"आंधी आई मेह आया बड़ी बहु का जेठ आया "बाहें खोल कर हम बच्चे तेज़ तेज़ अपने ही गिर्द घूमते ,स्पिन करते बारिश से पहले की झंझा का पूरा मजा लेते थे .आँखों में रेत भर जाता था .बालों में भी और फिर मूसला धार बरसात गिरती थी तो हम बच्चे फिर समवेत स्वर में गाते थे -"बरसो राम धडाके से बुढ़िया मर जाए फाके से "(ये स्साला बुढ़िया को फाके से मारने का रिवाज़ क्या अर्वाचीन हैं ).
पप्पू भाई साहिब कब आके हमारे खेल में शरीक हो जाते थे हमें इल्म ही नहीं होता था .नाम था उनका योगेन्द्र (योगेन्द्र सिंह )क्या करते थे हमें क्या पता हम तो बच्चे थे .हाँ !याद है दीवार पर कार्टून बनाते थे चाक से ,गेरू से .नेहरूजी की छवि हम बच्चे पहचान जाते थे .काश उनका संग साथ मिलता तो हम भी थोड़ी ड्राइंग सीख जाते ।
पप्पू भाई साहब हमें रूमाल झपट्टा खिलाते सिखाते .एक घेरा खिट्टे से कच्ची ज़मीन पे उकेरा जाता उस घेर की (अहाते की )जिसमें हम बच्चे खेलते थे .घेरे में (सर्किल में ) एक रूमाल रखा जाता .बराबर बराबर दूरी पर इस घेरे से जिसे पाला कहा जाता दो टोलियाँ बच्चों की मुस्तैद रहतीं .पप्पू भाई साहब सीटी बजाते एक एक बच्चा दोनों टीम से बारी-बारी निकलके आता ,पाले की तरफ दौड़ता काम होता रूमाल उठाके भाग जाना वापस अपने पाले में .अगर दूसरी टीम के खिलाड़ी ने पीठ पर धौल ज़मा दिया तो गए काम से .गया एक पॉइंट दूसरी टीम के नाम . अगर हम सुरक्षित मय रुमाल लौट आये तो पॉइंट हमारे नाम .
हम सुबह सुबह उठ जाते आठ दस बच्चे गर्मियों की छुट्टियों में पप्पू भाई साहब हमें सैर के लिए चांदपुर के बम्बे(नहर से निकाली गई छोटी नाली, धारा )तक ले जाते .घर से "ठाकुरों के छत्ते ,छतरी वाले कुँए से "५-६ कोस दूर .भाई साहब पानी में उतर जाते .हम बच्चों को उकसाते ,पीछे पीछे हम भी उतर जाते .पप्पू भाई साहब हमें संभालते हम पानी में डूबते इतराते .कब तैरना सीख गए कुछ याद नहीं .जब होश आया पता चला हम बुलंदशहर की गंग नहर में तैरने लगें हैं ।
इंटर -मीडिएट साइंस के बाद बुलंदशहर और डी ए वी इंटर कोलिज दोनों पीछे छूट गए .पप्पू भाई साहबभी .हम पहुँच गए सागर विश्वविद्यालय की हसीन वादियों में पठारिया हिल्स पर .बच्चा भविष्य में जीता है ,अतीत में नहीं .पप्पू भाई साहिब भी हमारी स्मृतियों से अवचेतन में उतर गए ।
धक्का तब लगा जब एक मर्तबा दशहरा अवकाश में सागर से बुलंदशहर आये तो अम्मा ने बताया -"ए वीरू ! पप्पू मर गया .हार्ट फेल हो गया बेचारे का .इनके बाप को भी यही बीमारी थी "हमने पूछा क्या करते थे पप्पू भाई साहब माँ ने बताया स्टेशन मास्टर हो गया था .अलीगढ के पास एक जगह है इगलास वहां ।
आज कोई पप्पू भाई साहब नहीं है .बचपन एक दम से निस्संग है .रिएलिटी शोज़ में झोंक दिया जाता है .बचपन पर एक मारक अनुशाशन बरपा है .बच्चों का अपना कोई "मी टाइम "नहीं है .हमारे पास "वी टाइम "है जो उनके "मी टाइम" को भी लील गया है .बचपन की धमनियां अनुशाशन और स्ट्रेस से अवरुद्ध हैं .कैसे खुलेम ये धमनियां ?कोई नहीं जानता .
शुक्रवार, 20 मई 2011
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