सोमवार, 9 मई 2011

कैसे पता चलता है स्ट्रोक की वजह का ?

हाव इज दी कॉज़ ऑफ़ स्ट्रोक डिटर -मिंड?
आज न्युरोलोजिस्तों ,काया -चिकित्सकों के पास अनेकानेक रोग निदान उपकरण और इमेजिंग टेक्नीक्स मौजूद हैं .यह स्ट्रोक के रोग निदान (डायग्नोसिस )में तात्कालिक तौर पर कारगर साबित होतीं हैं .
सबसे पहले संक्षिप्त सी स्नायु -रोग -वैज्ञानिक जांच की जाती है .क्या कैसे हुआ कौन से लक्षणों का प्रगटीकरण हुआ ,इसकी खोजबीन के बाद जो साथ में आये व्यक्ति या मरीज़ से कर ली जाती है ,माहिर कुछ ब्लड परीक्षण ,ई सी जी (इलेक्ट्रो -कार्डियो -ग्रेफी के ज़रिये इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम लेता है ,दिल का उस समय का आरेख होता है यह .कच्चा चिठ्ठा ,लेखा होता है यह ।),तथा सी टी स्केन्स लेता है ।
स्ट्रोक की गंभीरता का पता लगाने के लिए मानकीकृत (स्तेन्दर्दाइज़्द एन आई एच स्केल )का स्तेमाल किया जाता है .इस परीक्षण से न्युरोलोजिकल देफिसिट्स का पता चल जाता है .इसमें असर ग्रस्त व्यक्ति से कई सवाल ज़वाब किये जातें हैं ,तथा कई भौतिक और मानसिक परीक्षण और जांच भी की जातीं हैं .अलावा इसके आज "ग्लासगो कोमा स्केल ",दी हंट एंड हेस स्केल "तथा संशोधित रेंकिन"तथा बार्थेल इंडेक्स का भी स्तेमाल किया जाता है ।
एन आई एच स्ट्रोक स्केल का विकास "दी नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्युरोलोजिकल डिस -ऑर्डर्स एंड स्ट्रोक "द्वारा किया गया है .
(ज़ारी ...)
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"गर्दिशे ऐयाम तेरा ,शुक्रिया ,
हमने हर पहलू से दुनिया ,देख ली ."

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