रिहेबिलिटेशन थिरेपी :
अमरीका में बालिगों के बीच अक्षमता की एक बड़ी वजह स्ट्रोक ही बना रहा है .स्ट्रोक से पैदा शारीरिक अक्षमता मरीज़ और उसके परिवार दोनों के लिए ही सब कुछ तहस नहस करने वाली सिद्ध होती है .अच्छी बात यही है इस अक्षमता से मरीज़ को बाहर लाने के लिए फिजिकल तथा अक्युपेश्नल थिरेपी उपलब्ध हैं ।
पुनर्वास में फिजिकल थिरेपी विधायक भूमिका अदा करती है ।
प्रशिक्षण ,कसरत ,फिजिकल मेनिप्युलेशन सभी का स्तेमाल करता करवाता है फिजिकल थिरेपिस्ट (फिजियो ).मकसद मूवमेंट और बेलेंस ,गति और समन्वयन जो मरीज़ खो चुका है स्ट्रोक भुगताने के बाद उन्हें फिर से हासिल करवाना है ।
उठना ,बैठना ,लेटना ,चलना फिरना (सिम्पिल मोटर एक्टिविटीज़ )के अलावा एक प्रकार के मूवमेंट से दूसरे तक पहुंचना भी सिखलाया जाता है ।
रोज़ मर्रा के कामों को ही दोबारा सिखलाने के लिए अक्युपेश्नल थिरेपी का भी सहारा लिया जाता है .इसके तहत एक्सर -साइज़ और प्रशिक्षण ,अभ्यास करवाया जाता है उन चीज़ों का जिन्हें मरीज़ भूल चुका है स्ट्रोक के बाद ,खाना ,पीना निगलना ,तैयार होना ,ड्रेस अप होना ,नहाना -धोना,खाना पकाना ,लिखना ,पढ़ना ,रेस्ट रूम का स्तेमाल करना ,टोइलेट जाना सभी कुछ नए सिरे से सिखलाया जाता है .मरीज़ को आत्म -निर्भर पूरी तरह न सही काफी अंशों तक बनाना इस थिरेपी का लक्ष्य होता है ।
स्पीच तथा भाषागत समस्याएं भी पेश आतीं हैं उन मामलों में जिनमे स्ट्रोक दिमाग के उन हिस्सों को नुकसानी पहुन्चादेता है जो संभाषण से ताल्लुक रखतें हैं .
दिमाग के अन्दर बला की क्षमता होती है सीखने और खुद को तबदील करलेने की जिसे प्लास्तिसिती कहतें हैं ,यहाँ तक के दिमाग के कुछ और हिस्से वह काम करने का जिम्मा उठा लेतें हैं जो उनका होता नहीं है .और जिन्हें दिमाग भूल भी चुका है ।
स्पीच थिरेपी भाषा और वाक् -पटुता ,संभाषण करने के अलावा सम्प्रेषण के वैकल्पिक तरीके भी सिखलाती है .जिन लोगों में बोध या संज्ञान (कोगनिटिव )सम्बन्धी ह्रास (कोगनिटिव देफ़िशित)स्ट्रोक से पैदा नहीं हुआ है उत्तर प्रभाव के रूप में लेकिन संभाषण और लिखित शब्दों को समझने में दिक्कत आ रही है ,वाक्य बनाने ,भाषण तैयार करने में मुश्किल पेश आरही है ,स्पीच थिरेपी उनके लिए अनुकूल सिद्ध होती है ।
स्पीच थिरेपिस्ट भाषागत प्रवीणता के अलावा इन्हें वैकल्पिक तरीके सम्प्रेषण के ,तालमेल बिठाने के तरीके भी सिखलाता है ,ताकि उन्हें अपने आपको अभिव्यक्त न कर पाने का दुःख बोध न हो .धीरे धीरे समय के साथ ,धैर्य के साथ मरीज़वह सब कुछ भी सीख सकता है ,जो उसे पहले आता था .
बेशक कुछ को मनो -वैज्ञानिक तथा मनो -रोग -विदों की सहायता की भी ज़रुरत पडती है .अवसाद ,एन्ग्जायती ,हताशा ,क्रोध तथा निराशा अकसर मरीज़ को घेरे रह सकती है स्ट्रोक के बाद ।
समाधान है टाक थिरेपी (क्लिनिकल कोंसेलिंग ),मेडिकेशन (ड्रग थिरेपी स्थिति के अनुरूप )।
परिवार के अन्य सदस्यों को भी ऐसे सलाह मश्बिरे का लाभ मिलता है ।
(ज़ारी ...)।
हमेशा की तरह इस बार का शैर पढ़िए -
मेरे घर उनका आना जाना था ,
क्या मोब्बत थी क्या ज़माना था .
शनिवार, 14 मई 2011
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