बच्चों में स्ट्रोक के अपने विशिष्ट लक्षण होतें हैं .अपेक्षाकृत युवा लोगों में हेमो -रेजिक स्ट्रोक ही ज्यादा देखने में आता है जबकि एल्डर -ली एडल्ट्स में स्कीमिक अटेक ही ज्यादा होतें हैं .अमरीका में स्ट्रोक के कुल मामलों में २०%हेमो -रेजिक स्ट्रोक के ही होतें हैं और इनमे युवजनों में कितने ही मामले देखने में आतें हैं .
नैदानिक साइंसदान युवा भीड़ को दो वर्गों में रखतें हैं ,१५ साल से नीचे के युवजन और १५-४४ साला .
१५-४४ साला लोगों को आमतौर पर "यंग - एडल्ट्स" का दर्जा दिया जाता है .
इनमे मौजूद रिस्क फेक्टर्स में "ड्रग यूज़ "एल्कोहल एब्यूज ",गर्भावस्था ,सिर और गर्दन की चोट शामिल है .अलावा इसके दिल की बीमारियाँ ,दिल से सम्बंधित विकासात्मक विकार भी जोखिम तत्व के रूप में मौजूद रहतें हैं .अलावा इसके इनमें स्ट्रोक की अन्य वजहों में कुछ आनुवंशिक बीमारियाँ भी आती हैं .
बच्चों में स्ट्रोक की वजह कुछ मेडिकल कोम्प्लिकेसंस भी बनतें हैं इनमे शामिल रहतें हैं इंट्रा -क्रेनियल इन्फेक्संस ,ब्रेन इंजरी (दिमाग को पहुँचने वाली चोट ),वेस्क्युलर माल -फोर्मेसंस (ब्लड वेसिल्स से सम्बन्धी विकासात्मक विकार )मसलन "मोयामोया सिंड्रोम ",ओक्लुसिव वेस्कुलर डिजीज तथा सिकिल सेल एनीमिया जैसे आनुवंशिक विकार ,ट्यूब -रस स्क्लेरोसिस तथा मर्फंस सिंड्रोम आदि ।
अलबत्ता बच्चों में स्ट्रोक के लक्षण बालिगों(एडल्ट्स ) और यंग एडल्ट्स से जुदा किस्म के होतें हैं .
स्ट्रोक के दौरान बच्चों में सीज़र्स ,बात- चीत न करपाना पाना (आकस्मिक तौर पर संभाषण अभाव ,लोस ऑफ़ स्पीच ),लोस ऑफ़ एक्सप्रेसिव लेंग्विज यानी मुद्रा ,हाव भाव ,बॉडी लेम्ग्विज का यकायक ह्रास ,शरीर के एक हिस्से के अंगों में कमजोरी का एहसास (हेमी -परेसिस ),शरीर के एक पार्श्व के अंगों में पक्षाघात(हेमी -प्लीज़िया ) ,डिस -आर्थ्रिया (बोलने में रुकावट आना ),कन्वाल्संस ,सिर दर्द और ज्वर जैसे लक्षण प्रगटित होतें हैं .इन्हें एक मेडिकल इमरजेंसी के बतौर ,एक चिकित्सा आपातकाल ही समझना बूझना चाहिए ।
बच्चों में ,जो स्ट्रोक के पेशेंट्स हैं ,उन कारणों का पता लगाया जाता है जो स्ट्रोक की वजह बनें हैं ,तथा पहले इनका प्रबंधन भविष्य में स्ट्रोक की संभावना को मुल्तवी रखने के लिए किया जाता है ।
सिकिल सेल एनीमिया से ग्रस्त बच्चों को ब्लड ट्रांस -फ्यूज़न देने (रक्ताधान )के बाद इनमे स्ट्रोक की संभावना घट जाती है .ऐसा समझा जाता है हाई रिस्क स्ट्रोक बच्चों को भी रक्ताधान मयस्सर करवाने से उनके लिए भी स्ट्रोक के खतरे का वजन कम होजाता है .यह नतीजे "नेशनल हार्ट ,लंग एंड ब्लड इंस्टिट्यूट "द्वारा प्रायोजित एक नैदानिक अध्ययन से निकाले गएँ हैं ।
प्रोनोसिस और एक्स -पेक -टेसंस बच्चों के मामलों में बेहतर रहती है बाशर्ते इलाज़ और पुनर्वास चिकित्सा नसीब हो जाए ।
वजह इसकीइनके इम्मेच्युओर ब्रेन की प्लास्तिसिती (भूले हुए कामों को फिर से कर लेजाना सीख जाना ,दूसरे हिस्सों द्वारा दिमाग के क्षतिग्रस्त हिस्से का काम संभाल लेना )बनती है .देफिश्ट्स और इंजरी के अनुरूप अपने को ढाल लेता है बच्चों का अपरिपक्व दिमाग .दुरुस्ती की ज्यादा गुंजाइश रहती है इसमें ।
अलबत्ता जिन नौनिहालों को स्ट्रोक के साथ सीज़र्स से भी झूझना पड़ता है उनमे नुकसान की भरपाई उतनी बढ़िया नहीं हो पाती है जितनी उनमे जो सीज़र्स से बचे रहतें हैं ।
कुछ बच्चों में "रेज़िद्युअल हेमी -प्लीज़िया "अवशेषी पक्षाघात बना रहता है जो वक्त के साथ चुक जाता है ये बच्चे फिर से चलना फिरना सीख जातें हैं ।
(ज़ारी ...)।
इस मर्तबा का शैर पढ़िए :
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं ,
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए ।
और "दिल "शब्द के ऊपर ही एक और शैर -
दिल अगर टूटा तो फिर बेकार है ,
ज़ुल्फ़ बिगड़ेगी बना ली जायेगी .
रविवार, 15 मई 2011
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