ग़ज़ल (रिमिक्स )।
धूप साया नदी हवा औरत ,इस धरा को नेमते खुदा औरत ।
नफरतों में जला दी जाती है ,ख्वाबे मोहब्बत की जो अदा औरत ।
गाँव शहर या कि फिर महानगर ,हादसों से भरी एक कथा औरत ।
मर्द कैसा भी हो कुछ भी करे ,पाक दिल हो तो भी खता औरत ।
हो रिश्ता बाज़ार या कि सियासत ,चाल तुरुप की बला औरत ।
कहानी नज्म मुशायरा और ग़ज़लें ,किताबे ज़िन्दगी का हर सफा औरत ,
समाज अपना है नाज़ कैसे करे ,मुसल्सल पेट में होती फना औरत ,
है सच यही ज़रा इसे समझो ,इंसानियत का मुकम्मिल पता औरत ।
घर बाहर या फिर कहीं भी हो ,दिल से निकली हुई दुआ औरत ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ),डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "
विशेष :डॉ वर्ष सिंह जी की ग़ज़ल "धूप पानी नदी हवा औरत "का यह रिमिक्स है ।
हम रिमिक्स ऑर्डर पर पे लिखतें हैं ,कृपया संपर्क करें .
सोमवार, 30 मई 2011
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1 टिप्पणी:
है सच यही ज़रा इसे समझो ,
इंसानियत का मुकम्मिल पता औरत ।
वीरू भाई जी कायल हो गया हूँ आपकी इस गजल (रिमिक्स) से.बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति है आपकी.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.'सरयू'स्नान का न्यौता है.
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