके सौन्दर्य रख रखाव को चार चाँद लगातें हैं ।
स्पा बात का अपना मज़ा है ,बस आपको एक स्वीमिंग पूल में उतरना भर होता है ,चारों और से आती गरम जल की धाराएं तन -मन की श्रान्ति हर लेतीं हैं ।
जकुज्ज़ी (जे ऐ सी यु जेड जेडआई )।
इन दिनों मौज मस्ती के ऐसे रिज़ोर्ट्स को जहाँ लोग मिनरल स्प्रिंग्स का मज़ा लेने आतें हैं स्पा कहा जाता है ।
पूरबी बेल्जियम में स्पा एक आमोद प्रमोद का प्रमुख स्थल है ।
ऐ बात विद ऐ डिवाइस फॉर एरैतिंग एंड स्वर्लिंग वाटर इज काल्ड स्पा ।
स्पा इज एन एक्रोनियम (सनुस पैर अक्युं -ऍम )ओरिजिनेतिंग ड्यूरिंग दी रोमन एम्पायर व्हेन बेतिल वियारी लीज़ेन्रीज़ सौत ऐ वे तू रिकवर फ्रॉम देयर मिलिट्री वुंड्स एंड एल्मेंट्स .दे सौत आउट हाट स्प्रिंग्स एंड बिल्ट बाथ्स सो दे कूद हील देयर एकिंग बोदीज़ कालिंग दीज़ प्लेसिज़ "सानस पर एक्युयम ""स्पा "एस पी ऐ "।
मीनिंग हेल्थ थ्रू वाटर ।
ड्यूरिंग दिस पीरियड दी टाउन स्पा इन ईस्टर्न बेल्जियम वाज़ फा -उन्दिद .

क्या चीज़ है जो फल -फूल और मसालों में सुगंध भर देती है ?

फल -फूल और मसालों में कुछ वाष्प -शीलरसायन (वोलाताइलकेमिकल्स ) होतें हैं जो लगातार वाष्प बनके उड़ते रहतें हैं .आस पास के परिवेश को इन्हीं रसायनों के अणु सुगंधी से भर देतें हैं ।
इसका मतलब यह है ,पुष्प एक कुदरती इतर फुलेल पैदा करतें हैं ,यह सेंटपरफ्यूम्स की मानिंद एक यौगिक हैअनेकानेक रसायनों का ,जिनका अणु भार कमतर होता है ,जो वाष्प शील होतें हैं ,जैसे इस्टर .यही अणु वाष्पीकरण और विसरण (दिफ्युज़ं न )की प्रक्रिया के तहत आस पास के परिवेश में ठहर जातें हैं ,और वायुमंडल को एक सुरभि से भर देतें हैं ।
इन योगिकों की प्रकृति जुदा होती है हर फल फूल में ,इसीलिए हरेक की अपनी एक परिचित सुवास है ।
जिन पादपों का परागन मधु मख्खी ,इतर मख्खियाँ करतीं हैं उनकी सुवास मीठी जबकि भृंग द्वारा इतर कीट पतंगों द्वारा जिनका परागन होता है उनकी गंध मस्ती और स्पाइसी होती है .कई मर्तबा बासा ,दुर्गंधित ,पुरानी किताबों सी .

किसे कहा जाता है अब क्रेगर ?

एक ऐसा व्यक्ति जो अपने पर्यावरण -पारिस्तिथिकी के प्रति सचेत है और लगातार अपना कार्बन फुट प्रिंट कमतर करने में मशगूल है ,तथा "कार्बन रिडक्शन एक्शन ग्रुप "का सदस्य है -इन दिनों "क्रेगर "कहा समझा जाता है ।
कोल्लिंस शब्द कोष के हरित शब्द -संग्रह (ग्रीन लेक्सिकोन्न )में क्रेगर को स्थापित किया गया है ।
इन दिनों पर्यावरण और उसके संरक्षण से जुड़े मुद्दों को ग्रीन -इस्युज़ में शुमार किया जाता है .ग्रीन पोलिटिक्स ,ग्रीन पीस ,ग्रीन पार्टी ,ग्रीन हाउस गैसिज़ (जी एच जीज़ )आज कल आम फ़हम बोलचाल में आ चुके शब्द हैं ।
हेव ग्रीन फिंगर्स ,हेव ग्रीन थम्ब ,बी गुड अत मेकिंग प्लांट्स ग्रो .

शनिवार, 21 नवंबर 2009

शीघ्र पतन (प्रिमेच्युओर इजेक्युलेष्ण )से राहत के लिए स्प्रे ...

जापानी दवा कम्पनीशिओनोगी की एक डिविज़न "ड्रग मेकर स्सिएले फार्मा ने अमरीकी दवा संस्था को एक स्प्रे को मंजूरी देने के लिए आवेदन किया है ,जिसके मैथुन से ५ मिनिट पहले स्तेमाल से पुरुषों को शीघ्र पतन से थोड़ी राहत मिल सकती है ।
एक अनुमान के अनुसार १८ -५९ साला एक तिहाईअमरीकी मर्द मैथुन रत होने के एक मिनिट बाद ही शिखर को छूलेते हैं ।लेकिन आदिनांक ऐसा कोई भी इलाज़ ऍफ़ दी ऐ से स्वीकृत इन लोगों को मयस्सर नहीं हैं .
यह दवा प्रायोगिक नाम पी एस दी ५०२ के नाम से जानी जा रही है .यह कोम्बो है दो नम्बिंग (सुन्न करने वाली )एजेंट्स "लिदोकैने "और "प्रिलोकैने "का .केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी सां -फ्रांसिस्को के इरा शर्लिप और साथियों ने इसका परिक्षण ३०० ऐसे मर्दों पर किया है जो प्री -इजेक्युलेष्ण की समस्या से ग्रस्त थे .इन्हें मैथुन से पाँच मिनिट पहले शिश्न पर इस स्प्रे को छिड़कने के लिए कहा गया .तीन माह तक जारी इस अध्धय्यन के अंत में पता चला जो मर्द पहले मैथुन रत होने के एक मिनिट बाद ही स्खलित हो जाते थेउनमे से ६० फीसद अब तीन मिनिट तक मैथुन रत रहने के बाद ही शिखर पर पहुँच रहें हैं ।
स्टानले अल्थोफ़ (सेंटर फॉर मेरिटल एंड सेक्स्युअल हेल्थ ,साउथ फ्लोरिडा )समय से पहले स्खलन (प्री मेच्युओर इजेक्युलेषण )औरत और मर्द दोनों के ही यौन जीवन पर नकारात्मक असर छोड़तें हैं .कुछ के लिए तो यह शर्मिंदगी का सबब बन जाता है ।सेक्स्युअल मेडिसन सोसायटी ऑफ़ नोर्थ अमरीका ,की सां डिएगो में आयोजित एक बैठक में शोध कर्ताओं ने बतलाया -स्प्रे की आज़माइश जिन ५०० लोगों पर की गई उन्हें
स्प्रे के स्तेमाल के बाद संतुष्ट देखा गया । यौन संबंधों से जुड़ी है हमारे मानसिक स्वास्थ्य की नवज ।
सुरक्षा कवच धारण कर कुरुक्षेत्र के मैदान में कूदना ही काफ़ी नहीं है ,कोई हताहत भी तो हो शिखर को छूने से पहले इधर उधर बमबारी कर ना खिसक ले .अक्सर होता यही है .

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में चेहरे पर पाँच सौ रसायनों का लेप .

दर्शनीय बनने संवर ने में महिलाए रोजाना जितने तरह के सौन्दर्य प्रसाधनों का स्तेमाल आज कर रहीं हैं ,विज्यान कर्मियों ,सौन्दर्य प्रसाधनों के माहिरों ने पता लगाया है उनमे कमस कम ५०० किस्म के रसायनों का डेरा होता है ।

फ़िर चाहे वह गोरा बनाने वाली कथित क्रीम हो या या कथित दुर्गन्ध नाशी (डियोडरेंट ),या फ़िर लिपस्टिक ,सभी में से एक एक में कमसे कम २० तक रसायन पाये जातें हैं ,इनमे से कितने कार्सिनोजंस (कैंसर कारी एजेंट का काम करतें हैं ,इसका कोई निश्चय नहीं ).हस्त -पाद -नख प्रसाधन भी रसायनों की इस मारा मारी से मुक्त नहीं हैं ।

ताम्बई (ताम्र रंगी )दिखने बन ने संवर ने की कीमत हर औरत को चुकानी पड़ती है ।

(बतला -देन आपको चुम्बन में विटामिन के अलावा रसायन भी होते हैं ,जिनमे से कई कैंसर भी पैदा कर सकतें हैं .सीरियल -किस्सर्स से क्षमा याचना सहित )।

एक डियोड्रेंट फर्म "बिओंसें "ने पता लगा या है ,एक सौन्दर्य सचेत आधुनिका रोजाना १३ प्रसाधन रोजाना औसतन स्तेमाल में लेतीं हैं ।

इनमे संयोजी (एडिटिव्स )भी शामिल होतें हैं ।

अब सद्य स्नाता नायिका का दौर नहीं हैं ,ब्यूटी क्लिनिक में सब कुछ मिलता है -ताम्बई रंगत से लेकर बिहारी कविवर की नायिका जो अभी अभी स्नान करके हाज़िर हुई है ।

अब स्तन ही सिलिकान के नहीं हैं ,बरौनी भी बनावटी बनवाई जातीं हैं

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

धूम्र पान की तरह ही घातक है अवसाद ग्रस्त होना ...

एक अध्धय्यन के मुताबिक़ अवसाद मौतके खतरे की उतनी ही बड़ी वजह बन रहा है जितना धूम्र पान .बेर्गें यूनिवर्सिटी नोर्वे और किंग्स कोलिज लंदन के मनोरोग संस्थान के विज्यानियों ने एक चार साला सर्वे में ६०००० लोगों के मृत्यु सम्बन्धी आंकड़ों को जुटाया .पता चला ,इस दरमियान मौत का ख़तरा अवसाद ग्रस्त लोगों और धूम्र पान करने वालों में एक जैसा बढ़ा हुआ दर्ज किया गया ।
यह भी पता चला अवसाद ग्रस्त लोगों में मौत का जोखिम ज्यादा बढ़ जाता है बनिस्पत उन लोगों के जो अवसाद के साथ साथ एन्ग्जायती (औत्सुक्य )की भी गिरिफ्त में आ जातें हैं ।
बत्लादें आपको -दी एस एम् -४ (डायग्नोस्टिक स्तेतिस्तिकल मेन्युअल -४ )के मुताबिक़ अब डिप्रेशन (अवसाद )को एक स्वतंत्र रोग का दर्ज़ा हासिल है ।पहले इसे किसी और रोग का एक और लक्षण मात्र समझा जाता था .
इस रोग में व्यक्ति अपना आत्म विशवास खोकर ख़ुद की ही नज़रों में नाकारा (बेकार )हो जाता है .उसकी किसी भी चीज़ में दिलचस्पी नहीं रह जाती है .जीवन निरर्थक लगने लगता है ,बेमकसद .आत्म ह्त्या की प्रवृत्ति अक्सर बढ़ जाती है ।ऐसे मरीज़ को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए .नियमित दवा देना भी अपनी(तीमार दार की ) देख रेख में ज़रूरी है .
सन्दर्भ सामिग्री :-"डिप्रेशन इज एज डेडली एज स्मोकिंग (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर १९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

विनाश की ओर ले जायेगी तापमान वृद्धि ....

एक अध्धय्यन के मुताबिक़ पृथ्वी का तापमान इस शती के अंत तक ६ सेल्सिअस बढ़ जाएगा .(पृथ्वी के तापमान में सिर्फ़ ४ डिग्री सेल्सिअस की घटबढ़ हिम युग और जलप्लावन (दिल्युज़ )की वजह बन जाती है ,इतना नाज़ुक है पृथ्वी का हीट बजट ।
ज़ाहिर है हम विनाश की और बढ़ रहें हैं ।
इसकी वजह २००२ के बाद से ही वायुमंडल में कार्बन की मात्रा का बेहिसाब बढ्जाना है ,इतनी मात्रा इस ग्रीन हाउस गैस की कुदरती तौर पर ज़ज्ब करने की पृथ्वी में भी नहीं है ,इसी से यह संकट मुह्बाये खडा है .पर कोई समझे तब न ।
ग्लोबल कार्बन स्टडी में मशगूल सात देशों के साइंस दानों ने पता लगाया है ,जीव अवशेषी ईंधनों के बड़े पैमाने पर होने वाले सफाए से २००० -२००८ के दरमियान कार्बन उत्सर्जन २९ फीसद बढ़ गया है ।
१९० देशों की अगले माह के सात दिसंबर को होने वाली कोपेनहेगन बैठक दुनिया के सामने आखिरी मौक़ा है ,संगठित कदम उठाने का ताकि जलवायु को नियोजित तरीके से उद्द्योगिक पूर्व के सुरक्षित मानक (स्तर ) के ऊपर लाकर स्तेब्लाईज़ किया जा सके .
यदि इसमे कोताही बरती गई (जैसी की आशंका है ),या फ़िर एक दम से लचर समझौता होता है गरीब अमीर देश अपना वायदा और ज़वाब देही से मुकर जातें हैं ,तापमान मात्र २.५ -३ सेल्सिअस नहीं शती के अंत तक ५-६ सेल्सिअस तक बढ़ जायेंगे ।
वक्त हाथ से निकल रहा है (दी टाइम स्केल्स हेयर आर एक्स्ट्रीमली टाईट फॉर वाट इज नीदिद तू स्तेबिलैज़ दी क्लाइमेट ).,अभी नहीं तो फ़िर कभी नहीं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-अर्थ हेदिद फॉर सिक्स सेल्सिअस राइज़ इन टेम्प्रेचर (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ,१९ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )

बुधवार, 18 नवंबर 2009

सिगरेट छुड़ाई के लिए सुइंयाँ

ग्लेक्सो स्मिथ क्लाइन पी एल सी और नबी बायो -फार -मासितिकल्स मिलजुलकर अब एंटी -स्मोकिंग वेक्स्सींस पर काम कर रहें हैं .नबी "निच्वेक्स "नाम से एक वेक्स्सीन तैयार कर रही है .यह वेक्स्सीन हमारे रोग रोधी तंत्र से एंटी -बोदीज़ तैयार करवाएगी जो निकोटिन से आबद्ध हो जायेंगीं .ऐसा होने पर निकोटिन अणु दिमाग तक पहुँच ही नहीं पायेंगे .ऐसे में सुरूर (मौज मस्ती )का एहसास ही नहीं होगा स्मोकर्स को .यही कुंजी है -सिगरेट छुडाने की ।
आजमाइशों से पता चला है ,एंटी -स्मोकिंग सुइयां लगवाने वाले स्वयं सेवियों में से आधे ही दोबारा इस लत की गुलामी कर पातें हैं .आधों को इस लत से छुटकारा मिल जाता है ।
निकोटिन पेच से लेकर बाबिल-गम्स तक तमाम तरह के उपाय इस लत से छुटकारे के लिए आजमाए जा रहें हैं ,कामयाबी सबमे जुदा जुदा है ।
रोक विले मेरिलेंड की दवा कम्पनी "नबी ""निच्वेक्स "एक नैदानिक परिक्षण संपन्न कर लेने के करीब है .दूसरे परिक्षण की तैयारी है ।
आजमाइशों की कामयाबी के बाद ही "रेग्युलेटर्स "से ,विनियामकों से ,सुइयों के आम स्तेमाल की स्वीकृति मिलेगी ।
अमेरिकन लंग असोसिएशन के मुताबिक़ धूम्र पान छोड़ने के एक साल बाद ही ९० फीसद लोग दोबारा इसकी गिरिफ्त में चले आतें हैं ।
यदि उक्त जेब्स, निकोटिन रोधी सुइयां ,काम- याब रहती हैं तब दुनिया भर में यक़ीनन लाखों लोगों को तम्बाखू जनित (स्मोकिंग रिलेटिड )मौत से बचाया जा सकेगा ।
सन्दर्भ सामिग्री :-ऐ वेक्स्सीन तू हेल्प स्मोकर्स किक दी बट (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर १८ ,२००९ ,पृष्ठ २३ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

मिर्गी के बारे में पूछे गए आम सवाल ....

क्या है "मिर्गी "/अपस्मार /एपिलेप्सी ?
यह एक प्रकार का न्युरोलोजिकल दिस -ऑर्डर (तंत्रिका वैज्यानिक विकार )है .स्नायुविक यानी नर्वस सिस्टम से ताल्लुक रखने वाला एक विकार है जिसमे ,मरीज़ को बार बार /अक्सर दौरे पडतें हैं और वह चेतना खो बैठता है २-३ मिनिट तक रहती है सीज़र्स की अवधि .अक्सर इसमे हाथ पैर को फडकन ,जर्किंग ऑफ़ लिम्ब्स .मुह से झाग निकलना देखा जा सकता है ,मरीज़ पर ख़ुद का नियंत्रण नहीं रहता ,इस स्तिथि में उसकी जीभ अपने ही दांतों के बीच आ सकती है ।
ज़रूरी नहीं है ,मरीज़ हमेशा चेतना ही खोये .कई मर्तबा मरीज़ एक दम से निष्क्रिय हो शून्य में ताकने लगता है (ब्लेंक स्टे -आर ,विचार शून्य ,लक्ष्य हीनसपाट चेहरा हो जाता है मरीज़ का ),प्रतिकिर्या हीन होती है यह स्तिथि .गिर भी सकता है मरीज़ इसी स्तिथि में मरीज़ का इस प्रकार से गिरना भी सीज़र्स का ही हिस्सा होता है ।
इस स्तिथि में एंटी सीज़र्स दवाएं दी जातीं हैं ।
दौरा /सीज़र्स /न्यूरोन डिस्चार्ज वास्तव में हैं क्या ?सीज़र्स का मतलब है -दिमाग की रिदम का टूटना .इस स्तिथि में सारे शरीर में तनाव /मरोड़ /झटके लगने के साथ मरीज़ बेहोश भी हो सकता है .मरीज़ सिर्फ़ घूरता भी रह सकता है -जैसे किसी चीज़ को घूर रहा हो.(स्टे -अरिंग स्पेल कहतें हैं इसी को )।
मरीज़ के शरीरका कोई भी एक हिस्सा भी असर ग्रस्त होते देखा जाता है मसलन चेहरे का ऐंठना (फेशियल त्विचिंग )./केवल एक हाथ या एक पैर में झटके लगना ,फडकन होना ,एंठना किसी भी हिस्से का देखा जा सकता है ।
क्या एपिलेप्सी खानदानी बीमारी है /परिवारों में चलने वाला रोग है ?
केवल एक फीसद मामले खानदानी विरासत होतें हैं (हेरिदित्री होतें हैं )।
क्या एपिलेप्सी एक ला- इलाज़ ठीक ना होने वाला रोग है ?
अन्य रोगों की तरह इसका भी बाकायदा इलाज़ है .अलबत्ता कोई शोर्ट कट नहीं है .दौरा मुक्त अवधि में भी दवा चलती है ,३ -४ साल तक या और भी ज्यादा अवधि के लिए ।
क्या एपिलेप्सी के मरीज़ शादी ब्याह रचा सकतें हैं .संतान होतीं हैं इनकी ?
बाकायदा शादी करके आम जीवन बिता सकतें हैं .फेमिली भी चिकित्सक की निगरानी में प्लान कर सकतें हैं ,शुरू से ही प्री नेटल केयर लेते हुए कामयाबी से स्वस्थ संतान पैदा कर सकतें हैं .ज़रूरत एक स्वस्थ नज़रिए जीवन दृष्टि की है .बीमारी को लेकर पुराने तमाम मिथक टूट चुकें हैं .एक आम फ़हम रोग है जिसके साथ सामान्य जीवन जिया जा सकता है .पीपुल विद एपिलेप्सी कोई अजूबा नहीं हैं .८००,००० लोग है ऐसे हिन्दुस्तान में .

नेशनल एपिलेप्सी डे ....

अपस्मार या मिर्गी के दौरे के तकरीबन ८०,००० मरीज हैं हमारे देश में जिनके साथ सरकारी /गैर -सरकारी /पारिवारिक /सामाजिक हर स्तर पर भेदभाव होता है .एक सामाजिक अभिशाप इस बीमारी के साथ चस्पां हो गया है .यद्यपि किसी को एपिलेप्टिक कहना सामाजिक तौर पर वांछित नहीं हैं ,गाली देने के समान है ।
अब इस इलाज योग्य बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को कहा जाता है -"पर्सन विद एपिलेप्सी "ना की एपिलेप्टिक ।
बिना किसी नस्ल भेद के किसी भी उम्र के व्यक्ति को यह असर ग्रस्त बना सकती है .भौगोलिक हदबंदी का इस बीमारी ने सदैव ही अतिक्रमण किया है ।
गत ४००० सालों से आदमी (औरत मर्द )इस बीमारी से वाकिफ है ,आधुनिक चिकित्सा के पास इसका इलाज़ और रोग निदान दोनों है ,लेकिन असल बात सामाजिक रवैये की है .जबकि ७५ -८० फीसद मामलों में रोग इलाज़ करवाने पर ,इलाज़ पर टिके रहने पर काबू में रहता है ।
वोमेन लिविंग विद एपिलेप्सी कैन प्लान देयर प्रेग्नेंसीज़ हालाकि फिमेल हारमोंस इस्ट्रोजन और प्रोजेस्तिरों- न कुछ दिमागी कोशिकाओं को प्रभावित करतें हैं जहाँ से न्युरोंस डिस्चार्ज होतें हैं ,सीज़र्स यहीं से शुरू होतें हैं .लेकिन अपनी चिकित्सक की देखभाल में शुरू से ही सावधानी बरतने ,प्रीनेटल केयर लेते रहने पर ९० फीसद मामलों में स्वस्थ और एक दम से सामंन्य बच्चे पैदा होतें हैं ।
अब नै नै दवाएं उन युवतियों को भी मयस्सर है जो युवा वस्था की देहलीज़ पर पाँव रखते ही एपिलेप्सी के साथ रह रहीं हैं .इन दवाओं के पार्श्व प्रभाव (दुश प्रभाव या साइड इफेक्ट्स )अंडाशय ,वेट गें- न और बाल झड़ने का जहाँ तक सवाल है ,कमतर हैं .(वैसे भी दवा का फायदा कितना ज्यादा है यह देखा जाता है,अवांछित प्रभाव नहीं जो कुछ ना कुछ तो होता ही है )।
क्या है ट्रीटमेंट गेप ?
इस समय तमाम तरह के लोग हैं गावों शहरों ,महा नगरों ,विश्व -नगरियों में जो एपिलेप्सी के साथ बिना इलाज़ के रह रहें हैं .कारण ,सोसल स्टिग्मा ही तो है .यही है ट्रीटमेंट गेप .,जो भारत में ५० -७८ फीसद तक दिखलाई देता है .बेंगलुरु में यह गेप ५० फीसद दर्ज किया गया जबकि ग्रामीण भारत में (कंट्री साइड में )यह बढ़कर ७८ फीसद तक पहुँच जाता है ।
पूर्ण साक्षर केरल भी इस पिछड़ेपन से मुक्त नहीं है ,यहाँ ३८ फीसद दर्ज किया गया है ट्रीटमेंट गेप ।
एक हिचक है लोगों में सामाजिक अस्वीकृति की वजह से जो रोग निदान को तरजीह ही नहीं देते .यहीं पर सूचना और शिक्षा का एहम रोल है .हर नागरिक का फ़र्ज़ है वह लोगों को बतलाये रोग निदान और इलाज़ के बेहतर साधन ,दवाएं इलाज़ के लिए आज भारत में उपलब्ध हैं ।
विकल्प के बतौर शल्य चिकित्सा भी उपलब्ध है ।
रोग निदान के बाद नए मामलों में एक तिहाई मरीजों में आदर्श चिकित्सा के बावजूद "फिट्स "/सीज़र्स /न्यूरोन डिस्चार्ज ज़ारी रहतें हैं .ऐसे में दौरों की प्रभावी रोक थाम के लिए दवा की बड़ी खुराकें देना बेहद खर्ची का वायस (वजह )बन जाता है ., मरीज़ का बौद्धिक ,मनोविज्यानिक ,सामाजिक और शैक्षिक जीवन इसकी चपेट में आता है ।
शल्य चिकित्सा इन्हीं लोगों के लियें हैं जिसके तहत "दी एपिलेप्तो -जेनिक फोकस इज लोके -लाइज्द एंड रिसेक्तिद "यानी दिमाग का वह चुनिन्दा हिस्सा जहाँ से "न्यूरोन डिस्चार्ज होता है "जो सीज़र्स /दौरे के लिए उत्तरदायी है काट कर फेंक दिया जाता है ।
इस सब का फैसला हाई -क्वालिटी एम् आर आई ,वीडियो ई ई जी तेलिमीत्री टेस्ट्स आदि के बाद लिया जाता है ,चंद अस्पतालों में ही यह सुविधा उपलब्ध है .आरंभिक स्तिथि में उन मरीजों के मामले में इसे आजमाया जाता है जिनके दौरे बस एक दो साल से ही रोग निदान और आदर्श चिकित्सा के बावजूद बे काबू हुए हैं .दुनिया भर में इस तकनीक का पूरा दोहन होना बाकी है .

अवसाद रोधी दवा वियाग्रा का काम करेगी ......

यूनिवर्सिटी ऑफ़ नोर्थ केरोलिना के जॉन थोर्प के मुताबिक़ अब एक अवसाद रोधी दवा "फ्लिबंसेरिन" उन महिलाओं के लिए वियाग्रा के समान असरकारी हो सकती है जिनकी सेक्स में बहुत कम दिलचस्पी रहती है (दिमिनिश्द लिबिडो वाली /फ्रिजिड वोमेन ).तीन अलग अलग अध्धय्यनों से पुष्ट हुआ है -एंटी -डिप्रेसेंट के रूप में दी जाने वाले यह दवा दिमागी तौर पर (दिमागी रसायनों को असर ग्रस्त कर )यौन संबंधों में ख़ास रूचि ना लेने वाली महिलाओं को यौन संबंधों के लिए उकसाएगी .यह एक प्रकार से अफ्रोदिज़ियाक का काम करेगी ,यौन मुखातिब बनाएगी ठंडी महिलाओं को बतर्ज़ वियाग्रा ।
सन्दर्भ सामिग्री :-एंटी -डिप्रेसेंट "वियाग्रा "फॉर वोमेन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर १७ ,२००९ ,पृष्ठ २३ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

कामोत्तेज़क डिज़र्ट .....

कूलाम्बियाई पाक शाश्त्र के माहिरों ने वियाग्रा को पेशन फ्रूट के साथ मिलाकर एक ऐसा डिज़र्ट (भोजन के आख़िर में स्वीट डिशके बतौर लिया जाने वाला मिष्ठान ,एंड कोर्स आफ्टर ऐ मील )तैयार किया है जो काम उत्तेजना को बढाता है ।
(दी एडिबल फ्रूट ऑफ़ ऐ पेशन फ्लावर स्पेशिअली ऐ ग्रंदिला इज पेशन फ्रूट .पेशन फ्लोवर इज ऐ क्लाइम्बिंग वाइन विद लार्ज फ्लोवार्स एंड एडिबिल फ्रूट नेटिव तू सेन्ट्रल साउथ अमेरिका )
पाक कला के ये छात्र बावर्ची के बतौर बुजुर्गों के लिए विशेष तौर पर तैयारएक पोषण योजना (न्यूट्रीशन प्रोजेक्ट )पर काम कर रहे थे बतौर .प्रधान बावर्ची जूँ सेबास्तियन गोमेज़ तभी उनके दिमाग में यह विचार कौंधा .,जिसका खुलासा इन्होनें एक एक अंतर्राष्ट्रीय पाकविद्या मेले में किया ।
बिना बताये इसका सेवन एक ग्रुप (समूह )के तमाम लोगों को करवाया गया .इन्हें यह नहीं बतलाया गया था यह भोजन के बाद लिया जाने वाला एंड कोर्स (डिज़र्ट /मिष्ठान्न /स्वीट डिश )वियाग्रा युक्त भी है ।
जबकि एक दूसरे समूह के तमाम लोगों को बाकायदा बता दिया गया था ,यह डिज़र्ट वियाग्रा के साथ पेशन फ्रूट मिलाकर तैयार किया गया है .दोनों को अतरिक्त काम उत्तेजना का एहसास हुआ .बोथ एक्सपीरियेंस्ड हाई -टिंड लिबिडो .गोमेज़ खाने के चीज़ों का चयन कर तैयार कर खाने की कला का अध्धय्यन नेशनल कोलिज में कर रहें हैं .इस कला को कहा जाता है -क्युलिनरी आर्ट्स ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-विअग्रा लेस्द पेशन फ्रूट फॉर डिज़र्ट (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर १६ ,२००९ ,पृष्ठ १५ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

सोमवार, 16 नवंबर 2009

जलवायु बदलाव बदल सकता है खानपान ......

विज्ञानियों ने अनुमान लगाया है ,२०२० तक इटली के दुरुम (गेहूं की एक किस्म जिससे पास्ता तैयार किया जाता है )की उपज प्रति एकड़ उत्पाद के हिसाब से घटनी शुरू हो जायेगी और शती के अंत तक इसका पूरी तरह सफाया हो जाएगा .यानी इटली का raashtriy नाश्ता "पास्ता "खाने की mez से गायब हो जाएगा ।
बढ़ता तापमान और ghattaa वर्षा पात इसकी वजह banegaa .इस kshetr me शुरू हो चुके जलवायु बदलाव ऐसी ही ittalaa दे रहें हैं ।
yurop की जीवन shaili khaan paan को असर grast banaayegaa जलवायु parivartan ।
yuoropiy yunian dvaaraa संपन्न एक ५ saalaa adhdhayyan (five year ensembles प्रोजेक्ट )जिसमे २० deshon को shareek किया gayaa है .,से ऐसे ही nateeze niklen हैं ।
britaani मौसम vibhaag के विज्ञानियों के netritv me ukt adhdhayyan संपन्न huaa है जिसके nateeze इस saptaah होने वाली baithak के samksh रखे jaayengen ।
supar computers की मिली jhuli ताकत का इस baithak me zaayzaa liyaa जाएगा vibhinn kshetron me होने वाले .,जलवायु बदलाव का satik अनुमान lagaanaa आज सम्भव huaa है to इसके peechhe कंप्यूटर का भी बड़ा हाथ rahaa है .अब बढ़ते ताप मान और बरसात का badaltaa mizaaz बहुत कुछ कह bataa detaa है .food production इससे सीधे सीधे असर grast hotaa है ।
एक pramukh अनाज utpaadak होने की वजह से ही इटली को इस adhdhayyan के लिए जो dhur दक्षिण me padtaa है shareek किया gayaa है ।बढ़ते तापमान का इटली पर विशेष असर padegaa ।
poland me paidaa होने वाले aalu और गेहूं का भी ukt adhdhayyan me zaayzaa liyaa जाएगा .baithak me इसकी sameekshaa की जायेगी ।
pahle batlaayaa gayaa thaa .carbondioxide का बढ़ता str अनाज utpaadan को badhaayegaa .पौधे jaisaa हम jaanten हैं carbondioxide का stemaal protins और carbohydrates बनाने me karten हैं .इनके बने रहने और vriddhi के लिए भी carbon dioxide ज़रूरी है ।
लेकिन जलवायु parivartan इस badhvaar पर भारी padegaa ।
France जलवायु parivartan के चलते अपनी कई behtreen vaains (wines )और "champagne "नही बना sakegaa ।
spain fruits और vegetables के pramukh utpaadak के रूप me badhat नहीं बनाए रख sakegaa ।
बढ़ते तापमान spain के एक बड़े hisse को registaan me बदल dengen .
सन्दर्भ samigri :-मामा mia ,Warning may rob Italy ऑफ़ Pasta (times ऑफ़ इंडिया ,november १६ ,२००९ ,prishth १५ )
प्रस्तुति :-virendra शर्मा (veerubhaai )

हलक बता देता है सेहत का हाल ....

मेरिलेंडयूनिवर्सिटी डेंटल स्कूल के प्रोफेसर ली मो के मुताबिक हमारा हलक हमारी सेहत का पूरा हाल बयान कर देता है ।
गालों का अस्तर लँग कैंसर पूर्व की स्तिथि की सूचना दे सकता है क्योंकि गालों के अंदरूनी ऊतक की जांच फेफडों की रोगात्मक स्तिथि का भी आइना होती है .खासकर तम्बाखू जनित रोगों की ख़बर गालों की अंदरूनी सतह के ऊतक जांच करने पर दे सकतें हैं .इस तरह से लंग कैंसर को समय रहते बे काबू होने से रोका जा सकेगा ।
ली मो के मुताबिक हलक के अन्तः स्तर (ओरल एपिठेलिंयम् )के अणुओं में उसी तरह के तम्बाखू जनित बदलाव देखने को मिलेंगे जैसे की लंग में paidaa हो jaaten हैं ।
इस prakar हमारा मुख स्वास्थ्य हमारी आम सेहत का आइना समझा जा सकता है .

रविवार, 15 नवंबर 2009

क्या है आइवरी ?

मुहावरा प्रसिद्ध है "हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और अर्थात नेता ".सवाल उठता है यह जो क्रीमी वाईट कलर का हाथी दांत है ,सख्त पदार्थ है ,देन्तिन(देंतीं- न )है जो गजराज के अलावा समुद्री घोडे (वालरस ),दरियाई घोडे यानी स्तनपाई जीव hippo -potamus , दरियाई घोडे के अलावा sperm whale और killer whale के daanton को majbooti प्रदान kartaa है .,इसकी sanrachnaa ,bunaavat क्या है ? chemistry क्या है ?
आपको batlaaden गजराज को tusker भी कहा jaataa है -tusk की वजह से ही ।
aaivari tusk और teeth दोनों me ही एक inner pulpcavity होती है ।
जो dentine को घेरे रहती है ।
(दी sensitive tissue at दी सेंटर ऑफ़ ऐ tooth consisting ऑफ़ nerves and blood vessels ,that iz दी inside ऑफ़ ऐ tooth इस called pulp .दी हार्ड part ऑफ़ ऐ tooth that lies underneath दी enamel and surrounds दी pulp and root canals iz called दी dentine ।)
यह एक connective tissues का milaajhulaa रूप है .jinme khanij(minerals ) और collagen maujood है .kaarbanik तत्व collagen aaivari की badhvaar और toot foot की marammat (durusti ,repair )kartaa है .इसमे रक्त nalikaayen (blood vessels ) नहीं हैं .collagen porous होने की वजह से namee (moisture ) को zazb भी कर लेता है ,namee chhodtaa भी है ।
collagen एक aisaa reshedaar protin है जो हमारी chamdi (त्वचा ,skin )asthi (bone )yaa हड्डी tathaa anny aabandhi ootakon (conective tissues )me maujood rahtaa है ।).
लेकिन हाथी दांत को हाथी दांत banaataa है ,majbooti (strength and rigidity )प्रदान kartaa है khanij युक्त ootak (mineralised tissues .).

इकोतेरियन कौन ?

आज आपके हर काम की समीक्षा और नाम करण का आधार पर्यावरण बन रहा है .अगर आप साइकिल चलातें हैं तो आपका वाहन इको -फ्रेंडली है .इसी प्रकार से क्या आप खाद्य संरक्षी से परहेज़ रखते हुए एक ऐसी खुराख ले रहें हैं जो पर्यावरण की कमसे कम नुकसानी का सबब बन रही है .क्या आप ओरगेनिक फ़ूड ले रहें हैं ,जिसे तैयार करने में किसी प्रकार के रासायनिक खाद ,कीट नाशी आदी की ज़रूरत नहीं पड़ी है ?जिसे डिब्बा बंद करने के लिए पर्यावरण नाशी पोलिथीन तिन फोइल आदि अन्य सामिग्री की भी ज़रूरत नहीं आई है .स्थानीय साधनों से जुटाया गया है आप का भोजन इको फ्रेंडली माहौल में ?इसका कार्बन फ़ुट प्रिंट ना मालूम सा ही रहा है तब आप शाका हारी हैं या मासा - हारी इससे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता .बशर्ते शामिश भोजी रहते आप सिर्फ़ पोल्ट्री और पोर्क पर गुज़ारा कर सकतें हैं .तब आप इकोतेरियन कहलायेंगे .इको तेरियन इको फ्रेंडली भोजन करता है .

कुदरत का नायाब नज़ारा "विंटर लाइन "क्या है ?

सूरज जब शिवालिक की पहाडियों के पीछे रात्री विश्राम के लिए चला जाता है तब दूँ घाटी से कुदरत का एक बेहतरीन नज़ारा (मौसमी अचम्भा )मसूरी की शाम को सैलानियों के लिए अक्टूबर मध्य से दिसम्बर मध्य तक बेहद खूबसूरत बना देता है ।
शाम की यही रंगत स्वित्ज़र्लेंद से भी देखी जा सकती है .यहाँ भी पश्चिमी क्षितिज रंगों की नुमाइश से सराबोर हो उठता है -पीला ,गहरा लाल ,नारंगी ,चमकीला लाल गुलाबी जामुनी रंग एक साथ मुखरित होतें हैं।
उत्तरांचल की हिल क्वीन मसूरी का माल रोडपर गश्त करता सैलानी शाम होते ही कुदरत के इस अप्रतिम अनचीन्हें नजारे को देखने के लिए सड़कों के किनारे पडी बेंचों पर आ बैठता है ।
हवा की दो विभिन्न तापमान वाली परतों को एक काल्पनिक किरमिजी गहरे लाल रंग की रेखा यहाँ अलगाए रहती है ।अस्ताचल को जाता -
सूरज एक जाली (नकली )क्षितिज के पीछे छिप जाता है ,तब पैदा होती है एक भूरी चमकीली लाल गुलाबी जामुनी रंगों की पट्टी ।
साफ़ तौर पर एक श्याम पट्टी (ब्लेक लाइन ) तब वायुमंडल की भूरी गंदली परत को अस्ताचल को जाते सूरज की गोल्डन ब्राउन और गहरे लाल (क्रिमसन रेड )परत से अलग करती दिखलाई देने लगती है .यही है -विंटर लाइन ।
ऐसा लगता है प्रकृति के किसी दिव्य चितेरे ने कूची - ब्रश संभाल लिया है ।
कुछ विज्ञानी इसे प्रकाश के अपवर्तन (रिफ्रेक्सन )की घटना बतलातें हैं ,जब प्रकाश एक ख़ास कोण पर दो अलग अलग वर्त्नांक वाली परतों में प्रवेश करने पड़ मूड जाता है ,विचलित हो जाता है रिजू मार्ग से तब पर्बतीय क्षेत्रों से पश्चिमी क्षितिज की साफ़ घाटी की तरफ़ निहारने पर कुदरत का यह मौसमी नज़ारा दिखलाई देता है ।
अलबत्ता शाम के इस आश्चर्य लोक की सृष्टि स्नो -फाल के दौरान क्यों नहीं होती और केवल सर्दी के दो महीनों में ही क्यों होती है यह अभी अनुमेय ही है ।
संभवतय सर्दी के मौसम में पैदा होने वाला तापमान कंट्रास्ट अस्ताचल को जाते सूरज की अप्वार्त्नीय रश्मियों (रिफ्रेक्तिंग रेज़ )के साथ किर्या -प्रतिक्रया (इन्तारेक्त )करता है ।
(दी क्लोजेस्ट मितीयोरोलोजिकल एक्सप्लेनेशन फॉर दिस इवनिंग वंडर वित्नेस्द फ्रॉम मसूरी एंड स्वित्ज़र्लेंद इस देत दी कंट्रास्ट इन दी टेम्प्रेचर ड्यूरिंग विंटर इन इन्तेरेक्सं- न विद दी रिफ्रेक्तिंग रेज़ ऑफ़ दी सेटिंग सन में बी दी रीज़न फॉर इट्स अक्रेंस ।)

शनिवार, 14 नवंबर 2009

प्रयोगशाला में तैयार किया गया शिश्न गर्भाधान में कामयाब

वेक फॉरेस्ट यूनिवर्सिटी बेप्टिस्ट मेडिकल सेंटर के इंस्टिट्यूट ऑफ़ रिजेंरेतिव मेडीसिन के विज्ञानी अन्थोनी अटाला के नेत्रित्व में शोधकर्ताओंने क्रत्रिम शिश्न तैयार करने में कामयाबी हासिल की है ,इतना ही नहीं इसका प्रत्यारोप प्राप्त हो जाने के बाद खरगोश गर्भाधान करने में कामयाब रहें हैं .अटाला जो पेशे से एक पीडियाट्रिक यूरोलोजिस्ट हैं अक्सर आपको मूत्राशय के जन्मजात रोगों के अलावा ऐसे अनेक मामले देखने पडतें हैं जहाँ बच्चा देफिशियेंत जेनितेलिया ( आधे अधूरे बाहरी प्रजनन अंग )लिए पैदा होता है .अटाला इस शोध को उन लोगों के लिए उम्मीद की नै किरण मानतें हैं जो या तो किसी दुर्घटना में अपने प्रजनन अंग चोट ग्रस्त कर लेतें हैं या फ़िर जन्म जात ही बाहरी प्रजनन अंग आधे अधूरे लिए ही इस दुनिया में आ जातें हैं ,या फ़िर पीनाइल कैंसर (शिश्न कैंसर ),ट्रोमेटिक पीनाइल इंजरी ,ओरगेनिक इरेक्टाइल डिसफंक्शन (लिंगोथ्थान अभाव )का शिकार होतें हैं ।
कुल प्रक्रिया मात्र ६ हफ्ते लेती है जिसके तहत शिश्न प्रत्यारोप बालक के शरीर केअन्य अंगों की तरह ही शरीर के साथ ही बढ़ने लगता है .शरीर का हिस्सा बनजाता है .अटाला आश्वस्त हैं ,देर सवेर इसी विधि से शरीर के अन्य पेचीला अंग -प्रत्यारोप भी तैयार करके रोर्पे जा सकेंगें ।
पूर्व में अटाला की यही टीम क्लितोरल तिस्यु (क्लितोरल इस दी मोस्ट सेंसिटिव पार्ट ऑफ़ फिमेल जेनितेलिया ,अकिन तू ऐ मेल पेनिस )भी तैयार कर चुकी है ,कृत्रिम मूत्राशय भी तैयार कर चुकी है मरीजों की अपनी ही कोशिकाओं से ।
लेकिन खरगोशों पर संपन्न प्रयोग कामयाबी की दिशा में एक बड़ा कदम हैं ।
अटाला माहिर हैं रिजेंरेतिव मेडिसन के जिसके तहत शरीर से ही कोशिकाएं लेकर टूट फ़ुट ,शरीर के क्षतिग्रस्त अंगों को ठीक कर लिया जाता है ।
संदर्भित प्रयोग के तहत अटाला की टीम ने पहले तो एक खरगोश से शिश्न लेकर एक स्केफोल्ड (ढांचा )तैयार किया इसमे से तमाम जीवित कोशिकाओं को निकाल दिया गया ,सिर्फ़ उपास्थियाँ (कार्तिलेजिज़ )छोड़ दी गईं ।
अब एक और खरगोश के शिश्न (पेनिस )से एक छोटा सा ऊतक का टुकडा लिया गया और कोशिकाओं को एक लेब डिश में संवर्द्धित किया गया (ग्रो किया गया )।
१८ साल लगें हैं इस काम को अंजाम तक ले जाने में .इस दरमियान एक एकदम सटीक ग्रोथ्फेक्टर ,कोशिकाओं के संवर्धन बढ़ वार के लिए सही सूप (माध्यम )की खोज जारी रही है ।
सुनिचित किया गया दो सेल टाइप्स की उपलब्धि को (स्मूथ सेल्स एंड इंडो ठेलिअल सेल्स यानी अन्तः स्तरीय कोशिकाएं ).रक्त कोशिकाओं का अस्तर ऐसी ही कोशिकाएं तैयार करतीं हैं .स्मूथ मसल सेल्स ओरगन (पेनिस )को स्पोंजी बनाने में कारगर साबित हुए तथा अन्तः स्तरीय सेल्स रक्त नालियां तैयार करवाने में मदद गार रहे .आखिर शिश्न कोलिंगोथ्थान के लिए पूरा रक्त चाहिए .दी सेल्स वर सीदिद ओं न तू दी स्केफोल्ड ,बस ६ सप्ताह बाद पेनिस तैयार हो गए और रोप दिए गए उन खरगोशों को जिनके शिश्न काट कर अलग कर दिए गए थे .जैसे ही इन्हें पिंजरे में मुक्त छोडा गया यह ना सिर्फ़ सम्भोग रत हुए कामयाब रहे गर्भाधान करवाने में अपने मेट को .चार खर्गोश्नियों ने बाकायदा गर्भ धारण कर लिया .जिन्हें सिर्फ़ स्केफोल्ड रोपा गया था वह निष्क्रिय रहे .स्केफोल्ड का नोटिस भी नहीं लिया इन्होनें .एस्क्स्युअल एक्टिविटी का ऐसे में सवाल ही कहाँ था .

वजन भी कम हो सकता है स्तन पान करवाने से ...

६०० केलोरीज़ ले उड़ता माँ से नवजात स्तन पान के ज़रिये ,इसलिये वजन कम करना है तो बच्चे को स्तनपान करवाइए तब तक जब तक दूध बनता है ।
दादी नानियाँ कहतीं थीं -शिशु को सलीके से आंचल में ढक ढांप छिपाकर स्तन पान करवाओ ताकि किसी की नजर ना लगे .एक स्वस्थ माँ को एक घडा भर दूध उतरता है .कालिदास ने नवप्रसूता को पीनास्तनी कहा है ।
दीर्घावधि अध्धय्यनों से सिद्ध हुआ है -स्तनपान वजन कम करने का बेहतरीन साधन है महज मिथ नहीं है ।
स्तन पान के दौरान माँ की मेटाबोलिक रेट्स (रेत ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ )बढ़ जाती है ।
हर हफ्ता एक पोंड तक वजन कम हो जाता है स्तनपान करवाने वाली माँ का ।
नार्थ केरोलिना विश्व -विद्य्यालय,ग्रीन्सबोरो में पोषण विज्ञान की प्रोफेसर चेरय्ल लव लेडी उक्त तथ्य की पुष्टि करतीं हैं ।
मजेदार बात यह है ये औरतें ना तो किसी प्रकार की डा -इटिंग ही करतीं हैं उल्टे रोजमर्रा की खुराख से ५०० केलोरीज़ फालतू ही लेतीं हैं ताकि पर्याप्त मात्रा में दूध बनता रहे ।
अब सवाल पैदा होता है -क्या स्तनपान वेट लोस को पंख लगा देता है ,तेज़ी से घटता है वजन स्तनपान करवाने से ?
कोई सीधा सपाट ज़वाब नहीं है इस सवाल का .कई बातें हैं जो तय करतीं हैं वजन की घटबढ़ को ।
गतवर्ष ३६००० डेनमार्क की महिलाओं पर एक अध्धय्यन इसी बात की पड़ताल के लिए किया गया .जिस महिला ने अधिक अवधि तक (०-२ वर्ष के दरमियान )उत्तर्प्रसव(पोस्ट पर -तं म ) और कम अन्तराल से हर रोज़ स्तन पान करवाया ६ महीने के बाद उनके वजन में ज्यादा कमी दर्ज की गई .इस के अलावा इस बात को भी मद्दे नजर रखा गया ,क्या गर्भावस्था से पूर्व महिला का वजन आदर्श कद काठी के अनुरूप निर्धारित भार से अधिक था ,गर्भ धारण की तैयारी के दरमियान उसका वजन कितना था ?ये तमाम घटक मिलकर ही अन्तिम निष्कर्ष तक ले जातें हैं ,किसको कितना फायदा हुआ ,किसका कितना वजन कम हुआ ।
कोर्नेल में प्रोफेसर कथ्लीन रासमुस्सेन भी उक्त तथ्य की पुष्टि करतीं हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-ब्रेस्त्फीदिंग हेल्प्स बर्न केलोरीज़ (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर १३ ,२००९ .पृष्ठ १७ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

गुरुवार, 12 नवंबर 2009

एक पखवाडे में दो बार कृत्रिम हिम -झंझावात

चीन की राजधानी को एक पखवाडे से कम समय में ही दो बार कृत्रिम हिम -तूफ़ान (ब्लिज्ज़रद )का सामना करना पडा है और यह सब उत्तरी चीन के एक बड़े हिस्से को संभावित सूखे से मुल्तवी रखने की नीयत से किया गया बतलाया गया है ।
बेजिंग वेदर मोडिफिकेशन ऑफिस का किया धरा है यह सब (स्रोत चाइना डेली ).इसके साथ ही वह शास्वत वाद विवाद फ़िर छिड़ गया है -प्रकृति के विधान में दखल देना कितना वाजिब है ?
बेशक नवम्बर १ ,२००९ को जिस हिम झंझावत से बीजिंग वासियों को दो चार होना पडा वैसा २२ बरस के बाद ही दर्ज किया गया है .लेकिन १० नवम्बर मंगल वार के दिन एक बार फ़िर बीजिंग की सड़कों पर गाडियां स्ल्श (हिम कीचड़ )में घिसटती देखी गईं हैं .जन जीवन अन्यथा भी असर ग्रस्त हुआ है .रेल एवं वायु -परिवहन असर ग्रस्त हुआ है ,लोगों की कनफर्म्ड उडाने रद्द हुईं हैं ।
थें मन चोक पर निहथ्थे लोगों को टेंकों से रोंदने वाले तंत्र के आगे ज़बान कौन खोले ,अपने यहाँ तो अब यार लोग रेल का इंजन भी ले भाग्तें हैं ।
नेशनल मेतेओरोलोजिकल सेंटर के मुताबिक आइन्दा तीन दिनों में और भी स्नो-स्टोर्म आयेंगे (आवाहन किया गया है क्लाउड सीडिंग करके ब्लिज्जार्द का )।
तिस पर तुर्रा यह है -आधिकारिक तौर पर इस स्नो -स्टोर्म को कुदरती बतलाया जा रहा है जबकि कुछ ही अरसा पहले सरकारी तंत्र ने फरमाया था -उत्तरी चीन को सूखे की मार से बचाने के लिए क्लाउड सीडिंग ज़रूरी हो गया था ।
दीर्घावधि दुष्प्रभाव कुदरत के साथ की गई इस छेड़ छाड़ का क्या पडेगा इसका कोई निश्चय नहीं ।
("नो वन कैन तेल हाउ मच वेदर मेनिप्युलेषण विल चेंज दी स्काई "क्सिओं गैंग ,ऐ प्रोफेसरइन दी इंस्टिट्यूट ऑफ़ एत्मोस्फिरिक फिजिक्स अत दी चाइनीज़ अकादेमी ऑफ़ साइंसिज़ टोल्ड चाइना डेली ।)
बेशक हमें बरसात और हिमपात के लिए कृत्रिम उपादानों का सहारा एक सीमा के आगे नहीं लेना चाहिए ,आसमानी ताकतें और अनिश्चितताएं कुछ भी रंग ला सकतीं हैं ।
अरन्न्य रोदन सुनता कौन है ,फ़िर भी रो लेने में क्या हर्ज़ है ,मन ही हल्का हो जाएगा ।
सन्दर्भ सामिग्री :-साइंटिस्ट्स सीड क्लाउड्स ,बीजिन्गार्स रीप ऐ ब्लिज्ज़र्द (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर १२ ,२००९ ,पृष्ठ २४ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

तीन साल में लिजीये सिंथेटिक शराब का मज़ा ...

ना लीवर सिरोसिस का ख़तरा ना हेंग ओवर ना सोसल स्टिग्मा -बस तीन साल इंतज़ार कीजिए -सिंथेटिक एल्कोहाल का .,कृत्रिम शराब का -यह कहना है प्रोफेसर डेविड नट का.(यु के गमेंट ड्रग जार का )।
मजेदार बात यह है इस नशे को जल्दी से उतारा भी जा सकता है ,एंटी डॉट है इसका ।
जबकि एक बार सेवन कर लेने के बाद एल्कोहल हमारे शरीर में कुछ घंटा अपनी मौजूदगी दर्ज करवाता रहता है ।
यानी सुरूर भी और सेहत को कोई नुकसानी भी नहीं ।
सिंथेटिक एल्कोहल के एक प्रोटो -टाइप पर डेविड नट काम जारी रखें हैं ,स्वयंसेवियों पर परिक्षण भी चल रहें हैं ।
इसके एक आंशिक विकल्प की आज़माइश भी करके देख ली गईं हैं ।
ये व्ही डेविड नट हैं जिन्होनें कहा था -एक्सटेसी शराब की बनिस्बत निरापद है .इस वक्तव्य के लियें आपको "इन्दिपेन्देन्त एडवाइजरी कोंसिल आन दी मिसयूज़ आफ "
मुखिया की पोजीशन से हाथ धोना पडा था ।
बकौल आपके फिलवक्त एल्कोहल विषाक्तता से पार पाना मुश्किल है ,आपको कुछ घंटा इंतज़ार करना ही पडेगा ,जबतक ,शराब आपके सिस्टम से बेदखल कुदरती तौर पर ही ना हो जाए ,चिकित्सा इस स्तिथि में कुछ भी नहीं की जा सकती ।
लेकिन सिंथेटिक बूज की एंटी डॉट अविलम्ब उपलब्ध होगी .इस बात का पता लगा लिया गया है ,एल्कोहल किस तरह से हमारे दिमाग को असर ग्रस्त बनाता है ,इन दिमागी हिस्सों को लक्षित करके समाधान ढूंढ लिया जाएगा ।
एक आज़माइश के तहत एक स्वयं सेवी को वेलियम से मिलता जुलता एक पदार्थ दिया गया ,आप जानतें हैं "वेलियम एक सिदेतिव (उपशामक ,चित्त का शमन करने वाला पदार्थ है )जिसका .उत्तर प्रभाव बिल्कुल शराब के सेवन जैसा ही पाया गया .मजेदार बात यह है जल्दी ही स्वयं सेवी को इस स्तिथि (सुरूर ,शराब के नशे से )बाहर भी निकाल लिया गया ,एंटी -डॉट देकर ।
सन्दर्भ सामिग्री :-सिंथेटिक बूज फॉर ऐ हाई सेंस हेल्थ रिस्क्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ११, २००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

इंसुलिन सुइयां नहीं -बबिल्गम लीजिये ...

इंसुलिन आधारित डायबिटीज़ (जीवनशैली मधुमेह यानी सेकेंडरी डायबिटीज़ )के मरीज देर सवेर इंसुलिन सुइयों की जगह बबिल्गम का स्तेमाल कर सकेंगे ।
शोध करता एक ऐसा गम तैयार कर रहें हैं जिसके ज़रिये इंसुलिन ओरली यानी मुख से भी बबिल्गम के बतौर ली जा सकेगी जो सीधे रक्त संचार प्रणाली में चली जायेगी ।
अब तक दिक्कत यही रही है ,इंसुलिन हो या कई अन्य दवाएं गोलियों के रूप में इसीलियें नहीं खाई जा सकीं हैं ,यह पाचन प्रणाली में पहुँच कर अपनी कारगरता खो बैठतीं हैं .कारण होता है -आमाशय में तेजाब का बनना (एसिड बाठ)तथा अंतडियों में तरह तरह के एंजाइम्स (किन्वकों )का बनना .दोनों मिलकर दवा के प्रभाव को बेअसर बना देतें हैं ।
अब केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय के प्रोफेसर तेजल देसाई एक ऐसी प्राविधि तैयार कर रहें हैं जिसके तहत इंसुलिन को माइक्रो स्कोपिक केप्स्युल्स के ज़रिये सीधे सीधे रक्त संचार प्रणाली में भेजा जा सकेगा .ये अति सूक्ष्म केप्स्युल लार में तेजी से घुल जायेंगे और सीधे सीधे यहीं से रक्त संचार में पहुँच जायेंगे ।
ये केप्स्युल्स सपा -इन्स के खोल में रखे जातें हैं जो अंतडियों की दीवार से चिपक जातें हैं इनकी आज़माइश की जा रही है ताकि यह जाना जा सके ,कितना सुरक्षित है इनका स्तेमाल ।
अमरीकन इंस्टिट्यूट ऑफ़ फिजिक्स में इस नै जानकारी को रखा जाएगा ।
इंसुलिन के अलावा कई हारमोंस तथा एंटी -इन्फ्लेमेत्री ड्रग्स भी बबिल्गम के द्वारा रक्त संचार प्रणाली में भेजे जा सकेंगे .

बुधवार, 11 नवंबर 2009

विश्व -विनाश की भविष्य -वाणी या छदम विज्ञान ?

होलीवुड फ़िल्म "२०१२ "ने जिस मिथ की सृष्ठी कर डाली है ,सृष्ठी के विनाश की प्रागुक्ति करके अब अमरीकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा को लोगों को भयमुक्त करने के लिए बा - कायदा इस छदम विज्ञान के प्रति एक अभियान ही चलाना पड़ रहा है ।
मिथ यह गढा गया है -२१ दिसम्बर २०१२ को ग्रहों के एक कतार में आ जाने से सृष्ठी का विनाश अवश्य्यम भावी है .काल भी नष्ट हो जाएगा ,जबकि हकीकत यह है -जिस मायाँ केलेंडर के आधार पर यह मिथ आगे बढाया गया है उसका एक आवधिक चक्र भी विंटर -सोल्स्तिस यानी २१ दिसम्बर को समाप्त नहीं हो रहा है ,ठीक इसके फ़ौरन बाद दूसरा आवधिक चक्र (एनादर पीरियड )आरम्भ हो रहा है .अलावा इसके प्लेनेटरी एलांमेंट आइन्दा कई दशकों में तक भी नहीं होने वाला है ।
विनाश की यह लीला कुछ छद्म -विज्ञान कर्ताओं के मुताबिक मई २००३ में संपन्न होनी थी ,जब कुछ नहीं हुआ हवाया तो तारीख आगे खिसका दी ।
काका हाथरसी के दौर में भी ऐसी ही एक बे -सिर पैर की कहानी रची गई थी ,जिस पर काका ने अपने अंदाज़ में लिखा था -३ फरवरी सायं -काल को है एक सुंदर चांस /मकर राशि पर ,अष्ट ग्रह का होगा सुंदर डांस ।
शुक्र वार को सोनी मोवीज़ की यह फ़िल्म दुनिया भर के थियेटर्स में प्रर्दशित हो रही है .फ़िल्म का कथानक इस मिथक के गिर्द घूमता है ,जो मायाँ केलेंडर में की गई भविष्य कथन पर आधारित है ,एक अति रहस्यपूर्ण ग्रह पृथ्वी से आ टकराएगा इसके साथ ही काल चक्र ही नष्ट हो जाएगा .ना कोई रहा है ,ना कोई रहेगा ।
इसे प्लेनेट -एक्स /निबिरू कहा गया है ।
एक दम से काल्पनिक ग्रह है यह ,मानसी सृष्ठी ,दिमागी खपत है कुछ पढी लिखी साइंस दान ज़मात की ।
खगोल विज्ञान एक आब्ज़र्वेश्नल साइंस है ,प्रेक्षण आधारित विज्ञान है ,जहाँ ,प्रेक्षण के आधार पर ही निष्कर्ष निकाले जातें हैं ,यदि ऐसा कोई ग्रह सच -मुच होता तो पृथ्वी की कक्षा में तैरती तेज़ तर्रार दूरबीनों की तीसरी आँख से नहीं बचता ।
सुमेरियंस के दिमाग की उपज थी यह ग्रह ,इंटरनेट लिखाड़ भी ऐसा ही लिख रहें हैं .परा -मनो -विज्ञानियों का भी संग साथ लिया जा रहा है ।
इल्जाम नासा पर भी आया है ,सूचना छिपाए रखने का .यानी हिमाकत देखिये -इन कथित साइंस दानों की-चोरी और सीना जोरी ।
यदि ऐसा ग्रह वास्तव में होता तो अब तक नंगी आँख भी दिखलाई देता ।
बेशक एक प्लेनेतोइड (प्ल्युतो सरीखा )"एरीस "अंतरीक्ष में तैर रहा है ,लेकिन यह सौर मंडल की बाहरी परिधि पर ही बना रहेगा ।
एपाकेलिप्स २०१२ " ,"हाऊ तू सर्वैव २०१२ "जैसी पुस्तकें चांदी कूट रहीं हैं ,विज्ञान के दौर में ,छदम विज्ञान ज्यादा बिक रहा है .आख़िर झूठ में ताकत जो होती है ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ),साइंस कम्युनिकेटर .

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

कठोर व्यायाम प्रभावित कर सकता है गर्भ धारण की क्षमता ?

"ऐ सुपर -वूमन वर्क आउट कैन रिदुयुस प्रग्नेंसी चान्सिस "शीर्षक है उस ख़बर का जो टाइम्स ऑफ़ इंडिया के १० नवम्बर २००९ अंक पृष्ठ १५ पर छपी है .बहुत समय पहले इसी प्रकार की एक और ख़बर पढ़ी थी -स्त्रेन्युँस एक्स्सर
-सैजिज़ के दौरान स्प्रिन्तार्स और मैराथन रुन्नेर्स अपनी मेंस्त्र्युअल साइकिल को एक स्विच की तरह आन आफ कर लेतीं हैं .दोनों ख़बरों का लब्बोलुआब आपस में कहीं ना कहीं यकसां हैं .१० नवम्बर की ख़बर उस अध्धय्यन से ताल्लुक रखती है जिसमे बतलाया गया है ,"जिम "में ज्यादा वक्त बिताने वाली महिलायें गर्भाधान के मौके कमतर कर लेतीं हैं ।
नॉर्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नालाजी के शोध छात्रों ने बतलाया है ,सुपर वूमन वर्क आउट गर्भाधान सम्बन्धी समस्याओं को तीन गुना ज्यादा बढ़ा देता है .अपेक्षा कृत युवा महिलाओं को इस परेशानी से ज्यादा दो चार होना पड़ता है ।
इनमे से जो सबसे ज्यादा समय" जिम" में बितातीं थी ज्यादा व्यायाम करतीं थी माँ बन ने की चाह के पहले साल में इनके प्रयासों को सिर्फ़ २५ फीसद कामयाबी मिली जबकि राष्ट्रीय औसत ७ फीसद रहा .एक कामयाब गर्भाधान के लिए जितनी ऊर्जा और दमख़म शरीर को चाहिए कठोर वर्क आउट उसे ले उड़ता है ।
अध्धय्यन के दरमियान ३००० महिलाओं से १९८४ -१९८६ के बीच प्रशिक्षण के चलते फिटनेस रिजीम से ताल्लुक रखने वाले सवाल मसलन फ्रीक्युएंसी ड्यूरेशन एंड इन्तेंसिती ऑफ़ दे एर फिटनेस रिजीम के बाबत पूछा गया .दस साल बाद उनसे गर्भधारण के बारे में पूछा गया ।
दो समूहों का पता चला .जिन्हें इन्फर्तिलिती (गर्भ धारण में दिक्कत )का जोखिमज्यादा उठाना पडा .इनमे से एक समूह की महिलाओं ने प्रशिक्षण में रोजाना भाग लिया था ,लेकिन इनमे से भी कुछ ने तब तक अभ्यास किया जब तक वह थक कर निढाल (चूर )ना हो गईं ।
जिन्होंने दोनों काम किए उन्हें बाँझपन का ख़तरा ज्यादा झेलना पडा .हालाकि यह प्रभाव (वास्तव में दुस्प्रभाव अस्थाई थे ),ज्यादा तर महिलायें इनमे से भी अंत में माँ बन ने का सुख उठा सकीं .लेकिन प्रशिक्षण के बाद के वर्षों में .,ही ऐसा हो सका ।
(दी वास्त मेजोरिटी ऑफ़ डेम हेड चिल्ड्रेन इन दी एंड ,"सैद गुद्मुन्स्दोत्तिर ।"
एंड डोज़ हु ट्रेंड दी हार्देस्त इंडी मिडिल ऑफ़ दी १९८०ईज़ वर अमंग डोज़ हु हेड दी मोस्ट चिल्ड्रन इन दीद १९९०ईज़ "
सन्दर्भ सामिग्री :-टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर १० ,२००९ ,पृष्ठ १५
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

खुराख से ज्यादा नहीं खाना है तो धीरे -धीरे चबा चबा कर खाइए ....

दादी माँ ठीक ही कहा करतीं थीं -भोजन तन्मय होकर खूब चबा चबा कर धीरे धीरे ही खाना चाहिए ।
अब इस विचार पर अपनी मोहर लगा दी है -अथेन्स यूनिवर्सिटी के अलेक्सान्दर कोक्किनोस ने जिन्होंने अपने एक अध्धय्यन में बतलाया है ,खाना खूब चबा चबा कर धीरे धीरे दत्तचित्त होकर खाने से हमारे खून में दो हारमोनों -पेप्टाइड वाई वाई (पी वाई वाई )और ग्लुकागोंन ला -इक पेप्टाइड -१ (जी एल पी -१ )का स्तर खाने के बाद के तीन घंटों तक अतिरिक्त रूप से बढ़ा रहता है .पाचन क्षेत्र से स्रावित होने वाले यह दोनों हारमोन ही हमारे दिमाग तक परितुष्टि (भोजन से पेट भर जाने संतुष्टि का )का संदेश पहुंचाते हैं ,नतीज़न हम पेट भर जाने के एहसास के संग उठ जातें हैं ,भोजन की नपीतुली खुराख के अनुरूप मात्रा खाकर .इसके विपरीत जब हम जल्दबाजी में ,चलते फिरते ,ड्राइव करते भोजन भ्कोस्तें हैं ,तब हमें यह ही पता नहीं चलता ,कितना खाना है ,हम बीजंईटिंग करने लगतें हैं अतिरिक्त मात्रा फालतू केलोरीज़ गड़प जातें हैं ,नतीजा होता है -मोटापा -ओबेसिटी -जो सब बीमारियों को निमंत्रण देने लगता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-तू ईट लैस ,यूओर बॉडी में वांट यु तू ईट स्लोली (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर १० ,२००९,पृष्ठ १५ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

सोमवार, 9 नवंबर 2009

रोगों की शिनाख्त के लिए सेल फोन ....

यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफोर्निया लोस -एन्जिलीज़ के इलेक्ट्रिकल इनजीनिअरींग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के बतौर कार्यरत एवं विश्व -विद्यालय नानोसिस्त्म्स इंस्टिट्यूट के एक सदस्य अय्दोगन ओज्कां ने एक ऐसा सॉफ्ट वेअर तैयार किया है जिसे सेल फोन में दाल देने पर वह एक माइक्रोस्कोप की तरह खून के स्लाइड्स (साम्पिल्स )की जांच मलेरिया ,तपेदिक (ट्यूबर -क्युलोसिस या कोक्स सिंड्रोम ),तथा एनीमिया (आयरन दिफिशिएंसी एंड आर प्रोटीन दिफिशेंसी बोथ )जैसे आम फ़हम रोगों का पता लगाने के लिए करसकता है .उन दूर दराज़ के क्षेत्रों में इसकी उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता जहाँ ना आस पास कोई डिस्पेंसरी है ना कोई अस्पताल ।
बस स्लाइड को फोन कैमरा सेंसर के सामने सरकाने की देर है ,बाकी काम अपने आप हो जाता है किसी तेक्नीशीयं- न,की भी ज़रूरत नहीं रहती है .सेंसर ख़ुद बा ख़ुद स्वस्थ और बीमार सेल्स ,अस्य्म्मेत्रिक शेप ऑफ़ दिसीज्द सेल्स या फ़िर एब्नोर्मल सेल्स में फर्क करलेता है .संक्रमण होने पर स्वेत रक्त कणिकाओं की अतिरिक्त रूप से बढ़ी हुई संख्या का भीपता लगा लेता है यह संसूचक (सेंसर )।
जिन सेल्स फोन में कैमरा नहीं भी होता उनके लिए एक अलग डिजाइन तैयार किया गया है बस उनमे एक सिम्पिल बक्सा जिसमे एक चिप रखा होता है फोन के साथ प्लग कर देतें हैं -बस एक स्लाइड जाचने वाला माइक्रो स्कोप तैयार .कीमत कुल दस डॉलर .रोग निदान की सूचना किसी भी वांछित चिकित्सा केन्द्र को वायरलेस की जा सकती है .

और वक्ष के कुसुम कुञ्ज सुरभित विश्राम भवन ये ....

वक्ष स्थल सदैव ही आदमी के आकर्षण और सम्मोहन का केन्द्र बिन्दु रहा है .संस्स्कृत साहित्य में बारहा -पीनास्तनी लफ्ज़ आया है .नारी जंघा की तुलना केले के चिकने मृसन तने से तथा वक्ष की घडे से की गई है .इधर विज्ञानी अपने तरीके से वक्ष की गोलाइयों और कर्विईअर्नेस को बनाए रखने के अभिनव तरीके इजाद करते रहें हैं .पहले सिलिकोन जेल और अब ब्रेस्ट -तोक्क्स (बोटोक्स की सुइयां ).आधा घंटा चाहिए वक्ष स्थल की ढलाई के लिए बस ।लेंग्थी बूब जोब्स से मुक्ति .अलबत्ता ५०० पांड्स चाहिए वक्ष -प्रदेश को दर्शनीय बनाए रखने के लिए ,कार्वीयर बनाए रखने के लिए .तो ज़नाब सौन्दर्य भी अब पैसे का खेल है .पैसा फेंक ,तमाशा देख ।(दी प्रोसीज़र ऑफर्ड बाई "कोस्मेटिक सर्जरी ग्रुप ट्रांसफोर्म क्लिनिक "स्टार्ट्स विद पेशेंट्स हेविंग एनेस्थेटिक क्रीम रब्ब्द इनटू दे -आर ब्रेस्ट्स.दे देन रिसीव १२ इंजेक्शंस ऑफ़ बोटोक्स इन दे -आर पेक्तोरेलिस माई -नर चेस्ट मासिल । )एक सौन्दर्य प्रशाधन शल्य संस्था "ट्रांसफोर्म क्लिनिक "ने यह तरीका इजाद किया है जिसके तहत एक लोकल एनस थे -टिक सुंयाँ लगाने से पहले वक्ष स्थल पर लगाया जाता है .इसके बाद एक पेशी पेक्तोरेलिस माई नर चेस्ट मसल में बोटोक्स की १२ सुइयां लगाई जाती है ।गोलाइयों और कार्विनेस को बनाए रखने के लिए हर ६ माह के बाद सुइयां बूस्टर डोज़ के बतौर लगाई जाती हैं ।कविवर दिनकर की उर्वशी सहज ही याद आ जाती है -और वक्ष के कुसुम कुञ्ज सुरभित विश्राम भवन यह /जहाँ मृत्यु के पथिक ठहर कर श्रान्ति दूर करतें हैं .और यह भी पंक्तियाँ उर्वशी से ही हैं -सत्य ही रहता नहीं यह ध्यान तुम ,कविता ,कुसुम या कामिनी हो .सन्दर्भ सामिग्री :-एन्हान्सिंग ब्रेस्ट्स नाओ जास्त ऐ ३० मिनिट जॉब (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ९ ,२००९ ,पृष्ठ १७ )प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

जाना प्रभाष जी का ....

पिछले दो दिनों के अखबारों -खासकर रास्ट्रीय सहारा ,हिदुस्तान ,दैनिक ट्रिब्यून ,दैनिक भास्कर ,नै दुनिया ,एन बी टी को बाचने गुनने के बाद यह मान ना लेने का कोई कारण नहीं है -प्रभाषजी की चेतना आकाश को छोड़ महा -आकाश में विलीन हो चुकी है .घडे में कैद आकाश मुक्त हो चुका है ।कबीर की पंक्तियाँ याद आती हैं -मन फूला फूला फिरे जगत में झूंठा नाता रे /जब तक जीवे माता रोवे बहन रोये दस मासा रे /और तेरह दिन तक तिरिया रोवे /फेर करे घर वासा रे ।फ़िर भी एक सम्मोहन पीछे पडा है -व्ही बोलता हुआ -सबकी ख़बर लेता /सबको ख़बर देता /खबरची /यहीं कहीं है ,आस पास ।हमारे जैसे गैर -नाम -वरों को नाम चीन बनाने ,पत्रकारिता समझाने का काम प्रभाष जी कर गए .वगरना रोहतक क्या पूरा हरयाणा एक सम्पूर्ण हिन्दी पत्र नहीं निकाल सका .ले देकर व्ही "दैनिक ट्रिब्यून "और जुम्मा जुम्मा आठ रोज़ से "हरी भूमि "।हमें प्रभाष जी ने १९८० के दसक में निखारा -लीड लेख "फिरंगी संस्कृति का रोग है यह -एच आई वी एड्स "ना केवल छाप कर ,ख़ुद उसमे भाषागत सम्पूर्णता भर ".उसके बाद पूरा पृष्ठ दिया _सागरों के वक्ष पर तैरते चेर्नोबिल को .वगरना कौन जानता था -वीरेंद्र शर्मा को (और आज भी कौन जानता है ,भले ही हरयाणा शिक्षा सेवा क्लास -वन भुगता कर आज हम राजधानी में हैं .लेकिन अंतर्मुखी स्वभाव बन गया तो बन गया ।ऐसे थे प्रभाष जोशी जिन्होंने -कसबे को राष्ट्रीय परिपेक्ष मुहैया करवाया .हम से ले देकर "विज्ञान पत्रकार "होने की शर्त पूरी करवाई ।अब कौन मानेगा -क्या वह लोग जिन्होंने "साप्ताहिक हिन्दुस्तान "द्वारा हमारे लिखे लेख "क्या धूम केतु ही डायाना -सौर के विनाश का कारण बने ?"शीला झुनझुनवाला काल के स्वीकृति के बाद इस टिपण्णी के साथ लौटाए -बन्धु अब यह बातें पुरानी हो गईं हैं ।लेकिन प्रभाष जी जिसे संवार गए वह आदिनांक रुका नहीं है .यही मेरी श्रृद्धांजलि है प्रभाष जी को .ऐसे थे हमारे प्रभाष जोशी -हमें पत्रकारिता कर्म और मर्म समझाने वाले ।वीरेंद्र शर्मा ,पूर्व -व्याख्याता भौतिकी ,राजकीय महा -विद्यालय ,रोहतक ,हरयाणा -१२४ -००१डी -२ फ्लेट्स ,फ्लेट नंबर १३ ,वेस्ट किदवाई नगर ,न्यू -दिल्ली -११० -०२३दूरध्वनी :०९३५०९८६६८५

रविवार, 8 नवंबर 2009

फ़ूड और आपका मूड .....

अक्सर कहा जाता है -जैसा अन्न वैसा मन ,जैसा पानी वैसी वाणी ।
अब विज्ञान भी इस विचार पर अपनी मोहर लगा रहा है ,हालाकि मनो -रोग विद बरसों से मूड एलीवेटर फ़ूड की बात करते रहें हैं ,मूड डिप्रेसिव फ़ूड की भी ,पोषक और जंक फ़ूड भी चर्चित रहा है .आइये देखतें हैं -हकीकत क्या है ?
आधुनिक शोध के झरोखे से देखा जाए .एक वक्त था जब लार्ज चिकिन बर्जर और चोक्लित केक को मूड एलीवेटर का दर्जा प्राप्त था ।
अब तमाम तरह के परिष्कृत तले भुने ,चिकनाई सने ,हाई फेट देरी -उत्पादों को डिप्रेसिव बतलाया जा रहा है ।
डेज़र्ट भी इसी केटेगरी में रखे जायेंगे ।
चिकनाई सना केलोरी डेंस भोजन (ऐ डाइट रिच इन फेटी एंड प्रोसेस्ड फ़ूड )बचपन से बच्चों को देते चले जाना उन्हें मोटापे (ओबेसिटी )की और ले जाता है .वरिष्ठ मनो रोग विद संजय पटनायक (विद्या सागर इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्युरोसैंसिज़ ,नै -दिल्ली )के अनुसार यही मोटापा बड़े होते होते अवसाद की तरफ़ ले जा सकता है ।
कम्फर्ट फ़ूड चीअरिंग हो सकता है क्योंकि इसमे एमिनो एसिड त्र्य्प्तोफें का डेरा है .यही त्रि -प्तोफें- न दिमाग में सिरोतेनिं न और न्युरोत्रन्स्मितर मिलेतो -नीं न का स्तर बढ़ा देता है .जो एक नींद उद्दीपक हारमोन है ।
लेकिन चोक्लित को चीअरिंग फ़ूड में शुमार ना किया जाए ।
यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन के शोध छात्र उक्त तमाम नतीजों पर अपनी मोहर लगातें हैं ।
अर्चना सिंह -मनौक्स (जानपदिक रोग एवं जन -स्वास्थ्य विभाग ,यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन )के नेत्रित्व में संपन्न अध्धय्यन में उक्त निष्कर्ष निकाले गए हैं .आप डिपार्टमेंट ऑफ़ एपी -देमिया -लाजी (जानपदिक रोग विज्ञान विभाग )एंड पब्लिक हेल्थ यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन से सम्बद्ध हैं ।
अध्धय्यन से यह भी ध्वनित होता है ,फल ,तरकारी और मछ्छी (फिश )डिप्रेशन के लक्षणों से बचाते ज़रूर है लेकिन पाँच बरस लग जातें हैं ऐसा होने में जबकि डिब्बा बंद गोश्त ,चोकलेट स्वीट डेसर्ट युक्त खुराख जिसमे अक्सर फ्राइड फूड्स रिफाइंड सीरिअल्स और हाई फेट देरी प्रोडक्ट्स भी जगह बनाए रहतें हैं अवसाद की तरफ ले जातें हैं ।
संदेश साफ़ है ,कोई पढ़ना चाहे तो पढ़ ले -फ़ूड से जुड़ी है मिजाज़ की नवज .

रेडिओकार्बन डेटिंग क्या है ?

रेडियो धर्मिता द्वारा कार्बनिक अवशेषों (वनस्पति ,जीवाश्म आदि )का काल निर्धारण एक ऐसी पद्धति है जिसके अर्न्तगत कार्बन -१४ (रेदिओएक्तिव आई -सो -टॉप ऑफ़ कार्बन )और कार्बन -१२(स्तेबिल ,नॉन रेडियो एक्टिव आइसो -टॉप ऑफ़ कार्बन ) की मात्रा का अनुपात किसी भी पुरातात्विक महत्व के कार्बनिक अवशेष में नाप कर उसकी अनुमानित आयु का पता लगाया जाता है ।
कोई भी ओर्गेनिस्म यथा पादप वनस्पति ,जैविक सामिग्री जब तक जिंदा रहती है उसमे कार्बन के इन दोनों सम-स्थानिकों का अनुपात नियत (कोंस्तेंत )बना रहता है .लेकिन ओर्गेनिस्म की मृत्यु के बाद यह अनुपात छीजने लगता है ,क्योंकि कार्बन -१४ जो एक रेडियो धर्मी पदार्थ है इसकी मात्रा एक ख़ास अवधि के बाद (५७३० बरस बाद )पहले की बनिस्पत आधी रह जाती है ।इसका अवशोषण ओर्गेनिस्म वायुमंडल से जब तक जीवित है तभी तक कर सकती है ,मरने के बाद नहीं .
ऐसे में कार्बनिक अवशेष की १०० ग्रेम मात्रा लेकर यदि उसमे मौजूदा अनुपात उस वक्त दोनों समस्थानिकों का माप लिया जाए .तब इस अनुपात को ५७३० की जरब देने ,यानी ५७३० से मल्टीप्लाई करने के बाद संदर्भित साम्पिल की अनुमानित आयु का आकलन किया जा सकता है ।
यह एक परिशुद्ध प्राविधि नहीं है .परिशुद्ध मापन के लिए अब हमारे पास फिशन ट्रेक डेटिंग है ।
जो हो बाबरी मस्जिद हो या ट्यूरिन में रखा ईसा का कफ़न या कोई अन्य विवादित पूरा अवशेष उसका काल निर्धारण करने के लिए कारबन डेटिंग है ,फिशन ट्रेक डेटिंग है ,हेलियम क्लोक है ।
कार्बन डेटिंग का श्रेय १९४९ में विल्लर्ड लिब्बी को दिया गया ,१९६० में इन्हें इसके विकास के लिए नोबेल पुरूस्कार से नवाजा गया ।
युरेनिंऍम से भारी तत्व न्युत्रों न प्रोटोन अनुपात एक क्रांतिक सीमा से ज्यादा हो जाने की वजह से अपने आप एक मिनी -एटमी विस्फोट से टूटने लगते हैं ,इनसे विकिरण का रिसाव होने लगता है .इसी घटना को रेडियो -धर्मिता यानी स्वताया स्फूर्त विकिरण रिसाव कहा जाता है .

क्या है "बिग क्रंच "?

"बिग बैंग "की ही सहज परिणती हो सकती है -बिग क्रंच .हम जानतें हैं और तथ्यों के आधार पर अच्छी तरह मानतें है -सृष्टि का जन्म अब से करीब १३ -१५ अरब वर्ष पूर्व एक आदिम अनु में महाविस्फोट से हुआ .यह प्राइमीवल एटमअपने शून्य घनत्व और शून्य आयतन में सृष्टि का तमाम गोचर अ-गोचर पदार्थ -ऊर्जा छिपाए हुआ था .तब ना समय था ना आकाश .यह आदिम अनू एक साथ सब जगह मौजूद था .इसे गणित में एक सिंगुलारिती एक अति वैशिष्ठ्य कहा जाता है जहाँ आकर तमाम ज्यात भौतिक वैज्ञानिक नियम दम तोड़ देतें हैं ।
(ऐ हाई -पोठेतिकल पॉइंट इन स्पेस ,ऐ हाई -पो -ठेतिकल रीजन इन स्पेस इन विच ग्रेविटेशनल फोर्सिज़ कॉज़ मैटर तू बी इंफिनिटली कंप्रेस्ड एंड स्पेस एंड टाइम तू बिकम इंफिनिटली दिस्तोर्तिद इज कॉल्ड ऐ मेथेमेटिकल सिंग्युलारिती ).
तब क्या ऐसा माना जाए एक दिन सृष्टि का विस्तार रुकेगा ,महा -विस्फोट के बाद से ही निरंतर जारी सृष्टि का विस्तार एक दिन गुरुत्वीय बलों के आगे समर्पण कर देगा ?
ऐसा हो सकता है -बशर्ते सृष्टि में व्याप्त पदार्थ की मात्रा एक क्रांतिक सीमा के पार चली जाए ,सृष्टि का औसत घनत्व एक क्रांतिक घनत्व के कमसे कम बराबर हो जाए ।
तब एक कोस्मिक इम्प्लोस्जन एक महा -कुचलाव के तहत सृष्टि बाहरी दुर्दमनीय दवाब से एक बार फ़िर अपने ही ऊपर ढेर होती दबती कुचलती चरमराती चली जायेगी .यह दवाब गुरुत्व मुहैया करवाएगा जो कास्मिक पैमाने पर दुर्दमनीय (सर्व -शक्तिशाली )हो जाता है .यही है -सृष्टि की अन्तिम परिणीती सहज सुफल -पहले बिग बैंग फ़िर बिग क्रंच .

शनिवार, 7 नवंबर 2009

ग़ज़ल

ग़ज़ल
सच है सारे साथ नहीं हैं ,अपनी भी तो कर पहचान ,
कुछ को तो ले अपने साथ ,रार सभी से मतना ठान ।
नादानी और बचपन छोड़ ,मत इतना बन तू अनजान ,
बेमतलब के हँसी ठहाके ,छोड़ तू बेअदबी के काम ।
बहुत लतीफे सुना चुका है ,होठों पर नकली मुस्कान ,
सभी जानते चुप हैं फ़िर भी ,कुछ को तो समझ अरे नादान ।
करनी अन-करनी पहचान ,कहनी अन कहनी ले जान ,
बहुत हो चुका गोल गपाडा ,अपनी हदबंदी पहचान ।
सहभाव :डॉक्टर नन्द लाल मेहता वागीश ,१२१८ ,सेक्टर -४ ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव -१२२ -००१ .

मानव शरीर के लिए जीवाणु एटलस ,जीवाणु ही जीवाणु गिन तो लें ...

जीवाणुओं का सूक्ष्म संसार कितना वैविध्य पूर्ण रहा है इसका जायजा अब कोलोराडो विश्व -विद्यालय (बौल्डर )के शोध छात्रों ने एक जीवाणु एटलस तैयार करके प्रस्तुत किया है ।
हमारे शरीर के अंगों में विविध प्रकार के जीवाणुओं का डेरा है ,एक अंग में मौजूद जीवाणु दूसरे अंग में पाये जाने वाले जीवाणुओं से जुदा हैं .शरीर के तमाम शरीर प्रकिर्यात्मक व्यापारों को यही जीवाणु निर्बाध चलाये हैं ।
एंटीबायोटिक्स का बढ़ता चलन इनमे से कई यूजफुल बेक्टीरिया का भी खात्मा करदेता है ,इसीलिए साथ में प्रोबायोटिक्स देने का चलन भी बढ़ा है .लेक्टिक एसिड बे -साईं -लॉस भी कई जीवाणु रोधी दवाओं में शामिल किया जाता है ।बी -काम्प्लेक्स भी इसी वजह से साथ में दिया जाता रहा है .
बहर -सूरत तकरीबन १०० ट्रिलियन (एक लाख अरब )जीवाणुओं का डेरा है -हमारी काया में ,शरीर के उद्भव और विकास में भी इन जीवाणुओं की महती भूमिका है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-नाओ एटलस ऑफ़ बेक्टीरिया इन ह्यूमेन बॉडी (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ७ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

अच्छी नही है रात की पाली के लिए कोफी

एक ताज़ा अध्धय्यन के मुताबिक नींद की आदत में सुधार के लिए रात की पाली में काम करने वालों को कोफी से परहेज़ रखना चाहिए ।
जुली करीअर के नेत्रित्व में मोंत्रीयल विश्व -विद्यालय के मनोविज्ञानियों ने बतलाया है ,कोफी का मुख्य उप -उत्पाद (बाई -प्रोडक्ट )केफीन नींद में खलल पैदा करता है ,उम्र के साथ इसमे और भी इजाफा होता जाता है ।
खासकर एक तरफ़ बढ़ती उम्र का असर और दूसरी तरफ़ केफीन का दुष्प्रभाव प्रौढा -वस्था में नींद को ज्यादा असर ग्रस्त बनाता है ।
(दी कंबाइंडइन्फ्लुएंस ऑफ़ एज एंड केफीन मेक्स दी स्लीप ऑफ़ मिडिल एजिद सब्जेक्ट्स पट्टी -क्युलारली वल्नारेबिल तू दी सर्कादियन वेकिंग सिग्नल ।)
सन्दर्भ सामिग्री :-"एवोइड कोफी ड्यूरिंग नाईट शिफ्ट्स "(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ६ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

अब बिल्ली को भी स्वां फ्लू ...

विश्व -मारी एच -१ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ अब पहली मर्तबा एक अमरीकी पालतू बिल्ली में भी जांच के बाद मिला है .पशु चिकित्सकों के मुताबिक इसका मतलब यह हुआ अब यह पेंदेमिक स्ट्रेन आदमी से फेलाइंस पापुलेसन तक पहुँच रही है ।
(दी डोमेस्टिक शोर्थैर ,ऐ १३ ईयर ओल्ड कास्त्रेतिद मेल अपेरेंतली कॉटऐ (एच १ एन १ ) ऑफ़ इट्स ओनर )
यह संक्रमण मालिक से बिल्ली तक पहुंचा -यही कहना है -ब्रेट स्पोंसेलर (सहायक प्रोफेसर पशु -शूक्ष्म जैव -विज्ञान ,आयोवा स्टेट कालिज ऑफ़ वेतिरिनारी मेडिसन )का जिन्होनें इस वन्ध्या कृत किए जा चुके बिलाऊ (कास्त्रेतिद मेल केट )को चिकित्सा मुहैया करवाई है ।
अलबत्ता संक्रमित बिल्ली से आदमियों तक या इतर केट फेमिली तक यह संक्रमण अंतरित हो सकता है या नहीं यह अन -अनुमेय ही बना हुआ है .

आन पम्प कोरोनरी आर्टरी बाई -पास ग्रेफ्टिंग बेहतर ?

इन दिनों कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्रेफ्टिंग के पुराने (आन पम्प सी ऐ बी जी )और नए तरीकों (आफ पम्प सी ऐ बी जी )की कारगरता और कामयाबी को लेकर एक बहस छिड़ गई है ,कौन सा तरीका मरीज के लिए बेहतर है ,नया या फ़िर पुराना जिसमे दिल को पूर्ण विराम देकर उसका काम शल्य के दौरान एक आर्तिफिशिअल हार्ट लंग मशीन से ले लिया जाता है .समझा जाता है इस तरीके में सर्जन को चक्करदार लेकिन सुरक्षित रास्ता (बाई पास )रक्त संचरण के लिए मुहैया करवाने में ज्यादा सहुलियत हो जाती है .लिकिन शल्य चिकित्सकों का एक वर्ग संक्रमण की दृष्टि से इस तरीके को निरापद नहीं मानता समझता है ।
नए तरीके में दिल को ले दे कर स्तेब्लाईज़ कर बाई पास (घुमावदार वैकल्पिक मार्ग )रक्त संचरण के लिए तैयार किया जाता है ।
अब पता चला है -ओल्ड इज गोल्ड -पुराना तरीका ही बेहतर है .आशंका के विपरीत इस तरीके में मरीज़ की मानसिक क्षमता (मेंटल डिक्लाइन )ज़रा भी कम नहीं होती है ।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलाराडो डेनवरके फ्रेदेरिक्क ग्रोवर के नेत्रित्व में

संपन्न एक अध्धययन में बतलाया गया है -आफ पम्प सर्जरी करवाने वालों को लाभ के स्थान पर नुकसानी ही उठानी पड़ी है ।
हर साल तकरीबन २,५३,००० अमरीकी बाईपास ग्रेफ्टिंग करवातें हैं ,हिन्दुस्तान में भी अब यह एक आम फ़हम प्रोसीज़र है ।
पहले आन पम्प सर्जरी को पेचीला खासकर स्ट्रोक होने की आशंका लिए बतलाया गया था .भले ही कमतर ही सही ऐसा ख़तरा अन्तर्निहित बतलाया गया था परम्परा गत सर्जरी के लिए ।
१९९० के दशक में आफ पम्प सर्जरी चलन में आई .आज पाँच में से एक बाई पास औसतन आफ पम्प किया जाता है ।
न्यू -इंग्लेंड जर्नल ऑफ़ मेडिसन में अब तक का सबसे महत्वपूर्ण और विस्तृत अध्धय्यन प्रकाशित हुआ है ,जिसमे दोनों तरीकों के गुन दोष के बारे में बतलाया गया है इसमे २२०३ मरीजों को शरीक किया गया ।
१८ प्रमुख चिकित्सा केन्द्रों ने इसमे शिरकत की है ।
(अबाउट हाल्फ वर रेंडमली एसा -इंद तू बाई पास सर्जरी विद ऐ हार्ट लंग मशीन ,हाल्फ विदाउट )।
यानी बिना ख़बर किए आधे मरीजों पर आन पम्प बाकी आधे पर आफ पम्प सर्जरी आजमाई गई ।
महीने भर बाद मृत्यु एवं पेचीलापन दोनों ही वर्गों में यकसां देखा गया .कोई फर्क दिखलाई नहीं दिया ,लेकिन साल भर बाद आफ पम्प शल्य वाले १० फीसद मरीज या तो मर गए या फ़िर दोबारा इन्हें बाई पास की ज़रूरत पेश आ गई यानी एक बार फ़िर इनकी धमनियां अवरुद्ध हो गईं ।
जबकि आन पम्प ग्रुप में यह प्रतिशत सात (७ फीसद )ही रहा ।
(आल्सो दी आफ पम्प ग्रुप गात फ्युअर आर्टरी दी -तूअर्स देन ओरिजनली प्लांड एंड फ्युअर ऑफ़ दे -आर बाई पासइज़ वर स्टील ओपिन आफ्टर ऐ ईयर अबाउट ८३ परसेंट वर्सस ८८ परसेंट फॉर आन पम्प ।)
सन्दर्भ -सामिग्री :-"ओल्ड स्टाइल बाई पास से -फार देन ओपरेशन विद हार्ट बीटिंग "(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ६ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

:ग़ज़ल "-बहुत हो चुका गोल -गपाडा अपनी हदबंदी पहचान .

ग़ज़ल
करनी अन -करनी पहचान ,कहनी अन -कहनी पहचान ,
बहुत हो चुका गोल गपाडा ,अपनी हदबंदी ,पहचान ।
मन तेरा हो फूल सरीखा ,खुश्बू हो तेरी पहचान ,
अपनों के तो सब होतें हैं ,गैरों पे हो जा कुर्बान ।
एकल गान सुनाया खूब ,अपना तुम्बा ,अपनी तान ,
लय में ,सुर में ,बजे साज़ तो ,तेरा स्वर हो ,वृन्द- गान ।
कौन किसी के होता संग ,ख़ुद अपनी बन तू पहचान ,
कुछ को तो ले अपने साथ ,रार सभी से ,मतना ठान ।
सहभाव :डॉक्टर नन्द लाल मेहता "वागीश "
१२१८ ,सेक्टर -४ ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव -१२२ -००१
दूरध्वनी :-०१२४४ ०७७ २१८ /०९९१०४३१६९९
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )डी-२ फ्लेट्स ,फ्लेट नम्बर १३ ,पश्चिमी किदवई नगर ,न्यू -डेल्ही -११० -०२३ ,दूर -ध्वनी :-०९३५०९८६६८५

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

चोटी के दस आविष्कारों में एक्स -रेज़ अव्वल .

ब्रितानी साइंस म्युजिं- ऍम के लिए २००९ शताब्दी वर्ष है .इस मौके पर एक सर्वे किया गया जिसमे ५०,००० लोगों ने या तो सीधे सीधे या फ़िर ओं न लाइन भाग लिया .सर्वे में विज्ञान ,प्रोद्योगिकी और इनजीनिअरींग क्षेत्र से अब तक के चोटी के दस आविष्कारों पर रायशुमारी करनी थी .,जिसमे एक्स -रे अव्वल रहा ,पेंसिलिन और दी एन ऐ डबल हेलिकस दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे ।
अपोलो -१० स्पेस केप्स्युल ,वी -२ रॉकेट इंजिन ,स्टीवंस रॉकेट स्टीम लोकोमोटिव ,दी पायलट अर्ली एसीई कंप्यूटर ,दी स्टीम इंजिन ,दी मॉडल टी फोर्ड मोटर कार तथा दी इलेक्ट्रिक टेलीग्राफ चौथे ,पांचवें ,छटवे ,सातवें ,आठवें ,नौवें और दसवे स्थान पर रहे ।
एक्स -रे का पहले स्थान पर रहना माकूल ही है -जिसने हमारे तमाम रचना संसार ,शरीर के अन्दर बाहर झाँकने ,रोग निदान के अभिनव और विविध रूप हमें दियें हैं .

बूँद -बूँद सो भरे सरोवर ...

विश्व -बेंक द्वारा संपन्न एक हालिया अध्धय्यन से पता चला है ,नॉन रेवेन्यु वाटर (टोंटी से रिसने वाला पानी जो कभी उपभोक्ता तक नहीं पहुँच पाता) युतिलितीज़ कास्ट में सालाना १४ अरब डॉलर बैठता है -ख़राब रख रखाव और पाइपों से होने वाला रिसाव दुनिया भर में इस नुकसानी की वजह बना हुआ है ।
इसी के मद्दे नज़र तेल अवीव के एक छोटे सेबाहरी उपनगर के ऊपर पहली मर्तबा एक चालकरहित ड्रोन वायुयान का स्तेमाल इस नुकसानी का जायजा लेने के लिए किया जा रहा है वाटर मीटर्स की निगरानी रखेगा यह वायुयान जिसका मोनितरण एक टेक -नीशियन अपने लेपटोप मोनितार्स से करेगा ।।
शहर के तमाम लीकी तोइलिट्स और सेंकडों गेजिज़ पर नज़र रखेगा यहअकेला टेक -नीशियन ।
इस्राइली जल निगमों के लिए यह एक महत्वकांक्षी योजना है .जो जल रिसाव से होने वाली अरबों डॉलर्स की नुकसानी से बचायेगी ।
बढ़ता हुआ शहरीकरण तदानुरूप जन संख्या बढोतरी जल स्रोतों पर दवाब बढाए है .इस्राइल इस प्रोद्योगिकी का निर्यात कर सकेगा ।
सन्दर्भ सामिग्री :-एवरी ड्राप काउंट्स :युसिंग द्रोंस तू प्लग ऐ लीकी तोइलित (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ५ ,२००९ ,पृष्ठ १५ ।)
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

गर्भावस्था के आखिरी दिनों में फोलिक एसिड संपूरक लेना कितना निरापद ?

एक हालिया प्रकाशित आस्ट्रेलियाई अध्धय्यन से पता चला है ,जो गर्भवती महिलायें गर्भावस्था के आखिरी चरण में भी फोलिक एसिड सम्पूरण लेना जारी रखती हैं उनके नौनिहालों में दमा हो जाने का ख़तरा बढ़ जा ता है ।
हालाकि जो महिलायें प्रग्नेंसी की तैयारी कर रही होतीं हैं उन्हें फोलिक एसिड प्राकृत अवस्था में यथा हरे पत्ते वाली सब्जियों ,फली ,फलों का गूदा (लेग्युम्स )नट्स (बादाम ,अखरोट आदि )द्वारा लेने की सलाह दी जाती है .ताकि गर्भावस्था की पहली तिमाही में न्यूरल दिफेक्ट्स से बचा जा सके ।
लेकिन उक्त आस्ट्रेलियाई अध्धय्यन से पता चला है ,जो गर्भवती महिलायें गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में भी आख़िर तक इसका सेवन करती रहतीं हैं फोलिक एसिड सम्पूरण उनके नौनिहालों में दमा होने की संभावना ३० फीसद बढ़ा देता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-फोलिक एसिड इंटेक लिंक्ड तू एस्मा (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ५ ,२००९ ,पृष्ठ १५ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

बुधवार, 4 नवंबर 2009

इथियोपियाई भू -विज्ञानियों की माने तो रेगिस्तान के नीचे समुन्दर है ..

एक ३५ माइल रिफ्ट इथियोपियाई रेगिस्तान में जो दिखलाई दिया है वह देर सवेर एक समुन्दर में तब्दील हो सकता है ,भू -विज्ञानियों ने हालत का जायजा लेने के बाद ही यह प्रागुक्ति की है ।
रिफ्ट या फाल्ट का मतलब है -पृथ्वी की भू -पर्पटी में चट्टानी परतों का विस्थापन ,ऐसा स्ट्रेस के प्रति एक अनुकिर्या के तहत ही होता है ,फल्ताया फाल्ट लाइन के दोनों ओर चट्टानों की सतत ता टूट जाती है ,एक फटन या फ़िर दरार से .इसे ही रिफ्ट कहा जाता है इथियोपियाई रेगिस्तान में ऐसी ही रिफ्ट दिखलाई दी है कई देशों के विज्ञानियों ने इस बात की पुष्टि की है ,इस रिफ्ट के नीचे ठीक वैसी ही ज्वालामुखीय प्रक्रियाएं जारी हैं जैसी दुनिया भर के समुन्द्रों के नीचे चलतीं हैं .ऐसा प्रतीत होता है ,यह रिफ्ट एक नए समुन्दर का आगाज़ है ,ऐसा हो भी सकता है ।
अध्धययन के मुताबिक अति सक्रीय ज्वालामुखीय सीमायें टेक्टोनिक ओशन प्लेट्स के सिरों के गिर्द अचानक टूट कर विशाल अनुभागों में विभक्त हो सकतीं हैं ,ना की धीरे धीरे जैसा अब तक सोचा जा रहा था ।
(इन एडिशन सच सदन लार्ज स्केल इवेंट्स ओंन लैण्ड पोज़ ऐ मोर सिरिअस हेजार्ड तू पोपुलेसंस लिविंग निअर दी रिफ्ट देन वुड सेवरल स्मालर इवेंट्स ,सेड सिंडी एबिंगेर प्रोफेसर ऑफ़ अर्थ एंड एन्वायरन्मेंट साइंस -इस अत दी यूनिवर्सिटी ऑफ़ रोचेस्टर एंड कोऔथर ऑफ़ दी स्टडी ।)
अद्दिस अबा- बा यूनिवर्सिटी (इथियोपिया )में प्रोफेसर अतालय एले के नेत्रित्व में २००५ की उस घटना से सम्बद्ध भू -कम्पीय आंकडे जुटाए गए हैं जिसके तहत देखते ही देखते केवल २ दिनों में ही २० फीटचौडी रिफ्ट पैदा हो गई थी ।
आपने कब कब इस क्षेत्र में भू कंप आए इसका पूरा जायजा लेकर एक पूरा खाका तैयार किया .एबिंजर द्वारा संपन्न विस्तारित विश्लेषण से इनकी संगती बैठती है ।
(दी मेप ही द्र्युऊ ऑफ़ वें न एंड वे -आर अर्थ क्युएक्स हेपिंद इन दी रीज़न फिट त्रीमन्दासली वेळ विद दी मोर डिटेल्ड एनालिसिस एबिंजर हेज़ कन्दक्तिद इन मोर रीसेंट ईयर्स ।)
एले ,स द्वारा घटनाओं की पुनर -संरचना (रिकंस्त्रक्षण )से एक बात साफ़ है -रिफ्ट दीर्घावधि में रफ्ता रफ्ता तेम्ब्लोर्स (भू -कम्पों )ने नहीं बनाई है ,चंद दिनों में देखते देखते ही यकायक बनी है .ऐसा पूरी ३५ मील लम्बाई में एक साथ हुआ है .यानी ३५ मील लम्बी रिफ्ट एक साथ पैदा हुई है ।

गर्भावस्था के दौरान एंटीबायोटिक्स का चयन देखभाल के ...

यूँ पेंसिलीन का स्तेमाल बेक्तिरीयल इन्फेक्शन से बचाव के लिएगर्भावस्था में निरापद माना गया है -फीटस के लिए ,तो भी एंटीबायोटिक्स का चयन खासी सावधानी की अपेक्षा रखता है ताकि इसका खामियाजा भ्रूण को ना उठा ना पड़े ।
जीवाणु संक्रमण निश्चय ही भ्रूण को नुक्सान पहुंचा सकतें हैं ,इसलिए जीवाणु रोधी दवा के बिना भी काम नहीं चलने वाला है लेकिन चयन में अतिरिक्त सावधानी बरतनी ज़रूरी है ।
मूत्र -मार्ग के संक्रमण से बचाव के लिए स्तेमाल में लिए जाने वाले आम जीवाणु रोधी और बर्थ -दिफेक्ट्स में एक अन्तर सम्बन्ध की पुष्टि शोध छात्रों ने हाल ही में की है ।
एक दीर्घावधि अध्धय्यन से पता चला है -जिन गर्भवती महिलाओं ने जेस्तेशन पिरिअद में दो प्रकार के एंटीबायोटिक्स -सल्फा ड्रग्स और यूरिनरी जर्मिसैड्स -ना -इतरो -फ़्युरेन्तोइन्स का स्तेमाल किया था उनके नवजातों में बर्थ दिफेक्ट्स अपेक्षया ज्यादा देखे गए बरक्स उन माताओं के जिन्होंने स्वस्थ नौनिहालों को जन्म दिया था ।
यूरिनरी ट्रेक्ट ट्रीटमेंट और बर्थ दिफेक्ट्स में पहली मर्तबा सीधे सम्बन्ध की पुष्टि की गई है ।
अलबत्ता इन नतीजों को पुख्ता करने के लिए अभी और भी अध्धय्यन चाहिए ।
सल्फा ड्रग्स का चलन मुद्दतों से है जबकि कुछ एनीमल स्टडीज़ में इनका सेवन गर्भावस्था के दरमियान नुक्सान दायक पायागया है .जबकि पूर्व में यूरिनरी ट्रेक्ट इन्फेक्शन के इलाज में इन्हें निरापद माना गया था ।
डॉक्टर्स ना -इतरो -फ़्युरेन्तोइन्स का स्तेमाल मूत्र मार्ग संक्रमण के इलाज़ में करते रहें हैं आर्काइव्स ऑफ़ पिद्रियातिक्स एंड एदोलिसेन्त मेडिसन उक्त अध्धय्यन प्रकाशित हुआ है ।यह अध्धय्यन इलाज़ में दूसरे एंटीबायोटिक्स के स्तेमाल के विषय में डॉक्टरों को सोचने के लिए बाध्य करेगा ।
सल्फा ड्रग्स जन्य बर्थ दिफेक्ट्स में रे -आर ब्रेन एंड हार्ट प्रोब्लम तथा शोर्तेंद लिम्ब्स शामिल हैं ,जबकि ना -इतरो -फ्युरेंतों- इन को गर्भावस्था में हार्ट प्रोब्लम्स ,क्लेफ्ट पलेट (खंड तालू )के लिए उत्तरदाई माना गया है .ये दवाएं हैं इन खतरों में दो से तीन गुना तक इजाफा कर सकतीं हैं ,यह विकार की प्रकृति पर निर्भर करता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-"एंटीबायोटिक्स कैन काज बर्थ दिफेक्ट्स "(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ४ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

विलुप्त हो रहा है अफ्रिका का सबसे ऊंचा हिमनद शिखर ....

१९१२ में माउन्ट किली मंजरों (अफ्रिका की सबसे ऊंची हिमनद चोटी )हिमाच्छादित थी .२००७ में पता चला ८५ फीसद हिम का इस शिखर से सफाया हो चुका है ।
२००० के बाद से तो हिम्चादर २६ फीसद सिकुड़ चुकी है यही आलम रहा तो आइन्दा २० सालों में चोटी गंजी हो जायेगी ।
"आइस शीट"-ढूंढते रह जाओगे ।हम नहीं ऐसा पुरा-जलवायु -विज्ञानी कह रहें हैं।
हिम चादर के सफाए की बड़ी वजह विश्व -व्यापी तापमानों में वृद्धि को ही बतलाया जा रहा है .हालाकि बरसात और क्लौदी नेस क्लाउड कवर में बदलाव भी एक कमतर वजह हो सकती है ।
विज्ञानियों के ही शब्दों में "चेंजिज़ इन क्लाऔदिनेस एंड प्रेसिपिटेशन में हेव आल्सो प्लेड ऐ स्मालरलेस इम्पोर्टेंट रोल । "
यह पहली मर्तबा है विज्ञानियों ने परबत के हिमानी मैदानों से विलुप्त हिम -राशि का जायजा लिया है ।
"इफ यु लुक अत दी परसेंटेज ऑफ़ वोल्यूम लोस्ट सिंस २०० ० ,वर्सस दी परसेंटेज ऑफ़ एरिया लोस्ट एज दी आइस फील्ड्स श्रिंक ,दी नंबर्स आर वेरी क्लोज़ "-ज़ाहिर है हिम पिघलाव अप्रत्याशित रहा है ।
पर्बतीय हिमनदों का सफाया दो टूक है .साल डर साल हिमनद पश्च गमन कर रहें हैं ,अपने ही हाशियों( मार्जिन्स )से पीछे की और लौट रहें है -पर्बतीय हिमनद ।
साथ ही सतह से भी हिम चादर झीनी पड़ गई है ,छीज गई है (थिनिंग ऑफ़ दी आइस शीट फ्रॉम दी सर्फेस इज अपेरेंट वहा- इल दी ईयरली लोस ऑफ़ दी माँ -उन्तें न ग्लेशिअर
इज मोस्ट अपेरेंट फ्रॉम दी रिट्रीट ऑफ़ दे -आर मार्जिन्स ।
उत्तरी और दक्षिणी हिमानी मैदानों के शिखर (अतोप किलिमंजारो )१.९ और ५.१ मीटर छीज गए हैं ।
कुल मिलाकर गत ११ सहस्राब्दियों में माउन्ट किलिमंजारो की जलवायु का आज जो आलम है वैसा कभी नहीं रहा ।
सन्दर्भ सामिग्री :-"नो स्नो ओं न किलिमंजारो इन २० ईयर्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ३ ,२००९ ,पृष्ठ १७ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

शूकर (पिग )के जीनोम ड्राफ्ट का पता चला ...

विज्ञानियों की एक अंतर्राष्ट्रीय टोली ने एक पालतू शूकर (पिग ,सूअर )के जीनोम का पूरा लेखा (ड्राफ्ट )तैयार किया है ।
इस खोज के कई मानी हैं .एक ओर इससे कृषि क्षेत्र में संभावनाओं के नए क्षितीज खुलेंगे दूसरी और चिकित्सा ,संरक्षण और इवोल्यूशन को भी नए आयाम मिलेंगे ।
ड्राफ्ट सिक्युएंस को ९८ फीसद सम्पूर्ण हुआ बतलाया जा रहा है .इसे देख कर पोर्कप्रोडक्शन के लिए उत्तरदाई जींस का रेखांकन किया जासकेगा ।
दरअसल जीनोम नक्शा गुणसूत्रों के तमाम सेट्स ,जैविक कोशिका में मौजूद सम्पूर्ण आनुवंशिक सूचना का खुलासा करता है .(दी कम्प्लीट सेट ऑफ़ क्रोमोजोम्स एंड दस दी एंटायर जेनेटिक इन्फार्मेशन प्रेजेंट इन ऐ सेल इज इट्स जीनोम ड्राफ्ट ।).
आल दी जींस इन वन सेल ऑफ़ लिविंग थिंग इज इट्स जीनोम ।
आल्सो दी फुल कम्प्लिमेंट ऑफ़ जेनेटिक इन्फार्मेशन देत एन इन्दिविज्युअल ओर्गेनिज्म इन्हेरिट्स फ्रॉम इट्स पेरेंट्स स्पेसिअली दी सेट ऑफ़ क्रोमोजोम्स एंड दी जींस दे केरी इस कॉल्ड जीनोम .कुल मिलाकर माँ बाप की सम्पूर्ण विरासत हैं -ह्यूमेन जीनोम .

एलर्जी तेरे रूप अनेक -अलौकिक (मायिक )प्रत्युर्जा ..

एलर्जिक रियेक्शंस भी तमाम तरह के हैं .किसको कब किस चीज़ से एलर्जी हो जाए इसका कुछ निश्चय नहीं ।
एलर्जन्स (प्र्त्युर्जात्म्क प्रतिकिर्या पैदा करने वाले एलर्जी कारक पदार्थ )भी भाँती भाँती के हैं ।
इन साहिब को अपनी बीवी से ही एलर्जी है .बीवी का कुसूर ?वह एक बॉडी क्रीम लगाती है -जिसमे मौजूद है कामन इन्ग्रेदियेंत -पोली -एथाइलीन ग्लाइकोल .४५ वर्षीय डारें यांग साउथ यार्क शायर के स्प्रोत्ब्रौघ के रहने वालें हैं .इस रसायन के संपर्क में आते ही आपके तमाम शरीर पर सूजन (शौजिश )आ जाती है ।
ऐसा तब ही होता है जब डारें किसी पब या रेस्त्रा में चले आतें है जहाँ कोई मौतरमा बॉडी क्रीम लगाए बैठी हो .चिकित्सक हतप्रभ हैं -यका याक डारें के इस एलर्जी की चपेट में आ जाने से ।
एक मर्तबा डारें को पोली -इथा -इलीन ग्लाइकोल युक्त स्तेरोइड का इंजेक्शन ज़रूर लगा था .डारें के पैर में कुछ तकलीफ थी .तब उन्हें पहली बार जान लेवा एलर्जी हुई थी ,डारें का चेहरा एक एलर्जिक रिएक्शन (प्र्त्युर्जात्मक प्रतिकिर्या )के कारण एक दम से सूज गया था ,दिल की धड़कन रूक गई थी ,आर्तिफिशिअल ऋ -सशिटेशन करना पडा था .तब से दर्रें इस एलर्जी के शिकार हैं ।
वह अपनी बीवी सुए केसाथ निकट संपर्क में तभी आ पातें हैं जब उन्होंने यह बॉडी क्रीम ना लगाई हो .सुए के पास डारें से दूर छिटकने के लिए क्रीम का बहाना है .उन्हें यह नहीं कहना पड़ता -आज मेरे सिर में दर्द है .बस वह कह देती हैं आज मैंने क्रीम लगाई हुई है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-वीअर्द एलर्जी :दिस में कान्त स्टेंड टच ऑफ़ बॉडी लोशन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,पृष्ठ १७ ,नवम्बर )

दिल का ओपरेशन (शल्य चिकित्सा )रेडिएशन से ....

ब्रितानी चिकित्सकों की एक टीम ने दिल का पहला ओपरेशन रेडिएशन (हार्ट सर्जरी बाई रेडिएशन )से कर दिखाया है ।
यह करिश्मा हार्ले स्ट्रीट क्लिनिक लन्दन के चिकित्सा कर्मियों ने एक ६७ साला मरीज़ पर कर दिखाया है जिसके दिल में ट्यूमर था जिसे काटके फेंकने के लिए साइबर -नाइफ(एक अति फोकस्ड ,रेडिएशन स्केल्पल यानी अति संकेंद्रित विकिरण छुरी )का स्तेमाल किया गया ।
सन्दर्भ सामिग्री :-इन ऐ फस्ट, हार्ट सर्जरी वाया रेडिएशन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ३ ,२००९ ,पृष्ठ १७ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

अब डर को भी भांप लेने वाली युक्ति -फीअर डिटेक्टर .

आधुनिक विज्ञान अब मानवीय संवेगों की तोह लेने की दिशा में भी अग्रसर है ,ब्रितानी विज्ञानियों ने अब डर तोहक तैयार कर लेने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है -तैयार कर रहें हैं एक "फीअर डिटेक्टर "।
डर का सुराग हमारे पसीने में छिपा रहता है ।
जब आदमी खौफ ज़दा होता है तब उसके पसीने में एक सेंटसिग्नल फेरोमोन पैदा होने लगता है -प्रस्तावित विकासमान युक्ति इसी सेंट सिग्नल को ताड़ लेगी .सिटी यूनिवर्सिटी लन्दन के चिकित्सा कर्मी इसी दिशा में काम कर रहें हैं ।
आतंकी हों या तस्कर ,धुर -अपराधी सबके दिलोदिमाग पर खौफ का साया कहीं ना कहीं बरपा रहता ही है .भले ही वह बाहर से शांत दिखें .यहाँ तक ,बिना टिकिट यात्री भी डरा सहमा रहता है टिकिट चेकर (गार्ड कंडक्टर )को देख उसकी हवाई उड़ने लगती है -बॉडी लेग्विज की तरह शरीर की गंध पसीने से रिसने वाला फेरोमोन सब कथा कह देता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-कमिंग सून: ऐ डिवाइस देत स्मेल्स ह्यूमेन फीअर (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ३ ,२००९ ,पृष्ठ १७ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

सोमवार, 2 नवंबर 2009

भविष्य दृष्टा कम्प्यूटर ?

साइकिक हीलर्स के बारे में आपने सुना होगा .कुछ लोग मृत आत्माओं से संवाद भी कर लेतें हैं ,विलक्ष्ण होता है इनका दिमाग ,रहश्या-पूर्ण बातों को जान लेने में समर्थ .ऐसे ही लोगों के बारे में कह दिया जाता है -इनके पास साइकिक पावर्स हैं .ये लोग दूसरे के दिल औ -दिमाग में क्या चल रहा है ,जान लेतें हैं ,भविष्य दर्शन भी कर लेतें हैं ।
यहाँ तक तो ठीक लेकिन यदि कोई कहे -आइन्दा साइकिक कम्प्यूटर्स भी हमारे बीच होंगे तब आपको कैसा लगेगा ।
विज्ञानी इसी संभावना की पड़ताल कर रहें हैं ।
विज्ञानियों ने दिमाग को बांचने की ,जान ने समझने की तरकीब ,आपके दिमाग में क्या चल रहा है -ब्रेन स्केन उतार कर पता लगा ली है .तब क्या आपके तस्सवुर का भी जायजा लिया जा सकेगा .क्या कुछ किस पल आप सोच रहें हैं याद कर रहें हैं .आपके औत्सुक्य (इंक्साइतीज़ )की क्या वजूहातें हैं ,जाना जा सकेगा ?
दिमागी रासायनिक सक्रियता (ब्रेन एक्टिविटी )को क्रूड वीडियो -फुटेज में तब्दील कर लेने में विज्ञानी काम याब रहें हैं .धुंधला धुंधला ही सही मानसिक कुहाँसा ही सही विज्ञानी समझ देख सकें हैं ।
तब क्या ऐसे लोगों के दिलो दिमाग में जो बोल नहीं सकते चल फ़िर नहीं सकते क्या चल रहा है यह समझ बूझकर इनके साथ संवाद का एक ज़रिया बनाया जा सकता है .एक साथ अनेकानेक संभावनाओं के क्षितिज उजागर हुए हैं ।
ख्वाब में क्या देखा था आपने ,अपराध के वक्त एक चस्म -दीद ने क्या देखा उसे याद दिला कर क्या पोलिस के हाथ मजबूत किए जा सकेंगे .इस बात की संभावना पैदा ज़रूर हो गई है ।
लेकिन साथ ही एक ख़तरा पैदा हो गया है -होलीवुड फ़िल्म "माइनोरिटी रिपोर्ट "की तरह आपके निजी जीवन की पड़ताल आपके मन की बात जान कर की जा सकेगी ।
ऐसे में आपकी निजता का ,प्राइवेसी का क्या होगा ,आपका अंतस भीतर बाहर सब सार्व जनिक हो जाएगा ।
तमाम तरह की वैयेक्तिक इंक्साइतीज़ का खुला सा हो जाएगा ।
आपको ख़बर भी नहीं होगी ।
फंक्शनल मेग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग के ज़रिये ठीक उस समय एक प्रयोग के तहत विजानियों ने दो मरीजों की दिमागी रासायनिक हलचल का जायजा लिया जब दोनों वीडियो देख रहे थे ।
(ऐ कंप्यूटर प्रोग्रेम वाज़ यूस्ड तू सर्च फॉर लिंक्स बिटवीन दी कन्फ्युग्रेशन ऑफ़ शेप्स ,कलर्स एंड मूवमेंट्स इन दी वीदिओज़ एंड पेत्रंस ऑफ़ एक्टिविटी इन दी पेशेंट्स विज्युअल कोर्टेक्स ।)
फाइनली दी सॉफ्ट वेअर वाज़ यूस्ड तू मोनिटर दी तू पेशेंट्स एज दे वाच्द ऐ न्यू फ़िल्म एंड तू रिप्रोड्यूस वाट दे वर सी -इंग बेस्ड ओं दे -आर न्यूरल एक्टिविटी एलोन ।
अप्रत्याशित तौर पर कंप्यूटर प्रोग्रेम फिल्म्स का लगातार (आ -सतत ,कंटिन्युअस )फूटेज दिखलाने में कामयाब रहा .हालाकि छवियाँ थोडा धुंधलाई हुई ज़रूर थीं ,लेकिन उससे क्या ।
यु कूद युस ईट तू ट्रांसमिट दी इमेज तू समवन .तब क्या ब्रेन स्केनर्स की आज़माइश कैदियों पर भी की जायेगी .?दूर से भी दिमाग की हल चल जानी जा सकेगी .अमरीकी प्रति रक्षा एजेंसीज इस दिशा में शोध को आगे बढ़ा रहीं हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-"साइकिक "कंप्यूटर देत कैन रीड माइंड्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर २ ,२००९ ,पृष्ठ १३ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

कोयला बिजली घर से कार्बन डाइऑक्साइड हठाने के लिए ...

जापान इन दिनों अपने एक कोयला बिजली घर पर मंडराते कार्बन डाइऑक्साइड बादल से निजात दिलवाने के लिए एक अभिनव लेकिन विवादास्पद प्रोद्योगिकी आजमाने जा रहा है -कार्बन केप्चर एंड स्टोरेज .बिजली घर "मिकावा पावर स्टेशन "जापान के दक्षिणी फूकुओका कोस्ट पर अव्स्तिथ है ।
इस बिजली घर पर मंडराते कार्बन डाइऑक्साइड के बादल जल्दी ही पृथ्वी के गर्भ में कार्बन के रूप में गहरे दफन कर दिए जायेंगे ।
तोशिबा निगम इस अभिनव प्रोद्योगिकी को पुनर-प्रयोज्य ऊर्जाओं के संपूरक के बतौर देख समझ रहा है ।
इस बिजली घर का चयन एक पायलट साईट के तौर पर किया गया है .इसे विंड और सोलर ऊर्जा के विकल्प की मानिंद लिया जा रहा है ।
उद्योगिक उत्सर्जन को इस दौर में कैसे भी कम करना ज़रूरी समझा जा रहा है जो विश्व -व्यापी तापन के लिए कुसूरवार ठहराया जा चुका है ।
जापान में कार्बन डाइऑक्साइड स्टोरेज के लिए एक स्टडी ग्रुप तैयार किया गया है -जापान,स रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ़ इन्नोवेटिव टेक्नोलोजी फॉर दी अर्थ के शिगेओ के नेत्रित्व में इसका गठन किया गया है ।
गत माह ६ मंजिला "तोशिबा ट्रायल प्लांट "ने फ्ल्यू गैस से तकरीबन १० टन कार्बन डाइऑक्साइड अलग किया ।
जब कोयला बिजली घर में कोयला जलता है तब फ्लुए गैस पैदा होती है .इसी से कार्बन केप्चर कर दफन करने के लिए कमर कस ली गई है ।
पायलट प्लांट अभी उत्सर्जन का १० फीसद अंश ही केप्चर कर पा रहा है ,समस्या कार्बन डाइऑक्साइड को स्टोर करने की भी है देर सवेर जिसका हल ढूंढ कर ९० फीसद तक प्रदूषक प्लांट से अलग कर दफन करने की तैयारी है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-जापान तू बरी ग्रीनहाउस गैस एमिशन्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर २ ,२००९ ,पृष्ठ १३ ।)
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई )

हृद रोगों से मुकाबले में चारकोल मदद गार हो सकता है .

जिन लोगों की गुर्दे की बीमारी बढ़कर लाइलाज होने लगी है उनमे हृद रोगों से जूझने में चारकोल मददगार हो सकता है ।
अब तक संपन्न अध्धय्यनों में यह बारहा देखा गया है ,उन लोगों में धमनियों का खुरदरा पन ,धमनी काथिन्न्य (आर्थ्रा -स्केलो-रोसिस )भी ज्यादा पाया गया है जिनकी किडनी दीजीज़ एडवांस्ड स्टेज में पहुँच गई है ।
फल -तया हृद रोग भी इनकी जान लेता रहा है ।
पूर्व में चिकित्सक ओरल एक्तिवेतिद चारकोल की एक किस्म ऐ एस टी -१२० का स्तेमाल आपातकालीन इलाज़ के तौर पर कई किस्म की विषाक्त -ता से छुटकारा दिलाने में करते रहें हैं ।
लेकिन अब ताज़ा तरीन अध्धय्यनों से जो अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ नेफ्रोलोजी के समक्ष रखे गएँ हैं ,पता चला है -ऐ एस टी -१२० गुर्दे के रोगों के इलाज़ में भी कारगर है ।चार कोल ब्लेक और डार्क ग्रे किस्म ही है कार्बन की .हीतीं- इंग वुड आर एनादर ओरगेनिक सब्सटेंस इन एन एन्क्लोज्द स्पेस विदाउट एअर प्रोद्युसिस चारकोल (कार्बन ही है चारकोलकाले भूरे रंग का जिसे लकड़ी या फ़िर किसी भी कार्बनिक पदार्थ को वायु की गैर -मौजूदगी में गर्म करने से हासिल किया जा सकता है .
चारकोल में हेल्प फाइट हार्ट दीसीज़ ,सेज स्टडी (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर २ ,२००९ ,पृष्ठ १३ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

मोटापा यकृत के लिए शराब से ज्यादा खतरनाक ...

लीवर की एक जान लेवा बीमारी है -लीवर -सिर -होस -सिस जिसमें हेल्दी सेल्स का स्थान स्कार तिस्युस लेते चले जातें हैं .एल्काहिलिज्म इसका का ज्ञातकारण रहा है ।
अब ओबेसिटी यानी मोटापे को अपेक्षया ज्यादा खतरनाक ट्रिगर बतलाया जा रहा है -लीवर की इस ला -इलाज़ बीमारी के लिए ।
ब्रिटिश सोसायटी ऑफ़ गैस्ट्रो -एन्तेरोलोजी के मुखिया क्रिस्टोफर हाकी के मुताबिक इस शती में देखते ही देखते ओबेसिटी शराब की लत के बरक्स लीवर की ज्यादा बड़ी नुकसानी की वजह बन जायेगी ,इतना ही नहीं ,आदमी की उम्र (लाइफ एक्स्पेक्तेंसी -लान्जेविती )भी शती के अंत तक इतनी नहीं रह जायेगी -थेंक्स तू ओबेसिटी विच इज गोइंग तू बी ऐ बिगर किलर ।
एक तरफ़ कई तरह के कैंसरों और दूसरी तरफ़ हिप और नी -सर्जरी के मामलों में इजाफा होने जा रहा है ।
हाल ही में १९५९ लोगों पर किए गए एक सर्वे से यह बात खुलकर सामने आई है ,लोग बाग़ -हाई -पर -टेंशन ,डायबिटीज़ और इन्फर्तिलिती (औरत मर्द दोनों के बाँझपन ) के लिए तो मोटापे को कुसूरवार मानतें हैं ,लेकिन लीवर के लिए मुह -बाए खड़े ज्यादा बड़े खतरे से वाकिफ नहीं हैं ।
आज ६५ साल के नीचे की उम्र के लोग यकृत की बीमारियों से ज्यादा मर रहें हैं जबकि इसी आयु वर्ग के लोगों में डायबिटीज़ ,कैंसर और स्ट्रोक (सेरिबरल वेस्क्युलर एक्सीडेंट )से मौत के मामले उतने नहीं रहें हैं ।
लीवर दीजीज़ से होने वाली मौतों की औसत उम्र अब घटकर ५९ पर आ गई है जबकि हृद रोगों और स्ट्रोक्स के लिए इसका औसत ८२ -८४ वर्ष है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-कट दी फ्लेब :ओबेसिटी देमेजिज़ लीवर मोर देन एल्कोहल (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर २ ,२००९ ,पृष्ठ १३ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

रविवार, 1 नवंबर 2009

छुई मुई का पौधा छूते ही डंठल से लटकी पंखुडी समेत लेता है .क्यों ?

डंठल से चारों तरफ़ लटकी रहतीं हैं -मिमोसा पुदिका की पंखुडी .जब कोई लोकस्ट (टिड्डा या फ़िर अन्य कीट )इन पर आ बैठता है एक सुरक्षा उपाय के बतौर ऊपर को सिमट कर बंद हो जातीं हैं तमाम पंखुडी ।
यदि कीट तब भी नहीं भाग खड़े होते तब पंखुडी नीचे की और कुछ इस प्रकार झुकतीं हैं -ताकि इनका कंटीला भाग कीट को विकर्षित कर सके ।
पादप शरीर में मौजूद अभिग्राही स्पर्श के प्रति अनुकिर्या करतें हैं .,जिसके होने पर इनके आकार में बदलाव या फ़िर एक विकृति पैदा हो जाती है ।
रीढ़ -धारी जीवों में दो प्रकार के अभिग्राही ( टेक्टाइल - रिसेप्टर्स )होतें हैं .एक प्रेशर दर्ज करतें हैं ,दाब का जायजा लेतें हैं ,दूसरे स्पर्श के प्रति एक अनुकिर्या दर्शाते हैं ।
ऐसे में न्युत्रोनों की एक झडी निकलने लगती है -दे ट्रिगर फास्ट फायरिंग आफ न्युत्रोंस ।
लेकिन मिमोसा पुदिका की तो बात ही निराली है ।
इसकी प्रत्येक और यौगिक (कम्पाउंड लीव्स )पंखुडीके आधार में एक थैली नुमा सरंचना होती है ,जिसमे एक तरल भरा होता है .यही पंखुडी यों का खुलना बंद होना संचालित करता है .डंठल का फूला हुआ आधार (स्वोलिन बेस ऑफ़ दी लीफ स्ताल्क )पुल्विनुस (पल्विनस )कहलाता है ।
इस अति संवेदी पादप (छुई -मुई )को स्पर्श करने पर पादप कोशिकाएं विद्युत स्पंद दीप्त करतीं हैं (सहसा प्रकाशित होतीं हैं ,चमक पैदा करतीं हैं )।
पल्विनस में मौजूद कोशिकाएं इन संकेतों (इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स )के प्रति अनुकिर्या स्वरूप पोतेसियम और वाटर फ्लश करतीं हैं .इस प्रकार एक भारी (विशाल मात्रा में )तरल ह्रास होने से ही पल्विनस झुक जाता है .और पंखुडी -या फ़िर बंद हो जातीं हैं .यही राज है -छुई -मुई के कुम्लाहने का ,लाज -वनती बन जाने का .

छुई -मुई का पौधा छूते ही मुरझा जाता है ,क्यों ?

मिमोसा पुडिका की पंखुडी -याँ छूते ही या तो अपने डंठल से लटकी पखुडी -नुमा कपाट बंद कर लेतीं हैं या फ़िर एक सुरक्षात्मक उपाय के बतौर नीची को झुककर अपने कंटीले ब्लेड्स से आ बैठे लोकस्ट (तिदा ,टिड्डी आदि कीटों को )विकर्षित कर देतीं हैं ।
अक्सर किसी नाज़ुक मिजाज़ मौतरमा को "छुई -मुई "कह दिया जाता है ,नेनू की नाक भी
सवाल उठता है -आख़िर किसी कीट पतंग के आ बैठने या फ़िर मानवीय स्पर्श से पत्तियाँऊपर की और सिमट कर बंद क्यों हो जातीं हैं .क्यों इतना स्पर्श संवेदी होता है यह पौधा (वानस्पतिक नाम "मिमोसा पुदिका ",यानी छुई मुई ?
दरअसल शरीर में मौजूद अभिग्राही स्पर्श करने पर अनुकिर्या करतें हैं .(बाडी रिसेप्टर्स रेस्पोंद तू टच