मे -उल -उह -सिस (एम् वाई ओ एल वाई एस आई एस )माय -लि -सिस :इस प्रोसीज़र में फिब -रोइड्स (गर्भाश्यीय गठानों में )एक नीडिल प्रवेश करवाई जाती है ,ऐसा लापा -रो-स्कोप निर्देशित होता है ,इसके बाद फिब -रोइड्स के खात्मे के लिए इलेक्ट्रिक करेंट या फिर फ्रीजिंग का स्तेमाल किया जाता है .
यूटेराइन फिब -रोइड एम्बो -लाइ -जेशन(यु ऍफ़ ई ) या यूटेराइन आर्टरी एम्बो -लाइ -जेशन(यु ए ई ) :
इसमें एक महीन ट्यूब (केथीटर जैसी ) उन रक्त वाहिकाओं में डाली जाती है जो फिब -रोइड को रक्त की आपूर्ति करवातीं हैं .अब टाइनी प्लास्टिक या जेल पार्तिकिल्स ब्लड वेसिल्स में इंजेक्ट किये जातें हैं .मकसद होता है गठानों को होने वाली रक्त आपूर्ति को काटना ठप करवाना .ताकि ये गर्भाश्यीय गठाने सिकुड़ जाएँ ।
यह एक आउट पेशेंट प्रोसीज़र भी हो सकता है यानी मरीज़ चिकित्सा के बाद घर जा सकता है इन डोर भी .
इसकी जटिलताओं में शामिल है रजो निवृत्ति का अपेक्षाकृत जल्दी चले आना .,लेकिन ऐसा बिरले ही होता है .
यह प्रोसीज़र उन महिलाओं को ज्यादा रास आता है जिन्हें हेवी ब्लीडिंग होती रही है ,ब्लेडर और रेक्टम पर प्रेशर बनाते रहें हैं फ़िब्रोइद्स ,जिसके फलस्वरूप खासी पीड़ा होती है .जो हिस्ते -रेक -टमी नहीं करवाना चाहतीं हैं .संतान भी नहीं चाहतीं हैं आइन्दा ।
अध्ययनों से ऐसा मालूम पड़ा है यु ऍफ़ ई प्रो- सीज़र के बाद फिब -रोइड्सअकसर नहीं पनपतें हैं ,लेकिन अभी दीर्घावधि अध्ययनों से इसकी पुष्टि होना बाकी है .सभी किस्म के फिब -रोइड्स इस प्रो -सीज़र से नहीं ठीक किये जा सकते .
(ज़ारी ...)
शुक्रवार, 20 मई 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें