आरती अकसर कहा करती थी "आप तो सिर्फ सच बोलतें हैं ,मैं उसे बर्दाश्त करती हूँ ,पचा लेतीं हूँ ,जानते हो लोग यही कहतें हैं सच कडवा होता है ।"
लेकिन कुछ लोगों को तो जैसे सच बोलने की सनक ही होती है .मौक़ा बे -मौक़ा ये लोग सच ही बोलतें हैं और सच भी वह सच नहीं जो कचहरी में गीता पे हाथ धरके ईश्वर को हाज़िर नाज़िर मानके बोला जाता है .
तो ज़नाब ऐसा ही एक अपने आप को सत्यवादी मानने समझने घोषित करने वाला शख्श था योगेन्द्र .मौक़ा था -चाँद रात ,सुहाग रात ,प्रथम मिलन की रात ।
दाम्पत्य प्रेम की शुरुआत का वह विधायक क्षण था जो शहद की तरह मीठा ,मृदु समझा जाता है .दीगर है कि वो दिन वो रात चन्द्र कलाओं की तरह छीजते चले जाते हैं ,शुरुआत पूर्ण -चन्द्र यानी पूर्णिमा से हीहोती है ।
स्साला किस्सा गो रहा है पूरा योगेन्द्र का बच्चा ।
चाशनी लगा लगा के बता रहा था वय:संधि की बातें .कैसे उसे माया मिली .,कैसे वायवी दिन और रात थे जब बादलों के रंग हवा की खुशबू अच्छी लगती थी .सागर विश्व -विद्यालय की पठारिया पहाड़ियों पर शाम के झुरमुठ में साथ साथ बैठे ढलते सूरज को सागर ताल में डूबते देखते थे .वही किताबी बातें ,बादलों की तरह रंग बिरंगे रंग बदलते किस्से -"बस एक बार मेरी नौकरी लग जाए देखना मैं तुझे अपने पास रख लूंगी ,पढ़ाऊंगी ,लिखाऊंगी ..हाँ तू मेरे ही पास रहना ."
योगेन्द्र शाम के रंगों में स्वप्निल संसार में खो जाता ,माया की ऊँगलियाँ उसके बालों में थिरक रहीं होती और योगेन्द्र का सिर रखा होता उसकी गोद में .सूरज अपना दिन निपटा कर विदा हो जाता ।
कब विश्विद्यालय से एम् एस सी करके योगेन्द्र चला गया ,कुछ खबर नहीं है .वह पीaएच .डी के लिए पंजीकृत हो चुकी थी .खबर तब हुई जब aदो बरस बाद एक इंटर -व्यू के सिलसिले में उसे इंदौर आना पड़ा ।
हरयानाके सिरसा नेशनल महाविद्यालय में वह पढ़ा रहा था .पहले वह सागर आया - सोचता हुआ मामा से मिलता चलूँ जिनकी छाँव में उसे शिक्षा नसीब हुई थी फिर इंदोर निकल जाऊंगा .
तभी उसकी भेंट माया से एक नए सन्दर्भ में हुई .वह तो यूं ही निकल आया था यूनिवर्सिटी की आवासीय क्वाटर नंबर ४७ सी से यहाँ से गर्ल्स होस्टिल दिखलाई देता था .यहीं तो वह रहती थी सोचता हुआ वह पहाड़ी चढ़के गेस्ट रूम में आ गया था .वही वार्डन थीं ,परित्यक्ता ,निस्संग और अकेली .योगेन्द्र को वह भी प्यार करने लगीं थीं जो चहकता विहँसता जब तब माया से मिलने चला आता था ।
चंद लम्हों बाद माया भी हाज़िर हो गई थीउसकी थीसिस अभी सम्मिट नहीं हुई थी और फिर दोनों साथ साथ हो लिए थे मामा के क्वाटर की जानिब सी ४७ कब आ गया था कुछ खबर ही नही ।
मामा अपने परिवार के संग पिकनिक पे निकल रहे थे और योगेन्द्र और माया दाखिल हो रहेथे ।योगेन्द्र प्रवक्ता बन चुका था माया से मिलने के बाद उसे इल्म हुआ क्यों न वह अपने दिल की बात आज माया से कह दे।
पता नहीं कैसे वह इतनी मुश्किल बात कह गया था नजरें झुकाए झुकाए ,चौंका तब था जब उसे ज़वाब मिला -
शादी और तुम से सुनो योगी मैं तो तुम्हें अपना छोटा भाई मानती रहीं हूँ .बात यहीं खत्म नहीं हुई थी वह मध्य प्रदेश एक्सप्रेस बोलती ही चली गई थी .
जानते हो तुम्हारी हाईट सिर्फ पांच फुट आठ इंच है मैं ऐसे आदमी से शादी करूंगी जिसकी हाईट कमसे कम पांच फुट दस इंच हो पेशे से वह आई ए एस अफसर हो ।
योगेन्द्र अपना सा मुह लेके रह गया था ।
सुहाग रात ढल रही थी ,उस ढलती रात में वह भी था ।
भरतपुर भी उस रात लुटा था और फ्लाईट और फाईट सिंड्रोम से जूझती उस हिरनिया को उसने आश्वश्त किया था ,वह उसे प्यार करता है ।
जानते हो तब योगेन्द्र की जीवन संगनी उस भली औरत आरती ने क्या कहाथा -
कहने वालों का कुछ नहीं जाता ,
सहने वाले कमाल करतें हैं ।
आज वह जीवन संगनी काल शेष है ,पर लोक में है ,योगेन्द्र इह लोक में .लेकिन उसके कहे शब्द योगेन्द्र का पीछा करतें हैं -"आप सिर्फ सच बोलतें हैं ,मैं उसे बर्दाश्त करती शमिता हूँ ।
और वो माया उसका क्या हुआ पढ़िए अगली किस्त में ।
(ज़ारी ...)
सोमवार, 16 मई 2011
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