मल्तिपिल स्केलेरोसिस एक ऐसा रोग है दिमाग और रीढ़ रज्जू की कोशाओं को जो जख्मी करता जाता है .वक्त के साथ यह रोग बढ़ता ही जाता है जिसमे प्रतिरक्षा तंत्र अपनी ही प्रति -रक्षी कोशाओं का अस्तर (प्रोटीन कोट ,प्रोटीन आवरण माय्लिन ) को नष्ट कर देता है इसे विजातीय समझकर ।
इन्हीं कोशाओं को पहुँचने लगने वाली चोट का नतीजा इन्द्रिय सम्बन्धी बोध ,सेंसरी या फिर मोटर (मस्क्युलर )फंक्शन के बदलाव के रूप में सामने आता है .भौतिक क्षमताओं के ह्रास और छीजते चले जाने के रूप में प्रगटित होता है ।
इस ऑटो -इम्यून डिजीज का कारण अज्ञात बना हुआ है .अलबत्ता ऐसा समझा जाता है ,आनुवंशिक ,इम्युनोलोजिकल और पर्यावरणीय तीनों तरह के तत्वों का इस रोग के पीछे कुछ न कुछ हाथ रहता है ।
जहां तक इलाज़ का सवाल है मरीज़ को दवाओं से उनके पार्श्व प्रभावों से ,खाद्य एवं दवा संस्था द्वारा प्राप्त मंजूरी तथा ड्रग टोलरेंस कैसे बढाई जाए यह सब समझाने के बाद ही थिरेपी का चयन किया जाता है . एक संवाद डॉ और मरीज़ के बीच एक पुल का काम करता है .इस रोग से पार पाने इससे तालमेल बिठाने में ।
(ज़ारी ..).
एक शैर सुनियेगा :
पलकें भी चमक उठतीं हैं सोते में हमारी ,
आँखों को अभी ,ख़्वाब छिपाने नहीं आते ,
दिल अब है एक उजड़ी सराय की तरह ,
रातों को यहाँ लोग,अब रात बिताने नहीं आते .
मंगलवार, 31 मई 2011
न्यु रिसर्चिज़ फॉर मेनेजिंग मल्तिपिल स्केलेरोसिस .
व्हाट आर दी फ्यूचर डाय -रेक्संस फॉर मेनेजिंग मल्तिपिल स्केलेरोसिस ?
इन्वेस्तिगेश्नल थिरेपीज़ के केंद्र में फिलवक्त हमारा रोग प्रति -रोधी तंत्र ही बना हुआ है .साइंसदान ऐसी तरकीबें तलाश रहें हैं जो दिमागी कोशाओं से खोये जा चुके माय्लिन अस्तर (माय्लीन शीथ)फिर से बनवा सकें ।या फिर जो नाड़ियों की मौत को थाम सकें .ध्यान रहे मल्तिपिल स्केलेरोसिस में इम्यून सिस्टम अपनी ही प्रतिरक्षी कोशाओं की प्रोटीन कवरिंग (माय्लिन शीथ )को विजातीय समझके नष्ट करने लगता है ।
आदिम प्रति रूप (यूज़ ऑफ़ प्री कर्सर ):न्यूरोनल स्टेम सेल्स याँ प्रोजिनिटर कोशाओं को भी दिमाग और रीढ़ रज्जू में रोपे जाने की जुगत में साइंसदान हैं ताकि उन इलाकों की भरपाई की जा सकें जहां से दिमागी कोशायें नष्ट हो चुकीं हैं ।
"फ्यूचर थिरेपी मे इन्वोल्व मेथड्स डिज़ा -इंड टू इम्प्रूव इम्पल्ज़िज़ ट्रेवलिंग ओवर दी डेमेज्ड नर्व्ज़"।
हमारी खुराक और हमारे पर्यावरण से क्या मदद मिल सकती है इस ऑटो -इम्यून डिजीज मल्तिपिल स्केलेरोसिस के प्रबंधन में साइंसदान इसका भी पता लगा रहें हैं .
(जारी )।
और अब एक शैर सुनियेगा :
कोई तो मजबूरियाँ रहीं होंगी ,
यूं कोई बे -वफा नहीं होता ,
गुफ़्त -गु रोज़ उससे होती है ,
मुद्दतों सामना नहीं होता .
रात का इंतज़ार कौन करे ,
दिन में क्या कुछ नहीं होता .
इन्वेस्तिगेश्नल थिरेपीज़ के केंद्र में फिलवक्त हमारा रोग प्रति -रोधी तंत्र ही बना हुआ है .साइंसदान ऐसी तरकीबें तलाश रहें हैं जो दिमागी कोशाओं से खोये जा चुके माय्लिन अस्तर (माय्लीन शीथ)फिर से बनवा सकें ।या फिर जो नाड़ियों की मौत को थाम सकें .ध्यान रहे मल्तिपिल स्केलेरोसिस में इम्यून सिस्टम अपनी ही प्रतिरक्षी कोशाओं की प्रोटीन कवरिंग (माय्लिन शीथ )को विजातीय समझके नष्ट करने लगता है ।
आदिम प्रति रूप (यूज़ ऑफ़ प्री कर्सर ):न्यूरोनल स्टेम सेल्स याँ प्रोजिनिटर कोशाओं को भी दिमाग और रीढ़ रज्जू में रोपे जाने की जुगत में साइंसदान हैं ताकि उन इलाकों की भरपाई की जा सकें जहां से दिमागी कोशायें नष्ट हो चुकीं हैं ।
"फ्यूचर थिरेपी मे इन्वोल्व मेथड्स डिज़ा -इंड टू इम्प्रूव इम्पल्ज़िज़ ट्रेवलिंग ओवर दी डेमेज्ड नर्व्ज़"।
हमारी खुराक और हमारे पर्यावरण से क्या मदद मिल सकती है इस ऑटो -इम्यून डिजीज मल्तिपिल स्केलेरोसिस के प्रबंधन में साइंसदान इसका भी पता लगा रहें हैं .
(जारी )।
और अब एक शैर सुनियेगा :
कोई तो मजबूरियाँ रहीं होंगी ,
यूं कोई बे -वफा नहीं होता ,
गुफ़्त -गु रोज़ उससे होती है ,
मुद्दतों सामना नहीं होता .
रात का इंतज़ार कौन करे ,
दिन में क्या कुछ नहीं होता .
अदर एप्रूव्ड ट्रीट -मेंट्स फॉर मल्तिपिल स्केलेरोसिस .
फिन्गोलिमोद(गिलेन्य ):इस दवा को मल्तिपिल स्केलेरोसिस के इलाज़ के लिए २०१० में खाने वाली दवा के रूप में अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था ने अपनी मंजूरी दे दी थी .
यह दवा लिम्फ़ोसाइत्स की संख्या को घटा देती है (लिम्फो -साइट्स हमारे खून में मौजूद वाईट ब्लड सेल्स जैसी ही कोशायें होतीं हैं जिनका इम्युनिटी (प्रति रक्षण )तथा इन्फ्लेमेशन की प्रक्रिया में बड़ा हाथ रहता है ।
यह दवा कैप्स्यूल के रूप में उपलब्ध है .यद्यपि यह एम् एस का समाधान (क्योर )नहीं है लेकिन यह एम् एस के फ्लेयर्स (लक्षणों के उग्र होने )तथा रोग से पैदा शारीरिक अक्षमताओं के बढ़ने को रोकती है जो समय के साथ बढ़तीं जातीं हैं .
लेकिन इन्जेक्तिबिल थिरेपीज़ की तरह इसकी भी दीर्घावधि स्तेमाल के बाद की निरापदता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ।
हेडेक ,फ्ल्यू ,कमर दर्द ,डायरिया (अतिसार ),कफ तथा खून में लीवर एंजाइम्स का बढना इसके आम उत्तर प्रभाव (साइड इफेक्ट्स )हैं।
अलावा इसके बीनाई सम्बन्धी समस्या भी आड़े आ सकती है इसलिए इस दवा के स्तेमाल के साथ नियमित नेत्र जांच भी होती रहनी चाहिए ,
(ज़ारी ...).
यह दवा लिम्फ़ोसाइत्स की संख्या को घटा देती है (लिम्फो -साइट्स हमारे खून में मौजूद वाईट ब्लड सेल्स जैसी ही कोशायें होतीं हैं जिनका इम्युनिटी (प्रति रक्षण )तथा इन्फ्लेमेशन की प्रक्रिया में बड़ा हाथ रहता है ।
यह दवा कैप्स्यूल के रूप में उपलब्ध है .यद्यपि यह एम् एस का समाधान (क्योर )नहीं है लेकिन यह एम् एस के फ्लेयर्स (लक्षणों के उग्र होने )तथा रोग से पैदा शारीरिक अक्षमताओं के बढ़ने को रोकती है जो समय के साथ बढ़तीं जातीं हैं .
लेकिन इन्जेक्तिबिल थिरेपीज़ की तरह इसकी भी दीर्घावधि स्तेमाल के बाद की निरापदता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ।
हेडेक ,फ्ल्यू ,कमर दर्द ,डायरिया (अतिसार ),कफ तथा खून में लीवर एंजाइम्स का बढना इसके आम उत्तर प्रभाव (साइड इफेक्ट्स )हैं।
अलावा इसके बीनाई सम्बन्धी समस्या भी आड़े आ सकती है इसलिए इस दवा के स्तेमाल के साथ नियमित नेत्र जांच भी होती रहनी चाहिए ,
(ज़ारी ...).
अदर एप्रूव्ड मेडिकेसंस फॉर मल्तिपिल स्केलेरोसिस (ज़ारी ...).
नाटलिज़ुमाब (त्य्साब्री ):रिलेप्सिंग मल्तिपिल स्केलेरोसिस (आर एम् एस )के इलाज़ के लिए इस दवा को भी ऍफ़ डी ए की मंजूरी प्राप्त है .यह दवा एक एंटी -बॉडी है "वी एल ए -४" मोलिक्युल के खिलाफ. इस अणु के इम्यून सेल्स (प्रति -रक्षी कोशाओं )को अन्य कोशाओं से चिपके रहने उनके साथ बने रहने के लिए ज़रुरत पड़ती है .ताकि दिमाग तक घुंस पैठ की जा सके .इसे महीने में एक बार अंत :शिरा इन्फ्युज़ंस के ज़रिये दिया जाता है ।
लेकिन इसके साथ एक गंभीर चेतावनी और एहतियात चस्पा हैं :
"इट केरीज़ ए वार्निंग फॉर ए पोटेंशियाली फेटल डिजीज "प्रोग्रेसिव मल्टी -फोकल ल्यूको -एनसी -फेलो -पैथी "यानी (पी एम् एल ) .यह एक दिमागी संक्रमण है .जो अकसर बेहद की भौतिक अक्षमता या फिर मौत की ही वजह बन जाता है ।
इसलिए यह ट्रीट मेंट उन्हीं के लिए है जो एक नियंत्रित कंट्रोल्ड ड्रग दिस्त्रिब्युशन प्रोग्रेम के तहत राजी हो जातें हैं इस इलाज़ के लिए अपने रिश्क पर ।
यह दवा रिलेप्सिंग एम् एस के मामलों में एक तरफ समय के साथ बढती भौतिक अक्षमता को रोकती है दूसरी तरफ क्लिनिकल रिलेप्स के पुनर -आवृत्ति को भी कम करती है .लेकिन दो साल तक स्तेमाल के बाद इसकी कारगरता ,दक्षता और निरापदता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ।
जिन्हें और कोई वैकल्पिक चिकित्सा असर नहीं करती उनके लिए ही इसे आजमाया जाता है क्योंकि यह पी एम् एल के खतरे को भी बढा देती है.
मितोक्सान्त्रोने(नोवंत्रोने ) :इस दवा का स्तेमाल न्युरोलोजिक डिसेबिलिटी (स्नायुविक अक्षमता )तथा क्लिनिकल रिलेप्सिज़ क़ी पुनरावृत्ति को कम करने के लिए किया जाता है ।
इसे ऍफ़ डी ए की मंजूरी "एस पी -एम् एस "यानी सेकेंडरी प्रोग्रेसिव मल्तिपिल स्केलेरोसिस ,पी आर -एम् एस या फिर बदतर होते आर आर -एम् एस के मामलों के प्रबंधन के लिए दी गई है ।
अलबत्ता यह एक केमो -थिरेपी ड्रग है जिसके पार्श्व प्रभावों में सीरियस कार्डिएक साइड इफेक्ट्स तथा कैंसर (ल्यूकेमिया )शामिल हैं ।
इसलिए इसे उन लोगों पर ही आजमाया जाता है जो रोग के बहुत आगे के या आखिरी चरण में ही पहुच रहे होतें हैं .इसकी डोज़ का क्वांटम भी मुक़र्रर किया गया डोज़ देने से पहले दिल का पूरा मुआयना किया जाता है .सालाना कार्डिएक मोनिटरिंग की जाती है .
(ज़ारी ...)
लेकिन इसके साथ एक गंभीर चेतावनी और एहतियात चस्पा हैं :
"इट केरीज़ ए वार्निंग फॉर ए पोटेंशियाली फेटल डिजीज "प्रोग्रेसिव मल्टी -फोकल ल्यूको -एनसी -फेलो -पैथी "यानी (पी एम् एल ) .यह एक दिमागी संक्रमण है .जो अकसर बेहद की भौतिक अक्षमता या फिर मौत की ही वजह बन जाता है ।
इसलिए यह ट्रीट मेंट उन्हीं के लिए है जो एक नियंत्रित कंट्रोल्ड ड्रग दिस्त्रिब्युशन प्रोग्रेम के तहत राजी हो जातें हैं इस इलाज़ के लिए अपने रिश्क पर ।
यह दवा रिलेप्सिंग एम् एस के मामलों में एक तरफ समय के साथ बढती भौतिक अक्षमता को रोकती है दूसरी तरफ क्लिनिकल रिलेप्स के पुनर -आवृत्ति को भी कम करती है .लेकिन दो साल तक स्तेमाल के बाद इसकी कारगरता ,दक्षता और निरापदता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ।
जिन्हें और कोई वैकल्पिक चिकित्सा असर नहीं करती उनके लिए ही इसे आजमाया जाता है क्योंकि यह पी एम् एल के खतरे को भी बढा देती है.
मितोक्सान्त्रोने(नोवंत्रोने ) :इस दवा का स्तेमाल न्युरोलोजिक डिसेबिलिटी (स्नायुविक अक्षमता )तथा क्लिनिकल रिलेप्सिज़ क़ी पुनरावृत्ति को कम करने के लिए किया जाता है ।
इसे ऍफ़ डी ए की मंजूरी "एस पी -एम् एस "यानी सेकेंडरी प्रोग्रेसिव मल्तिपिल स्केलेरोसिस ,पी आर -एम् एस या फिर बदतर होते आर आर -एम् एस के मामलों के प्रबंधन के लिए दी गई है ।
अलबत्ता यह एक केमो -थिरेपी ड्रग है जिसके पार्श्व प्रभावों में सीरियस कार्डिएक साइड इफेक्ट्स तथा कैंसर (ल्यूकेमिया )शामिल हैं ।
इसलिए इसे उन लोगों पर ही आजमाया जाता है जो रोग के बहुत आगे के या आखिरी चरण में ही पहुच रहे होतें हैं .इसकी डोज़ का क्वांटम भी मुक़र्रर किया गया डोज़ देने से पहले दिल का पूरा मुआयना किया जाता है .सालाना कार्डिएक मोनिटरिंग की जाती है .
(ज़ारी ...)
हम लोग और ये नफासत पसंद लोग .
किस्सा छोटा सा ज़रूर है लेकिनं छोटी छोटी बातों से ही सोचने के तौर तरीके ज़ाहिर होतें हैं .हुआ यूं हमारी बिटिया यहाँकेंटन सी वी एस स्टोर (यहाँ फार्मेसी कहतें हैं ) कुछ दवा खरीदने गई .गाडी होना यहाँ न तो कोई अजूबा होता है और न पद प्रतिष्ठा का मुद्दा .ज्यादातर लोगों के पास गाडी भी आराम दायक ही होतीं हैं ।
ऐसी ही एक लग्ज़री कार हमारी बिटिया भी चला रही थी ."टोयोटा हाई -लेंडर "एस यु वी (स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हिकिल की श्रेणी में गिनती होती है इसकी ।).
हालाकि यहाँ फार्मेसी के बाहर अच्छा खासा स्पेस और पार्किंग लाट होता है लेकिन पार्किंग स्पोट जो खाली थी उसके दोनों तरफ भी बड़ी गाड़ियां ही खड़ीं थीं.गाडी खड़ी करते समय कर्व निगोशिएट करते में चूक हुई और गाडी बिटिया की" फोर्ड एस्केप एस यु वी "से टकरा गई ।
बिटिया एक अपराध भावना से ग्रस्त थी -अरे मैंने एक खड़ी हुई गाडी ही ठोक दी .किम्कर्त्तव्य विमूढ़ ज्यादा देर न रही ।
बिटिया ने सीधे फार्मेसी के अन्दर जाके मेनेजर को संपर्क किया ओवरहेड अनाउन्समेंट (ओवरहेड पेजिंग कराई )कराया -दी ड्राइवर ऑफ़ दी ब्लेक फोर्ड एस्केप टूप्लीज़ रिपोट ऑन दी काउंटर .बिटिया ने उसे सारी बात समझाई -आई एम् सोरी !देयर इज ए बेड न्यूज़ फॉर यु ,आई जस्ट एक्सिदेंतली बम्प्द इनटू दी रायर ऑफ़ योर कार . वह एक अफ़्रीकी अमरीकी बुजुर्ग थे .उन्होंने फ़ौरन कहा -इट्स ओ के !एक्सिदेंट्स डु हेपिन लेट्स हेव ए लुक .
मय मेनेजर तीनों लोग स्टोर से बाहर आये और दोनों ओर के नुकसान का जायजा लेने के बाद उस बुजुर्ग ने कहा -आई फील बेड फॉर यु !योर कार इज मोर डेमेज्ड देन माइन पर्हेप्स नेक्स्ट टाइम यु थिंक ऑफ़ बाइंग "फोर्ड "।
मेनेजर को वापस स्टोर में अन्दर जाना था उसने दोनों से पूछा -डु यु गाईज़ नीड माई हेल्प .दोनों ने कहा हमें एक झाड़ू चाहिए ताकि टूटी हुई लाइटों के टुकड़े हम साफ़ करदें .मेनेजर ने कहा-आप इसकी चिंता न करें यह काम हो जाएगा ।
इत्तेफाकन आज केंटन में तापमान ९५ फारेन्हाईट था जो यहाँ के लिए भरी गर्मी का आज पहला दिन था .लेकिन किसी के भी माथे पे ज़रा भी शिकन नहीं थी .बिटिया ने पुलिस को सिर्फ इसलिए बुलाया ताकि इन्सिडेंट सर्टिफिकेट प्राप्त किया जा सके इन्स्युरेंस क्लेम के लिए .आखिर आकस्मिक घटना का कोई गवाह भी तो होना चाहिए .
पोलिस ऑफिसर के आते ही बिटिया ने कहा -तकलीफ के लिए माफ़ी ।
नोट ए प्रोब्लम !माई जॉब !आई विल ट्राई टू टेक यु गाईज़ आउट ऑफ़ हेयर एज सून एस पोसिबिल .गिव मी टेन मिनिट्स .
दोनों से उसने ज़रूरी कागज़ात (ड्राइविंग लाइसेंस ,इन्स्युरेंस पेपर्स ,गाडी के कागज़ )लिए और कार के डेश बोर्ड में लगी मशीन में फीड किये .
पोलिस वाले ने पांच मिनिट बाद ही इन्सिडेंट सर्टिफिकेट दोनों को थमा दिए और 'ड्राइव सेफ 'कहते हुए चला गया ।
जाते हुए बुजुर्ग ने बिटिया से कहा -होप टू सी यु अराउंड इन केंटन ।
क्या ये सब -इतना स्मूथलीइतनी ही सहजता से मेरे भारत में भी होता ,किसी के भी चेहरे पे कोई शिकन नहीं ,गिला नहीं शिकवा नहीं .यहाँ तो बात बे -बात अब रोड रेज भी होने लगी है .एस यु वी वाले तो ज़रा ज्यादा ही तड़ी में होतें हैं मूळीगाज़र की तरह आम आदमी क्या पुलिस वाले को भी रोंद के निकल जातें हैं .
ऐसी ही एक लग्ज़री कार हमारी बिटिया भी चला रही थी ."टोयोटा हाई -लेंडर "एस यु वी (स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हिकिल की श्रेणी में गिनती होती है इसकी ।).
हालाकि यहाँ फार्मेसी के बाहर अच्छा खासा स्पेस और पार्किंग लाट होता है लेकिन पार्किंग स्पोट जो खाली थी उसके दोनों तरफ भी बड़ी गाड़ियां ही खड़ीं थीं.गाडी खड़ी करते समय कर्व निगोशिएट करते में चूक हुई और गाडी बिटिया की" फोर्ड एस्केप एस यु वी "से टकरा गई ।
बिटिया एक अपराध भावना से ग्रस्त थी -अरे मैंने एक खड़ी हुई गाडी ही ठोक दी .किम्कर्त्तव्य विमूढ़ ज्यादा देर न रही ।
बिटिया ने सीधे फार्मेसी के अन्दर जाके मेनेजर को संपर्क किया ओवरहेड अनाउन्समेंट (ओवरहेड पेजिंग कराई )कराया -दी ड्राइवर ऑफ़ दी ब्लेक फोर्ड एस्केप टूप्लीज़ रिपोट ऑन दी काउंटर .बिटिया ने उसे सारी बात समझाई -आई एम् सोरी !देयर इज ए बेड न्यूज़ फॉर यु ,आई जस्ट एक्सिदेंतली बम्प्द इनटू दी रायर ऑफ़ योर कार . वह एक अफ़्रीकी अमरीकी बुजुर्ग थे .उन्होंने फ़ौरन कहा -इट्स ओ के !एक्सिदेंट्स डु हेपिन लेट्स हेव ए लुक .
मय मेनेजर तीनों लोग स्टोर से बाहर आये और दोनों ओर के नुकसान का जायजा लेने के बाद उस बुजुर्ग ने कहा -आई फील बेड फॉर यु !योर कार इज मोर डेमेज्ड देन माइन पर्हेप्स नेक्स्ट टाइम यु थिंक ऑफ़ बाइंग "फोर्ड "।
मेनेजर को वापस स्टोर में अन्दर जाना था उसने दोनों से पूछा -डु यु गाईज़ नीड माई हेल्प .दोनों ने कहा हमें एक झाड़ू चाहिए ताकि टूटी हुई लाइटों के टुकड़े हम साफ़ करदें .मेनेजर ने कहा-आप इसकी चिंता न करें यह काम हो जाएगा ।
इत्तेफाकन आज केंटन में तापमान ९५ फारेन्हाईट था जो यहाँ के लिए भरी गर्मी का आज पहला दिन था .लेकिन किसी के भी माथे पे ज़रा भी शिकन नहीं थी .बिटिया ने पुलिस को सिर्फ इसलिए बुलाया ताकि इन्सिडेंट सर्टिफिकेट प्राप्त किया जा सके इन्स्युरेंस क्लेम के लिए .आखिर आकस्मिक घटना का कोई गवाह भी तो होना चाहिए .
पोलिस ऑफिसर के आते ही बिटिया ने कहा -तकलीफ के लिए माफ़ी ।
नोट ए प्रोब्लम !माई जॉब !आई विल ट्राई टू टेक यु गाईज़ आउट ऑफ़ हेयर एज सून एस पोसिबिल .गिव मी टेन मिनिट्स .
दोनों से उसने ज़रूरी कागज़ात (ड्राइविंग लाइसेंस ,इन्स्युरेंस पेपर्स ,गाडी के कागज़ )लिए और कार के डेश बोर्ड में लगी मशीन में फीड किये .
पोलिस वाले ने पांच मिनिट बाद ही इन्सिडेंट सर्टिफिकेट दोनों को थमा दिए और 'ड्राइव सेफ 'कहते हुए चला गया ।
जाते हुए बुजुर्ग ने बिटिया से कहा -होप टू सी यु अराउंड इन केंटन ।
क्या ये सब -इतना स्मूथलीइतनी ही सहजता से मेरे भारत में भी होता ,किसी के भी चेहरे पे कोई शिकन नहीं ,गिला नहीं शिकवा नहीं .यहाँ तो बात बे -बात अब रोड रेज भी होने लगी है .एस यु वी वाले तो ज़रा ज्यादा ही तड़ी में होतें हैं मूळीगाज़र की तरह आम आदमी क्या पुलिस वाले को भी रोंद के निकल जातें हैं .
अदर मेडिकेसंस एप्रूव्ड फॉर रिलेप्सिंग मल्तिपिल स्केलेरोसिस .
.ग्लातिरामेर एसिटेट (कॉपक्सोने):कॉपक्सोने एक और डिजीज मोदिफाइंग ड्रग है जिसे ऍफ़ डी ए की मंजूरी प्राप्त है .यह रिलेप्सिंग -एम् एस की पुनरावृत्ति (फ्रीक्युवेंसी ऑफ़ रिलेप्सिज़ )को कम करती है .यह एक संश्लेषित मानव निर्मित अमीनो - अम्ल मिश्रण है ,जो माय्लिन (नाड़ियों का प्रोटीन आवरण )के एक प्रोटीन घटक से मेल खाता है .ऐसा समझा जाता है इस ऑटो -इम्यून डिजीज (मल्तिपिल स्केलेरोसिस या एम् एस )में जो अपने पराये की पहचान भूल कर प्रति रक्षी तंत्र की कोशिकाओं का ही अस्तर नष्ट करने लगती है ,माइलिनशीथ को विजातीय मान समझ कर ,इम्यून सिस्टम की यही रिएक्शन इस दवा (गलातीरामेर )से या तो थम जाती है या फिर खासी घट जाती है .
हालाकि दस में से एक मरीज़ में इस इंजेक्शन (ग्लाती- रा -मेर एसिटेट )की भी रिएक्शन लगने के फ़ौरन बाद हो जाती है .इस रिएक्शन में शामिल हो सकती है ,फ्लशिंग ,सीने में दर्द या टाईट -नेस ,शोर्ट नेस ऑफ़ ब्रेथ ,पल्पिटेशन ,नर्वसनेस ,टाईट -नेस इन दी थ्रोट या हाइव्ज़ भी हो सकती है .हालाकि यह रिएक्शन आधा घंटे में अपने आप ही थम भी जाती है किसी इलाज़ की भी इसमें ज़रुरत नहीं रहती है ॥
कुछ मरीजों में जिस जगह इंजेक्शन लगता है उस जगह पर ही लिपो अट्रोफ्य ,चमड़ी के नीचे वसीय ऊतक सूजभी सकतें हैंइन्फ्लेम्द होकर नष्ट भी हो सकतें हैं .
फ्लशिंग में चेहरा और
चमड़ी लाल हो जातें हैं एक दमसे गर्मी का एहसास होता है ।
लिपो -अट्रोफी में जिस जगह सुईं लगी है वहां चमड़ी के नीचे के ऊतकों की होलोइंग होके ऊतक नष्ट भी हो सकतें हैं इनफ्लेम्द होकर .
(ज़ारी ...).
सोमवार, 30 मई 2011
मल्तिपिल स्केलेरोसिस :ट्रीट -मेंट्स (ज़ारी ...)
गत पोस्ट से आगे ...
उपलब्ध बीटा इंटर फेरोंस इस प्रकार हैं :
(१)इंटर -फेरोंन बीटा -१बी (बीटा -सेरोंन और एक्स्ताविया )जिनका स्तेमाल मल्तिपिल स्केलेरोसिस की रिलेप्सिंग किस्म के इलाज़ में किया जाता है .ये क्लिनिकल रिलेप्सिस की पुनरावृत्ति को कम करतीं हैं ।
(२)इंटर -फेरोंन बीटा -१ए (रेबिफ ):आर आर एम् एस के मामलों में इसका स्तेमाल क्लिनिकल रिलेप्सिस की बारम्बारता को भी कम करता है ,शारीरिक अक्षमता के एक्युमलेशन को भी मुल्तवी रखता है . अलबत्ता क्रोनिक प्रोग्रेसिव एम् एस में इसकी कारगरता और दक्षता के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता ।
(३)इंटर -फेरोंन बीटा -१ ए (एवोनेक्स ):यह भौतिक (कायिक )अक्षमताओं के एक्युमलेशन को रोकने के अलावा क्लिनिकल रिलेप्सिज़ की फ्रीक्युवेंसी को कम करती है .फस्ट क्लिनिकल एपिसोड के बाद जिन मरीजों को यह दी गई है उन पर यह कारगर सिद्ध हुई है .इनमे एम् आर आई फीचर्स एम् एस के संगत थे .अलबत्ता इसकी निरापदता और कारगरता प्रोग्रेसिव एम् एस (जो वक्त के साथ बढती ही चली जाती है )के मामलों में अभी अज्ञात है ।
(ज़ारी ...)
उपलब्ध बीटा इंटर फेरोंस इस प्रकार हैं :
(१)इंटर -फेरोंन बीटा -१बी (बीटा -सेरोंन और एक्स्ताविया )जिनका स्तेमाल मल्तिपिल स्केलेरोसिस की रिलेप्सिंग किस्म के इलाज़ में किया जाता है .ये क्लिनिकल रिलेप्सिस की पुनरावृत्ति को कम करतीं हैं ।
(२)इंटर -फेरोंन बीटा -१ए (रेबिफ ):आर आर एम् एस के मामलों में इसका स्तेमाल क्लिनिकल रिलेप्सिस की बारम्बारता को भी कम करता है ,शारीरिक अक्षमता के एक्युमलेशन को भी मुल्तवी रखता है . अलबत्ता क्रोनिक प्रोग्रेसिव एम् एस में इसकी कारगरता और दक्षता के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता ।
(३)इंटर -फेरोंन बीटा -१ ए (एवोनेक्स ):यह भौतिक (कायिक )अक्षमताओं के एक्युमलेशन को रोकने के अलावा क्लिनिकल रिलेप्सिज़ की फ्रीक्युवेंसी को कम करती है .फस्ट क्लिनिकल एपिसोड के बाद जिन मरीजों को यह दी गई है उन पर यह कारगर सिद्ध हुई है .इनमे एम् आर आई फीचर्स एम् एस के संगत थे .अलबत्ता इसकी निरापदता और कारगरता प्रोग्रेसिव एम् एस (जो वक्त के साथ बढती ही चली जाती है )के मामलों में अभी अज्ञात है ।
(ज़ारी ...)
ट्रीट -मेंट्स फॉर मल्टीप्ल स्केलेरोसिस .
गत पोस्ट से आगे ......
इंतर्फेरोंस फॉर रिलेप्सिंग मल्तिपिल स्केलेरोसिस :१९९३ के बाद से ही ऐसी चिकित्सा दवा दारु मेडिकेसंस को मल्तिपिल स्केलेरोसिस के इलाज़ के बतौर आजमाया गया है जो हमारे रोग प्रति -रोधी तंत्र में बदलाव लाती हैं .इनमे इनटर -फेरोंस उल्लेखनीय हैं .
वास्तव में इंटर -फेरोंस प्रोटीन हर्कारें हैं ,प्रोटीन मेसेंजर्स हैं जिन्हें कुदरती तौर पर हमारे इसी रोग रोधी तंत्र इम्यून सिस्टम की कोशिकाएं तैयार करतीं हैं तथा इन्हीं के माध्यम से आपसी संवाद बनाए रहतीं हैं ,कम्युनिकेट करतीं हैं ।
इंटर -फेरोंस की किस्में हैं :
अल्फा ,बीटा ,गामा .सभी किस्मों में रोग प्रति -रोधी तंत्र को रेग्युलेट करने विनियमित करने की कूवत (क्षमता )होती है ,तथा ये इंटर -फेरोंस घात लगाके शरीर पे हल्ला बोलने वाले रोग- कारकों यथा विषाणुओं से भी हिफाज़त करतें हैं .हरेक का काम करने का ढंग जुदा है .लेकिन कोई ख़ास विभाजक रेखा भी इनके फंक्शन्स के बीच नहीं है ,ओवर्लेप करतें हैं इनके फंक्शन्स .
बीटा -इंटर -फेरोंस को "एम् एस "(मल्तिपिल स्केलेरोसिस )के प्रबंधन में असर कारी माना गया है ।
१९९६ में सबसे पहले अमरीकी खाद्य एवं दवा सस्था की हरी झंडी (मंजूरी )स्तेमाल के लिए "इनटर -फेरोंन बीटा -१ बी (बेटासेरोंन )को मिली आर आर -एम् एस( रिलेप्सिंग एम् एस )के प्रबंधन के लिए .
२००२ में अमरीका में सब -क्युतेनियास इंटर -फेरोंन बीटा -१ ए को मंजूरी दे दी गई .
२००९ में ऍफ़ डी ए (फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ,अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था )ने बीटा -१ बी को भी मंजूरी दे दी .यह ब्रांड नेम एक्स्ताविया के नाम से मिलने लगी ।
जिनलोगों का इलाज़ इंतर्फेरोंस से किया जाता है उनमें रिलेप्सिस भी कम होतें हैं ज्यादा देर भी से रोग का हमला लौटके आता है .
एवोनेक्स तथा रेबिफ का स्तेमाल समय के साथ बढती हुई अक्षमता को ब्रेक लगाने के लिए किया जाता है .अलबत्ता इनके पार्श्व प्रभावों में फ्ल्यू जैसे ही लक्षण आ घेरतें हैं मरीज़ को .फीवर ,टायर्ड -नेस ,कमजोरी ,चिल्स तथा मसल- एक्स आम हैं ।
लेकिन इस सिंड्रोम की बारंबारता धीरे धीरे इलाज़ के आगे बढ़ने के साथ ही कम होती जाती है .अन्य अवांछित परिणामों में शरीक हैं ,ब्लड सेल काउंट में अंतर आना ,इंजेक्शन जिस जगह लगा है वहां रिएक्शन होना ,एब्नोर्मेलेतीज़ ऑफ़ लीवर टेस्ट्स ।
इसीलिए नियमित यकृत जांच (लीवर टेस्ट्स )तथा ब्लड काउंट्स टेस्ट्स को दोहराने की सलाह उन मरीजों को दी जाती है जो बीटा -इन्टर -फेरोंस ले रहें हैं ।
थाई -रोइड फंक्शन्स की जांच भी नियमित करवानी पड़ती है इन मरीजों को .बीटा -इंटर फेरोंस थाई -रोइड ग्रंथि को असर ग्रस्त करतें हैं .लेकिन दर्द हारी दवाओं के स्तेमाल के साथ ,लोकल स्किन इन्फेक्शन के प्रबंधन के साथ इंतर्फेरोंस टोलरेंस गत सालों में बढ़ी है .
क्लिनिकल ट्रायाल्स ऑफ़ बीटाइंटर -फेरोंस :जिन्हें ये दवाएं पहले अटेक के फ़ौरन बाद मुहैया करवाई गईं ,उनमें "एम् एस "का दूसरा हमला देर से हुआ .यह एवोनेक्स थी जिसे सप्ताह में एक मर्तबा इंट्रा -मस्क्युलर सुइयों के ज़रिये दिया गया .जबकि बीटा -सेरोंन या एक्स्ताविया की सुइयां चमड़ी के नीचे (सब- क्युतेनिअसली )एक दिन छोड़ एक दिन (ई डी यानी एवरी आल्टरनेट डे) लगाईं गईं ।
(ज़ारी ...).
इंतर्फेरोंस फॉर रिलेप्सिंग मल्तिपिल स्केलेरोसिस :१९९३ के बाद से ही ऐसी चिकित्सा दवा दारु मेडिकेसंस को मल्तिपिल स्केलेरोसिस के इलाज़ के बतौर आजमाया गया है जो हमारे रोग प्रति -रोधी तंत्र में बदलाव लाती हैं .इनमे इनटर -फेरोंस उल्लेखनीय हैं .
वास्तव में इंटर -फेरोंस प्रोटीन हर्कारें हैं ,प्रोटीन मेसेंजर्स हैं जिन्हें कुदरती तौर पर हमारे इसी रोग रोधी तंत्र इम्यून सिस्टम की कोशिकाएं तैयार करतीं हैं तथा इन्हीं के माध्यम से आपसी संवाद बनाए रहतीं हैं ,कम्युनिकेट करतीं हैं ।
इंटर -फेरोंस की किस्में हैं :
अल्फा ,बीटा ,गामा .सभी किस्मों में रोग प्रति -रोधी तंत्र को रेग्युलेट करने विनियमित करने की कूवत (क्षमता )होती है ,तथा ये इंटर -फेरोंस घात लगाके शरीर पे हल्ला बोलने वाले रोग- कारकों यथा विषाणुओं से भी हिफाज़त करतें हैं .हरेक का काम करने का ढंग जुदा है .लेकिन कोई ख़ास विभाजक रेखा भी इनके फंक्शन्स के बीच नहीं है ,ओवर्लेप करतें हैं इनके फंक्शन्स .
बीटा -इंटर -फेरोंस को "एम् एस "(मल्तिपिल स्केलेरोसिस )के प्रबंधन में असर कारी माना गया है ।
१९९६ में सबसे पहले अमरीकी खाद्य एवं दवा सस्था की हरी झंडी (मंजूरी )स्तेमाल के लिए "इनटर -फेरोंन बीटा -१ बी (बेटासेरोंन )को मिली आर आर -एम् एस( रिलेप्सिंग एम् एस )के प्रबंधन के लिए .
२००२ में अमरीका में सब -क्युतेनियास इंटर -फेरोंन बीटा -१ ए को मंजूरी दे दी गई .
२००९ में ऍफ़ डी ए (फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ,अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था )ने बीटा -१ बी को भी मंजूरी दे दी .यह ब्रांड नेम एक्स्ताविया के नाम से मिलने लगी ।
जिनलोगों का इलाज़ इंतर्फेरोंस से किया जाता है उनमें रिलेप्सिस भी कम होतें हैं ज्यादा देर भी से रोग का हमला लौटके आता है .
एवोनेक्स तथा रेबिफ का स्तेमाल समय के साथ बढती हुई अक्षमता को ब्रेक लगाने के लिए किया जाता है .अलबत्ता इनके पार्श्व प्रभावों में फ्ल्यू जैसे ही लक्षण आ घेरतें हैं मरीज़ को .फीवर ,टायर्ड -नेस ,कमजोरी ,चिल्स तथा मसल- एक्स आम हैं ।
लेकिन इस सिंड्रोम की बारंबारता धीरे धीरे इलाज़ के आगे बढ़ने के साथ ही कम होती जाती है .अन्य अवांछित परिणामों में शरीक हैं ,ब्लड सेल काउंट में अंतर आना ,इंजेक्शन जिस जगह लगा है वहां रिएक्शन होना ,एब्नोर्मेलेतीज़ ऑफ़ लीवर टेस्ट्स ।
इसीलिए नियमित यकृत जांच (लीवर टेस्ट्स )तथा ब्लड काउंट्स टेस्ट्स को दोहराने की सलाह उन मरीजों को दी जाती है जो बीटा -इन्टर -फेरोंस ले रहें हैं ।
थाई -रोइड फंक्शन्स की जांच भी नियमित करवानी पड़ती है इन मरीजों को .बीटा -इंटर फेरोंस थाई -रोइड ग्रंथि को असर ग्रस्त करतें हैं .लेकिन दर्द हारी दवाओं के स्तेमाल के साथ ,लोकल स्किन इन्फेक्शन के प्रबंधन के साथ इंतर्फेरोंस टोलरेंस गत सालों में बढ़ी है .
क्लिनिकल ट्रायाल्स ऑफ़ बीटाइंटर -फेरोंस :जिन्हें ये दवाएं पहले अटेक के फ़ौरन बाद मुहैया करवाई गईं ,उनमें "एम् एस "का दूसरा हमला देर से हुआ .यह एवोनेक्स थी जिसे सप्ताह में एक मर्तबा इंट्रा -मस्क्युलर सुइयों के ज़रिये दिया गया .जबकि बीटा -सेरोंन या एक्स्ताविया की सुइयां चमड़ी के नीचे (सब- क्युतेनिअसली )एक दिन छोड़ एक दिन (ई डी यानी एवरी आल्टरनेट डे) लगाईं गईं ।
(ज़ारी ...).
गज़ल (रिमिक्स ):सावन बदरा और घटाएं ,उसकी है परछाईं रात .
गज़ल (रिमिक्स )।
सावन बदरा और घटाएं ,उसकी है परछाईं रात
बरखा की बौछारें छप -छप ,उसमें खूब नहाई रात ।
चंदा की चंदनियां में फिर , उजली धुलि धुलाई रात ,
होठों पर अश -आरे मोहब्बत ,फिर से है शरमाई रात ।
चाँद सितारे फ़रियाद हैं ,करती है सुनवाई रात ,
चाँद कटोरा लिए हाथ में ,भीख मांगने आई रात .
जाने कितने ख़्वाब मिटाकर ,हौले से मुस्काई रात ।
रिमिक्स्कार :वीरेंद्र शर्मा ,डॉ नंदलाल मेहता "वागीश ",श्री अरुण कुमार निगम ।
दूसरी किश्त जल्दी पढियेगा ।रिप्रोसेसिंग में है .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।
मूल गज़ल :दिन बीता फिर आई रात ,कैसी ये दुखदाई रात
यादों की जलती तीली ने ,धीरे से सुलगाई रात
गज़लकारा : डॉ .वर्षा सिंह .
सावन बदरा और घटाएं ,उसकी है परछाईं रात
बरखा की बौछारें छप -छप ,उसमें खूब नहाई रात ।
चंदा की चंदनियां में फिर , उजली धुलि धुलाई रात ,
होठों पर अश -आरे मोहब्बत ,फिर से है शरमाई रात ।
चाँद सितारे फ़रियाद हैं ,करती है सुनवाई रात ,
चाँद कटोरा लिए हाथ में ,भीख मांगने आई रात .
जाने कितने ख़्वाब मिटाकर ,हौले से मुस्काई रात ।
रिमिक्स्कार :वीरेंद्र शर्मा ,डॉ नंदलाल मेहता "वागीश ",श्री अरुण कुमार निगम ।
दूसरी किश्त जल्दी पढियेगा ।रिप्रोसेसिंग में है .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।
मूल गज़ल :दिन बीता फिर आई रात ,कैसी ये दुखदाई रात
यादों की जलती तीली ने ,धीरे से सुलगाई रात
गज़लकारा : डॉ .वर्षा सिंह .
ग़ज़ल (रिमिक्स ):धूप साया नदी हवा औरत .
ग़ज़ल (रिमिक्स )।
धूप साया नदी हवा औरत ,इस धरा को नेमते खुदा औरत ।
नफरतों में जला दी जाती है ,ख्वाबे मोहब्बत की जो अदा औरत ।
गाँव शहर या कि फिर महानगर ,हादसों से भरी एक कथा औरत ।
मर्द कैसा भी हो कुछ भी करे ,पाक दिल हो तो भी खता औरत ।
हो रिश्ता बाज़ार या कि सियासत ,चाल तुरुप की बला औरत ।
कहानी नज्म मुशायरा और ग़ज़लें ,किताबे ज़िन्दगी का हर सफा औरत ,
समाज अपना है नाज़ कैसे करे ,मुसल्सल पेट में होती फना औरत ,
है सच यही ज़रा इसे समझो ,इंसानियत का मुकम्मिल पता औरत ।
घर बाहर या फिर कहीं भी हो ,दिल से निकली हुई दुआ औरत ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ),डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "
विशेष :डॉ वर्ष सिंह जी की ग़ज़ल "धूप पानी नदी हवा औरत "का यह रिमिक्स है ।
हम रिमिक्स ऑर्डर पर पे लिखतें हैं ,कृपया संपर्क करें .
धूप साया नदी हवा औरत ,इस धरा को नेमते खुदा औरत ।
नफरतों में जला दी जाती है ,ख्वाबे मोहब्बत की जो अदा औरत ।
गाँव शहर या कि फिर महानगर ,हादसों से भरी एक कथा औरत ।
मर्द कैसा भी हो कुछ भी करे ,पाक दिल हो तो भी खता औरत ।
हो रिश्ता बाज़ार या कि सियासत ,चाल तुरुप की बला औरत ।
कहानी नज्म मुशायरा और ग़ज़लें ,किताबे ज़िन्दगी का हर सफा औरत ,
समाज अपना है नाज़ कैसे करे ,मुसल्सल पेट में होती फना औरत ,
है सच यही ज़रा इसे समझो ,इंसानियत का मुकम्मिल पता औरत ।
घर बाहर या फिर कहीं भी हो ,दिल से निकली हुई दुआ औरत ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ),डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "
विशेष :डॉ वर्ष सिंह जी की ग़ज़ल "धूप पानी नदी हवा औरत "का यह रिमिक्स है ।
हम रिमिक्स ऑर्डर पर पे लिखतें हैं ,कृपया संपर्क करें .
व्हाट आर दी ट्रीट -मेंट्स फॉर मल्तिपिल स्केलेरोसिस ?
चिकित्सा का लक्ष्य अटेक के लक्षणों में तेज़ी से सुधार लाना होता है .इस एवज स्तेरोइड्स दवाएं स्तेमाल की जासकतीं हैं .
अटेक्स की संख्या को घटाना है .एम् आर आई लीश्जंस की तादाद भी कम करना रखना है ।
रोग के समय के साथ प्रसार ,बढ़ते चले जाने को रोकना है ।ऐसे में "डिजीज मोदिफ़ाइन्ग ड्रग्स "(डी एम् डी 'ज )का स्तेमाल किया जाता है .
जटिलताओं से राहत दिलावाना है .ओर्गंस के फंक्शन्स के ह्रास से जटिलताएं पैदा हो जातीं हैं इस रोग में .विशिष्ठ लक्षणों के सुधार के लिए ऐसे में दवाएं दी जातीं हैं ।
रिलेप्सिंग रेमितिंग मल्तिपिल स्केलेरोसिस (आर आर एम् एस )का रोग निदान सुनिश्चित हो जाने पर ज्यादातर न्यूरोलोजिस्ट डी एम् डी 'ज को ही वरीयता देतें हैं ।
कुछ माहिर पहले अटेक के वक्त से ही इलाज़ शुरू कर देतें हैं क्योंकि रोग निदानिक ट्रायल्स से पुष्ट हुआ है ,जिन मरीजों का इलाज़ लक्षणों के प्रगटीकरण के बाद देर से शुरू होता है उन्हें उतना फायदा नहीं मिलता है इलाज़ से जितना उनको जिनका ,इलाज़ जल्दी शुरू हो जाता है ।
अलबत्ता मरीजों को इलाज़ शुरू करवाने से पहले चिकित्सक से खुल कर बात करनी चाहिए ,क्योंकि डी एम् डी 'ज के स्तेमाल में बड़ा फर्क है ,मसलन कुछ में इस चिकित्सा का मकसद समय के साथ बढती भौतिक अक्षमता को थामना होता है ,पहले अटेक का इलाज़ करना नहीं ,दूसरी किसी डी एम् डी चिकित्सा का मकसद रिलेप्स से बचाना हो सकता है ,लेकिन बढती हुई अक्षमता को कम करना उससे से पार पाना नहीं .
सपोर्ट ग्रुप का सहयोग और कोंसेलिंग मरीज़ और उनके तीमारदार दोनों को लाभान्वित कर सकता है .एक बार चिकित्सा का लक्ष्य तय हो जाने पर आरंभिक चिकित्सा में ही अटेक्स और लक्षणों या दोनों के लिए दवा दी जा सकती है .
पार्श्व प्रभावों से, दवाओं के , बा -खबर रहना उतना ही ज़रूरी रहता है क्योंकि इन्हीं की वजह से कई मरीज़ इलाज़ छोड़ खड़े होतें हैं ।
वैकल्पिक चिकित्सा की शरण में भी जा सकतें हैं कई मरीज़ऐसी जिसके उतने अवांछित प्रभाव नहीं होतें हैं ,थोड़ा जो आराम भी दिलवादे ।
मरीज़ और डॉ के बीच संवाद और समझ दोनों ही ज़रूरी रहती है ।
मल्तिपिल स्केलेरोसिस के प्रबंधन में उन दवाओं को केंद्र में रखा जाता है जो रोग प्रति -रोधी तंत्र पर प्रभाव डालती हैं ,वही तो इस रोग में अपने पराये की पहचान भूल जाता है ,ऑटो -इम्न्युन डिजीज है एम् एस ।
शुरू मेंकोर्टी -को -स्तिरोइड्स मसलन प्रेड्निसोंन (डेल्टा -सोन,लिक्विड प्रेड,डेल्टा -सोन ,ओरासोंन ,प्रेड- निसेंन -एम् )या फिर मिथाइल -प्रेड्नी-सोलोन (मेड्रोल ,डेपो -मेड्रोल ,आदि )व्यापक तौर पर स्तेमाल में ली गईं थीं.
लेकिन क्योंकि इम्यून सिस्टम पर एक तो इनका प्रभाव नॉन -स्पेसिफिक रहता है दूसरे अनेक पार्श्व प्रभाव भी सामने आतें हैं ,इसलिए अब इनका स्तेमाल केवल एम् एस के गंभीर मामलों में ,सीवीयर मल्तिपिल स्केलेरोसिस अटेक्स
के प्रबंधन में ही किया जाता है .
यानी केवल उन मामलों में जो भौतिक अक्षमता और दर्द की वजह बनतेंहैं .
(ज़ारी ...).
अटेक्स की संख्या को घटाना है .एम् आर आई लीश्जंस की तादाद भी कम करना रखना है ।
रोग के समय के साथ प्रसार ,बढ़ते चले जाने को रोकना है ।ऐसे में "डिजीज मोदिफ़ाइन्ग ड्रग्स "(डी एम् डी 'ज )का स्तेमाल किया जाता है .
जटिलताओं से राहत दिलावाना है .ओर्गंस के फंक्शन्स के ह्रास से जटिलताएं पैदा हो जातीं हैं इस रोग में .विशिष्ठ लक्षणों के सुधार के लिए ऐसे में दवाएं दी जातीं हैं ।
रिलेप्सिंग रेमितिंग मल्तिपिल स्केलेरोसिस (आर आर एम् एस )का रोग निदान सुनिश्चित हो जाने पर ज्यादातर न्यूरोलोजिस्ट डी एम् डी 'ज को ही वरीयता देतें हैं ।
कुछ माहिर पहले अटेक के वक्त से ही इलाज़ शुरू कर देतें हैं क्योंकि रोग निदानिक ट्रायल्स से पुष्ट हुआ है ,जिन मरीजों का इलाज़ लक्षणों के प्रगटीकरण के बाद देर से शुरू होता है उन्हें उतना फायदा नहीं मिलता है इलाज़ से जितना उनको जिनका ,इलाज़ जल्दी शुरू हो जाता है ।
अलबत्ता मरीजों को इलाज़ शुरू करवाने से पहले चिकित्सक से खुल कर बात करनी चाहिए ,क्योंकि डी एम् डी 'ज के स्तेमाल में बड़ा फर्क है ,मसलन कुछ में इस चिकित्सा का मकसद समय के साथ बढती भौतिक अक्षमता को थामना होता है ,पहले अटेक का इलाज़ करना नहीं ,दूसरी किसी डी एम् डी चिकित्सा का मकसद रिलेप्स से बचाना हो सकता है ,लेकिन बढती हुई अक्षमता को कम करना उससे से पार पाना नहीं .
सपोर्ट ग्रुप का सहयोग और कोंसेलिंग मरीज़ और उनके तीमारदार दोनों को लाभान्वित कर सकता है .एक बार चिकित्सा का लक्ष्य तय हो जाने पर आरंभिक चिकित्सा में ही अटेक्स और लक्षणों या दोनों के लिए दवा दी जा सकती है .
पार्श्व प्रभावों से, दवाओं के , बा -खबर रहना उतना ही ज़रूरी रहता है क्योंकि इन्हीं की वजह से कई मरीज़ इलाज़ छोड़ खड़े होतें हैं ।
वैकल्पिक चिकित्सा की शरण में भी जा सकतें हैं कई मरीज़ऐसी जिसके उतने अवांछित प्रभाव नहीं होतें हैं ,थोड़ा जो आराम भी दिलवादे ।
मरीज़ और डॉ के बीच संवाद और समझ दोनों ही ज़रूरी रहती है ।
मल्तिपिल स्केलेरोसिस के प्रबंधन में उन दवाओं को केंद्र में रखा जाता है जो रोग प्रति -रोधी तंत्र पर प्रभाव डालती हैं ,वही तो इस रोग में अपने पराये की पहचान भूल जाता है ,ऑटो -इम्न्युन डिजीज है एम् एस ।
शुरू मेंकोर्टी -को -स्तिरोइड्स मसलन प्रेड्निसोंन (डेल्टा -सोन,लिक्विड प्रेड,डेल्टा -सोन ,ओरासोंन ,प्रेड- निसेंन -एम् )या फिर मिथाइल -प्रेड्नी-सोलोन (मेड्रोल ,डेपो -मेड्रोल ,आदि )व्यापक तौर पर स्तेमाल में ली गईं थीं.
लेकिन क्योंकि इम्यून सिस्टम पर एक तो इनका प्रभाव नॉन -स्पेसिफिक रहता है दूसरे अनेक पार्श्व प्रभाव भी सामने आतें हैं ,इसलिए अब इनका स्तेमाल केवल एम् एस के गंभीर मामलों में ,सीवीयर मल्तिपिल स्केलेरोसिस अटेक्स
के प्रबंधन में ही किया जाता है .
यानी केवल उन मामलों में जो भौतिक अक्षमता और दर्द की वजह बनतेंहैं .
(ज़ारी ...).
रविवार, 29 मई 2011
कैसे किया जाता मल्तिपिल स्केलेरोसिस का रोग निदान .
क्योंकि एम् एस के लक्षण ब्रोड रेंज लिए होने के अलावा अति सूक्ष्म रूप लिए रहतें हैं इसलिए कई मर्तबा महीनों क्या सालों साल भी पकड़ में नहीं आतें हैं .नर्वस सिस्टम के रोगों के माहिर न्यूरोलोजिस्ट इसीलिए पूरा पूर्व वृत्तांत जुटाने के अलावा पूरा कायिक (फिजिकल )और स्नायुविक परीक्षण (न्युरोलोजिकल परीक्षण )भी करतें हैं ।
निम्न परीक्षण किये जातें हैं :-
(१)मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एम् आर आई ):इसमें पहले इंट्रा -वीनस गादोलिनम देने से ब्रेन लीश्जंस की शिनाख्त (प्लाक )तथा यह कितने समय से बने हुए हैं यह भी पता चल जाता है ।
(२)इलेक्ट्रो -फिजियोलोजिकल टेस्ट :इससे प्रेरित विद्युत् दाब (पोटेंशियाल्स)नाड़ियों में आगे बढ़ते प्रसारितहोते विद्युत् स्पंदों का जायजा लेती है .देखना यह होता है इन स्पंदों की नाड़ियों से आवा- ज़ाही निर्बाध हो रही है या बाधित हो रही है .
(३ )सेरिब्रो -स्पाइनल फ्लुइड परीक्षण :हमारे दिमाग और रीढ़ रज्जू को जो तरल घेरे रहता है इसमें एब -नोर्मल सेल्स (एंटी बॉडीज ),या अ -सामान्य रासायनिक पदार्थों की मौजूदगी मल्तिपिल स्केलेरोसिस का संकेत हो सकती है .इस परीक्षण में यही पता लगाया जाता है ।
एम् एस के रोग निदान को सुनिश्चित करने में ये तीनों ही परीक्षण न्यूरोलोजी के माहिर के हाथ मज़बूत करतें हैं .समय के साथ साथ एम् आर आई में आने वाले बदलाव भी बहुत कुछ कह जातें हैं .दोहराया जाता है इन परीक्षणों को क्योंकि यह एम् एस समय के साथ बढ़ते चले जाने वाला एक अप -विकासी रोग है नर्वस सिस्टम और स्पाइनल कोर्ड का ।
(ज़ारी....).
निम्न परीक्षण किये जातें हैं :-
(१)मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एम् आर आई ):इसमें पहले इंट्रा -वीनस गादोलिनम देने से ब्रेन लीश्जंस की शिनाख्त (प्लाक )तथा यह कितने समय से बने हुए हैं यह भी पता चल जाता है ।
(२)इलेक्ट्रो -फिजियोलोजिकल टेस्ट :इससे प्रेरित विद्युत् दाब (पोटेंशियाल्स)नाड़ियों में आगे बढ़ते प्रसारितहोते विद्युत् स्पंदों का जायजा लेती है .देखना यह होता है इन स्पंदों की नाड़ियों से आवा- ज़ाही निर्बाध हो रही है या बाधित हो रही है .
(३ )सेरिब्रो -स्पाइनल फ्लुइड परीक्षण :हमारे दिमाग और रीढ़ रज्जू को जो तरल घेरे रहता है इसमें एब -नोर्मल सेल्स (एंटी बॉडीज ),या अ -सामान्य रासायनिक पदार्थों की मौजूदगी मल्तिपिल स्केलेरोसिस का संकेत हो सकती है .इस परीक्षण में यही पता लगाया जाता है ।
एम् एस के रोग निदान को सुनिश्चित करने में ये तीनों ही परीक्षण न्यूरोलोजी के माहिर के हाथ मज़बूत करतें हैं .समय के साथ साथ एम् आर आई में आने वाले बदलाव भी बहुत कुछ कह जातें हैं .दोहराया जाता है इन परीक्षणों को क्योंकि यह एम् एस समय के साथ बढ़ते चले जाने वाला एक अप -विकासी रोग है नर्वस सिस्टम और स्पाइनल कोर्ड का ।
(ज़ारी....).
व्हाट आर दी सिम्पटम्स ऑफ़ मल्तिपिल स्केलेरोसिस ?
लक्षण क्या हैं मल्तिपिल स्केलेरोसिस के ?
इस रोग के लक्षण हलके रूप में भी प्रगटित हो सकतें हैं गंभीर रुख लिए भी आ सकतें हैं अल्पावधि भी हो सकतें हैं देर तक बने रहने वाले भी .पूरी या फिर आंशिक तौर पर लक्षणों का शमन ,दब ढक जाना (रेमिशन )जल्दी ही तकरीबन ७०%लोगों में हो सकता है ।
(१)विज्युअल डिस्टर्बेंस :बीनाई सम्बन्धी परेशानी "एम् एस "का पहला लक्षण हो सकता है लेकिन जल्दी ही यह बरतरफ भी होजाता है ,सब साइड भी हो जाता है ।
ब्लर्ड विज़न का एक पैच(रेड -टू ओरेंज और रेड टू-ग्रे डिस -टोर्शन(कलर डि -सेच्युरेशन )या फिर चिकित्सा विज्ञान की भाषा में "मोनोक्युलर विज्युअल लोस "एक आँख की बीनाई का कमज़ोर पड़ना प्रगट हो सकता है ।
ऑप्टिक न्युराइतिस:ऑप्टिक नर्व इन्फ्लेमेशन इसकी वजह बनता है यह लक्षण आँख में दुखन के साथ प्रगट होता है .
(२)लिम्ब वीकनेस (हाथ पैरों की ,आंगिक कमजोरी )महसूस हो सकती है जिसके साथ साथ संतुलन और समन्वयन का अभाव भी चला आ सकता है ।
(३)मसल स्पाज्म ,फटीग :नाम्ब्नेस (सुन्नी )तथा प्रिक्लिंग पैन एक आम लक्षण के रूप में प्रगट होतें हैं मल्तिपिल स्केलेरोसिस में जिसमें जैसा हम बता चुकें हैं नर्वस सिस्टम की नाड़ियों का बाहरी अस्तर उतर जाता है ,डि -माइलिनेतिद होजातीं हैं नर्व्ज़.और इसीलिए यह एक अप -विकासी रोग कहलाता है नाड़ियों का .
(४)लोस ऑफ़ सेंसेशन (इन्द्रिय जनित बोध का अभाव ),संभाषण में दिक्कत ,खासकर शब्द उच्चारण और वाक्य विन्यास ,अपनी बात समझाने में परेशानी सामने आती है .ट्रेमर्स (कंप काम्पना ),चक्कर आना अन्य लक्षणों के रूप में प्रगट हो सकतें हैं ।
(५)चीज़ों को एक के बाद एक क्रम में न कर पाना ।
(६)ठीक से निर्णय ले पाने में दिक्कत ,इम्पेयार्मेंट इन जजमेंट एम् एस के अन्य लक्ष्ण हो सकतें हैं ।
अलावा इसके -
(१)अवसाद (डिप्रेशन ).(२)मेनिक डिप्रेशन (जो बाईपोलर इलनेस के साथ चस्पा होता है ,उसकी एक फेज़ होती है ,मेनिक डिप्रेसिव डिस -ऑर्डर )।
(३)पैरानोइआ .:दूसरों के इरादों पर बिला वजह बे हद का शक करना .भ्रांत धारणाओं (दिल्युश्जन )से ग्रस्त हो जाना ।
(४)बेलगाम हंसने या रोने की हूक का उठना ।
रोग के बढ़ने के साथ कुछ मरीज़ सेक्स्युअल डिस -फंक्शन ,मूत्र और मल त्याग में अ-संयम से भी दो चार हो सकतें हैं ।
हीट एपिअर्स टू इन्तेंसिफाई सिम्पटम्स फॉर अबाउट ६०%पेशेंट्स ।
गर्भावस्था में रोग का हमला कम होना प्रतीत होता है ख़ास कर गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में ।
(ज़ारी ...)
इस रोग के लक्षण हलके रूप में भी प्रगटित हो सकतें हैं गंभीर रुख लिए भी आ सकतें हैं अल्पावधि भी हो सकतें हैं देर तक बने रहने वाले भी .पूरी या फिर आंशिक तौर पर लक्षणों का शमन ,दब ढक जाना (रेमिशन )जल्दी ही तकरीबन ७०%लोगों में हो सकता है ।
(१)विज्युअल डिस्टर्बेंस :बीनाई सम्बन्धी परेशानी "एम् एस "का पहला लक्षण हो सकता है लेकिन जल्दी ही यह बरतरफ भी होजाता है ,सब साइड भी हो जाता है ।
ब्लर्ड विज़न का एक पैच(रेड -टू ओरेंज और रेड टू-ग्रे डिस -टोर्शन(कलर डि -सेच्युरेशन )या फिर चिकित्सा विज्ञान की भाषा में "मोनोक्युलर विज्युअल लोस "एक आँख की बीनाई का कमज़ोर पड़ना प्रगट हो सकता है ।
ऑप्टिक न्युराइतिस:ऑप्टिक नर्व इन्फ्लेमेशन इसकी वजह बनता है यह लक्षण आँख में दुखन के साथ प्रगट होता है .
(२)लिम्ब वीकनेस (हाथ पैरों की ,आंगिक कमजोरी )महसूस हो सकती है जिसके साथ साथ संतुलन और समन्वयन का अभाव भी चला आ सकता है ।
(३)मसल स्पाज्म ,फटीग :नाम्ब्नेस (सुन्नी )तथा प्रिक्लिंग पैन एक आम लक्षण के रूप में प्रगट होतें हैं मल्तिपिल स्केलेरोसिस में जिसमें जैसा हम बता चुकें हैं नर्वस सिस्टम की नाड़ियों का बाहरी अस्तर उतर जाता है ,डि -माइलिनेतिद होजातीं हैं नर्व्ज़.और इसीलिए यह एक अप -विकासी रोग कहलाता है नाड़ियों का .
(४)लोस ऑफ़ सेंसेशन (इन्द्रिय जनित बोध का अभाव ),संभाषण में दिक्कत ,खासकर शब्द उच्चारण और वाक्य विन्यास ,अपनी बात समझाने में परेशानी सामने आती है .ट्रेमर्स (कंप काम्पना ),चक्कर आना अन्य लक्षणों के रूप में प्रगट हो सकतें हैं ।
(५)चीज़ों को एक के बाद एक क्रम में न कर पाना ।
(६)ठीक से निर्णय ले पाने में दिक्कत ,इम्पेयार्मेंट इन जजमेंट एम् एस के अन्य लक्ष्ण हो सकतें हैं ।
अलावा इसके -
(१)अवसाद (डिप्रेशन ).(२)मेनिक डिप्रेशन (जो बाईपोलर इलनेस के साथ चस्पा होता है ,उसकी एक फेज़ होती है ,मेनिक डिप्रेसिव डिस -ऑर्डर )।
(३)पैरानोइआ .:दूसरों के इरादों पर बिला वजह बे हद का शक करना .भ्रांत धारणाओं (दिल्युश्जन )से ग्रस्त हो जाना ।
(४)बेलगाम हंसने या रोने की हूक का उठना ।
रोग के बढ़ने के साथ कुछ मरीज़ सेक्स्युअल डिस -फंक्शन ,मूत्र और मल त्याग में अ-संयम से भी दो चार हो सकतें हैं ।
हीट एपिअर्स टू इन्तेंसिफाई सिम्पटम्स फॉर अबाउट ६०%पेशेंट्स ।
गर्भावस्था में रोग का हमला कम होना प्रतीत होता है ख़ास कर गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में ।
(ज़ारी ...)
ग़ज़ल :दुनिया अनीजानी देख ,है ये बात पुरानी देख .
ग़ज़ल ।
दुनिया आनीजानी देख ,है ये बात पुरानी देख ,
फसल उजडती जाती है ,बादल ढूंढ पानी देख ।
किस किसको हड़काता है ,एक दिन थोड़ा रुकर देख ,
अपने ढंग से चलती है ,दुनिया बहुत सयानी देख ।
छुटते छुटते छूटती है ,बचपन की नादानी देख ,
खेल बिगड़ता रहता है ,नदी ,आग और पानी देख ।
पहले जैसी आंच कहाँ ,रिश्ते तू बर्फानी देख ।
दुपहर की गर्मी भूल ,उतरी शाम सुहानी देख .
यह मेरी पहली ग़ज़ल थी (दैनिक ट्रिब्यून चंडीगढ़ से प्रकाशित )इसकी शल्य चिकित्सा डॉ .श्याम सखा श्याम ने कि थी .विचार और बिखरे अक्षर मेरे थे ,लय ताल आपने दी थी .कोई न कोई ग़ज़ल रफू -गर हमें मिलते रहे और हम कभी कभार ग़ज़ल जैसा लिखते रहे .पिछ्ला ही समेटकर ब्लोगर मित्रों के सामने परोसा है -.खाद्य या अ -खाद्य मैं क्या जानू ,
किसे काफिया कहो ,किसे रदीफ़, मैं क्या जानू ,
मैं क्या समझू ,हर पल मानू ,कल क्या होगा ,
मैं क्या जानू .
दुनिया आनीजानी देख ,है ये बात पुरानी देख ,
फसल उजडती जाती है ,बादल ढूंढ पानी देख ।
किस किसको हड़काता है ,एक दिन थोड़ा रुकर देख ,
अपने ढंग से चलती है ,दुनिया बहुत सयानी देख ।
छुटते छुटते छूटती है ,बचपन की नादानी देख ,
खेल बिगड़ता रहता है ,नदी ,आग और पानी देख ।
पहले जैसी आंच कहाँ ,रिश्ते तू बर्फानी देख ।
दुपहर की गर्मी भूल ,उतरी शाम सुहानी देख .
यह मेरी पहली ग़ज़ल थी (दैनिक ट्रिब्यून चंडीगढ़ से प्रकाशित )इसकी शल्य चिकित्सा डॉ .श्याम सखा श्याम ने कि थी .विचार और बिखरे अक्षर मेरे थे ,लय ताल आपने दी थी .कोई न कोई ग़ज़ल रफू -गर हमें मिलते रहे और हम कभी कभार ग़ज़ल जैसा लिखते रहे .पिछ्ला ही समेटकर ब्लोगर मित्रों के सामने परोसा है -.खाद्य या अ -खाद्य मैं क्या जानू ,
किसे काफिया कहो ,किसे रदीफ़, मैं क्या जानू ,
मैं क्या समझू ,हर पल मानू ,कल क्या होगा ,
मैं क्या जानू .
ग़ज़ल :मुसाफिर .
ग़ज़ल ।
मुसाफिर तो मुसाफिर है ,उसका घर नहीं होता ,
यूं सारे घर उसी के हैं ,वह बे -घर नहीं होता ,
ये दुनिया खुद मुसाफिर है ,सफर कोई घर नहीं होता ,
सफर तो आना जाना है ,सफर कमतर नहीं होता ।
मुसाफिर अपनी मस्ती में ,किसी से कम नहीं होता ,
गिला उसको नहीं होता उसे कोई गम नहीं होता ।
मुसाफिर का भले ही अपना कोई घर नहीं होता ,
मुसाफिर सबका होता है ,उसे कोई डर नहीं होता ।
गो अपने घर में अटका आदमी ,बदतर नहीं होता ,
सफर में चलने वाले से ,मगर बेहतर नहीं होता ।
सहभाव :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "
मुसाफिर तो मुसाफिर है ,उसका घर नहीं होता ,
यूं सारे घर उसी के हैं ,वह बे -घर नहीं होता ,
ये दुनिया खुद मुसाफिर है ,सफर कोई घर नहीं होता ,
सफर तो आना जाना है ,सफर कमतर नहीं होता ।
मुसाफिर अपनी मस्ती में ,किसी से कम नहीं होता ,
गिला उसको नहीं होता उसे कोई गम नहीं होता ।
मुसाफिर का भले ही अपना कोई घर नहीं होता ,
मुसाफिर सबका होता है ,उसे कोई डर नहीं होता ।
गो अपने घर में अटका आदमी ,बदतर नहीं होता ,
सफर में चलने वाले से ,मगर बेहतर नहीं होता ।
सहभाव :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "
ग़ज़ल :पहला पहला प्यार .
ग़ज़ल
कोई पता न ठौर उसका आज तक मिला ,
ता -उम्र है ढूंढा किया ,वह पहला प्यार था ।
उसके मिरे दरमियान था सागर का फासला ,
हम शक्ल तो मिलते रहे ,वैसा कोई न था ,
आँचल में जिसके आंच और ममता का था उफान ,
यूं जिस्म मिल गए बहुत ,पर वह कहीं न था ।
मनुहार और दुलार थे नेनो से बा -जुबां,
नैनो से मिले नयन कई ,वह न उनमे था ।
उसको न ढूंढ सका कोई नेट ऑरकुट ,
दिन रात ओढ़ा था जिसे ,वह पहला प्यार था .
सहभाव :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश ".डी .लिट .
कोई पता न ठौर उसका आज तक मिला ,
ता -उम्र है ढूंढा किया ,वह पहला प्यार था ।
उसके मिरे दरमियान था सागर का फासला ,
हम शक्ल तो मिलते रहे ,वैसा कोई न था ,
आँचल में जिसके आंच और ममता का था उफान ,
यूं जिस्म मिल गए बहुत ,पर वह कहीं न था ।
मनुहार और दुलार थे नेनो से बा -जुबां,
नैनो से मिले नयन कई ,वह न उनमे था ।
उसको न ढूंढ सका कोई नेट ऑरकुट ,
दिन रात ओढ़ा था जिसे ,वह पहला प्यार था .
सहभाव :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश ".डी .लिट .
ग़ज़ल :बहुत हो चुका गोल गपाड़ा ,अपनी हदबंदी पहचान .
ग़ज़ल ।
करनी अनकरनी पहचान ,कहानी अन -कहनी पहचान ,
बहुत हो चुका गोल गपाड़ा,अपनी हदबंदी पहचान ।
मन तेरा हो फूल सरीखा खुशबू हो तेरी पहचान ,
अपने के तो सब होतें हैं ,गैरों पे हो जा कुर्बान ।
एकल गान सुनाया खूब ,अपना तुम्बा ,अपनी तान ,
लय में सुर में ,बजे साज़ तो ,तेरा स्वर हो वृन्द गान ।
कौन किसी के होता संग ,खुद अपनी बन तू पहचान ,
कुछ को तो ले अपने साथ ,रार सभी से मतना ठान ।
सहभाव :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "
वीरेंद्र शर्मा .
करनी अनकरनी पहचान ,कहानी अन -कहनी पहचान ,
बहुत हो चुका गोल गपाड़ा,अपनी हदबंदी पहचान ।
मन तेरा हो फूल सरीखा खुशबू हो तेरी पहचान ,
अपने के तो सब होतें हैं ,गैरों पे हो जा कुर्बान ।
एकल गान सुनाया खूब ,अपना तुम्बा ,अपनी तान ,
लय में सुर में ,बजे साज़ तो ,तेरा स्वर हो वृन्द गान ।
कौन किसी के होता संग ,खुद अपनी बन तू पहचान ,
कुछ को तो ले अपने साथ ,रार सभी से मतना ठान ।
सहभाव :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "
वीरेंद्र शर्मा .
ग़ज़ल :समझ न पाए लोग .
डरे हुए अपनी दुनिया से ,खुद से भी उकताए लोग ,
क्या कर सकते परिवर्तन ये ,खाए -पीये अघाए लोग ।
नष्ट भ्रष्ट कर जैव विविधता ,बुद्धि से चकराए लोग ,
करके धरती एक हज़म ,अब मंगल पर मंडराए लोग ।
माल बिकाऊ से लगतें हैं ,बाज़ारों में छाये लोग ।
कौन गिरा है कौन चढ़ा है ,इसी होड़ में आये लोग ।
सपने बुनकर बेचके सोते ,ऐसे हैं भरमाये लोग ।
कुर्सी खातिर खूब लड़ाते ,ऐसे शातिर छाये लोग ।
राजनीति का चौला पहने ,कितने नंगे आये लोग ।
पूंछ हिलाते वोट की खातिर ,इस पर भी इतराए लोग ।
अपनी ही जाति पर भौंके ,ऐसे हैं कुत्ताये लोग ।
भाड़ में जाएँ देश के वासी ,ऐसे हिंसक आये लोग ।
अबकी बार पलट डालेंगें ,इतने हैं गुस्साए लोग ।
जीने और मरने की हद तक ,ऐसे हैं भन्नाए लोग ।
आतंकी हाथों से तूने ,इतने हैं मरवाए लोग ।
देश बंटा था किसकी खातिर ,अब तक समझ न पाए लोग ।
सहभावी :डॉ .नन्द लाल मेहता वाहीश .डी .लिट .
क्या कर सकते परिवर्तन ये ,खाए -पीये अघाए लोग ।
नष्ट भ्रष्ट कर जैव विविधता ,बुद्धि से चकराए लोग ,
करके धरती एक हज़म ,अब मंगल पर मंडराए लोग ।
माल बिकाऊ से लगतें हैं ,बाज़ारों में छाये लोग ।
कौन गिरा है कौन चढ़ा है ,इसी होड़ में आये लोग ।
सपने बुनकर बेचके सोते ,ऐसे हैं भरमाये लोग ।
कुर्सी खातिर खूब लड़ाते ,ऐसे शातिर छाये लोग ।
राजनीति का चौला पहने ,कितने नंगे आये लोग ।
पूंछ हिलाते वोट की खातिर ,इस पर भी इतराए लोग ।
अपनी ही जाति पर भौंके ,ऐसे हैं कुत्ताये लोग ।
भाड़ में जाएँ देश के वासी ,ऐसे हिंसक आये लोग ।
अबकी बार पलट डालेंगें ,इतने हैं गुस्साए लोग ।
जीने और मरने की हद तक ,ऐसे हैं भन्नाए लोग ।
आतंकी हाथों से तूने ,इतने हैं मरवाए लोग ।
देश बंटा था किसकी खातिर ,अब तक समझ न पाए लोग ।
सहभावी :डॉ .नन्द लाल मेहता वाहीश .डी .लिट .
क्षणिका :बिना एहसास के मैं जी रहा हूँ ...
क्षणिका
बिना एहसास के मैं जी रहा हूँ ,
इसलिए कि जब कभी एहसास लौटें ,
तो ,खैरमकदम कर सकूं .
बिना एहसास के मैं जी रहा हूँ ,
इसलिए कि जब कभी एहसास लौटें ,
तो ,खैरमकदम कर सकूं .
टाइप्स ऑफ़ मल्तिपिल स्केलेरोसिस (ज़ारी ..).
गत पोस्ट से आगे ...
तकरीबन ५०%रिलेप्सिंग -रेमितिंग -मल्तिपिल स्केलेरोसिस (आर आर एम् एस )के मरीज़ दस सालों के अन्दर अन्दर "सेकेंडरी प्रोग्रेसिव (एस पी )एम् एस की लपेट में आजातें हैं ।
कई दशकों के अंतराल के बाद ज्यादातर आर आर एम् एस के मरीज़ रोग की उग्रता बढ़ते जाने पर एस पी- एम् एस की चपेट में ही आजातें हैं .
प्रोग्रेसिव -रिलेप्सिंग (पी आर )एम् एस :मल्तिपिल स्केलेरोसिस की एक और किस्म है जिसमें क्षमताओं के सतत ह्रास के साथ जब तब इस जब तब की कोई निश्चित मियाद भी नहीं होती ,अटेक भी (रोग के /लक्षणों के )पडतें हैं .
अलावा इसके मल्तिपिल स्केलेरोसिस के माइल्ड मामले भी होतें हैं (माइल्ड जिनमें लक्षण हलके फुल्के ही प्रगटित होतें हैं )जिनका इल्म भी कई सालों बाद ही हो पाता है .
कुछ ऐसे मामले भी रोग के होतें हैं जिनमें रोग के लक्षणों की उग्रता तेज़ी से बढती है (एक्स्ट्रीमली रेपिड प्रोग्रेशन ऑफ़ मल्तिपिल स्केलेरोसिस सिम्पटम्स जो कई मर्तबा बहुत घातक भी सिद्ध होतें हैं .इन्हें "मलिग्नेंट या फुल्मिनेंत (मर्बुर्ग वेरिएंट )मल्तिपिल स्केलेरोसिस के मामले समझा जाता है .
(ज़ारी ...).
तकरीबन ५०%रिलेप्सिंग -रेमितिंग -मल्तिपिल स्केलेरोसिस (आर आर एम् एस )के मरीज़ दस सालों के अन्दर अन्दर "सेकेंडरी प्रोग्रेसिव (एस पी )एम् एस की लपेट में आजातें हैं ।
कई दशकों के अंतराल के बाद ज्यादातर आर आर एम् एस के मरीज़ रोग की उग्रता बढ़ते जाने पर एस पी- एम् एस की चपेट में ही आजातें हैं .
प्रोग्रेसिव -रिलेप्सिंग (पी आर )एम् एस :मल्तिपिल स्केलेरोसिस की एक और किस्म है जिसमें क्षमताओं के सतत ह्रास के साथ जब तब इस जब तब की कोई निश्चित मियाद भी नहीं होती ,अटेक भी (रोग के /लक्षणों के )पडतें हैं .
अलावा इसके मल्तिपिल स्केलेरोसिस के माइल्ड मामले भी होतें हैं (माइल्ड जिनमें लक्षण हलके फुल्के ही प्रगटित होतें हैं )जिनका इल्म भी कई सालों बाद ही हो पाता है .
कुछ ऐसे मामले भी रोग के होतें हैं जिनमें रोग के लक्षणों की उग्रता तेज़ी से बढती है (एक्स्ट्रीमली रेपिड प्रोग्रेशन ऑफ़ मल्तिपिल स्केलेरोसिस सिम्पटम्स जो कई मर्तबा बहुत घातक भी सिद्ध होतें हैं .इन्हें "मलिग्नेंट या फुल्मिनेंत (मर्बुर्ग वेरिएंट )मल्तिपिल स्केलेरोसिस के मामले समझा जाता है .
(ज़ारी ...).
शनिवार, 28 मई 2011
व्हाट आर दी टाइप्स ऑफ़ मल्तिपिल स्केलेरोसिस ?
टाइप्स ऑफ़ मल्तिपिल स्केलेरोसिस (एम् एस ):
मल्तिपिल स्केलेरोसिस के रोग निदानिक लक्षणों का प्रगटीकरण भी यकसां नहीं होता है .देयर आर डिफरेंट क्लिनिकल मैनिफेस्टेशन ऑफ़ मल्तिपिल स्केलेरोसिस (एम् एस ).रोग का हमला होने पर व्यक्ति की भौतिक क्षमताओं का आकस्मिक रूप से ह्रास होने लगता है .हमले की उग्रता पर क्षमताओं की गिरावट निर्भर करती है ।
इसे एग्जार्बेशन भी कह दिया जाता अटेक अमूमन चौबीस घंटों से ज्यादा अवधि तक आमतौर पर कई सप्ताओं तक जारी रहता है (लेकिन चार सप्ताह से ज्यादा देर तक अकसर नहीं ही देखा जाता है ,बिरले ही चार सप्ताह के पार भी यह ज़ारी रहता देखा गया है ।).
रिलेप्सिंग -रेमितिंग(आर आर ) एम् एस :
६५ -८०%लोगों में इसकी शुरुआत आर आर एम् एस से ही होती है जो एम् एस की आम किस्म है ।
इसमें रोग का हमला श्रृंखला बद्ध ज़ारी रहता है फिर कुछ अवधि के लिए लक्षण दब जातें हैं या तो आंशिक तौर पर या पूर्णतया ,जब तक की दूसरा अटेक लौट न आये जब लक्षणों का फिर से प्रगटीकरण होने लगता है ।
रोग शमन (रेमिशन )की अवधि चंद सप्ताह से लेकर कई दशकों तक भी बनी रह सकती है जब लक्षण दबे ढके रहतें हैं ।
प्राईमेरी -प्रोग्रेसिव (पी पी )एम् एस :इसमें एक बार शुरुआत होजाने पर लक्षणों के प्रगटीकरण के बाद से धीरे धीरे लेकिन निरंतर भौतिक क्षमताओं का ह्रास बढ़ता ही चला जाता है .लक्षणों का शमन नहीं होता है .नो रिलेप्सिज़ एंड रेमिसंस ।
१०-२० %में रोग की शुरुआत "पी पी एम् एस "से ही होती है ।
सेकेंडरी प्रोग्रेसिव :आर आर एम् एस वाले ही एक ऐसे चरण में प्रवेश कर जातें हैं जहां रिलेप्सिज़ तो बिरले ही देखने में आतें हैं लेकिन अक्षमता शारीरिक बढ़ जाती है .यही है सेकेंडरी प्रोग्रेसिंव् एम् एस है ।
(ज़ारी ...).
मल्तिपिल स्केलेरोसिस के रोग निदानिक लक्षणों का प्रगटीकरण भी यकसां नहीं होता है .देयर आर डिफरेंट क्लिनिकल मैनिफेस्टेशन ऑफ़ मल्तिपिल स्केलेरोसिस (एम् एस ).रोग का हमला होने पर व्यक्ति की भौतिक क्षमताओं का आकस्मिक रूप से ह्रास होने लगता है .हमले की उग्रता पर क्षमताओं की गिरावट निर्भर करती है ।
इसे एग्जार्बेशन भी कह दिया जाता अटेक अमूमन चौबीस घंटों से ज्यादा अवधि तक आमतौर पर कई सप्ताओं तक जारी रहता है (लेकिन चार सप्ताह से ज्यादा देर तक अकसर नहीं ही देखा जाता है ,बिरले ही चार सप्ताह के पार भी यह ज़ारी रहता देखा गया है ।).
रिलेप्सिंग -रेमितिंग(आर आर ) एम् एस :
६५ -८०%लोगों में इसकी शुरुआत आर आर एम् एस से ही होती है जो एम् एस की आम किस्म है ।
इसमें रोग का हमला श्रृंखला बद्ध ज़ारी रहता है फिर कुछ अवधि के लिए लक्षण दब जातें हैं या तो आंशिक तौर पर या पूर्णतया ,जब तक की दूसरा अटेक लौट न आये जब लक्षणों का फिर से प्रगटीकरण होने लगता है ।
रोग शमन (रेमिशन )की अवधि चंद सप्ताह से लेकर कई दशकों तक भी बनी रह सकती है जब लक्षण दबे ढके रहतें हैं ।
प्राईमेरी -प्रोग्रेसिव (पी पी )एम् एस :इसमें एक बार शुरुआत होजाने पर लक्षणों के प्रगटीकरण के बाद से धीरे धीरे लेकिन निरंतर भौतिक क्षमताओं का ह्रास बढ़ता ही चला जाता है .लक्षणों का शमन नहीं होता है .नो रिलेप्सिज़ एंड रेमिसंस ।
१०-२० %में रोग की शुरुआत "पी पी एम् एस "से ही होती है ।
सेकेंडरी प्रोग्रेसिव :आर आर एम् एस वाले ही एक ऐसे चरण में प्रवेश कर जातें हैं जहां रिलेप्सिज़ तो बिरले ही देखने में आतें हैं लेकिन अक्षमता शारीरिक बढ़ जाती है .यही है सेकेंडरी प्रोग्रेसिंव् एम् एस है ।
(ज़ारी ...).
इज मल्तिपिल स्केलेरोसिस इन -हेरिटिद?
हालाकि "एम् एस "में आनुवंशिकी का रोल क्या है ,यह स्पष्ट नहीं है ,लेकिन योरोपी जिप्सीज़ ,एस्किमोज़ तथा अफ़्रीकी बंटू मल्तिपिल स्केलेरोसिस से बचे रहतें हैं इन्हें यह औटो -इम्यून डिजीज नहीं होती है ।
बंटू इज ए मेंबर ऑफ़ ए लार्ज ग्रुप ऑफ़ पीपुल लिविंग इन इक्वेटोरियल एंड सदरण अफ्रिका .
उत्तरी और दक्षिणी अमरीका के मूल निवासियों (नेटिव इंडियंस ऑफ़ नोर्थ एंड साउथ अमेरिका )जापानी और एशियाई समूहों में भी इसकी इन्सिदेंस कम देखी गई है ।
आम आबादी में इस रोग के होने की संभावना एक फीसद से भी कम ही रहती है .अलबत्ता उन परिवारों में रोग के होने की संभावना उन लोगों में बढ़ जाती है जिनके भाई बहिन माता पिता या संतानों (फस्ट डिग्री रिलेतिव्ज़ )में यह रोग मौजूद है .इनके लिए रोग की संभावना १-३% तक बनी रहती है .जबकि हमशक्ल ट्विन्स जुड़वां के लिए यह बढ़कर ३०%होजाती है यदि दोनों में से एक को यह रोग रहता है .जबकि नॉन -आइदेंतिकल ट्विन्स में यह चांस बीमारी के होने का मात्र ४%ही रहता है जबकि दोनों में से एक को यह रोग हो तब ।
नॉन -आइदेंतिकल ट्विन्स में फ़र्तिलाइज़ेशन दो अलग अलग ह्यूमेन एग्स का होता है जबकि आइदेंतिकल में एक ही फर्तिलाज्द एग का विभाजन होजाता है इसीलिए नवजातों का लिंग और शक्ल यकसां रहती है .जबकि नॉन -आदेंतिकल में एक लडका दूसरी लड़की भी हो सकती है ।
इन आंकड़ों से ऐसा प्रतीत होता है आनुवंशिकी भी इस रोग में अपनाएक बड़ा रोल अदा करती है .
कुछ और अध्ययनों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पर्यावरणीय तत्व भी अपनी भूमिका निभातें हैं रोग के होने के पीछे इन माहौली घटकों का भी हाथ रहता है ।
(ज़ारी ...).
बंटू इज ए मेंबर ऑफ़ ए लार्ज ग्रुप ऑफ़ पीपुल लिविंग इन इक्वेटोरियल एंड सदरण अफ्रिका .
उत्तरी और दक्षिणी अमरीका के मूल निवासियों (नेटिव इंडियंस ऑफ़ नोर्थ एंड साउथ अमेरिका )जापानी और एशियाई समूहों में भी इसकी इन्सिदेंस कम देखी गई है ।
आम आबादी में इस रोग के होने की संभावना एक फीसद से भी कम ही रहती है .अलबत्ता उन परिवारों में रोग के होने की संभावना उन लोगों में बढ़ जाती है जिनके भाई बहिन माता पिता या संतानों (फस्ट डिग्री रिलेतिव्ज़ )में यह रोग मौजूद है .इनके लिए रोग की संभावना १-३% तक बनी रहती है .जबकि हमशक्ल ट्विन्स जुड़वां के लिए यह बढ़कर ३०%होजाती है यदि दोनों में से एक को यह रोग रहता है .जबकि नॉन -आइदेंतिकल ट्विन्स में यह चांस बीमारी के होने का मात्र ४%ही रहता है जबकि दोनों में से एक को यह रोग हो तब ।
नॉन -आइदेंतिकल ट्विन्स में फ़र्तिलाइज़ेशन दो अलग अलग ह्यूमेन एग्स का होता है जबकि आइदेंतिकल में एक ही फर्तिलाज्द एग का विभाजन होजाता है इसीलिए नवजातों का लिंग और शक्ल यकसां रहती है .जबकि नॉन -आदेंतिकल में एक लडका दूसरी लड़की भी हो सकती है ।
इन आंकड़ों से ऐसा प्रतीत होता है आनुवंशिकी भी इस रोग में अपनाएक बड़ा रोल अदा करती है .
कुछ और अध्ययनों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पर्यावरणीय तत्व भी अपनी भूमिका निभातें हैं रोग के होने के पीछे इन माहौली घटकों का भी हाथ रहता है ।
(ज़ारी ...).
व्हाट इज मल्तिपिल स्केलेरोसिस ?
व्हाट इज मल्तिपिल स्केलेरोसिस (एम् एस )?
यह एक ऐसा रोग है जिसमें केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र (दिमाग तथा रीढ़ रज्जू ,सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम )की नाड़ियों का अप -विकास होने लगता है ,दी जेनरेट करने लगती हैं सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम की नर्व्ज़.।
इन नाड़ियों पर एक खोल एक कवरिंग चढ़ी होती है प्रोटीन और वसा की बनी जिसे माय्लिन शीथ कहतें हैं .यह न सिर्फ एक बेहतर इन्सुलेशन प्रदान करती है इन नाड़ियों को ,इन से गुजरने वाले सकेतों की सम्प्रेश्नियता ,सुचालकता को भी बढ़ाती है .माय्लिन एक सफेदीनुमा पदार्थ है जो सम्केंद्रिय शीथ के रूप में सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम की नर्व्ज़ को घेरे रहता रहता है .
नाड़ियों की सेहत के लिए भी eयह कवरिंग जिम्मेवार रहती है ।
"एम् एस "यही हिफाज़ती खोल उड़ जाता है किसी इन्फ्लेमेशन की वजह से .नतीज़ननाड़ियाँ डी-माय -लिनेटिद हो जातीं हैं .परिणाम स्वरूप वह तमाम विद्युत् स्पन्द (इलेक्ट्रिकल इम्पल्सिज़ )जो इन नाड़ियों से होकर जातें हैं उनका प्रसारण तेज़ी घाट जाती है ,अवमंदन हो जाता है इन स्पंदों का ।
अलावा इसके नर्व्ज़ खुद भी डेमेज हो जातीं हैं .जिसे जैसे यह नाड़ियों का अप -विकास समय के साथ बढ़ता जाता है ,नर्वस सिस्टम से संचालित नियंत्रित बीनाई (विज़न )संभाषण चलना फिरना ,लिखना और याददाश्त असर ग्रस्त होने लागतें हैं .व्यवधान आता है इन तमाम प्रकार्यों नर्वस सिस्टम कंट्रोल्ड फंक्शन्स में ।
तकरीबन तीन लाख पचास हज़ार अमरीकी एम् एस से ग्रस्त हैं .आमतौर पर इस रोग का निदान डायग्नोसिस के द्वारा २० -५० साला लोगों में ही तय होते देखा गया है लेकिन बच्चों और प्रौढ़ों में भी इस रोग का असर देखा गया है ।
अन्य समूहों के बनिस्पत गोरों (कौकेज़ियांस ,योरोपीय मूल के लोग )में इसे किसी भी वक्त पर ज्यादा देखा गया है .जीवन के शुरूआती बरसों में औरतों को (बनिस्पत ज्यादा इससे असर ग्रस्त होते देखा गया है ।
ज़ारी ...).
यह एक ऐसा रोग है जिसमें केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र (दिमाग तथा रीढ़ रज्जू ,सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम )की नाड़ियों का अप -विकास होने लगता है ,दी जेनरेट करने लगती हैं सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम की नर्व्ज़.।
इन नाड़ियों पर एक खोल एक कवरिंग चढ़ी होती है प्रोटीन और वसा की बनी जिसे माय्लिन शीथ कहतें हैं .यह न सिर्फ एक बेहतर इन्सुलेशन प्रदान करती है इन नाड़ियों को ,इन से गुजरने वाले सकेतों की सम्प्रेश्नियता ,सुचालकता को भी बढ़ाती है .माय्लिन एक सफेदीनुमा पदार्थ है जो सम्केंद्रिय शीथ के रूप में सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम की नर्व्ज़ को घेरे रहता रहता है .
नाड़ियों की सेहत के लिए भी eयह कवरिंग जिम्मेवार रहती है ।
"एम् एस "यही हिफाज़ती खोल उड़ जाता है किसी इन्फ्लेमेशन की वजह से .नतीज़ननाड़ियाँ डी-माय -लिनेटिद हो जातीं हैं .परिणाम स्वरूप वह तमाम विद्युत् स्पन्द (इलेक्ट्रिकल इम्पल्सिज़ )जो इन नाड़ियों से होकर जातें हैं उनका प्रसारण तेज़ी घाट जाती है ,अवमंदन हो जाता है इन स्पंदों का ।
अलावा इसके नर्व्ज़ खुद भी डेमेज हो जातीं हैं .जिसे जैसे यह नाड़ियों का अप -विकास समय के साथ बढ़ता जाता है ,नर्वस सिस्टम से संचालित नियंत्रित बीनाई (विज़न )संभाषण चलना फिरना ,लिखना और याददाश्त असर ग्रस्त होने लागतें हैं .व्यवधान आता है इन तमाम प्रकार्यों नर्वस सिस्टम कंट्रोल्ड फंक्शन्स में ।
तकरीबन तीन लाख पचास हज़ार अमरीकी एम् एस से ग्रस्त हैं .आमतौर पर इस रोग का निदान डायग्नोसिस के द्वारा २० -५० साला लोगों में ही तय होते देखा गया है लेकिन बच्चों और प्रौढ़ों में भी इस रोग का असर देखा गया है ।
अन्य समूहों के बनिस्पत गोरों (कौकेज़ियांस ,योरोपीय मूल के लोग )में इसे किसी भी वक्त पर ज्यादा देखा गया है .जीवन के शुरूआती बरसों में औरतों को (बनिस्पत ज्यादा इससे असर ग्रस्त होते देखा गया है ।
ज़ारी ...).
व्हाट कौज़िज़ मल्तिपिल स्केलेरोसिस ?
व्हाट काज़िज़ मल्तिपिल स्केलेरोसिस ?
इस रोग का कारण अभी भी अनुमेय ही बना हुआ है ठीक ठीक कोई नहीं जानता इसके होने की वजहों को .गत दो दशकों से रिसर्चरों ने हमारे रोग प्रति -रोधी तंत्र (इम्यून सिस्टम )से ताल्लुक रखने वाले विकारों और आनुवंशिकी पर अपना ध्यान इस रोग की व्याख्या के लिए टिकाया हुआ है .
हमारे शरीर का यह हिफाज़ती तंत्र बहुत ज्यादा सुव्यवस्थित और मुस्तैद रहता है .,रेग्युलेतिद (विनियमित )भी ।
किसी भी बाहरी विजातीय या आक्रान्ता (अग्रेसर )द्वारा प्रेरित किये पर यह चाक चौबंद व्यवस्था मोर्चा संभाल लेती है आक्रान्ता के खिलाफ ,शिनाख्त करने के बाद उसपर सटीक निशाना साधती है और फिर पूर्व वत अपने काम में जुट जाती है ।
लेकिन यह मुस्तैदी तभी तक कायम रहती है जब तक प्रति -रक्षी इम्यून कोशाओं में द्रुतगामी संचार बना रहता है ,कोशाओं का बनना सुचारू रूप चलता रहता है .,ऐसी प्रति -रक्षी कोशाओं का जो आक्रान्ता को तुरंत धूल चटा दें,जमीन सूंघा दें ।
रिसर्चरों को आशंका है "एम् एस "में कोई बाहरी आतंकी ,कोई वायरस ,कोई विजातीय तत्व इम्यून सिस्टम का ब्रेन वाश कर देता है ,तब्दील कर देता है इसे यहाँ तक ,यह अपने पराये का फर्क भूल जाता है अपनों को ही निशाना बनाने लगता है .अब बताओं हिफाज़ती कोशाओं की संकेंद्रित कवरिंग माय्लिन शीथ को ही यह शरीर प्रति -रक्षा प्रणाली तबदील हो जाने पर शत्रु मान बैठती है .इसी पर धावा बोल देती है ।
ऑटो -इम्युनिटी :
इम्यून सिस्टम द्वारा अपने ही हिफाज़ती तंत्र माय्लिन आच्छादित ऊतकों पर हमला करना ऑटो इम्युनिटी कहलाता है .इसीलिए इसे (मल्तिपिल स्केलेरोसिस )को ऑटो -इम्यून डिजीज या डिजीज ऑफ़ ऑटो -इम्युनिटी कहा जाता है .
हालाकि कुछ माय्लिन की रिकवरी हो सकती है ,मुरम्मत और दुरुस्ती भी हो सकती है ,लेकिन कुछ नाड़ियाँ नंगी रह जातीं हैं इनका वस्त्र ,बाहरी आवरण माय्लीन शीथ नष्ट हो जाती है ,दिमाय्लेतिद हो जातीं हैं कुछ नर्व्ज़ हमेशा हमेशा के लिए ।
स्कारिंग आल्सो अकर्स,इन निशानों में (स्कार्स में )पदार्थ ज़मके,इकठ्ठा होके प्लाक बना देता है ।
(ज़ारी ...)
इस रोग का कारण अभी भी अनुमेय ही बना हुआ है ठीक ठीक कोई नहीं जानता इसके होने की वजहों को .गत दो दशकों से रिसर्चरों ने हमारे रोग प्रति -रोधी तंत्र (इम्यून सिस्टम )से ताल्लुक रखने वाले विकारों और आनुवंशिकी पर अपना ध्यान इस रोग की व्याख्या के लिए टिकाया हुआ है .
हमारे शरीर का यह हिफाज़ती तंत्र बहुत ज्यादा सुव्यवस्थित और मुस्तैद रहता है .,रेग्युलेतिद (विनियमित )भी ।
किसी भी बाहरी विजातीय या आक्रान्ता (अग्रेसर )द्वारा प्रेरित किये पर यह चाक चौबंद व्यवस्था मोर्चा संभाल लेती है आक्रान्ता के खिलाफ ,शिनाख्त करने के बाद उसपर सटीक निशाना साधती है और फिर पूर्व वत अपने काम में जुट जाती है ।
लेकिन यह मुस्तैदी तभी तक कायम रहती है जब तक प्रति -रक्षी इम्यून कोशाओं में द्रुतगामी संचार बना रहता है ,कोशाओं का बनना सुचारू रूप चलता रहता है .,ऐसी प्रति -रक्षी कोशाओं का जो आक्रान्ता को तुरंत धूल चटा दें,जमीन सूंघा दें ।
रिसर्चरों को आशंका है "एम् एस "में कोई बाहरी आतंकी ,कोई वायरस ,कोई विजातीय तत्व इम्यून सिस्टम का ब्रेन वाश कर देता है ,तब्दील कर देता है इसे यहाँ तक ,यह अपने पराये का फर्क भूल जाता है अपनों को ही निशाना बनाने लगता है .अब बताओं हिफाज़ती कोशाओं की संकेंद्रित कवरिंग माय्लिन शीथ को ही यह शरीर प्रति -रक्षा प्रणाली तबदील हो जाने पर शत्रु मान बैठती है .इसी पर धावा बोल देती है ।
ऑटो -इम्युनिटी :
इम्यून सिस्टम द्वारा अपने ही हिफाज़ती तंत्र माय्लिन आच्छादित ऊतकों पर हमला करना ऑटो इम्युनिटी कहलाता है .इसीलिए इसे (मल्तिपिल स्केलेरोसिस )को ऑटो -इम्यून डिजीज या डिजीज ऑफ़ ऑटो -इम्युनिटी कहा जाता है .
हालाकि कुछ माय्लिन की रिकवरी हो सकती है ,मुरम्मत और दुरुस्ती भी हो सकती है ,लेकिन कुछ नाड़ियाँ नंगी रह जातीं हैं इनका वस्त्र ,बाहरी आवरण माय्लीन शीथ नष्ट हो जाती है ,दिमाय्लेतिद हो जातीं हैं कुछ नर्व्ज़ हमेशा हमेशा के लिए ।
स्कारिंग आल्सो अकर्स,इन निशानों में (स्कार्स में )पदार्थ ज़मके,इकठ्ठा होके प्लाक बना देता है ।
(ज़ारी ...)
व्हाट इज दी प्रोग्नोसिस फॉर सिकिल सेल एनीमिया?
जीवन सौपान (लाइफ एक्स्पेक -टेंसी ,जीवन प्रत्याशा )सिकिल सेल एनीमिया से ग्रस्त व्यक्ति की घट जाती है .कुछ मरीज़ बरसों लक्षणों से बरी रह सकतें जब की कुछ और शिशुकाल और बाल्यकाल को भी पार नहीं कर पातें हैं।
लेकिन आदर्श प्रबंधन और देख भाल नसीब होते रहने पर अब मरीज़ उम्र के चौथे दशक के पार भी चले जातें हैं .
ज्यादातर मरीज़ रुक रुक कर बीच बीच में आवधिक रूप से पैन- क्राइसिस ,फटीग ,बेक -टीरिअल इंफेक्शंस ,टिश्यु एवं ओर्गेंन डेमेज का सामना करते हैं जो वक्त के साथ बढ़ते ही जातें हैं.
भौतिक और संवेगात्मक (भावात्मक सदमा सहते झेलते )बच्चों के सामान्य विकास में बाधा आती है . यौवनारंभ भी देर से होता है ।
बेक -टीरियल इन्फेक्शन इस रोग में मौत की एक आम वजह बनतें हैं ,अलावा इसके स्ट्रोक (दिमाग में होने वाला रक्त स्राव ,हेमोरेजिक स्ट्रोक ),किडनी ,हार्ट और लीवर फेलियोर भी इस रोग में मौत की वजह बनतें हैं ।
बेशक जीवाणु जन्य संक्रमणों से पैदा ख़तरा तीन साल की उम्र के पार चले जाने पर थोड़ा कम हो जाता है .लेकिन किसी भी उम्र में जीवाणु संक्रमण ही मौत की एक आम वजह बनतें हैं .ता -उम्र बनाही रहता है यह ख़तरा .इसलिए संक्रमण का पहला संकेत मिलते ही इलाज़ तेज़ी से किया जाना चाहिए ,ताकि किसी भी तरह के डेमेज और मौत को टाला जा सके .जीवन को बचाए रखा जा सके मरीज़ के ।
दिलचस्प लेकिन इत्तेफाक की बात है यह सिकिल सेल जीन की मौजूदगी मलेरिया संक्रमण सेकुछ न कुछ हिफाज़त ही करती है .जिन लोगों में सिकिल सेल ट्रेट होता है (सिकिल सेल जीनतो होता है जिनमें रोग नहीं ,वाहक होतें हैं जो एक सिकिल जीन के जो किसी एक पेरेंट से चला आता है ,दूसरा सामान्य जीन होता है दूसरे पेरेंट से जो मिलता है इसका जोड़ीदार )वे आशिंक रूप से मलेरिया से बचे रहतें हैं .कह सकतें हैं ये लोग आंशिक तौर पर ही सही मलेरिया रेज़िस्तेंत हो जातें हैं .
सिकिल सेल जीन का भौगोलिक वितरण भी मलेरिया संक्रमण के समान ही है .सिकिल सेल एनीमिया एक लीथल कंडीशन है जिसमें जिन्दगी को ही ख़तरा बना रहता है .लेकिन सिकिल सेल करियर (ट्रेट )होने का एक चुनिन्दा फायदा भी मिलता है ,खासकर तब जब व्यक्ति ऐसे भौगोलिक इलाके में रहता हो जहां मलेरिया का प्रकोप बना रहता हो .सिकिल सेल ट्रेट वाले व्यक्ति को नॉन -करियर व्यक्ति की बनिस्पत मिलने वाला यही लाभ इस तथ्य की व्याख्या करने के लिए पर्याप्त है ,क्यों एक मारक रोग होते हुए भी सिकिल सेल एनीमिया का अब तक उन्मूलन नहीं हो सका ,पृथ्वी पर से सफाया नहीं हो सका .
"सिकिल सेल जीन एक ब्लेक जीन नहीं है ."बेशक गैरानुपातिक तौर पर यह काले लोगों को ही जहां जहां वह हैं कमोबेश होने वाला रोग बनके रह गया है ।
जब एक सिकिल सेल जीन का वाहक श्याम वर्ण का व्यक्ति किसी गैर -ब्लेक से सम्बन्ध बनाता है तो उनसे प्राप्त संतान में यह सिकिल सेल जीन चला आ सकता है चाहे संतान गोरी हो या काली .
नॉन -ब्लेक लोगों में भी सिकिल सेल जीन मौजूद है .(हम बता चुके हैं रोग तभी होता उसके लक्षण तभी प्रगटित होतें हैं जब दोनों ही माँ -बाप से संतान को सिकिल जीन ही मिले ,एक से सिकिल जीन तथा दूसरे से इसी जीन की सामान्य कोपी मिलने पर सिकिल ट्रेट होता है सिकिल सेल एनीमिया रोग नहीं ।).
रीसेंट रिसर्च इज एग्जामिनिंग फर्दर वेज़ टू प्रोमोट दी डेवलपमेंट ऑफ़ दी फीटल हिमोग्लोबिन देट डिलेज़ दी डेवलपमेंट ऑफ़ सिकिल सेल इन दी न्यू बोर्न .
बोन मेरो ट्रांस -प्लांट इज बींग यूज्ड फॉर पेशेंट्स विद सीवीयर सिकिल सेल अनीमिया हु हेव ए जेनेटिकली आइदेंतिकल सिबलिंग .(ताकि बोन मेरो के शरीर प्रति -रक्षा तंत्र द्वारा रिजेक्शन ,बहिष्कृत या रद्द किये जाने का ख़तरा न रहे .)।
जीन इंजिनीयरिंग से नए इलाज़ निकलके आयेंगें .माँ -बाप तथा परिवारों को सिकिल सेल अनीमिया से बचाव के लिए आगे के लिए जेनेटिक कोंसेलिंग की मदद लेनी चाहिए .
आखिर यह रोग विरासती है ,वसीयत में मिलता है .दोनों ही माँ बाप सिकिल सेल के वाहक होतें हैं तभी यह रोग संतानों में जाता है ।
इफ ईच पेरेंट इज ए करियर ,एनी चाइल्ड हेज़ ए वन चांस इन टू .(५०%)ऑफ़ आल्सो बींग ए करियर एंड ए वन इन फॉर (२५%)चांस ऑफ़ इन्हेरिटिंग बोथ जींस फ्रॉम दी पेरेंट्स एंड बींग अफेक -टिड विद विद सिकिल सेल अनीमिया ।
(ज़ारी ....).
लेकिन आदर्श प्रबंधन और देख भाल नसीब होते रहने पर अब मरीज़ उम्र के चौथे दशक के पार भी चले जातें हैं .
ज्यादातर मरीज़ रुक रुक कर बीच बीच में आवधिक रूप से पैन- क्राइसिस ,फटीग ,बेक -टीरिअल इंफेक्शंस ,टिश्यु एवं ओर्गेंन डेमेज का सामना करते हैं जो वक्त के साथ बढ़ते ही जातें हैं.
भौतिक और संवेगात्मक (भावात्मक सदमा सहते झेलते )बच्चों के सामान्य विकास में बाधा आती है . यौवनारंभ भी देर से होता है ।
बेक -टीरियल इन्फेक्शन इस रोग में मौत की एक आम वजह बनतें हैं ,अलावा इसके स्ट्रोक (दिमाग में होने वाला रक्त स्राव ,हेमोरेजिक स्ट्रोक ),किडनी ,हार्ट और लीवर फेलियोर भी इस रोग में मौत की वजह बनतें हैं ।
बेशक जीवाणु जन्य संक्रमणों से पैदा ख़तरा तीन साल की उम्र के पार चले जाने पर थोड़ा कम हो जाता है .लेकिन किसी भी उम्र में जीवाणु संक्रमण ही मौत की एक आम वजह बनतें हैं .ता -उम्र बनाही रहता है यह ख़तरा .इसलिए संक्रमण का पहला संकेत मिलते ही इलाज़ तेज़ी से किया जाना चाहिए ,ताकि किसी भी तरह के डेमेज और मौत को टाला जा सके .जीवन को बचाए रखा जा सके मरीज़ के ।
दिलचस्प लेकिन इत्तेफाक की बात है यह सिकिल सेल जीन की मौजूदगी मलेरिया संक्रमण सेकुछ न कुछ हिफाज़त ही करती है .जिन लोगों में सिकिल सेल ट्रेट होता है (सिकिल सेल जीनतो होता है जिनमें रोग नहीं ,वाहक होतें हैं जो एक सिकिल जीन के जो किसी एक पेरेंट से चला आता है ,दूसरा सामान्य जीन होता है दूसरे पेरेंट से जो मिलता है इसका जोड़ीदार )वे आशिंक रूप से मलेरिया से बचे रहतें हैं .कह सकतें हैं ये लोग आंशिक तौर पर ही सही मलेरिया रेज़िस्तेंत हो जातें हैं .
सिकिल सेल जीन का भौगोलिक वितरण भी मलेरिया संक्रमण के समान ही है .सिकिल सेल एनीमिया एक लीथल कंडीशन है जिसमें जिन्दगी को ही ख़तरा बना रहता है .लेकिन सिकिल सेल करियर (ट्रेट )होने का एक चुनिन्दा फायदा भी मिलता है ,खासकर तब जब व्यक्ति ऐसे भौगोलिक इलाके में रहता हो जहां मलेरिया का प्रकोप बना रहता हो .सिकिल सेल ट्रेट वाले व्यक्ति को नॉन -करियर व्यक्ति की बनिस्पत मिलने वाला यही लाभ इस तथ्य की व्याख्या करने के लिए पर्याप्त है ,क्यों एक मारक रोग होते हुए भी सिकिल सेल एनीमिया का अब तक उन्मूलन नहीं हो सका ,पृथ्वी पर से सफाया नहीं हो सका .
"सिकिल सेल जीन एक ब्लेक जीन नहीं है ."बेशक गैरानुपातिक तौर पर यह काले लोगों को ही जहां जहां वह हैं कमोबेश होने वाला रोग बनके रह गया है ।
जब एक सिकिल सेल जीन का वाहक श्याम वर्ण का व्यक्ति किसी गैर -ब्लेक से सम्बन्ध बनाता है तो उनसे प्राप्त संतान में यह सिकिल सेल जीन चला आ सकता है चाहे संतान गोरी हो या काली .
नॉन -ब्लेक लोगों में भी सिकिल सेल जीन मौजूद है .(हम बता चुके हैं रोग तभी होता उसके लक्षण तभी प्रगटित होतें हैं जब दोनों ही माँ -बाप से संतान को सिकिल जीन ही मिले ,एक से सिकिल जीन तथा दूसरे से इसी जीन की सामान्य कोपी मिलने पर सिकिल ट्रेट होता है सिकिल सेल एनीमिया रोग नहीं ।).
रीसेंट रिसर्च इज एग्जामिनिंग फर्दर वेज़ टू प्रोमोट दी डेवलपमेंट ऑफ़ दी फीटल हिमोग्लोबिन देट डिलेज़ दी डेवलपमेंट ऑफ़ सिकिल सेल इन दी न्यू बोर्न .
बोन मेरो ट्रांस -प्लांट इज बींग यूज्ड फॉर पेशेंट्स विद सीवीयर सिकिल सेल अनीमिया हु हेव ए जेनेटिकली आइदेंतिकल सिबलिंग .(ताकि बोन मेरो के शरीर प्रति -रक्षा तंत्र द्वारा रिजेक्शन ,बहिष्कृत या रद्द किये जाने का ख़तरा न रहे .)।
जीन इंजिनीयरिंग से नए इलाज़ निकलके आयेंगें .माँ -बाप तथा परिवारों को सिकिल सेल अनीमिया से बचाव के लिए आगे के लिए जेनेटिक कोंसेलिंग की मदद लेनी चाहिए .
आखिर यह रोग विरासती है ,वसीयत में मिलता है .दोनों ही माँ बाप सिकिल सेल के वाहक होतें हैं तभी यह रोग संतानों में जाता है ।
इफ ईच पेरेंट इज ए करियर ,एनी चाइल्ड हेज़ ए वन चांस इन टू .(५०%)ऑफ़ आल्सो बींग ए करियर एंड ए वन इन फॉर (२५%)चांस ऑफ़ इन्हेरिटिंग बोथ जींस फ्रॉम दी पेरेंट्स एंड बींग अफेक -टिड विद विद सिकिल सेल अनीमिया ।
(ज़ारी ....).
हेंड फुट सिंड्रोम दी फस्ट साइन ऑफ़ सिकिल सेल अनीमिया इन इन्फेन्ट्स .
हेंड फुट सिंड्रोम :दी फस्ट साइन ओग सिकिल सेल अनीमिया .
हेंड फुट सिंड्रोम में बी दी फस्ट साइन ऑफ़ सिकिल सेल एनीमिया :हाथ पैरों का सूजना शिशुओं में सिकिल सेल एनीमिया का पहला संकेत हो सकता है .इस सोजिश (स्वेलिंग )की वजह खून की उन नालियों में (थिन ब्लड वेसिल्स में )हंसिया की आकृति वाली विकृत हो चुकी सिकिल्ड रेड ब्लड सेल्स ही बनतीं हैं जो इनमें फंस कर हाथ पैरों तक खून नहीं पहुँचने देतीं हैं ।
फ्रिक्युवेंट इन्फेक्शन : सिकिल सेल एनीमिया , स्प्लीन यानी शिशुपों की तिल्ली (प्लीहा या स्प्लीन )को ही नष्ट कर देती हैं जिसका काम तरह तरह के संक्रमणों से बचाना होता है ,ऐसे में शिशु हो या बड़ा संक्रमणों से अपना बचाव नहीं कर पाता है .इसीलिए डॉ .शिशुओं (०-२साला )तथा बच्चों को एंटी -बायोटिक्स तजवीज़ करतें हैं ताकि उन्हें जानलेवा खतरनाक रोग संक्रमणों से बचाए रखा जा सके .इनमे न्युमोनिया भी शामिल रहता है जोइन बच्चों में बड़ा घातक सिद्ध होता है।
विज़न प्रोब्लम्स :आँखों तक खून पहुंचाने वाली सूक्ष्म खून की नालियां (टाइनी ब्लड वेसिल्स )स्टिफऔर विकृत हो चुकी सिकिल्ड सेल्स से अवरुद्ध हो जातीं हैं .इससे रेटिना (आँख के उस परदे को ही क्षति पहुँच सकती जिसपे तस्वीर बनती है ,जो तस्वीर को दिखलाता है ),इसलिए कुछ मरीजों में बीनाई सम्बन्धीसमस्या (विज़न प्रोब्लम )दिखलाई देती है जिसका फौरी समाधान ज़रूरी होता है ।
डिलेड ग्रोथ :शरीर की बढ़वार के लिए आपको ज़रूरी पोषण और ऑक्सीजन रेड ब्लड सेल्स ही तो पहुंचातीं हैं इसीलिए सिकिल सेल एनीमिया में स्वस्थ रेड ब्लड की कमी हो जाने से बच्चों की बढ़वाररुक जाती है देर से होती है .किशोरों -किशोरियों में इसीलिए प्युबर्ति आगे खिसक जाती है .
Posted by veerubhai at Friday, May 27, 2011
फ्रिक्युवेंट इन्फेक्शन : सिकिल सेल एनीमिया , स्प्लीन यानी शिशुपों की तिल्ली (प्लीहा या स्प्लीन )को ही नष्ट कर देती हैं जिसका काम तरह तरह के संक्रमणों से बचाना होता है ,ऐसे में शिशु हो या बड़ा संक्रमणों से अपना बचाव नहीं कर पाता है .इसीलिए डॉ .शिशुओं (०-२साला )तथा बच्चों को एंटी -बायोटिक्स तजवीज़ करतें हैं ताकि उन्हें जानलेवा खतरनाक रोग संक्रमणों से बचाए रखा जा सके .इनमे न्युमोनिया भी शामिल रहता है जोइन बच्चों में बड़ा घातक सिद्ध होता है।
विज़न प्रोब्लम्स :आँखों तक खून पहुंचाने वाली सूक्ष्म खून की नालियां (टाइनी ब्लड वेसिल्स )स्टिफऔर विकृत हो चुकी सिकिल्ड सेल्स से अवरुद्ध हो जातीं हैं .इससे रेटिना (आँख के उस परदे को ही क्षति पहुँच सकती जिसपे तस्वीर बनती है ,जो तस्वीर को दिखलाता है ),इसलिए कुछ मरीजों में बीनाई सम्बन्धीसमस्या (विज़न प्रोब्लम )दिखलाई देती है जिसका फौरी समाधान ज़रूरी होता है ।
डिलेड ग्रोथ :शरीर की बढ़वार के लिए आपको ज़रूरी पोषण और ऑक्सीजन रेड ब्लड सेल्स ही तो पहुंचातीं हैं इसीलिए सिकिल सेल एनीमिया में स्वस्थ रेड ब्लड की कमी हो जाने से बच्चों की बढ़वाररुक जाती है देर से होती है .किशोरों -किशोरियों में इसीलिए प्युबर्ति आगे खिसक जाती है .
शुक्रवार, 27 मई 2011
सिकिल सेल एनेमिया :प्रिवेंशन .
बचावी उपाय क्या हैं सिकिल सेल एनीमिया से ?
सिकिल सेल एनीमिया तभी होता है जब दो व्यक्ति विपरीत लिंगी सिकिल सेल ट्रेट वाले संतान पैदा करें .ऐसे लोगों को जेनेटिक कोंसेलिंग की ज़रुरत रहती है .१२ में से एक अफ़्रीकी सिकिलट्रेट के साथ जी रहा है .
गर्भावस्था के दरमियान ही सिकिल सेल एनीमिया का पता लगाया जा सकता है ।
रेड ब्लड सेल्स की सिकलिंग (डिस्क आकार की सामान्य लाल रुधिर कोशाओं का विकृत होकर हंसिया के आकार की हो जाना ,सेल्स का सिकिल्ड होना या सिकलिंग कहलाता है ,विकृत होकर ये ,फ्रेजाइल हो जाती हैं ,रप्चर होकर नष्ट होने लगती हैं इसी से एनीमिया हो जाता है .हिमोग्लोबिन का विकार है यह जो एब्नोर्मल हिमोग्लोबिन के रूप में विरासत में मिलता है )से बचा जा सकता है :
यु कैन प्रिवेंट सिकलिंग ऑफ़ रेड ब्लड सेल्स बाई -
(१)तरल पदार्थों का अ -धिकाधिक सेवन किया जाए ।
(२)पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहनी चाहिए ,कम ऑक्सीजन वाली जगहों पर न जाएँ यथा पर्वत शिखरों पर ।
(३)कैसा भी रोग संक्रमण (इन्फेक्शन )होने पर तेज़ी से इलाज़ करवाया जाए ।
अपने पोषण और ज़ारी गति -विधियों का जायजा लेने के लिए हरेक ३-६ माह के अंतराल से फिजिकल चेक अप करवाया जाए .सुनिश्चित किया जाए निर्धारित और तजवीज़ किये गए टीकों को ,वेक्सिनेसन को .आँखों की नियमित जांच करवाई जाए ।
संक्रमण (इन्फेक्शन )से बाचाव के लिए :
इम्युनाइज़ेशन को अपटू डेट रखा जाए ,इन टीकोंमे हिमोफिलास इन्फ़्ल्युएन्ज़ा का टीका भी शामिल किया जाए ,न्युमो-कोकल ,मेनिन्जो -कोकल ,हिप -ताइतिस-बी और इन्फ़्ल्युएन्ज़ा वैक्सीन भी ।
कुछ मरीजों को संक्रमण से बचाव के लिए एंटी -बायोटिक्स भी दिए जातें हैं .
प्रिवेंतिंग क्राइसिस :माँ -बाप का दायित्व -
(१)यदि प्लीहा (स्प्लीन ,तिल्ली )बढ़ी हुई है तब बच्चों को थकाऊ कसरत न करने दी जाए ।
(२)इमोशनल स्ट्रेस से बचाया जाए (कोई संवेगात्मक ,रागात्मक ,भावात्मक ठेस न लगने पाए ।
(३)कम ऑक्सीजन वाले परिवेश यथा ऊंचे इलाके (हाई एल्तित्युड्स ),नॉन -प्रेशराइज़्द एयर -प्लेन फ्लाइट्सआदि ।
(४)धूम्रपान न किया जाए ।
(५)संक्रमण के स्रोतों को जाना जाए उनसे बचे रहा जाए जो आपको अकसर आ घेरतें हैं ।
आपको तरल की ठीक आपूर्ति हो इसे सुनिश्चित कीजिये -
(१)ज्यादा धूप में न निकलें ।
(२)घर बाहर दोनों जगह जहां भी हैं अपने साथ कोई तरल पेय ज़रूर रखे ।
(३)निर्जलीकरण के संकेतों को पहचानें (डि -हाई -डरेशन के लक्षणों से बा -खबर रहें ,वाकिफ रहें ,जाने पहचाने इन्हें .).
माँ -बाप बच्चों को इन्फेक्शन से बचाए बरखने के लिए -
(१)बच्चों को मेडिकल एलर्ट ब्रेसलेट पहनाएं ,ताकि अन्य भी उनका ध्यान रखें ।
(२)टीकाकरण सही वक्त पर हो ,हिदायतों के अनुरूप जो स्वास्थ्य कर्मी द्वारा दी गईं हैं .
(३)शिक्षकों के साथ भी माँ -बाप यह तमाम जानकारी सांझा करें ,अन्य तीमारदारों रिश्ते नातियों के साथ भी .ताकि हर कोई वाकिफ रहे मदद को तैयार रहे .बच्चे को लापरवाही न करने दे।
विशेष :बी एवेयर ऑफ़ दी इफेक्ट्स देट "क्रोनिक ",लाइफ थ्रेट -निंग इल्नेसिज़ कैन हेव ऑन सिब्लिंग्स ,मेरिज़िज़ ,पेरेंट्स ,एंड दी चाइल्ड .शादी ब्याह के मालों में बीमारी को छिपाया न जाए .
सिकिल सेल एनीमिया तभी होता है जब दो व्यक्ति विपरीत लिंगी सिकिल सेल ट्रेट वाले संतान पैदा करें .ऐसे लोगों को जेनेटिक कोंसेलिंग की ज़रुरत रहती है .१२ में से एक अफ़्रीकी सिकिलट्रेट के साथ जी रहा है .
गर्भावस्था के दरमियान ही सिकिल सेल एनीमिया का पता लगाया जा सकता है ।
रेड ब्लड सेल्स की सिकलिंग (डिस्क आकार की सामान्य लाल रुधिर कोशाओं का विकृत होकर हंसिया के आकार की हो जाना ,सेल्स का सिकिल्ड होना या सिकलिंग कहलाता है ,विकृत होकर ये ,फ्रेजाइल हो जाती हैं ,रप्चर होकर नष्ट होने लगती हैं इसी से एनीमिया हो जाता है .हिमोग्लोबिन का विकार है यह जो एब्नोर्मल हिमोग्लोबिन के रूप में विरासत में मिलता है )से बचा जा सकता है :
यु कैन प्रिवेंट सिकलिंग ऑफ़ रेड ब्लड सेल्स बाई -
(१)तरल पदार्थों का अ -धिकाधिक सेवन किया जाए ।
(२)पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहनी चाहिए ,कम ऑक्सीजन वाली जगहों पर न जाएँ यथा पर्वत शिखरों पर ।
(३)कैसा भी रोग संक्रमण (इन्फेक्शन )होने पर तेज़ी से इलाज़ करवाया जाए ।
अपने पोषण और ज़ारी गति -विधियों का जायजा लेने के लिए हरेक ३-६ माह के अंतराल से फिजिकल चेक अप करवाया जाए .सुनिश्चित किया जाए निर्धारित और तजवीज़ किये गए टीकों को ,वेक्सिनेसन को .आँखों की नियमित जांच करवाई जाए ।
संक्रमण (इन्फेक्शन )से बाचाव के लिए :
इम्युनाइज़ेशन को अपटू डेट रखा जाए ,इन टीकोंमे हिमोफिलास इन्फ़्ल्युएन्ज़ा का टीका भी शामिल किया जाए ,न्युमो-कोकल ,मेनिन्जो -कोकल ,हिप -ताइतिस-बी और इन्फ़्ल्युएन्ज़ा वैक्सीन भी ।
कुछ मरीजों को संक्रमण से बचाव के लिए एंटी -बायोटिक्स भी दिए जातें हैं .
प्रिवेंतिंग क्राइसिस :माँ -बाप का दायित्व -
(१)यदि प्लीहा (स्प्लीन ,तिल्ली )बढ़ी हुई है तब बच्चों को थकाऊ कसरत न करने दी जाए ।
(२)इमोशनल स्ट्रेस से बचाया जाए (कोई संवेगात्मक ,रागात्मक ,भावात्मक ठेस न लगने पाए ।
(३)कम ऑक्सीजन वाले परिवेश यथा ऊंचे इलाके (हाई एल्तित्युड्स ),नॉन -प्रेशराइज़्द एयर -प्लेन फ्लाइट्सआदि ।
(४)धूम्रपान न किया जाए ।
(५)संक्रमण के स्रोतों को जाना जाए उनसे बचे रहा जाए जो आपको अकसर आ घेरतें हैं ।
आपको तरल की ठीक आपूर्ति हो इसे सुनिश्चित कीजिये -
(१)ज्यादा धूप में न निकलें ।
(२)घर बाहर दोनों जगह जहां भी हैं अपने साथ कोई तरल पेय ज़रूर रखे ।
(३)निर्जलीकरण के संकेतों को पहचानें (डि -हाई -डरेशन के लक्षणों से बा -खबर रहें ,वाकिफ रहें ,जाने पहचाने इन्हें .).
माँ -बाप बच्चों को इन्फेक्शन से बचाए बरखने के लिए -
(१)बच्चों को मेडिकल एलर्ट ब्रेसलेट पहनाएं ,ताकि अन्य भी उनका ध्यान रखें ।
(२)टीकाकरण सही वक्त पर हो ,हिदायतों के अनुरूप जो स्वास्थ्य कर्मी द्वारा दी गईं हैं .
(३)शिक्षकों के साथ भी माँ -बाप यह तमाम जानकारी सांझा करें ,अन्य तीमारदारों रिश्ते नातियों के साथ भी .ताकि हर कोई वाकिफ रहे मदद को तैयार रहे .बच्चे को लापरवाही न करने दे।
विशेष :बी एवेयर ऑफ़ दी इफेक्ट्स देट "क्रोनिक ",लाइफ थ्रेट -निंग इल्नेसिज़ कैन हेव ऑन सिब्लिंग्स ,मेरिज़िज़ ,पेरेंट्स ,एंड दी चाइल्ड .शादी ब्याह के मालों में बीमारी को छिपाया न जाए .
सिकिल सेल एनीमिया :ट्रीट -मेंट्स .
ट्रीट -मेंट्स फॉर सिकिल सेल एनीमिया :
सिकिल सेल एनीमिया में इलाज़ चलता ही रहना चाहिए ,भले पैन फुल एपिसोड्स से वास्ता पड़े न पड़े .फोलिक एसिड ट्रीट -मेंट चलता ही रहता है क्योंकि रेड सेल्स सिकिल्ड होकर नष्ट होतीं रहतीं हैं जिससे एनीमिया हो जाता है ।
इलाज़ का मकसद लक्षणों में सुधार लाना होता है .क्राइसिस की (पेन फुल एपिसोड्स )की पुनरावृत्ति ,बारंबारता ,फ्रिक्युवेंसी को कम रखना है ।
पेन मेडी -केशंस(दर्द हारी ):पैन फुल एपिसोड्स के प्रबंधन में कुछ दर्द नाशियों का स्तेमाल करने के अलावा मरीज़ को ज्यादा से ज्यादा तरल का सेवन करने को कहा जाता है ।
अकसर दर्द के प्रबन्धन में नॉन -नारकोटिक्स का ही स्तेमाल किया जाता है ,कभी कभार नारकोटिक्स की भी कुछ मरीजों को ज़रुरत पड़ती है ।
हाई -ड्रोक्सी -यूरिया (हैड्रिया):पैन एपिसोड्स को सीमित रखने के लिए कुछ मरीजों पर इसका भी स्तेमाल किया जाता है .इन एपिसोड्स में सीने का दर्द तथा सांस लेने में दिक्कत भी शामिल रहती है .लेकिन यह सभी पर कारगर सिद्ध नहीं होती है ।
एंटी बायोटिक्स एंड वेक्सींस :जीवाणु से पैदा होने वाले संक्रमणों (इन्फेक्शन )से बचाने के लिए (खासकर बच्चों को ऐसे रोग संक्रमण का ख़तरा ज्यादा रहता है )इनका स्तेमाल किया जाता है ।
रक्ताधान (ब्लड ट्रांस -फ्युज़ंस ):सिकिल सेल क्राइसिस के प्रबंधन में इसकी ज़रुरत पडती है .स्ट्रोक से बचाव के लिए भी इनका नियमित तौर पर भी स्तेमाल किया जाता है ।
जटिलताएं रोग के दौरान पैदा हो जाने पर निम्न को भी अपनाया जाता है :
(१)डायलिसिस या फिर किडनी खराब हो जाने पर गुर्दा -प्रत्यारोप लगाया जाता है ।
(२)ड्रग ऋ -हेबिलिटेशन और नैदानिक मानोविग्यानी के साथ सलाह मशविरा (क्लिनिकल कोंसेलिंग की भी मरीज़ को ज़रुरत पड़ सकती है ),रोग जटिल हो जाने पर रोगी को मनो -वैज्ञानिक समस्याएं भी आड़े आतीं हैं ।
(३)पित्ताशय की बीमारी होने पर ,पित्ताशय में पथरी होने पर गाल ब्लेडर ही हटा दिया जाता है ।
(४)हिप रिप्लेसमेंट :नितम्बों में अवस्कुलर नेक्रोसिस होने पर "हिप रिप्लेसमेंट "किया जाता है ।
(५)इर्रिगेशन ऑर सर्जरी फॉर परसिस्टेंट पेनफुल इरेक -शंस (प्रिअपिस्म ).कष्टप्रद लिगोथ्थान (इरेक्शन ) दीर्घावधि बने रहने पर यह प्रोसीज़र इर्रिगेशन का या फिर शल्य चिकित्सा ही करनी पडती है .
(६)आँख की बीनाई सम्बन्धी समस्याओं के मामले में भी सर्जरी करनी पड़ती है ।
(७)वुंड केयर ,जिंक ऑक्साइड या टांगों की शल्य चिकित्सा भी करनी पडती है ।
अस्थि मज्जा प्रत्या -रोप (बोन -मारो -ट्रांस -प्लांट )सिकिल सेल एनीमिया को ठीक कर सकता है .लेकिन इसके अपने अनेक जोखिम हैं .संक्रमण (इन्फेक्शन ),प्रत्यारोप को शरीर तंत्र द्वारा बहिष्कृत कर दिया जाना (रिजेक्शन ऑफ़ ट्रांस प्लांट बाई दी इम्यून सिस्टम ),ग्राफ्ट वर्सस होस्ट डिजीज ,कह सकतें हैं कानी के ब्याह को सौ जोखों ।
ज्यादा तर मरीजों के मामले में यह सही विकल्प भी नहीं है ,उचित दाता भी कहाँ मिलतें हैं बोन मेरो के ,कम्पेतिबिलिती ,टिश्यु मेचिंग की समस्या अलग .भाई बहिनों का बोन -मैरो मेल खाता है लेकिन जो एकल संतान हों अपने माँ बाप की ?
(ज़ारी ...).
इलाज़ का मकसद लक्षणों में सुधार लाना होता है .क्राइसिस की (पेन फुल एपिसोड्स )की पुनरावृत्ति ,बारंबारता ,फ्रिक्युवेंसी को कम रखना है ।
पेन मेडी -केशंस(दर्द हारी ):पैन फुल एपिसोड्स के प्रबंधन में कुछ दर्द नाशियों का स्तेमाल करने के अलावा मरीज़ को ज्यादा से ज्यादा तरल का सेवन करने को कहा जाता है ।
अकसर दर्द के प्रबन्धन में नॉन -नारकोटिक्स का ही स्तेमाल किया जाता है ,कभी कभार नारकोटिक्स की भी कुछ मरीजों को ज़रुरत पड़ती है ।
हाई -ड्रोक्सी -यूरिया (हैड्रिया):पैन एपिसोड्स को सीमित रखने के लिए कुछ मरीजों पर इसका भी स्तेमाल किया जाता है .इन एपिसोड्स में सीने का दर्द तथा सांस लेने में दिक्कत भी शामिल रहती है .लेकिन यह सभी पर कारगर सिद्ध नहीं होती है ।
एंटी बायोटिक्स एंड वेक्सींस :जीवाणु से पैदा होने वाले संक्रमणों (इन्फेक्शन )से बचाने के लिए (खासकर बच्चों को ऐसे रोग संक्रमण का ख़तरा ज्यादा रहता है )इनका स्तेमाल किया जाता है ।
रक्ताधान (ब्लड ट्रांस -फ्युज़ंस ):सिकिल सेल क्राइसिस के प्रबंधन में इसकी ज़रुरत पडती है .स्ट्रोक से बचाव के लिए भी इनका नियमित तौर पर भी स्तेमाल किया जाता है ।
जटिलताएं रोग के दौरान पैदा हो जाने पर निम्न को भी अपनाया जाता है :
(१)डायलिसिस या फिर किडनी खराब हो जाने पर गुर्दा -प्रत्यारोप लगाया जाता है ।
(२)ड्रग ऋ -हेबिलिटेशन और नैदानिक मानोविग्यानी के साथ सलाह मशविरा (क्लिनिकल कोंसेलिंग की भी मरीज़ को ज़रुरत पड़ सकती है ),रोग जटिल हो जाने पर रोगी को मनो -वैज्ञानिक समस्याएं भी आड़े आतीं हैं ।
(३)पित्ताशय की बीमारी होने पर ,पित्ताशय में पथरी होने पर गाल ब्लेडर ही हटा दिया जाता है ।
(४)हिप रिप्लेसमेंट :नितम्बों में अवस्कुलर नेक्रोसिस होने पर "हिप रिप्लेसमेंट "किया जाता है ।
(५)इर्रिगेशन ऑर सर्जरी फॉर परसिस्टेंट पेनफुल इरेक -शंस (प्रिअपिस्म ).कष्टप्रद लिगोथ्थान (इरेक्शन ) दीर्घावधि बने रहने पर यह प्रोसीज़र इर्रिगेशन का या फिर शल्य चिकित्सा ही करनी पडती है .
(६)आँख की बीनाई सम्बन्धी समस्याओं के मामले में भी सर्जरी करनी पड़ती है ।
(७)वुंड केयर ,जिंक ऑक्साइड या टांगों की शल्य चिकित्सा भी करनी पडती है ।
अस्थि मज्जा प्रत्या -रोप (बोन -मारो -ट्रांस -प्लांट )सिकिल सेल एनीमिया को ठीक कर सकता है .लेकिन इसके अपने अनेक जोखिम हैं .संक्रमण (इन्फेक्शन ),प्रत्यारोप को शरीर तंत्र द्वारा बहिष्कृत कर दिया जाना (रिजेक्शन ऑफ़ ट्रांस प्लांट बाई दी इम्यून सिस्टम ),ग्राफ्ट वर्सस होस्ट डिजीज ,कह सकतें हैं कानी के ब्याह को सौ जोखों ।
ज्यादा तर मरीजों के मामले में यह सही विकल्प भी नहीं है ,उचित दाता भी कहाँ मिलतें हैं बोन मेरो के ,कम्पेतिबिलिती ,टिश्यु मेचिंग की समस्या अलग .भाई बहिनों का बोन -मैरो मेल खाता है लेकिन जो एकल संतान हों अपने माँ बाप की ?
(ज़ारी ...).
व्हाट आर दी सिम्पटम्स ऑफ़ सिकिल सेल एनीमिया ?
लक्षण क्या हैं सिकिल सेल एनीमिया के ?
जब शिशु चार माह का हो जाता है तब और इसके बाद ही इसके लक्षणों का प्रगटीकरण होता है इससे पहले नहीं ।
पैन फुल एपिसोड्स :दर्द का दौरा सा सभी मरीजों को पड़ता है जो कई घंटो से लेकर कई दिनों तक ज़ारी रह सकता है .इस एहसासे दर्द का निशाना कमर की हड्डियां (बोंस ऑफ़ दी बेक ).,लम्बी लम्बी अस्थियाँ (दी लॉन्ग बोंस )तथा सीना बनता है ।
कुछ मरीजों को कई साल में एक मर्तबा ही इस क्रासिस से दो चार होना पड़ता है ,लेकिन कईयों को एक साल में ही कई पैन एपिसोड्स को झेलना सहना पड़ता है ।
दर्द का दौरा मरीज़ को बे -काबू भी कर सकता है ऐसे में अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है ।
सिकिल सेल एनीमिया के आम लक्षणों में शामिल हैं :
(१)अटेक्स ऑफ़ एब्डोमिनल पैन ।
(२)बोन पैन (अस्थियों में बे तहाशा पीड़ा )।
(३)बे -दमी(ब्रेथ -लेस -नेस)।
(४)यौवन की देहलीज़ पर देर से पाँव रखना यानी वय :संधि स्थल पर देर से पहुंचना (शारीरिक विकास में देरी ),।
(५)फटीग :फटीग एक बे -दमी ,दम ख़म के अभाव का एहसास ,हर दम की थकान यानी एक बनी रहनी वाली ऊर्जा हीनता ।
(६)ज्वर (फीवर का रहना ,होना )।
(७)जौंडिस(हिपेताइतिस)या पीलिया :इसमें चमड़ी ,स्लेश्मल झिल्लियों तथा आँखों का रंग पीला पड़ जाता है .पीतवर्ण बिलिरुबीन रंजक का रंग होता है ,ओल्ड रेड ब्लड सेल्स का एक उप -उत्पाद होता है बिलीरूबिन .इसके अलावा अन्य लक्षणों में शामिल हो सकतें हैं -
(१)चेस्ट पैन (सीने में दर्द )।
(२)बेहद की प्यास का लगना ।
(३)कष्टप्रद और दीर्घावधि तक बने रहने वाला लिंगोथ्थान (इरेक्शन ,वह स्थिति जिसमे खून का अतिरिक्त दौरा शिश्न को रक्त मुहैया करवाने वाली पीनाइल आर्ट -रीज की और होने लगता है और लिंग कठोर बना रहता है ।).यह कंडीशन १०-४०%मरीजों में आ सकती है जिसे प्रिअपिस्म कहा जाता है ।
(४)बीनाई का कमज़ोर पड़ जाना /अंधत्व
(५)ब्रेन अटेक (स्ट्रोक ,सेरिब्रल -वैस -क्युलर -एक्सिडेन्ट्स) का होना ।
(६)चमड़ी में व्रण(स्किन अल्सर्स )का होना ।
(ज़ारी ...).
जब शिशु चार माह का हो जाता है तब और इसके बाद ही इसके लक्षणों का प्रगटीकरण होता है इससे पहले नहीं ।
पैन फुल एपिसोड्स :दर्द का दौरा सा सभी मरीजों को पड़ता है जो कई घंटो से लेकर कई दिनों तक ज़ारी रह सकता है .इस एहसासे दर्द का निशाना कमर की हड्डियां (बोंस ऑफ़ दी बेक ).,लम्बी लम्बी अस्थियाँ (दी लॉन्ग बोंस )तथा सीना बनता है ।
कुछ मरीजों को कई साल में एक मर्तबा ही इस क्रासिस से दो चार होना पड़ता है ,लेकिन कईयों को एक साल में ही कई पैन एपिसोड्स को झेलना सहना पड़ता है ।
दर्द का दौरा मरीज़ को बे -काबू भी कर सकता है ऐसे में अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है ।
सिकिल सेल एनीमिया के आम लक्षणों में शामिल हैं :
(१)अटेक्स ऑफ़ एब्डोमिनल पैन ।
(२)बोन पैन (अस्थियों में बे तहाशा पीड़ा )।
(३)बे -दमी(ब्रेथ -लेस -नेस)।
(४)यौवन की देहलीज़ पर देर से पाँव रखना यानी वय :संधि स्थल पर देर से पहुंचना (शारीरिक विकास में देरी ),।
(५)फटीग :फटीग एक बे -दमी ,दम ख़म के अभाव का एहसास ,हर दम की थकान यानी एक बनी रहनी वाली ऊर्जा हीनता ।
(६)ज्वर (फीवर का रहना ,होना )।
(७)जौंडिस(हिपेताइतिस)या पीलिया :इसमें चमड़ी ,स्लेश्मल झिल्लियों तथा आँखों का रंग पीला पड़ जाता है .पीतवर्ण बिलिरुबीन रंजक का रंग होता है ,ओल्ड रेड ब्लड सेल्स का एक उप -उत्पाद होता है बिलीरूबिन .इसके अलावा अन्य लक्षणों में शामिल हो सकतें हैं -
(१)चेस्ट पैन (सीने में दर्द )।
(२)बेहद की प्यास का लगना ।
(३)कष्टप्रद और दीर्घावधि तक बने रहने वाला लिंगोथ्थान (इरेक्शन ,वह स्थिति जिसमे खून का अतिरिक्त दौरा शिश्न को रक्त मुहैया करवाने वाली पीनाइल आर्ट -रीज की और होने लगता है और लिंग कठोर बना रहता है ।).यह कंडीशन १०-४०%मरीजों में आ सकती है जिसे प्रिअपिस्म कहा जाता है ।
(४)बीनाई का कमज़ोर पड़ जाना /अंधत्व
(५)ब्रेन अटेक (स्ट्रोक ,सेरिब्रल -वैस -क्युलर -एक्सिडेन्ट्स) का होना ।
(६)चमड़ी में व्रण(स्किन अल्सर्स )का होना ।
(ज़ारी ...).
हाव इज दी सिकिल सेल एनीमिया डाय्ग -नोज़्द?
ब्लड स्मीयर टेस्ट :टेस्टिंग इज टिपिकाली पर्फोर्म्द ऑन ए स्मीयर ऑफ़ ब्लड युसिंग ए स्पेशल लो -ऑक्सीजन प्रिप्रेशन .बस सूक्ष्म दर्शी की शक्ति -शाली आँख सिकिल्ड (विकृत हंसिया के आकार की कोशाओं )को देख लेती है .स्मीयर का मतलब होता है माइक्रो -स्कोप स्लाइड पर "एक सेल साम्पिल को फैला देना "जो खून में मौजूद रहतीं हैं .(सर्विकल स्मीयर ,पिप स्मीयर से आप परिचित हैं ).
इस परीक्षण को "सिकिल प्रेप "कहा जाता है .
कुछ दूसरे "प्रेप" परीक्षण भी खून में मौजूद एब्नोर्मल हिमोग्लोबिन (सिकिल्ड हिमोग्लोबिन या हिमोग्लोबिन एस )का पता लगाने के लिए किये जा सकतें हैं मय सोल्युबिलिती टेस्ट्स के ।
सोल्युबिलिती टेस्ट्स आर पर -फोर्म्ड ऑन ट्यूब्स ऑफ़ ब्लड सोल्यूशंस ।
हिमोग्लोबिन इलेक्ट्रो फोरिस टेस्ट :यह परीक्षण सामान्य (नोर्मल हिमोग्लोबिन )तथा एब -नोर्मल हिमोग्लोबिन (सिकिल्ड हिमोग्लोबिन या हिमोग्लोबिन एस )का मात्रात्मक ब्योरा मुहैया करवा देता है .
सिकिल सेल एनीमिया का जन्म पूर्व निदान :प्री -नेटल -डायग्नोसिस ऑफ़ सिकिल सेल एनीमिया के लिए गर्भ जल का परीक्षण किया जाता है ।
इसके तहत एम्नियो -सेन्टेसिस या फिर कोरियोनिक विल्लउस साम्प्लिंग की जाती है ।
इस प्रकार प्राप्त साम्पिल से फीटल सेल्स की डी एन ए एनेलिसिस भी की जाती है (०-८ सप्ताह का गर्भस्थ एम्ब्रियो कहलाता है ,८-४० सप्ताह तक का फीटस ,हिंदी में एक ही शब्द है भ्रूण दोनों के लिए ).
हिमोग्लोबिन इलेक्ट्रो -फोरेसिस परीक्षण परिशुद्ध रूप में दोनों हिमोग्लोबिंस की छंटनी करके दोनों किस्म के हिमोग्लोबिन (नोर्मल और एब्नोर्मल का जायजा ले लेता है .)
दोनों ही किस्म के हिमोग्लोबिनों में इनकी प्रोटीन की सतह पर ख़ास किस्म के विद्युत् आवेश (इलेक्ट्रिकल चार्जिज़ यानी चार्ज्ड एटम्स)मौजूद होतें हैं जो इनकी विशिष्ठ पहचान बनतें हैं .इसलिए एक विद्युत् क्षेत्र में रखने पर यह ख़ास दिशाओं मेंइलेक्ट्रोडों की तरफ अपने आवेश के अनुरूप दौड़तें हैं .
(ज़ारी ॥)।
विशेष :अगली पोस्ट में पढ़िए -व्हाट आर सिम्पटम्स एंड साइंस ऑफ़ एंड ट्रीट मेंट्स फॉर सिकिल सेल एनीमिया .
इस परीक्षण को "सिकिल प्रेप "कहा जाता है .
कुछ दूसरे "प्रेप" परीक्षण भी खून में मौजूद एब्नोर्मल हिमोग्लोबिन (सिकिल्ड हिमोग्लोबिन या हिमोग्लोबिन एस )का पता लगाने के लिए किये जा सकतें हैं मय सोल्युबिलिती टेस्ट्स के ।
सोल्युबिलिती टेस्ट्स आर पर -फोर्म्ड ऑन ट्यूब्स ऑफ़ ब्लड सोल्यूशंस ।
हिमोग्लोबिन इलेक्ट्रो फोरिस टेस्ट :यह परीक्षण सामान्य (नोर्मल हिमोग्लोबिन )तथा एब -नोर्मल हिमोग्लोबिन (सिकिल्ड हिमोग्लोबिन या हिमोग्लोबिन एस )का मात्रात्मक ब्योरा मुहैया करवा देता है .
सिकिल सेल एनीमिया का जन्म पूर्व निदान :प्री -नेटल -डायग्नोसिस ऑफ़ सिकिल सेल एनीमिया के लिए गर्भ जल का परीक्षण किया जाता है ।
इसके तहत एम्नियो -सेन्टेसिस या फिर कोरियोनिक विल्लउस साम्प्लिंग की जाती है ।
इस प्रकार प्राप्त साम्पिल से फीटल सेल्स की डी एन ए एनेलिसिस भी की जाती है (०-८ सप्ताह का गर्भस्थ एम्ब्रियो कहलाता है ,८-४० सप्ताह तक का फीटस ,हिंदी में एक ही शब्द है भ्रूण दोनों के लिए ).
हिमोग्लोबिन इलेक्ट्रो -फोरेसिस परीक्षण परिशुद्ध रूप में दोनों हिमोग्लोबिंस की छंटनी करके दोनों किस्म के हिमोग्लोबिन (नोर्मल और एब्नोर्मल का जायजा ले लेता है .)
दोनों ही किस्म के हिमोग्लोबिनों में इनकी प्रोटीन की सतह पर ख़ास किस्म के विद्युत् आवेश (इलेक्ट्रिकल चार्जिज़ यानी चार्ज्ड एटम्स)मौजूद होतें हैं जो इनकी विशिष्ठ पहचान बनतें हैं .इसलिए एक विद्युत् क्षेत्र में रखने पर यह ख़ास दिशाओं मेंइलेक्ट्रोडों की तरफ अपने आवेश के अनुरूप दौड़तें हैं .
(ज़ारी ॥)।
विशेष :अगली पोस्ट में पढ़िए -व्हाट आर सिम्पटम्स एंड साइंस ऑफ़ एंड ट्रीट मेंट्स फॉर सिकिल सेल एनीमिया .
व्हाट कंडीशंस प्रोमोट दी सिकलिंग ओस सेल्स इन सिकिल सेल एनीमिया ?
व्हाट कंडीशंस प्रोमोट दी सिकलिंग(डिस -टोर्शन )ऑफ़ रेड ब्लड सेल्स इन सिकिल सेल्स एनीमिया ?
सिकिल सेल एनीमिया के मरीजों में लाल रुधिर कणिकाओं का विकृत होना (सिकलिंग ऑफ़ रेड ब्लड सेल्स )इनकी आकृति के साथ साथ फ्लेग्ज़िबिलिती (लोच )में भी परिवर्तन ला देता है .नतीज़न ये कोशायें फ्रेजाइल (नाज़ुक )होकर रप्चर होने लगती हैं .इनकी कमी ही एनीमिया की वजह बनती है ।
कंडीशंस फॉर सिकलिंग आर प्रोमोटिद बाई ....
ऐसी जगहों पर जाना जहां ऑक्सीजन का स्तर कम हो (ऊंचाई परउत्तुंग शिखरों की ,आजकल हवाई जहाज में प्रेशे -राइज्द केबिन रहती है ),बढ़ी हुई एसिडिटी (अम्ल शूल ),लो वोल्यूम ऑफ़ दी ब्लड (निर्जलीकरण या डि -हाई -डरेशन)का होना .
शरीर के ऊतकों के किसी चोट से क्षति ग्रस्त हो जाने ,निर्जलीकरण तथा निश्चेतक पदार्थ (एन्स्थिजीया )देने से भी ऐसीही उल्लेखित स्थितियों का रचाव हो जाता है .
ऐसी ही स्थितियां तब भी पैदा हो सकतीं हैं जब खून का प्रवाह प्लीहा (स्प्लीन ),यकृत (लीवर )और हमारे गुर्दों में पूरे आवेग से न होकर धीरे धीरे होने लगता है तब इन अंगों को भी ऑक्सीजन की कमी और एसिडिटी की वजह से ख़तरा पैदा हो जाता है .
ऐसी ही स्थितियां हाइमेताबोइज़्म रेट के चलते दिमाग ,पेशियों और गर्भवती ऐसी महिला के प्लेसेंटा के लिएभी पैदा हो जातीं हैं जो सिकिल सेल एनीमिया से ग्रस्त होती है .ऐसे में खून से ज्यादा ऑक्सीजन निकल जाने की वजह से सिकलिंग की संभावना बढ़ जाती है .ज़ाहिर है ऐसे में सिकिल सेल एनीमिया से इन अंगों को क्षति पहुँचने की संभावना बलवती हो जाती है ।
(ज़ारी ...).
सिकिल सेल एनीमिया के मरीजों में लाल रुधिर कणिकाओं का विकृत होना (सिकलिंग ऑफ़ रेड ब्लड सेल्स )इनकी आकृति के साथ साथ फ्लेग्ज़िबिलिती (लोच )में भी परिवर्तन ला देता है .नतीज़न ये कोशायें फ्रेजाइल (नाज़ुक )होकर रप्चर होने लगती हैं .इनकी कमी ही एनीमिया की वजह बनती है ।
कंडीशंस फॉर सिकलिंग आर प्रोमोटिद बाई ....
ऐसी जगहों पर जाना जहां ऑक्सीजन का स्तर कम हो (ऊंचाई परउत्तुंग शिखरों की ,आजकल हवाई जहाज में प्रेशे -राइज्द केबिन रहती है ),बढ़ी हुई एसिडिटी (अम्ल शूल ),लो वोल्यूम ऑफ़ दी ब्लड (निर्जलीकरण या डि -हाई -डरेशन)का होना .
शरीर के ऊतकों के किसी चोट से क्षति ग्रस्त हो जाने ,निर्जलीकरण तथा निश्चेतक पदार्थ (एन्स्थिजीया )देने से भी ऐसीही उल्लेखित स्थितियों का रचाव हो जाता है .
ऐसी ही स्थितियां तब भी पैदा हो सकतीं हैं जब खून का प्रवाह प्लीहा (स्प्लीन ),यकृत (लीवर )और हमारे गुर्दों में पूरे आवेग से न होकर धीरे धीरे होने लगता है तब इन अंगों को भी ऑक्सीजन की कमी और एसिडिटी की वजह से ख़तरा पैदा हो जाता है .
ऐसी ही स्थितियां हाइमेताबोइज़्म रेट के चलते दिमाग ,पेशियों और गर्भवती ऐसी महिला के प्लेसेंटा के लिएभी पैदा हो जातीं हैं जो सिकिल सेल एनीमिया से ग्रस्त होती है .ऐसे में खून से ज्यादा ऑक्सीजन निकल जाने की वजह से सिकलिंग की संभावना बढ़ जाती है .ज़ाहिर है ऐसे में सिकिल सेल एनीमिया से इन अंगों को क्षति पहुँचने की संभावना बलवती हो जाती है ।
(ज़ारी ...).
सिकिल सेल एनीमिया :प्रिव्लेंस .
अब तक आप पढ़ चुकें हैं ,सिकिल सेल एनीमिया रक्त का एक ऐसा विकार है जो विरासत में मिले एब -नोर्मल हिमोग्लोबिन से पैदा हो जाता है .एब -नोर्मल हिमोग्लोबिन रेड ब्लड सेल्स को विकृत करके उन्हें हंसिया के आकार का बना देता है ,सिकिल्ड कर देता है .यह सिकिल्ड सेल्स बड़ी नाज़ुक हो जाती है इनमे रप्चर होने की प्रवृत्ति रहती है जब रप्चर होने इनके फटने -फूटने से इन की संख्या कम हो जाती हैं हिमोलिसिस हो जाती है एनीमिया हो जाता है .
यही कंडीशन सिकिल सेल एनीमिया है ।
प्रिव्लेंस :अमरीका में तकरीबन बीस लाख कालों में (ब्लेक पोप्युलेशन में )सिकिल सेल ट्रेट मौजूद है (यह कालों की आबादी का जन्म के वक्त ८ %बैठता है )।
जब दो सिकिल सेल ट्रेट वाले व्यक्ति (औरत -मर्द )परस्पर सम्भोग रत होतें हैं तब होने वाली संतान के लिए वन इन फॉर चांस(एक चौथाई ) सिकिल सेल एनीमिया का पैदा होजाता है ।
अफ्रिका के कुछ हिस्सों में पांच में से एक काला सिकिल सेल ट्रेट लिए हुए है ।
गत पोस्ट में आप सिकिल सेल ट्रेट के बारे में अलग से पढ़ चुकें हैं .जिन लोगों में एक जीन सिकिल सेलजीन हिमोग्लोबिन के लिए एक पेरेंट से दूसरा नोर्मल जीन दूसरे पेरेंट से मिलता है (यानी एब्नोर्मल हिमोग्ल्बिंन एक से तथा नोर्मल दूसरे से मिलता है )उनमें यह सिकिल सेल ट्रेट तो होता है सिकिल सेल एनीमिया रोग नहीं .ये आम तौर पर सामान्य ज़िन्दगी ही बितातें हैं ,कुछेक लक्षण ही इनमें होतें हैं लेकिन यह सिकिल सेल जीन अपनी संतानों को भी थमा देतीं हैं ।
१८७५ लोगों के पीछे एक अफ़्रीकी -अमरीकी सिकिल सेल एनीमिया से ग्रस्त है ।
(ज़ारी ...).
यही कंडीशन सिकिल सेल एनीमिया है ।
प्रिव्लेंस :अमरीका में तकरीबन बीस लाख कालों में (ब्लेक पोप्युलेशन में )सिकिल सेल ट्रेट मौजूद है (यह कालों की आबादी का जन्म के वक्त ८ %बैठता है )।
जब दो सिकिल सेल ट्रेट वाले व्यक्ति (औरत -मर्द )परस्पर सम्भोग रत होतें हैं तब होने वाली संतान के लिए वन इन फॉर चांस(एक चौथाई ) सिकिल सेल एनीमिया का पैदा होजाता है ।
अफ्रिका के कुछ हिस्सों में पांच में से एक काला सिकिल सेल ट्रेट लिए हुए है ।
गत पोस्ट में आप सिकिल सेल ट्रेट के बारे में अलग से पढ़ चुकें हैं .जिन लोगों में एक जीन सिकिल सेलजीन हिमोग्लोबिन के लिए एक पेरेंट से दूसरा नोर्मल जीन दूसरे पेरेंट से मिलता है (यानी एब्नोर्मल हिमोग्ल्बिंन एक से तथा नोर्मल दूसरे से मिलता है )उनमें यह सिकिल सेल ट्रेट तो होता है सिकिल सेल एनीमिया रोग नहीं .ये आम तौर पर सामान्य ज़िन्दगी ही बितातें हैं ,कुछेक लक्षण ही इनमें होतें हैं लेकिन यह सिकिल सेल जीन अपनी संतानों को भी थमा देतीं हैं ।
१८७५ लोगों के पीछे एक अफ़्रीकी -अमरीकी सिकिल सेल एनीमिया से ग्रस्त है ।
(ज़ारी ...).
व्हाट इज सिकिल सेल ट्रेट?
सिकिल सेल ट्रेट :इस ट्रेट से ग्रस्त व्यक्ति में एक सिकिल सेल जीन होता है जो एक पेरेंट से मिलता है लेकिन उसी जीन की एक नोरमल कोपी (एक नोर्मल जीन) भी होता है जो दूसरे पेरेंट से मिलता है .इसी प्रकार इन लोगों में जिनमें यह सिकिल सेल ट्रेट होता है सिकिल हिमोग्लोबिन भी होता है नोर्मलहिमोग्लोबिन भी रहता है .यदि लक्षण मौजूद रहतें भी हैं तो चंद एक ,कभी कभार ही कुछ में मेडिकल कोम्प्लिकेसंस (चिकित्सा सम्बन्धी जटिलताएं )नजर आतीं हैं आम तौर पर ये लोग सामान्य जीवन बितातें हैं लेकिन अपनी संततियों को सिकिल सेल से ग्रस्त व्यक्ति की ही तरह सिकिल जीन थमा देतें हैं .
गुरुवार, 26 मई 2011
सिकिल सेल एनीमिया :आउट लुक .
आउट लुक :
इसका कोई व्यापक स्तर पर उपलब्ध इलाज़ नहीं है .हालाकिउचित इलाज़ से रोग के लक्षणों में सुधार आता है ,पेचीदगियां ,जटिलताएं भी सिकिल सेल एनीमिया में इलाज़ से कम रहतीं हैं ।
"ब्लड एंड मारो(मैरो)स्टेम सेल ट्रांस -प्लांट्स "कुछेक लोगों में रोग का समाधानभी प्रस्तुत कर सकता है .स्टेम सेल रिसर्च से और भी कई ला -इलाज़ रोगों के समाधान की उम्मीदें हैं ।
गत सौ सालों में सिकिल सेल अनीमिया के कारणों पर खासी रौशनी पड़ी है .इलाज़ भी निकल कर आये हैं .कैसे यह रोग हमारे शरीर को असर ग्रस्त करता है और कैसे इलाज़ से इसकी जटिलताओं को कम किया जा सकता है ,सब कुछ और जानकारी में आया है ।
रोग का स्वरूप सब में यकसां नहीं है किसी में देर तक बने रहनी वाली थकान बनी रहती है ,दीर्घावधि और भी लक्षण इस रोग के जो इनमें क्रोनिक रुख इख्त्यार कर लेता है बने रहतें हैं ।
कुछ और लोगों के जीवन की गुणवत्ता समुचित इलाज़और देख भाल मिलने पर काफी सुधर जाती है ,स्वास्थ्य भी ठीक ठाक बना रहता है ।
इलाज़ में निरंतर होने वाली प्रगति और देखभाल ने कुछ लोगों को फोर्तीज़ ,फिफ्तीज़ क्या ,चालिसे और पचासे के पार भी चले आने के काबिल बनाया है .
(ज़ारी ...).
इसका कोई व्यापक स्तर पर उपलब्ध इलाज़ नहीं है .हालाकिउचित इलाज़ से रोग के लक्षणों में सुधार आता है ,पेचीदगियां ,जटिलताएं भी सिकिल सेल एनीमिया में इलाज़ से कम रहतीं हैं ।
"ब्लड एंड मारो(मैरो)स्टेम सेल ट्रांस -प्लांट्स "कुछेक लोगों में रोग का समाधानभी प्रस्तुत कर सकता है .स्टेम सेल रिसर्च से और भी कई ला -इलाज़ रोगों के समाधान की उम्मीदें हैं ।
गत सौ सालों में सिकिल सेल अनीमिया के कारणों पर खासी रौशनी पड़ी है .इलाज़ भी निकल कर आये हैं .कैसे यह रोग हमारे शरीर को असर ग्रस्त करता है और कैसे इलाज़ से इसकी जटिलताओं को कम किया जा सकता है ,सब कुछ और जानकारी में आया है ।
रोग का स्वरूप सब में यकसां नहीं है किसी में देर तक बने रहनी वाली थकान बनी रहती है ,दीर्घावधि और भी लक्षण इस रोग के जो इनमें क्रोनिक रुख इख्त्यार कर लेता है बने रहतें हैं ।
कुछ और लोगों के जीवन की गुणवत्ता समुचित इलाज़और देख भाल मिलने पर काफी सुधर जाती है ,स्वास्थ्य भी ठीक ठाक बना रहता है ।
इलाज़ में निरंतर होने वाली प्रगति और देखभाल ने कुछ लोगों को फोर्तीज़ ,फिफ्तीज़ क्या ,चालिसे और पचासे के पार भी चले आने के काबिल बनाया है .
(ज़ारी ...).
सिकिल सेल एनीमिया :सार संक्षेप .
ओवर -व्यू :
सिकिल सेल एनीमिया एक" प्रकार" ही है "एनीमिया" का .एनीमिया एक ऐसी स्थिति या कंडीशन है जिसमें आपके खून में रेड ब्लड सेल्स सामान्य से कम हो जातीं हैं .यह स्थिति तब भी पैदा हो जाती है जब खून में पर्याप्त मात्रा में हिमोग्लोबिन नहीं रहता है .
शरीर की बड़ी अस्थियों(लार्ज बोंस )की स्पंजनुमा मज्जा (मारो) में लाल रुधिर कोशायें निर्मित होती है .अस्थि मज्जा (बोन मारो )में निरंतर ही नै रेड ब्लड सेल्स बनती रहती हैं जो पुरानी कोशाओं का स्थान लेलेतीं हैं .रक्त प्रवाह में सामान्य कोशाओं की जीवन अवधि १२० दिन होती है इसके बाद यह मृत हो जातीं हैं .ये ऑक्सीजन ले जातीं हैं कार्बन डाय -ऑक्साइड (अप -शिष्ट पदार्थ शरीर के लिए ए वेस्ट प्रो -डक्ट)की निकासी करती हैंशरीर की तमाम कोशाओं से.
विरासत में मिला उम्र भर का रोग है "सिकिल सेल एनीमिया ".लोग इसे जन्म से ही अपने साथ लातें हैं .इन्हें विरासत में" सिकिल हिमोग्लोबिन "की दो जींस (जीवन इकाइयां ,डी एन ए खंड जो गुणों को अभिव्यक्त करतें हैं )मिलतीं हैं ,एक माँ से दूसरी बाप से ।
सिकिल सेल ट्रेट:जिन नौनिहालों को एक सिकिल हिमोग्लोबिन जीन एक पेरेंट से मिलती है तथा नोर्मल जीन दूसरे से उनमें सिकिल सेल ट्रेट तो होता है ,सिकिल सेल एनीमिया नहीं .इन्हें रोग नहीं होता है रोग के लक्षणों का प्रगटीकरण भी इनमे नहीं होता है ,लेकिन इनके पास दो में से एक जीन तो रहती ही है जो इस रोग की वजह बनती है ।
सिकिल सेल एनीमिया से ग्रस्त व्यक्ति की तरह ही ये सिकिल ट्रेट प्राणि भी अपनी संतानों तक सिकिल हिमोग्लोबिन जीन ले जातें हैं .(ज़ारी ...)
सिकिल सेल एनीमिया एक" प्रकार" ही है "एनीमिया" का .एनीमिया एक ऐसी स्थिति या कंडीशन है जिसमें आपके खून में रेड ब्लड सेल्स सामान्य से कम हो जातीं हैं .यह स्थिति तब भी पैदा हो जाती है जब खून में पर्याप्त मात्रा में हिमोग्लोबिन नहीं रहता है .
शरीर की बड़ी अस्थियों(लार्ज बोंस )की स्पंजनुमा मज्जा (मारो) में लाल रुधिर कोशायें निर्मित होती है .अस्थि मज्जा (बोन मारो )में निरंतर ही नै रेड ब्लड सेल्स बनती रहती हैं जो पुरानी कोशाओं का स्थान लेलेतीं हैं .रक्त प्रवाह में सामान्य कोशाओं की जीवन अवधि १२० दिन होती है इसके बाद यह मृत हो जातीं हैं .ये ऑक्सीजन ले जातीं हैं कार्बन डाय -ऑक्साइड (अप -शिष्ट पदार्थ शरीर के लिए ए वेस्ट प्रो -डक्ट)की निकासी करती हैंशरीर की तमाम कोशाओं से.
विरासत में मिला उम्र भर का रोग है "सिकिल सेल एनीमिया ".लोग इसे जन्म से ही अपने साथ लातें हैं .इन्हें विरासत में" सिकिल हिमोग्लोबिन "की दो जींस (जीवन इकाइयां ,डी एन ए खंड जो गुणों को अभिव्यक्त करतें हैं )मिलतीं हैं ,एक माँ से दूसरी बाप से ।
सिकिल सेल ट्रेट:जिन नौनिहालों को एक सिकिल हिमोग्लोबिन जीन एक पेरेंट से मिलती है तथा नोर्मल जीन दूसरे से उनमें सिकिल सेल ट्रेट तो होता है ,सिकिल सेल एनीमिया नहीं .इन्हें रोग नहीं होता है रोग के लक्षणों का प्रगटीकरण भी इनमे नहीं होता है ,लेकिन इनके पास दो में से एक जीन तो रहती ही है जो इस रोग की वजह बनती है ।
सिकिल सेल एनीमिया से ग्रस्त व्यक्ति की तरह ही ये सिकिल ट्रेट प्राणि भी अपनी संतानों तक सिकिल हिमोग्लोबिन जीन ले जातें हैं .(ज़ारी ...)
सिकिल सेल एनीमिया आखिर है क्या ?
सिकिल सेल एनीमिया "सिकिल सेल डिजीज "की एक आमफ़हम किस्म है (एस सी डी )।
"एस सी डी "एक गंभीर विकार है जिसमें शरीर हंसिया (सिकिल ,दूज के चाँद सी )के आकार की रेड ब्लड सेल्स (लाल रुधिर कणिकाएं या रेड ब्लड सेल्स /कापसिल्स ,आर बी सी )।बनाने लगता है .
स्वस्थ सामान्य लाल रुधिर कोशायें डोनट के आकार की (भारतीय बालूशाही जैसी )होतीं हैं .अलबत्ता डोनट की तरह इनमें बीच में छेद नहीं रहता है .रक्त वाहिकाओं से ये निर्बाधरूप प्रवाहित होतीं हैं ,बिना रोक टोक ब्लड वेसिल्स से आती जातीं हैं ।
इन्हीं रेड ब्लड सेल्स में एक लौह तत्व बहुल प्रोटीन (आयरन रिच प्रोटीन )होती है जो ऑक्सीजन का वहन या कह सकतें हैं वाहन बनके के फेफड़ों से ऑक्सीजन लेके तमाम शरीर तक पहुंचातीं हैं .इसे ही हिमोग्लोबिन कहतें हैं ।
कह सकतें हैं हिमोग्लोबिन रक्त का वाहन है ,मौजूद लाल रंजक (पिगमेंट )की वजह से यह लाल होता है . सिकिल सेल्स में सामान्य की जगह सिकिल हिमोग्लोबिन (असामान्य हिमोग्लोबिन )रहता है जिसे "हिमोग्लोबिन एस "कहतें हैं .यही सिकिल हिमोग्लोबिन सेल्स को हंसिया की शक्ल में ढलने को प्रेरित करता है .ईद की चाँद सी हो जाती हैं ये कोशायें विकृत होते होते ।
सिकिल सेल्स आर स्टिफ एंड स्टिकी .इनकी प्रवृत्ति रक्तवाहिकाओं में प्रवाह को रोकने की रहती है जो सामान्य स्थिति में लिम्ब्स और ओर्गेंस तक जाता .
यही अवरुद्ध प्रवाह दर्द के रूप में प्रगटित होता है .गंभीर रोग संक्रमण तथा ओर्गेंन डेमेज की वजह भी बनता है ।
(ज़ारी ...)
"एस सी डी "एक गंभीर विकार है जिसमें शरीर हंसिया (सिकिल ,दूज के चाँद सी )के आकार की रेड ब्लड सेल्स (लाल रुधिर कणिकाएं या रेड ब्लड सेल्स /कापसिल्स ,आर बी सी )।बनाने लगता है .
स्वस्थ सामान्य लाल रुधिर कोशायें डोनट के आकार की (भारतीय बालूशाही जैसी )होतीं हैं .अलबत्ता डोनट की तरह इनमें बीच में छेद नहीं रहता है .रक्त वाहिकाओं से ये निर्बाधरूप प्रवाहित होतीं हैं ,बिना रोक टोक ब्लड वेसिल्स से आती जातीं हैं ।
इन्हीं रेड ब्लड सेल्स में एक लौह तत्व बहुल प्रोटीन (आयरन रिच प्रोटीन )होती है जो ऑक्सीजन का वहन या कह सकतें हैं वाहन बनके के फेफड़ों से ऑक्सीजन लेके तमाम शरीर तक पहुंचातीं हैं .इसे ही हिमोग्लोबिन कहतें हैं ।
कह सकतें हैं हिमोग्लोबिन रक्त का वाहन है ,मौजूद लाल रंजक (पिगमेंट )की वजह से यह लाल होता है . सिकिल सेल्स में सामान्य की जगह सिकिल हिमोग्लोबिन (असामान्य हिमोग्लोबिन )रहता है जिसे "हिमोग्लोबिन एस "कहतें हैं .यही सिकिल हिमोग्लोबिन सेल्स को हंसिया की शक्ल में ढलने को प्रेरित करता है .ईद की चाँद सी हो जाती हैं ये कोशायें विकृत होते होते ।
सिकिल सेल्स आर स्टिफ एंड स्टिकी .इनकी प्रवृत्ति रक्तवाहिकाओं में प्रवाह को रोकने की रहती है जो सामान्य स्थिति में लिम्ब्स और ओर्गेंस तक जाता .
यही अवरुद्ध प्रवाह दर्द के रूप में प्रगटित होता है .गंभीर रोग संक्रमण तथा ओर्गेंन डेमेज की वजह भी बनता है ।
(ज़ारी ...)
पोलिसिस्तिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्दावली .
मैनो -रेजिया:हेवी प्रोलोंग्द ब्लीडिंग ड्यूरिंग मेन्स्त्र्युअल् साइकिल्स इज काल्ड मैनो -रेजिया .यानी मासिक चक्र के दरमियान अधिक रक्तस्राव का होना अधिक दिनों तक हो भी सकता है यह रक्त स्राव नहीं भी . इसकी वजह पेल्विक इन -फ्लेमेत्री डिजीज भी बन सकती है ,ट्यूमर्स भी (खासकर फाइब-रोइड्स )बन सकतें हैं पेल्विक केविटी के ,इंडो -मेट -रियोसिस भी ,किसी इंट्रा -यूटेराइन- कोंट्रा -सेप्तिव डिवाइस की मौजूदगी भी .
एन्दोमेत्रिअल कैंसर :वोम्ब (बच्चेदानी )का कैंसर होता है यह .जो अकसर ५५-७० साला महिलाओं को हो जाता है .औरतों को होने वाले तमाम तरह के कैंसरों में इसकी हिस्सेदारी ६%रहती है .।
मोटापा इसके खतरे के वजन को बढा देता है ,निस्संतान या फिर एक आदि संतान का ही होना ,किशोरावस्था में अपेक्षाकृत जल्दी रजस्वला (मेनार्के )हो जाना यानी उम्र से थोड़ा पहले ही रजो -दर्शन ,मासिक चक्र की शुरुआत का होना ,अधिक उम्र दराज़ होने पर रजोनिवृत्त (मिनोपोज़ल )होना तथा ऊंचे तबके से ताल्लुक रखना इसके जोखिम की अन्य वजहें हो सकतीं हैं ,होतीं भी हैं ।
समझा जाता है इन तमाम खतरे के तत्वों की वजह हारमोनों का आधिक्य बनता है खासकर इस्ट्रोजन का ।
क्रोनिक :ग्रीक भाषा का एक शब्द है "क्रोनोस "(क्रोनोज़ ),जिसका मतलब होता है ,टाइम एंड मीन्स लास्टिंग ए लोंग टाइम यानी देर तक बनी रहने वाली ,जिसे हम कभी कभार कहदेतें हैं ,चिर कालिक ,पुरानी ।
डाय्ग- नोसिस: यानी बीमारी का स्वरूप (रोग निदान ),बीमारी का मिजाज़ और उसकी शिनाख्त होना ,रोग निदान के ज़रिये किसी निष्कर्ष पर पहुंचना .किसी समस्या की पहचान का तय होजाना .मेडिसन में कहा गया है "डाय्ग -नोसिस इज हाव(हाल्फ )क्युओर्द ."यह वैसे ही है जैसे कहा जाता है -बिगनिंग ऑफ़ ए वर्क इज हाल्फ डन।
ग्लेंड: कोशिकाओं का एक ऐसा समूह जो किसी ख़ास पदार्थ का स्राव करता है जो शरीर के संचालन में काम आता है ।मसलन थाई -रोइड ग्लेंड .
कोशाओं का एक ऐसा वर्ग जो सर्क्युलेशन से कुछ पदार्थों की निकासी करता है .मसलन लिम्फ ग्लेंड (लसिका ग्रंथि ).
(zaari ...)
एन्दोमेत्रिअल कैंसर :वोम्ब (बच्चेदानी )का कैंसर होता है यह .जो अकसर ५५-७० साला महिलाओं को हो जाता है .औरतों को होने वाले तमाम तरह के कैंसरों में इसकी हिस्सेदारी ६%रहती है .।
मोटापा इसके खतरे के वजन को बढा देता है ,निस्संतान या फिर एक आदि संतान का ही होना ,किशोरावस्था में अपेक्षाकृत जल्दी रजस्वला (मेनार्के )हो जाना यानी उम्र से थोड़ा पहले ही रजो -दर्शन ,मासिक चक्र की शुरुआत का होना ,अधिक उम्र दराज़ होने पर रजोनिवृत्त (मिनोपोज़ल )होना तथा ऊंचे तबके से ताल्लुक रखना इसके जोखिम की अन्य वजहें हो सकतीं हैं ,होतीं भी हैं ।
समझा जाता है इन तमाम खतरे के तत्वों की वजह हारमोनों का आधिक्य बनता है खासकर इस्ट्रोजन का ।
क्रोनिक :ग्रीक भाषा का एक शब्द है "क्रोनोस "(क्रोनोज़ ),जिसका मतलब होता है ,टाइम एंड मीन्स लास्टिंग ए लोंग टाइम यानी देर तक बनी रहने वाली ,जिसे हम कभी कभार कहदेतें हैं ,चिर कालिक ,पुरानी ।
डाय्ग- नोसिस: यानी बीमारी का स्वरूप (रोग निदान ),बीमारी का मिजाज़ और उसकी शिनाख्त होना ,रोग निदान के ज़रिये किसी निष्कर्ष पर पहुंचना .किसी समस्या की पहचान का तय होजाना .मेडिसन में कहा गया है "डाय्ग -नोसिस इज हाव(हाल्फ )क्युओर्द ."यह वैसे ही है जैसे कहा जाता है -बिगनिंग ऑफ़ ए वर्क इज हाल्फ डन।
ग्लेंड: कोशिकाओं का एक ऐसा समूह जो किसी ख़ास पदार्थ का स्राव करता है जो शरीर के संचालन में काम आता है ।मसलन थाई -रोइड ग्लेंड .
कोशाओं का एक ऐसा वर्ग जो सर्क्युलेशन से कुछ पदार्थों की निकासी करता है .मसलन लिम्फ ग्लेंड (लसिका ग्रंथि ).
(zaari ...)
ऐसे थे जगदीश मामा .
कहने को वो हमारे मुंह बोले मामा थे .नानी की तरफ से कहीं रिश्ते में आते थे लेकिन सबको बहुत प्यारे थे वह मुंहबोले मामा .उनका एक फटो -ग्रेफ उस दौर का हमारे घर के एक आले में सजा रहता जब वह फौज में थे .हाथ में बन्दूक लिए बैठे थे वे घुटनों के बल .एक दम से मुस्तैद ।
अम्मा बतातीं थीं इनके बाप ने अपनी बहु से ही रिश्ता जोड़ लिया था .मामा चाहते तो वह गोली घर में भी चला सकते थे लेकिन उन्होंने अपना पुत्र धर्म निभाया और चुप- चाप फौज में भर्ती हो गए .
उनकी टांग में गोली लगी थी सीमा पे लड़ते हुए और वह फौज की नौकरी छोड़ कर बुलंद शहर हमारे घर चले आये थे .हमारी नानी के घर .हाँ हमारा लालन पालन भी यहीं हुआ था .लेकिन उस दौर की हमें कोई स्मृति नहीं .अम्मा बतातीं थीं ,जगदीश मामाजी हमारी दवाएं बेचने लगे थे .बस में चढ़ कर उलटी उलटी आवाज़ लगाते आँखों का मंजन और दांतों का सुरमा लेलो और अच्छी खासी बिक्री कर लाते थे .दादा का नाम बिकता था जिनके नाम से फार्मेसी थी .पेटेंट चीज़ों की अपनी साख होती है ।
उस दौर में हम स्कूल में ही पढ़ते थे मामा जब भी आते ढेर सारे चीनी मिटटी के खिलौने लेकर आते ,झांसी ,ग्वालियर ,इटारसी तक मेरठ स्टील स्प्रिंग्स की धाक थी .माल सप्लाई करके लौटते तो पहले बुलंद शहर आते .फिर कहीं मेरठ जाते ।
लम्बे कद के थे जगदीश मामा ,गोद में उठाते और हमें कहते -भाई साहब !यह आत्मीय संबोधन हमारे हिमोग्लोबिन में उन्होंने बचपन में ही घोल दिया था ।
दूसरे को सहने का ,संबंधों को निबाहने का एक जो ज़ज्बा उनमें था ,वह हमने फिर कभी नहीं देखा .उनके रिश्तों का दायरा बड़ा विशाल और विकसित था .छोटों की गलती को ज़ाहिर नहीं होने देते थे छोटों पर उनके प्यार से एक बार तब डर लगने लगा था जब दो दिन पहले हममेरठ में मामा की बुआ के घर में थे आते वक्त वहां से एक पैन उठालाये थे ।
मामा पता नहीं कैसे दो दिन बाद ही बुलंद शहर चले आये थे .हमें गोदमे भाई साहब कहते हुए उन्होंने उठालिया था .पैन हमारी जेब में ही था .उस दौर का कीमती पैन रहा होगा ,.मामा ने पूछाये पैन भाईसाहब आपका है , यह पैन तुम्हारा है .हमने झूठ बोल दिया डरते हुए ,गर्दन हाँ में हिलादी .बोला कहाँ गयाथा उनके प्यार के आगे ।
माँ ने उनकी दूसरी शादी करा दी थी .बरसों बाद एक लडका हुआ था ,फिर दूसरा भी .डिलीवरी कराने अम्मा ही गईं थीं हम जब तब उनके साथ चले जाते .मामा ढेर सारी गर्म जलेबी लाते ,जलेबा भी होता ,शुद्ध देशी घी की जलेबियाँ जब थाल में डालते तो थाल भर जाता .हम खूब खाते ।
मामा के लाये हुए खिलौने ,जलेबी हमें सब कुछ आज भी याद है .जोड़े में से एक चीनी मिटटी का बना शेर टूट गया था हमने बरसों बरस उसे संभाल के रखा था ।सागर पढने गए तो वह शेर भी हमारे साथ था .जब टूटा बड़ा दुःख हुआ .
मामा हमेशा ज़िन्दगी में किसी बड़ी बात को लेकर जिए उनके रिश्तों का दायरा बहुत खुला खुला बहुत अपना सा होता ।
मामा जहां भी सच्चा प्यार मिला वहीं का होके रह गए . माँ उनसे हमारे सगे मामा से भी ज्यादा प्यार करतीं .व्यक्ति को प्यार के अलफ़ाज़ चाहिए .कोई बात सुनने वाला चाहिए .शायद इसीलिए मामा लौट लौट के बुलंदशहर चले आते थे .हरेक टूर के बाद यहाँ आना उनके लिए गंगा स्नान सा था .आते प्रेम की गंगा बहाके चले जाते .अम्मा तीज त्यौहार उनके माथे पे टीका करतीं .उनके विशाल माथे पर बहन का टीका ज्यादा ही शोभता .एक बंडी(जेब वाली बनियान )पहनते थे मामा .सफर के दौरान उसी में रकम रखते थे .जाते तो हमें भी रुपया दो मिलता बड़ी कीमत थी उस दौर में दो रूपये की .१९६० -७० के दशक में ।
शिद्दत से हमें धीरे धीरे महसूस हुआ रिश्ते सिर्फ खून के नहीं होते ,उनमें प्यार न हो तो बेकार .रिश्ते प्यार के होतें हैं .केवल खून के नहीं होते .खून के रिश्तों में तो हमने खून होते देखा है .शोषण का वीभत्स रूप भी .मामा के साथ क्या यहीं नहीं हुआ था .लेकिन मामा उस दंश से दंशित कभी नहीं दिखे .एक स्मित उनके चेहरे पे एक आभा खेलती इतराती बनी रहती .मामा के घर में एक खरगोश और कुत्ता साथ साथ रहतेमामा के प्यार ने उनमे भी यारी करा दी थी . .पहली बार हमने तब जाना अल्शेशियन कुत्ता प्याज़ा भी खालेता है कच्चा गोभी भी .मामा के घर चोरी हुई तो उसने चोर को नहीं छोड़ा बदले में चोर ने उसे छुरा घोंप दिया था और उसकी जान चली गई ।
तब हमें इल्म नहीं था डायबिटीज़ क्या होती है सब बीमारियों की माँ क्या, नानी होती है .पता तब चला जब हम व्याख्याता बन गए .पता यह भी चला मामा को मधुमेह था .उस दौर में इतनी स्वास्थ्य चेतना लोगों में वैसे भी कहाँ थी .बाद में पता चला उनके बाप को भी डायबिटीज़ थी .बाप की यही सौगात उनकी जान ले गई .दाय्बेतिक फुट और गैंग्रीन ,टांग काटनी पड़ी थी लेकिन इसके बाद भी मामा को बचाया नहीं जा सका था .नै दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में मामा ने दम तोड़ दिया .सेप्तेसीमिया,ज़हरवाद हो गया था सर्जरी के बाद .हमारे पास तो बस खबर पहुंची थी वह भी लेट लतीफ़ .रोना भी मौके पे नसीब नहीं हुआ ।
(ज़ारी ...)
अम्मा बतातीं थीं इनके बाप ने अपनी बहु से ही रिश्ता जोड़ लिया था .मामा चाहते तो वह गोली घर में भी चला सकते थे लेकिन उन्होंने अपना पुत्र धर्म निभाया और चुप- चाप फौज में भर्ती हो गए .
उनकी टांग में गोली लगी थी सीमा पे लड़ते हुए और वह फौज की नौकरी छोड़ कर बुलंद शहर हमारे घर चले आये थे .हमारी नानी के घर .हाँ हमारा लालन पालन भी यहीं हुआ था .लेकिन उस दौर की हमें कोई स्मृति नहीं .अम्मा बतातीं थीं ,जगदीश मामाजी हमारी दवाएं बेचने लगे थे .बस में चढ़ कर उलटी उलटी आवाज़ लगाते आँखों का मंजन और दांतों का सुरमा लेलो और अच्छी खासी बिक्री कर लाते थे .दादा का नाम बिकता था जिनके नाम से फार्मेसी थी .पेटेंट चीज़ों की अपनी साख होती है ।
उस दौर में हम स्कूल में ही पढ़ते थे मामा जब भी आते ढेर सारे चीनी मिटटी के खिलौने लेकर आते ,झांसी ,ग्वालियर ,इटारसी तक मेरठ स्टील स्प्रिंग्स की धाक थी .माल सप्लाई करके लौटते तो पहले बुलंद शहर आते .फिर कहीं मेरठ जाते ।
लम्बे कद के थे जगदीश मामा ,गोद में उठाते और हमें कहते -भाई साहब !यह आत्मीय संबोधन हमारे हिमोग्लोबिन में उन्होंने बचपन में ही घोल दिया था ।
दूसरे को सहने का ,संबंधों को निबाहने का एक जो ज़ज्बा उनमें था ,वह हमने फिर कभी नहीं देखा .उनके रिश्तों का दायरा बड़ा विशाल और विकसित था .छोटों की गलती को ज़ाहिर नहीं होने देते थे छोटों पर उनके प्यार से एक बार तब डर लगने लगा था जब दो दिन पहले हममेरठ में मामा की बुआ के घर में थे आते वक्त वहां से एक पैन उठालाये थे ।
मामा पता नहीं कैसे दो दिन बाद ही बुलंद शहर चले आये थे .हमें गोदमे भाई साहब कहते हुए उन्होंने उठालिया था .पैन हमारी जेब में ही था .उस दौर का कीमती पैन रहा होगा ,.मामा ने पूछाये पैन भाईसाहब आपका है , यह पैन तुम्हारा है .हमने झूठ बोल दिया डरते हुए ,गर्दन हाँ में हिलादी .बोला कहाँ गयाथा उनके प्यार के आगे ।
माँ ने उनकी दूसरी शादी करा दी थी .बरसों बाद एक लडका हुआ था ,फिर दूसरा भी .डिलीवरी कराने अम्मा ही गईं थीं हम जब तब उनके साथ चले जाते .मामा ढेर सारी गर्म जलेबी लाते ,जलेबा भी होता ,शुद्ध देशी घी की जलेबियाँ जब थाल में डालते तो थाल भर जाता .हम खूब खाते ।
मामा के लाये हुए खिलौने ,जलेबी हमें सब कुछ आज भी याद है .जोड़े में से एक चीनी मिटटी का बना शेर टूट गया था हमने बरसों बरस उसे संभाल के रखा था ।सागर पढने गए तो वह शेर भी हमारे साथ था .जब टूटा बड़ा दुःख हुआ .
मामा हमेशा ज़िन्दगी में किसी बड़ी बात को लेकर जिए उनके रिश्तों का दायरा बहुत खुला खुला बहुत अपना सा होता ।
मामा जहां भी सच्चा प्यार मिला वहीं का होके रह गए . माँ उनसे हमारे सगे मामा से भी ज्यादा प्यार करतीं .व्यक्ति को प्यार के अलफ़ाज़ चाहिए .कोई बात सुनने वाला चाहिए .शायद इसीलिए मामा लौट लौट के बुलंदशहर चले आते थे .हरेक टूर के बाद यहाँ आना उनके लिए गंगा स्नान सा था .आते प्रेम की गंगा बहाके चले जाते .अम्मा तीज त्यौहार उनके माथे पे टीका करतीं .उनके विशाल माथे पर बहन का टीका ज्यादा ही शोभता .एक बंडी(जेब वाली बनियान )पहनते थे मामा .सफर के दौरान उसी में रकम रखते थे .जाते तो हमें भी रुपया दो मिलता बड़ी कीमत थी उस दौर में दो रूपये की .१९६० -७० के दशक में ।
शिद्दत से हमें धीरे धीरे महसूस हुआ रिश्ते सिर्फ खून के नहीं होते ,उनमें प्यार न हो तो बेकार .रिश्ते प्यार के होतें हैं .केवल खून के नहीं होते .खून के रिश्तों में तो हमने खून होते देखा है .शोषण का वीभत्स रूप भी .मामा के साथ क्या यहीं नहीं हुआ था .लेकिन मामा उस दंश से दंशित कभी नहीं दिखे .एक स्मित उनके चेहरे पे एक आभा खेलती इतराती बनी रहती .मामा के घर में एक खरगोश और कुत्ता साथ साथ रहतेमामा के प्यार ने उनमे भी यारी करा दी थी . .पहली बार हमने तब जाना अल्शेशियन कुत्ता प्याज़ा भी खालेता है कच्चा गोभी भी .मामा के घर चोरी हुई तो उसने चोर को नहीं छोड़ा बदले में चोर ने उसे छुरा घोंप दिया था और उसकी जान चली गई ।
तब हमें इल्म नहीं था डायबिटीज़ क्या होती है सब बीमारियों की माँ क्या, नानी होती है .पता तब चला जब हम व्याख्याता बन गए .पता यह भी चला मामा को मधुमेह था .उस दौर में इतनी स्वास्थ्य चेतना लोगों में वैसे भी कहाँ थी .बाद में पता चला उनके बाप को भी डायबिटीज़ थी .बाप की यही सौगात उनकी जान ले गई .दाय्बेतिक फुट और गैंग्रीन ,टांग काटनी पड़ी थी लेकिन इसके बाद भी मामा को बचाया नहीं जा सका था .नै दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में मामा ने दम तोड़ दिया .सेप्तेसीमिया,ज़हरवाद हो गया था सर्जरी के बाद .हमारे पास तो बस खबर पहुंची थी वह भी लेट लतीफ़ .रोना भी मौके पे नसीब नहीं हुआ ।
(ज़ारी ...)
पोलीसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्द (ज़ारी ).
सी -रिएक्टिव प्रोटीन ज़ारी ....
गत पोस्ट से आगे ....
इन्फेक्शन ,ट्रौमा ,सर्जरी ,झुलस जाने (बर्न्स ),इन्फ्लेमेत्री कंडीशंस ,कैंसर के आगे के चरणों में ,सी आर पी का स्तर खासा बढ़ जाता है ।
मोडरेट वृद्धि हाड -तोड़ व्यायाम के बाद ,हीट स्ट्रोक के बाद ,प्रसव के बाद भी हो जाती है .मनोवैज्ञानिक दवाब में आने के बाद भी थोड़ी बहुत वृद्धि सी -रिएक्टिव प्रोटीन में हो जाती है .कई मनो -रोगों में भी ऐसी ही बढ़ोतरी हो जाती है इस प्रोटीन के स्तर में ।
इसीलिए चिकित्सा में इसका बड़ा महत्त्व है ,इससे संक्रमण की मौजूदगी और गंभीरता दोनों का इल्म हो जाता है .बेशक यह किसी रोग के होने का रोग निदानिक प्रमाण न हो .
क्योंकि इन -फ्लेमेशन का एहम रोल परि -हृदय धमनी रोग (कोरोनरी आर्टरी डिजीज )में इसकेअलग अलग चरणों में बढ़ने की इत्तला देता है इसलिए दिल की सेहत का जायजा लेने में मार्कर्स का अपना रोल रहता है .
"सी आर पी" वाज़ फाउंड तू बी दी ओनली मारकर ऑफ़ इन्फ्लेमेशन देट इन -डिपें -देंटली प्रिदिक्ट्स दी रिस्क ऑफ़ हार्ट अटेक ।
दी "सी आर पी "टेस्ट मे देयर फॉर बी एडिड तू टेस्ट्स फॉर पीपुल इन एवेल्युएतिन्ग दी हार्ट रिस्क .
गत पोस्ट से आगे ....
इन्फेक्शन ,ट्रौमा ,सर्जरी ,झुलस जाने (बर्न्स ),इन्फ्लेमेत्री कंडीशंस ,कैंसर के आगे के चरणों में ,सी आर पी का स्तर खासा बढ़ जाता है ।
मोडरेट वृद्धि हाड -तोड़ व्यायाम के बाद ,हीट स्ट्रोक के बाद ,प्रसव के बाद भी हो जाती है .मनोवैज्ञानिक दवाब में आने के बाद भी थोड़ी बहुत वृद्धि सी -रिएक्टिव प्रोटीन में हो जाती है .कई मनो -रोगों में भी ऐसी ही बढ़ोतरी हो जाती है इस प्रोटीन के स्तर में ।
इसीलिए चिकित्सा में इसका बड़ा महत्त्व है ,इससे संक्रमण की मौजूदगी और गंभीरता दोनों का इल्म हो जाता है .बेशक यह किसी रोग के होने का रोग निदानिक प्रमाण न हो .
क्योंकि इन -फ्लेमेशन का एहम रोल परि -हृदय धमनी रोग (कोरोनरी आर्टरी डिजीज )में इसकेअलग अलग चरणों में बढ़ने की इत्तला देता है इसलिए दिल की सेहत का जायजा लेने में मार्कर्स का अपना रोल रहता है .
"सी आर पी" वाज़ फाउंड तू बी दी ओनली मारकर ऑफ़ इन्फ्लेमेशन देट इन -डिपें -देंटली प्रिदिक्ट्स दी रिस्क ऑफ़ हार्ट अटेक ।
दी "सी आर पी "टेस्ट मे देयर फॉर बी एडिड तू टेस्ट्स फॉर पीपुल इन एवेल्युएतिन्ग दी हार्ट रिस्क .
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्द (ज़ारी ...).
सी -रिएक्टिव -प्रोटीन :इट इज ए प्लाज्मा प्रोटीन देट रासिज़ इन दी ब्लड विद दी इन्फ्लेमेशन फ्रॉम सर्टेन कंडीशंस .यह प्लाज्मा प्रोटीनों में से एक प्रोटीन हैं -
सी -रिएक्टिव प्रोटीन जिसे एक्यूट फेज़ प्रोटीन्स भी कह दिया जाता है .इसका मतलब यह है ऐसी प्रोटीन जिसका प्लाज्मा सांद्रण (कंसंट्रेशन )२५%कम या ज्यादा हो जाता है किसी इन्फ्ले- मेट्री डिस -ऑर्डर्स की मौजूदगी में ।
इन्फ्लेमेशन (रोग संक्रमण )तथा सोजिश के साथ "सी आर पी "१००० गुना भी बढ़ सकती है .
सी -रिएक्टिव प्रोटीन जिसे एक्यूट फेज़ प्रोटीन्स भी कह दिया जाता है .इसका मतलब यह है ऐसी प्रोटीन जिसका प्लाज्मा सांद्रण (कंसंट्रेशन )२५%कम या ज्यादा हो जाता है किसी इन्फ्ले- मेट्री डिस -ऑर्डर्स की मौजूदगी में ।
इन्फ्लेमेशन (रोग संक्रमण )तथा सोजिश के साथ "सी आर पी "१००० गुना भी बढ़ सकती है .
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्द .
कैंसर :कैसर, कोशाओं की एक असामान्य वृद्धि है जो अनियंत्रित तरीके से बढती ही चली जातीं हैं .कुछ मामलों में मेटा -स्टे -साइज़ भी करतीं हैं ,स्प्रेड भी करतीं हैं ।मेटा-स्त-साइज़ का मतलब ही होता है ,टू स्प्रेड इन दी बॉडी फ्रॉम दी साईट ऑफ़ ओरिजिनल ट्यूमर बाई मीन्स ऑफ़ टाइनी सेल्स ट्रांस -पोर्टिद बाई दी ब्लड और लिम्फ .
कैंसर कोई एक बीमारी न होकर एक समूह है तकरीबन १०० अलग अलग और साफ़ पहचान वाली बीमारियों का ।
कैंसर शरीर के किसी भी ऊतक में हो सकता है तथा हरेक हिस्से में शरीर के एक अलग किस्म लिए हुए रहता है ..
कैंसर शरीर के किसी भी ऊतक को अपनी चपेटमें ले सकता है तथा कितने ही रूप हो सकतें हैं इसके हरेक हिस्से में .जिस भी किस्म की शरीर की कोशा से शरीर के हिस्से से, अंग से ,इसकी शुरुआत होती है उसीअंग के कैंसर के रूप में ,उसी के साथ इसका नाम लिया जाता है .यदि कैंसर स्प्रेड करता है (मेटा -स्टा -साइज़ )करता है ,नए ट्यूमर का नाम भी प्राई -मारी ट्यूमर वाला ही रहता है ।
इट स्प्रेड्स इन दी बॉडी फ्रॉम दी साईट ऑफ़ दी ओरिजिनल ट्यूमर बाई मीन्स ऑफ़ टाइनी सेल्स ट्रांस -पोर्टिद बाई दी ब्लड और लिम्फ ।
किसी ख़ास कैंसर की फ्रिक्युवेंसी (आवृत्ति या बारंबारता ) जेंडर आधारित भी हो सकती है ,मसलन जहां "स्किन कैंसर "दोनों जेन्दर्स में होने वाली आम संक्राम्यता है वहीँ पुरुषों में पाए जाने वाला दूसरा आम कैंसर "प्रोस्टेट कैंसर "तथा महिलाओं में "ब्रेस्ट कैंसर है "।
कैंसर की बारंबारता (कैंसर फ्रिक्युवेंसी )और तद्जन्य मौत में कोई सीधा सामिकरण नहीं है ।
स्किन कैंसर (चमड़ी के कैंसर )अकसर ठीक हो जातें हैं ।
फेफड़ा कैंसर दोनों ही लिंगों में अमरीका मेंआज भी मौत की एक बड़ी वजह बना हुआ है .
बिनाइन (निरापद ,वक्त के साथ भी हानि नहीं पहुंचाने वाले ) ट्यूमर कैंसर नहीं होतें हैं .केवल मलिग्नेंत ट्यूमर्स ही कैंसर की श्रेणी में आतें हैं कैंसर कहातें हैं ।
कैंसर एक छूतहा(कंतेजस) रोग भी नहीं है ।
लेटिन भाषा का शब्द है क्रेब , कैंसर के समतुल्य है .कह सकतें हैं इसका मूल लेटिन भाषा है .प्राचीन हकीम इसका प्रयोग मलिग्नेंसी के रूप में ही करते थे -बिकोज़ ऑफ़ दी क्रेब लाइक तेनासिति ए मलिग्नेंत ट्यूमर सम -टाइम्स सीम्स टू शो इन ग्रेस्पिंग दी तिश्युज़ इट इन्वेड्स ।
कैंसर को मलिग्नेंसी भी कह दिया जाता है .मलिग्नेंत ट्यूमर भी ,नियो -प्लाज़म (ए न्यू ग्रोथ )भी .
(ज़ारी ...).
कैंसर कोई एक बीमारी न होकर एक समूह है तकरीबन १०० अलग अलग और साफ़ पहचान वाली बीमारियों का ।
कैंसर शरीर के किसी भी ऊतक में हो सकता है तथा हरेक हिस्से में शरीर के एक अलग किस्म लिए हुए रहता है ..
कैंसर शरीर के किसी भी ऊतक को अपनी चपेटमें ले सकता है तथा कितने ही रूप हो सकतें हैं इसके हरेक हिस्से में .जिस भी किस्म की शरीर की कोशा से शरीर के हिस्से से, अंग से ,इसकी शुरुआत होती है उसीअंग के कैंसर के रूप में ,उसी के साथ इसका नाम लिया जाता है .यदि कैंसर स्प्रेड करता है (मेटा -स्टा -साइज़ )करता है ,नए ट्यूमर का नाम भी प्राई -मारी ट्यूमर वाला ही रहता है ।
इट स्प्रेड्स इन दी बॉडी फ्रॉम दी साईट ऑफ़ दी ओरिजिनल ट्यूमर बाई मीन्स ऑफ़ टाइनी सेल्स ट्रांस -पोर्टिद बाई दी ब्लड और लिम्फ ।
किसी ख़ास कैंसर की फ्रिक्युवेंसी (आवृत्ति या बारंबारता ) जेंडर आधारित भी हो सकती है ,मसलन जहां "स्किन कैंसर "दोनों जेन्दर्स में होने वाली आम संक्राम्यता है वहीँ पुरुषों में पाए जाने वाला दूसरा आम कैंसर "प्रोस्टेट कैंसर "तथा महिलाओं में "ब्रेस्ट कैंसर है "।
कैंसर की बारंबारता (कैंसर फ्रिक्युवेंसी )और तद्जन्य मौत में कोई सीधा सामिकरण नहीं है ।
स्किन कैंसर (चमड़ी के कैंसर )अकसर ठीक हो जातें हैं ।
फेफड़ा कैंसर दोनों ही लिंगों में अमरीका मेंआज भी मौत की एक बड़ी वजह बना हुआ है .
बिनाइन (निरापद ,वक्त के साथ भी हानि नहीं पहुंचाने वाले ) ट्यूमर कैंसर नहीं होतें हैं .केवल मलिग्नेंत ट्यूमर्स ही कैंसर की श्रेणी में आतें हैं कैंसर कहातें हैं ।
कैंसर एक छूतहा(कंतेजस) रोग भी नहीं है ।
लेटिन भाषा का शब्द है क्रेब , कैंसर के समतुल्य है .कह सकतें हैं इसका मूल लेटिन भाषा है .प्राचीन हकीम इसका प्रयोग मलिग्नेंसी के रूप में ही करते थे -बिकोज़ ऑफ़ दी क्रेब लाइक तेनासिति ए मलिग्नेंत ट्यूमर सम -टाइम्स सीम्स टू शो इन ग्रेस्पिंग दी तिश्युज़ इट इन्वेड्स ।
कैंसर को मलिग्नेंसी भी कह दिया जाता है .मलिग्नेंत ट्यूमर भी ,नियो -प्लाज़म (ए न्यू ग्रोथ )भी .
(ज़ारी ...).
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्दावली .
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम पारिभाषिक शब्दावली:
एब -नोर्मल :जो सामान्य न हो .सामान्य संरचना बनावट से जिसमें फर्क हो ,संरचनात्मक विचलन हो जिसमे ,डिविएशन फ्रॉम युज़ुअल स्ट्रक्चर ,पोजीशन और बिहेवियर .जो अपनी निर्धारित जगह पर न हो जिसका व्यवहार भी सामान्य से हटकर हो ।वह असामान्य है .
जब बात किसी बढ़वार यानी ग्रोथ की होती है तब एब्नोर्मल का सम्बन्ध कैंसर युक्त /कैंसर -ग्रस्त या प्री -मलिग्नेंट से भी हो सकता है यानी जिसके कैंसर युक्त हो जाने की आगे संभावना मौजूद हो .
एकने :मुहांसे चमड़ी का एक स्थानिक संक्रमण /सोजिश है जिसकी वजह अति सक्रिय तैलीय ग्रंथियां (आयल ग्लेंड्स )बनतीं हैं जो रोमकूप (हेयर फोलिकिल्स के बेस )की जड़ में होतीं हैं .
यौवनारंभ की बेला में ,प्युबर्ति के वक्त सेबेशस ग्लेंड्स (तैलीय ग्रंथियां आयल ग्लेंड्स )जीवंत हो उठतीं हैं जान आजाती हैं इन ग्रंथियों में क्योंकि इन्हें पुरुष हारमोन से उत्तेजन मिलता है .,जो किशोर किशोरियों की वृक्क गर्न्थियाँ (एड्रीनल ग्लेंड्स )तैयार करतीं हैं. गुर्दों से थोड़ा ऊपर की ओर होतीं हैं ये ग्रंथियां ।
तैलीय ग्रंथियां जो चमड़ी के ठीक नीचे होतीं हैं लगातार चमड़ी के पोरों से तैलीय स्राव करतीं हैं .यही तेल चमड़ी को चिकनाकर उसकी हिफाज़त भी करता है ।
लेकिन कुछ परिस्थितियों में वे कोशायें जो तैलीय ग्रंथियों के रंध्रों के बिलकुल पास रहती हैं इन ओपनिंग्स को डाट लगा देतीं हैं .फलस्वरूप चमड़ी के नीचे तेल ज़मा हो जाता है .
अब जीवाणु तो हरेक की चमड़ी में रहतें हैं इस तेल की दावत उड़ाना शुरू कर देते हैं ,दिगुणित होतें ये तेज़ी से तथा आसपास के ऊतकों को संक्रमित कर देतें हैं ,फुला सुजा देते हैं ,इन -फ्लेम्ड कर देतें हैं .
अब यदि यह इन्फ्लेमेशन ठीक चमड़ी की सतह पर ही होता है तब नतीजा होता है "पुस्टुले",,यदि थोड़ा ओर नीचे की तरफ गहरे होता है तब पपुले या पिम्पिल औरभी ज्यादा नीचे होने पर सिस्ट (थैली नुमा संरचना )बन जाती है ।
यदि तेल रिसकर सतह तक आजाता है ,तब ऐसे में "वाईट हेड "बन जाता है चमड़ी पर .लेकिन इसी तेल के आक्सीकृत हो जाने पर (हवा की ऑक्सीजन से रासायनिक क्रिया करने पर )ब्लेक हेड बन जाता है .दी आयल चेंज़िज़ फ्रॉम वाईट टू ब्लेक .
(ज़ारी ...).
एब -नोर्मल :जो सामान्य न हो .सामान्य संरचना बनावट से जिसमें फर्क हो ,संरचनात्मक विचलन हो जिसमे ,डिविएशन फ्रॉम युज़ुअल स्ट्रक्चर ,पोजीशन और बिहेवियर .जो अपनी निर्धारित जगह पर न हो जिसका व्यवहार भी सामान्य से हटकर हो ।वह असामान्य है .
जब बात किसी बढ़वार यानी ग्रोथ की होती है तब एब्नोर्मल का सम्बन्ध कैंसर युक्त /कैंसर -ग्रस्त या प्री -मलिग्नेंट से भी हो सकता है यानी जिसके कैंसर युक्त हो जाने की आगे संभावना मौजूद हो .
एकने :मुहांसे चमड़ी का एक स्थानिक संक्रमण /सोजिश है जिसकी वजह अति सक्रिय तैलीय ग्रंथियां (आयल ग्लेंड्स )बनतीं हैं जो रोमकूप (हेयर फोलिकिल्स के बेस )की जड़ में होतीं हैं .
यौवनारंभ की बेला में ,प्युबर्ति के वक्त सेबेशस ग्लेंड्स (तैलीय ग्रंथियां आयल ग्लेंड्स )जीवंत हो उठतीं हैं जान आजाती हैं इन ग्रंथियों में क्योंकि इन्हें पुरुष हारमोन से उत्तेजन मिलता है .,जो किशोर किशोरियों की वृक्क गर्न्थियाँ (एड्रीनल ग्लेंड्स )तैयार करतीं हैं. गुर्दों से थोड़ा ऊपर की ओर होतीं हैं ये ग्रंथियां ।
तैलीय ग्रंथियां जो चमड़ी के ठीक नीचे होतीं हैं लगातार चमड़ी के पोरों से तैलीय स्राव करतीं हैं .यही तेल चमड़ी को चिकनाकर उसकी हिफाज़त भी करता है ।
लेकिन कुछ परिस्थितियों में वे कोशायें जो तैलीय ग्रंथियों के रंध्रों के बिलकुल पास रहती हैं इन ओपनिंग्स को डाट लगा देतीं हैं .फलस्वरूप चमड़ी के नीचे तेल ज़मा हो जाता है .
अब जीवाणु तो हरेक की चमड़ी में रहतें हैं इस तेल की दावत उड़ाना शुरू कर देते हैं ,दिगुणित होतें ये तेज़ी से तथा आसपास के ऊतकों को संक्रमित कर देतें हैं ,फुला सुजा देते हैं ,इन -फ्लेम्ड कर देतें हैं .
अब यदि यह इन्फ्लेमेशन ठीक चमड़ी की सतह पर ही होता है तब नतीजा होता है "पुस्टुले",,यदि थोड़ा ओर नीचे की तरफ गहरे होता है तब पपुले या पिम्पिल औरभी ज्यादा नीचे होने पर सिस्ट (थैली नुमा संरचना )बन जाती है ।
यदि तेल रिसकर सतह तक आजाता है ,तब ऐसे में "वाईट हेड "बन जाता है चमड़ी पर .लेकिन इसी तेल के आक्सीकृत हो जाने पर (हवा की ऑक्सीजन से रासायनिक क्रिया करने पर )ब्लेक हेड बन जाता है .दी आयल चेंज़िज़ फ्रॉम वाईट टू ब्लेक .
(ज़ारी ...).
बुधवार, 25 मई 2011
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्दावली .
यूट्रस (गर्भाशय या बच्चे -दानी ):
नाशपाती के आकार की एक संरचना है ,पीअर शेप्ड है यूट्रस जो महिलाओं के लोवर एबडोमन (पेट/उदरआमाशय के निचले हिस्से )में मूत्राशय (ब्लेडर )और मलाशय (रेक्टम ,बड़ी आंत का निचला हिस्सा ) के बीच होता है ।
इसका निचला संकरा हिस्सा (लोवर नेरो पोर्शन )गर्भाशय -गर्दन या सर्विक्स है .तथा ऊपर का चौड़ा हिस्सा "कोर्पस "कहलाता है .कोर्पस ऊतकों की दो परतों से बना होता है ।
एंड्रो -जेनिक :
इसका सम्बन्ध पुरुषोचित गुणों का विकास होने से है . जिसमे शरीर पर उगने वाले बाल भी शामिल हैं ,प्रजनन अंग भी तथा मसल मॉस भी (पेशियों का पुष्ट होना )।
एंड्रो -जेनिक तो एक विशेषण है जो संज्ञा (नाउन )एंड्रो -जन से बना है .इसका सम्बन्ध पुरुष हारमोन "टेस्टो-स्टेरोंन "तथा एंड्रो -स्टेरोंन से भी है .
एंड्रो -जेनिक डेव -लप -मेंट का मतलब पुरुषोचित गुणों का विकास होना है , जिसकी शुरुआत वय:संधि स्थल (यौवनारंभ )से हो जाती है .यह वह समय है जब व्यक्ति संतान पैदा करने की क्षमता हासिल कर लेता है .लड़कों में (किशोरों में )यह समय १२-१४ वर्ष के बीच है .
आवाज़ का भारी होना एंड्रो -जेनिक सक्रियता है .क्रेक होने लगती है आवाज़ किशोरों की इस समय ।
एंड्रोजन का निर्माण पुरुष अंड-कोशों (टेस्तीज़)में होता है .वृक्क ग्रंथियां (एड्रीनल ग्लेंड्स )भी इसका निर्माण करतीं हैं .ये किडनी के जरा ऊपर रहतीं हैं ।
महिलाओं में भी एड्रीनल ग्लेंड्स एंड्रो -जन बनातीं हैं .लेकिन महिलाओं में इसका बाहुल्य उनमें पुरुषोचित गुणों के विकास की वजह बन जाता है .इसकेअतिरिक्त बाहुल्य से पुरुषों में भी पुरुषत्व कुछ ज्यादा ही होजाता है .अति सर्वत्र वर्ज्यते .एंड्रो -जेनिक शब्द ग्रीक भाषा के शब्द "एन्द्रोज़ "मानी मैंन (पुरुष )और "जेनिन"मानी पैदा करना के संयोग से हुआ है ।
इससे मिलते जुलते शब्द हैं -एंड्रो -गाइनस जिसका मतलब होता नर तथा मादा दोनों के गुणों से युक्त होना ।
एंड्रो -लोजी :पुरुषों में स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन है .
एंड्रो -फोबिया :पुरुष भीती है (फीयर ऑफ़ मेन ) है ।
एंड्रो -इड:विज्ञान गल्प में यह एक मनुष्य वत -रोबोट है .मनुष्य रूप यंत्र मानव है ।
(ज़ारी ...)
नाशपाती के आकार की एक संरचना है ,पीअर शेप्ड है यूट्रस जो महिलाओं के लोवर एबडोमन (पेट/उदरआमाशय के निचले हिस्से )में मूत्राशय (ब्लेडर )और मलाशय (रेक्टम ,बड़ी आंत का निचला हिस्सा ) के बीच होता है ।
इसका निचला संकरा हिस्सा (लोवर नेरो पोर्शन )गर्भाशय -गर्दन या सर्विक्स है .तथा ऊपर का चौड़ा हिस्सा "कोर्पस "कहलाता है .कोर्पस ऊतकों की दो परतों से बना होता है ।
एंड्रो -जेनिक :
इसका सम्बन्ध पुरुषोचित गुणों का विकास होने से है . जिसमे शरीर पर उगने वाले बाल भी शामिल हैं ,प्रजनन अंग भी तथा मसल मॉस भी (पेशियों का पुष्ट होना )।
एंड्रो -जेनिक तो एक विशेषण है जो संज्ञा (नाउन )एंड्रो -जन से बना है .इसका सम्बन्ध पुरुष हारमोन "टेस्टो-स्टेरोंन "तथा एंड्रो -स्टेरोंन से भी है .
एंड्रो -जेनिक डेव -लप -मेंट का मतलब पुरुषोचित गुणों का विकास होना है , जिसकी शुरुआत वय:संधि स्थल (यौवनारंभ )से हो जाती है .यह वह समय है जब व्यक्ति संतान पैदा करने की क्षमता हासिल कर लेता है .लड़कों में (किशोरों में )यह समय १२-१४ वर्ष के बीच है .
आवाज़ का भारी होना एंड्रो -जेनिक सक्रियता है .क्रेक होने लगती है आवाज़ किशोरों की इस समय ।
एंड्रोजन का निर्माण पुरुष अंड-कोशों (टेस्तीज़)में होता है .वृक्क ग्रंथियां (एड्रीनल ग्लेंड्स )भी इसका निर्माण करतीं हैं .ये किडनी के जरा ऊपर रहतीं हैं ।
महिलाओं में भी एड्रीनल ग्लेंड्स एंड्रो -जन बनातीं हैं .लेकिन महिलाओं में इसका बाहुल्य उनमें पुरुषोचित गुणों के विकास की वजह बन जाता है .इसकेअतिरिक्त बाहुल्य से पुरुषों में भी पुरुषत्व कुछ ज्यादा ही होजाता है .अति सर्वत्र वर्ज्यते .एंड्रो -जेनिक शब्द ग्रीक भाषा के शब्द "एन्द्रोज़ "मानी मैंन (पुरुष )और "जेनिन"मानी पैदा करना के संयोग से हुआ है ।
इससे मिलते जुलते शब्द हैं -एंड्रो -गाइनस जिसका मतलब होता नर तथा मादा दोनों के गुणों से युक्त होना ।
एंड्रो -लोजी :पुरुषों में स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन है .
एंड्रो -फोबिया :पुरुष भीती है (फीयर ऑफ़ मेन ) है ।
एंड्रो -इड:विज्ञान गल्प में यह एक मनुष्य वत -रोबोट है .मनुष्य रूप यंत्र मानव है ।
(ज़ारी ...)
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्दावली .
ओवुलेशन (अंडक्षरण ):अंडाशय से पके हुए ह्यूमेन एग का रलीज होना ओव्यूलेशन है .ह्यूमेन एग तब रिलीज़ होता जब इसे घेरे रहने वाली केविटी (विवर या गुहा )-दी फोलिकिल ,ब्रेक्स ओपन .हारमोन का संकेत अंड -वाहिनी नालियों को मिलने पर ही ऐसा होता है .,इसका मुंह खुल जाता है ।
आखिरी मासिक चक्र के पहले दिन से शुरू करते हुएतकरीबन १४-१५ वें दिन यह फिमेल एग बाहर आता है फोलिकिल्स से .
जब अंड क्षरण का क्षण आता है तब ओवम (फिमेल एग /ह्यूमेन एग )अंड वाहनी नालियों में गति करने लगता है .तथा यहाँ गर्भाधान के लिए शुक्र से मिलन मनाने की प्रतीक्षा करता है .मिलन न हो पाने पर यह जाया चला जाता है ।
बहुत समय पहले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के माहिरों ने परिवार नियोजन उपाय के रूप में एक बिंदी बनाई थी जिसका रंग ओव्यूलेशन वाले दिन लाल से बदल कर नीला हो जाता है .इस दिन सम्भोग से बचने की सलाह दी जाती थी गर्भ निरोधी उपाय के रूप में .बाकी दिन फिर आज़ादी थी .
(ज़ारी ...)
आखिरी मासिक चक्र के पहले दिन से शुरू करते हुएतकरीबन १४-१५ वें दिन यह फिमेल एग बाहर आता है फोलिकिल्स से .
जब अंड क्षरण का क्षण आता है तब ओवम (फिमेल एग /ह्यूमेन एग )अंड वाहनी नालियों में गति करने लगता है .तथा यहाँ गर्भाधान के लिए शुक्र से मिलन मनाने की प्रतीक्षा करता है .मिलन न हो पाने पर यह जाया चला जाता है ।
बहुत समय पहले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के माहिरों ने परिवार नियोजन उपाय के रूप में एक बिंदी बनाई थी जिसका रंग ओव्यूलेशन वाले दिन लाल से बदल कर नीला हो जाता है .इस दिन सम्भोग से बचने की सलाह दी जाती थी गर्भ निरोधी उपाय के रूप में .बाकी दिन फिर आज़ादी थी .
(ज़ारी ...)
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्दावली
आल्गो -मनो -रोहिया(ओलिगो-में-ओर्र्हेअ ):इस स्थिति में या तो मासिक चक्र की अवधि औरसंख्या घट जातें हैं या फिर इस दर्मियाँ मासिक स्राव बहुत कम होने लगता है ।
ओवरी (अंडाशय ):प्रजनन कोशायें तैयार करती हैं महिलाओं में ओवरीज़ ,इट इज दी फिमेल गो -नाड व्हिच प्रोड्युसिस गेमीट्स .
इन्हें प्रजनन गर्न्थियाँ भी कहा जाता है जो संख्या में दो होतीं हैं ,श्रोणी प्रदेश में (लोकेतिद इन दी पेल्विस )गर्भाशय के दोनों ओरएक एक प्रजनन ग्रंथि या ओवरी रहती है ।
बादाम के आकार की होती हैं दोनों ओवरीज़ ।
इनका काम एग्स (ह्यूमेन एग्स ,गेमीट्स ,प्रजनन कोशायें )तथा स्त्री हारमोनों का निर्माण करना है ।
प्रत्येक मासिक चक्र के संपन्न होने के दरमियान कभी एक ह्यूमेन एग (डिम्ब )किसी भी एक अंडाशय (ओवरी )से रिलीज़ होता है ,क्षरण होता है इस फिमेल एग का .मर्दों में यही काम टेस्तीज़(अंड -कोष ) करतीं हैं जो स्पर्म बनातीं हैं .
अंडा यहाँ से चलके अंड वाहिनियों (फेलोपियन ट्यूब्स )से होता गर्भाशय तक पहुंचता है .स्त्री हारमोनों का प्रमुख स्रोत हैं ओवरीज़ ही हैं जो औरत के शारीरिक विकास ,स्त्री सुलभ गुणों ,यथा कोमलता ,मृदु कंठ (हाई फ्रीक्वेंसी साउंड ),स्तनों का विकास और आकार ,फिगर (बॉडी शेप )तथा शरीरिक केशों (बॉडी हेयर्स )का विनियमन ओर नियंत्रण करतीं हैं .
मासिक चक्र ओर गर्भावस्था का विनियमन (रेग्युलेशन )ओवरीज़ के हाथों संपन्न होता है ।
(ज़ारी ...).
ओवरी (अंडाशय ):प्रजनन कोशायें तैयार करती हैं महिलाओं में ओवरीज़ ,इट इज दी फिमेल गो -नाड व्हिच प्रोड्युसिस गेमीट्स .
इन्हें प्रजनन गर्न्थियाँ भी कहा जाता है जो संख्या में दो होतीं हैं ,श्रोणी प्रदेश में (लोकेतिद इन दी पेल्विस )गर्भाशय के दोनों ओरएक एक प्रजनन ग्रंथि या ओवरी रहती है ।
बादाम के आकार की होती हैं दोनों ओवरीज़ ।
इनका काम एग्स (ह्यूमेन एग्स ,गेमीट्स ,प्रजनन कोशायें )तथा स्त्री हारमोनों का निर्माण करना है ।
प्रत्येक मासिक चक्र के संपन्न होने के दरमियान कभी एक ह्यूमेन एग (डिम्ब )किसी भी एक अंडाशय (ओवरी )से रिलीज़ होता है ,क्षरण होता है इस फिमेल एग का .मर्दों में यही काम टेस्तीज़(अंड -कोष ) करतीं हैं जो स्पर्म बनातीं हैं .
अंडा यहाँ से चलके अंड वाहिनियों (फेलोपियन ट्यूब्स )से होता गर्भाशय तक पहुंचता है .स्त्री हारमोनों का प्रमुख स्रोत हैं ओवरीज़ ही हैं जो औरत के शारीरिक विकास ,स्त्री सुलभ गुणों ,यथा कोमलता ,मृदु कंठ (हाई फ्रीक्वेंसी साउंड ),स्तनों का विकास और आकार ,फिगर (बॉडी शेप )तथा शरीरिक केशों (बॉडी हेयर्स )का विनियमन ओर नियंत्रण करतीं हैं .
मासिक चक्र ओर गर्भावस्था का विनियमन (रेग्युलेशन )ओवरीज़ के हाथों संपन्न होता है ।
(ज़ारी ...).
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्द .
मेटाबोलिक सिंड्रोम :
यह एक कुछ ऐसी स्थितियों का पिटारा है ,जो किसी के लिए भी परि -हृदय -धमनी रोग(कोरोनरी आर्टरी डिजीज ) के खतरे के वजन को बढा देतीं हैं .
इन कंडीशंस में शामिल हैं :
(१)सेकेंडरी डायबिटीज़ (जीवन शैली रोग मधुमेह )(२)मोटापा (ओबेसिटी )(३)हाई -ब्लड -प्रेशर (हाई -पर -टेंशन )(४)खून में बेड कोलेस्ट्रोल का ज्यादा तथा अच्छे कोलेस्ट्रोल का कमतर रहना ,ट्राई -ग्लीस -राइड्स का भी ज्यादा होना ,जिसे कह सकतें हैं -पूअर लिपिड प्रो फ़ाइल का होना ।
ये तमाम हालात इंसुलिन के उच्चतर स्तर से पैदा हो जातें हैं ।
मेटाबोलिक सिंड्रोम में मेटाबोलिज्म में बुनियादी खोट आजाती है जिसे कहतें हैं इंसुलिन रेजिस्टेंस .यह इंसुलिन प्रति -रोध एडिपोज़ टिश्यु और मसल दोनों के लिए ही पैदा हो जाता है ।एडिपोज़ टिश्यु का मतलब होता है वे ऊतक जिनमें वसा(फैट )रहती है .ये एक सुरक्षा कवच के अलावा मुख्य अंगों को ऊर्जा ,तथा इन्सुलेशन भी मुहैया करवातें हैं .ये चमड़ी के नीचे तथा प्रधान अंगों को घेरे रहतें हैं हिफाज़ती तौर पर .
वे दवाएं जो इंसुलिन रेजिस्टेंस को कम करतीं हैं आम तौर पर ब्लड प्रेशर भी कम कर्देतीं हैं .लिपिड प्रो-फ़ाइल में भी सुधार लातींहैं .
मेटाबोलिक सिंड्रोम को -इंसुलिन रेजिस्टेंस सिंड्रोम ,सिंड्रोम एक्स ,डिस -मेटाबोलिक सिंड्रोम एक्स ,रेअवें सिंड्रोम भी कह दिया जाता है ।
१९८८ में पहली मर्तबा गेराल्ड रेअवेन ने इस सिंड्रोम की चर्चा अपने एक व्याख्यान में अमरीकी मधुमेह संघ की वार्षिक बैठाक में की थी .
यह एक कुछ ऐसी स्थितियों का पिटारा है ,जो किसी के लिए भी परि -हृदय -धमनी रोग(कोरोनरी आर्टरी डिजीज ) के खतरे के वजन को बढा देतीं हैं .
इन कंडीशंस में शामिल हैं :
(१)सेकेंडरी डायबिटीज़ (जीवन शैली रोग मधुमेह )(२)मोटापा (ओबेसिटी )(३)हाई -ब्लड -प्रेशर (हाई -पर -टेंशन )(४)खून में बेड कोलेस्ट्रोल का ज्यादा तथा अच्छे कोलेस्ट्रोल का कमतर रहना ,ट्राई -ग्लीस -राइड्स का भी ज्यादा होना ,जिसे कह सकतें हैं -पूअर लिपिड प्रो फ़ाइल का होना ।
ये तमाम हालात इंसुलिन के उच्चतर स्तर से पैदा हो जातें हैं ।
मेटाबोलिक सिंड्रोम में मेटाबोलिज्म में बुनियादी खोट आजाती है जिसे कहतें हैं इंसुलिन रेजिस्टेंस .यह इंसुलिन प्रति -रोध एडिपोज़ टिश्यु और मसल दोनों के लिए ही पैदा हो जाता है ।एडिपोज़ टिश्यु का मतलब होता है वे ऊतक जिनमें वसा(फैट )रहती है .ये एक सुरक्षा कवच के अलावा मुख्य अंगों को ऊर्जा ,तथा इन्सुलेशन भी मुहैया करवातें हैं .ये चमड़ी के नीचे तथा प्रधान अंगों को घेरे रहतें हैं हिफाज़ती तौर पर .
वे दवाएं जो इंसुलिन रेजिस्टेंस को कम करतीं हैं आम तौर पर ब्लड प्रेशर भी कम कर्देतीं हैं .लिपिड प्रो-फ़ाइल में भी सुधार लातींहैं .
मेटाबोलिक सिंड्रोम को -इंसुलिन रेजिस्टेंस सिंड्रोम ,सिंड्रोम एक्स ,डिस -मेटाबोलिक सिंड्रोम एक्स ,रेअवें सिंड्रोम भी कह दिया जाता है ।
१९८८ में पहली मर्तबा गेराल्ड रेअवेन ने इस सिंड्रोम की चर्चा अपने एक व्याख्यान में अमरीकी मधुमेह संघ की वार्षिक बैठाक में की थी .
पोलिसीस- टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्दावली .
कार्डियो -वैस -क्युलर :वह प्रवहमान तंत्र (सर्क्युलेत्री सिस्टम )जिसमें हमारा दिल और रक्त वाहिकाएं आतीं हैं जो शरीर के ऊतकों तक पुष्टिकर तत्व और ऑक्सीजन ले जातें हैं तथा कार्बन डाय -ऑक्साइड और दूसरे अप शिष्ट पदार्थों की निकासी करातें हैं यहाँ से .इसी सर्क्युलेत्री तंत्र को कार्डियो -वैस -क्युलर सिस्टम कहा जाता है ।
कार्डियो -वैस -क्युअलर दिजीज़िज़ दिल और रक्त वाहिकाओं को असर ग्रस्त करतीं हैं .इनमे शामिल हैं :
(१)आरटीरीइयो -स्केलोरोसिस (२)कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सी ए डी ),हार्ट वाल्व डिजीज ,आरिथ -मिया ,हार्ट -फेलियोर ,हाई -पर -टेंशन ,ओर्थो -स्टेटिक -हाइपो -टेंशन ,शोक ,एंडो -कार -दाइतिस,महा -धमनी के रोग (दिजीज़िज़ ऑफ़ दी अओर्टाएंड इट्स ब्रान्चिज़ ),दिजीज़िज़ ऑफ़ दी पेरी -फरल -वैस -क्युलर सिस्टम ,तथा जन्म जात हृद- रोग (कोंजी -नाइटल हार्ट डिजीज )।
फीटस एंड एम्ब्रियो :
आठ सप्ताह के बाद से लेकर प्रसव की अवधि तक अजन्मेगर्भस्थ जीव को "फीटस "कहा जाता है .अब तक इसकी प्रमुख संरचनाओं का विकास हो चुका होता है ।
गर्भधारण के दिन से आठ सप्ताह की अवधि तक के अजन्मे गर्भस्थ जीव को एम्ब्रियो कहा जाता है .
वैसे हमारे यहाँ पौर्बत्य (पूरबी दर्शन में )एक ही शब्द है दोनों के लिए "भ्रूण ".यहाँ तक मान्यता है जो जड़ में है वही चेतन में है .एक दिन के गर्भस्थ में भी वही जीव -आत्मा है ,आठ सप्ताह के बाद भी वही है .
हाई -पर -प्लेसिया:यह एक ऐसी कंडीशन है स्थिति है जिसमें किसी ऊतक या अंग में सामान्य से ज्यादा कोशायें (मोर देन नोर्मल नम्बर ऑफ़ सेल्स )पैदा हो जातीं हैं ।
मार्कर :यह "डी एन ए "का एक टुकडा है ,अंश है जो गुणसूत्र (क्रोमोज़ोम्स )में जीवन इकाई /जीवन खण्ड /जींस के पास ही मौजूद रहता है ,बैठा रहता है ,तथा जीन तथा मार्कर विरासत में साथ साथ ही मिलतें हैं ।
इस प्रकार यह गुण सूत्र पर विराजमान एक शिनाख्त किये जाने लायक "स्पोट" है .गुण -सूत्रों पर जीवन इकाइयों का स्थान भी मुक़र्रर होता है ,ख़ास जगा बैठीं रहतीं हैं जींस .दी मार्कर कैन बी दितेक्तिद एंड ट्रेल्ड।
मेटाबोलिक :इस शब्द का सम्बन्ध मेटाबोलिज्म से है (अपचयन या चय -अपचय से है ).खाद्य का टूटना तथा इसका ऊर्जा में तबदील होना मेटाबोलिक से ध्वनित होता है .आम भाषा में इसे रेट ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ भी कह देतें हैं ।
अलबत्ता तमाम किस्म की जैव रासायनिक प्रक्रियाएं जो शरीर में संपन्न होती रहतीं हैं ,किसी भी जैविक प्रणाली की ,मेटाबोलिक ही कहलातीं है .
मेटाबोलिज्म के दो हिस्से हैं :
आना -बोलिज्म (अनाबोलिस्म ):यानी दी बिल्ड अप ऑफ़ सब्स्तेंसिज़ (पदार्थों का निर्माण )और कैट -बोलिज्म यानी बने हुए पदार्थों का टूटना .,दी ब्रेक डाउन ऑफ़ सब्स्तेंसिज़ ।
(ज़ारी ...).
कार्डियो -वैस -क्युअलर दिजीज़िज़ दिल और रक्त वाहिकाओं को असर ग्रस्त करतीं हैं .इनमे शामिल हैं :
(१)आरटीरीइयो -स्केलोरोसिस (२)कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सी ए डी ),हार्ट वाल्व डिजीज ,आरिथ -मिया ,हार्ट -फेलियोर ,हाई -पर -टेंशन ,ओर्थो -स्टेटिक -हाइपो -टेंशन ,शोक ,एंडो -कार -दाइतिस,महा -धमनी के रोग (दिजीज़िज़ ऑफ़ दी अओर्टाएंड इट्स ब्रान्चिज़ ),दिजीज़िज़ ऑफ़ दी पेरी -फरल -वैस -क्युलर सिस्टम ,तथा जन्म जात हृद- रोग (कोंजी -नाइटल हार्ट डिजीज )।
फीटस एंड एम्ब्रियो :
आठ सप्ताह के बाद से लेकर प्रसव की अवधि तक अजन्मेगर्भस्थ जीव को "फीटस "कहा जाता है .अब तक इसकी प्रमुख संरचनाओं का विकास हो चुका होता है ।
गर्भधारण के दिन से आठ सप्ताह की अवधि तक के अजन्मे गर्भस्थ जीव को एम्ब्रियो कहा जाता है .
वैसे हमारे यहाँ पौर्बत्य (पूरबी दर्शन में )एक ही शब्द है दोनों के लिए "भ्रूण ".यहाँ तक मान्यता है जो जड़ में है वही चेतन में है .एक दिन के गर्भस्थ में भी वही जीव -आत्मा है ,आठ सप्ताह के बाद भी वही है .
हाई -पर -प्लेसिया:यह एक ऐसी कंडीशन है स्थिति है जिसमें किसी ऊतक या अंग में सामान्य से ज्यादा कोशायें (मोर देन नोर्मल नम्बर ऑफ़ सेल्स )पैदा हो जातीं हैं ।
मार्कर :यह "डी एन ए "का एक टुकडा है ,अंश है जो गुणसूत्र (क्रोमोज़ोम्स )में जीवन इकाई /जीवन खण्ड /जींस के पास ही मौजूद रहता है ,बैठा रहता है ,तथा जीन तथा मार्कर विरासत में साथ साथ ही मिलतें हैं ।
इस प्रकार यह गुण सूत्र पर विराजमान एक शिनाख्त किये जाने लायक "स्पोट" है .गुण -सूत्रों पर जीवन इकाइयों का स्थान भी मुक़र्रर होता है ,ख़ास जगा बैठीं रहतीं हैं जींस .दी मार्कर कैन बी दितेक्तिद एंड ट्रेल्ड।
मेटाबोलिक :इस शब्द का सम्बन्ध मेटाबोलिज्म से है (अपचयन या चय -अपचय से है ).खाद्य का टूटना तथा इसका ऊर्जा में तबदील होना मेटाबोलिक से ध्वनित होता है .आम भाषा में इसे रेट ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ भी कह देतें हैं ।
अलबत्ता तमाम किस्म की जैव रासायनिक प्रक्रियाएं जो शरीर में संपन्न होती रहतीं हैं ,किसी भी जैविक प्रणाली की ,मेटाबोलिक ही कहलातीं है .
मेटाबोलिज्म के दो हिस्से हैं :
आना -बोलिज्म (अनाबोलिस्म ):यानी दी बिल्ड अप ऑफ़ सब्स्तेंसिज़ (पदार्थों का निर्माण )और कैट -बोलिज्म यानी बने हुए पदार्थों का टूटना .,दी ब्रेक डाउन ऑफ़ सब्स्तेंसिज़ ।
(ज़ारी ...).
पोलिसिस-टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्दावली .
ब्लड प्रेशर :रक्त चाप धमनियों के अन्दर प्रवाहित रक्त का दाब (दवाब )होता है .इसके पैदा होने की बुनियादी और प्राथमिक वजह हृद पेशी का सिकुड़ना (कोंट-रेक्शन )है . इसका मापन दो अंकों से किया जाता है ।
पहला माप सिस्टोलिक प्रेशर का होता है जो दिल के सिकुड़ने के बाद लिया जाता है ,यह रक्त चाप का उच्चतम मान होता है .दूसरा दाब हृदय के सिकुड़ने (हृद पेशीय के सिकुड़ने ) से पहले लिया जाता है यह निम्नतम होता है तथा डाय -सिस्टोलिक दाब कहलाता है ।
रक्त दाब को मापने के लिए एक ब्लड प्रेशर कफ का स्तेमाल किया जाता है .रक्त चाप का मान्य पाठों से ऊपर होना हाई -पर -टेंशन कहलाता है (१४०/९० या इससे भी ऊपर रहना )।
(ज़ारी...)
पहला माप सिस्टोलिक प्रेशर का होता है जो दिल के सिकुड़ने के बाद लिया जाता है ,यह रक्त चाप का उच्चतम मान होता है .दूसरा दाब हृदय के सिकुड़ने (हृद पेशीय के सिकुड़ने ) से पहले लिया जाता है यह निम्नतम होता है तथा डाय -सिस्टोलिक दाब कहलाता है ।
रक्त दाब को मापने के लिए एक ब्लड प्रेशर कफ का स्तेमाल किया जाता है .रक्त चाप का मान्य पाठों से ऊपर होना हाई -पर -टेंशन कहलाता है (१४०/९० या इससे भी ऊपर रहना )।
(ज़ारी...)
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्द .
हिर्सुइतिस्म (हिर -सुइट -इज्म ):बालों का ज़रुरत से ज्यादा होना (पोली -सिस -टिक -ओवेरियन सिंड्रोम के सन्दर्भ में महिलाओं के अंगों पर ,अलावा प्रजनन अंगों के अन्य शरीर अंगों पर बालों का उग आना ,चेहरे पर ,पेडू ,आदिपर ).ऐसे व्यक्ति को हिर -सुइट कहा जाता है जो हिर -सुइट -इज्म से ग्रस्त होता है ।
रोमन भाषा में हेअरी को हिर्सुइतिस्म ही कहतें हैं ।
लेटिन भाषा में "हिर्सुतुस 'का मतलब है "ब्रिस्त्ली /ब्रिसली ऑर रुड.
(ज़ारी ...).
रोमन भाषा में हेअरी को हिर्सुइतिस्म ही कहतें हैं ।
लेटिन भाषा में "हिर्सुतुस 'का मतलब है "ब्रिस्त्ली /ब्रिसली ऑर रुड.
(ज़ारी ...).
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्द .
(१)एनोवालेट्री(अनोवुलर ):जिसमें ह्यूमेन एग का (डिम्ब का ,अंडका )अंडाशय से क्षरण न हो ,ऐसा मासिक चक्र अनो -वुलाट्री साइकिल कहलाता है जिसमें दो माहवारी के बीच ह्यूमेन एग रिलीज़ न हो .
(२)सिस्ट्स :सिस्ट्स आर एब्नोर्मल ,क्लोज्ड सेक लाइक स्ट्रक्चर विधिंन ए टिश्यु देट कन्टेन ए लिक्विड ,गेसिअस और सेमी -सोलिड सब्सटेंस .यानी किसी भी शरीर के अंग के ऊतक में किसी द्रव(तरल ) ,गैस या फिर अर्द्ध ठोस द्रव्य (पदार्थ )का भर जाना .शरीर में कहीं भी ये थैली नुमा संरचनाएं किसी भी आकार की छोटी बड़ी पनप सकतीं हैं .इसका बाहरी कैप्स्यूल नुमा हिस्सा सिस्ट- वाल कहलाता है ।
(३)एंडो -मिट्रीयल-कैंसर :बच्चे दानी या वोम्ब का कैंसर है यह अकसर महिलाओं में ५५-७० साल के दरमियान देखने में आता है .महिलाओं में होने वाले तमाम आंगिक कैंसरों का ६० % हिस्सा यही रहता है .मोटापे से ग्रस्त महिलाओं के लिए इसके खतरे का वजन बढ़ जाता है .जो निस्संतान हैं या एक आदि बच्चा ही है जिनको .जिन्हें रजो -दर्शन (मेनार्के ,मासिक चक्र की शुरुआत अपेक्षा कृत जल्दी होजाती है )उनके लिए भी इसका जोखिम बढ़ जाता है .जो देर से रजो -निवृत्त होतीं हैं ,ज्यादा उम्र दराज़ होने पर जिनकी मासिक बंद होती है या जो ऊंचे तबके से ताल्लुक रखतीं हैं उनके लिए भी ख़तरा ज्यादा रहता है .समझा जाता है इस बढे हुए खतरे कीवजह हारमोन बनतें हैं ,खासकर हारमोन इस्ट्रोजन का बढा हुआ स्तर .
(४)एंडो- मिट्रीयम:गर्भाशय अस्तर (दी यूटेराइन लाइनिंग ),कोशिकाएं जो इस अस्तर को बुनती हैं ,वोम्ब अस्तर बनातीं हैं .गर्भाशय की अन्दर की परत आप कह सकतें हैं इसको ।
यह ऊतक यानी गर्भाशय अस्तर माहवारी के रूप में हारमोनों में होने वाले परिवर्तन की वजह से स्रावित हो जाता है झड़ जाता है .दोबारा एंडो -मिट्रीयम धीरे धीरे पनप आता है .मोटा होता चला जाता है यह अस्तर .जबतक की दूसरा पीरियड नज़दीक न आजाये .एक बार फिर यह अस्तर गर्भाशय की दीवार से उतर कर बाहर चला जाता है स्राव के साथ ।
(५)एंडो -मिट्रीयल हाई -पर -प्लेसिया:इसमें यूट्रस का यह अस्तर ज़रुरत से ज्यादा पनप जाता है ,ओवर ग्रोथ ऑफ़ दी लाइनिंग ऑफ़ दी यूट्रस इज एंडो -मिट्रीयल हाई -पर -प्लेसिया .हाइपर -प्लेसिया का मतलब ही अतिरिक्त वृद्धि या ज़रुरत से ज्यादा बढ़वार का होना है .एंडो -मिट्रीयम इज दी इनर लेयर ऑफ़ दी यूट्रस ।
(ज़ारी...)
(२)सिस्ट्स :सिस्ट्स आर एब्नोर्मल ,क्लोज्ड सेक लाइक स्ट्रक्चर विधिंन ए टिश्यु देट कन्टेन ए लिक्विड ,गेसिअस और सेमी -सोलिड सब्सटेंस .यानी किसी भी शरीर के अंग के ऊतक में किसी द्रव(तरल ) ,गैस या फिर अर्द्ध ठोस द्रव्य (पदार्थ )का भर जाना .शरीर में कहीं भी ये थैली नुमा संरचनाएं किसी भी आकार की छोटी बड़ी पनप सकतीं हैं .इसका बाहरी कैप्स्यूल नुमा हिस्सा सिस्ट- वाल कहलाता है ।
(३)एंडो -मिट्रीयल-कैंसर :बच्चे दानी या वोम्ब का कैंसर है यह अकसर महिलाओं में ५५-७० साल के दरमियान देखने में आता है .महिलाओं में होने वाले तमाम आंगिक कैंसरों का ६० % हिस्सा यही रहता है .मोटापे से ग्रस्त महिलाओं के लिए इसके खतरे का वजन बढ़ जाता है .जो निस्संतान हैं या एक आदि बच्चा ही है जिनको .जिन्हें रजो -दर्शन (मेनार्के ,मासिक चक्र की शुरुआत अपेक्षा कृत जल्दी होजाती है )उनके लिए भी इसका जोखिम बढ़ जाता है .जो देर से रजो -निवृत्त होतीं हैं ,ज्यादा उम्र दराज़ होने पर जिनकी मासिक बंद होती है या जो ऊंचे तबके से ताल्लुक रखतीं हैं उनके लिए भी ख़तरा ज्यादा रहता है .समझा जाता है इस बढे हुए खतरे कीवजह हारमोन बनतें हैं ,खासकर हारमोन इस्ट्रोजन का बढा हुआ स्तर .
(४)एंडो- मिट्रीयम:गर्भाशय अस्तर (दी यूटेराइन लाइनिंग ),कोशिकाएं जो इस अस्तर को बुनती हैं ,वोम्ब अस्तर बनातीं हैं .गर्भाशय की अन्दर की परत आप कह सकतें हैं इसको ।
यह ऊतक यानी गर्भाशय अस्तर माहवारी के रूप में हारमोनों में होने वाले परिवर्तन की वजह से स्रावित हो जाता है झड़ जाता है .दोबारा एंडो -मिट्रीयम धीरे धीरे पनप आता है .मोटा होता चला जाता है यह अस्तर .जबतक की दूसरा पीरियड नज़दीक न आजाये .एक बार फिर यह अस्तर गर्भाशय की दीवार से उतर कर बाहर चला जाता है स्राव के साथ ।
(५)एंडो -मिट्रीयल हाई -पर -प्लेसिया:इसमें यूट्रस का यह अस्तर ज़रुरत से ज्यादा पनप जाता है ,ओवर ग्रोथ ऑफ़ दी लाइनिंग ऑफ़ दी यूट्रस इज एंडो -मिट्रीयल हाई -पर -प्लेसिया .हाइपर -प्लेसिया का मतलब ही अतिरिक्त वृद्धि या ज़रुरत से ज्यादा बढ़वार का होना है .एंडो -मिट्रीयम इज दी इनर लेयर ऑफ़ दी यूट्रस ।
(ज़ारी...)
पोलिसिस टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्द .
ए -मेन -रोहिया (एमेनोरिया ):माहवारी का रुक जाना या फिर नदारद रहना .एब्सेंस ऑर सीजेशन ऑफ़ मेन्स्त्र्युएशन् .परंम्परा से इसे प्राथमिक और द्वितीयक "ए -मेन -ओरिया'" में वर्गीकृत किया जाता है ।
प्राथमिक या प्राई -मेरी एम् -एनोरिया में माहवारी (पीरियड्स ) कभी आती ही नहीं हैं शुरुआत ,आगाज़ ही नहीं है ..किशोरावस्था में ही इसका आना मुल्तवी रहता है .इट फेल्स टू ऑकर अट प्युबर्ति.लड़की यौवन की देहलीज़ पर पाँव रख लेती है और रजो -दर्शन (मेनार्के )नहीं होते ।
द्वितीयक एम् -एनोरिया (सेकेंडरी एम् -एनोरिया ):इसमें मासिक चक्र शुरू तो होता है लेकिन बंद हो जाता है ।
गर्भावस्था में ऐसा होना सहज स्वाभाविक होता है ,मासिक चक्र के दौरान होने वाले स्राव से भ्रूण का पोषण होता है .इसे कहतें हैं -
"फिजियोलोजिक सेकेंडरी एम् -एनोरिया "।
यह किसी बीमारी की वजह से नहीं हुआ है ,या जो किसी बीमारी की वजह से नहीं हुआ है वह फिजियो -लोजिकल एम् -एनोरिया है ,स्तनपान काल के दरमियान भी ऐसा कुदरती तौर पर हो सकता है ।
इसकी वजह रोगात्मक नहीं रही है .इट इज नोट काज़्द बाई एनिथिंग मेडिकली हार्मफुल (पैथोलोजिक )।
ए -मेन -र्होइअ शब्द "ए "मीनिंग नॉट,"मेन "यानी मन्थ ,और र्होइअ यानी फ्लो (नो मंथली फ्लो )का संयुक्त रूप है .कभी कभार इसे "ए -मेनिया "भी कह दिया जाता है .(ज़ारी ...)
प्राथमिक या प्राई -मेरी एम् -एनोरिया में माहवारी (पीरियड्स ) कभी आती ही नहीं हैं शुरुआत ,आगाज़ ही नहीं है ..किशोरावस्था में ही इसका आना मुल्तवी रहता है .इट फेल्स टू ऑकर अट प्युबर्ति.लड़की यौवन की देहलीज़ पर पाँव रख लेती है और रजो -दर्शन (मेनार्के )नहीं होते ।
द्वितीयक एम् -एनोरिया (सेकेंडरी एम् -एनोरिया ):इसमें मासिक चक्र शुरू तो होता है लेकिन बंद हो जाता है ।
गर्भावस्था में ऐसा होना सहज स्वाभाविक होता है ,मासिक चक्र के दौरान होने वाले स्राव से भ्रूण का पोषण होता है .इसे कहतें हैं -
"फिजियोलोजिक सेकेंडरी एम् -एनोरिया "।
यह किसी बीमारी की वजह से नहीं हुआ है ,या जो किसी बीमारी की वजह से नहीं हुआ है वह फिजियो -लोजिकल एम् -एनोरिया है ,स्तनपान काल के दरमियान भी ऐसा कुदरती तौर पर हो सकता है ।
इसकी वजह रोगात्मक नहीं रही है .इट इज नोट काज़्द बाई एनिथिंग मेडिकली हार्मफुल (पैथोलोजिक )।
ए -मेन -र्होइअ शब्द "ए "मीनिंग नॉट,"मेन "यानी मन्थ ,और र्होइअ यानी फ्लो (नो मंथली फ्लो )का संयुक्त रूप है .कभी कभार इसे "ए -मेनिया "भी कह दिया जाता है .(ज़ारी ...)
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :एक विहंगावलोकन .
पोलिसिस्तिक -ओवेरियन सिंड्रोम एक विहंगावलोकन :
"पी सी ओ एस "-लक्षणों का एक समूह है ,बीमारी चाहें तो कह लें ,जिसमें ,या तो महिलाओं का माहवारी चक्र अनियमित हो जाता है या निलंबित ही होजाता है .साथ में आतें हैं कील मुंहासे ,पेट पेडू ,चेहरे पर बाल ,मोटापा ,जो इस रोग की जटिलताओं को और भी उलझा सकता है .
इस संलक्षण से ग्रस्त होने वाली महिलाओं के लिए मोटापे (ओबेसिटी ),मधुमेह ,उच्च रक्त चाप ,तथा दिल की बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है ।
उचित इलाज़ के साथ जोखिम का वजन कम किया जा सकता है .लक्षणों के प्रगटीकरण के अनुरूप सबका इलाज़ उपलब्ध है ।
(ज़ारी ...)
"पी सी ओ एस "-लक्षणों का एक समूह है ,बीमारी चाहें तो कह लें ,जिसमें ,या तो महिलाओं का माहवारी चक्र अनियमित हो जाता है या निलंबित ही होजाता है .साथ में आतें हैं कील मुंहासे ,पेट पेडू ,चेहरे पर बाल ,मोटापा ,जो इस रोग की जटिलताओं को और भी उलझा सकता है .
इस संलक्षण से ग्रस्त होने वाली महिलाओं के लिए मोटापे (ओबेसिटी ),मधुमेह ,उच्च रक्त चाप ,तथा दिल की बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है ।
उचित इलाज़ के साथ जोखिम का वजन कम किया जा सकता है .लक्षणों के प्रगटीकरण के अनुरूप सबका इलाज़ उपलब्ध है ।
(ज़ारी ...)
व्हाट ट्रीट -मेंट्स आर अवेलेबिल फॉर पोलिसिस्तिक -ओवेरियन सिंड्रोम ?
कौन कौन से इलाज़ दवा दारु मयस्सर हैं पोलिसिस्तिक ओवेरियन सिंड्रोम के प्रबंधन के लिए ?
इलाज़ का चयन असर ग्रस्त महिला की उम्र जीवन सौपानके किस चरण में है वह ज़िन्दगी केकिस मोड़ पर है इस बात से तय होता है .जो महिलायें फिलवक्त संतान नहीं चाहतीं गर्भ निरोध की इच्छुक होतीं हैं उनके लिए "बर्थ कंट्रोल पिल "खासकर ऐसी जिसके एंड्रोजेनिक(पुरुष हारमोन से पैदा होने वाले )पार्श्व प्रभाव कमतर रहतें हैं ,वह एक तरफ मासिक चक्र को भी बनाए रहतीं हैं दूसरी तरफ गर्भाशय कैंसर के खतरे के वजन को भी कम रखतीं हैंआजमाई जातीं हैं ।
प्रोजेस्टेरोन हारमोन के साथ रुक रुक कर (इंटर -मिटेंत -ली )चिकित्सा करने का विकल्प भी रहता है लेकिन यह एक गर्भ निरोधी उपाय नहीं है ,अलबत्ता मासिक को भी प्रेरित करती है यह चिकित्सा तथा यूटेराइन कैंसर के जोखिम को भी कम करती है ।
कील मुहांसों और अतिरिक्त अवांछित बालों सेजो कई अंगों पर उग आतें हैं मुक्ति दिलवाने के लिए एक वाटर पिल (मूत्रल ,डाय -युरेटिक) "स्पाइरोनो -लेक्टोंन "आजमाई जा सकती है ।
अलबत्ता इसके साथ कभी कभार ,यदा कदा खून की जांच भी साथ साथ की जाती रहती है खून में पोटाशियम के स्तर तथा गुर्दों के ठीक ठाक काम करते रहने की जानकारी के लिए .क्योंकि यह दोनों को ही असर ग्रस्त कर सकती है अवांछित प्रभाव के रूप में ।
चेहरे से बालों को हटाने के लिए बढ़वार की रफ्तार कम करने के लिए एक क्रीम "वनिका "(एफ्लर -निथाइन ) का भी स्तेमाल किया जा सकता है .आजकल इसकाम के लिए इलेक्ट्रो- लिसिस भी उपलब्ध है ,सहज सुलभ क्रीम्स भी जो बिना नुश्खे (डॉ .के प्रिस्क्रिप्शन ,पर्ची,ओ पी डी टिकिट )के मिल जातीं है .
जो महिलायें गर्भ धारण करना चाहतीं हैं उन्हें दवा "क्लोमिड "(क्लोमी -फीन ) दी जा सकती है .यह ओव्यूलेशन को प्रेरित करती है ,अंडाशय से डिम्ब क्षरण (ह्यूमेन एग रिलीज़ )करवाती है ।
वजन कम करना भी काम आता है साइकिल को नियमित रखने करने और और गर्भ धारण के मौके बढाने में .
अलावा इसके इन -फर्टिलिटी के सामाधान के लिए गोनाडो-त्रोपिन हारमोन की सुइयां लगाने के साथ साथ "असिस्तिद रिप्रो -दक्तिव तकनीकों "का भी सहारा लिया जाता है .यह खासकर उन महिलाओं के लिए जिन पर "क्लोमिड थिरेपी" असर नहीं डाल पाती ,इस चिकित्सा के चलते भी जो गर्भ धारण नहीं कर पातीं हैं .
मेट -फोर्मिन (ग्लुकोफेज़ )यह दवा एक तरफ "पी सी ओ एस "के लक्षणों में सुधार लाती है ,इंसुलिन के असर ,एक्शन में भी सुधार लाती है (सेकेंडरी डायबिटीज़ में इसे दिया जाता है ),इस संलक्षण की जटिलताओं को भी कम रखने में सहायक सिद्ध होती है ।
अनियमित माहवारी (इर्रेग्युलर पीरियड्स )के प्रबंधन में कारगर पाए जाने के अलावा यह डिम्ब क्षरण को भी प्रेरित करती है ,वजन कम करने में मदद करती है ,तथा टाइप-टू डायबिटीज़ से भी इस संलक्षण की मरीजाओं को बचाए रहती है ।
गर्भावस्था में हो जाने वाली मधु -मेह से भी यह "पी सी ओ एस "से ग्रस्त महिलाओं का बचाव करती है .
बेशक इस संलक्षण के संग साथ चली आने वाली ओबेसिटी का इलाज़ करना बहुत ज़रूरी होता है ,जो कई नै मेडिकल कंडी -संस(परेशानियों की )वजह बन जाती है .वेट लोस बहुत फायदे मंद साबित होता है ,इस संलक्षण की जटिलताओं में खासकर मधुमेह तथा दिल की बीमारियों से बचाए रहने में .
खुराक विज्ञान की माहिरा की मदद बड़ी काम आती है .मोटापे से पार पाने में ।
कुछ महिलाओं में "ओवेरियन ड्रिलिंग "एक शल्य तरकीब के तहत किया जाता है ,ताकि अंडक्षरण को प्रेरित किया जा सके .ये उनके लिए जिन पर बाकी इलाज़ असर नहीं कर पाते .इसमें अंडाशय के ऊतकों का एक बहुत छोटा सा हिस्सा एक सुईं से अंडाशय में बिजली (विद्युत् धारा ,इलेक्ट्रिक करेंट )भेजकर नष्ट कर दिया जाता है ।
(ज़ारी ....).
इलाज़ का चयन असर ग्रस्त महिला की उम्र जीवन सौपानके किस चरण में है वह ज़िन्दगी केकिस मोड़ पर है इस बात से तय होता है .जो महिलायें फिलवक्त संतान नहीं चाहतीं गर्भ निरोध की इच्छुक होतीं हैं उनके लिए "बर्थ कंट्रोल पिल "खासकर ऐसी जिसके एंड्रोजेनिक(पुरुष हारमोन से पैदा होने वाले )पार्श्व प्रभाव कमतर रहतें हैं ,वह एक तरफ मासिक चक्र को भी बनाए रहतीं हैं दूसरी तरफ गर्भाशय कैंसर के खतरे के वजन को भी कम रखतीं हैंआजमाई जातीं हैं ।
प्रोजेस्टेरोन हारमोन के साथ रुक रुक कर (इंटर -मिटेंत -ली )चिकित्सा करने का विकल्प भी रहता है लेकिन यह एक गर्भ निरोधी उपाय नहीं है ,अलबत्ता मासिक को भी प्रेरित करती है यह चिकित्सा तथा यूटेराइन कैंसर के जोखिम को भी कम करती है ।
कील मुहांसों और अतिरिक्त अवांछित बालों सेजो कई अंगों पर उग आतें हैं मुक्ति दिलवाने के लिए एक वाटर पिल (मूत्रल ,डाय -युरेटिक) "स्पाइरोनो -लेक्टोंन "आजमाई जा सकती है ।
अलबत्ता इसके साथ कभी कभार ,यदा कदा खून की जांच भी साथ साथ की जाती रहती है खून में पोटाशियम के स्तर तथा गुर्दों के ठीक ठाक काम करते रहने की जानकारी के लिए .क्योंकि यह दोनों को ही असर ग्रस्त कर सकती है अवांछित प्रभाव के रूप में ।
चेहरे से बालों को हटाने के लिए बढ़वार की रफ्तार कम करने के लिए एक क्रीम "वनिका "(एफ्लर -निथाइन ) का भी स्तेमाल किया जा सकता है .आजकल इसकाम के लिए इलेक्ट्रो- लिसिस भी उपलब्ध है ,सहज सुलभ क्रीम्स भी जो बिना नुश्खे (डॉ .के प्रिस्क्रिप्शन ,पर्ची,ओ पी डी टिकिट )के मिल जातीं है .
जो महिलायें गर्भ धारण करना चाहतीं हैं उन्हें दवा "क्लोमिड "(क्लोमी -फीन ) दी जा सकती है .यह ओव्यूलेशन को प्रेरित करती है ,अंडाशय से डिम्ब क्षरण (ह्यूमेन एग रिलीज़ )करवाती है ।
वजन कम करना भी काम आता है साइकिल को नियमित रखने करने और और गर्भ धारण के मौके बढाने में .
अलावा इसके इन -फर्टिलिटी के सामाधान के लिए गोनाडो-त्रोपिन हारमोन की सुइयां लगाने के साथ साथ "असिस्तिद रिप्रो -दक्तिव तकनीकों "का भी सहारा लिया जाता है .यह खासकर उन महिलाओं के लिए जिन पर "क्लोमिड थिरेपी" असर नहीं डाल पाती ,इस चिकित्सा के चलते भी जो गर्भ धारण नहीं कर पातीं हैं .
मेट -फोर्मिन (ग्लुकोफेज़ )यह दवा एक तरफ "पी सी ओ एस "के लक्षणों में सुधार लाती है ,इंसुलिन के असर ,एक्शन में भी सुधार लाती है (सेकेंडरी डायबिटीज़ में इसे दिया जाता है ),इस संलक्षण की जटिलताओं को भी कम रखने में सहायक सिद्ध होती है ।
अनियमित माहवारी (इर्रेग्युलर पीरियड्स )के प्रबंधन में कारगर पाए जाने के अलावा यह डिम्ब क्षरण को भी प्रेरित करती है ,वजन कम करने में मदद करती है ,तथा टाइप-टू डायबिटीज़ से भी इस संलक्षण की मरीजाओं को बचाए रहती है ।
गर्भावस्था में हो जाने वाली मधु -मेह से भी यह "पी सी ओ एस "से ग्रस्त महिलाओं का बचाव करती है .
बेशक इस संलक्षण के संग साथ चली आने वाली ओबेसिटी का इलाज़ करना बहुत ज़रूरी होता है ,जो कई नै मेडिकल कंडी -संस(परेशानियों की )वजह बन जाती है .वेट लोस बहुत फायदे मंद साबित होता है ,इस संलक्षण की जटिलताओं में खासकर मधुमेह तथा दिल की बीमारियों से बचाए रहने में .
खुराक विज्ञान की माहिरा की मदद बड़ी काम आती है .मोटापे से पार पाने में ।
कुछ महिलाओं में "ओवेरियन ड्रिलिंग "एक शल्य तरकीब के तहत किया जाता है ,ताकि अंडक्षरण को प्रेरित किया जा सके .ये उनके लिए जिन पर बाकी इलाज़ असर नहीं कर पाते .इसमें अंडाशय के ऊतकों का एक बहुत छोटा सा हिस्सा एक सुईं से अंडाशय में बिजली (विद्युत् धारा ,इलेक्ट्रिक करेंट )भेजकर नष्ट कर दिया जाता है ।
(ज़ारी ....).
मंगलवार, 24 मई 2011
पोलिसिस टिक -ओवेरियन सिंड्रोम में जटिलताएं .
व्हाट कंडीसन ऑर कोम्प्ली -केसंस कुड बी एसोशियेतिद विद" पी सी ओ एस " ?
गर्भाशय कैंसर के अलावा इस सिंड्रोम से ग्रस्त महिलाओं के लिए हाई -ब्लड प्रेशर ,डायबिटीज़ ,दिल की बीमारियों के अलावा एंडो -मिट्रीयल कैंसर (कैंसर ऑफ़ दी यूट्रस ,गर्भाशयीय कैंसर )का भी ख़तरा बढा हुआ रहता है ।
मासिक (मेन्स्त्र्युअल् साइकिल )तथा हारमोन अनियमितताएं प्रजनन क्षमता पर भारी पड़तीं हैं ,इन -फर्टिलिटीयानी बांझपन ,प्रजनन क्षमता का ह्रास इस सिंड्रोम से ग्रस्त महिलाओं में मिल जाती है ।
क्योंकि अंडाशय से अंड(ह्यूमेन या फिमेल एग ,दिम्बाणु,डिम्ब )का क्षरण ही नहीं होता है इसलिए प्रोजेस्तेरोंन स्राव भी छीज जाता है कम होता है .ऐसे में यूटेराइन लाइनिंग (गर्भाशय अस्तर )का निर -विरोध स्तिम्युलेसन (उत्प्रेरण ,उद्दीपन ,उत्तेजन )ज़ारी रहता है ।
असामान्य पीरियड्स (मासिक या माहवारी )की वजह ,ब्रेक थ्रू ब्लीडिंग की वजह के अलावा कुछ महिलाओं में गर्भाशयीय रक्त स्राव की भी यही एक बड़ी वजह बन जाती है .ऐसे में यूटेराइन लाइनिंग (गर्भाशय अस्तर )का कैंसर तथा एंडो -मिट्रीयल हाई -पर- प्लेसिया का ख़तरा भी मुह बाए खडा रहता है .
बेशक दवाएं दी जा सकतीं हैं नियमित मासिक चक्र को लाने वाली तथा एंडो -मिट्रीयम के इस्ट्रोजन से पैदा होने वाले अतिरिक्त उत्तेजन को थामने वाली .
इस संलक्षण के साथ मोटापे का ख़तरा भी चस्पा हो जाता है .अमरीका में इस संलक्षण से ग्रस्त ६० %महिलायें ओबैसे हैं मोटापे की गिरिफ्त में हैं .ऐसे में इंसुलिन रेजिस्टेंस की समस्या और भी उग्र रूप ले लेती है ,सेकेंडरी डायबिटीज़ में जतिलाताएं बढ़ जातीं हैं हृद -वाहिकीय रोगों(कार्डियो -वेस्क्युअलर ) का ख़तरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है .
मेटाबोलिक सिंड्रोम का ख़तरा और भी बढ़ जाता है ,यह मेटाबोलिक सिंड्रोम खुद लक्षणों का एक समूह होता है ,जिसमें उच्च रक्त चाप भी शामिल है ,इसी के साथ कार्डियो -वेस्क्युअलर डिजीज का ख़तरा और भी बहुगुणित हो जाता है ।
इन महिलाओं में सी -रिएक्टिव प्रोटीन का स्तर भी बढ़ जाता है ,यह बायो -केमिकल मार्कर है (जैव -रासायनिक संकेतक है )जो एक तरह से भविष्य कथन होता है ,भविष्य वाणी होती है ,कार्डियो -वेस्क्युअलर डिजीज के आ धमकने की .अलबत्ता इस सिंड्रोम से पैदा मोटापे से जुड़े इन तमाम तत्वों से बचा जा सकता है दवा के ज़रिये ।
उन महिलाओं के लिए जिन के परिवारों में डायबिटीज़ रोग चला आया है इस सिंड्रोम के साथरहते प्री -डायबिटीज़ तथा सेकेंडरी डायबिटीज़ का भी ख़तरा और ज्यादा बढ़ जाता है .
ओबेसिटी तथा इंसुलिन रेजिस्टेंस जो इस सिंड्रोम से जुड़े हैं सेकेंडरी डायबिटीज़ के लिए बड़ा जोखिम पैदा करतें हैं .कई अध्ययनों में इन महिलाओं में जो "पी सी ओ एस "संक्षेप में इस संलक्षण से ग्रस्त हैं ,एल डी एल कोलेस्ट्रोल(बेड कोलेस्ट्रोल ) का स्तर ज्यादा तथा हार्ट फ्रेंडली एच डी एल कोलेस्ट्रोल का कम पाया गया है .अलावा इसके खून में ट्राई -ग्लीस राइड्स का स्तर भी बढा हुआ मिला है ।
चमड़ी का बदरंग होना इस संलक्षण में एक आम बात रहा है ।
अकान्थोसिस निग्रिकान्स रेफर्स टू दी प्रिज़ेंस ऑफ़ वेल्वेती ,ब्राउन टू ब्लेक पिगमेंटेशन ओफ्तिन सीन ऑन दी नेक ,अंडर दी आर्म्स ऑर इन दी ग्रोइन .डिस कंडीशन इज एसो -शियेतिद विद ओबेसिटी एंड इंसुलिन रेजिस्टेंस एंड अकर्स इन सम वोमेन विद पी सी ओ एस (पोली -सिस्टिक -ओवेरियन -सिंड्रोम )।
(ज़ारी ...).
गर्भाशय कैंसर के अलावा इस सिंड्रोम से ग्रस्त महिलाओं के लिए हाई -ब्लड प्रेशर ,डायबिटीज़ ,दिल की बीमारियों के अलावा एंडो -मिट्रीयल कैंसर (कैंसर ऑफ़ दी यूट्रस ,गर्भाशयीय कैंसर )का भी ख़तरा बढा हुआ रहता है ।
मासिक (मेन्स्त्र्युअल् साइकिल )तथा हारमोन अनियमितताएं प्रजनन क्षमता पर भारी पड़तीं हैं ,इन -फर्टिलिटीयानी बांझपन ,प्रजनन क्षमता का ह्रास इस सिंड्रोम से ग्रस्त महिलाओं में मिल जाती है ।
क्योंकि अंडाशय से अंड(ह्यूमेन या फिमेल एग ,दिम्बाणु,डिम्ब )का क्षरण ही नहीं होता है इसलिए प्रोजेस्तेरोंन स्राव भी छीज जाता है कम होता है .ऐसे में यूटेराइन लाइनिंग (गर्भाशय अस्तर )का निर -विरोध स्तिम्युलेसन (उत्प्रेरण ,उद्दीपन ,उत्तेजन )ज़ारी रहता है ।
असामान्य पीरियड्स (मासिक या माहवारी )की वजह ,ब्रेक थ्रू ब्लीडिंग की वजह के अलावा कुछ महिलाओं में गर्भाशयीय रक्त स्राव की भी यही एक बड़ी वजह बन जाती है .ऐसे में यूटेराइन लाइनिंग (गर्भाशय अस्तर )का कैंसर तथा एंडो -मिट्रीयल हाई -पर- प्लेसिया का ख़तरा भी मुह बाए खडा रहता है .
बेशक दवाएं दी जा सकतीं हैं नियमित मासिक चक्र को लाने वाली तथा एंडो -मिट्रीयम के इस्ट्रोजन से पैदा होने वाले अतिरिक्त उत्तेजन को थामने वाली .
इस संलक्षण के साथ मोटापे का ख़तरा भी चस्पा हो जाता है .अमरीका में इस संलक्षण से ग्रस्त ६० %महिलायें ओबैसे हैं मोटापे की गिरिफ्त में हैं .ऐसे में इंसुलिन रेजिस्टेंस की समस्या और भी उग्र रूप ले लेती है ,सेकेंडरी डायबिटीज़ में जतिलाताएं बढ़ जातीं हैं हृद -वाहिकीय रोगों(कार्डियो -वेस्क्युअलर ) का ख़तरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है .
मेटाबोलिक सिंड्रोम का ख़तरा और भी बढ़ जाता है ,यह मेटाबोलिक सिंड्रोम खुद लक्षणों का एक समूह होता है ,जिसमें उच्च रक्त चाप भी शामिल है ,इसी के साथ कार्डियो -वेस्क्युअलर डिजीज का ख़तरा और भी बहुगुणित हो जाता है ।
इन महिलाओं में सी -रिएक्टिव प्रोटीन का स्तर भी बढ़ जाता है ,यह बायो -केमिकल मार्कर है (जैव -रासायनिक संकेतक है )जो एक तरह से भविष्य कथन होता है ,भविष्य वाणी होती है ,कार्डियो -वेस्क्युअलर डिजीज के आ धमकने की .अलबत्ता इस सिंड्रोम से पैदा मोटापे से जुड़े इन तमाम तत्वों से बचा जा सकता है दवा के ज़रिये ।
उन महिलाओं के लिए जिन के परिवारों में डायबिटीज़ रोग चला आया है इस सिंड्रोम के साथरहते प्री -डायबिटीज़ तथा सेकेंडरी डायबिटीज़ का भी ख़तरा और ज्यादा बढ़ जाता है .
ओबेसिटी तथा इंसुलिन रेजिस्टेंस जो इस सिंड्रोम से जुड़े हैं सेकेंडरी डायबिटीज़ के लिए बड़ा जोखिम पैदा करतें हैं .कई अध्ययनों में इन महिलाओं में जो "पी सी ओ एस "संक्षेप में इस संलक्षण से ग्रस्त हैं ,एल डी एल कोलेस्ट्रोल(बेड कोलेस्ट्रोल ) का स्तर ज्यादा तथा हार्ट फ्रेंडली एच डी एल कोलेस्ट्रोल का कम पाया गया है .अलावा इसके खून में ट्राई -ग्लीस राइड्स का स्तर भी बढा हुआ मिला है ।
चमड़ी का बदरंग होना इस संलक्षण में एक आम बात रहा है ।
अकान्थोसिस निग्रिकान्स रेफर्स टू दी प्रिज़ेंस ऑफ़ वेल्वेती ,ब्राउन टू ब्लेक पिगमेंटेशन ओफ्तिन सीन ऑन दी नेक ,अंडर दी आर्म्स ऑर इन दी ग्रोइन .डिस कंडीशन इज एसो -शियेतिद विद ओबेसिटी एंड इंसुलिन रेजिस्टेंस एंड अकर्स इन सम वोमेन विद पी सी ओ एस (पोली -सिस्टिक -ओवेरियन -सिंड्रोम )।
(ज़ारी ...).
"आदमी कोई बद नहीं होता ...."
आदमी कोई बद नहीं होता .और आदमी आदमी के बीच का रिश्ता ज़ज्बात का होता है .फर्क हमें इसलिए छोटे बड़े का महसूस होता है हम अलग अलग सीढ़ियों पर खड़े एक दूसरे से संवाद करतें हैं .ऊंची सीढ़ी पे खड़े होकर हम किसी को देखते हैं तो वह हमें हेयतुच्छ अपने से छोटा नजर आता है .याद रखिये परमात्मा ने सबको सम पर खडा किया हुआ है हम सोचते सोचते कब डेट -रोइट मेट्रो (वेंन - काउंटी )के हवाई अड्डे पे आगयेथे पता ही नहीं चला .बेटी हमारा इंतज़ार यात्री लोंज़ में मय हमारे दामाद के कर रही थी ।
अचानक वही विमान -परिचारिका सामने से प्रवेश कर रही थी अपने माल - असबाब के साथ .हमने उसे एक बार फिर झुककर आदाब किया और वह हमारी बिटिया से रु -बा -रु थी "योर फादर इज सच ए नाइस पर्सन ।".
हमने सारा किस्सा अपनी बिटिया को बतायाथा . आप भी जानिएगा क्या हुआ था उस "के एल एम् "ओप्रेटिद बाई "डेल्टा फ्लाईट नंबर ६०५१ "में जो एम्सतर्दम से उड़कर हमें डेट -रोइट ला रही थी .पूर्व का सफ़र मुंबई से अबुधावी फ्लाईट जेट एयरवेज़ फ्लाईट ५८४ तथा अबुधावी से एम्स्तार्दम के एल एम फ्लाईट ४५० तकरीबन तकरीबन घटना हीन था . अलबत्ता सफ़र की थकान थी जो इस घटना के बाद और भी बढ़ गई थी .मन विषाद ग्रस्त था. ऐसा होता है तो आखिर होता क्यों है ?
गलती आदमी से ही होती है और यह तो गलती भी नहीं आकस्मिक चूक थी .हो सकता है उम्र का तकाजा हो . कोई और उधेड़ बुन रही हो दिलो -दिमाग में उस विमान परिचारिका।
अरे बस इतना ही तो हुआ था -यह उम्र दराज़ एयर -होस्टेस ट्राली संग आगे बढ़ रही थी .दिस्पोज़ेबिल ग्लास में कोक उसने उड़ेंल रखा था उस गोरे को पकड़ा ही रही थी ,आगे रखी एक और बोतल ढुलक गई ,ग्लास से टकराई और कोक विमान यात्री के कपड़ों पर खिंड -बिखर गया .
वह शर्मिन्दा थी .दौड़ कर बहुत से पेपर नेपकिन केबिन से लाइ थी और उसका पुल ओवर साफ़ किया था .फिर पुल ओवर ही उतरवा कर किचिन केबिन में ले गई थी .इस बीच सफ़ेद शफफाक कई तौलिये भी वह निकाल लाई थी .
पर वह शांत नहीं हुआ था .उत्तेजित था उसे खरी खोटी सुनाये जाए था ।
विमान के कई
वरिष्ठ कर्मियों ने भी आकर उसे समझाया था ,शांत करने ,संतुष्ट करने की कोशिश की थी ,कुछ मुआवज़े की भी शायद बात हुई थी .लेकिन वह अकडा रहा था जैसे पानी में भीगने के बाद चमडा अकड़ जाता है .
शिकायत -पुस्तिका मंगवाई थी और उसमें अपनी लिखित शिकायत दर्ज करवाई थी ।
सारा झगडा शब्दों का होता है शब्द संघातक हो जातें हैं .तमाम ज़िन्दगी शब्दों से चलती है सब शब्दों का ही खेल है फिर भी आदमी शब्दों के अर्थ बांचना नहीं चाहता ,रहता है अपनी झोंक में यही सोचता हुआ मैं केबिन में चला आया था ।
उस विमान परिचारिका की आंखोंमे आँसु छलक आये थे आहिस्ता से उसने मेरा हाथ पकड़ा था और अपने सीने से लगा लिया था कहते हुए -गोड ब्लेस यु .मैंने बस इतना कहाथा -"सच थिंग्स डू हेपिंन इन ए लॉन्ग केरियर.गले मत लगाओ इस बात को .तकलीफ बढ़ जायेगी ।".
सांत्वना के दो बोल उसे ऐसे लगे मानों सीने में घोंपा कोई शब्द बाण हमने निकाल बाहर किया हो .स्नेह की आंच से वह आप्लावित थी .कृतिग्य भी .नारी की कोमलता उस क्षण रिसकर सारी केबिन में फ़ैल गई थी .
मैं सोच रहा था यह आदमी अमरीकी तो नहीं ही था ,गोरा था किसी और लोक का ,अमरीकी नरम होते हैं सोफ्ट टॉय से, अदबियत लिए होतें हैं लखनवी ।
(ज़ारी ...)
म फ्लाईट ४५०
अचानक वही विमान -परिचारिका सामने से प्रवेश कर रही थी अपने माल - असबाब के साथ .हमने उसे एक बार फिर झुककर आदाब किया और वह हमारी बिटिया से रु -बा -रु थी "योर फादर इज सच ए नाइस पर्सन ।".
हमने सारा किस्सा अपनी बिटिया को बतायाथा . आप भी जानिएगा क्या हुआ था उस "के एल एम् "ओप्रेटिद बाई "डेल्टा फ्लाईट नंबर ६०५१ "में जो एम्सतर्दम से उड़कर हमें डेट -रोइट ला रही थी .पूर्व का सफ़र मुंबई से अबुधावी फ्लाईट जेट एयरवेज़ फ्लाईट ५८४ तथा अबुधावी से एम्स्तार्दम के एल एम फ्लाईट ४५० तकरीबन तकरीबन घटना हीन था . अलबत्ता सफ़र की थकान थी जो इस घटना के बाद और भी बढ़ गई थी .मन विषाद ग्रस्त था. ऐसा होता है तो आखिर होता क्यों है ?
गलती आदमी से ही होती है और यह तो गलती भी नहीं आकस्मिक चूक थी .हो सकता है उम्र का तकाजा हो . कोई और उधेड़ बुन रही हो दिलो -दिमाग में उस विमान परिचारिका।
अरे बस इतना ही तो हुआ था -यह उम्र दराज़ एयर -होस्टेस ट्राली संग आगे बढ़ रही थी .दिस्पोज़ेबिल ग्लास में कोक उसने उड़ेंल रखा था उस गोरे को पकड़ा ही रही थी ,आगे रखी एक और बोतल ढुलक गई ,ग्लास से टकराई और कोक विमान यात्री के कपड़ों पर खिंड -बिखर गया .
वह शर्मिन्दा थी .दौड़ कर बहुत से पेपर नेपकिन केबिन से लाइ थी और उसका पुल ओवर साफ़ किया था .फिर पुल ओवर ही उतरवा कर किचिन केबिन में ले गई थी .इस बीच सफ़ेद शफफाक कई तौलिये भी वह निकाल लाई थी .
पर वह शांत नहीं हुआ था .उत्तेजित था उसे खरी खोटी सुनाये जाए था ।
विमान के कई
वरिष्ठ कर्मियों ने भी आकर उसे समझाया था ,शांत करने ,संतुष्ट करने की कोशिश की थी ,कुछ मुआवज़े की भी शायद बात हुई थी .लेकिन वह अकडा रहा था जैसे पानी में भीगने के बाद चमडा अकड़ जाता है .
शिकायत -पुस्तिका मंगवाई थी और उसमें अपनी लिखित शिकायत दर्ज करवाई थी ।
सारा झगडा शब्दों का होता है शब्द संघातक हो जातें हैं .तमाम ज़िन्दगी शब्दों से चलती है सब शब्दों का ही खेल है फिर भी आदमी शब्दों के अर्थ बांचना नहीं चाहता ,रहता है अपनी झोंक में यही सोचता हुआ मैं केबिन में चला आया था ।
उस विमान परिचारिका की आंखोंमे आँसु छलक आये थे आहिस्ता से उसने मेरा हाथ पकड़ा था और अपने सीने से लगा लिया था कहते हुए -गोड ब्लेस यु .मैंने बस इतना कहाथा -"सच थिंग्स डू हेपिंन इन ए लॉन्ग केरियर.गले मत लगाओ इस बात को .तकलीफ बढ़ जायेगी ।".
सांत्वना के दो बोल उसे ऐसे लगे मानों सीने में घोंपा कोई शब्द बाण हमने निकाल बाहर किया हो .स्नेह की आंच से वह आप्लावित थी .कृतिग्य भी .नारी की कोमलता उस क्षण रिसकर सारी केबिन में फ़ैल गई थी .
मैं सोच रहा था यह आदमी अमरीकी तो नहीं ही था ,गोरा था किसी और लोक का ,अमरीकी नरम होते हैं सोफ्ट टॉय से, अदबियत लिए होतें हैं लखनवी ।
(ज़ारी ...)
म फ्लाईट ४५०
"पढ़े लिखे समाज में ."
यूनिवर्सिटी कैम्पस के इस क्वार्टर में किसी ने कई दिनों से आवाजाही नहीं देखी थी .किसी को फ़िक्र भी नहीं थी .अचानक कई दिनों बाद आसपास के क्वार्टरों तक बू आनी शुरू हो गई थी .इसकी भी अनदेखी की गई थी .कुछ दिनों बाद इधर से लोगों ने आना जाना भी बंद कर दिया .भला हो उन छात्रों का जो बे -चैन हो उठे थे .एक दूसरे से बतियाते हुए इधर ही आरहे थे .सर को इधर यार काफी अरसे से नहीं देखा .कुछ तो बात है ज़रूर .और इसी कशमकश में वे इसी क्वार्टर के नज़दीक आते आते ठिठक गये थे .हालाकि दुर्गन्ध की वजह से आगे बढना करीब करीब नामुमकिन सा ही हो गया था .फिर बढ़ते रहे थे और जैसे अनहोनी की आशंका साफ़ थी दरवाज़ा तोड़ दिया था ।
लाश सर की ही थी जो डिस -इन्टीग्रेट हो चुकी थी ।फफक फफक के रो पड़े थे सबके सब .
कहतें हैं सर ने घर में एक खाई सी ही बना ली थी .आखिरी दिनों में खड़े होकर जन गण मन कहने लगे थे .खाने पीने की तो हफ्तों से शायद सुध ही नहीं थी ।
इन युवा छात्रों के आते ही आसपास सन्नाटा ज़रूर पसर गया था लेकिन फुसफुसाहटें मुखरित थीं ।
देखो -कितना मान गुमान था इस आदमी को अपने पर और हो भी क्यों न आखिर अगला डेनियल जोन्स का शिष्य रहा था .अंग्रेजी उच्चारणों का माहिर था . हिंदी संस्कृत फ्रेंच में भी महारत हासिल थी .श्रृंगार से हटकर पर्यावरणी दोहे भी इस आदमी ने लिखे थे ।
ये तेजाबी बारिशें बिजली घर की राख ,
एक दिन होगा भू -पटल वार्णा -वर्त की लाख .
नाम था के .सी .राठी यानी कैलाश चंद राठी लेकिन लिखते थे -कैलाश राठी विशाल .ये आदमी काया से ही नहीं दिमाग से भी विशाल था ।
एक छोटी सी बीमारी ने जिसे कहतें हैं -बाई -पोलर इलनेस इसका हाल बे -हाल कर दिया था .पत्नी और एक बेटा गाँव में रहते थे .शक का लक्षण हावी रहता राठी साहब पर .कहते बंधू मेरा सारा काम चोरी हो चुका है ,छपके पुरुस्कृत भी हो चुका है .और मैं बे -खबर हूँ .तुम इतना अच्छा सा लिख लेते हो .विज्ञान के आदमी होते हुए कितनी दिलचस्पी और जानकारी रखते हो साहित्य की .एक हमारे ये बूदम हैं ।
तुम स्साले एक आलेख हमारी तारीफ़ में नहीं लिख सकते .राजेन्द्र माथुरजी के देहावसान पर नव भारत टाइम्स में प्रकाशित तुम्हारा पत्र व्यक्ति चरित की एक अलग आंच लिए हुए था ।
मैंने मज़ाक में तब कहा था -जब तुम शरीर पूरा करोगे ज़रूर लिखूंगा ।
मुझे क्या पता था वह शरीर विखंडित हो जाएगा .यूं चला जाएगा यह धुरंधर अनाम .गुमनाम ।लेकिन शायद'" पढ़े लिखे समाज" में ऐसा होना अनहोनी नहीं है .
हम तो शहर में ही नहीं थे अवकाश भुगताने गए हुए थे लौटे तो इस हादसे से बाखबर हुए थे ।
दो कदम भी उनके पीछे पीछे न चल सके .शिष्य भाव से जब तब उनसे क्या नहीं सीखा था .वह दौर जब हम आरोग्य समाचार लिखते थे "दैनिक हिन्दुस्तान "के लिए तमाम राष्ट्रीय ,आंचलिक अखबारों में हमारी विज्ञान रपटें प्रकाशित होतीं थी .विज्ञान पत्रिकाओं में शीर्ष स्थान बनाए हुए थे हम .कंधे थे हमारे पास तब राठी साहब के .आज कुछ भी नहीं है एक मलाल है काश हमें तब पता होता -राठी साहब मेनियाक फेज़ में थे बाईपोलर डिस -ऑर्डर की .
लाश सर की ही थी जो डिस -इन्टीग्रेट हो चुकी थी ।फफक फफक के रो पड़े थे सबके सब .
कहतें हैं सर ने घर में एक खाई सी ही बना ली थी .आखिरी दिनों में खड़े होकर जन गण मन कहने लगे थे .खाने पीने की तो हफ्तों से शायद सुध ही नहीं थी ।
इन युवा छात्रों के आते ही आसपास सन्नाटा ज़रूर पसर गया था लेकिन फुसफुसाहटें मुखरित थीं ।
देखो -कितना मान गुमान था इस आदमी को अपने पर और हो भी क्यों न आखिर अगला डेनियल जोन्स का शिष्य रहा था .अंग्रेजी उच्चारणों का माहिर था . हिंदी संस्कृत फ्रेंच में भी महारत हासिल थी .श्रृंगार से हटकर पर्यावरणी दोहे भी इस आदमी ने लिखे थे ।
ये तेजाबी बारिशें बिजली घर की राख ,
एक दिन होगा भू -पटल वार्णा -वर्त की लाख .
नाम था के .सी .राठी यानी कैलाश चंद राठी लेकिन लिखते थे -कैलाश राठी विशाल .ये आदमी काया से ही नहीं दिमाग से भी विशाल था ।
एक छोटी सी बीमारी ने जिसे कहतें हैं -बाई -पोलर इलनेस इसका हाल बे -हाल कर दिया था .पत्नी और एक बेटा गाँव में रहते थे .शक का लक्षण हावी रहता राठी साहब पर .कहते बंधू मेरा सारा काम चोरी हो चुका है ,छपके पुरुस्कृत भी हो चुका है .और मैं बे -खबर हूँ .तुम इतना अच्छा सा लिख लेते हो .विज्ञान के आदमी होते हुए कितनी दिलचस्पी और जानकारी रखते हो साहित्य की .एक हमारे ये बूदम हैं ।
तुम स्साले एक आलेख हमारी तारीफ़ में नहीं लिख सकते .राजेन्द्र माथुरजी के देहावसान पर नव भारत टाइम्स में प्रकाशित तुम्हारा पत्र व्यक्ति चरित की एक अलग आंच लिए हुए था ।
मैंने मज़ाक में तब कहा था -जब तुम शरीर पूरा करोगे ज़रूर लिखूंगा ।
मुझे क्या पता था वह शरीर विखंडित हो जाएगा .यूं चला जाएगा यह धुरंधर अनाम .गुमनाम ।लेकिन शायद'" पढ़े लिखे समाज" में ऐसा होना अनहोनी नहीं है .
हम तो शहर में ही नहीं थे अवकाश भुगताने गए हुए थे लौटे तो इस हादसे से बाखबर हुए थे ।
दो कदम भी उनके पीछे पीछे न चल सके .शिष्य भाव से जब तब उनसे क्या नहीं सीखा था .वह दौर जब हम आरोग्य समाचार लिखते थे "दैनिक हिन्दुस्तान "के लिए तमाम राष्ट्रीय ,आंचलिक अखबारों में हमारी विज्ञान रपटें प्रकाशित होतीं थी .विज्ञान पत्रिकाओं में शीर्ष स्थान बनाए हुए थे हम .कंधे थे हमारे पास तब राठी साहब के .आज कुछ भी नहीं है एक मलाल है काश हमें तब पता होता -राठी साहब मेनियाक फेज़ में थे बाईपोलर डिस -ऑर्डर की .
डायग्नोसिस ऑफ़ पोलिसिस्तिक ओवेरियन सिंड्रोम .
"पी सी ओ एस "का रोग निदान ?रोग निदान पोलिसिस्तिक ओवेरियन सिंड्रोम का क्या है ?
निदानिक लक्षणों और साइनों (क्लिनिकल सिम्टम्स एंड साइंस )के आधार पर ही अकसर पोलिसिस्तिक ओवेरियन सिंड्रोम का रोग निदान कर लिया जाता है .अलबत्ता माहिर ऐसे लक्षण रचने पैदा करने वाले अन्य रोगों यथा हाइपो -थाई -रोइदिज़्म (जिसमें थाई -रोइड ग्रंथि की सक्रियता कम रह जाती है आदमी खाता कम है वेट ज्यादा बढ़ता है ,मेटाबोलिज्म घट जाती है ) तथा प्रोलेकतिन हारमोन जो दूध बनाता है के बढे हुए स्तर को रुल आउट करना चाहता इस एवज कई रक्त परीक्षण भी किये जातें हैं .इसी प्रकार अंडाशय (ओवरी )के ट्यूमर, एड्रिनल ग्रन्थ द्वारा पैदा मेल हारमोन एंड्रो -जन के बढे हुए स्तर को भी खारिज करना चाहेगा .खून में इसका बढा हुआ स्तर भी एकने (कील मुंहासे निकलने की वजह बनता है ),अतिरिक्त बाल बढ़ने की भी (अवांछित अंगों पर )हवा देता है .ये दोनों ही "पी सी ओ एस "के भी लक्षण हैं .तथा ये कंडीशन एड्रिनल ग्लेन्ड कीभी इसे मिमिक करती है .
अलबत्ता पी सी ओ एस के रोग निदान में कुछ अन्य लेब टेस्ट्स भी सहयोगी साबित होतें हैं .मेल हारमोंस डी एच ई ए तथा टेस्टों -स्टेरोंन के सीरम स्तर भी बढे हुए मिल सकतें हैं .
हालाकि टेस्टों -स्टेरोंन का बहुत ज्यादा बढा हुआ स्तर आमतौर पर पी सी ओ एस में भी मिलता है .इसीलिए अतिरिक्त मूल्यांकन करना भी ज़रूरी हो जाता है ।कई और परीक्षण करने पडतें हैं .
अलावा इसके पीयूष ग्रंथि (दिमाग में होती है )द्वारा भी स्रावित एक हारमोन लियुतिनाइज़िन्ग हारमोन (एल एच )का भी ओवेरियन हारमोनों के उत्पादन में हाथ होता है .यह एल एच भी बढा हुआ रहता है पी सी ओ एस में ।
इमेजिंग तरकीबें :तरल से भरी नन्नी नन्नी थैलियों (सिस्ट्स )का जायजा इमेजिंग तकनीकों द्वाराइत्मीनान के साथ लिया जाता है .बेशक इस संलक्षण की गिरिफ्त में जो महिलायें नहीं हैं सिस्ट्स की मौजूदगी उनमे भी पता चलती है ।
ओवेरियन सिस्ट्स की शिनाख्त के लिए अल्ट्रा साउंड का सहारा लिया जाता है .यह युक्ति शरीर में अति स्वर तरंगें डालती है .इससे गुर्दों की तस्वीर प्राप्त की जाती है इसी तरकीब से आमतौर पर ओवरीज़ की सिस्ट्स का पता लगाया जाता है .
क्योंकि अल्ट्रा साउंड लेते वक्त न तो किसी डाई (रंजक )का स्तेमाल किया जाता है न किसी रेडियेशन का इसीलिए इसे गर्भवती महिलाओं के लिए भी निरापद माना जाता है .यह तरकीब तो भ्रूण की किड -नीज में भी सिस्ट्स का पता लगा सकती है .
अलबत्ता अल्ट्रा साउंड का स्तेमाल रूटीन में नहीं किया जाता है क्योंकि सिस्ट्स उन महिलाओं में भी रहतीं जिन्हें पी सी ओ एस के संलक्षण परेशां नहीं करते हैं और न ही सिस्ट्स इस संलक्षण (सिंड्रोम )की पूरी परिभाषा ही गढ़तें हैं .
रोग निदान का आधार विविध लक्षण ही बनतें हैं जिसमे मरीज़ की हिस्ट्री (पूर्व वृत्तांत ),कायिक परीक्षण (फिजिकल एग्जामिनेशन )तथा लेब टेस्ट्स को मुख्य आधार बनाया जाता है .
बेशक ज्यादा से ज्यादा सशक्त तथा खर्चीले रोग निदानिक तरीकों में सी टी स्केन (कम्प्युतिद टमो-ग्रेफ़ी )भी आतें हैं मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग भी ,लेकिन इनका स्तेमाल तभी किया जाता है जब साथ साथ एड्रिनल ग्लेन्ड ट्यूमर्स तथा ओवेरियन ट्यूमर्स का भी शक रहा आया हो .आप जानतें हैं सी टी स्केन में न सिर्फ एक्स रेज़ का स्तेमाल किया जाता है कभी कभार इन्जेक्तिद डाईज का भी जिनसे कुछ मरीजाओं के मामले में जटिलताएं भी सामने आसकतीं हैं .
(ज़ारी...)
सोमवार, 23 मई 2011
काज़िज़ ऑफ़ पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम .
निश्चय पूर्वक तो कोई इस के कारणों को रोशन नहीं कर सकता संभावना यही है यह स्थिति नतीजा होती है ,अनेक आनुवंशिक तथा पर्यावरण सम्बन्धी तत्वों कारकों ,फेक्टर्स का .अकसर जिन महिलाओं में यह स्थिति देखने को मिलती है वह इनके माँ या फिर बहन ने भी भोगी होती है .हो सकता है कुछ जीवन इकाइयों में पैदा हो जाने वाले उत्परिवार्तनों का भी हाथ रहता हो .इस बाबत पड़ताल चल रहीं हैं ।
इन महिलाओं की ओवरीज़ में (अंडाशय में )अकसर एक से ज्यादा सिस्ट्स (तरल या अर्द्ध ठोस द्रव्य से भरींथैलियाँ )
रहतीं हैं इसीलिए इसे पोली -सिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम कहा जाता है .पोली यानी मेनीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम .सिस्ट्स बेशक इतने ही उन महिलाओं में भी हो सकतें हैं जिनमे इस सिंड्रोम (लक्षणों के समूह )के लक्षणों का प्रगटीकरण नहीं होता है .
सिस्ट्स अकेला कारण नहींबनते होतें हैं असल बात संलक्षण हैं .खासुल- ख़ास ,विशेषीकृत ,करेक्टर -स्टिक सिम्टम्स हैं इस स्थिति के लिए .जो रोग निदान की और ले जातें हैं ।
ब्लड सुगर नियंत्रण प्रणाली शरीर की इन महिलाओं में दुरुस्त नहीं,ठीक काम नहीं करती है .इसीलिए इंसुलिन रेजिस्टेंस तथा इंसुलिन का बढा हुआ स्तर इनमें अकसर मिलता है .हो सकता है यही असामान्यता "पी सी ओ एस "की वजह बनती हो ।
अलावा इसके इनकी दोनों ओवरीज़ पुरुष हारमोन एंड्रो -जन ज्यादा मात्रा में बनातीं हैं .हो सकता है इसका सम्बन्ध इंसुलिन के असामान्य उत्पादन से जाकर कहीं जुड़ता हो ।
अलावा इसके इन महिलाओं के शरीर में एक क्रोनिक इन -फ्लेमेशन (रोग संक्रमण ,सोजिश जैसा कुछ चला रहता है )लो लेविल का बना ही रहता है .ऐसे में भ्रूण मेल हारमोनो से भी असर ग्रस्त हो जाता है .
इन महिलाओं की ओवरीज़ में (अंडाशय में )अकसर एक से ज्यादा सिस्ट्स (तरल या अर्द्ध ठोस द्रव्य से भरींथैलियाँ )
रहतीं हैं इसीलिए इसे पोली -सिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम कहा जाता है .पोली यानी मेनीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम .सिस्ट्स बेशक इतने ही उन महिलाओं में भी हो सकतें हैं जिनमे इस सिंड्रोम (लक्षणों के समूह )के लक्षणों का प्रगटीकरण नहीं होता है .
सिस्ट्स अकेला कारण नहींबनते होतें हैं असल बात संलक्षण हैं .खासुल- ख़ास ,विशेषीकृत ,करेक्टर -स्टिक सिम्टम्स हैं इस स्थिति के लिए .जो रोग निदान की और ले जातें हैं ।
ब्लड सुगर नियंत्रण प्रणाली शरीर की इन महिलाओं में दुरुस्त नहीं,ठीक काम नहीं करती है .इसीलिए इंसुलिन रेजिस्टेंस तथा इंसुलिन का बढा हुआ स्तर इनमें अकसर मिलता है .हो सकता है यही असामान्यता "पी सी ओ एस "की वजह बनती हो ।
अलावा इसके इनकी दोनों ओवरीज़ पुरुष हारमोन एंड्रो -जन ज्यादा मात्रा में बनातीं हैं .हो सकता है इसका सम्बन्ध इंसुलिन के असामान्य उत्पादन से जाकर कहीं जुड़ता हो ।
अलावा इसके इन महिलाओं के शरीर में एक क्रोनिक इन -फ्लेमेशन (रोग संक्रमण ,सोजिश जैसा कुछ चला रहता है )लो लेविल का बना ही रहता है .ऐसे में भ्रूण मेल हारमोनो से भी असर ग्रस्त हो जाता है .
व्हाट आर दी सिम्टम्स ऑफ़ पोली -सिस- टिक ओवेरियन सिंड्रोम ?
लक्षण क्या हैं "पी सी ओ एस "के ?
मुख्य लक्षण इस संलक्षण या सिंड्रोम के माहवारी में होने वाली गड़बड़ियों ,विक्षोभ ,डिस्टर -बेन्सिज़ से ताल्लुक रखतें हैं .पुरुष हारमोन एंड्रोजन के बढे हुए स्तर से भी इन लक्षणों का नाता रहता है .
माहवारी विकारों से जुड़े लक्षणों में नोर्मल मेन्स्त्र्युएसन् में विलम्ब (प्राई -मेरी एम्नोरिया ),मेन्स्त्र्युअल् पीरियड्स का सामान्य से कम रह जाना .(ओलिगो -मेनोरिया ),तीन महीने से भी ज्यादा अवधि तक माहवारी का निलंबित रहना .बंद हो जाना मासिक चक्र का इस अवधि में (सेकेंडरी एम्नोरिया )।
मासिक स्राव के बाद अण्डोत्सर्ग का न होना .नो ओव्यूलेशन या फिर एन -ओव्युलेत्री साइकिल्स का ज़ारी रहना .साथ में हेवी ब्लीडिंग का होना ,बेहद का रक्त स्राव होना ।
पुरुष हारमोन एंड्रो -जन का नारी शरीर में बाहुल्य ,अतिरिक्त स्तर कील मुंहासों,शरीर पर पेट पेडू अन्य अंगों पर बाल उग आना(हिरसुतिज्म ) ।तथा मेल -पैट्रन हेयर लोस के रूप में भी प्रगटित हो सकता है .
अन्य लक्षण "पी सी ओ एस "के इस प्रकार हो सकतें हैं :
(१)मोटापा (ओबेसिटी ),वेट गैन,मोटे होते चले जाना ।
(२)हाइपर -इंसु-लिनेमिया यानी शरीर में इंसुलिन का ज़रुरत से ज्यादा स्राव होना ,एलीवेटिड इंसुलिन लेविल्स साथ में इंसुलिन रेजिस्टेंस भी पैदा हो जाता है .इंसुलिन रेजिस्टेंस का मतलब ?
दिमिन्युशन इन दी रेस्पोंस ऑफ़ दी बॉडीज टिश्यु टू इंसुलिन ,सो देट हा -य़र कोंसंट्रेसंस ऑफ़ सीरम इंसुलिन आर रिक्वायर्ड टू मेन्टेन नोर्मल सर्क्युलेटिंग ग्लूकोज़ लेविल्स .ऐसे में आइलेट सेल्स पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पातीं हैं ,ग्लूकोज़ को असर कारी तरीके से कम करने लायक .नतीजा होता है हाई -पर -ग्लाई -सीमिया यानी खून में ग्लूकोज़ का स्तर एक मान्य स्तर से बहुत ऊपर चले जाना ।
(३)चमड़ी का तैलीय (ओइली स्किन )हो जाना ।
(४)बालों में रूसी (फ्यास )डैन -ड्राफ़ का होजाना ।
(५)बांझपन (प्रजनन क्षमता का ह्रास )।
(६)चमड़ी का बदरंग पड़ जाना (डिस -कलेरेशन ऑफ़ स्किन ).
(७)खून में सीरम कोलेस्ट्रोल का स्तर ज्यादा हो जाना ।हाई -कोलेस्ट्रोल लेविल्स .
(८)रक्त चाप का बढ़ जाना (एलीवेटिड ब्लड प्रेशर ).और
(९)अंडाशय में अनेक सिस्ट्स (तरल संसिक्त थैलियों का होना )का बनना।ये भी हो सकता है :उल्लेखित लक्षणों में
से किसी का भी प्रगट न होना .लेकिन अनियमित या फिर पीरियड्स का नदारद होना प्रगट और मुखरित लक्षण रहे .सभी महिलाओं में जिनमें अंडाशय में ये थैलियाँ मौजूद हैं पीरियड्स का अनियमित या फिर नदारद भी होना देखा जाता है .
इनमें दो माह्वारियों के बीच हर माह ओवम (ह्यूमेन एग ,अण्डोत्सर्ग )का भी क्षरण नहीं होता है .दे डू नोट ओव्युलेट रेग्युलरली आफ्टर एवरी पीरियड .रेग्युलर पीरियड्स न होने की वजह भी यही एन -ओव्युलेत्री फेज़(साइकिल्स ) बनती है ,प्रजनन क्षमता ह्रास (बाँझ पन ,गर्भ धारण में दिक्कत की भी .).
(ज़ारी ...).
मुख्य लक्षण इस संलक्षण या सिंड्रोम के माहवारी में होने वाली गड़बड़ियों ,विक्षोभ ,डिस्टर -बेन्सिज़ से ताल्लुक रखतें हैं .पुरुष हारमोन एंड्रोजन के बढे हुए स्तर से भी इन लक्षणों का नाता रहता है .
माहवारी विकारों से जुड़े लक्षणों में नोर्मल मेन्स्त्र्युएसन् में विलम्ब (प्राई -मेरी एम्नोरिया ),मेन्स्त्र्युअल् पीरियड्स का सामान्य से कम रह जाना .(ओलिगो -मेनोरिया ),तीन महीने से भी ज्यादा अवधि तक माहवारी का निलंबित रहना .बंद हो जाना मासिक चक्र का इस अवधि में (सेकेंडरी एम्नोरिया )।
मासिक स्राव के बाद अण्डोत्सर्ग का न होना .नो ओव्यूलेशन या फिर एन -ओव्युलेत्री साइकिल्स का ज़ारी रहना .साथ में हेवी ब्लीडिंग का होना ,बेहद का रक्त स्राव होना ।
पुरुष हारमोन एंड्रो -जन का नारी शरीर में बाहुल्य ,अतिरिक्त स्तर कील मुंहासों,शरीर पर पेट पेडू अन्य अंगों पर बाल उग आना(हिरसुतिज्म ) ।तथा मेल -पैट्रन हेयर लोस के रूप में भी प्रगटित हो सकता है .
अन्य लक्षण "पी सी ओ एस "के इस प्रकार हो सकतें हैं :
(१)मोटापा (ओबेसिटी ),वेट गैन,मोटे होते चले जाना ।
(२)हाइपर -इंसु-लिनेमिया यानी शरीर में इंसुलिन का ज़रुरत से ज्यादा स्राव होना ,एलीवेटिड इंसुलिन लेविल्स साथ में इंसुलिन रेजिस्टेंस भी पैदा हो जाता है .इंसुलिन रेजिस्टेंस का मतलब ?
दिमिन्युशन इन दी रेस्पोंस ऑफ़ दी बॉडीज टिश्यु टू इंसुलिन ,सो देट हा -य़र कोंसंट्रेसंस ऑफ़ सीरम इंसुलिन आर रिक्वायर्ड टू मेन्टेन नोर्मल सर्क्युलेटिंग ग्लूकोज़ लेविल्स .ऐसे में आइलेट सेल्स पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पातीं हैं ,ग्लूकोज़ को असर कारी तरीके से कम करने लायक .नतीजा होता है हाई -पर -ग्लाई -सीमिया यानी खून में ग्लूकोज़ का स्तर एक मान्य स्तर से बहुत ऊपर चले जाना ।
(३)चमड़ी का तैलीय (ओइली स्किन )हो जाना ।
(४)बालों में रूसी (फ्यास )डैन -ड्राफ़ का होजाना ।
(५)बांझपन (प्रजनन क्षमता का ह्रास )।
(६)चमड़ी का बदरंग पड़ जाना (डिस -कलेरेशन ऑफ़ स्किन ).
(७)खून में सीरम कोलेस्ट्रोल का स्तर ज्यादा हो जाना ।हाई -कोलेस्ट्रोल लेविल्स .
(८)रक्त चाप का बढ़ जाना (एलीवेटिड ब्लड प्रेशर ).और
(९)अंडाशय में अनेक सिस्ट्स (तरल संसिक्त थैलियों का होना )का बनना।ये भी हो सकता है :उल्लेखित लक्षणों में
से किसी का भी प्रगट न होना .लेकिन अनियमित या फिर पीरियड्स का नदारद होना प्रगट और मुखरित लक्षण रहे .सभी महिलाओं में जिनमें अंडाशय में ये थैलियाँ मौजूद हैं पीरियड्स का अनियमित या फिर नदारद भी होना देखा जाता है .
इनमें दो माह्वारियों के बीच हर माह ओवम (ह्यूमेन एग ,अण्डोत्सर्ग )का भी क्षरण नहीं होता है .दे डू नोट ओव्युलेट रेग्युलरली आफ्टर एवरी पीरियड .रेग्युलर पीरियड्स न होने की वजह भी यही एन -ओव्युलेत्री फेज़(साइकिल्स ) बनती है ,प्रजनन क्षमता ह्रास (बाँझ पन ,गर्भ धारण में दिक्कत की भी .).
(ज़ारी ...).
सदस्यता लें
संदेश (Atom)