रविवार, 22 मई 2011

फिब -रोइड्स :टेस्ट्स एंड डाय -ग्नोसिस ?

रूटीन पेल्विक परीक्षण के दरमियान आपके माहिर को इनका (गर्भाशयीय गठानों का )अकसर पता चल जाता है .उसे आपके गर्भाशय की आकृति में अनियमितता महसूस हो सकती है ,एबडोमन में भी अंतर को वह भांप लेता है अंत :परीक्षण से गर्भाशयीय गठानों का साफ़ पता चल जाता है .फिर भी इनको सुनिश्चित करने तथा अधिकतम जानकारी जुटाने के लिए आपके गर्भाशय का ,ट्रांस -वेजिनल तथा ट्रांस -एब्डोमिनल अल्ट्रा साउंड लिया जा सकता है ।
यह एक पीड़ा रहित जांच होती है जिसमें अति स्वर ध्वनी तरंगों (उच्च आवृत्ति )की मदद से सब कुछ ज़रूरी जान लिया जाता है अल्ट्रा -साउंड अन्वेषी को योनी के अन्दर भी प्रवेश दिलवाया जा सकता है एबडोमन के गिर्द भी इसे रख कर अन्दर की जांच की जाती है .एको लौटती है एक इमेज बनके ।
ट्रांस वेजिनल अल्ट्रा साउंड अधिकतम विस्तार से सूचना जुटा लेता है क्योंकि इसमें अन्वेषी गर्भाशय के नज़दीक तर पहुँच जाता है .
बेशक ट्रांस एब्डोमिनल अल्ट्रा -साउंडशरीर के एक बड़े हिस्से की टोह ले लेता है .
कई मर्तबा प्री- नेटल अल्ट्रा -साउंड के दरमियान भी फिब -रोइड्स का आकस्मिक तौर पर पता चल जाता है ।
यदि परम्परा गत अल्ट्रा -साउंड जांच अ -पर्याप्त प्रतीत होती है तब अन्य अन्वेषणों के तहत कुछ इमेजिंग टेकनीकों का स्तेमाल किया जा सकता है :
(१)हिस्टेरो -सोनो -ग्रेफ़ी :अल्ट्रा -साउंड की ही यह थोड़ी हटकर की जाने वाली टेक्नीक है जिसमे पहले यूटेराइन केविटी को एक्सपांड करने के लिए स्टेराइल सेलाइन (वि -संक्रमित या निर -जीवाणु -कृत नमकीन जल )अन्दर पहुंचाया जाता है गर्भाशय के .इसमें गर्भाशय के अन्दर की बेहतर तस्वीरें ली जा सकतीं हैं .जिन महिलाओं को बेहद का रक्त स्राव (हेवी ब्लीडिंग होती )है उनमे परम्परागत अल्ट्रा -साउंड के सामान्य नतीजों के बाद भी यह प्राविधि ज्यादा उपयोगी साबित होती है ।
(२)हिस्टेरो -साल्पिनो -ग्रेफ़ी :इस प्राविधि में एक डाई का स्तेमाल किया जाता है ताकि अंड -वाहिनी नलिकाओं (फेलोपियन ट्यूब्स )तथा गर्भाशयीय विवर (गुहा या केविटी )को एक्स रे इमेजिज़ बेहतर तरीके से दिखला सकें .यदि बांझपन एक मुद्दा है एक चिंता का विषय है तब माहिर इसका स्तेमाल करसकता है .फिब -रोइड्स के रेखांकन के साथ साथ यह प्राविधि अंड वाहिनी नलिकाओं के खुले होने की भी खबर दे सकती है ,उनके खुली होने रहने पर ।
(३)हिस्टेरो -स्कोपी :इस प्राविधि में माहिर एक "हिस्टेरो -स्कोप "(आलोकित दूरदर्शी ,लाइटिद टेलिस- कोप) ही सर्विक्स से होकर गर्भाशय तक ले जाता है .इसमें भी सेलाइन अन्दर पहुंचाया जाता है ताकि गर्भाशयीय गुहा फ़ैल कर दाय्लेट होकर गर्भाशय की दीवारों और अंड वाहिनी नलिकाओं के खुले सिरों का पूरा खुलासा,हाल दिखा सके .इस प्राविधि को डॉ के दफ्तर में ही किया जा सकता है ।
यदा कदा कम्प्युट -राइज्द टमो -ग्रेफ़ी (सी टी स्केन)तथा मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एम् आर आई )का भी रोग निदानिक तरकीबों के रूप में पुष्टि के लिए स्तेमाल किया जाता है ।
एब- नोरमल वेजिनल ब्लीडिंग के मामलों में माहिर कुछ और परीक्षणोंका भी सहारा ले सकता है . ताकि इस असामान्य रक्त स्राव की वजहों को बूझा जा सके ।
आयरन डेफिशियेंसी एनीमिया का पता लगाने के लिए कम्प्लीट ब्लड काउंट (सी बी सी )रक्त परीक्षण भी किया जा सकता है .क्रोनिक ब्लीडिंग के मामलों में यह किया ही जाता है ।
अंडाशय द्वारा पैदा होने वाले हारमोनों का पता लगाने के लिए तथा रक्त स्राव सम्बन्धी विकारों का पता लगाने के लिए भी परीक्षण किये जातें हैं .पूरी तसल्ली की जाती है हर तरफ से ताकि पूरा ध्यान फिब -रोइड्स के इलाज़ पर टिकाया जा सके .
(ज़ारी...).

कोई टिप्पणी नहीं: