प्रोग्नोसिस (एक्स -पेक -टेसंस)फॉर पी टी एस डी :
इस एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर से जो मनोवैज्ञानिक ,कायिक ,सामाजिक ,और आनुवंशिक वजहों से किसी हादसे के बाद चंद लोगों को घेर लेता है बाहर निकलना इस बात पे निर्भर करता है ,आपमें इस विकार के लक्षणों का प्रगटन कितनी जल्दी होता है जिनमे हादसे के फ़ौरन बाद लक्षण प्रगट हो जातें हैं वह तीन माह के अन्दर -अन्दर ठीक हो जातें हैं -बा -शर्ते रोग निदान भी उतनी ही जल्दी हो जाए और इलाज़ भी फ़ौरन शुरू हो जाए ।
लेकिन जिनमे इनका प्रगटन देर से होता है वह सालों साल भी इसमें लटके रह सकतें हैं .
हम बतला चुकें हैं -
"इस विकार में स्ट्रेस के प्रति व्यक्ति की अनुक्रिया ,रेस्पोंस तब्दील हो जाती है .स्ट्रेस को डील करने का ढंग बदल सकता है .चंद स्ट्रेस हारमोनों और न्यूरो -ट्रांस -मीटरों में कमीबेशी, तबदीली हो सकती है ।"
हादसा अभिव्यक्त नहीं हो पाताहै .कैथार्सिस नहीं हो पाती व्यक्ति की .गम ,दुःख पीड़ा और घुटन अन्दर रह जाती है .दिमाग सुन्न होके रह जाता है ।दुस्स्वप्न घेर लेतें हैं .फ्लेश्बेक चलता रहता जैसे सब कुछ फिर से घटित हो रहा है ,फिर वही दंश ,वही आतंक ,असुरक्षा .
और सबसे ज्यादा खराब बात यह होती है व्यक्ति अपने को ही कोसता रहता है -"आखिर वह क्यों बच गया इस दुःख भोग के लिए ,एक अपराध बोध बिला -वजह का उसे घेरे रहता है ".इलनेस को वह अपनी कमजोरी मान बैठता है .वार -वेटरंस डॉ के पास जाने में शर्म महसूस करने लगतें हैं .जबकि यह विकार उनकी कमजोरी न होकर स्ट्रेस का ज्यादा ज़मा हो जाना मन और काया पर दवाब का दवाब बढ़ जाना है ।
(ज़ारी ).
रविवार, 1 मई 2011
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