अमरीका जैसे अग्रणी राष्ट्र को जिसे ग्लोबल दारोगा कहा जाता है "ओसामा बिन लादेन "को टोहने और गोली मारने में पूरे दस साल लग गए .ओसामाई विचारधारा को मारने में सदियाँ लग सकतीं हैं ।
"एट दी हार्ट ऑफ़ बिन लादेन्स हेट्फुल आइदिओलोजि इज दी कोंसेप्त देटआल मेन मस्ट सबमिट टू थिओ -लोजिकल टायरनी "।
एक दिन यही धार्मिक क्रूरता ,इंतिहा -पसंदगी सबको लील लेगी .यदि इस विचार धारा की ह्त्या नहीं की गई ।
अंग्रेजी में कोटिड,उल्लेखित विचारधारा लादेन की नहीं है सातवीं शती की इस्लामी बुनियाद परस्ती से ताल्लुक रखती है ।
"जितना आप जिंदगी से प्यार करते हो उससे बहुत ज्यादा हम मौत को प्यार करतें हैं ,जश्न मनातें हैं होमो -सेपियंस की ज़िबह का "
"हलाल करतें हैं काफिरों को ".
"जो इस्लाम के साथ नहीं है -काफिर है "
काफिर को मारना बहिश्त का रास्ता खोलता है ।
तो ज़नाब !मन मोहनी खाम -खया -ली का वक्त नहीं है -वो कहें हैं :आतंकियों को सबक लेना चाहिए लादेन के मारे जाने से ।
ये ज़नाब बहुत कोशिश करतें हैं तब तो इनकी आवाज़ निकलती है ,वरना आवाज़ ही नहीं निकलती है ।
मेरे एक दोश्त ने कहा था :यह एक ऐसा बिजूका है ,क्रो -स्के- यर बार है जिससे पक्षी भी नहीं डरते ,बिष्ठा करके उड़ जातें हैं ।
विषयांतर हो जाएगा और ज्यादा कहा तो ।
मूल विषय पे लौटतें हैं -हमारे लिए भी एक भारतीय की तौर पर ये "जेहाद "का वक्त है ,अच्छे मूल्यों ,विचारधारा के संरक्षण और विनाशकारी उक्त विचारधारा को जड़ मूल से उखाड़ फैंकने का वक्त है .यह एक वैचारिक लड़ाई है जो सौ बरस चलनी है .
बुधवार, 4 मई 2011
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