गुरुवार, 31 मार्च 2011

१५ एक्सरसाइज़ टिप्स फॉर पीपल विद सेकेंडरी डायबिटीज़ (ज़ारी...)

(११)लुक एत बिग पिक्चर :
हल्का फुल्का दरमियाना व्यायाम तुरत फुरत निपटा लेना ही सेहत के लिए काफी नहीं है नजर इस बात पर रखनी है अगले बरस मुझे क्या करना है .इस पर बने रहना ,टिके रहना दीर्घावधि में रंग लाएगा .सेहत के लिए अच्छे नतीजे निकलेंगें .आपके व्यवहार में एटी -त्युड में असल तबदीली अपने लिए होनी चाहिए ।
(१२)चेंज वन बिहेवियर एट ए टाइम :
एक बार में एक व्यवहार ,एटी -त्युड को बदलना संवारना ज्यादा आसान है सबकुछ को एक साथ सुधार लेने के बनिस -पत .बेशक मेडिकेशन ,स्विचिंग योर डाइट ,चेकिंग योर फीट सब ज़रूरी हैं ।
बस एक बार में कसरत के प्रति ही अपना रवैया बदलके देख लीजिए ,ज्यादा तवज्जो देके देखें ,आपके हीमो -ग्लोबिन -ए १ -सी में दोगुना सुधार आजायेगा .अध्ययनों से इस बात की पुष्टि हुई है ।
(१३)गेट एन एक्सरसाइज़ प्रेस्क्रिप्शन :
आपका फिजियो ,फिटनेस का माहिर पहले आपकी फिटनेस को तौलेगा तभी एक ख़ास इन्तेंसिती का व्यायाम आपको बतलायेगा .धीरे -धीरे ही उसकी इंटेंसिटी बढ़ाएगा .एक से दूसरे चरण में आपको लेजायेगा ।
अनफिट रह जाने वाले लोगों के लिए पहले हल्का फुल्का व्यायाम ही बतलायेगा ,रफ्ता रफ्ता उसी पर देर तक टिके रहने के लिए कहेगा तब जाकर ज्यादा इन्तेंसिती एक्सरसाइज़ की ओर लेजाने की सोचेगा नतीजे देखने परखने के बाद ।
(१४)कनेक्ट विद ए मेंटर और बिकम वन :
अपने डॉ या फिर डायबेटिक एज्युकेटर से पूछिए आपको ऐसे किसी टाइप -२ डायबेटिक से मेच करे ,बतलाये कैसे उसने कामयाबी के साथ अपना वजन कसरत के ज़रिये कम किया .वह व्यक्ति भी आपको एक्सरसाइज़ टिप्स दे सकता है प्रेरित कर सकता है ।
(१५)टेस्ट योर सेल्फ रेग्युलरली :सबसे ज़रूरी है अपने हीमो -ग्लोबिन -ए १ सी ,ब्लड सुगर का नियमित हिसाब किताब रखना जांच करना करवाना ।
अच्छे नतीजे आपको एक्सरसाइज़ प्रोग्रेम पर बने रहने के लिए प्रेरित करेंगे ,तब भी जब यह आपको मुश्किल प्रतीत होता होगा .यकीन मानिए .इन नुश्खों ,टिप्स को आजमाने के फायदे ही फायदे हैं .

१५ एक्सरसाइज़ टिप्स फॉर पीपल विद सेकेंडरी डायबिटीज़ (ज़ारी ...)

गत पोस्ट से आगे ...
(५ )रिवार्ड योरसेल्फ :
अपना लक्ष्य पूरा करने पर खुद को कुछ इनाम दीजिये (ध्यान कसरत न करने पर नहीं जिसके साथ और बहुत कुछ अवांछित चला आता है ,करने पर लगाया है ),खुद से कहिये अगले तीन हफ़्तों तक मैं हर सप्ताह तीन मर्तबा १५ -१५ मिनिट की सैर के लिए जाउंगा /जाउंगी और फिर अपने अज़ीज़ दोस्त को निमंत्रित करूंगी /करूंगा ।
केवल वजन कम करने को लेकर मत रुकिए ये भी सोचिये कितना ऊर्जा से भरे रहतें है आप ,ऊर्जित रहतें हैं ,बाहर की चीज़ों से प्रकृति से जुड़तें हैं आप जब सैर को निकलतें हैं ,मानसिक धुंध और कुहांसे से निकल कर ।
(६)यूज़ विज्युअल क्यूज़ :रेफ्रिजरेटर पर नोट चस्पा कीजिये ,दरवाज़े पर वार्म अप शूज़ रखिये जो आपको याद दिलातें रहें -घूमने जाना है ।
(७)सब कुछ लिख डालिए कब क्या किया :
आज मैं दस मिनिट दौड़ा ,१० मिनिट पैदल चला .केलेंडर पर लिखिए आज मैंने कुल १५ मिनिट तक एक्सरसाइज़ की ।
(८)ज्वाइन ए जिम ,ए क्लास :वहां इंस्ट्रक्टर आपको बतलायेगा ,इक स्ट्रक्चर्ड तजुर्बे से आप रु -बा -रु होंगें ,आपातकालीन व्यवस्था भी रहेगी आपको संभालने की .,वक्त ज़रुरत पड़ने पर ।
(९)ऐसे लक्ष्य न निर्धारित कीजिये जिन्हें आप पूरा न कर सकें ,आपकी सामर्थ्य के अनुरूप ही हों :छोटा लक्ष्य कामयाबी की गारंटी देता है .आपके आत्म विश्वाश को बढाता है .रफ्ता रफ्ता आप अपने लिए और बेहतर लक्ष्य रख सकतें हैं .स्लो विन्स दीरेस .सफलता आपके हाथ लगने की प्रबल संभावना बनी रहेगी .(ज़ारी...)

१५ एक्सरसाइज़ टिप्स फॉर पीपल विद सेकेंडरी डायबिटीज़ .

१५ एक्सरसाइज़ टिप्स फॉर पीपल विद सेकेंडरी डायबिटीज़ :
(१)गेट ए पेडोमीटर :स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने २६ अध्ययनों की पड़ताल और विस्तृतपुनर - आकलन के बाद पाया ,जो मधुमेही पेडोमीटर का स्तेमाल कर रहे थे उन्होंने अपनी भौतिक गति -विधियों में २७%इजाफा किया ।
इनलोगों का वजन भी अपेक्षाकृत ज्यादा कम हुआ ,ब्लड प्रेशर भी कम हुआ (नियंत्रित रहा )भले ये रोजाना १०,००० कदम(लगभग पांच मील ) न चल सके लेकिन २५,०० डग (कदम ) इन्होने ज्यादा भरे .बरक्स उनके जो पेडोमीटर स्तेमाल नहीं कर रहे थे ।
(२)बेशक अभी तक आप कसरत से दूर रहें हों ,धीरे धीरे अब शुरू कीजिये .घर के काम को उतना बढ़ चढ़के मत समझिये जितना अब तक समझते रहें हैं .टुकडा टुकडा ही सही दिन भर में ३० मिनिट का वर्क आउट (व्यायाम ,चहल कदमी ,जीना चढ़नाउतरना ,आदि )पूरा कीजिये .दवा ,स्वास्थ्य कर खाना (डायबेटिक अनुरूप फ़ूड )और कसरत ब्लड सुगर पर बेहतर नियंत्रण रखने के लिए ज़रूरी है ।
(३)खासकर ६० के पेटे में आये लोगों के लिए किसी साथी के साथ एक चहलकदमी का,वर्क आउट का , रूटीन बना ना ,समय इसके लिए मुक़र्रर करना दोनों को ही समान रूप से प्रेरित करता है एक स्ट्रक्चर्ड रूटीन में ले आता है ऐसा माहिरों का मानना समझना है . अपने वर्क आउट परिवेश में कुछ प्रेरणा दायक ,स्तिम्युल्स शामिल कीजिये ।
(४)सुनिश्चित लक्ष्य निर्धारित कीजिये अपने तैं(लिए ):मसलन सोम बुद्ध और शनिवार के दिन १० मिनिट पैदल चलना ,तैरना जो भी आपको मुनासिब लगे .छोटा भले दिखे लक्ष्य कोई भी छोटा नहीं होता ,बढाया जा सकता है इसका क्वांटम ,अवधि ।
(ज़ारी ....)

डज़ रेडियेशन फ्रॉम डेंटल एक्स -रेज़ कॉज़ थाइरोइड कैंसर ?

डज़ रेडियेशन फ्रॉम डेंटल एक्स्रेज़ कॉज़ थाइरोइड कैंसर ?(सी एन एन हेल्थ ,मार्च ३० ,२०११ )।
थाइरोइड ग्रंथि गर्दन के नीचे गले (थ्रोट )के सामने स्थित रहती है .इससे रिसने वाले हारमोन अपचयन (मेटाबोलिज्म )को नियंत्रित रखतें हैं ।
थाइरोइड का प्रकार्य (लो फंक्शन )मंद्धिम रहने पर वजन बढ़ने लगता है ,सुस्ती घेरे रहती है (भूख कम वजन ज्यादा -हाइपो -थाइरोइड )जबकि ओवर -एक्टिव थाइरोइड वेट लोस ,नर्वस नेस और कई दूसरे लक्षणों की वजह बन सकती है .(भूख ज्यादा वजन कम -हाई -पर -थाइरोइड )।
अमरीकी कैंसर सोसायटी के एक अनुमान के अनुसार २०१० में "थाइरोइड कैंसर "के कुल ४४,६७०नए मामले दर्ज़ हुए .(३३९३० औरतें ,१०७४० मर्द )।
कुल १६९० लोगों की इनमे से मौत हो गई (९६० औरतें ,७३० मर्द )।
तीन में से दो मामले इस कैंसर के दूसरे कैंसरों के बनिस्पत अपेक्षा -कृत युवा लोगों (२०-५५ साला )में मिलतें हैं .
हालिया बरसों मेंइस कैंसर की चपेट में आने के मौके बढ़ें हैं ।
१९८० में इस कैंसर के होने की दर औरतों में १९८० के ६ से बढ़कर प्रति एक लाख मामलों के पीछे १७ तथा मर्दों में २.५ से बढ़कर ५.८,सन २००७ के आते आते हो गई ।
अलबत्ता इससे मौत का ख़तरा उतना ही रहा है गत तीस सालों में .हालाकि औरतों में इसके होने की दर इस दरमियान तीन गुना ज़रूर हो गई लेकिन फिर भी यह दर लंग ,कोलन ,ब्रेस्ट ,प्रोस्टेट कैंसरों की दर से बहुत कम है। सर्वाइवल की दर इस कैंसर के साथ बहुत ज्यादा है .
इसकी वजह बेशक मेडिकल इमेजिंग के बढ़ते प्रयोग और नतीज़न होने वाले रोग निदान को समझा गया है ,गत तीस सालों में रोग निदान में केट स्केन्स ,एम् आर आईज ,थाइरोइड अल्ट्रा -साउंड का स्तेमाल होने से छोटी से छोटी थाइरोइड नोड्यूल्स(थाइरोइड गांठ )का भी अब पता चल जाता है ,इसलिए ज्यादा मामले दर्ज़ होतें हैं .मामले बढ़ने की वजह आकार में बड़े थाइरोइड त्युमर्स का मिलना रही है जिनके लिए सर्जिकल प्रोसीजर के तहत थाइरोइड को ही काट के फैंक देना पड़ता है ,अलबत्ता यह इक मुश्किल फैसला होता है थाइरोइड को कब कितना काटा जाए ।आंशिक या पूरा ।
बेशक रेडियेशन एक्सपोज़र थाइरोइड कैंसर के खतरे के वजन को बढाता है ,जितना ज्यादा एक्सपोज़र उतना ज्यादा संभावना इस कैंसर की बढती जाती है ,विकासमान (विकसती,बढती थाइरोइड ग्रंथि विकिरण के प्रति ज्यादा संवेदी होती है ज्यादा असर ग्रस्त होती है विकिरण से )इसीलिए बच्चों के लिए आगे चलकर इस कैंसर का जोखिम ज्यादा हो जाता है ,रेडियो -एक्टिव मेटीरियल के इन्जेशन के बाद खासकर रेडियो -एक्टिव आयोडीन को थाइरोइड आसानी से ज़ज्ब कर्लेती है ,एक्स रे मशीन से होने वाले बाहरी एक्सपोज़र से भी ऐसा ही असर पड़ता है ।
१९४५ -१९६३ तक अमरीकी ज़मीन के ऊपर (अबव ग्राउंड न्यूक्लीयर टेस्टिंग )एटमी परीक्षणों की खूब आज़माइश की गई थी .अमरीकी कैंसर सोसायटी ने इससे हमारी हवा -पानी में चले आये विकिरण और कैंसर की पूर्वापरता की पड़ताल की .पता चला कैंसर के बढे हुए मामलों का सम्बन्ध इस रेडियो -धर्मी विकिरण से नहीं था क्योंकि जो लोग इस कैंसर के बढ़ते मामलों से असर ग्रस्त हुए हैं उनमे से ज्यादातर लोग इन परीक्षणों पर रोक लगने के बाद ही पैदा हुए थे ।
डेंटल एक्स रेज़ से विकिरण की बहुत लो डोज़ ही मुह तक पहुँचती है ।
देयर इज सम स्केटर ऑफ़ रेडियेशन एंड दी पोटेंशियल फॉर सम रेडियेशन एब्ज़ोर्प्शन बाई दी नीयर बाई थाइरोइड एंड अदर ओर्गेंस .यानी कुल मिलाकर ना -मालूम सा प्रभाव .
धड़(टोर्सो ) को एक लेडिद एप्रन से ढकने से ,एक ले -डिड एप्रन पहनने से इस विकिरण से बचा जा सकता है .इससे छाती और उदर(चेस्ट एंड एब्दोमन )भी बचे रहतें हैं डेंटल एक्स रे लेते वक्त इसे पहना जाना चाहिए .ले -डिड थाइरोइड कोलर पहनने से थाइरोइड का भी बचाव हो जाएगा .बेशक डेंटल एक्सरेज़थाइरोइड कैंसर के खतरे को उतना नहीं बढा तें हैं जितना कि सी टी स्केनिंग्स जिसमे परम्परा गत एक्सरेज़ से ज्यादा विकिरण शरीर पर डाला जाता है .जो डेंटल एक्सरेज़ में स्तेमाल होने वाले विकिरण से बहुत ज्यादा डोज़ वाला है .

क्यों खतरनाक है पोटेशियम आयोडाइड का स्टोक जमा करना ..

इन दिनों मेसाच्युसेट्स के इक कोंग्रेस मेन रिपब्लिकन एड .मार्के ने संघीय सरकार पर उस क़ानून को लागू करनेके लिए दवाब बनया हुआ है जो २००२ से निलंबित है , और अमरीकी एटमी भट्टियों के २० मील के दायरे में रहने वाले लोगों को पोटेशियम आयोडाइड बांटने के लिए कह रहे हैं जो ,कि इस क़ानून के तहत किया जाना था .उन्हें डर है अमरीकी धरती पर भी जापान के फुकुशिमा एटमी प्लांट जैसा मेल्ट डाउन हो गया तो अमरीकी बच्चों के लिए थाइरोइड कैंसर का ख़तरा पैदा हो जाएगा .
लेकिन माहिर उनकी इस पेश कशसे इत्तेफाक नहीं रखते क्योंकि थाइरोइड ग्लेंड बेशकरेडियो -आयोडीन की ज़ज्बी को तो रोक सकती है आयोडाइड का निरापद यौगिक (बिनाइन कम्पाउंड ज़मा कर लेती है थाइरोइड ग्लेंड पोटेशियम आयोडाइड दिए जाने के बाद )लेकिन बाकी शरीर को और दूसरे रेडियो -धर्मी विकिरण की मार सेबच्चों बड़ों को पोटेशियम आयोडाइड नहीं बचा सकता ,इसके नुक्सानात ही उन लोगों के लिए ज्यादा हैं जिन्हें आयोडीन से एलर्जीहै , शेल फिश से एलर्जी है दूसरी थाइरोइड सम्बन्धी समस्याएँ हैं .घबराहट में लोग इसका गैर ज़रूरी स्तेमाल ही करेंगे ,अपने लिए खतरनाक साइड इफेक्ट्स का जोखिम बढ़ाएंगे ।
कब किसको पोटेशियम आयोडाइड की डोज़ लेनी चाहिए कब नहीं यह फैसला स्वास्थ्या विभाग करता है संकट के अनुरूप ।
इसी माह केलिफोर्निया के ड्रग स्टोर्स से यह कम्पाउंड तब गायब हो गया था रातों रात बिक गया था जब पेसिफिक कोस्ट पर तैनात सेन्सर्स ने रेडियो -एक्टिविटी का अल्पांश ही पकड़ा था ,केलिफोर्निया की आपात कालीन प्रबंधन एजेंसी ने लोगों को साफ़ मना किया था इसका स्तेमाल न करें ,गैर ज़रूरी है विकिरण के इसअल्पांश स्तर पर ,खतरनाक अवांछित प्रभाव भुगतने पड़ सकतें हैं लेकिन दहशत और औत्सुक्य आदमी से उसका विवेक छीन लेती है .

बुधवार, 30 मार्च 2011

प्रेम में धोखा खाने पर दिल -ओ -दिमाग जलतें हैं ...(ज़ारी...)

गत पोस्ट से आगे .....
जर्नल "प्रोसीडिंग्स ऑफ़ दी नेशनल एकादेमी ऑफ़ साइंसिज़ "में प्रकाशित इस अध्ययन में हताशा और प्रेम में अस्वीकृति से लगने वाले भावात्मक सदमे से पैदा :"फाइब्रो -मायाल्जिया "में उठने वाली दर्द की लहर को उजागर किया गया है ।
तब क्या शारीरिक पीड़ा से मुक्ति भावात्मक पीड़ा को भी दूरकरवा सकती है ?क्या एक का प्रबंधनदूसरी किस्म की पीड़ा का भी समाधान प्रस्तुत कर सकता है ?आखिर भावात्मक संवेगों का शरीर से क्या ताल्लुक है ?
इसकी पड़ताल के लिए ऐसी २१ औरतों और १९ मर्दों के फंक्शनल एम् आर आई उतारे गए ,जिनका क्रोनिक पैन या मनो -रोग सम्बन्धी कोई पूर्व वृत्तांत नहीं था ।
अलबत्ता गत छ :महीनों में ये सभी प्रेम में ठुकराए जाने की पीड़ा, मानसिक यंत्रणा झेल रहे थे ।
इन्हें दो टास्क्स दिए गए पहली में एम् आर आई उतारते वक्त इनके बाजुओं में हीट सोर्स नथ्थी कर दिए गए ,इस स्रोत से जलन का वैसा ही एहसास हो रहा था जैसे किसी ने बिना हेंडिल का गरम चाय का प्याला पकड़ा दिया हो .दूसरा एम् आर आई उतारते वक्त इन्हें अपने अतीत बन चुके प्रेम की तस्वीर दिखलाई गई ,इन्हें यह भी कहा गया वह अपने प्रिय पात्र रहे साथी के साथ बिताये कुछ वाकयों को ,लम्हों को,अपने तसव्वुर में लायें ।
दोनों ही मर्तबा दिमाग के वही हिस्से रोशन हुए :सेकेंडरी -सोमाटो -सेंसरी कोर्टेक्स तथा डोर्सल पोस्टीरियर इंसुला ।
ज़ाहिर है संवेग (इमोशंस )हमारी शारीरिक पीड़ा को भी असर ग्रस्त करतें हैं ,क्योंकि शरीरिक कष्ट झेलते वक्त भी तो यही हिस्से रोशन हो रहे थे ,लाईट अप हो रहे थे ,सक्रिय हुए थे ।
अतीत के सदमे लोगों को दर्द के प्रति और भी संवेदनशील बना देतें हैं .फाइब्रो -मायाल्जिया की वजह भी बनतें हैं .इसमें क्रोनिक पैन और थकान दोनों होतीं हैं ।
इसीलिए अतीत से पल्लू झाड कर अलग हो जाना अतीत के सदमों से मुक्ति वर्तमान को भी राहत देती है और उनमे उलझे रहना आज के दुःख को और भी गाढा अ-सहनीय .
आखिर में एक शैर :
मैं उसके घर नहीं जाता ,वह मेरे घर नहीं आता ,
मगर इन एहतियातों से ताल्लुक मर नहीं जाता ।
मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोइए मत .इस पन्ने को अपनी एकाउंट शीत से फाड़ के फैंक दीजिये .जीवन आगे की और है .तालाब का रुका हुआ गंदा पानी नहीं है .इति,राम राम भाई .

टू दी ब्रेन ,बींग बर्न्ड एंड गेटिंग डम -प्द फील दी सेम .

हेल्थ .कॉम :मार्च २८ ,२०११ /टू दी ब्रेन ,बींग बर्न्ड एंड गेटिंग डम -प्द फील दी सेम ।
दिल तुझे दिया था रखने को ,तूने दिल को जलाके रख दिया ,
किस्मत ने देके प्यार मुझे मेरा दिल तड़पा के रख दिया .
दिल का तो पता नहीं लेकिन दिमाग ज़रूर जलता है प्यार में धोखा खाके ।
"दामन में दाग लगा बैठे ,हम प्यार में धोखा खा बैठे "कुल मिलाकर ये किसी शायर की खपत नहीं फिजिकल पैन और इमोशनल पैन (प्यार में सदमा खाना ,ठुकराया जाना )दिमाग को एक समान थकाता है .दुह देता है .इस अध्ययन में इन्हीं बिन्दुओं का खुलासा होना है ।
दिमागी न्युरोंस का वही सर्किट सक्रिय होता है जब आप के ऊपर गरम कोफी गिर जाती है ,और तब भी यही ब्रेन नेट वर्क लाईट अप करता है ,जब आप किसी के द्वारा तिरस्कृत कर दिए जातें हैं , प्रेम में हार जातें हैं ,आपके दिलो -दिमाग को ठेस लग जाती है .
अध्ययन में ऐसे ही भावात्मक चोट खाए औरतों और मर्दों को शरीक किया गया था .(ज़ारी...)

केयरफुल हु यु किस -केविटीज़ कैन बी कन्तेजीयअस .

केयरफुल हु यु किस -केविटीज़ कैन बी कन्तेजियास .-हेल्थ .कॉम
अकसर माँ अपने बच्चे को अपने हाथ से ही खिलाती है साथ में ये भी देखती है खाना कहीं ज़रुरत से ज्यादा गरम तो नहीं है इस चक्कर में वह खाने को पहले खुद चखती है फिर बच्चे को उन्हीं हाथों से खिलादेती है ।
बस लार में मौजूद दांतोंको खोखला बनाने वाला जीवाणु (केविटी कौजिंग बेक्टीरिया )इसी रास्ते बच्चे तक पहुच सकता है .बेहतर हो माँ खाने को फूंक मारकर ठंडा करले ताकि कमसे कम ख़तरा हो ज़रासीम बच्चे तक पहुँच सकने का ।
तमाम तरह के जर्म्स और विषाणुओं का हमारे मुख में डेरा होता है ,केविटीज़ फोर्मिंग बेक्तीरियाज़ भी इनमे शरीक हैं इसलिए ज़रूरी है ओरल हाइजीन का स्तर देखते हुए ही किसी का चुम्बन आलिंगन किया जाए .आपके पार्टनर को गम डिजीज होने पर ,केविटीज़ होने पर आप भी इसकी चपेट में आ सकतें हैं .आखिर कितने व्यक्ति आपके इनर सर्किल में हैं जो साल छ :महीने में दन्त चिकित्सक तक पहुंचतें हैं ,दांतों की मंजाई(स्केलिंग )के लिए ?ज़रा जायज़ा लेके देखिये .चौंकाने वाले तथ्य सामने आयेंगें ।
देखिये कितने लोग नियमित फ्लोसिंग और ब्रशिंग करतें हैं हरेक "मील" के बाद .काफी कुछ अंदाजा हो जाएगा आपको ,सुरक्षित और अ -सुरक्षित किस का ।
"सुगर- फ्री- गम "की च्युइंग सरल उपाय है ओरल हाइजीन को बनाए रखने का .ज्यादा लार पैदा करवा कर यह "गम " जीवाणुओं को दूर रखता है ।
यु नीड नोट टू गो टर्की ऑन किसिंग -फ्यू .बस परख लीजिये साथी की हाइजीन।
रूप की आराधना का मार्ग आलिंगन नहीं तो और क्या है ,
स्नेह का, सौन्दर्य को, उपहार, रस चुम्बन -नहीं तो ,और क्या है .

६ मिथ्स एंड फेक्ट्स अबाउट वेट लोस .(ज़ारी...)

मिथ :नेचुरल वेट- लोस सप्लीमेंट्स डोंट हेव साइड इफेक्ट्स ।
फेक्ट :"नोट ट्र्यु,"सेज डॉ .कूपर्मन ,"इफ ए सप्लीमेंट -इविन ए नेच्युरल वन -कैन कॉज़ एन इफेक्ट ,चान्सिज़ आर इट कैन कॉज़ ए साइड इफेक्ट .
यानी अगरकिसी खाद्य संपूरक की असरकारी क्रिया हो रही है तो कुछ न कुछ पार्श्व (आवांछित )प्रभाव ,साइड इफेक्ट भी होने के मौके पैदा हो जातें हैं ।
यही कुदरती उत्पाद आप तलाश रहें हैं तो घर की थाली ही भली है .निरापद है .कुदरत ने कोई कम खाद्यान नहीं दिए हैं हमें ।
मसलन फ़ूड सप्लीमेंट्स में इन दिनों लाइनोलिक एसिड को खासा हाइप किया गया है ,गुणगान किये गए हैं इस संपूरक के बढ़ चढ़के .लेकिन इसके समर्थन इसकी प्रभाव शीलता की पुष्टि करने वाली कोई ख़ास रिसर्च सामने नहीं आई है ।
बेशक यह मसल मॉस को बढाने में फैट को कम करने में सहायक हो सकता है लेकिन ये काम तो खुराक और व्यायाम से भी हो जाता है ।
मांस अंडा और डैरी उत्पाद कोमप्लिमेंतरी लिनोलिक एसिड मुहैया करवाते हैं .इसीलिए बेहतर है खुराक की गुणवत्ता ,स्वास्थ्यकर खुराक पर ध्यान दिया जाए न कि कथित सम्पूरकों पर .
इक यथार्थ परक प्रोग्रेम के लिए अपने को तैयार कीजिये ,चेक आउट और फ्री "फील ग्रेट वेट" डाइट एंड फिटनेस प्रोग्रेम .

६ मिथ्स एंड फेक्ट्स अबाउट वेट लोस (ज़ारी .....).

मिथ :इफ इट इज ऑन ए स्टोर शेल्फ ,इट इज सेफ फॉर मी .यथार्थ :ज्यादातर लोगों को यह एहसास ही नहीं है ,वजन कम करने वाले संपूरक अमरीका में न तो स्वीकृत होतें हैं न परीक्षण किया जाता है वेट लोस सप्लीमेंट्स का अमरीकी दवा और खाद्य संस्था द्वारा ।
हालाकि एक स्तर पर अमरीकी सोचते ज़रूर हैं ,इनको यदि किसी सरकारी संस्था द्वारा सेहत के लिए निरापदघोषित किया जाता पर्याप्त परीक्षणों के बाद तो अच्छा होता ,लेकिन किसी भी खाद्य सम्पूरण को लेकर ऐसी व्यवस्था है ही नहीं ।
२००८ में संपन्न एक अध्ययन से पता चला ५४ % अमरीकीजो खाद्य सम्पूरणों का स्तेमाल कर रहे थे इसी मुगालते में थे ,अमरीकी खाद्य और दवा संस्था इनकी निरापदता और सेहत के लिए बेहतरी का अनुमोदन करती है .वह तो यही समझते थे जो कुछ स्टोर की सेल्फ पर आगया वह सेहत के लिए अच्छा है ।
इसके विपरीत अभी हाल फिलाल ही ऍफ़ डी ए ने ऐसे ६९ वेट लोस सप्लीमेंट्स की सूची ज़ारी की है ,जिनमे या तो विरेचकों (लेग्ज़ेतिव्ज़)का बाहुल्य है या फिर मूत्रलदवाओं (डाय -युरेतिक्स) का ,नुश्खे वाली दवाओं की भी इनमे मिलावट पाई गई थी ,कुछ और चिकित्सा स्थितियों में भी ये प्रयुक्त होतीं थीं जिनका अनुदेशों (लेबल्स )में कोई ज़िक्र नहीं किया गया था .अभी भी इन उत्पादों की जांच ज़ारी है .

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६मिथ्स एंड फेक्ट्स अबाउट वेट लोस .(ज़ारी ....).

मिथ :बिटर ओरेंज इज ए सेफ सब्सी -ट्युट फॉर एफिड्रा।
यथार्थ :बेशक बिटर ओरेंज (तीखा संतरा जैसा खट्टा फल )"साइट्रस औरन्तियम ".सेविल्ले ओरेंज ऑर बिटर ओरेंज का स्तेमाल अकसर "मार्मलेड"तैयार किये जाने में किया जाता है ।
एफिड्रा इक तरफ रक्त चाप को बढा सकती है दूसरी तरफ अरिथिमिया (एनी दिवियेशन फ्रॉम दी नोर्मल रिदम ऑफ़ दी हार्ट ,दिल की लय का बिगड़ना )की वजह भी बन सकती है इसीलिए अमरीकी दवा संस्था ऍफ़ डी ए ने २००४ में इसे तब प्रतिबंधित कर दिया था जब यह दवा कई हाई प्रो -फ़ाइल डेथ की वजह बनी थी ।
बिटर ओरेंज में "सिनेफ्रिन 'पाया जाता है यही एफिड्रा का मुख्य सक्रिय घटक है .इसीलिए इसके भी वही जोखिम निकलते हैं जो एफिड्रा के निकल चुकें हैं ।निकलेंगे .
अलबत्ता कुछ माहिर इस सबसे इत्तेफाक नहीं भी रखतें हैं .बकौल उनके बिटर ओरेंज के नतीजे ऐसे नहीं निकलेंगे जैसे पेश किये गये हैं .यहाँ काम की बात यह है ,वेट लोस के मामले में रिसर्च अभी तक कुछ भी पुख्ता कहने में असमर्थ है .फिर कथित बहु -प्रचारित दावे को सच क्यों माना जाए . इसीलिए यथार्थ यही है :एफिड्रा का निरापद विकल्प नहीं है बिटर ओरेंज .

मिथ्स एंड फेक्ट्स अबाउट वेट लोस .(ज़ारी .....)

६ मिथ्स एंड फेक्ट्स अबाउट वेट लोस :हेल्थ .कॉम
गत पोस्ट से आगे ....
मिथ :दी अफ्रीकन हर्ब "हूडिया "इज एन इफेक्टिव एपेताईट सप्रेसेंट"।
यथार्थ :क्या वास्तव में हूडिया डिनर मिस करना आसान बना देती है या सिर्फ यह किस्सा गोई है सुनी सुनाई है .?स्पष्ट नहीं है इस जड़ी बूटी से तैयार औषधि का यह जादुई असर ।
अलबत्ता रेगिस्तान में लम्बी यात्रा को निकले लोगों को इसी किस्सा गोई के अनुसार यह दवा भूख को काबू में रखने में मदगार सिद्ध हुई है ।
समझा जाता है इसमें इक सक्रिय घटक पी -५७ है अलबत्ता एनीमल स्टडीज़ में पता चला है इस यौगिक पी -५७ के इंजेक्शन इन पशुओं के दिमाग में लगाने के बाद पशु कम खाने लगतें हैं .
मनुष्यों पर इस प्रकार की आजमाइशें अभी तक कहीं भी नहीं हुईं हैं .फिर कैसे मान लिया जाए यही असर मनुष्यों पर भी इस हर्ब का होगा ?
लेकिन हूडिया केप्स्युल्स लोग बा -कायदा ले रहें हैं .ऐसे में इस पादप की निरापदता और कारगरता पर सहज ही सवालिया निशाँ लग जाता है .

मिथ या यथार्थ :वेट लोस और संपूरक .

मिथ :फलां वेट लोस संपूरक के साथ कोई डाइट लेने की ज़रुरत है न कसरत करने की .,वेट लोस सप्लीमेंट ही काफी है ।
यथार्थ :माहिरों की बात तो छोडिये इस बाबत खुद तमाम वेट लोस सप्लीमेंट्स पर भी हिदायतें दी होतीं हैं ,यदि आप वजन कम करना चाहतें हैं तो इस सम्पूरण के साथ स्वास्थ्यकर खुराक भी लीजिये कसरत भी कीजिएगा नियमित ।
बिना डॉक्टरी नुश्खे के मिलने वाली "ओवर दी -काउंटर ड्रग एल्ली"जो नुश्खे के साथ ही मिलने वाली दवा "ओर्लिस्तेत "से आधा शक्ति की ही है यह साफ़ हिदायतें देती है यह दवा डाइटिंग और कसरत के असर से कम होने वाले वेट लोस का स्थानापन्न नहीं है इनके असर में वृद्धि कारक है ।
एल्ली के साथ आपको "लो फैट डाइट "पर बने रहना होगा किसी भी समय के भोजन में १५ ग्रेम से ज्यादा चिकनाई रखने रहने पर आपको अवांछित ,अरुचिकर ,खराब प्रभावों को झेलना पडेगा क्योंकि एल्ली आपकी अंतड़ियों कोखुराकी चिकनाईकी फ़ालतू मात्रा को ज़ज्ब करने से रोकती है .
ज्यादा चिकनाई का इस दवा के साथ सेवन पेट में अफारा ला सकता है .यु मे फील ब्लोटिद एंड इविन स्टेन देम्सेल्व्स।
ज़ाहिर है एल्ली लेनी है तो खुराक में भी तरमीम करनी होगी ,बदलना होगा खुराक को .

मिथ या यथार्थ :वेट लोस पिल्स और संपूरक .

मिथ्स अबाउट वेट लोस :हेल्थ .कॉम
मिथ :ग्रीन टी सप्लीमेंट्स बर्न फेट्स ।
यथार्थ :माहिरों के अनुसार हरी चाय का सत(सार ,ग्रीन टी एक्सट्रेक्ट )वजन घटाने में सहायक हो सकता है .लेकिन ग्रीन टी सम्पूरक लेते रहने तथा इक कप के बाद दूसरा ग्रीन चाय का प्याला ,फिर,....फिर .... तीसरा..... दिन भर गटकते रहने से कुछ ख़ास होना हवाना नहीं है .वजन अस्थाई तौर पर ही घटता है ।
जो भी असर आप देखतें हैं इस दिशा में उसके पीछे केफीन का हाथ होता,है बेशक वेट लोस के पीछे इक और यौगिक "ई जी सी जी "यानी एपिगाल्लो -केट-चिन- गालेट"का भी कुछ न कुछ हाथ हो सकता है ।
माहिरों के अनुसार कोई भी उत्तेजक पदार्थ तभी आपका वजन कम करने में सार्थक भूमिका निभा सकता है ,केलोरीज़ बर्न करवा सकता है आपसे जब यह आपको चलते फिरते रहने पर विवश कर दे .इक जगह टिक के बैठा ही न रहने दे .और ग्रीन टी में खासी मात्रा होती है केफीन की .
लेकिन यदि आप केफीन के प्रति संवेदी हैं ,तब आप इनसे दूरी ही बनाए रहें क्योंकि इनका अतिरिक्त सेवन आप के दिल को दवाब में ला सकता है .दिल की धड़कन और लय को असर ग्रस्त कर सकता है .नींद भी आपकी हराम कर सकता है .

मंगलवार, 29 मार्च 2011

कैसे बनती थी रेबीज़ वेक्सीन तब ?

१८८५ में लौइस पास्तयूर ने रेबीज़ वेक्सीन की खोज की .तबसे (१८८५)लेकर १९७० तक इसे "ग्राउंड -अप -एनीमल ब्रेन्स "तथा "स्पाइनल कोलम" से ही तैयार किया जाता रहा .
तब यह दर्दनाक तरीके से खतरनाक भी थी क्योंकि १००० लोगों में से किसी एक को गंभीर किस्म के न्युरोलोजिकल डेमेज का सामना भी करना पड़ता था .इतनी असरकारी भी न थी यह वेक्सीन इसीलिए टीके भी २१ लगवाने पड़ते थे जो अपने आप में काफी पेनफुल (पीड़ा दायक )होते थे ।बच्चों को टीके भी पेट में लगते थे .
१९७० के बाद से इसे सेल कल्चर के द्वारा कमज़ोर किये जा चुके रेबीज़ के विषाणु से ही तैयार किया जाने लगा ।
अब लेदेके टीके भी तीन या चार लगवाने पडतें हैं(दो हफ्ते में कोर्स पूरा हो जाता है ) जिन्हें बाजू की ऊपरी हिस्से और जांघ के ऊपरी हिस्से में भी लगा दिया जाता है ।अलबत्ता इम्यून सिस्टम कमज़ोर होने पर पूरे पांच टीके २८ दिनों में लगाए जातें हैं .
टीके सुरक्षित है अगर समय से लग जाएँ तो सौ फ़ीसदीअसर रहता है .अलबत्ता टीकों की कोल्ड चैन बनी रहनी चाहिए .

फॉर शोट्स एनफ तू वार्ड ऑफ़ रेबीज़ .

फॉर शोट्स एनफ टू वार्ड ऑफ़ रेबीज़ :हेल्थ .कॉम ,मार्च २८ ,२०११ ।
शिशु रोग के माहिरों के सबसे बड़े संगठन ने अब रेबीज़ वायरस से संक्रमित होने के बाद इलाज़ के बतौर ज्यादातर मामलों में चार टीके ही देना पर्याप्त बतलाया है अलबत्ता जिन बच्चों की रोग प्रति रक्षा प्रणाली कमज़ोर है उन्हें पांच टीके ही पूर्वत लगते रहने चाहिए २८ दिनों में ।बाकी को दो हफ्ते में चार बल्कि तीन टीके भी पर्याप्त रहेंगें .
२०,००० -४०,००० अमरीकियों को एनीमल बाईट के बाद ये टीके हर साल लगवाने पडतें हैं .कुलमिलाकर टीका समय से लगजाने के कारण २-३ अमरीकी ही रेबीज़ वायरस से हर साल संक्रमित हो पातें हैं ।
ऐसा होने पर इक तरफ पार्श्व प्रभावों अवांछित साइड इफेक्ट्स यथा हाइव्ज़ और स्वेलिंग से निजात मिलेगी दूसरी तरफ वेक्सीन की २००९ की तरह कमी भी नहीं महसूस होगी . राज्य का स्वास्थ्य सेवाओं पर कुल मिलाकर १७ मिलियन(सालाना ) डॉलर कम खर्च आयेगा .
रेबीज़ का विषाणु दिमागी सूजन (ब्रेन स्वेलिंग )की वजह बनता है जो अकसर घातक साबित होती है .लेकिन प्रचलित वेक्सीन जो अब सेल कल्चर के ज़रिये "वीकिंडरेबीज़ वायरस "से बनाई जारही है इक दम से सुरक्षित है अमरीका में ८०%मामलों में "बैट-बाईट "/छोटी चूहे चुहियों की साइज़ की चमका -दड के काटने के बाद लोगों को टीके लगवाने पडतें हैं ज्यादातर मामलों में तब जब यह माउस के आकार का प्राणी घर में घुस आता है और इसे निकालने की कोशिश की जाती है .
इसके नन्ने नुकीले दांत इक "स्तेपिल वुंड" छोड़ जातें हैं जिनका पता भी बा -मुश्किल ही चलता है .इसलिए ख़ास कर बच्चों के लिए इनसे दूरी ही भली ।
वाइल्ड एनिमल्स की खूबसूरती की सराहना कीजिये लेकिन एक सुरक्षित दूरी बनाए रहिये यही हिदायत बच्चों को दी जानी चाहिए जिनकी छोटी कद काठी उनके लिए ज्यादा बड़े खतरे पैदा कर देती है ,चम् -का -दड गले या चेहरे पर कब काट जाती है खबर ही नहीं रहती बच्चों को ।
अलबत्ता १९५० के बाद से पालतू कुत्तों को ही नहीं कई अमरीकी राज्यों में बिल्लियों को भी रेबीज़ बचावी टीके लगने लगें हैं .भारत में रेबीज़ की वजह बन्दर भी बनतें हैं जिनका प्रकोप शहरों में बरपा रहता है .साउथ ब्लोक में भी .,फाइल्स देख जातें हैं आकर बन्दर .
एक साधाराण उपाय है जख्म को फ़ौरन कुछ न मिले तो कपडे धोने साबुन से ही धौ लिया जाए .खूब रगड़ रगड़ के .
टीके ज़रूर लगवाये जाएँ क्योंकि एनीमल पर हमेशा नजर बनाए रहना मुमकिन ही नहीं होता .कुत्तों की बिल्लियों की बंदरों की भेड़ियों की लार में रहता है रेबीज़ का विषाणु जो काटे जाने के बाद सर्क्युलेशन में शामिल हो जाता है .

सुपरबग फ़ाउंड इन केलिफोर्निया होस्पितल्स .

दक्षिणी केलिफोर्निया के अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में इन दिनों वह" सुपर बग" जिसका सम्बन्ध अब तक ईस्ट कोस्ट से ही जोड़ा जाता रहा है बेहद के मामलों में मिल रहा है ।
गतवर्ष ७ माह में ही इसके ३५६ मामले लोसेंजीलीज़ काउंटी में सामने आये थे .जिसका नाम है "सी आर के पी "यानी -कार्बा-पेनेम -रेजिस -टेंट -क्लेब्सिएल्ला न्युमोनी "-स्रोत लोसेंजीलीज़ काउंटी का स्वास्थ्य विभाग .
हेल्थ केयर फेसिलितीज़ के तहत आने वाले तमाम अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में ही ये तमाम मामले दर्ज़ हुएँ हैं इन सुविधाओं से बाहर नहीं ।
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक़ "सी आर के पी "के मौजूद होने की पुष्टि ३६ अमरीकी राज्य कर चुके हैं बाकी १४ में भी इसकी उपस्थिति का अंदेशा स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को पूरा है जिसके लिए अलग से किसी साक्षी ,प्रमाण की ज़रुरत नहीं है ।
लेदेकेएक ही एंटीबायोटिक"कोलिस्तिन" इसके खिलाफ असरकारी साबित हो रहा है वह भी हमेशा अपना प्रभाव नहीं दिखलाता है ,किडनी डेमेज की भी वजह बन सकता है .-स्रोत सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ।
अभी यह अनुमेय ही है कितने लोग इस सुपर बेक्टीरिया की वजह से मारेंगएँ हैं लेकिन पिछली दफाके आउट -ब्रेक में ३५%म्रत्यु दर रही थी ।
सोसायटी फॉर हेल्थ केयर एपिदेमियोलोजी ऑफ़ अमेरिका की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार संक्रमण की दर अ-प्रत्याशित तौर पर बहुत ज्यादा है .
इसके व्यापक प्रसार की वजह क्या रही है फिलवक्त यह अनुमेय ही है .एक बात साफ़ है उम्र दराज़ उन लोगों में जिनके साथ और जिनका शरीर अनेक व्याधियों का घर बन गया है जो केथीटर और रेस्पीरेटर अन्य बाहरी ट्यूब्स पर देर से चल रहें हैं उनके लिए जोखिम इस संक्रमण का और भी ज्यादा है .
अमरीका ,ग्रीस और इजराइल से इसके व्यापक प्रसार की खबर है ।
एक ही परिवार में इसके संक्रमण की जोखिम और भी ज्यादा है ,एक तरफ यह एंटीबायोटिक -प्रति -रोधी है (एंटीबायोटिक रेज़िस्तेंत है )दूसरी तरफ मारक भी है . बेहद लीथल है .
समाधान :
केथीटर और वेंटी -लेटर्स आदि को जल्दी से जल्दी हटा लिया जाए ।
बार बार नर्सिज़ और डॉ को हाथ धोने चाहिए ,दस्ताने पहने हैं तो भी उन्हें उतारने के बाद हाथ धोना ही है ।
योगर्ट में गुड बेक्टीरिया है इसका सेवन बचावी चिकित्सा साबित हो सकता है इस लीथल सुपर बग के खिलाफ .

व्हाट इज ए सुपर बग?

ए सुपर बग इज एनी बग देट इज एंटीबायोटिक्स रेज़िस्तेंट .यानी कोई भी ऐसा जीवाणु जो एंटीबायोटिक दवाओंसे बे -असर ,बे -खबर रहे .डॉ एक के बाद एक एन्तिबाय्तिक मरीज़ को दें और वह असर ही न करें।
इन दिनों यह सुपर बग फिर चर्चा में है .इस मर्तबा वेस्ट कोस्ट इसकी चपेट में है .लोसेंजीलीज़ में गत सात महीनों में २५६ मामले प्रकाश में आयें हैं ,३६ अमरीकी राज्यों में इसकी इत्तल्ला मिली है बाकी १४ में भी यह हो सकता है .
इजराइल में इससे मृत्यु दर ४४%रही है जहां स्वास्थ्य सेवायें अच्छी समझी जातीं हैं .अमरीका के अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में इसकी दस्तक है ।
केथीटर या किसी भी ट्यूब का बॉडी में बने रहना इससे संक्रमण के मौके बढा देता है ।
उपाय यही है जल्दी से जल्दी (एज सून एज पोसिबिल यानी ए एस ए पी )इन बाहरी उपायों को हठा दिया जाए ।
डॉ और नर्सें बारहा हाथ धोएं,दस्ताने पहने हों तो भी हाथ ज़रूर धोएं ।
योगर्ट में अच्छे अच्छे जीवाणुओं (प्रो -बायोटिक्स )का डेरा है जो इस सुपर बग से बचाव में सहायक हो सकता है जिसके खिलाफ फिलवक्त एक ही दवा असर कर रहीं है वह भी पूरी तरह नहीं .इस दवा का नाम है "कोलिस्तिन"लेकिन यह भी किडनी डेमेज की वजह बन सकती है .सुपर्बग का नाम है "सी आर के पी "।
पहली बार जब यह व्यापक स्तर पर फैला था तब मृत्यु दर रही थी ३५ % इस मर्तबा लोसेंजीलीज़ काउंटी में कितनी म्रत्यु दर रही है इसका अभी कोई निशचय नहीं है .(ज़ारी...).

सोमवार, 28 मार्च 2011

मधुमेह रोगियों के लिए धूम्रपान और भी बुरा क्यों हैं ?(ज़ारी...)

मधुमेह रोगियों के रक्त के नमूने जांचने पर पता चला है इनमे से जो स्मोक करते हैं उनके रक्त में "हीमो -ग्लोबिन -ए १ सी "(एचबी ए १ सी )का स्तर ३४% बढ़ जाता है .
(निकोटिन +व्हेन ह्यूमेन ब्लड सेम्पिल्स) रेज्ड लेविल्स ऑफ़ हीमोग्लोबिन -ए १ -सी बाई ३४ % .
हीमोग्लोबिन ए १ सी इक संयोग है हीमोग्लोबिन (जो कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचाता है )और ग्लूकोज़ का .यह इक मानक (मान्य )सूचक है शरीर में ब्लड सुगर की मौजूद मात्रा का ।
अध्ययन का यह भी सार है ,यदि आप धूम्रपान करतें हैं तब आपको मधुमेह होने का ख़तरा और भी बढ़ जाता है .
पहले से मधुमेह होने पर मधुमेह केसाथ पैदा तमाम जटिलताएं बढ़ जातीं हैं .यथा अंधत्व ,नर्व डेमेज ,गुर्दे की खराबियां ,दिल की बीमारियाँ आदि ।
जैसे जैसे रक्त में हीमोग्लोबिन ए १ सी का स्तर बढ़ता जाता है ,वैसे ही वैसे उन तमाम प्रोटीन कोम्प्लेक्सिज़ के बनने की संभावना भी बढ़ जाती है जो आँखों से लेकर दिल ,ब्लड वेसिल्स तक तमाम अंगों में ब्लोकेज (रक्त के अवरोध ,ब्लोकेजिज़ इन सर्क्युलेशन )पैदा कर तें हैं .
निकोटिन पैचेज़ और निकोटिन युक्त इलेक्ट्रोनिक सिगरेट्स भी दिखावे की तीहल साबित होतें हैं ,डायबिटीज़ में इनका स्तेमाल निरापद होना रहना तो दूर ,ये तमाम निकोटिन सब्स्तित्युट्स भी ए१ सी का स्तर बढा तें हैं क्योंकि निकोटिन तो इनमे अब भी है ।
इक ही उपाय है डायबिटीज़ और डायबिटीज़ से देर सवेर पैदा होने वाली तमाम जटिलताओं से बचाव का सिगरेट छोड़ दी जाए .
फेड के तहत पहली सिगरेट हरगिज़ हरगिज़ न सुलगाई जाए पीयर प्रेशर में आके .

व्हाई स्मोकिंग इज स्पेशियली बेड इफ यु हेव डायबिटीज़ ?

यूं तो स्मोकिंग सभी के लिए खतरनाक है लेकिन मधुमेह रोगियों या हाई -रिस्क ग्रुप के लिए सिगरेट की लत (पहली सिगरेट ही सुलगाना काफी है इसके लिए )सेहत के लिए गंभीर झमेले ,जटिलताएं पैदा कर सकती है जिसका आम -ओ -ख़ास को जरा भी इल्म नहीं है ।
ऐसे रोगियों के लिए जो मधुमेह के साथ धूम्रपान ज़ारी रखते हैं रोग पर नियंत्रण रखना मुश्किल रहता है ऐसे में सहज ही जटिलताओं के जोखिम का वजन और भी बढ़ जाता है इनमे अंधत्व ,नर्व डेमेज ,किडनी फेलियोर से लेकर दिल की बीमारियों के अलावा और भी बहुत कुछ है .कैंसर फेफड़े का ।
नाव ए न्यू स्टडी ऑफर्स दी मोस्ट देफिनितिव एविडेंस व्हाई :"दी निकोटिन इन सिगरेट्स "(ज़ारी ....)

कुड यु हेव डायबिटीज़ टाइप-२ ?

ब्लड टेस्ट्स :कई किस्म के परीक्षण हैं लेकिन केवल इक बार खून की डायबिटीज़ के लिए जांच कराने से कुछ ख़ास पता नहीं चलता .कई बार होने चाहिए ये परीक्षण आवधिक तौर पर रोग की पुष्टि के लिए .
इनमे से ही इक है फास्टिंग प्लाज्मा टेस्ट (ब्लड सुगर फास्टिंग जिसमे कमसे कम ८ घंटे की फास्टिंग ज़रूरी है टेस्ट करवाने से पहले )।
ब्लड ग्लूकोज़ का उपर्युक्त परीक्षण में "एबव १२६ मिलिग्रेम पर डेसीलिटर"से ऊपर आना दो बार के परीक्षण में मधुमेह रोग की पुष्टि करता है .
दी नोर्मल कट ऑफ़ इज ९९ मिलिग्रेम /डेसीलिटर ।
ब्लड सुगर फास्टिंग का स्तर १००-१२५ मिलिग्रेम /डेसीलिटर आना रहना प्री -डायबिटीज़ /प्री -डायबेटिक होने का संकेत है .

कुड यु हेव डायबिटीज़ टाइप -2 ?

टिंग -लिंग और नाम्ब्नेस : हाथ पैरों में झुन्झ्नी (झुन -झुनाहट),सुन्नी ,सो जाना हाथ पैरों का ,जलन और सोजिश (इन्फ्लेमेशन ,सूजन )नाड़ियों यानी नर्व्ज़ के डेमेज होने का संकेत है .यदि हाल फिलाल ही ऐसा हुआ तब यह लक्षण गायब हो जाएगा लेकिन यदि ब्लड सुगर बढा हुआ बना रहता है और आपको इसकी खबर भी नहीं है तब यह लक्षण स्थाई तौर पर बना हुआ भी रह सकता है ।
न्यूरो -पैथी या नर्व डेमेज परमानेंट भी हो सकता है सब कुछ आपके बा -खबर और आपकी रोग के प्रति खबरदारी और रोग के प्रति गंभीरता पर निर्भर करता है .
इसीलिए लक्षणों के पता चलते ही रोग निदान और ब्लड सुगर का नियंत्रित बने रहना ज़रूरी समझा जाता है .९० % मामलों में लोगों को इसका पता ही नहीं चलता रोग बढ़ता रहता है साथ में नुकसानी भी सभी प्रमुख अंगों की .

कुड यु हेव डायबिटीज़ टाइप -२ ?

फटीग एंड इर्री -टेबि -लिटी:
इक तरफ रात को बार बार टोइलेट जाने (पेशाब के लिए नींद में उठने )से दूसरी तरफ शरीर में ग्लूकोज़ की कमीबेशी बने रहने से शरीर थका थका सा मन बीमार सा अपने को महसूस करने लगता है .हाई - ब्लड सुगर लेविल बने रहने पर जिसकी आपको खबर भी नहीं है तबीयत ठीक न होने का एहसास सालता रहता है .
थकान जो लगातार बनी रहती है आदमी को चिडचिडा बना देती है ।
ये सब लक्षण डायबिटीज़ के ही हैं , रोग निदान और इलाज़ शुरू होने के बाद ही आपको इल्म होता है आप कितना थका मांदे चिडचिडे रहने लगे थे ,तब जब इलाज़ शुरू होने पर ब्लड सुगर लेविल काबू में रहने लगता है ,नीचे आजाता है स्वीकृत मानदंडों के अनुरूप .
ब्लरी विज़न :
हेविंग डिस -टोर्तिद विज़न एंड सीइंग फ्लोटर्स और अकेज्नल फ्लेशिज़ ऑफ़ लाईट आर ए डायरेक्ट रिज़ल्ट ऑफ़ हाई ब्लड सुगर लेविल ।
धुंधला दिखना इस बात का संकेत है खून में बढ़ी हुई शक्कर के स्तर ने जिसका आपको इल्म ही नहीं है ,आपकी आँखों के लेंस की आकृति ही बदल दी है इसकी कोंवेग्ज़िती ,तब्दील हो गई है ,लेकिन ब्लड सुगर का स्तर सामान्य हो जाने पर लेंस फिर से यथावत हो जाता है ,बा -शर्ते आपकी ला -परवाही (रोग निदान न होपाने की वजह से )बहुत देर न हो गई हो और इस दौरान खून में शक्कर बेतरह बढ़ी हुई ही रही हो .देरी अंधत्व की और ले जाती है ब्लड सुगर के बढे रह जाने पर .इसलिए इन लक्षणों के प्रकट होते ही ब्लड सुगर की जांच करवाइए .

कुड यु हेव डायबिटीज़ -टाइप -२ ?टेन साइंस ऑफ़ डायबिटीज़ .

यीस्ट इन्फेक्सन :
डायबिटीज़ इज कंसी -दर्ड ए इम्यूनो -सप्रेस्द स्टेट ,देत मीन्स हाई -टिंड ससेप्तिबिलिती टूए वेरायटी ऑफ़ इन -फेक्संस ।
ऐसे में कैन -डिडा या यीस्ट संक्रमण ,फंगल रोग संक्रमण होना सबसे आम है . वजह फफूंदी और जीवाणुओं (फंगी एंड बेक्टीरिया )को सुगर -रिच एन-वाय्रंमेंट्स में पनपनेका खुलके मौक़ा मिलजाता है .फिर चाहे वह वेजिनल इन्फेक्सन हो या किसी और किस्म का रोग संक्रमण ।डायबिटीज़ में तो मूत्र भी मीठा हो जाता है .
यीस्ट इन्फेक्सन ?
इट इज एन ओवर -ग्रोथ ऑफ़ ए फंगस इन दी वेजाइना ,इन्टेस -टा -इन्स ,स्किन ऑर माउथ.,कौजिंग इर्रिटेशन एंड स्वेलिंग .

कुड यु हेव टाइप -२ डायबिटीज़ ?टेन साइंस ऑफ़ डायबिटीज़ .(ज़ारी ....)

स्लो हीलिंग ,यानी किसी भी खरोंच ,कट ,घाव आदि का देरी से भरना :
इन्फेक्संस ,कट्स एंड ब्रुइसेस देट डोंट हील कुइक्ली आर एनादर क्लासिक साइन ऑफ़ डायबिटीज़ .चमड़ी का रोग संक्रमण ,अन्य रोग संक्रमण ,खरोंच घाव आदि का देर से भरना मधुमेह टाइप -२ का इक और लक्षण हो सकता है ।
यह इसलिए होता है क्योंकि शिराओं और धमनियों में अतिरिक्त ग्लूकोज़ प्रवाहित होते रहने से ब्लड वेसिल्स (रक्त वाहिकाएं )ही नष्ट होने लगतीं हैं डेमेज हो जाती है ।
ऐसे में घाव भरने के लिए पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं होपाती है .खून शरीर के सभी भागों में यथावत नहीं पहुँच पाता है .(ज़ारी ...)

कुड यु हेव टाइप -२ डायबिटीज़ ?टेन साइंस ऑफ़ डायबिटीज़ .

स्किन प्रोब्लम्स (चमड़ी से सम्बंधित समस्याएं ):
चमड़ी का सूखापन और रक्त प्रवाह (सर्क्युलेशन )में कमीबेशी चमड़ी को इची (खुजली तलब )बना सकता है .यह भी इक लक्षण डायबिटीज़ का हो सकता है ।
अकान्थोसिस तथा निग्रिकान्स का होना आम बात है..ऐसाहोने पर गर्दन के केआसपास की चमड़ी गहरा रंग इख्तियार करने लगती है ,डार्क होने लगती है कलौंच लिए .बगल के आसपास (आर्म -पिटएरिया )भी यह डार्क्निंग चमड़ी की दिखलाई दे सकती है .

यह इंसुलिन rezistens proses ke shuru ho jaane kee tarf ishaaraa hai .aisaa hone par bld sugar jaanch karvaani chaahiye .

"People who have this already have the "insulin resistance "
अक्रिंग इविन दो देयर ब्लड सुगर माईट नोट बी हाई .ये लक्षण दिखलाई देने पर ब्लड सुगर जांच करवानी चाहिए .ये लक्षण इंसुलिन रेजिस्टेंस शुरू हो जाने से ताल्लुक रखतें हैं ।
अकान्थोसिस क्या है ?
अकान्थोसिस इज एन इनक्रीज इन दी नंबर ऑफ़ प्रिकिल सेल्स इन दी इनर मोस्ट लेयर ऑफ़ दी एपिडर्मिस .,लीडिंग टू थिक्निंग ऑफ़ दी एपिडर्मिस ।
अकंथोसिस निग्रिकान्स इज असोशियेतिद विद इंसुलिन रेजिस्टेंस .इट इज करेक्तराइज़्द बाई पपिलो -मटासग्रोथ्स मेनली इन दी आर्म्पिट्स गिविंग दी स्किन ए पिग्मेंतिद एपियरेंस एंड ए वेल्वेटी टेक्सचर ।(ज़ारी...)

कुड यु हेव टाइप २ डायबिटीज़ ?(ज़ारी...)

कुड यु हेव टाइप टूडायबिटीज़ ?(ज़ारी ....)गत पोस्ट से आगे ........
यदि आप खासकर रात को बार बार पेशाब के लिए उठतें हैं ,तब यह लक्षण डायबिटीज़ का भी हो सकता है ।
हमारे गुर्दे ऐसा होने पर जो फ़ालतू ग्लोकोज़ है उसे सिस्टम (शरीर )से बाहर निकालने का काम करतें हैं .ज़ाहिर है ऐसे में गुर्दों का काम बढ़ जाता है .काम करने की ग्लूकोज़ को संभालने की उनकी ऊपरी सीमा आजाती है .
ज्यादा प्यास का मतलब है ,आपका शरीर जो तरल शरीर से बाहर जा चुका है उसकी भरपाई का प्रयास कर रहा है ।
ये दोनों लक्षण साथ -साथ चलतें हैं जिसका मतलब है आपका शरीर हाई ग्लूकोज़ को ठिकाने लगाने के उपाय ढूंढ रहा है .
(२)मधुमेह का एक और पहचाने जाने लायक लक्षण है शरीर से आवश्यक पदार्थों की ब्लड ग्लूकोज़ के बढ़ जाने की वजह से निकासी फलस्वरूप दो से तीन माह के भीतर ही वजन का १०-२० पोंड्स तक घट जाना .यह कोई खुश होने की बात नहीं है क्योंकि यह कोई शुभ लक्षण नहीं है आकस्मिक वेट लोस ।
(३)बेहद भूख का लगना मधुमेह का एक और लक्षण हो सकता यह ब्लड सुगर में आकस्मिक उछाल और गिरावट का नतीजा होता है ।
ब्लड सुगर गिर जाने पर शरीर को लगता है उसकी ऊर्जा की आपूर्ति ठीक से नहीं हुई है ऐसे में कोशिकाएं अतिरिक्त ऊर्जा की मांग करतीं हैं .(ज़ारी ....).

कूद यु हेव टाइप 2 डायबिटीज़ ?१० डायबिटीज़ सिम्टम्स.

२ करोड़ चालीस लाख अमरीकी डायबिटीज़ से ग्रस्त हैं .कुल एक करोड़ अस्सी लाख को इसकी खबर है की वह मधुमेह -२ से ग्रस्त हैं ।
भारत में फिलवक्त साढ़े सत्रह करोड़ लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं कितनो को इसकी खबर है इसका फिलवक्त कोई निश्चय नहीं .
अलबत्ता कुल मधुमेह ग्रस्त लोगों में से ९० फीसद मधुमेह -२ से ग्रस्त हैं .बात अमरीका की है .भारत की स्थिति क्या होगी सहज आनुमेय है .
इन डायबिटीज़ राय-जिंग ब्लड सुगर एक्ट्स एज ए पोइज़न :
लोग अकसर इसके लक्षणों से रोग ग्रस्त हो जाने के बाद भी ना -वाकिफ बने रहतें हैं इसीलिए इसे "सायलेंट किलर /घातलागाकर मारने वाला रोग भी कह देतंहैं .
इस सबसे बचने का आसान तरीका है एक उम्र (३० साल )के बाद आप ब्लड सुगर जांच करवा लें .भारत मधुमेह की सबसे बड़ी मंडी बनने जा रहा है .जीवन शैली और हालात ही ऐसे बन गए हैं .इसलिए आपको यदि ये दस लक्षण रोग के नजर आतें हैं तब अपने डॉ .से मधुमेह के माहिर से फ़ौरन मिललें .(ज़ारी .....).

स्योर शोट :१३ वेज़ तू रिड्यूस योर वेट .(ज़ारी...)

एड्ड "ऑन दी साइड प्लीज़ "तू योर वोकेब्युलरी ।
(८)केलोरीज़ सेविंग्स :रिक्वेस्तिंग सैलड ड्रेसिंग्स एंड सौ-सीज ऑन दी साइड (व्हेयर यु कैन कंट्रोल दी अमाउट एडिड टू योर फ़ूड )कैन सेव अपटू ४०० केलोरीज़ .
(९)केलोरीज़ सेविंग्स :हुज़ूर रोज़ घर का पका खाना ही खाइए .एक दिन में १०० ० केलोरीज़ के हिसाब से आप कम खाइएगा ।
रेस्तौरेंट्स का खाना प्रति सर्विंग्स ज्यादा होता है ,केलोरी डेंस होता है ,वसा ,शक्कर और सोडियम से सना होता है .परिष्कृत चीज़ें परिष्कृत खाद्यान्नों से तैयार की जातीं हैं रेस्तरा में .अंदाज़ा लगा लीजिये कितनी मर्तबा महीने भर में आप बाहर खातें हैं .इसे १००० से गुना कर दीजिये ।
२५०० केलोरीज़ का मतलब होता है एक पोंड ।
(१०)बटर आयल की जगह "कुकिंग स्प्रे "को दीजिये :केलोरीज़ सेविंग्स ,१०० केलोरीज़ ।
घर में भी खाना बना रहें हैं तो इस मुगालते में मत रहिएगा ओलिव आयल है या कोई और हार्ट फ्रेंडली आयल है ,आयल .आखिर आयल ही है .कम से कम तेल फ्राइंग पैन में छोडिये ,जीरो आयल कुकिंग का दौर है यह ,स्वाद मसालों में है न की किसी ख़ास ब्रांड के तेल में ,सभीतेल (म्युफा ,प्युफा ,सेच्युरेतिद ) एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं ,मोडरेशन इज दी की .
(११).मेक बाल्समिक विनेगर दी स्टार ऑफ़ योर सैलड :केलोरीज़ सेव्ड ,२०० केलोरीज़ ।
आयल और विनेगर ड्रेसिंग्स में कम तेल का स्तेमाल ही बेहतर है ।
बाल्समिक विनेगर स्वाद और सुगंध से भरपूर है ,केलोरीज़ से नहीं .आपको स्वाद में फर्क पता भी नहीं चलेगा भनक भी नहीं पड़ेगी ,तेल के उदार प्रयोग में कटौती की गई है ।
(१२)दादी माँ जिस प्लेट में खाती थी /है :याद कीजिये उस दौर को उस साइज़ को ।
जैसे जैसे प्लेट्स का आकार बढा है वेस्ट लाइन भी बढ़ी है .वेस्ट टू हिप रेशियो में फर्क पड़ा है ।
१२ इंची प्लेट की क्या ज़रुरत है जब नौ इंची भी है और कम जगह घेरती है .ज्यादा भरी हुई दिखती है कम सामिग्री से भी ।
हर मर्तबा के खाने में आप ९ इंची प्लेट के चलन के साथ ३००-६०० केलोरीज़ कम खायेंगे ।
(१३)ज़रा खुद से बात कीजिये ,जरा सोचिये,कुछ भी खाने से पहले :केलोरीज़ सेव्ड ,दी स्काई इज दी लिमिट ।
हमें भूख लगती है क्या हम तभी खातें हैं ?
या फिर आदतन कई मर्तबा तनाव कम करने कई और दफा बोरियत को ख़त्म करने भर के लिए कई और मर्तबा कम्पनी सेक खा लेतें हैं ।
क्या आपको वास्तव में भूख है ?
तीन घंटे तो पेट को खाली रखिये .
या खुद से जनम जनम का वैर है ?

रविवार, 27 मार्च 2011

स्युओर शोट :१३ वेज़ टू शेव ऑफ़ एक्सेस केलोरीज़ .

मुआफ कीजिएगा ये कोई डाइट -रट नहीं है आज़माके देख -लीजिएगा हुज़ूर .बोरिंग सौदा नहीं है प्रायोगिक है इसीलिए दिलचस्प भी .
(१)केलोरीज़ सेव्ड अपटू ३६० केलोरीज़ :
अमरीकी जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रीशन में प्रकाशित इक अध्ययन के अनुसार ब्रेड में प्युरीद (स्ट्रैंड )फूलगोभी ,स्क्वाश (घीया ,तोरई वर्ग की तरकारियाँ )या फिर गाज़र तथा इन्हीं तमाम चीज़ों का केसीरोल और पास्ता में स्तेमाल करने से (कमसे कम कुल आयतन भार का इक चौथाई मात्रा में )इक तरफ खुराक में रेशे बढतें हैं दूसरी तरफ केलोरीज़ कम रहतीं हैं .जायका और टेक्सचर जस का तस बना रहता है ।
(२)हम्मस (डिप)औसतन खुराक में २५० केलोरीज़ कम कर सकता है ,मेयो ,रेंचआदि हाई सलाद ड्रेसिंग्सकी जगह इसे ही दीजिये .रेशे भी ज्यादा .भूख शांत होने का एहसास भी ज्यादा .देर से भूख लगेगी ।
(३)प्रति केलोरीज़ ७०-१२० केलोरीज़ आप आसानी से घटा सकतें हैं बस चीज़ को रहने दीजिये सैन विच का स्वाद वैसा ही रहेगा हफ्ते भर में ही आप ५०० केलोरीज़ कम खायेंगे ।
(४)केलोरीज़ सेविंग्स पर वन हाल्फ कप :१७५ केलोरीज़ .
कम वसा युक्त प्लेन ग्रीक योगर्ट को तरजीह दीजिये .सॉर क्रीम का मज़ा भी लीजिये .कोई अतिरिक्त केलोरीऔर फैट की लोडिंग भी नहीं .
(५)कोफी ड्रिंक्स ,सोडा ,स्मूदीज़ को ताकपे रख दीजिये .दिन भर में ५००- ७०० केलोरीज़ खुराक में से हट जायेगी .
(६)बस कोफी में "हाल्फ एंड हाल्फ एंड नॉन -डेयरी क्रीमर्स मत लीजिये .चीनी भी नहीं लेंगे तब १०० केलोरीज़ और कम कर लीजिएगा ।
(७)ओर्डारिंग चिल्ड्रन्स मेन्यु आइटम्स फ्रॉम फास्ट फ़ूड रेतोरेंट्स :जानतें हैं ऐसा करने पर आप आइसक्रीम पार्लर तक जायेंगे ज़रूर लेकिन ,"किड्डी कप्स" का ही ऑर्डर करेंगे ,केलोरीज़ बचायेंगे आप १७० .(ज़ारी...)

व्हाट इज ए रेड हैरिंग ?

व्हाट इज ए रेड हैरिंग ?
किसी अपराध कथा ,रहस्य मूलक कथानक में एक ऐसे पात्र को प्रवेश दिलावाना जिसका मूल अपराध या कथा से कोई लेना देना न हो साहित्य में "रेड हेरिंग" कहलाता है .यह पाठकको मिसलीड करने जैसा होता है .
भारत में आरुशी हत्या काण्ड में कितने रेड हेरिंग आये भी और गए भी सी बी आई को अभी भी इल्म नहीं .परिश्थिति जन्य साक्ष्य ही अब तलवार दम्पति को सूली पर लटका रहा है जांच की ।
रहस्य रोमांच की फिल्मों में (बीस साल बाद ,गुमराह ,वो कौन थी ,महल )अकसर कथाकार रेड हेरिंग बुनता है । उन्हें विश्वशनीय बनाकर प्रस्तुत करता है ।
एडवेंचर गेम्स और पज़ल्स में अकसर रेड हेरिंग्स की दखल रहती है ।
राजनीति में तो यह रोज़ का खेल है किसी की हांडी किसी और के सिर पे फोड़ना .कोमन वेल्थ गेम्स ने कलमाड़ी को ",रेड हेरिंग" बना दिया जबकि वह खुद सी बी आई जांच की मांग करते रहें हैं ताकि दूध का दूध पानी का पानी हो जाए.अपनी शेव बनाकर साबुन रेड हेरिंग के मुह पर फैंकना राजनीति का शगल है।
वैसे साहित्यिक अभिव्यक्तियों में रेड हेरिंग एक मुहावरे दार अभिव्यक्ति ,एक वर्बा -तम है ,लोकलुभाऊ भाषा और गैर ज़रूरी अलंकरण है शब्दजाल और वाक्पटुता है .मकसद होता है असल बात के इधर उधर बाकी सब कुछ कह -जाना .असल बात का ज़िक्र टाल जाना .

व्हाट इज ए हिंट फिक्शन ?

व्हाट इज ए हिंट फिक्शन ?
यह इक ऐसी साहित्यिक अभिव्यक्ति ,प्रस्तुति है जो लेदेकर २५ लफ़्ज़ों तक सीमित रहती है लेकिन अपने लघु कलेवर में एक लम्बी कथा ,पेचीला प्रबंध काव्य /साहित्यिक कृति की ओरजैसे छिपा इशारा करती है .एक तरह से यह किसी लम्बी फिल्म(मेरा नाम जोकर ,संगम ) के ट्रेलर जैसी .लेकिन यह पाठक को सिर्फ इशारा करती है बताती कुछ नहीं है यह अति -अति -लघुतर कथा .सतसैया के दोहरे सी है यह "हिंट फिक्शन ".(सतसैया के दोहरे ,ज्यों नावक के तीर ,देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर .
यह कथा /कथानक न किसी ख़ास पृष्ठ भूमि की इत्तला देती है ,न किसी ख़ास चरित्र (अभिनेता )की ,उसके किरदार की .सब कुछ पाठक की कल्पना पर छोड़ दिया जाता है ।
बेशक सबसे बड़ा इशारा (कथा /कथानक )की ओर इस हिंट फिक्शन का शीर्षक ही होता है ।
शायद इसी लिए कहा गया है यदि कहानी का आरम्भ उसका प्रवेश द्वार है तो उसका शीषक उस प्रवेश द्वार पर लिखा स्वागतम है .शीर्षक ही हिंट फिक्शन का पाठक को ललचाता है वह सम्बद्ध बड़ी कथा को पढ़े बांचे .

व्हाट इज ए मेल्ट डाउन ?

व्हाट इज ए न्यूक्लीयर मेल्ट डाउन ?
एटमी भट्टी में ईंधन छड़ों के पिघलने को एटमी पिघलाव या न्यूक्लीयर मेल्ट डाउन कहा जाता है .अमूमन ताप रोधी केन्स के (ज़िरकोनियम केन्स )के अन्दर एटमी ईंधन के रूप में युरेनियम या फिर प्लूटोनियम की छड़ों को समायोजित किया जाता है ।
फिसाइल मेटीरियल के रूप में युरेनियम २३८ ,संवर्धित युरेनियम २३५ (जिसमे युरेनियम २३५ एटमों की संख्या ३% तक बढा डी जाती है संवर्धन टेक्नीक से )तथा प्लूटोनियम २३९ आदि का स्तेमाल किया जाता है ।
ब्रीडर रिएक्टर में युरेनियम २३८ रिएक्टर से प्लूटोनियम २३९ प्राप्त कर लिया जाता है ।
ए ब्रीडर रिएक्टर इज वन देत प्रोद्युसिज़ मोर फ्युएल देन इट कन्ज्युम्स .
प्रजनक एटमी भट्टी इक तरह का ईंधन खाती है दूसरी तरह का उगलती है ।
आम तौर पर ईंधन की छड़ों को जो नियंत्रित नाभिकीय श्रृंखला प्रक्रिया (कंट्रोल्ड न्यूक्लीयर चैन रिएक्शन )के तहत खासी गर्म हो जातीं हैं मेल्ट डाउन से बचाने के लिए शीतलन प्रणाली होती है ,कूलेंट्स रहतें हैं .जो फ़ालतू गर्मी को निकालते रहते हैं ।
जापान के फुकुशिमा में ११ मार्च के ज़लज़ले और उसके पीछे पीछे आई सुनामी ने इस शीतलन प्रणाली को ही नष्ट कर दिया .तमाम वाटर पम्पों को ठप्प कर दिया था . बाहर से बिजली लेकर जेन्रेतर्स की मदद से पम्पों को चालू ज़रूर किया गया लेकिन सुनामी ने इसे भी नष्ट कर दिया .वहां बोइलिंग वाटर रिएक्टर बाकायदा ज़िरकोनियम केन्स में था .सुराक्षा के पूरे इंतजाम थे .लेकिन सुरक्षा कभी निर्दोष नहीं रहती .प्रकृति के आगे सब इंतजामात धरे रह जातें हैं .
नतीजा ईंधन छड़े ज़रुरत से ज्यादा गर्मी खाकर पिघलने लगी .मेल्ट डाउन हो गया ।
तभी से रेडियो धर्मी विकिरण रिसाव की समस्या विकत से विकराल होती जा रही है .समुद्री जल में भी इक करोड़ बेक्रील रेडियो -विकिरण चला आया है .
व्हाट इज ए न्यूक्लीयर चैन रिएक्शन ?
ए न्यूक्लीयर चैन रिएक्शन इज वन इन व्हिच डी एनर्जी (न्युट -रोन )स्टार्टिंग दी न्यूक्लीयर रिएक्शन इज अवेलेबिल अट दी एंड ऑफ़ दी रिएक्शन .ऑन दी अवरेज १.६ न्युट -रोंस पर फिशन आर अवेलेबिल व्हिच कीप्स दी रिएक्शन गोइंग ,हेंस दी नेम चैन रिएक्शन .

नै बिकाऊ घडी विज्ञापन में हमेशा १०:१० ही क्यों दिखलाती है .?

व्हाई इज ए न्यू क्लोक टाइम्ड १०:१० ?
इक तरह से यह सेटिंग घडी की, सौन्दर्य बोध को बढाती है .लगताहै घडी मुस्का रही हैखड़ी- खड़ी . समय भी साफ़ साफ़ दिखलाई देता है दस बजकर दस मिनिट .दोनों सुइयां विस्तारित ,दाइवर्ज़्द ,खिले हुए फूल सीदिखतीं हैं सुइयों की इस अवस्थिति में ।
अलावा इसके निर्माता कम्पनी का नाम उसका "लोगो" प्रतीक चिन्ह आदि आप साफ़ साफ़ पढ़ सकतें हैं .ठीक १२ के अंक के नीचे रहती है यह सूचना ।
जबकी तारीख दर्शाने वाली विंडो या तो तीन पर रहती है या फिर नौ पर .लिहाजा तारीख और दिवस का बोध खुले तौर पर हो जाता है .तो ज़नाब ना -हक़ नहीं है यह सब एक विज्ञापनी योजना के तहत ही किया गया है .
सममिति यानी सिमिट्री लिए हुए दूसरी स्थितियां सुइयों की ८, १८ और ८ , २० हो सकतीं हैं लेकिन तब घडी का मुह उलटा नीचे को लटका लटका लगेगा हंसता मुस्काता नहीं ,जबकि ६ की ओर जाता हुआ घडी का एक हाथ टूटा हुआ दिखेगा ।
ऐसे में घडी की गुणवत्ता ही सवालों के घेरे में आजायेगी ।
लिहाजा ओरिजिनल सेटिंग (बाई डिफाल्ट )१०:१० ही तमाम कसौटियों पर खरी उतरती है .

व्हाट इज ए व्हाईट होल ?

व्हाट इज ए व्हाईट होल ?
समय की धार यूनी -डायरेक्शनल है .समय सदैव ही आगे और आगे की ओर ही बढ़ता है .पीछे के नहीं .
ऐसे में सोचने वाली बात यह है एक ऐसे ब्लेक होल की अवधारणा आई कहाँ से जो समय के सन्दर्भ में पीछे की और यात्रा करे ,आगे की और नहीं ?काल का रथ हांक कर पीछी की ओर ले जाए .
दरअसल ब्लेक होल की स्वर्ज़-चाइल्ड्स -ज्यामिति ही कुछ ऐसी है ,इसके निगेटिव और पोजिटिव दोनों हीवर्ग मूल हल (स्क्वायर रूट सोल्यूशन )उपलब्ध हैं ।
यहीं से व्हाईट होल की अवधारणा सामने आई है ।
कह सकतें हैं व्हाईट होल एक ऐसा ब्लेक होल है जिसमे समय का प्रवाह पीछे की ओर ले जा रहा है ,ए व्हाईट होल इज ए ब्लेक होल देटरन्स बेक्वार्ड्स इन टाइम .यानी जिसे ब्लेक होल लील गया था वह लौटाया जा रहा है ."ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया "
सरल भाषा में कह सकतें हैं अन्तरिक्ष की काल कोठारियों ,अन्तरिक्ष के अंध कूपों का विलोम है "व्हाईट होल "।

जहां ब्लेक होल उस सब को अपने प्रबल गुरुत्व से अपने अन्दर खींच कर हज़म कर जाता है .,जो उसके घटना क्षितिज में आजाता है .वैसे ही एक व्हाईट होल इसके विपरीत ऊर्जा ओर पदार्थ मुक्त करता है .विसर्जित करता है ,उगलता है स्पिट करता है ।
ए व्हाईट होल एक्ट्स एज एन अट्रेक्टर ,द्रोइंग इन मैटर देट क्रोसिज़ दी होराइज़न .

नाईट शिफ्ट में पैसा ज्यादा लेकिन ....(ज़ारी ...).

आखिर में विज्ञान से हटकर हम यही कहना चाहेंगे "नोक्टुर्नल '"का शाब्दिक अर्थ भी उन एनिमल्स से लगाया जाता है जो रात्रि में ज्यादा मुस्तैद (एक्टिव )हो जातें हैं .जैसे उलूक ,लेकिन इसके जैविक कारण हैं .बिल्लियाँ भी घात लगाकर अपने शिकार पर हमला बोलतीं हैं ,अँधेरे में उनकी प्यूपिल (आँख की पुतली ,ज्यादा फैलती है ,उसे शिकार दिखलाई देता है )क्योंकि आँख में रौशनी पुतली के ज्यादा फैलने से ज्यादा प्रवेश करती है ..लेकिन हमें अँधेरे में ही नींद आती है इसीलिए शयन कक्षों को अन्धेरा रखा जाता है सोते वक्त .ताकि पर्याप्त मात्रा में मिलेटोनिंन हारमोन बन सके ।
रात में काम करना पालियों में ,कुदरत को ठेंगा दिखाना है .दरहकीकत यह खुद को मुगालते में रखना है .कुदरत के न्याय निराले हैंऔर नैजिक हैं ,विज्ञान भी इनकी पुष्टि करता प्रतीत होता है "नाईट शिफ्ट और स्लीप "के सन्दर्भ में .

नाईट शिफ्ट में पैसा ज्यादा लेकिन ....

नोर्मल स्लीप ए प्रिवलेज फॉर नाईट वर्कर्स ।(सी एन एन हेल्थ ,मार्च २६ ,२०११ )।
जोन्स न्यूजर्सी में ट्रक ड्राइवरी करतें हैं .काम के घंटे होतें हैं रात आठ से प्रात :चार बजे तक .जोन्स प्रात :जब भी सोने की कोशिश करतें हैं चार घंटा ही ले देके सो पातें हैं .सूरज का चढ़ना (चिड़ियों का चहचहाना न भी हो )उनकी जैव घडी पहचानती है . दिन की आहट.सूरज का चढ़ना ,उतरना .
कुदरत की सबसे बड़ी दौलत नियामत है उनके लिए आठ घंटा नींद ।आजाये तो ।
ऐसे ही शिफ्टों में काम करने वालोंको जैव घडी की टिक टिक सोने को कहती है ,जबरिया जागतें हैं ये लोग सालों साल शिफ्टों में काम करने के बाद भी ।
नतीजा होता है दिल की बीमारियों ,मधुमेह ,किस्म किस्म के कैंसर के खतरे का वजन बढना ।
शिफ्ट (पाली )में काम करने वाले कर्मचारी की झपकी औरों के लिए भी खतरे खड़े करदेती है ।
अभी तीन दिन पहले रोनाल्ड रीगन वाशिंगटन नेशनल एयर पोर्ट पर दो हवाईजहाजों को बाद आधी रात के एयर कंट्रोलर के बिना ही उतरना पड़ा .ड्युटी पर तैनात कर्मी की आँख लग गई थी ।
गत चार दिनों से वह लगातार रात दस बजे से प्रात :की पाली कर रहा था ।
क्या कहतें है "शिफ्ट वर्क और स्लीप "के माहिर :
दोष काम को ओर्गेनाइज़ करने में भी रह जाता है .जबकि १६ %अमरीकी पालियों में ही काम करतें हैं ।
देर रात और सुबह पौ फटते ही ,पौ फटने से पहले दुर्घटना की संभावना सर्वाधिक हो जाती है ।
थ्री मेल आइलैंड दुर्घटना (१९७९)और चेर्नोबिल एटमी दुर्घताएं इसी वक्त हुईं थीं ।
आदमी रात्रि -चर/निशाचर है ही नहीं .जितनी मर्जी कोफी पिलो ,काल -सेंटर्स में काम करने वाला निगरानी तंत्र आपको जगाये रखने के लिए चुटकले सुना ले ,जितनी मर्जी आप कोफी सुड़क लें .
आदमी मशीन नहीं है .न दिन भर बैठे रहने के लिए डिजाइन किया गया था न रात की पालियों में काम करने के लिए ।२० %पाली में काम करने वालों को झपकी आती ही है .
अलबत्ता अपवाद स्वरूप कुछ लोग रात -भर दक्षता से काम करते देखे जा सकतें हैं ।
शोध होनी चाहिए इन महानुभावों पर ।
इक तरफ शिफतिए सामाजिक जीवन से कट जातें हैं दूसरी तरफ घर परिवार से भी .चौबीस घंटा चलने वाली हमारी जैव घडी हमारे भौतिक ,मानसिक व्यवहार परिवर्तन का विनियमन करती है .
निद्रा के चक्रों (स्लीप साइकिल्स ),हार्मोन स्राव (इंडो -क्रा -इन सिस्टम ),बॉडी टेम्प्रेचर ,अन्य अनेक शारीरिक(शरीर क्रियात्मक ) प्रक्रियाओं को हमारी कुदरती जैव घडी (सर्कादियंन रिदम ,बायोलोजिकल क्लोक )असर ग्रस्त करती है ।
इस कुदरती घडी को हम बदलते दिखतें ज़रूर हैं लेकिन पूरी तरह कामयाब कभी नहीं हो पाते ।स्लीप डिस-ऑर्डर्स के माहिर यही कहते हैं ।
रात की पाली में काम करने के बाद दिन में नींद पूरी करना मुमकिन ही नहीं हो पाता.शरीर ही साथ नहीं देता ।
बेशक रात की पाली में काम करने वाले को जास्ती पैसा मिलता है लेकिन कितनों को इसकी कीमत अपनी सेहत से चुकानी पडती है इसकी विधवत पड़ताल की जाए तो सौदा घाटे का ही सिद्ध होगा .अलबत्ता मजबूरी का नाम महात्मा गांधी ।
बेहद कम लोग होंगे जो इस नुकसानी की भरपाई दो घटा व्यायाम करके करलेजायें .
स्लीप दिपराई -वेशन ए मेजर फेक्टर्स इन ओबेसिटी :औसतन हम ३२९ केलोरीज़ नींद से महरूम रहने के कारण रोजाना फ़ालतू लेने लगतेंहैं .(इक अध्ययन )।
दिन की पाली छोड़ रात की लेने वालों का साल भर में २०-३० पोंड वजन बढ़ सकता है ।
लीवर (यकृत )का एक काम खाने को पचाना होता है .इसमेसे पुष्टिकर तत्वों को ज़ज्ब करना होता है .विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना होता है ।
देर गए रात तक लीवर में न पर्याप्त स्तर एंजाइम्स का बचता है .ऐसे में खाने को सरल -तर प्रति -रूपों में तोड़ना उससे पुष्टिकर तत्व ज़ज्ब करना यकृत के लिए मुमकिन नहीं रह जाता है .ध्यान दीजिये रात की पाली में देर सवेर खाने वालों का क्या होता होगा ।मेटाबोलिक डिस -ऑर्डर और ओबेसिटी !जी हाँ तकरीबन यही होता है .
हवाईजहाज़ की लम्बी यात्रा में इसका अनुभव हममे से कितने ही कर चुकें हैं .इक टाइम जोन्स से दूसरी में जम्प करना जैव घडी को गडबडा देता है ।
लीवर में पाए जाने वाले एंजाइम्स भी इक रिदम के अनुरूप चलतें हैं घटते बढतें हैं ,दिनमे यकृत चिकनाई सने भोजन और कार्बो -हाई -ड्रेट्स का इंतज़ार करता है .
रात को पिज्ज़ा ठुकवाने के लिए लीवर तैयार नहीं होता है .(ज़ारी ...)

शनिवार, 26 मार्च 2011

अपबीट म्युज़िक एंड लाफ्टर रिड -युसिज़ ब्लड प्रेशर .

वैसे ही नहीं कहा गया है "लाफ्टर इज दी बेस्ट मेडिसन" .अमरीकी ह्रदय संघ की एटलांटा में हाल में संपन्न बैठक में "न्यूट्रीशन ,फिजिकल एक्टिविटीज़ और मेटाबोलिज्म "विषय पर हुए विमर्श और जापानी रिसर्चरों द्वारा प्रस्तुत किये गए एक अध्ययन में बतलाया गया है ,अपबीट म्युज़िक और पसंदीदा लतीफे सुनने से" सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर"(ब्लड प्रेशर का ऊपरी पाठ ) में उतनी ही कमी आजाती है जितनी १० पोंड वजन कम करने ,खुराक में नमक कम करने और या फिर ब्लड प्रेशर कम करने वाली दवाओं से आती है ।
दूसरे अर्थों में ऐसा होने पर हृदय रोगों से और आघात (ब्रेन अटेक)से होने वाली मौत के खतरे का वजन भी ५-१५%कम रह जाता है .यही कहना है ,"मिचेल मिल्लर एम् .डी .का .आप मेरिलैंड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ,बाल्टीमोर में "प्रिवेंटिव कार्डियोलोजी प्रभाग "के निदेशक हैं ।
पसंदीदा लोकप्रिय संगीत सुनने से रक्त वाहिकाओं का अंदरूनी अस्तर (इनर लाइनिंग ऑफ़ ब्लड वेसिल्स )बेहतर तरीके से काम करने लगतीं हैं .नतीज़नये तकरीबन ३०%फ़ैल जाती हैं ,डाय्लेट हो जातीं हैं .
अलावा इसके पसंदीदा संगीत और हंसाऊ चुटकले सुननेसे नाइट्रिक ऑक्साइड का स्राव बढ़ जाता है (एट दी ओस्टीयल सेग्मेंट्स ऑफ़ आर्ट रीज,खासकरके )यही वह मेजिक कम्पाउंड (जादुई रासायनिक यौगिक )है जो ब्लड वेसिल्स को डाय्लेट करता है और इसी के साथ सिस्टोलिक दाब कम हो जाता है ।
अलावा इसके संगीत हमारे "पैरा -सिम्पेथेतिकनर्वस सिस्टम "को प्रभावित करता है कुछ इस तरह से कि शरीर शिथिल (रिलेक्स्ड )तथा दिल की लुब डूब साउंड (हार्ट रेट )कम होजाती है ।
रिलेक्शेशन के साथ ही हमारे शरीर में कोर्तिसोल्स का स्राव कमतर हो जाता है जो एक स्ट्रेस हारमोन है .यही हारमोन ब्लड प्रेशर को भी बढाता है ,बढा सकता है ।
व्यंग्य विनोद (ह्यूमर )हमारे संवेगों आवेगात्मक अनुक्रियाओं रेस्पोंसिज़ को असर ग्रस्त करता है जिसका प्रभाव हमारे शरीर पर कुछ इस तरह पड़ता है कि स्ट्रेस भी कम होने लगता है .

ईट मोर कलर तू रिड-युस वेट .

गहरे रंग के फल और तरकारियाँ हमें तमाम ज़रूरी पोषक तत्व और विटामिन मुहैया करवा देतें हैं .अलावा इसके इनमे केलोरीज़ कम और खाद्य रेशे (डाइट -री -फाई -बर्स)ज्यादा होतें हैं .एक तरफ भूख को शांत करतें हैं ,मन को तृप्त करतें हैं दूसरी तरफ छरहरा बने रहने में भी मददगार बनके आतें हैं .इंद्र -धनुषी रंगों से सजी सलाद की प्लेट को देखते ही एंजाइम्स और पाचक रस बनने लगतें हैं .पेट साफ़ रहता है ।
लाल पीले हरे नारंगी बैंजनी फलों के अलावा सूखे मेवे भी हैं ,फ्रोज़िन,ड्राइड एंड जार्ड वेरायटी .मौसमी सब्जियों की अपनी रंगत निराली है .इनसभी को बारी बारी से अपनी दिन भर की खुराक में शामिल कीजिये ।
नाश्ता हो या लंच ,पोस्ट लंच स्नेक्स ,या फिर बाद दोपहर का टिफिन ,शाम की चाय एक तिहाई से आधा प्लेट इन रंगीन चीज़ों की लीजिये ।एक ख़ास तृप्ति और भरा पेट होने का एहसास होगा .आजमा के देख लें ।महीने के बाद ही आपको अपने बॉडी वेट में भी फर्क नजर आयेगा ।


रशिया में मेहमानों को चाय के साथ बेल पेपर परोसा जाता है (लाल ,पीला ,नारंगी )।
ब्रेकफास्ट में होलग्रैन सीरियल में सम्मिलित कीजिये :
ताज़ी ताज़ी ब्ल्यू बेरीज /स्त्राबेरीज़ /रेस्प बेरीज /लुकाट /फालसे /सूखी हुई किशमिश /मखाने जो भी उपलब्ध हैं ।
स्मूदी में लीजिये फ्रोज़िन बनानाज़ ,/बेबी स्पिनाच .टेस्ट कल्टीवेट कीजिये इन चीज़ों के प्रति बालगोपालों में शुरू से ही ।
स्क्रेम्बिल्ड एग्स में मिक्स कीजिएगा चोप्ड टुमेतोज़ ,ग्रीन बेल पेपर्स (शिमला मिर्च )।
टोस्ट में लगाइए नट- बटर ,स्लाइसिज़ ऑफ़ ग्रेनी स्मिथ एपिल्स ।
लंच :सैन -विच लेनी ही है तो उसमे इफरात से सब्जियों का प्रयोग करें .
स्प्रेड के बतौर हम्मस को तरजीह दीजिये मेयो /मस्टर्ड पर ।
पुटेतो चिप्स की जगह दीजिये क्ले चिप्स को .
एड रोस्टिद ब्रोक्क्ली टू ए होम मेड इंग्लिश म्युफिन पिज्जा ।
भारतीय परम्परा गत थाली भी भली है ।
डिनर :रोस्ट वेगीज़ ज़रूर मिलाइए यदि पास्ता ले रहें हैं .सलाद में भी इन्हें लें ।
एड चोप्ड ब्रोक्क्ली और कॉलि फ्लोवर टू स्पघेत्ति सौस।
एड ड्राइड फ्रूट्स एंड नट्स टू राईस पिलाफ़ ।
मेक होममेड पिज्जा विद तंस ऑफ़ फ्रेश वेगीज़ एंड हर्ब्स ऑन टॉप .

ढाबा .

जिस ढाबे की मैं बात कर रहा हूँ वह कैंटन ,मिशिगन (अमरीका )में है .अन्दर की एम्बियेंस हिन्दुस्तान के किसी बाई -पास ढाबे से मिलती जुलती है .फोल्डिंग पलंग के बीच में कार्ड बोर्ड (तख्ता ,ड्राइंग बोर्ड )रखकर डाइनिंग टेबिल का ढाबा संस्करण ही प्रस्तुत किया गया है .आमने सामने की दीवारों पर एश्वर्य राय बच्चन ,करीना कपूर और शाहरुख खान जैसी हस्तियों की तस्वीरें चस्पां हैं ।
मेन्यु अंग्रेजी में दीवार पर एन्ग्रेव्द किया गया है सामने की जिसे आप काउंटर भी कह सकतें हैं ।
अगर कंप्यूटर ग्रेफिक्स के ज़रिये बस थोड़ी सी धूल और उडती दिखला दीजाए और बसों के आने जाने की आवाज़ भी तो आपको ऐसा ही लगेगा ,आप हिन्दुस्तान के किसी ढाबे में ही हैं ।
यहाँ ग्राहक भी सभी भारतीय हैं ,लेकिन बात सभी अमरीकी लहजे वाली अंग्रेजी में ही करतें हैं ।
बाहर ढाबे के "ढाबा "भी अंग्रेजी मेंही लिखा है ।
मन उदास हो जाता है ,उर्दू और हिंदी में भी क्यों नहीं ,गुजराती और गुरमुखी में क्यों नहीं "ढाबा "लिखा गया है ।
मैं मानता हूँ और यकीन भी रखता हूँ हिन्दुस्तानी तहज़ीब को अगर कोई ज़िंदा रख सकता है ,वह अनिवासी भारतीय ही हैं ।
इस मर्तबा देत्रोइत आने के लिए मैं मुंबई से रवाना हुआ था .वहीँ था भी कुछ समय से .यहाँ देत्रोइत शहर के कैंटन उप -नगर (मोहल्ले )में मेरी बेटी और दामाद रहतें हैं ,जब हिन्दुस्तान में मेरी ज़रुरत नहीं रहती यहाँ चला आता हूँ ,वैसे भी इस उम्र में आदमी एपेंडिक्स की तरह गैर ज़रूरी घोषित कर दिया जाता है ।हिन्दुस्तानी परिवारों का ढांचा ही कुछ ऐसा बन गया है .एकल परिवार हैं ,न्यूक्लीयर फेम्लीज़ .मैं बिरला हूँ सिंगिल पेरेंट्स की हैसियत से मेरी नियति है आज इसके कल उसके पास .रेडियो -एक्टिव धूल सा नकारा गया हूँ .
असल बात यह है ,मैं मुंबई से देत्रोइत बा -रास्ता "अबुधावी 'और एम्स्तर्दम होकर आया हूँ ""के एल एम् "इंटरनेश्नल से ।
अबुधावी छोटा सा हवाई अड्डा है लेकिन इक आंचलिकता लिए हुए है ,हर गेट पर इबारत उर्दू और अंग्रेजी दोनों में लिखी है ,नक्काशी और मेहराब एहसास कराती है किसी मुस्लिम कंट्री के हवाई अड्डे पर हैं .उर्दू इस विश्वास को पुख्ता करती है ।
यहाँ अमरीकी ढाबे पर सब कुछ अपना सा है ज़रूर लकिन वर्च्युअल रिएलिटी जैसा है .

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

पीनट एलजी कंट्रोवर्सी रेज़िज़ अमेरिका .

इधर अमेरिका में एक स्कूल(एज -टाउनपब्लिक स्कूल ) का पेरेंट्स ने इसलिए घेराव किया है ,वहां एक ऐसे बच्चे की वजह से जिसे पीनट एलर्जी है स्कूल तमाम बच्चों पर उस एक बच्चे को सुरक्षित माहौल मुहैया करवाने के लिए बेकार के नियम कायदे थोप रहा है .
पेरेंट्स की दलील है इन सब कायदे कानूनों की पालना में बाकी बच्चों के अधिकार में कटौती हो रही है गैर अकादमिक बातों में समय भी बर्बाद हो रहा है .इन लोगों ने स्कूल से उस बच्चे को हठाने की मांग छेड़ दी है .देर सवेर ऐसी मांग अन्यत्र भी उठ सकती है ।
उधर बच्चे के माँ -बाप का कहना है बाकी बच्चों की तरह उनके बच्चे को भी स्कूल में पढने का हक़ हासिल है ।
अमरीकी डिस -एबिलितीज़ ला के तहत स्टुडेंट एलर्जी को हैंडीकैप में गिना जाता है ।
सवाल यह है क्या स्कूल के पास ऐसे और अन्य विकलांगताओं से ग्रस्त यथा एच आइवी ,आटिज्म आदि से ग्रस्त बच्चों के लिए अलग से कानूनन प्रबंध है ?
बच्चों को लंच बोक्स क्लास रूम से बाहर छोड़ने को कहा गया है ।
लंच के बाद हाथ धौ कर ही क्लास में आने के लिए कहा गया है ।
किसी ख़ास बिंदु ,बात ,मौके पर उन्हें माउथ रिंस करने के लिए भी कहा जाता है .
देखा जाए तो ये तमाम अच्छी ही आदतें हैं स्वास्थ्य विज्ञान की नजर में .लेकिन सवाल माँ -बाप की जिद और कायदे कानूनों प्रावधानों का है वह क्या कहतें हैं ।
इधर १९९७ -२००७ के बीच सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के मुताबिक़ १८ साल से नीचे के किशोर किशोरियों में १८% एलार्जीज़ के मामले बढ़ गएँ हैं .इनमे फ़ूड एलार्जीज़ भी हैं ।
हम एक बेहद सेनिताइज़्द समाज में चले आयें हैं जहां तरह तरह के ज़रासीमों (जर्म्स )से लड़ने का हमारा माद्दा (इम्युनिटी )कम हो रही है ।
मूंग फली तो हवाई ज़हाज़ में भी सर्व की जाती है .सौस में भी है .कैसे इसका विनियमन हो ?बेशक यह कुछ लोगों के लिए मौत का सामान है .डेंजरस एलार्जीज़ का सबब बनती है .

डार्क हेयर डाईज काज़िज़ कैंसर ?

कोई ज़रूरी नहीं है ऐसा हो ही ।
१९७० आदि दशकों का दौर नहीं है ये जब हेयर डाईज (केश रंजक )रसायनों से लदे रहते थे जिनमे से कई एनीमल कैंसर पैदा करने वाले पाए गए थे .इनमे से भी डार्क डाईज में ज्यादा असरकारी कैंसर पैदा करने वाले रसायन पाए गए थे .तब से लेकर अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है इनमे से कितने ही ज्ञात कार्सिनोजन टोक्सिक एलिमेंट्स हठा दिए गएँ हैं .ऐसा नहीं है कि इस दौर की प्रचलित डाईज में ये विषाक्त तत्व (टोक्सिक एलिमेंट्स )बिलकुल नहीं है .संपन्न अध्ययन में उन लोगों की ही पड़ताल की गई थी जो डार्कर डाईज के दीवाने थे .इनमे से एकको ब्लेडर कैंसर (मूत्राशय कैंसर )के लिए कुसूरवार पाया गया था .मेल हेयर ड्रेसर्स और बार्बर्स इनका शिकार बने थे .जिनका इन रसायनों से रोज़ ही पाला पड़ता था .साल -दर - साल वे इनके वाष्प इन्हेल करते रहे .सांस की धौकनी में उड़ेलते रहे ।
एक और अध्ययन में पता चला १९८० से पहले जो महिलायें अकसर इन केश रंजकों का स्तेमाल करतीं थीं उनके लिए नॉन -होज्किन -लिम्फोमा का ख़तरा बढ़ गया था ।
लेकिन जिन्होंने १९८० के बाद से लगातार अपने बालों को रंगा है उनके लिए ऐसा जोखिम पेश नहीं आया है ।
हेयर कलर और कैंसर में एक अंतर सम्बन्ध बतलाने वाला हाल फिलाल कोई उल्लेखनीय अध्ययनभी नहीं हुआ है .इसलिए माहिरों के अनुसार चिंता की कोई बात है नहीं ।
अलबत्ता इनसे आपका साबका ,एक्सपोज़र उतना ज्यादा नहीं होना चाहिए (और भी नुक्सानात है ,केमिकल वेपर्स के )।
डाई लगाते वक्त दस्ताने पहने (भले पोलीथीन के ही हों )।
गर्भवती महिलाओं को स्त्री रोग और प्रसूति की माहिर पहली तिमाही में इनके स्तेमाल से बचे रहने के लिए कह भी सकतीं हैं .(यह गर्भस्थ के लिए मेजर न्यूरो -लोजिकल दिव्लाप -मेंट का वक्त है ).अलबत्ता अगली दो तिमाही में ऐसा जोखिम नहीं भी रहता है ।
बेशक डाई को बहुत देर तक सिर में न लगा रहने दें ।
स्केल्प को (कपाल की चमड़ी को )डाई हठाने के बाद ठीक से धौडालें .
जब बाल ग्रे हो जाएँ तभी डाई का सोचें ।
दीर्घावधि प्रभावन (लॉन्ग टर्म एक्सपोज़र )से बचे रहने का यही विवेकपूर्ण उपाय है .क्या कीजिएगा जेट ब्लेक केश राशि का ?
टेम्पो -रेरी डाईज भी हैं जो उतनी टोक्सिक नहीं हैं ।
मेहँदी का तो कहना ही क्या ?कुदरत की सौगात है .पांवों से सिर तक कहीं भी लगाओ .

नींद से मेह्रूमियत के अगले दिन आप ज्यादा खातें हैं .क्यों ?....

गत पोस्ट से आगे ॥
मर्द और औरतों दोनों ने ही पिछली रात सिर्फ चार घंटा सोने के बाद अगले दिन ज्यादा प्रोटीन -बहुल भोजन लिया .अलावा इसके औरतों ने ३१ ग्राम फैट भी अगले दिन उन दिनों की बनिस्पत ज्यादा खाया जब उन्होंने ने पूरी नींद ली थी जबकि मर्दों ने दोनों अवसरों पर फैट की वही रोजमर्रा की खुराकी मात्रा ही ली अतिरिक्त चिकनाई नहीं ली ।
रिसर्चर ओंगे (अध्ययन के मुखिया )कहतें हैं इसकी दो वजहें हो सकतीं हैं एक तो अगले दिन एनर्जी का लेविल बराबर बनाए रखने के लिए(ऊंघने से बचे रहने के लिए ) लोग ज्यादा खातें हैं दूसरे नींद से वंचित रह जाने के बाद उनकी स्वास्थ्य कर भोजन चयन की क्षमता भी असर ग्रस्त होती है .दे मेक पूअर फ़ूड चोइसिज़ ।
नींद से महरूम रह जाने के बाद अपने ऊपर से नियंत्रण भी हठ जाता है ,विवेक को ताक़ पर रखकर लोग ललचाऊ केलोरी डेंस हाई -फैट फ़ूड पर टूट पडतें हैं ।
दीर्घावधि में इससे होने वाली नुकसानी और मोटापे की ओर बढ़ने का सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है .रोजाना ३०० केलोरीज़ ज्यादा गड़पने का मतलब है साल भर में ३० पोंड वजन बढा लेना .
ऐसे में हार्ट डिजीज ,डायबिटीज़ ,अन्य क्रोनिक एल्मेंट्स के खतरे का वजन तो बढेगा ही जिनका मोटापे से नजदीकी रिश्ता है ।
सेंट ओंगे का अध्ययन अमरीकी हार्ट असोशियेशन की हाल ही में संपन्न हुई एटलांटा कोंफरेंस में रखा गया जिसका विषय था :"न्यूट्रीशन ,फिजिकल एक्टिविटी ,एंड मेटाबोलिज्म ."

इसलिए भी ज़रूरी है "गुड नाइट्स स्लीप ".

एक से ज्यादा वजहें मौजूद हैं पूरी नींद लेने की .एक नवीन अध्ययन के अनुसार जिस रात लोग सिर्फ चार घंटा ही ले -देके सो पाते हैं उससे अगले दिन वे ज्यादा खातें हैं .खासकर महिलाओं को ऐसा होने पर आप ज्यादा खाते देखिएगा अगले पूरे दिन भर में वह औसतन ३२९ केलोरीज़ फ़ालतू लेलेतीं हैं अपनी सामान्य खुराकी केलोरीज़ से जबकि मर्दों के मामले में खुराक में २६३ केलोरीज़ ही फ़ालतू जातीं हैं बनिस्पत उन दिनों के जब वे भरपूर ज़रूरी नींद लेते हैं ।
ये नतीजे पूर्व के उन अध्ययनों की भी पुष्टि करते लगतें हैं जिनमे "इन -सफिशियेंत स्लीप एंड ओवरवेट ".यानी अपर्याप्त नींद और मोटापे में एक अंतर सम्बन्ध खंगाला गया है .यह अध्ययन उनसे आगे निकल कर वजन बढ़ने /मोटापे का एक कारक ,काज़ेतिव एजेंट ढूंढ निकालता है .कूलाम्बिया यूनिवर्सिटी के न्यू -योर्क ओबेसिटी रिसर्च सेंटर के अगुवा शोधकर्ता मारी -पिएर्रे एस .ओंगे ,पीएच .डी का यही कहना है ।
अकसर ओवरवेट लोगों में नींद की कोई न कोई समस्या देखी जाती है मसलन स्लीप अपनेया(नींद के दौरान सांस की आवाजाही में अवरोध से पैदा खर्राटे )जिससे बारहा नींद टूटती है ,आँख खुल जाती है ।
लेकिन यह कहना अनुमेय ही है दोनों में कौन किसका पोषण किसकी वजह बन रहा है ,मोटापा नींद में खलल की या नींद में खलल मोटापे की ?
मुर्गी पहले या अंडा पहले आया .प्रस्तुत संदर्भित अध्ययन इस सवाल का ज़वाब देता लगता है क्योंकि यह अध्ययन सामान्य वजन (कद काठी के अनुरूप आदर्श वजन )वाले लोगों पर ही संपन्न हुआ है ।
अमरीकी हार्ट असोशियेशन की कोंफरेंस में यह अध्ययन आज हीएटलांटा में प्रस्तुत किया गया है जिसमे १३ मर्द और इतनी ही औरतों ने शिरकत की है .इनकी उम्र ३०-४५ के बीच रही तथा ये सभी सामान्य कद काठी के अनुरूप वजन वाले लोग थे .हेल्दी स्लीपर्स थे .अच्छी नींद लेते थे ।
२-६ दिन इन्हें एक स्लीप लेब में रहकर बिताने पड़े .पहले चरण में इन्हें ९ घंटे तक सोने का मौक़ा दिया गया जबकि दूसरे चरण में इसे घटाकर ४ घंटा कर दिया गया .न इन्हें लेब से बाहर जाने की अनुमति थी न ऊंघने की नेप लेने की .पहले चरण में इन्होने सीरियल और मिल्क की नियत खुराक दी गई लंच में फरोजां एंट्रीज़ दी गईं .
दूसरे चरण में इन्हें मनमाना खाने की छूट थीइस एवज इन्हें शोपिंग एलाउएंस भी दिया गया . .बस एक ही बंदिश थी :वही खाद्य यह खरीद सकते थे जिस पर साफ़ साफ़ पोषक तत्वों की, केलोरीज़ की जानकारी दी गई थी .
दूसरे चरण में (नींद से महरूमी के दौर में )इन लोगों ने न सिर्फ ज्यादा केलोरीज़ का भोजन लिया यह भोजन केलोरी डेंस भी था हाई फैट एंड हाई -प्रोटीन भी .आइसक्रीम इन्होने सबसे ज्यादा पसंद की .(ज़ारी ...)

मोटापे के प्रति अमरीकी नज़रिया ?

अमरीका में फिलवक्त दो तिहाई वयस्क (बालिग़ ,एडल्ट्स )तथा एक तिहाई बच्चे या तो ओवरवेट हैं या फिर मोटापे की ज़द में हैं .मधुमेह और अन्य क्रोनिक (लाइलाज )बीमारियों की वजह तो यह मोटापा बन ही रहा है अलावा इसके मोटापे के प्रति लोगों के नज़रिए (पर्सेप्सेप्शन )में भी एक बदलाव दिखलाई देता है ।
इस व्यापक महामारी के चलते क्योंकि हर किसी को अपने गिर्द मोटे ही मोटे दिखलाई देतें हैं इसलिए वह अपने प्रति भी आश्वश्त रहता है उसे अपना वजन कम करने की सूझती ही नहीं है ।
अभी अभी एटलांटा में संपन्न हुई अमरीकी ह्रदय संघ की कोंफरेंस में यह नज़रिया और इसकी पुष्टि कूलाम्बिया विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने अपने अध्ययन के शुरूआती नतीजों से की है ।
ओवरवेट माँ और उनके बच्चे परस्पर अपने बारे में यही सोचते हैं "ओ भैया आल इज वेळ "हम मोटे नहीं हैं ,ओवरवेट नहीं है ,ठीक से कयास ही नहीं लगा पा रहें हैं यह परिवार में पनपते मोटापे का ।
इस गलत धारणा के जड़ जमाते चले जाने की एक वजह यह बन रही है ,मोटापा और मोटा होना अब एक नियम है आम है नॉर्म बन चला है अपवाद नहीं .
अध्ययन में बहुलांश लातिनो माताओं और उनके बालकों का था .इनकी (२२२ कुल )की रिक्रूटमेंट बालकों की एक हेल्थ क्लिनिक में एक शहरी सेटिंग में की गई थी .इनसे साक्षात्कार में रिसर्चरों ने इनकी मेडिकल हिस्ट्री (रोगों का पूर्व वृत्तांत )तथा इनकी सामाजिक पृष्ठ भूमि के बारे में पूछ तांछ की .इनकी हाईट ,वेट ,बॉडी मॉस इंडेक्स,किलोग्रेम /(मीटर ) (मीटर )दर्ज़ किया गया .
दो तिहाई माताएं ओवरवेट या फिर ओबीसी तथा ७-१३ साला बच्चों में ४०%की भी यही नियति थी ।
इन लोगों को ज़रा भी अंदाजा नहीं था ये इतना मोटे हैं .ये अपने को न तो इतना ओवरवेट समझते थे ना मोटा .मजेदार बात यह भी रही जो जितना अधिक ओवर वेट या मोटा था वह अपनी असलियत से उतना ही ज्यादा ना -वाकिफ था ,अनभिज्ञ था .(ज़ारी ...)

रेडियो -धर्मी पदार्थों से सेहत को नुकसानी .

रेडियो -एक्टिव -सब्स्टेंसिज़ एंड देयर इम्पेक्ट ।
दुनिया भर के मुल्कों ने या तो जापान से आने वाली खाद्य सामिग्री पर रोक लगादी है या फिर उनके परीक्षणों को और कठोर कर दिया है .जबसे जापान में पानी दूध और कई तरकारियों में इनकी मौजूदगी सामान्य से ज्यादा दर्ज़ की गई उसीके बाद से दुनिया भर के देश भी चौकन्ने हो गए हैं .अपना निगरानी तंत्र इन्होनें चाक चौबस्त कर लिया है .
रेडियो विकिरण की बड़ी मात्रा हमारे शरीर पर पड़ने पर मिचली (वोमिटिंग ),चक्कर ,जी -मिचलाना ,बालों का झड़ना ,अतिसार (उलटी -दस्त ),रक्त -स्राव (अंदरूनी ),तथा केन्द्रीय स्नायुविक संस्थान की इन -टेस्टी -नल -लाइनिंग (अस्तर )को नुकसानी उठानी पड़ सकती है .नष्ट भी हो सकता है यह अंतड़ियों का अस्तर ।
डी एन ए डेमेज के अलावा रेडियो -विकिरण कैंसर के खतरे के वजन को भी बढा सकता है ,खासकर छोटे बच्चों और गर्भस्थ भ्रूण में ।
फिलवक्त तीन रेडियो -धर्मी पदार्थों को लेकर माहिरों ने चिंता जतलाई है क्योंकि इनकी मौजूदगी जापानी खाद्य पदार्थों ,दूध और पानी में दर्ज़ की गई है ।
ये हैं :
(१)रेडियो -आयोडीन -१३१ ,
(२)सीजियम -१३४ और -
(३)सीजियम -१३७ ।
पत्तेदार जापानी सब्जियों में २२,००० बेक्रील मात्रा तक इस रेडियो -आयोडीन -१३१ की दर्ज़ हुई है .,हरेक किलोग्रेम भार में ।
यह योरोपीय यूनियन द्वारा निर्धारित (निरापद समझी जाने वाली विकिरण डोज़ )से ११ गुना ज्यादा है ।
बेक्रील रेडियो -धर्मिता को मापने वाली अनेक इकाइयों में से एक है .
एक साल में जितना विकिरण एक साल में औसतन हमारे शरीर पर पड़ता है उसका आधा ऐसी विकिरण सनी सब्जी एक किलोग्राम खाने से चला आयेगा ।
इतनी ही सब्जी लगातार ४५ दिनों तक खाते रहने से हमारे शरीर में ५० मिलिसीवार्ट्स विकिरण जमा हो जाएगा ।
यह एक एटमी भट्टी पर काम करने वाले मुलाजिम के लिए विकिरण की वार्षिक लिमिट है ।
मानव शरीर के ऊतकों द्वारा ज़ज्ब विकिरण की मात्रा को मिलिसीवार्ट्स कहतें हैं ।
साल भर में १०० मिलिसीवार्ट्स विकिरण शरीर पर पड़ने से कैंसर का ख़तरा पैदा हो जाता है .इतना ही विकिरण तीन बार पूरे शरीर का सी टी स्केन कराने से भी शरीर पर पड़ जाता है . इसलिए बिला वजह रईसी दिखाने के लिए इसका चलन ठीक नहीं है ।
सूघने ,इन्हेल करने से ,सटकने से आयोडीन -१३१ हमारी थायरोइड ग्रन्थि में जमा होजाता है .इसी के साथ खासकर बालकों ,गर्भस्थ भ्रूण में थायरोइड कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है । अलबत्ता पोटेशियम आयोडाइड की गोलियां खाने से ,तरल के रूप में इसे लेने से रेडियो आयोडीन का असर जाता रहता है .लेकिन बिला वजह किसी भीती (रेडियेशन फोबिया )के तहत इनका लेना ठीक नहीं है .नुकसान ही होगा ।
सेविंग ग्रेस यह है आयोडीन -१३१ का असर ८ दिन में आधा तथा ८० दिन में पूरी तरह समाप्त हो जाता है (इसका अर्द्ध जीवन काल ८ दिन है ,इस अवधि में यानी हरेक ८ रोज़ में इसकी रेडियो -सक्रियता आधी रह जाती है .पूर्व की बनिस्पत .
जापानी सब्जियों में इसके अलावा सीजियम १३४ और सीजियम -१३७ भी पाया गया है १४,००० बेक्रील प्रति किलोग्रेम तक ।
एक महीना तक एक किलोग्रेम ऐसी ही तरकारी खाते रहने से शरीर में उतना ही विकिरण जमा हो जाएगा जितना फुल बॉडी सी टी स्केन से (२० मिलिसीवार्ट्स के तुल्य)हो जाता है .

सैलून्स और स्पाज़ के खतरे (ज़ारी ...).

कंसीडर दी प्राइज़ ऑफ़ ब्यूटी ।

माहिरों के अनुसार सैलून से होने वाली सेहत की नुकसानी को बेशक कम करने की ज़रुरत है .बट

नोबडी रेकेमंदिद गोइंग टर्की ऑन एवरी स्पा सर्विस यु लव .लेकिन कोई भी नया ट्रीटमेंट खूबसूरती का नया नुश्खा आजमाने से पहले खासकर जब वह आपके लिए नया है इसके इन्ग्रेदियेंट्स (इसमें मौजूद रसायनों )के बारे में क्लिनिकल स्टडीज़ कमसे कम सरसरी तौर पर देख ज़रूर लें . इंटर -नेट आपके डिस्पोज़ल में हैं .आपकी सेवा में दिनरात रत है .
एक और सूचना आपके लिए :"स्किन डीप"ने खूबसूरती के नुश्खों का जायजा लेकर इनमे प्रयुक्त रसायनों की निरापदता का जायजा लिया है ,सेफ्टी का पूरा आकलन किया है .लिस्ट बनाई है इन नुश्खों की .अमरीकी दवा संस्था ने "इन्ग्रेदियेंट्स सेफ्टी "के बाबत इन घटकों की पूरी जानकारी बड़े बड़े पढ़े जाने लायक अक्षरों में दी है .
अपने डॉ से भी इनके बारे में प्रो -दक्ट्स सेफ्टी के बारे में मशविरा कर सकतें हैं .संदेह होने पर और इंतज़ार करने में कोई हर्ज़ नहीं है आखिर आप खूबसूरती खरीदने जा रहें हैं बदसूरती और बेड रियेक्शंस नहीं ।
आप गिनी पिग नहीं हैं जो अपने को तजुर्बे के लिए हाज़िर करदें बिना सोचे विचारे ।
आखिर आप सर्जरी से पहले सर्जन के बारे में पूछ्तें हैं ,एनस -थीज़ियो -लोजिस्ट के बारे में पूछ्तें हैं . नए ब्यूटी ट्रीट -मेंट्स के बारे में क्यों नहीं पूछेंगे ।
जहां आप जा रहें हैं उस जगह की ,ब्यूटी क्लिनिक की साख के बारे में क्यों नहीं पूछिएगा ? ज़रूर पूछिए .चेक विदबेटर बिजनिस ब्युएरो ।
अलबत्ता फेशियल ट्रीट -मेंट्स के बारे में सिर्फ और सिर्फ अपने चर्म-रोगों के माहिर को ही तरजीह दीजिये बाकी सबपे .किसी भी ब्यूटी क्लिनिक पर आप उतना भरोसा नहीं कर सकते जितना कि अपने दर्मेटो -लोजिस्ट पर .

सैलून्स और स्पाज़ से सेहत को होने वाली नुकसानी (ज़ारी ...)

इसका मतलब यह नहीं है कि निरापद "केमिकल -पील्स"हैं ही नहीं .लाईट पील्स हैं (ग्लाईकोलिक पील्स को लाईट पील्स में ही शुमार किया जाता है )लेकिन बात फिर वहीँ लौट आती है अनाड़ी के हाथ में पड़ने पर यह भी अर्थ का अनर्थ कर सकतें हैं .इविन ए लाईट पील कैन काज ए बेड रियक्शन इफ नोट डन प्रोपरली .
अलबत्ता इन लाईट पील्स में एल्फा -हाई -ड्रोक्सी - एसिड की हिस्सेदारी १०% से नीचे ही रहती है तथा पी एच मान भी इनका ऍफ़ डी ए की सिफारिशों के अनुरूप ३.५ ही रहता है ।
मीडियम और डीप पील्स का स्तेमाल सिर्फ और सिर्फ चर्म रोग के माहिर द्वारा ही किया जाना चाहिए .
ग्लाईकोलिक एसिड पील्स को कुछ मिनिटों के बाद उदासीन (न्युत्रेलाइज़ )करना ज़रूरी होता है ,न्युत्रेलाइज़िन्ग सोल्यूशन या पानीं से .यदि इन्हें देर तक ऐसे ही छोड़ दिया जाए तब चमड़ी झुलस जाती है .नतीजा होता है "ब्लिस्तार्स ",स्केब्स ,स्थाई ललाई (रेडनेस परमानेंट )।
बीटा -हाई -ड्रोक्सी -पील्स में भी अम्लीय अंश कम होना चाहिए (बेशक ये अपने से हीखुद -बा -खुद , न्युत्रेलाइज़ हो जातें हैं )और देर तक छोड़े जा सकतें हैं लेकिन अम्लीय अंश ज्यादा होने पर ये भी चमड़ी को झुलस सकतें हैं यही कहना है माहिरों का .

सैलून्स से होने वाली नुकसानी (ज़ारी ...).

बेशक "केमिकल पील्स" चमड़ी की चमक को बढा देतें हैं ,फाइन लाइंस ,झुर्रियों ,एज स्पोट्स को साफ़ कर देतें हैं .केमिकल पील्स कैन सर्टेनली ब्राइ-टिन एंड लाइटिंन स्किन टू ड्रामेटिक इफेक्ट बट सम ऑफ़ दीज़ फोर्मुली (फोर्मूलाज़ )कैन काज बर्न्स ,स्कारिंग इफ हेन्दिल्ड इन -करेक्टली .वजह इनमे बहुत तेज़ (शक्तिशाली ,तीक्ष्ण )रसायनों का स्तेमाल किया जाता है ,अनाड़ी के हाथ में पड़ने पर ये गुल खिला सकतें हैं ""जबकि "इनका स्तेमाल स्पाज़" में हो रहा है वह भी इक केज्युअल सेटिंग में न कि किसी चर्म-रोग के माहिर की निगरानी में उसके ऑफिस में .ऐसे में नीम हकीम ख़तरा -ए -जान .कौन कितना माहिर है इस कर्म में इन सैलून्स और स्पाज़ में इसका कोई निश्चय नहीं इस पर कोई चेक भी नहीं है कोई रेग्युलेटर नहीं .सब kuchh raam bharose chal rhaa hai .aise me chmdi par solyushan der tak rahne ke gambhir natize nikal sakten hain .

"Nia terezakis ,MD ,a clinical professor of dermatologi at
तुलने यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेडिकल सेंटर एंड दर्मेतालोजिस्त इन प्राइवेट प्रेक्टिस इन न्यू ओर्लीन्स ,हेज़ सीन पेशेंट्स कम इन विद व्हाईट डोनट शेप्स अराउंड देयर माउथ्स आफ्टर गेटिंग पील्स फ्रॉम इन -एक्स -पीरियेंस्द सलून टेक्नीशियन्स हू लेफ्ट दी सोल्यूशन ऑन फॉर टू लॉन्ग ,परमानेंटली देमेजिंग दी पिगमेंट देयर ।"
इसके बाद घडी की सुइयों को पीछे नहीं लाया जा सकता है .चमड़ी मुकम्मिल तौर पर बदरंग हो चुकी है .

सैलून्स और स्पाज़ से होने वाली नुकसानी (ज़ारी ...).

सम साइड इफेक्ट्स कैन बी एज टफ एज नेल्स ।
मैनिक्युओर्स और पैदिक्युओर्स ट्रीट -मेंट्स सभी सैलून्स पर उपलब्ध ज़रूर हैं लेकिन हस्त और पाद उंगुलियों की खूबसूरती (मनिक्युओर्द फिंगर्स )की भी कई मर्तबा कीमत चुकानी पडती है क्योंकि निरापद नहीं हैं ये भी ।
दो औरतों को स्किन कैंसर की परेशानी भुगतनी पड़ी है इन दोनों ट्रीट -मेंट्स से .
२००९ में टेक्साज़ विश्वविद्यालय ने इसी आशय का एक अध्ययन "आर्काइव्ज़ ऑफ़ दर्मेटोलोजी " में प्रकाशित किया था .
इन दोनों ने ही नेल ड्रायार्स का अकसर स्तेमाल किया था . परा -बैंगनी (अल्ट्रा वायलेट रेडियेशन )के ये ड्रायार्स ज्ञात स्रोत हैं .बेशक ठीक ठीक कितने एक्सपोज़र के बाद यह चमड़ी का कैंसर हो जाता है यह अभी अनुमेय ही है लेकिन सभी सैलून्स में इनका चलन है ।
ऐसे में चर्म-रोग के माहिरों (दर्मेटो-लोजिस्टों )की यह सलाह मान लेने में कोई हर्ज़ नहीं है ,"अन्टिल मोर रिसर्च इज कन -दक्तिड यु स्लेदर ऑन सन स्क्रीन बिफोर योर नेल टेक एप्लाईज़ पोलिश ऑर स्टिक टू फेन -बेस्ड ड्रायार्स स्पेशियली इफ यु गेट योर नेल्स डन वीकली ऑर मंथली ."

गुरुवार, 24 मार्च 2011

सैलून्स और स्पाज़ से सेहत को होने वाली नुकसानी से बचाव (ज़ारी...)

बचाव का उपाय है और सीधा साधा भी है बस आपको यह देखना है जिस सैलून में आप केराटिन ट्रीटमेंट के लिए जा रहें हैं वहां हवा की आवाजाही ,वेंटिलेशन है भी या नहीं ?टोक्सिक केमिकल्स के महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से बचाव का एक ज़रियासैलून्स और स्पाज़ का प्रोपर वेंटिलेशन भी हो सकता है ।
क्योंकि फोर्मल -डिहाइड के प्रति हर व्यक्ति की सेंसिटिविटी (संवेद्यता ,संवेदन -शीलता )एक सी नहीं होती है इसलिए इसका पता भी तभी चल पाता है जब आपको कोई परेशानी पेश आती है .उधर धीरे धीरे नुकसान होता रहता है ,बारहा के एक्सपोज़र से .

डेंजर;'एस ऑफ़ सैलून्स एंड स्पाज़ तू अवर हेल्थ (ज़ारी ...)

आइये पहले जाने केराटिन और केरितिनाइज़ेशन है क्या ?
केराटिन :इक तन्तुनुमा (फाइब्रस)अघुलनशील प्रोटीन का नाम है केराटिन जो हामरे बालों (केश क्यारी )और नाखूनों का ,मुख्य घटक है ,मैन स्ट्रक्चरल एलिमेंट है ।
केरातिनाइज़ेशन :चमड़ी की कोशाओं (स्किन सेल्स )में मसलन बालों और हमारे नाखूनों में इसका ज़मा होना केरातिनाइज़ेशन कहलाता है .आफ्टर केरातिनाइज़ेशन हेयर्स एंड अवर नेल्स प्रिज़ेन्ट्स ए टेक्सचर ऑफ़ होर्न्स .
सैलून्स और स्पाज़ से सेहत को होने वाली नुकसानी की ओर लौटतें हैं .
ग्रेट हेयर कैन बी डेंजरस ।
किसी भी ऐसे सलून में दाखिल होने पर जो केराटिन ट्रीटमेंट मुहैया करवाता है ,आप देखिएगा खुद हेयर स्टाइल्स की माहिर (स्टाइलिस्ट )मास्क्स पहने हुए है अलावा इसके पंखे का रुख उसी की ओर रखा गया है . ऐसा करना उसके लिए ज़रूरी भी है क्योंकि वह जानती है ,"फोर्मेल डिहाइड"हेयर -स्ट्रेतिनिंग-त्रीत्मेंट्स का ज़रूरी घटक है .इसकी चर्चा हमने गत पोस्ट में भी की है यह एक ज्ञात कैंसर पैदा करने वाला रसायन है "कार्सिनोजन "है .
हाल में ही "ओरेगोंस अक्युपेश्नल हेल्थ एंड सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन "ने सैलून्स में प्रयुक्त नौ नमूनों की जांच की है .इनमे सभी में "फोर्मेल -डिहाइड "मिला है जबकि एक उत्पाद इस रसायन से रहित होने का दावा भी अपने लेविल पर कर रहा था ।
लेयुकेमिया का एक काज़ेतिव एजेंट पाया गया है फोर्मेल -डिहाइड को. कई "एपी -डेमिया -लोजिकल "अध्ययनों में .एपिदेमिया -लोजी इज दी साइंटिफिक एंड मेडिकल स्टडी ऑफ़ दी काज़िज़ एंड ट्रांस -मिशन ऑफ़ डिजीज विधिन ए पोप्युलेशन .समुदाय विशेष में होने वाले रोगों के कारणों (काज़ेतिव एजेंट्स )और फैलाव का अध्ययन करता है "जानपदिक -रोग -विज्ञान "यानी एपी -डेमियो -लोजी "।
ज़ाहिर है फोर्मेल -डिहाइड से बार -बार असर ग्रस्त होना ,खतरनाक है ,रक्त कैंसर की वजह बन सकता है बारहा एक्सपोज़र फोर्मेल -डिहाइड का ।
शोर्ट टर्म में भी इसका प्रभावन (एक्सपोज़र ,इसकी शरीर पर बौछार का होना )निरापद नहीं है क्योंकि यह भी "स्केल्प रेशिज़" की वजह बन सकता है .बस हेड के संपर्क में ये आजाये .अब कपाल को कब तक बचाइएगा .बकरे "की माँ" कब तक खैर मनाएगी ?
सांस के ज़रिये फेफड़ों में दाखिल होने पर ,चेहरे पर इसकी बौछार पड़ने पर यह आँख ,नाक और गले की दुखन और जलन की वजह बन सकता है ,इसीलिए वह स्टाइलिस्ट मास्क पहने रहती है ।
एस्मा की मरीजाएं सावधान रहें ,इट कैन ट्रिगर एन एस्मेतिक अटेक.
केलिफोर्निया डिपार्टमेंट ऑफ़ पब्लिक हेल्थ से सेवा -निवृत्त विष -विज्ञान की माहिरा (तोक्सिकालोजिस्त )जूलिया कुइंत ,पीएच .डी .इसकी पुष्टि करतीं हैं .(ज़ारी ...)

जानकारी:सैलून्स और स्पाज़ से सेहत को कितने हैं खतरे ?

सैलून्स और स्पाज़ से सेहत को कितने हैं खतरे ?
केराटिन हेयर ट्रीटमेंट लेने गई थी वह मोहतरमा लोसेंजिलीज़ के इक सैलून पर इस उम्मीद के साथ ,दो महीने तकजी हाँ दो महीने तक वह रेशमी -लट बालों की (सिल्की स्ट्रेट लोक्स)बनाए रख सकेंगी ।
दो घंटे तक उनकी आँखों में जलन होती रहेगी और गले में कफ़ की खिच- खिच(सॉर थ्रोट )लेकर लौटेंगी वह इसका उन्हें कोसों दूर तक अंदेशा न था ।
हेयर स्टाइल की माहिर ने उन्हें पहनने के लिए गोगिल्स नाहक नहीं दिए थे ,लेकिन आखों में होने वाली जलन ज़ारी रही थी ।
तब उन्हें और भी ज्यादा धक्का लगा जब पता चला ,ट्रीटमेंट में "फोर्मल -डिहाइड"भी स्तेमाल किया गया है .बकौल एन -वाय्रंमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी (ई. पी .ए .)यह रसायन इक विख्यात कार्सिनोजन है .कैंसर पैदा करने वाला रसायन है .,होमो -सेपियंस के लिए ।
पे -डी -क्युओर ट्ब्समें फंगस का डेरा रहता है (पाद सौंदर्य लेकिन किस कीमत पर ?).योर वेक्सर शुल्ड नोट डबल डिप).लेकिन सुनता कौन है ।?
हर रोज़ नए खतरे सैलून्स और स्पाज़ से पैदा हो रहें हैं लेकिन न उपभोक्ता का न सैलून मालिकों का और न ही नियामक संस्थाओं का बस चलता है ,कुछ कर सकें इन खतरों का वजन घटाने के लिए .इस श्रृंखला में इन्हीं खतरों की चर्चा होगी .(ज़ारी ...).

भाव कणिका :टेक सेर भाजी ,टेक सेर खाजा .

भाव -कणिका :टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .
जैसे मोहन का है राज ,न काम न काज ,
कैसा राजा कैसी प्रजा ,चारों तरफ मज़ा है मज़ा ,
मज़ा ही मज़ा ,
देखो न भालो कुछ तो होश संभालो ,
बात पुरानी है कुछ कहती कहानी है ,
अंधेर नगरी ,चौपट राजा ,
टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .

भाव -कणिका:मोहन उवाच ,नहीं मालूम

भाव -कणिका :नहीं मालूम ।
महंगाई पर सवार ,कर दिए शरद पवार ,
मुखिया लाचार ,
सबसे बड़े खिलाड़ी ,बना दिए "कलमाड़ी ",
टू जी स्केम,राजा किये डिफेम,
मोहन करे राज ,कुछ खबर ,न काज ।
सन्दर्भ :लोक सभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज .प्रधान मंत्री मनमोहन से मुखातिब (विकिलीक्स खुलासा ,सांसद रिश्वत काण्ड ,प्रधान मंत्री ने किया चुनाव और प्रजातंत्र को गड्दम्म -गडड ,चुनावी जीत यानी सिरों की गिनती को बतलाया जनता का फैसला ,रिश्वत के पक्ष में )।इस सन्दर्भ में बड़ा मौजू है यह शैर जो सुष्माजी ने संसद में पढ़ा प्रधानजी को आइना दिखलाते हुए :
तू इधर उधर की न बातकर ,ये बताके लुटा क्यों कारवाँ ,
ये रहगुज़र की न बात है ,तेरी रहबरी का सवाल है .

फुकुशिमा एटमी बिजली संयंत्र से निकला रेडियो विकिरण भारत नहीं पहुंचेगा क्योंकि ...

क्यों नहीं पहुंचेगा जापानी एटमी बिजली संयंत्रों से निकला रेडियो -विकिरण भारत की सरजमीं पर ?
पहुँच भी गया तो क्या करलेगा ?जैसे किताब से दूरी बढ़ने के बाद लेम्प से उस पर गिरने वाली रौशनी कम होती चली जाती है किताब और लेम्प के बीच की दूरी बढ़ने के साथ वैसे ही यह रेडियों विकिरण जापान से ६००० किलोमीटर की दूरी पर स्थित भारत तक आते आते अपना मारक असर पूरी तरह खो चुका होगा ।
अलावा इसके भारत पश्चिमी दिशा में पड़ता है ..जबकि जापान में बहने वाली हवाओं (पवनों )का रुख उत्तर -उत्तरपूर्व दिशा में रहता है .आइसलैंड तक इस विकिरण के पहुँचने की वजह यही रही है .इसलिए वहां कुछ रेडियो -विकिरण पहुँच सका .

नींद से महरूम (वंचित )लोग जूए में ज्यादा हारतें हैं .

स्लीप डिप्रै -वेशन मे एन करेज रिस्की डिसी -जंस ।
इक नए अध्ययन के मुताबिक़ नींद पूरी न ले पाना ,नींद से महरूम रह जाना व्यक्ति को एकऐसी ,ज़रुरत से ज्यादा आशावादी सोच की ओर ठेलने लगता है जहां व्यक्ति संभावित आर्थिक नुकसानी का ,एक बड़े आर्थिक नुकसान का कयास (अंदाजा )ही नहीं लगा पाता .यही लब्बोलुआब है एक नवीन अध्ययन का जिसे ड्यूक विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने अंजाम तक पहुंचाया है ।
रिसर्चरों ने २९ मर्दों पर नींद की मेह्रूमियत (स्लीप दिप्रईवेशन )को आजमाया .इनसे एक सुबह तब कुछ आर्थिक निर्णय लेने के लिए कहा गया जब गत रात इन्होने पूरी नींद ली थी एक और सुबह तब जब ये नींद से महरूम रहे .दोनों ही मौकों पर इनके ब्रेन के फंक्शनल एम् आर आई लिए गए ।
जो लोग नींद से पिछली रात महरूम रहे थे उनके दिमाग के वह हिस्से ज्यादा रोशन थे ज्यादा सक्रिय थे जो सकारात्मक सोच से ताल्लुक रखते हैं व्यक्ति को आशावादी बनाते हैं ,जबकी नकारात्मक सोच(निराशावाद से सम्बद्ध ) से सम्बद्ध हिस्से कम रोशन हुए ।
"लेक ऑफ़ स्लीप इम्पेक्ट्स ऑन फिनेंशियल डिसीज़न मेकिंग "जर्नल ऑफ़ न्यूरो -साइंसिज़ (८मार्च )'में प्रकाशित हो चुका है यह अध्ययन ।
नाईट गेम्ब्लार्स के लिए यह अच्छी खबर नहीं है .जिनकी नजर बड़ी जीत पर तो टिकी रह जाती है नुकसानी पर नहीं ।
यहाँ (केसिनोज़ में )उन्हें पस्त करने वाली सिर्फ अन -फेव्रेबिल मशीनें ही नहीं है ,वह उस नींद से महरूम दिमाग के हाथों भी पिट्तें हैं जो उन्हें लगातार जीत की उम्मीद बंधाये जारहा है नुकसानी की तरफ जिसका ध्यान ही नहीं है .
अलावा इसके केसिनोज़ पूरा माया जाल फैलातें हैं ,छल कपट करतें हैं तरह तरह की तरकीबें आज्मातें हैं आपका ध्यान नुकसानी से परे रखने के लिए .डॉलर्स की जगह चिप्स और इलेक्ट्रोनिक क्रेडिट्स का इसीलिए तो स्तेमाल किया जाता है ,ऊपर से रोश्नियाओं का जादू ,फ्लेशी लाइट्स ,मादक आवाजें ."बार" बालाएं और मुफ्त शराब ."मुफ्त की पीते थे (ग़ालिब) शराब ,सोचते थे रंग लाएगी हमारी फाका मस्ती एक दिन ।"
और बी बढा देती है जूए की तलब को नींद से महरूमी .यकीन मानिए .

मल्टी -टास्किंग एंड क्रोस वाल्क्स ए रिस्की मिक्स फॉर एल्दरली .

व्हाई इज मल्टी -टास्किंग एंड क्रोस वाल्क्स ए रिस्की मिक्स फॉर एल्दरली ?
एक नए अध्ययन के अनुसार सेल फोन पर बतियाते हुए सड़क क्रोस करना बुजुर्गों के लिए खासतौर पर जोखिम से भरा काम हैइसका मतलब यह नहीं है औरों के लिए यह निरापद है .सवाल खतरे की इंटेंसिटीका है जोखिम के वजन के ज्यादा होने का है ।
विज्ञान पत्रिका "साइकोलोजी एंड एजिंग "में प्रकाशित हो चुका है यह अध्ययन .यह उन अन्य अध्ययनों को भी पुष्ट करता है जिनमे बतलाया गया था ,एक साथ एक से ज्यादा कामों में हाथ डालना एक उम्र दराज़ व्यक्ति के रोज़ मर्रा के कामों को असरग्रस्त करता है ।
प्रोफ़ेसर ऑफ़ न्यूरोलोजी एंड साइकोलोजी ,केलिफोर्निया विश्विद्यालय संफ्रान्सिसको कैम्पस ,एडम गज्ज़ले ,एम् .डी भी .इसपरअपनी मोहर लगातें हैं ।ऐसा ही विचार अभिव्यक्त करतें हैं ।
५९-८१ साला लोग एक प्रयोग में एक वर्च्युअल स्ट्रीट को उस समय ३० सेकिंड्स के अन्दर -अन्दरपार करने से चूक गए जब वे फोन पर भी बतिया रहे थे स्ट्रीट को भी क्रोस कर रहे थे .जबकि प्रयोग में शामिल उनके युवा साथी ३० सेकिंड में ही इसे पार कर गए ॥
ऐसा संभवतय "कोगनिटिव इंटर -फीयारेंस "(बोध -व्यतिरेक,संज्ञानात्मक विक्षोभ )की वजह से हुआ जिसके लिए इनकी उम्र कुसूरवार रही .ऐसा अतिरिक्त सावधानी बरतने की वजह से नहीं हुआ था ।
मानसिक और दृश्य संशाधन (मेंटल एंड विज्युअल प्रोसेसिंग )दोनों को असर ग्रस्त करती है इस उम्र में मल्टी -टास्किंग .अवमंदन कर देती है इस प्रोसेसिंग का जो सामने से आने वाले वाहन को न सिर्फ ठीक से देखने के लिए ज़रूरी है उसकी रफ़्तार का जायज़ा लेने के लिए और भी ज़रूरी है .

हु शुद टेक ए मूड स्तेबिलाइज़िन्ग ड्रग ?

इफ यु हेव ए मेनिया एपिसोड टेक ए मूड स्तेबिलाइज़िन्ग ड्रग इन कंसल्टेशन विद योर साइकिआत्रिस्त ।
रचनात्मकता का एहसास करा सकता है मेनिया ?लेकिन क्या सचमुच रचनात्मक होता भी है ?
मेनिया लिखवाता है आदमीसे बीस बीस घंटे यदि उसे लिखने का शौक है तो .वह खुद अपने होशोहवास में नहीं लिखता है .एक सामान्य व्यक्ति ऐसा कर भी नहीं सकता लेकिन बाईपोलर डिस -ऑर्डर की मेनियाक फेज़ में ऐसा हो सकता है ..वन इज रादर द्रिविन टू राइटिंग.
याद रहे एंटी -डिप्रेसेंट्स का सेवन भी मेनियाक फेज़ में ले आता है इक ट्रिगर का काम कर सकता है खासकर तब जब आप एंटी -डिप्रेसेंट्स ले रहें हैं और वह असर नहीं कर रहें हैं .दे आलवेज़ डोंट वर्क आइदर .लेकिन ऐसा होने पर अपने साइकियाट्रिस्ट से पूछिए "कहीं मुझे बाई -पोलर -इलनेस "तो नहीं है ?यही परामर्श देतें हैं मिचेसल ई थासे ,एम् .डी .आप पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय ,फिलाडेल्फिया कैम्पस में मनोरोग विभाग में प्रोफ़ेसर हैं .
एंटी -डिप्रेसेंट के प्रति एक असामान्य प्रतिक्रया साफ़ संकेत है बाई -पोलर डिस -ऑर्डर की ओर .
यदि अवसाद रोधी दवा लेने के बाद आपकी विचार सरणी तेज़ी से दौड़ती ही चली नजा रही है थमने का नाम ही नहीं ले रही है .आप ज़रुरत से ज्यादा यौनोंमुख (स्त्रोंगर सेक्स्युअल ड्राइव ,बेहद हाई लिबिडो )हो रहें हैं ,इनसोम्निया की (अ -निद्रा )की बीमारी इन दवाओं को लेने के बाद और भी बे -चैन कर रही है तब यह और कुछ भी हो सकता है अवसाद के लक्षण नहीं हैं ।
मेनिक एपिसोड भी हो सकता है यह जबकि आप अवसाद की गिरिफ्त से भी कहाँ बाहर आपायें हैं .अवसाद से रिकवरी नहीं है ये .इसी वक्त आपको मूड स्तेबिलाइज़िन्ग ड्रग्स चाहिए .

बुधवार, 23 मार्च 2011

व्हाट इज बाई -पोलर डिस -ऑर्डर ?

बाई -पोलर डिस -ऑर्डर /बाई -पोलर इलनेस ?
जैसा इसके नाम से ही पता लगता है यह दो ध्रुवों के बीच झूलना है अवसाद (डिप्रेशन )और मेनिया (जोम ).उत्तरी ध्रुव् आर्कटिक और दक्षिणी एन-टार्क्तिका की तरह हैं इसके दो छोर ,दो विपरीत स्थितियां इक जिसमे सुस्ती इतनी की मरीज़ थूक न निगल पाए न थूक पाए और दूसरी स्थिति वह जिसमे विचारों की धारा थामे न थामे ,विचारों की धार इक आवेग पैदा करे और मरीज़ लिख रहा है तो घंटों लिखता ही चला जाए .अकसर इस फेज़ में मरीज़ का व्यवहार गैर -तार्किक और अति -प्रधान होता है .तर्क की कसोटी पर कहीं खरा नहीं उतरेगा यह व्यवहार .बेशाख्ता ठण्ड पड़रही है .बरसात भी गिर रही है हवाएं भी सर्द हैं ,मरीज़ चिंतन प्रधान मुद्रा में "टू एंड फ्रो खुले में घूम रहा है .जा कहीं नहीं रहा है .विचार घुमा रहा है उसे ।
"बाई -पोलर डिस -ऑर्डर गेट्स यु टू कमिट एक्ट्स ऑफ़ एक्सेस देत नो बडी आउट -साइड ऑफ़ कोंग्रेस कैन गेट अवे विद "-सेज स्टीवन .डी .होल्लों ,पीएच .डी .,प्रोफ़ेसर ऑफ़ साइकोलोजी ,वान्दर्बिल्ट यूनिवर्सिटी ,नश्विले कैम्पस .(ज़ारी ....).

हार्ट अटक रिस्क स्पाइक्स आफ्टर सेक्स ,एक्सरसाइज़ .

अमरीकी मेडिकल असोशियेशन के इक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक़ कसरत करने के बाद तथा मैथुन रत होने के बाद के वक्फे में कुछ घंटा तक उन लोगों के लिए हार्ट अटेक का ख़तरा बढ़ जाता है जो आमतौर पर इन रोजमर्रा की एक्टिविटीज़ में कभी कभार ही शुमार होतें हैं ।कसरत से छिटके रहतें हैं .
बेशक यह ख़तरा तीन गुना बढ्जाता है लेकिन व्यक्ति -विशेष के लिए यह ख़तरा फिर भी ना मालूम सा ही रहता है .आइये देखें तीन गुना बढ़ने का आंकड़ों की जुबानी मायने क्या है ?
उन लोगों के लिए जो फिजिकली एक्टिव रहतें हैं ,सेक्स जिनके लिए एक आम फ़हम चीज़ है जहां यह ख़तरा दस लाख मामलों में एक है वहीँ इनमे कभी कभार ही उलझने शरीक होने वालों के लिए यह दस लाख के पीछे तीन मामलों में है ।
बेशक बेहद बिरले ही ऐसा होगा लेकिन अध्ययन का एक संकेत साफ़ है :हृद रोगियोंको नियमित व्यायाम करना चाहिए .सेक्स में भी शुमार रहना चाहिए नियमित (आखिर सेक्स के दरमियान भी तो आप केलोरीज़ बर्न करतें ही हैं ।).
सिदेंत्री लाइफ स्टाइल हृद रोगियों के दिल -ओ -दिमाग के लिए ऐसे ही मौकों पर अन -ड्यू -स्ट्रेस बनके आता है ।
रिसर्चरों ने पता लगाया है कसरत के बाद ऐसे लोगोंमें दिल के दौरों का ख़तरा ३.५ गुना तथा यौन सम्बन्ध बनाने मैथुन रत होने के पहले दो घन्टों में बढ़कर २.७ गुना हो जाता है .फिजिकल एक्टिविटी ने कार्डिएक अरेस्ट के खतरे के वजन को पांच गुना बढाया .ज़ाहिर है जिन लोगों को दिल का दौरा पड़ चुका होता है उनसे पूछा जाता है दौरे से पहले आप क्या कुछ करते रहे थे उस रोज़ .

हाव -एवर दी रिस्क ऑफ़ हार्ट अटेक और कार्डिएक डेथ वाज़ रिद्युज्द बाई ४५%एंड ३०%रेस्पेक्तिवली फॉर ईच एडिशनल वर्क आउट दी स्टडी पार्टिसिपेंट्स कम्प्लीतिद इन ए टिपिकल वीक .
दी मेसेज इज क्लीयर "सिदेंत्री पीपल हु वांट्स टू गेट इन शेप शुद इनक्रीज देयर लेविल ऑफ़ फिजिकल एक्टिविटी ग्रेज्युँली टू एव्होइड अन -ड्यू स्ट्रेस ऑन हार्ट .

हाई -पर -टेंशन से बचाव :होल ग्रीन सीरिअल नाश्ता .

सीरिअल मे हेल्प वार्ड ऑफ़ हाई -पर -टेंशन :हेल्थ .कॉम /मार्च २२ ,२०११ ।
जहां मोटापा ,कसरत की हमारी दिनचर्या से नदारदी(लेक ऑफ़ एक्सरसाइज़ ),संशाधित खाद्यों के चलन के साथ सोडियम का ज्यादा स्तेमाल और जिंदगी पर शाशन करता तनाव ब्लड प्रेशर की वजह बनता है ,ब्लड प्रेशर को और भी बढाने वाला सिद्ध हो रहा है वहीँ सुबह के नियमित नाश्ते में होल ग्रेन सीरियल जो रेशे और पुष्टिकर तत्वों से भरपूर है क्योंकि इसमें किशमिश के अलावा सूखे मेवे और फल भी रहतें हैं ब्लड प्रेशर से बचाव में इसे कमतर रखने में सहायक हो सकता है .यही लब्बोलुआब है उस दीर्घावधि तक चलते रहने वाले काया -चिकित्सकों के स्वास्थ्य से सम्बंधित (लॉन्ग रनिंग फिजीशियंस हेल्थ स्टडी )का जिसमे१३,००० ,औसतन ५२ साला मर्द शामिल रहें हैं जिनका ब्लड प्रेशर अध्ययन की शुरुआत में सामान्य था ।
अलबत्ता १७ साल तक चले इस अध्ययन के दरमियान इनमे से आधे हाई -पर -टेंशन से ग्रस्त हो गए .पता चला उन लोगों के बरक्स जो सीरिअल नाश्ताबिलकुल नहीं लेते थे उन लोगों का जो हफ्ते में औसतन एक बार होल ग्रेन सीरिअल नाश्ता ले रहे थे हाई -पर -टेंशन का जोखिम ७ % कम होगया था .जो अकसर ही ऐसा नाश्ता ले रहे थे उनके लिए यह ख़तरा और भी कम रहा ।
लेकिन जो रोजाना एक या ज्यादा बार ऐसा नाश्ता ले रहे थे उनके लिए यह जोखिम १९%तक कम हो गया .हाई -पर -टेंशन के खतरे के वजन को बढाने वाले दूसरे रिस्क फेक्टर्स यथा लोगों की स्मोकिंग की आदत ,कसरत ,फिजिकल एक्टिविटी खान- पान में फल और तरकारियों के सेवन को भी मद्दे नजर रखा गया इस जोखिम का जायज़ा लगाते वक्त ।
पता चला होल ग्रेन का बेहतर स्रोत हैं सीरिअल्स क्योंकि इनके साथ आम तौर पर दूध ही लिया जाता है जबकि ब्रेड के साथ सौसेजिज़ और संतृप्त वसाएं भी सर्व करने के ढंग में शुमार रहती हैं ।
तीन में से एक अमरीकी आज उच्च रक्त चाप का शिकार है .जो सबसे बड़ा जोखिम बना रहा है हार्ट अटेक्स,स्ट्रोक्स (ब्रेन -अटेक्स )तथा किडनी रोगों का ।
हाई -पर -टेंशन के प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य देखभाल पर ९० अरब डॉलर सालाना खर्च हो जाता है ।
होल ग्रेन सीरिअल जुटाने में आप हाई -पर -टेंशन की दवाओं से कम ,बहुत कम खर्च करेंगे ।
इस अध्ययन के नतीजे अमरीकी हार्ट असोशियेशन की "न्यूट्रीशन ,फिजिकल एक्टिविटी और मेटाबोलिज्म "पर बुलाई साला बैठक के समक्ष रखे गएँ हैं .
जादू होल ग्रेन सीरिअल्स में नहीं है इन्हें आप कैसे ,किस चीज़ के साथ ले रहें हैं उस चीज़ मसलन लो फैटदूध में भी है ..अलबत्ता यह अध्ययन मर्दों पर खरा उतरा है .औरतों तक ले जाकर इसका सामान्य -करण फिलवक्त नहीं किया जासकता .उनके लिए अलग से अध्ययन किये जा सकतें हैं .

मंगलवार, 22 मार्च 2011

बाल्ड -नेस ड्रग मे लीद तू लॉन्ग टर्म सेक्स्युअल डिस -फंक्शन

प्रोपेशिया और प्रोस्कार ट्रेड नेम से बिकने वाली दवा"फिना -स्टेराइड " जिसे दवा निगम मर्क बाज़ार में उतारता है गंजपन से निजात दिलवाने के नाम पर वह सिर पे बाल तो उगा देती है लेकिन बतौर अ -वांछित प्रभाव "लो लिबिडो ,"ओर्गेज़म (कामोत्तेजना के शीर्ष पर न पहुँच पाना ),लिगोथ्थान अभाव (इरेक्टाइल डिस -फंक्शन )का सबब बनती है और दवा बंद करने के बाद भी ये पार्श्व प्रभाव बने रहतें हैं यही लब्बो -लुआब है एक अध्ययन का जो "सेक्स्युअल मेडिसन "जर्नल में प्रकाशनाधीन है ।
बेशक दवा के लेविल पर इन पार्श्व प्रभावों की चेतावनी है इत्तला है लेकिन यह जानकारी भी सिर्फ यु .के .और स्वीडन के उपभोक्ताओं को मुहैया करवाई गई है अमरीकियों को नहीं ।
जबकि इन साइड इफेक्ट्स में मनो -वैज्ञानिक असर भी दवा के शामिल है ।
लेकिन इन्हें रिवार्सिबिल ही बतलाया गया है जबकि २१ -७६ साला मर्दों के एक हालिया सर्वे से पता चला है ,दवा बंद करने के तीन माह बाद भी ये पार्श्व प्रभाव बने रहतें हैं जिनमे शीर्ष से पहले स्खलन (प्री -मेच्युओर इजेक्युलेशन और इरेक्टाइल डिस -फंक्शन भी शामिल है .
और तीन माह तो न्यूनतम अवधि रही है इन लक्षणों के बने रहने की जबकि सर्वे में शरीक रहे कुछ लोगों के मामलेमे यह अवांछित प्रभाव ५-१० साल तक भी बने रहें हैं ।
जबकि ये तंदरुस्त लोग थे इनके साथ न कोई मेडिकल प्रोब्लम्स थीं (रोगों का इतिहास था )न कोई मनो -विकार आदि से ग्रस्त थे ये लोग .
अध्ययन में शरीक कुछ लोगों ने तो फिना -स्टेराइड लेदेकर चंद रोज़ ही आजमाई थी गंजपन से निजात के लिए इनमे से भी ९४ %को यौन संबंधों में अरुचि बनी रही (लो सेक्स्युअल डिजायर )९२ % को कामोत्तेजना में कमी महसूस हुई . ९२ %ने लिंगोथ्थान अभाव की शिकायत बतलाई ,६९ %को मैथुन के शिखर को छूने (क्लाइमेक्स ,ओर्गेज़म )में दिक्कत हुई ।
औसतन प्रतियोगियों ने २८ माह तक फिना -स्टेराइड ली थी .औसतन सेक्स्युअल प्रोब्लम्स की शिकायत इन्हें ४० माह तक बनी रही .जबकि इनमे से १०%दवा सिर्फ लेदेकर एक माह तक ही ली थी .

व्हाई इज दी की -बोर्ड नोट अरेंज्ड इन एल्फा -बेटिक ऑर्डर ?

शुरूआती टाइपराइटर्स में कीज़ वर्णमाला के क्रम में ही समायोजित की गईं थीं लेकिन ऐसा करने पर व्यावहारिक दिक्कत आने लगी .टाइप तो फास्ट होती थी लेकिन कीज़ आपस में उलझ जातीं थी परस्पर सटी हुई होना ही(मिकेनिकल आर्म्स ऑफ़ करेक्टर्स का ) इस उलझाव की वजह बन रही थी .इसीलिए उन्हें अ- व्यवस्थित क्रम में सजाया गया .बेशक इससे रफ्तार कम हुई लेकिन उलझाव मिकेनिकल -करेक्टर आर्म्स का समाप्त हो गया .
लेकिन अब कुंजियाँ जाम नहीं होतीं ।
सब्सिक्युवेंतली क्वेर्टी(क्यू डब्लू ई आर टी वाई )की -बोर्ड्स वर मेड सो देट वन कुडटाइप यूजिंग कीज़ फ्रॉम टॉप ऑफ़ दी की -बोर्ड .दिस रेंडम एरेंजमेंट बिकेम स्टें -दर्ड.

व्हाट इज ए यूनी -टास्कर?

यूनी -टास्कर कोई भी ऐसा उपकरण ,इलेक्त्रोनी /इलेक्ट्रिकल डिवाइस /यूनिट /टूल है जो एक समय में एक ही काम को अंजाम दे सकता है .कई व्यक्ति भी यूनी -टास्कर होतें हैं जो एक समय में एक ही काम एक ही कमांड फोलो कर सकतें हैं दूसरा काम साथ साथ बतला दो तो बौखला जायेंगें ।
वैसे भी यह "मल्टी -तास्कर्स"का दौर है जहांघर में उपकरणों की भीड़ में जगह का अभाव एक विधाई भूमिका निभा रहा है ,मान लीजिये आपकी रसोई में एक टोस्टर है यदि वह साथ में म्युज़िक प्लेयर का भी काम करे ,एक चैनल उसमे और हो तब वह मल्टी -टास्कर बन जाएगा ।
अलबत्ता यूनी -टास्कर /मल्टी -तास्कर्स के अपने फायदे और नुक्सानात हैं .

व्हाट आर डें -ड्राई -मार्स ?

डें -ड्राई -मार्स इक शब्द समुच्चय है जो ग्रीक भाषा के "डें -ड्रोन "तथा "मेरोस "के योग से बना है .यहाँ "डें -ड्रोन" का अर्थ वृक्ष और "मेरोस" का उसकी शाखाएं या कोई हिस्सा है ।

ये बहुत ही विशिष्ट नेनो आकार के संश्लेषित अणु हैं जिन्हें पहले पहल डी .ए .टमालिया ने "डोव लैब्स "में १९७९ में संश्लेषित किया था ।
अणुओं के ही आकार के स्पेशल नेनो -मोलिक्युल्स का आज चिकित्सा प्रोद्योगिकी में बेहद एहम स्तेमाल हो रहा है .जैसे विद्युत् -चुम्बकीय तरंगें (केरीयर वेव्ज़ )सिग्नल्स को इक जगह से दूसरी जगह लेजातीं हैं वैसे ही यह केरीयरमोलिक्युल्स बने हुए हैं एंटी -बायो-टिक्स के ,एंटी -कैंसर ड्रग्स के ,इंटर -फेरोंस के ..

व्हाट इज ए क्रोप मिल्क ?

व्हाट इज ए क्रोपमिल्क ?
क्रोप मिल्क बर्ड मिल्क के नाम से भी जाना जाता है पिजन्स मिल्क के भी लेकिन इसमें स्तनपाइयों के दूध में पाए जाने वाले केल्सियम और कार्बो -हाई -द्रेट्स न होकर खूब सारी वसा और प्रोटिनें मौजूद रहतीं हैं .
वास्तव में यह दूध की तरह इक तरल पदार्थ न होकर अर्द्ध ठोस (सेमी -सोलिड )एक्स्क्रीशन हैं जिसे कुछ पक्षी अपने नन्नों (हैच्लिंग्स )को विकास के उस आरंभिक चरण में फीड करतें हैं जब वह कीट पतंग हजम नहीं करपातें हैं कुछ और खाद्य भी नहीं .विकास के इस आरंभिक चरण में यह सुपाच्य प्रोटीन मुहिया करवाता है .ज़रूरी वसा भी .

कुछ मेडिकेशन और यूरिनरी इन -कोंटिनेंस.

दिल की बीमारियों में स्तेमाल होने वाली कुछ दवाएं ,रक्त चाप को कम करने विनियमित करने रखने वाली कुछ और दवाएं ,कुछ मसल रिलेक्सेंट्स ,शामक पदार्थ (सिदेतिव्ज़) कुछ और दवाएं भी इन -कोंटिनेंस के लक्षणों को बद से बदतर बना देतीं हैं .
डाई -युरेटिक्स (मूत्रल पदार्थ ,दवाएं ) अतिरिक्त तरल की शरीर से निकासी करवाके दिल और कुछ दूसरे ओर्गेंस के काम कोबेशक सु -दक्ष बना देतें हैं लेकिन ,.ऐसे में ब्लेडर बिचारे का फ्लुइड लोड बढ़ जाता है ।
अपने स्पेशलिस्ट से इस बारे में खुल कर ज़रूर पूंछ लें कि क्या कोई उसके द्वारा नुश्खे के तहत ली जाने वाली दवा तो अ -संयमित मूत्र त्याग को नहीं बढा रही है .खुद मुख्त्यार ,खुद अपना हकीम न बने ,अपने आप से कोई भी दवा न बंद करें .नीम हकीम ख़तरा -ए -जान ।
एक्सि -ड्रीं जैसी केफीन युक्त दवाओं से भी बचें .

मिर्च मसाले वाला स्पाइसी भोजन और अ -संयमित मूत्र त्याग (ज़ारी ...)

स्पाइसी फूड्स और यूरिनरी इन -कोंटिनेंस:
अध्ययनों से पुष्ट हुआ भोजन में करी चिल्ली पेपर ,कायेंने पेपर ,मिर्च मसाले कम करने पर यूरिनरी इन -कोंटिनेंस के लक्षणों का शमन होजाता है कमतर हो जातें हैं इस अ -संयमित मूत्र त्याग के लक्षण ।
खासकर महिलाओं के लिए माहिरों ने ओवर -एक्टिव ब्लेडर होने पर मिर्च मसाले दार खाद्यों को इक बड़ा इर्रीतेंट बतलाया है ।
जोहन्स होपकिंस अस्पताल की युरोलोजी एडल्ट नर्स प्रेक्टिशनर क्रिस्टन बर्न्स इसकी(उक्त तथ्य की जो अध्ययनों से भी पता चला है ) पुष्टि करती हैं .बेहतर है पता चलने पर की इनमे से कुछ खाद्यजो आपको माफिक नहीं पड़ते इनसे बचा जाए .

सिट्रस फ्रूट्स और यूरिनरी -इन -कोंतिनेंस (ज़ारी ...).

नीम्बू वंशीय खट्टे फल और अ -संयमित मूत्र -त्याग ,क्या कहतें हैं माहिर ?
बेशक सिट्रस फ्रूट्स और ड्रिंक्स विटामिन -सी मुहैया करवा देतें हैं लेकिन अर्ज़ -इन -कोंटिनेंस में इनका सेवन ठीक नहीं है ।
अम्लीय चीज़ें ,तमाम एसिडिक फूड्स और बीव्रेजिज़ मसलन ग्रेप फ्रूट्स ,ओरेंज़िज़ ,लाइम ,लेमन यहाँ तक की टमाटर भी मूत्राशय को जलन देकर भडका सकतें हैं ,इर्रितेट कर सकतें हैं .इन -कोंटिनेंस के लक्षणों को उग्र बना सकतें हैं ।
दरअसल हमारे ब्लेडर (मूत्राशय )मसल में तमाम तरह की नाड़ियाँ (नर्व्ज़)होतीं हैं एसिडिक फूड्स इनके लिए एक इर्रीतेंट का काम करतें हैं ऐसे में अर्जेंसी सिम्टम्स(अर्ज़ -इन -कोंटिनेंस )के लक्षण और भी उग्र हो जातें हैं .यही कहना है माहिरों का .

क्रेनबेरी जूस भी अच्छा नहीं है अ -संयमित मूत्र त्याग में ?

अपने एसिडिक पी एच मान की वजह से क्रेनबेरी जूस भी इन -कोंटिनेंस के लक्षणों को बद से बदतरीन बना सकता है .बेशक बारहा होने वाले मूत्र संक्रमण (यूरिनरी ट्रेक्ट इन्फेक्संस )में क्रेनबेरी जूस अच्छा माना जाता है लेकिन ओवर -एक्टिव ब्लेडर होने पर इसका प्रयोग ठीक नहीं सिद्ध हुआ है .

अ -संयमित मूत्र त्याग और फिज्ज़ी ड्रिंक्स .

डाइटकोक हो या रेग्युलर केफीन और कार्बोनेशन से युक्तबस एक कैन आपके ओवर -एक्टिव ब्लेडर को और भी भडका सकती है .कार्बोनेटिद ड्रिंक्स इन -कोंटिनेंस के कुछ लक्षणों को बद से बदतर बना देतीं हैं अध्ययनों से यह बारहा पुष्ट हुआ है .
तमाम माहिर (यूरोलोजिस्ट )इन -कोंटिनेंस से परेशान लोगों को आर्टिफिशियल फूड्स और कृत्रिम कथित खाद्य रंगों ,और केफीन को छोड़ उनकुदरती खाद्यों की ओर लौटने की सलाह देतें हैं जिनमे कुछ एंटी -ओक्सिदेंट्स भी हों ,विटामिनो से भरपूर फल ओर तरकारियाँ खाने के लिए कहतें हैं ,बबली बीव्रेजिज़ से दूर ही रहने की हिदायतें देतें हैं .चाहे वे बिना केफीन की ही क्यों न हों कार्बोनेशन तो उनमे भी है .सोडा किसी भी विध ठीक नहीं है इन -कोंटिनेंस में .लब्बोलुआब यही है .

अ-संयमित मूत्र त्याग में सुगर कितनी ली जाए ?(ज़ारी ..).

हनी ,कोर्न सिरप और फ्रुक्टोज़ युक्त खाद्य ,त्विज्लर्स को चोकलेट की जगह देना भी भला नहीं है यूरिनरी इन -कोंटिनेंस में भले उतना विधिवत अध्ययन सुग्री ड्रिंक्स और अ-संयमित मूत्र त्याग को लेकर नहीं हुआ है जितना एल्कोहल और केफीन को लेकर हो चुका है .
कृत्रिम सुगर भी अच्छी नहीं है यूरिनरी इन -कोंतिनेंस में ।अध्ययनों से इतना तो पुष्ट हो ही चुका है .
अर्ज -इन्कोंतिनेंस को उग्र बना सकतीं हैं ये तमाम चीज़ें ।
इसका मतलब यह नहीं है शक्कर को हाथ ही न लगाया जाए .बेशक यह इक संतुलित खुराक का हिस्सा बनी रहे .मोडरेशन इज दी "की" .

अ-संयमित मूत्र त्याग और चोकलेट ....

ओवर -एक्टिव ब्लेडर को और भी भडका सकती है चोकलेट चाहे वह फिर डार्क चोकलेट हो मिल्क या हॉट चोकलेट हो भले चोकलेट मिल्क ही क्यों न हो जिसमे उतना ही केफीन होता है जितना डिकेफीन- कोफी में रहता हाई .यूरिनरी इन -कोंटिनेंस के लिए भली नहीं है केफीन युक्त चोकलेट .

अ -सयंमित मूत्र त्याग (ज़ारी ...)

अ -संयमित मूत्र त्याग में चाय -कोफी की भूमिका :कोफी और चाय में केफीन की मौजूदगी इसे ब्लेडर इर्रीतेंट बना देती है क्योंकि दोनों ही एलकोहल की तरह ही मूत्रल हैं .मूत्राशय के अस्तर (ब्लेडर -लाइनिंग )के लिए केफीन इक ज्ञात इर्रीतेंट है .(दाहक पदार्थ है )।
केफीन की मात्रा घटाने पर इन्कोंतिनेस में राहत ही मिलती है अध्ययनों से ऐसा पुष्ट हुआ है .डी -केफ़ कोफी से जिसमे केफीन कमतर होता है समस्या हल नहीं होती है अलबत्ता केफीन की हुकिंग होने पर इसे धीरे धीरे ही कम किया जाए ताकि विद -ड्रोवल सिम्टम्स से आप बचे रहें .

टेन थिंग्स देत कैन मेक इन -कोंतिनेस वर्स्ट .(ज़ारी ....)

गत पोस्ट से आगे .....
इन -कोंतिनेंस (यूरिनरी ):एक विहंगावलोकन .
(१)फ्ल्युइड इंटेक :बहुत ज्यादा ड्रिंक्स ,पानी से लेकर दूध और बीव्रेजिज़ तक अ -संयमित मूत्र त्याग
को और भी ज्यादा बढा सकतीं हैं .हालाकि समस्या एक दमसे फ्ल्युइड इंटेक घटाने से हल नहीं होती इससे एक नया बखेड़ा निर्जलीकरण (डी -हाई -डरेशन का ,कब्जी यानी कोंस्तिपेशन का खडा हो सकता है गुर्दे में पथरी (किडनी स्टोन )बन सकता है ,ऐसे में ब्लेडर इर्रिटेशन बद से बदतर हो सकता है .
संतुलन तो बनाए ही रखना होगा जिसके लिए दिन भर में २ लीटर जलीय अंश तो चाहिए भी .इसकी मात्रा आपके लीन बॉडी मॉस से भी निर्धारित होती है .अलबत्ता यदि इन्कोंतिनेस की समस्या रात को ज्यादा पेश आती है तब शाम होने पर ज्यादा फ्ल्युइड न लें ।
(२)एलकोहल :मूत्रल (डाई -युरेटिक)होता है एलकोहल (खासकर बीयर ).इससे अर्ज -कोंटिनेस प्रेरित होता है .ओवर -एक्टिव ब्लेडर होने पर ब्लेडर इर्रिटेशन और भी बहुत बढ़ जाता है .(ज़ारी ...)

यूरिनरी इन -कोंतिनेंस:एक सरसरी दृष्टिपात .(विहंगावलोकन )

इन -एप्रो-प्रियेत ,इन -वोलंटरी - पैसेज ऑफ़ यूरिन इज काल्ड यूरिनरी -इन -कोंटिनेंस .अनेबिल टू कंट्रोल ब्लेडर इज इन -कोंटिनेंस .यानी जब आपका ब्लेडर पर से नियंत्रण हठ जाए वाशरूम जाते जाते लीकेज हो जाए .बेशक कोई भी इसका ग्रास बन सकता है लेकिन महिलाओं को ज्यादा सताता है यह लीकेज मर्दों के बरक्स .माइल्ड यूरिनरी लीकेज तो कभी न कभी हर महिला को असरग्रस्त करता ही है .,यही कहना है मारी रोस्सेर का .आप स्त्रीरोग और प्रसूति विभाग ,मोन्तेफ़िओरे मेडिकल सेंटर ,न्यू -योर्क सिटी कैम्पस ,में सहायक प्रोफ़ेसर के पद पर काबिज हैं .ओब्स्तेत्रिक्स और गाईनेकोलोजी की माहिर हैं ।
बेशक यह उम्र दराज़ महिलाओं में आम तौर पर देखने में आता है लेकिन अपेक्षाकृत युवा महिलाएं भी इसकी गिरिफ्त में आजातीं हैं ।
यहाँ हम सिर्फ "स्ट्रेस इन -कोंटिनेंस" और "अर्ज -इन -कोंटिनेंस" पर सरसरी निगाह डालेंगे ।
स्ट्रेस -इन -कोंटिनेंस :इट इज दी लोस ऑफ़ यूरिन /लीकेज ऑन एक्ज़र्शन मे बी ड्यूरिंग कफिंग एंड स्त्रेनिंग .कुछ औरतों में प्रसव के बाद (पोस्ट डिलीवरी )पेल्विक फ्लोर की पेशियों का कमज़ोर पड़ना इसकी वजह बन जाता है ।
अर्ज -इन -कोंटिनेंस :इट इज दी लीकेज ऑफ़ यूरिन देट एकाम्प्नीज़ एन इंटेंस डिजायर टूपास वाटर विद फेलियोर ऑफ़ रेस्त्रेंट यानी एक दमसे आपके वाश रूम की तरफ जाते जाते पेशाब थोड़ा बहुत निकल ही जाता है .(ज़ारी ...)

सोमवार, 21 मार्च 2011

फुकुशिमा प्रिफ्रेक्चर के गिर्द खाद्य पदार्थों में रेडियो -विकिरण बढा ...

२० मार्च ,२०११ इतवार के रोज़ फुकुशिमा प्रिफ्रेक्चर से प्राप्त दूध तथा पडोसी इबाराकी प्रिफ्रेक्चर से प्राप्त पालक (स्पिनाच )की बिक्री को निलंबित कर दिया गया .इन खाद्यों में रेडियो -आयोडीन और रेडियो -सीजियम का स्तर सरकारी स्वीकृत सुरक्षित समझी जाने वाली सीमा से ऊपर चला गया .दोनों प्रिफ्रेक्चारीज़ से प्राप्त तरकारियों और फलों के वितरण पर भी रोक लगादी गई है ।
टोक्यो के उत्तर पूर्व का यह इक प्रमुख इलाका है जो फल तरकारियों और चावल की टोक्यो को आपूर्ति करवाता है ।
पूर्व में फुकुशिमा एटमी बिजली संयंत्र के ३० किलोमीटर के घेरे से पैदा उत्पाद (दूध आदि )पर रोक लगाईं गई थी .अब यह रोक १२० किलोमीटर केघेरे से प्राप्त उत्पादों के लिए भी लागू करदी गई है ऐसा इबाराकी प्रिफ्रेक्चर से प्राप्त पालक के नमूनों की विकिरण जांच के बाद ही किया गया है ।
फुकुशिमा प्रिफ्रेक्चर से चार अलग अलग जगहों से उठाए गए दूध के नमूनों में रेडियो-आयोडीन १३१ का स्तर स्वीकृत सीमा से २०%ऊपर से लेकर १७ गुना तक बढाहुआ पाया गया है .
इक और जगह पर जांच के बादरेडियो - सीजियम का स्तर स्वीकृत सीमा से ५%ऊपर पाया गया है ।
इबाराकी में पालक के नमूनों में दस अलग अलग जगह से जांच के बाद ५%से लेकर २७ गुना ज्यादा पाया गया है ।
७जगह पर सीजियम का स्तर ४%से बढ़कर ४गुना तक दर्ज़ हुआ ।
फुकुशिमा की बोइलिंग वाटर टाइप एटमी भट्टी से रेडियो -विकिरण उप -उत्पाद के रूप में युरेनियम ईंधनकी छड़ों से रेडियो आयोडीन और रेडियो सीजियम रिसते रहें हैं इनमे से पहले की हाल्फ लाइफ सिर्फ ८ दिन तथा दूसरे रेडियोसक्रिय -आइसोटोप सीजियम १३७का अर्द्ध जीवन काल ३० वर्ष है .इनसे बचाव के लिए पूर्व में स्टेबिल आयोडीन इंजेस्ट करने की सलाह दी गई थी .

डू यु सिट टू मच ?

सिटिंग टू मच कैन शोरतिन योर लाइफ बिसाइड्स स्टिफ जोइंट्स ,एकी मसल्स ,नंब लिम्ब्स -स्टडी ।
१,२३०० लोगों से बातचीत करने उनकी सेहत का जायजा लेने के बाद अमरीकी कैंसर सोसायटी के रिसर्चरों ने पता लगाया है ,इनमे से जोमहिलायें दिनभर में ६ घंटा बैठे रहतीं हैं उनकी असामयिक मौत की संभावना ३७%बढ्जातीहै बरक्स उनके जो दिनभर में तान घंटों से कम ही बैठी रहतीं हैं .नियमित व्यायाम भी इस खतरे को कम नहीं करपाता है जबकि मर्दों के मामले में यह १८%बढ़ जाता है .यही संभावना तब बढ़कर ९८ और ४८ फीसद हो जाती है जब ये लोग इतने ही घंटे बैठे तो रहतें हैं लेकिन व्यायाम बिलकुल भी नहीं करते ।
दरअसल बैठे रहने का नकारात्मक प्रभाव हमारे कोलेस्ट्रोल ,ट्राई -ग्लीस-राइड्स ,भूख का विनियमन करने वाले इक हारमोन लेप्टिन के अलावा उन दूसरी चीज़ों पर भी पड़ता है जिनका ताल्लुक मोटापे और दिल की बीमारियों से रहता है ।
इससे बचे रहने के लिए ज़रूरी है :
(१)हफ्ते में कमसे कम १५० मिनिट का मोडरेट से लेकर कठोर व्यायाम .यानी २० मिनिट रोजाना ।
(२)हर घंटे के बाद डेस्क छोड़कर बस चंद मिनिट घूम लें ।रक्त प्रवाह होने लगेगा ठीक ठाक .
(३)यदि यह भी मुमकिन न हो तो काम के बीच में २० मिनिट का इक ब्रेक लें उसमे यह कोटा पूरा करें ।
(४)रेज्ड डेस्क पर खड़े खड़े भी काम करके देखें .आदत डालें ऐसा करने की .
(५)इंटर ऑफिस फोन का स्तेमाल न करें ,ईमेल भी न लिखें इंटर ऑफिस ,उठकर जाएँ साथी के पासकामकाजी चर्चा के लिए ॥
(६)आस पास के काम पैदल चलकर ही कीजिये ,हर जगह गाडी न ले जाएँ ।
(७)म्युज़िक कंसर्ट की जगह डांस क्लास में जाएँ .बालिंग अलली में जाएँ ।
याद रहे "ह्यूमेन बॉडी इज नोट डिज़ा -इंद फॉर सिटिंग ".