बुधवार, 25 मई 2011

पोलिसीस- टिक ओवेरियन सिंड्रोम :पारिभाषिक शब्दावली .

कार्डियो -वैस -क्युलर :वह प्रवहमान तंत्र (सर्क्युलेत्री सिस्टम )जिसमें हमारा दिल और रक्त वाहिकाएं आतीं हैं जो शरीर के ऊतकों तक पुष्टिकर तत्व और ऑक्सीजन ले जातें हैं तथा कार्बन डाय -ऑक्साइड और दूसरे अप शिष्ट पदार्थों की निकासी करातें हैं यहाँ से .इसी सर्क्युलेत्री तंत्र को कार्डियो -वैस -क्युलर सिस्टम कहा जाता है ।
कार्डियो -वैस -क्युअलर दिजीज़िज़ दिल और रक्त वाहिकाओं को असर ग्रस्त करतीं हैं .इनमे शामिल हैं :
(१)आरटीरीइयो -स्केलोरोसिस (२)कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सी ए डी ),हार्ट वाल्व डिजीज ,आरिथ -मिया ,हार्ट -फेलियोर ,हाई -पर -टेंशन ,ओर्थो -स्टेटिक -हाइपो -टेंशन ,शोक ,एंडो -कार -दाइतिस,महा -धमनी के रोग (दिजीज़िज़ ऑफ़ दी अओर्टाएंड इट्स ब्रान्चिज़ ),दिजीज़िज़ ऑफ़ दी पेरी -फरल -वैस -क्युलर सिस्टम ,तथा जन्म जात हृद- रोग (कोंजी -नाइटल हार्ट डिजीज )।
फीटस एंड एम्ब्रियो :
आठ सप्ताह के बाद से लेकर प्रसव की अवधि तक अजन्मेगर्भस्थ जीव को "फीटस "कहा जाता है .अब तक इसकी प्रमुख संरचनाओं का विकास हो चुका होता है ।
गर्भधारण के दिन से आठ सप्ताह की अवधि तक के अजन्मे गर्भस्थ जीव को एम्ब्रियो कहा जाता है .
वैसे हमारे यहाँ पौर्बत्य (पूरबी दर्शन में )एक ही शब्द है दोनों के लिए "भ्रूण ".यहाँ तक मान्यता है जो जड़ में है वही चेतन में है .एक दिन के गर्भस्थ में भी वही जीव -आत्मा है ,आठ सप्ताह के बाद भी वही है .
हाई -पर -प्लेसिया:यह एक ऐसी कंडीशन है स्थिति है जिसमें किसी ऊतक या अंग में सामान्य से ज्यादा कोशायें (मोर देन नोर्मल नम्बर ऑफ़ सेल्स )पैदा हो जातीं हैं ।
मार्कर :यह "डी एन ए "का एक टुकडा है ,अंश है जो गुणसूत्र (क्रोमोज़ोम्स )में जीवन इकाई /जीवन खण्ड /जींस के पास ही मौजूद रहता है ,बैठा रहता है ,तथा जीन तथा मार्कर विरासत में साथ साथ ही मिलतें हैं ।
इस प्रकार यह गुण सूत्र पर विराजमान एक शिनाख्त किये जाने लायक "स्पोट" है .गुण -सूत्रों पर जीवन इकाइयों का स्थान भी मुक़र्रर होता है ,ख़ास जगा बैठीं रहतीं हैं जींस .दी मार्कर कैन बी दितेक्तिद एंड ट्रेल्ड।
मेटाबोलिक :इस शब्द का सम्बन्ध मेटाबोलिज्म से है (अपचयन या चय -अपचय से है ).खाद्य का टूटना तथा इसका ऊर्जा में तबदील होना मेटाबोलिक से ध्वनित होता है .आम भाषा में इसे रेट ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ भी कह देतें हैं ।
अलबत्ता तमाम किस्म की जैव रासायनिक प्रक्रियाएं जो शरीर में संपन्न होती रहतीं हैं ,किसी भी जैविक प्रणाली की ,मेटाबोलिक ही कहलातीं है .
मेटाबोलिज्म के दो हिस्से हैं :
आना -बोलिज्म (अनाबोलिस्म ):यानी दी बिल्ड अप ऑफ़ सब्स्तेंसिज़ (पदार्थों का निर्माण )और कैट -बोलिज्म यानी बने हुए पदार्थों का टूटना .,दी ब्रेक डाउन ऑफ़ सब्स्तेंसिज़ ।
(ज़ारी ...).

1 टिप्पणी:

Amrita Tanmay ने कहा…

सरल भाषा में अच्छी तरह बताते हैं आप ..आभार