व्हाट डिस -एबिलितीज़ कैन रिज़ल्ट फ्रॉम ए स्ट्रोक ?
हालाकि स्ट्रोक या ब्रेन अटेक (दिमागी दौरा )दिमाग काएक रोग है लेकिन यह सारी काया को ही असर ग्रस्त कर सकता है .इसके उत्तर प्रभावों में पेरेलिसिस (फालिज ,लकवा ,पक्षाघात ),बोध सम्बन्धी (संज्ञानात्मक ,कोगनिटिव ),भाषा सम्बन्धी ,संवेगात्मक (इमोशनल दिफिकल्तीज़),दैनिक रहनी सहनी से ताल्लुक रखने वाली तमाम तरह की समस्याएं चली आती हैं ।
पराल्य्सिस(पेरेलिसिस ):
हेमिप्लीजिया :शरीर के एक हिस्सों का पक्षाघात या कमज़ोर पड़ जाना (हेमी -परेसिस ) ।
पक्षाघात या कमजोरी का प्रभाव शरीर के चुनिन्दा हिस्सों मसलन सिर्फ चेहरे ,एक बाजू ,या टांग को भी असर ग्रस्त कर सकता है और पूरे एक पार्श्व के सभी अंगों को भी ।
यदि स्ट्रोक दिमाग के केवल एक अर्द्ध गोलार्द्ध मसलन बाएं को अपनी चपेट में लेता है तब पक्षाघात या कमजोरी की गिरिफ्त में शरीर के दायें हिस्से ही आतें हैं तथा दाहिने गोलार्द्ध के असर ग्रस्त होने पर बाएँ पार्श्व के अंग प्रभावित होतें हैं पक्षाघात या कमजोरी से ।
स्ट्रोक के मरीज़ को चलने फिरने ,ड्रेस -अप होने में ,खाने पीने ,निगलने यहाँ तक की स्नानगृह का स्तेमाल करने में नहाने धोने,शौच से निवृत्त होने में भी दिक्कत महसूस हो सकती है ।
मोटर कोर्टेक्स को(इन दी फ्रन्टल लोबस ऑफ़ दी ब्रेन ) क्षति पहुँचने पर या फिर दिमाग के निचले हिस्से सेरिबेलम को क्षति पहुँचने से मोटर देफिशिट्स और भी ज्यादा हो सकतें हैं .संतुलन और समन्वयन दोनों में ही दिक्कत आसकती है .
डिस -फेजिया (खाने पीने निगलने में दिक्कत )का सामना भी स्ट्रोक के कितने ही मरीजों को करना पड़ता है ।
कोगनिटिव देफिशिट्स (बोध सम्बन्धी अभाव ):स्ट्रोक के असर से सोचने -विचारने ,ध्यान टिकाने ,जजमेंट करने ,याददाश्त (कुछ भी याद करने ,स्मरण करने ),जागरूकता,सचेत होने रहने में भी दिक्कत आती है ।
अप्रक्सिया ,अग्नोसिया ,या "नेगलेक्ट ":ये कोगनिटिव देफ़िशित(बोध सम्बन्धी ह्रास के गंभीर मामलों के लिए प्रयुक्त पारिभाषिक शब्द हैं .)से ताल्लुक रखतें हैं ।
स्ट्रोक के सन्दर्भ में "नेगलेक्ट "का मतलब है मरीज़ को अपने शरीर के एक ओर के अंगों का कोई बोध ही नहीं है एक तरफ का दृश्यक्षेत्र भी उसके संबोध से बाहर ही रहता है ओर उसे इसका इल्म भी नहीं रहता है ।
अपने आसपास से ओर स्ट्रोक से होने वाली ,हो चुकी नुकसानी से भी वह बे -खबर रह सकता है ।
लेंग्विज देफ़िशित (भाषिक अभाव ):संभाषण को समझने ओर बोल पाने अपनी कुछ भी बात कह पाने वाक्य विन्यास बनाने में मरीज़ को काफी दिक्कत महसूस हो सकती है .इस स्थिति को -"अफासिया "या एफेज़िया कह दिया जाता है .दिमाग के बाएं टेम्पोरल ओर परिएतल लोब्स को नुकसानी पहुँचने से भाषा सम्बन्धी दिक्कतें पेश आतीं हैं पैदा होतीं हैं ,स्ट्रोक को भुगताने के बाद ।
(ज़ारी ...)
इस मर्तबा का शैर पढ़िए :
न जी भरके देखा न कुछ बात की ,
बड़ी आरजू थी ,मुलाक़ात की ,
सितारों को शायद खबर ही नहीं ,
कहाँ दिन गुज़ारा ,कहाँ रात की .
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शनिवार, 14 मई 2011
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