शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

गेस्ट गज़लें :चौराहा /जश्न

ग़ज़ल
चौराहा :एहतियातन वो, इधर से कम गुजरता है
बदनाम न हो कोई ,इतना वो डरता है
नाप कर दिखाए , उसको सही -सही
वो दरिया है रोज़ रस्ता बदलता है
दिखा के आशियाँ अपना ,बादल किधर गए ,
खूब बरसे इतना कि सारे राज़ धुल गए
बिजलियों को कैद ,कर रखा है जिसने
जुगनुओं के डर से सहमा हुआ है
आशियाँ उसका कहाँ ,यह भी ख़बर नहीं
पुन्नों को छुऊँ फट ना जाए कहीं
अब इबारत आखिरी धंधली सी हो चली
हर्फों को जोड़ता हूँ ,तो चौराहा सा लगता है । सह भाव :चरण गोपाल शर्मा (भौतिक शिक्षा निदेशक ,सेवा निवृत्त ,राजकीय महाविद्यालय ,गुडगाँव ) डाक्टर .नन्द लाल मेहता वागीश

क्या है ,प्राकृत चिकित्सा ?

हमारा ये भौतिक शरीर हमारी धरती का लघु रूप है ,जिस प्रकार आज पृथ्वी का आँचल नुचा -नुचा सा है ,हमारी करतूतों से ,इस ग्रह का प्राकृत संतुलन टूटने लगा है ,ठीक वैसे ही जब हमारी आतंरिक एवं बाहरी जीवन शैलियों का आपसी तारतम्य टूटने बिखरने लगता है ,तब हमारा ये भौतिक शरीर बीमार हो जाता है .लेकिन जब हम ये संतुलन अन्दर -बाहर का बनाए रखतें हैं ,तब बाहरी रोग -कारकों (पेथोजंस )के हमले को ये शरीर कुदरती इलाज़ के तहत झेल जाताहै ,और फलतया कुछ ही समय में रोग मुक्त हो जाता है .इस बाहरी संतुलन को बनाए रखने के लिए सादा भोजन (नियमित खुराख के तौर पर लिया जाना ज़रूरी है ),अलावा इसके १० -१२ गिलास ताज़ा पानी ,भरपूर नींद और आराम करना भी उतना ही लाजिमी है .हमारा धंधा -धौरी रुचिकर हो ,नियमित और सामर्थ्य के मुताबिक (उम्र के अनुकूल ) व्यायाम भी अपरिहार्य है .हमारा माहौल (पर्यावरण ) साफ़ सुथरा ,जीवन सोद्देश्य तथा सम्बन्ध सार्थक और अनुकूल हों .नशा पत्ता ना करें हम लोग .क्योंकि इस कायिक शरीर (काया )के अलावा हमारा एक सूक्ष्म शरीर भी है ।
यह निर्कायिक सूक्ष्म शरीर ही हमारी लाइफ फोर्स एनर्जी है ,जीवन ऊर्जा है ,चेतना है .अति सूक्ष्म मार्गों से ,मेरिदिअन्स से होकर प्रवाहित होती है ,ये संजीवनी -ऊर्जा .यही शरीर के बहु चर्चित ऊर्जा केन्द्र (पावर हाउसिस )हैं ,चक्र हैं .साधक इन्ही अवरुद्ध पड़े ,सुप्त मार्गो को खोल देता है ,अंत -तया ऊर्जा निर्बाध प्रवाहित होने लगती है ,और हमारा संवेगात्मक ,मानसिक और भौतिक संतुलन दोबारा कायम हो जाता है .यही और बस इतना ही तो है कुदरती इलाज़ का आधार .सभी प्राणियों में यही जीवन ऊर्जा ,कास्मिक सूप जीवन मृत्यु चक्र को चलाये हुए है .भौतिक पदार्थ (गोचर जगत ) ऊर्जा की विविध आव्रित्त्यों (फ्रिक्वेंसिज़ ) के कारण ही ठोस द्रव और विरलतम गैसीय रूप में मौजूद है .ठोस पदार्थ में परमाणु पास पास बने रहतें हैं ,अपना स्थान नहीं छोड़ सकते ,कम्पित ज़रूर होतें हैं ,लो फ्रिक्वेंसिज़ पर ,तरल (द्रव )और गैसीय अवस्था में उच्च आवृति का कम्पन है .बुद्धिस्म ,चाइनीज़ सिस्टम आफ मेडिसन ,वैदिक साइंस में इस ऊर्जा का समझ बूझ भरा संज्ञान है ,जान कारी है .हमारे पल्ले उतना नहीं पड़ता ये ज्ञान (जीवन -ऊर्जा संबोध ).परमात्मा भी तो यही परम जीवन ऊर्जा है ,असीम -अपार .सार्वकालिक सार्वदेशीय ,युनिवर्सल लाइफ फोर्स एनर्जी .सभी जीव रूपों में इसी ऊर्जा का स्पंदन है ,रूपायित है ,यही परम जीवन ऊर्जा .(गाड ).उसी के साथ योग ,मिलन ,कनेक्टिविटी प्रार्थना अर्चना -पूजा के ज़रिए प्राप्य है .यही स्वस्थ तन ,निरोग काया ,अद्ध्यात्मिक स्वास्थ्य की बुनियाद है .जब सुबह सवेरे खेत खलियानों ,दरिया के किनारे हम सैर करतें हैं तब इसी प्रकृति से होता है हमारा साक्षात् कार .तभी हमारा अन्दर बाहर का खोया टूटा तार जुड़ता है ,संतुलन कायम होता है .नियम ध्यान भी इसीलियें बहुत ज़रूरी है .प्रकिरती से हमारा तादात्मय होता है ,हम एक बड़ी कहानी का हिस्सा मात्र होतें हैं .हमारे सुप्त पड़े ऊर्जा केन्द्र खुल जातें हैं जागृत हो जातें हैं .हम तन और मन से ही नहीं आध्यात्मिक सेहत के भी मालिक बन जातें हैं .खुशी मन की एक अवस्था ही है ,बाहर नहीं हैं ,भौतिक जगत में उसकी प्रतिच्छाया है . शान्ति और आनंद अन्दर है ,मन के ,बाहर नहीं हैं .शोर का ना होना शान्ति नहीं हैं भ्रान्ति है .।

गुरुवार, 30 जुलाई 2009

दिलदेहलादेने वाला क्रूर व्यवहार अपने ही लाडलों से ,क्यों ?

कामराज( पूर्व -मुख्य -मंत्री ,तमिलनाडु ) की जन्मशती के मौके पर एक सरकारी स्कूल ने वो कर डाला ,सुनकर आप सकते में आ जाएँ .एक सरकारी प्राथमिक शाला ने एक कथित शूरवीरता-प्रदर्शन (ब्रेवरी शो ) के दौरान एक नौनिहालको चित्त लिटाया ,आसमान की और तकते हुए ,उसने अपने दोनों बाजू जमीं के समांतर फैलाए ,फ़िर आमंत्रित किया एक मोटर साईकल सवार को ,वो मोटर साईकल पर सवार होकर आए और गाड़ी उसकी उँगलियों पर से चढाते हुए गुजर जाए .बाकायदा ऐसा ही किया भी गया .दर्शक दीर्घा से तालियाँ पीटी गईं ,करतल ध्वनी करने वालों में नौनिहाल के आदर्श माँ -बाप भी थे .कैसे थे ये जनक -जननी ?राम जाने ?एक गुजरे ज़माने के राजनितिक के साथ प्रतिबद्धता दिखाने का ये कैसा स्कूल है ?बच्चों के साथ अंग्रेज़ी पाठ के याद ना होने पर अक्सर दिल -देह्लादेने वाला व्यवहार होता रहा है ,आत्मा को कुचल देने वाला अति क्रूर पाशविक दुष्कर्म भी आए दिन हुआ है ,लेकिन ये प्रदर्शन तो कथित वीर -शिरोमणि माँ -बाप की सहमती से हुआ बतलाया गया है .(देखें सम्पादकीय :रेस्क्यू आवर किड्स ,टाइम्स आफ इंडिया ,नै -दिल्ली ,२९.०७ .२००९,दूसरा सम्पादकीय ).ये है इंडिया का एक और जायका ,दूसरे की ख़बर विनोद दुआ साहिब देते रहें हैं .हम गाली देतें हैं ,अरब शेखों को जो ऊंटों की दौड़ में भारतीय नौनिहालों को ऊँट की पीठ से बाँध देते है .बच्चा चिल्लाता है ,दर्शक दीर्घा से उन्मादी तालियाँ पीटीजातीं हैं .कल का अखबार मैंने आज पढा ,अभी- अभी पढा ,लगा ,इस पर ,विमर्श हो ,प्रतिकिर्या करें आप और हम ,तमाम ब्लोगिये .
परिवार एवं बाल कल्याण मंत्रालय .विविध एन .जिओज़ .भी आगे आकर इन स्तब्ध कर देने वाली ,चेतना को झकजोर देनेवाली घटनाओं को रोकें ,ऐसी हम सभी चिट्ठा लिखने वालों की गुजारिश है .सुना है ,नेशनल कमीशन फार चाइल्ड राइट्स इस प्रकार के हादसों (चाइल्ड -अब्यूज ) की ख़बर सम्बद्ध अधिकारियों तक पहुचाना लाजिमी बना रहा है .क्या स्वयं ये क्रूर बद्सूलुकी करने वाले ,ऐसा करेंगे ?

पेड़ -परिंदों से हुआ कितना बुरा सुलूक


"महानगर ने फेंक दी मौसम की संदूक ,पेड़ परिंदों से हुआ ,कितना बुरा सुलूक " ज्ञान प्रकाश विवेक जी की ये पंक्तियाँ महानगरों में पेड़ परिंदों से लगातार चल रही छेड़खानी को बे -परदा करतीं हैं .अब दिल्ली को ही लो ,सूखे के से हालत में जब पहली बरसात गिरी (२७-२८जुलाइ २००९ ) तो तक़रीबन २१ वृक्ष जड़ मूल से उखड गए .बेशक जंगलात शोध केन्द्र ,देहरादून के मुताबिक जब लुटियन्स की दिल्ली का प्रारूप रचा गया ,नै दिल्ली का हरा बिछोना तभी बिछा था .बेशक कुछ पेड़ उसी दौर के साक्षी बुजुर्ग है ,कई उम्र पूरी कर शरीर छोड़ गए ,लेकिन इनकी अकाली मौत के लिए महानगरीय लापरवाही ,मानवीकृत वजहें भी कम उत्तरदाई नहीं हैं .हम नहीं कहते ,वृक्ष विज्ञानी कह रहें हैं .वन्य शोध एवं शिक्षा केन्द्र निदेशक जगदीश किश्वन जी के मुताबिक इनमे से कई वृक्ष अस्सी साला हैं ,ओक्तो जनेरियन हैं .इनका गिरना मुनासिब है .अलबत्ता अब तक इनके स्थान पर नए पेड़ रोपे जा सकते थे .बीमार पदों का इलाज़ हो सकता था .जो अन्दर से रित गएँ हैं ,खोखले हो गएँ हैं कभी भी धराशाई हो सकतें हैं .दुर्घटना का सबब बन सकतें हैं .यथोचित प्रजाति चयन और तरतीब रोपण का अपना विशेष महत्व है ,और रहा है .इसे महानगर नियोजन का हिस्सा होना चाहिए ,होना चाहिए था । सिर्फ़ इस एक उपाय से कई दुर्घटनाओं को मुल्तवी रखा जा सकता है ,रखा जा सकता था .महानगर में सड़कों ,मेट्रो का संजाल ,सडको को विस्तार देना ,बारहा डामर बिछाना ,वृक्षों के पर्सनल ब्रीडिंग स्पेस को लील रहा है .पदों का दम घुटने लगा है . साँस लेने में दम फूलने लगा है .जगदीश चंद बासु ने क्रिसको ग्रेफ से पदों की धड़कन दर्ज की थी ,इ .सी .जी .लिया था पेडो का . बतलाया था ,हमारी तरह साँस लेतें हैं पेड़ ,पीडा का अनुभव करतें हैं ,संगीत की ताल पर थिरक्तें है ,नाचते -बतियातें हैं ।विकास्तें हैं रवि शंकर जी का सितार वादन सुन .महानगरीकरण के शोर में पेडो की पीर कौन सुने .माई ऋ मैं का से कहूँ पीर अपने जिया की .जाहिर है सड़कों का विस्तार पदों की जड़ों को नोंच रहा है ,छील रहा है .,काट रहा है .लगर के बिना तो जहाज भी लहरों के हवाले हो जाता है ।एम् .सी .दी .से लेकर रेसिडेंट वेल्फैर असोसिअशन तक ,वृक्षों की बेतरतीब त्रिम्मिंग कर रहें हैं .उपयुक्त यंत्र साधनों के अभाव में तमाम ज़िंदा शाखें ज़रूरत से ज्यादा क़तर वा दी जातीं हैं ,गरीब गुरबों को पेडों पर आरोहन करवा कर ।जबकि पिछ्प्रसाधन ,त्रिम्मिंग एक कला है जो विशेषज्ञता की अपेक्षा रखती है .एक तरफ़ जड़ें साँस लेने के काबिल नहीं ,दूसरी तरफ़ बेतरतीब ज़िंदा शाखाओं की कटाई ,पेड़ की जान ले लेती है ,कोई मर्सिया भी नहीं पढता .शहरों में "गौरा देवियाँ ",(चिपको की जनक ) नहीं होतीं ।जड़ों के गिर्द कंक्रीट से घिरा बंधा वृक्ष साँस ले तो कैसे ?ऊपर से बे-हिसाब गर्मी ,गर्म लू के थपेडे .पेडों को भी निर्जलीकरण होता है ,ज़नाब .अंडर वाटर टेबिल पाताल नाप रही है ,केवल बुन्देल खंड इसका अपवाद नहीं है .तमाम नगरों महानगरों का यही हाल है ,जहाँ जहाँ नलकूपों का चलन है वहाँ स्तिथि बदतर है .ऐसे में जड़ें कहाँ से सिंचित हों ,विस्तार पायें .यहाँ तो अस्तित्व का संकट है (अस्तित्व -वाद ).नीम की तो टेप रूट्स ही चल बसी हैं ,छीज गईं हैं ,नीम धडाधड गिर रहें हैं ."कहाँ गए बेला ,कलि ,नीम और जामुन ,आंव ,काट दिए सब वृक्ष तो ,फ़िर क्यों dhundhen chhanv ?"

पहले सुन्दरता का मानकीकरण तो हो

दिल्ली से प्रकाशित "नवभारत टाइम्स "ने अपने सम्पादकीय "सुंदर कौन ,३०जुलाइ ,०९"के मार्फ़त ये मुद्दा उठाया है .हेलसिंकी विस्व्विद्द्यालय के मार्कस जकोला तथा लन्दन स्कूल आफ इकोनोमिक्स के उद्भव एवं विकासात्मक ,मनोविज्ञानी (इवोलुश्नरी साइकालाजिस्ट ) के शोध निष्कर्षों का हवाला देते हुए सम्पादकीय कहता है :सुंदर माताएं सुंदर कन्याएं ही पैदा करती हैं ,और इस प्रकार सुन्दरता का संवर्धन -संरक्षण पीढी -डर -पीढी चलता रहता है .गोरियाँ होतीं हैं ये तमाम माताएं और इनकी बेटियाँ .लेकिन ज़नाब हमने अक्सर देखा है जो माताएं "ड्रीम गर्ल "होती हैं ,हेमा मालिनी सी सुंदर उनकी कन्याएं उनके मुकाबिल १९ ही रह जाती हैं .और रूप सुंदरी गौर -वर्णी ही हो ,ये कहाँ ज़रूरी है .बेशक ,बलराम (दाउजी )जब कृष्ण के साँवले वर्ण पर कटाक्ष करते हुए कहते है:गौरे नन्द जसोदा गौरी ,तू जसुमति कब जायो ,मैया मोहे ,दाऊ बहुत खिजायो ,तब कृष्ण मातु यशोदा से दाऊ जी की शिकायत करते हैं .अलबत्ता ,प्रेम पगी मीरा गातीं हैं :श्याम रंग में रंगी चुनरिया ,अब रंग दूजो ,भावे ना ,जिन नैनन में श्याम बसे हो ,और दूसरो आवे ना .श्याम वर्णी कृष्ण सब की आंखों के तारे हैं .बिहारी दास भी कहतें हैं :मेरी भव बाधा हरो ,राधा नागर सोय ,जा तन की झाइन परे श्याम (काले कलूटे कृष्ण )हरित (प्रसन्न )द्युति होय .लेकिन कृष्ण की अपनी पीडा है ,वो मातु यशोदा से बहुविध पूछ्तें हैं :राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला .तो ज़नाब जैसे अमीरी का मानकीकरण हो चुका है ,वैसे ही सुन्दरता का तो हो ले .सुन्दरता के प्रतिमान कौन गढेगा ?काले या गोरे ?जैसे अभी तक बुद्धिमत्ता (इंटेलिजेंस )aparibhaashit है ,बुद्धि के मूल तत्व क्या हैं ,इसका फैसला विज्ञानी नहीं कर पायें है ,वैसे ही सुन्दरता क्या है इसका nirdhaaran दो विज्ञानी नहीं कर सकते .सुन्दरता विषयी मूलक है ,sabjektiv है ,aabjektiv नही ।
aai kyu को लेकर भी बड़ा jhamelaa है .jhuggi jhonpdi में palne vaalaa bachchaa अपने parivesh के बारे में jyadaa mukhar है जान kaari से bharpur है ,aai kyu का nirdhaaran aagrh मूलक hotaa है ,और फ़िर sundarta तन की ही नहीं मन की भी होती है ,karmon की भी ।sahjany lagaav भी पहले प्रेम और फ़िर prem पगी को सुंदर मानने lagtaa है .कहा भी gayaa है :दिल lagaa gadhi से तो परी क्या karegi .तो ज़नाब सुन्दरता का nirdharan vyektik है ,jyaanendriyon से hotaa है .कोई एक paimaanaa नहीं इसे naapne aazmaane का .progshaalaa में aazmaaishen कैसे kijiyegaa ?byuti laaiz इन दा aaiz आफ daa biholdar ,byutiful इस who beautiful does etc etc .maashuk को aashik की नज़र से dekhnaa hogaa ।

बुधवार, 29 जुलाई 2009

बनिथनि हमारी समधन

जीवन में बहुत कम लोग होतें हैं जो हमारी व्यक्तिगत संभाल करतेहै .हमारी नज़र उतारतें हैं .हमारी खान पान की आदतों से वो बावस्ता ही नहीं होतें ,उन्हें ख़याल रहता है ,हमें खाने में क्या पसंद है ,हम चाय कैसी पीतें हैं ,दूध -पानी एक कर उबाल खंगाल कर या फ़िर चाय की पत्ती केतली को गरम पानी से खंगाल कर गरम करने के बाद ,गरम पानी ऊपर से डाल केतली को टीकोजी से ढक संवार कर ऊपर से दूध मिलाकर ,चीनी का पात्र हमारे आगे कर देतें हैं .हमारे कपड़े लत्तों की ख़बर रखतें हैं ,हम कोई ज़रूरी कागज़ पत्तर उनके हवाले छोड़ कर निश्चिंत हो सकतें हैं .हमारे बीमार पड़ने पर वो हमारी नज़र भी उतारतें हैं ,घर से जब हम चलतें है याद दिलातें :मोबाइल वगैरा सब रख लिया ,कुछ रह तो नही गया .ऐसी हैं हमारी "बनी -ठनी".पतली पह्न्दी की क्रोकरी की तरह भरोसे बंद ,और पक्के रंग सी दृढ़ .तब हमें अपनी माँ भी याद आती है ,पिताजी भी .हमारी समधन का घर मेहमानों से खाली नहीं रहता .व्यक्ति वहीं जाता जहाँ हमारे पहुँचने पर ,कोई दिल से खुश होता है ,नाक भों नहीं सिकोड़ता .औरत घर को जोड़ती भी है ,तोड़ती भी औरत है .हमारी समधन ने हमारे समधी साहिब के घर को जोड़ा हुआ है ,वरना तो इतना बड़ा कुनबा है ,कितने भाई हैं हमारे समधी साहिब के ,लेकिन मेला यहीं लगता है .अनथक हैं हमारी समधन ,चाहे ,आधा कुंटल अनाज साफ़ करवालो ,चाहे सुबह से शाम तक खाना बनवालो .सबको गरम खाना परोसतीं हैं ,तन मन दोनों से संवृद्ध हमारी समधन इसीलियें तो हमने उनका नाम "बनिथनि "(सजी संवरी )रखा है .खूबसूरती सिर्फ़ तन की नहीं होती ,तन तो बहुतों का बेहिसाब सुंदर होता है ,लेकिन मन ?उनका मन और नाम दोनों जमुना है .सहेज के रख्खो ,संरक्षित करलो इनके जीवन खंडों (जींस )को .ये खानदानी लोग हैं ,याद रहतें हैं .

ग़ज़ल :मुसाफिर

ग़ज़ल
मुसाफिर
मुसाफिर तो मुसाफिर है ,उसका घर नहीं होता /यूँ सारे घर उसीके हैं ,वोह बेघर नहीं होता
ये दुनिया ख़ुद मुसाफिर है ,सफर कोई घर नहीं होता /सफर तोआनाजाना है /सफर कमतर नहीं होता
मुसाफिर अपनी मस्ती में ,किसी से कम नहीं होता ,गिला उसको नहीं होता ,उसे कोई ग़म नहीं होता
मुसाफिर का भले ही कोई अपनाघर नहीं होता /मुसाफिर सबका होता है ,उसे कोई डर नहीं होता
गो अपने घर में अटका आदमी ,बदतर नहीं होता /सफर में चलने वाले से ,मगर बेहतर नहीं होता
सहभाव :डाक्टर नन्द लाल मेहता वागीश ,वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

रविवार, 26 जुलाई 2009

दानवी त्रिकोण बरमुडा :मिथ या यथार्थ ?


उत्तरी अंध महासागर का पश्चिमी क्षेत्र सनसनी खेज बर्मूडा त्राएन्गिल के लिए जाना जता है .इस त्रिकोण की आधारीय लाइन के एक सिरे पर बर्मूडा है तो दूसरे पर पुटोरिको तथा अपेक्स पर है मेक्सिको की खाड़ी (गल्फ आफ मेक्सिको ).ट्रोपिकल स्टोर्म्स (हुर्रिकेंस ,चक्र्वातीय ) का क्षेत्र है ,यहाँ समुंदरी जहाजों ,नावो का बह जाना ,पानी पर उतरने वाले छोटे हवाई जहाजों का यकायक गायब हो जाना ,एक परा भौतिक ,दैवीय घटना ,एक सनसनीखेज कथा (स्कूप )के रूप में प्रचारित प्रसारित किया जाता रहा है .दरसल रहस्य रोमांच बुनने वाली कथाएं ,फिक्शन सिनेमा ,फिल्में इस दौर में खूब बिकती हैं .स्टीवन स्पाइल -बर्ग की :क्लोज़ एन्कौन्तर्स ऑफ़ दी थर्ड काइन्द जैसी फिल्में बॉक्स आफिस हिट साबित इसीलियें होती हैं ,क्योंकि वे बर्मूडा त्रिकोण से sambaddh flaait nambar १९ का bhometar (bhu -itar ,एक्स्ट्रा -तेर्रेस्त्रिअल ) प्राणियों द्वारा अपहरण दर्शातीं हैं .अपहरण करता है ,एक उड़न तस्तरी .जिसमे भोमेतर(अन्य ग्रह के वासिंदे ) प्राणी विराज मान है .कोई नहीं बतलाता की गल्फ स्ट्रीम (खाड़ी -धारा ) मेक्सिको की खाड़ी की एक समुंदरी धारा है जो स्ट्रेट्स ऑफ़ फ्लोरिडा होते हुए उत्तरी अंध महासागर की और बढ़ जाती है .यह समुन्दर के अन्दर एक वेगवती नदी है जो तक़रीबन साढे पाँच (५.६मील प्रति घंटा ,या फ़िर २.५मितर प्रति सेकिंड )मील प्रति घंटा की चाल से बहती रहती है .एक ऐसी छोटी नौका जिसका इंजन खराबी दरसा रहा है ,पानी पर उतरता एक छोटा जहाज इस धरा में आसानी से बह जाता है .केबिन क्रूज़र "विचक्राफ्ट "दिसम्बर २२,१९६७ में इसी धरा में बह गया था .गल्फ स्ट्रीम से नावाकिफ कथाकारों ने एक रहस्य मूलक रिपोर्टिंग कर डाली .भाई साहिब इस क्षेत्र में शक्तिशाली हुरिकेंस पानी को मथे रहतें है .समुन्दर के नीचे मड-वोल्केनोज़ भी हैं ,यहाँ आवधिक तौर पर ,बारहा ,मीथेन इरुप्स्हंस होतें हैं .फलतया पानी झाग -बुलबुले बनने लगते हैं ,ऐसे में समुन्दर के इस भाग पर तैरते -इठलाते जहाजों को आवश्यक ,बोयेंसी (उत्प्लावन बल ,ऊपर की और पर्याप्त उछाल नहीं मिलती ,आर्किमिडिज़ का सिद्धांत :जब कोई वस्तु किसी द्रव में आंशिक या पूर्ण तया डुबोई जाती है तो उसके भार में कमी आ जाती है ,और यह कमी वस्तु द्वारा हठाये गए ,विस्थापित जल के भर के बराबर होती है ,उपरी उछाल ही उत्प्लावन बल है ,ज़नाब ).मीथेन हाई -द्रेट्स समुन्दर के नीचे यहाँ वहाँ मौजूद हैं ,कोंटीनेंटल-सेल्व्स पर इनका डेरा है .पानी के बुलबुले पानी का घनत्व (डेन्सिटी )घटा कर उत्प्लावन बल घटा देतें हैं ,जहाज डूब जाता है ,उसका मलबा धाराएं जिनका ज़िक्र था बहा ले जातीं हैं ।कहा जाता रहा है ,बर्मूडा क्षेत्र में दाखिल होते ही कम्पास की सुंया अपना नेविगेशन धर्म निभाना छोड़ देती हैं ,कप्तान जहाज का भ्रमित हो जाता है .दरअसल विस्कोंसिन से गल्फ की खाड़ी तक एक ऐसी लाइन है जिस पर मेग्नेटिक नॉर्थ (कम्पास )तथा भूगोलीय नॉर्थ एक लाइन में आ जातें हैं ,कोंसैद करने लगतें हैं ,ऐसे कम्पास मार्ग दर्शन कैसे करे ?जबकि नेविगेशन का मतलब है ,आधार है :मेग्नेटिक वेरिएशन .मानवीय भूल भी समुन्दर में हादसों की वजह बनती हैं ,बर्मूडा के गिर्द रहस्य रोमांच बुनने वाले लिखाडी इस तथ्य की अदबदा कर अनदेखी कर जातें हैं .वाष्प शील बेंजीन अवशेष (वोलाटाइलबेंजीन रेज़िदू ) की पर्याप्त प्रसिक्षणके अभाव में साफ़ अनदेखी होती है ,१९७२ में टेंकर एस एस वि ऐ फोग इसी लापरवाही के चलते जल समाधि ले गया था .दरअसल बर्मूडा एक अरबी दंत कथा है .बहामास के अन्तर -राष्ट्रिय जल के गिर्द बुनी गई है ये कथा .स्ट्रेट्स आफ फ्लोरिडा ,बहामास ,सम्पूर्ण केरिबिआइद्वीपीय क्षेत्र ,अतलांतिक ईस्ट तो दा अजोरेस ,गल्फ आफ मेक्सिको बर्मूडा त्रिकोण की हदबंदी करतें हैं ।मियामी ,सान-जुएन,पुएर्तो -रिको ,मिड अतलांतिक कोस्ट आफ बर्मूडा इस क्षेत्र का सीमांकन करतें हैं .ज्यादा तर जहाजों के गायब होने की ख़बर इसी क्षेत्र से जुड़ी रहीं हैं .लेकिन किसी ने भी यहाँ के सम्बद्ध मौसम की घटनाओं के साथ ख़बर नहीं दी .१९७५ में लारेंस ने इस धांधली का परदा फास किया .मौसम का हवाला दिया जिसके अनुसार दुर्घटना होना अजूबा नहीं था .समुन्दर में ऐसा होता रहता है ,बर्मूडा क्षेत्र इसका अपवाद कैसे हो सकता था .यूके चेनल _४ ने रही सही कसार पुरी करदी .बर्मूडा त्रिकोण से रहस्य का परदा अब उठने लगा था ,यह रहस्य कथा सितम्बर १९५० में इ। वी.डब्लू जोन्स ने लिखनी शुरू की .असोसिएतिड प्रेस के सौजन्य से पहली कथा छपी .दो साल बाद फेट पत्रिका ने छापा ;सी मिस्त्री एट आवर बेक डोर .जिसमें फ्लाईट नंबर १९ ,५ अमरीकी लडाकू विमानों (नेवी टी .बी .एम् .अवेंजर )के ला पता होने की ख़बर चाशनी लगाके छापी गई .कथाकार थे :जोर्ज एक्स सेन .१९७२ में अमरीकी लिजन पत्रिका ने फ्लाईट नंबर १९ के लापता होने की कथा कुछ यूँ छापी :समुन्दर का पानी हरा दिखने लगा था ,तो कभी वाईट ,देखते -देखते ही हवाई जहाज मंगल ग्रह की और उड़ गया ,जैसे मंगल ना हुआ ,खाला जी का घर हो गया .फरवरी १९६४,अर्गोसी पत्रिका ने छापा :हताशा का जल (वाटर्स आफ दिस्पेअर) ,अदृश्य क्षितिज १९६९ में जान वालेस स्पेंसर ने "लिम्बो आफ दी लोस्ट केप्शन से कथा छापी,जिसका १९७३ में दोबारा प्रकाशन हुआ .चार्ल्स बर्लित्स ने १९७४ में "दी बरमूडा त्राएन्गिल" तथा रिचर्ड्स वैनर ने "दी डेविल्स त्राएन्गिल लिखा .आदिनांक लिखा जा रहा है ,लिखा जाता रहेगा ,इस दौर में ज़िन्दगी से थ्रिल
नदारद है ,इसीलियें कथाओं में चला आया है .

शनिवार, 25 जुलाई 2009

कार्बन डाई -आक्साइड ,मीथेन नाइत्रोजनी आक्साइड आदि ग्रीन हाउस जसें हैं

हल जोतने के बाद ,वृक्षों के कटान के बाद नंगी -नुची पृथ्वी मीथेन छोड़ती है ,जीव -अवशेषी इंधन के खात्मे से कार्बन -डाई -ऑक्साइड गेस निकलती है ,लकड़ी उपला ,जलावन लकड़ी ,शव दाह की परम्परा गत विधि भारत में कार्बन डाई ऑक्साइड का एक बड़ा स्रोत है .जुगाली करने वाले पशु ,एक और बड़ा स्रोत हैं ,ग्रीन हाउस गेसों का .जंगलों का सफाया हिन्दुस्तान में सक्रीय वन माफिया ग्रीन हाउस गेसों की एक और वजह बना हुआ है .अरावली -की पहाडियों में सक्रीय सरकारी माफिया सुप्रीम कोर्ट के खनन निलंबन आदेश को कितनी बार ठेंगा दिखा चुका है ,सब जानतें हैं .सब से बड़ी वजह तो यहाँ किसी सिस्टम का न होना है .यहाँ कोर्ट -कच हेरी के आदेश भी अमली जामा नहीं पहन पाते .नौकर शाह -ठेके दार -राजनितिज्य स्वयं भारत में चलने वाली राज नीतिक धांधली ग्रीन हाउस गेसों की एकल सबसे बड़ी वजह बनी हुई है ,इसे दुरुस्त कीजिये ,ग्रीन हाउस गेसों से ज्यादा खतरनाक है ,ये तंत्र -जाल जिसे प्रजा तंत्र कहते है .

बहुश्रुत ग्रीनहाउस गेसें और आलमी गर्माहट क्या हैं ?

सबसे पहले ये जानना होगा :गर्मी के दिनों में पार्किंग लाट में खड़ी आपकी कार जब आप वापस लौटते हैं तो अन्दर से खासी गर्म मिलती है ,पहले आप खिड़की से शीशे हठाकर आगे पीछे के गेट खोल कर अन्दर गर्म हो चुकी हवा को बाहर करतें हैं ,फ़िर एसी आन्करतें हैं .दरअसल हमारी कर जिसके शीशे ,बंद थे ,एक ग्रीन हाउस बन जाती है .आप जानते हैं ग्रीन हाउस में पौधे रखे जातें हैं ताकि उनेह एक निश्चित ताप मयस्सर हो सके .इसी तरह हमारा वायु मंडल एक लिहाफ है ,कम्बल है जो पृथ्वी ने ओढ़ रखा है .वायु मंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का बाहुल्य है ,मुख्य गेसों ओक्सिजन नाइट्रोजन के अलावा ,इतर गेसें अल्पांश में है ,ओजोने का एक कवच है ,ओजोने मंडल में ,३०-४० किलोमीटर ऊपर ,अलबत्ता समुन्दर के निकट की हवा में सुबह की ठंडक और ताजगी इसी गैस की वजह से है ,जो अपने मूल स्वभाव में भले ही जहरीली सही ,लेकिन सौर विकिरण के जैव मंडल को क्षति पहचाने वाले परा- बेगनी अंश को रोक कर तमाम वन्य जीवों को एक सुरक्षा कवच मुहैया कराता है .इसीलिए आज ओजोने फ्रेंडली अयारोसोल्स और इतर ओजोने मित्र रसायनों की दरकार है ताकि हमारी करतूतों से टूटते ओजोने कवच को बचाया जा सके । वातावरण में ग्रीन हाउस गेसें जमा हो गईं है रेडियो -अक्तिविती से निसृत गेसों कीतरह ,इसीलियें परिमंडल गरमा रहा है .आप जानियेगा बड़ा ही संवेदी है पृथ्वी का हीट-बज़ट ,इसमें ४सेल्सिअस की घट बढ़ ,हिम युग और जलप्लावन ले आती है .इसीलियें संदेश यही है :अपना कार्बन फुट प्रिंट (फासिल फुएल खर्ची )घटाइए .भले ही हमारी ये खर्ची अम्रीका से २० गुना कम तो योरप से १२ -१६ गुना कम है .लेकिन हम एक ट्रोपिकल कंट्री है (उषण कटी बंधी देश है ).पृथ्वी का १ सेल्सिअस भी गर्माना हमारे लिए ज्यादा बुरी ख़बर है .अति नाज़ुक है हमारा हिम -नद (ग्लेशियरों का लगातार पिघलना एक बुरी ख़बर है ),मुंबई जैसे तटीय क्षेत्र एक हाई टाइड से भी सकते में आ जातें है .तटीय क्षेत्रों का अतिक्रमण रोकना हामारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए .मेंग्रोव की तटीय क्षेत्रों में खेती सुनामी की उत्ताल लहरों को भी तोड़ देती है .वक्त कम है ,नेनो का सम्मोहन छोडिये.अम्रीका एनर्जी गजलर है तो ,रहे ,हमें अपना पार्ट प्ले करना है .और उससे भी नाज़ुक है वायुमंडल का ओढ़ना ,जो बंद कार के शीशों सा गर्मी यानि लम्बी अदृश्य तरन ऊर्जा को तो दाखिल होने देता है ,लेकिन ओजोने कवच की मौजूदगी विकिरण के खतरनाक अंश को रोक लेती है .यही कवच हमारी हरकतों ऊर्जा सम्बन्धी ज़रुरियात की वजह से गरीब की ओधनी सा छीज रहा है .शानदार लिहाफ को क्षतिग्रस्त हो तार- तार होने से बचाइये ,जो ,लम्बी तरंगो ,जीवन के लिए आवश्यक गर्मी को रोके रहता है .क्या यह इत्तेफाक नहीं हैं :हम सूरज से एक खास फासले पर हैं ,न कम न ज्यादा ,जीवन के अनुकूल ,पृथ्वी का गुरुत्व भी परिमंडल को यथा शक्ति थामे है ,वरना गृह तो सौर मंडल के और भी हैं ,जहाँ हम यहाँ से भागकर कूच करने की सोच रहें हैं .जीवन को जैव मंडल के संभालिये ,इसीमें खुद्दारी है ,जिंदादिली है .

अन्तरिक्ष में भगदड़ ,दीपक तले अँधेरा . क्यों ?

ज्योतिर्विज्यानियों की माने तो ये जग एक आदिकालीन एकल महाविस्फोट से जन्मा .ये विस्फोट उस आदिम अणु में हुआ जिसमें सृष्टी का समस्त गोचर -अगोचर पदार्थ ,एक होत सूप के बतौर मौजूद था .यह सूप अति उत्तप्त तथा अतिरिक्त रूप से सघन (डेंस )था ,इसे ही बिग बेंग अथवा सुपर डेंस थेयेअरी कहा गया .इस महाविस्फोट से पैदा मलबा आज भी परस्पर दूर से दूरतर होता छिटक रहा है ,सृस्ठी फ़ैल रही है विस्तारित हो रही है .इसी मलबे से ये गोचर जगत निहारिकाओं (दूध गंगाओं ,गेलेक्सिज़ )के रूप में अस्तित्व में आया .सृस्ठी का ९९फ़िसद अंश आज भी डार्क ऊर्जा के रूप में अन- अनुमेय बना हुआ है .एक प्रति गुरुत्व बल इस फेलाव विस्तार का कारन समझा जाना जाताहै .फलतया जब हम किसी स्टार या गेलेक्सी का वर्ण क्रम उतारतें हैं (छवि अंकन करतें हैं )तो इस स्पेक्ट्रम में रेखाएं वर्ण क्रम के लाल छोर की और अधिकाधिक खिसकाव लिए प्रगट होती हैं .और इस प्रकार दृश्य प्रकाश लगातार अदृश्या प्रकाश मेंtabdil हो रहा है .लाल से परे एक छोर पर और nile से परे दुसरे छोर पर अदृश्य प्रकाश ही तो है ,दृश्या प्रकाश की तो एक छोटी सी सत रंगी पट्टी है .और यही वज़हहै की अन्तरिक्ष में अन्धकार की व्याप्ति है .क्योंकि गेलेक्सिएस प्रकाश के वेग से भी palaayan कर रहीं है ,isliyen unkaa प्रकाश हमारी आँख तक कभी नहीं पहुँच paataa कहा jata है दीपक तले अँधेरा है अन्तरिक्ष में अंधेरे का deraa है .

माँ ....

ma ,sach kahta hun ,main us raat paarty men zarur gaya tha par maine sharaab ko haath tak nahin lagaaya ,soda piya ।main jaanta hun aur achchi tarh maan taa hun ,men ek zimmevaar maa kaa ,ek zimmevaar beta hun .kash usko bhi kisi ne ye bataaya hota ,








पार्टी में शराब मत पीना ,शराब पीकर गाडी मत चलाना ,तो मैं उसकी करनी का शिकार क्यों होता ?सच है :करे कोई भरे कोई ,लेकिन इस सच को कोई नहीं मानता .जैसे ही माँ में पार्टी ख़त्म होने पर ये सोचता हुआ निकला ,अब पहुंचा घर ,गाडी सड़क पर आई ही थी ,उसने सामने से आकर मेरी गाडी में ज़ोरदार टक्कर मार दी .मेने साफ़ सुना ,पोलिस वाला कह रहा था :डा other फेल्लो हड दृंक .खून से saari सड़क भीग gai थी ,ये खून मेरा था ,papa ka था ,तुम्हारा था मेने ,sunaa ,ये बचेगा नहीं ,हाँ माँ ye डॉक्टर की आवाज़ थी ,.लेकिन मैं तुम्हारी कसम khaataa हूँ माँ :मेने शराब नहीं pi ,तुम्हारा कहा माना .मेरी कब्र पर लिखना माँ :गुड boy ,छोटे bhai को तसल्ली देना ,पापा को भी धानधस ,बंधाना .मैं जा rahaan हूँ माँ .yahi तो aakhiri shabd था jo uske mukh से niklaa .माँ hamaare bharat में शराब पीकर गाडी चलाना ,ek fed ban gayaa है ,feshan fed ,amiri की khanak ban gayaa है ,tabhi तो yahaan aaye din ,biemdablu kaand hote है kisi की zindgi से khelnaa ,kisi की jaan le lenaa ,ये kaisi khanak है माँ ,tumhi batlaao .kya ये gambhir apraadh नहीं है ,sangeya ,apraadh नहीं है ?jagah -jagah likhaa hotaa है ,spid kills ,drunken driving इस suicide ,कोई maane tab naa माँ .aur kaanun ?use तो sab thengaa dikhaaten hain .kanun banaane vaale bhi .इस desh मैं na कोई sistam है माँ na कोई kanun ,bagair sistam ke ये desh chal kaise रहा है माँ ?tumhi batlaao ? tum तो antaryaami ho माँ .ये desh chal kaise रहा है ?शराब पीकर गाडी chalaane vaale को ,yahaan sazaa तो kyaa ,uska driving laaisens bhi radd नहीं होता ,salmaan khaan ban jaataa है vo माँ .ये aur nirdoshon को bhi maarenge माँ ,inhen roko .inhen kamse kam nigetiv paaints तो dilvaao माँ .mujhe tum पर bharosa है माँ ,मेने तुम्हारी baat maani थी ,fir bhi ?

शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

पदार्थ और ऊर्जा का द्वैत..

कई चीजों कोलेकर दुनिया भर में अनेक भ्रान्तिन्याँ हैं धर्म और विज्ञान का द्वैत उनमें से एक है ,जबकि धर्म -विज्ञान का अद्वैत है ,ऊर्जा -पदार्थ की तरह .ऊर्जा -पदार्थ ,पदार्थ -ऊर्जा एक ही भौतिक राशि है .पदार्थ में ऊर्जा सुप्तावस्था में है ,और ऊर्जा में पदार्थ की भी यही स्तिथि है .तू मुझमे है मैं तुझमे हूँ .ऊर्जा की जागृत अवस्था पदार्थ है ,जब ऊर्जा किसी स्थान पर घनीभूत हो जाती है ,तब पदार्थ कहलाती है .यानी किसी स्थान पर ऊर्जा का ज़मावडा ,संकेद्रण गोचर जगत में आकर पदार्थ बन जाता है .और विर्लिकृत रूप पदार्थ -ऊर्जा का ऊर्जा कहलाता है ,जो अगोचर बना रहता है ,लेकिन उसके सृजनात्मक या फ़िर ध्वन्शात्मक प्रभाव ,छिपाए नही छिपते ,जैसे भूस्खलन (लैण्ड स्लाइड ) जन्य विनाश ,ज्वालामुखी विस्फोट या फ़िर भूकंपीय ऊर्जा का पृथ्वी के उस स्थान से मुक्त होना जहाँ मेग्मा पर धीरे धीरे खिसकती महाद्वीपीय प्लेटें एक दूसरे से संघर्षण कर परस्पर आरोहण करती हैं ,सुनामी भी सब्दक्शन अर्थ - कुएक की उपज है ,समुन्दर की पेंदी (बोटम ) में प्लेटें एकदूसरे पर चढ़ जाती हैं .या फ़िर हिरोशिमा -नागासाकी सा एटमी विस्फोट .एक और द्वैत है साहित्य और विज्ञान का .विज्ञान का सम्बन्ध बुद्धि-धारा से और साहित्य का भाव धारा से जोड़ दिया जाता है ,जबकि विश्व का सम्पूर्ण क्रमबद्ध ज्ञान ही तो विज्ञान है ,वर्गीकरण (साहित्य -विज्ञान -वाणिज्य -ज्योतिष आदि )केवल सुभीते के लिए है ,विस्तारित पठन पाठन ,अद्ध्ययन-अद्ध्यापन के लिए है .द्वैत मेंहमारा मन रमता है ,इसीलिए कामायनी में प्रकृती और पुरूष का रूपक गढा गया है ,वरना जयशंकर प्रसाद ने स्पस्ट कहा है :एक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे जड़ या चेतन (हिमगिरी के ,उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँव ,एक पुरूष ,भीगे नयनों से ,देख रहा था ,प्रलय प्रवाह ,ऊपर हिम था ,नीचे जल था ,एक तरल था एक सघन ,एक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे ,जड़ या चेतन .).कामायनी में इडा प्रक्रति है ,मनु पुरूष .पुरूष का एक अर्थ परमात्मा भी है ,सृष्ठी करता के रूप में ,पुर यानी जो पुर में वास करे वह पुरूष है .उक्त पंकितियों में प्रसादजी सृस्ठी के विनाश का रूपक रचते है ,सारा गोचर और अगोचर जगत जल समाधि ले चुका है ,जलप्लावन का दृश्य है ,ये .आज विज्ञान फ़िर विश्व -व्यापी तापन (ग्लोबल वार्मिंग )की बात कर रहा है ,जलवायु परिवर्तन थ्रेट -परसेप्शन में है .गुरुनानक देव ने कहा :एक नूर ते सब जग उपज्या ,कौन भले कौन मंदे .एक से ही अनेक हैं ,द्वैत की रचना है ,अद्वैत तो स्वयं रचियता है .ऊर्जा-पदार्थ की लीला है ,उसी का अद्ध्ययन भौतिकी (भौतिक -विज्ञान )फिजिक्स कहलाता है ,तो कहाँ है ,ज़नाब साहित्य -विज्ञान का ,धर्म विज्ञान का पार्थक्य .बाइबिल में भी यही किस्सा है ,भाव धारा -बुद्धि धारा ,इन्हें साथ लेकर चलो ,अलग मत करो .धर्म -विज्ञान भी एक ही तत्व है .ज्योतिष शास्त्र ,और ज्योतिर विज्ञान को अलग अलग मान लिया गया है ,अलग हैं नहीं ,सुविधा की दृष्टी से अलग किए गए हैताकि दोनों का विस्तृत अद्ध्ययन हो सके .अस्ट्रोनोमी का प्रिदिक्श्नल पार्ट (प्रागुक्ति सम्बन्धी अद्ध्ययन )ज्योतिष शास्त्र कहलाता है .जबकि प्रायोगिक ,प्रेक्ष्नात्मक अद्ध्ययन अस्ट्रोनोमी कहलाता है .ज्योतिर्विज्ञान (अस्ट्रोनोमी )एक ओब्ज़र्वेश्नल विद्या है ,जबकि ज्योतिष शास्त्र ग्रहों के जैव -मंडल पर पड़ने वाले प्रभावों की प्रगुक्ति (प्राक -कथन ,प्रिदिक्शन ) है ,बेमतलब का विवाद गत दिनों आचार्यों में ,लिख्खादियों (लेखकों में ) हो चुका है .बेशक प्रागुक्ति करने की मेथोदोलाजी ,विधि यकसां नहीं है .विकसितहो एक युनिवर्सल मैथादालाजी ,हर कोई चाहता है ,इसका मतलब यह नहीं है ,विस्व्विद्यालयों में पुरोहिताई (ज्योतिष शास्त्र )के अद्ध्ययन को सिर्फ़ इसलिये निशाने पर लिया जाए ,वह विज्ञान नहीं है ,तब तो साहित्य ,धर्म ,संस्कृति सभी के पाठन को मुल्तवी करना होगा .भाई साहिब :द्वैत में ही मन रमता है ,अभिसार होता है ,मुग्धा भाव है ,द्वैत .

मेरी भवभाधा हरो राधा नागर सोय ,जा तन की झाई परे........... शयाम हरित दूति होय


रंगों का अपना मनो विज्ञान ,मनो -भावः है ,इसीलिए कवि बिहारी (रीतिकालीन कवि श्रेष्ट )ने कहा :मेरी भव भाधा हरो ,राधा नागर सोय ,जा तन की झाई परे शयाम हरित दुति होय .यहाँ श्लेशार्थ है ,द्वि अर्थी है ये दोहा :हे राधा रूपी चतुर नागरी (स्त्री ) मेरी सांसारिक बाधाओं को ,मनस ताप को दूर करो ,जिसके शरीर की परछाई मात्र से श्याम वर्णी कृष्ण प्रमुदित हो जातें है .यहाँ हरा रंग प्रसन्न चित्त होने ,संताप हरण ,प्रसन्न होने ,आनंदित होने का प्रतीक है .लाल रंग शौर्य का तो पीत (पीला) वैभव सम्पन्नता का ,और हरा आह्लाद का ,काला विषाद का प्रतीक होता है ..माता यशोदा भी कृष्ण को काला टीका लगाती थी ,काली कमली वाले कहा गया है कृष्ण को ,इसीलियें ट्रक चालक वाहन के पीछे लिख देते हैं :बुरी नज़र वाले तेरा मुह काला ,देखो मगर प्यार से ...नै नवेली इमारतों पर काला टायर टांग दिया जाता है या फ़िर काला मुखोटा ,कोई तो साक्षात देवी काली का मुखोटा ही टांग देते है ,ताकि राक्षसी प्रवत्ति का नाश हो ,किसी की बुरी नज़र न लगे .तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र ना लगे ,चश्मे बद्दूर ...तुलसी ने कहा :तुलसी हाय गरीब की कभी ना खाली जाय ,बिना साँस के चाम से लोह भस्म हो जाए (आपने गाडुले लुहार लुहारिन को मुसक नुमा बेग में फूंक मारते देखा होगा ,ये थैली बकरी की खाल की होती है ,उसी की साँस से ,बद्दुआ से लोहा भी नस्ट होकर पिघल जाता है गल जाता है .बुरी नज़र और गरीब की हाय खाली नहीं जाती ,ऐसी मान्यता है ,इसीलियें ट्रक चालक लिख देतें है,बुरी नज़र वाले तेरा मुह काला . दरअसल काला रंग सभी प्रकार के विकिरण तरंगों को शोख लेता है ,रोक लेता है ,अवशोषित कर लेता है ,इसीलिए इमारतों पर काले रंग का चिन्ह ,टीका - टोटका कर दिया जाता है ,बचपन में हमारी माँ ने कितनी बार हमारी नज़र उतारी ,इसका कोई हिसाब नहीं ,आपकी भी आपकी माँ -बहिन ,चहेती ने ज़रूर उतारी होगी .ट्रेफिक सिग्नलों को लाल रंग दिया गया है ,जानतें हैं क्यों ?लाल के सिग्नल पर , रंग पर, जब रौशनी (लाईट ,सतरंगी ,सात तरंगी प्रकाश )पड़ता है ,तब तब शेष अन्य रंगरोक लिए जातें हैं ,सबसे लम्बी लाल तरंग यानी लाल रंग रह जाता है ,इसीलियें स्वेत प्रकाश से आलोकित होने पर सड़कों पर बने ट्रेफिक सिग्नल सुलग कर सुर्ख लाल दिखने लगतें हैं ,संध्या के वक्त सूर्य जब अस्ताचल को जाता है ,आसमान रक्त रंगी हो जाता है ,क्योंकि सूर्य की रौशनी हमारी आंखों में दाखिल होने से पूर्व धूलकणों से टकरा टकरा एक लंबा सफर तय करती है ,चारो और बिखर जाती है. ये लाल रंग लालिमा बन ,बाकी सभी रंग रोक लिए जातें हैं ,काला रंग सभी रंगों को रोक लेता है ,सभी भाव -अनुभाव -दुर -भाव तिरोहित हो जातें हैं इसीलियें माथे पर काला टीका जड़ देती है मात् यशोदा .,ताकि किसी दुर्मुख की बुरी नज़र ना लगे .

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

ग़ज़ल :दुनिया आनी जानी देख ,,है ये बात पुराणी देख

दुनिया आनी जानी देख ,है ये बात पुरानी देख /फसल उजडती जाती है ,बादल दूंढ पानी देख /किस किसको हड़काता है ,एक दिन थोड़ा रूककर देख ,/अपने ढंग से चलती है ,दुनिया बहुत सयानी देख /छुटते-छुटते छूटती है ,बचपनकी नादानी देख /खेल बिगड़ता रहता है ,नदी ,आग और पानी देख /पहले जैसी आंच कहाँ ,रिश्ते तू बर्फानी देख /दुपहर की गर्मी भूल ,उतरी शाम सुहानी देख -मेरी ये पहली ग़ज़ल थी जो दैनिक ट्रिब्यून ,चंडीगढ़ से प्रकाशित हुई थी ,इसकी शल्य चिकित्सा डोक्टर .श्याम सखा श्याम ने की थी ,इसे ग़ज़ल का रूप आपने ही दिया था ,विचार और बिखरे अक्षर मेरे थे ,लय- ताल आपने ही दी ,इसे काफिया कहो या रदीफ़ ,मैं क्या जानू ,मैं क्या समझू ,हर पल मानू कल क्या होगा मैं क्या जानू /है अपना भी बेगाना सा / अब ये मानू -वीरेंदर शर्मा (वीरुभाई )

हाँ समझूँ या न समझूँ ?


दोस्तों जायका बदल के लियें आज दो गेस्ट रचनाएं प्रस्तुत कर रहाहूँ .रचनाकार हैं मेरे अजीम्तर दोस्त और गुरुसमान सेवा कालीय सहयोगी डॉक्टर .नन्द लाल मेहता वागीश (प्रखर आलोचक ,व्यंग्यकार ,वैयाकरण कार ,कवि ,ग़ज़लगो )(१)प्रिय तुम्हारे दीर्घ मौन को क्या समझूँ ,हाँ समझूँ या न समझूँ ./अतिमुखर की सीमा भी है मौन ,/यही क्या भाव तुम्हारा /तड़प लहर की कब बुझती ,पा शांत किनारा /इन शांत तटों में ,मर्यादा या उद्वेलन है ,क्या समझूँ ,/हाँ समझूँ या न समझूँ (२)विस्फोटों के विकट जाल में ,मौन छिपा है /संबंधों की बलिवेदी पर ,मौन सजा है /मौन कौन सा तुमने धारा,क्या समझूँ /हाँ समझूँ या न समझूँ (३)रजनी के हाथों में अपनी नींद धरोहर रखकर /घर से निकल पड़ी है ,श्यामा मौन इशारा पाकर /सुखद मिलन की इन घड़ियों को ,क्या प्रीतम की जय समझूँ /हाँ समझूँ या न समझूँ (४)स्पर्श निकट या रक्षा के हित ,तरु शिखरों से आलिंगित /लतिका के उस मिलन भावः को ,शरणागत या प्रेम पगी है क्या समझूँ /हाँ समझूँ ,या न समझूँ । दोस्तों दूसरी रचना उस राजनीती पर सटीक व्यंग्य है जहाँ संवेदनाएं मर चुकीं हैं ,और अब व्यक्ति और समाज की मर्यादा पर भी राजनीती होने लगी है ,ताजा प्रकरण रीता बहुगुणा -मायावती विवाद है ,रचना प्रस्तुत है :सामने दर्पण के जब तुम आओगे /अपनी करनी पर बहुत पछताओगे /कल चला सिक्का तुम्हारे नाम का /आज ख़ुद को भी चला न पाओगे (२)आंधियां अब चल पड़ी हैं ,आग की /ख़ुद को हरगिज़ ढूंढ भी ,ना पाओगे (३)सपने जिनको आज तक बेचा किया /आँख अब उनसे ,मिला क्या पाओगे (४)दांत पैने हैं सियासत में ,किए /क्या पता था अदब को ही ,खाओगे .प्रस्तुति :वीरेन्द्र शर्मा (वीरुभाई ))

मेरे देश में पवन चले पुरबाई ?


क्या इंटेलेकचु़ल अनिमल्स हैं हम लोग ?तभी न सूर्य ग्रहण की आमफहम घटना को जो ग्रहों की अपनी गति का ज़माजोड़ है :हम कई मर्तबा पुरोहिताई दृष्टि से देख लेतें हैं .ये न किया तो वह होजायेगा और वह न किया तो ये होजायेगा .ग्रहण के दौरान बच्चा पैदा किया तो वह अँधा या फ़िर विकलांग इतर जन्म जात विकृतियों का शिकार होगा ,वगेरा वैगेरा (एट सत्रा एट सितरा ),पूछा जा सकता है :पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान जो पशु पक्षी अन्य वन्य जीव बच्चे जनतें हैं वे कोंजिनैतल विकृतियों से ग्रस्त हो जातें हैं ?दीगर है ,ये जीव ,भू कंप ,सूर्य ग्रहण जैसी प्राकृत घटनाओं को हमसे पहले ताड़ लेतें हैं ,उन विशिष्ठ सेसरों (संवेदकों )की मदद से जो पृकृति ने इन्हें दियें हैं .यह भी बहुत अच्छा है :न ये पंडित -ज्योतिष्यों के संपर्क में हैं ,न अंध विशवास खरीदने में इनका यकीं है .२२जुलाइ ,२००९ का अप्रितम सूर्य ग्रहण आया भी और गया भी ,लेकिन मेरे देश में कुछ अभिज्य गैर -जान कार गरीब लोगों ने अपने जन्म जात मंदबुद्धि बालकों को जो डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त थे ,गले तक मिटटी खोद कर जमीं में गाड़ दिया ,गनीमत है ,सुपुर्दे खाक नहीं किया ,इन्हें उम्मीद थी :सूर्य ग्रहण के दौरान बच्चों को जमीं में दबाने से इनका "आई क्यू ",बुद्धि कोशांक बढजायेगा ६० से बहुत ऊपर हो जाएगा .कुछ लोगों को यकीं था :इस दरमियान आसमान से माइक्रोब्स (सूक्ष्म जीव बरसेंगे ),खाद्य सामिग्री संदूषित हो जायेगी ,मेरे देश के विज्ञानियों ने इस मिथक को तोड़ने के लिए ग्रहण के दौरान जन समुदाय के बीच खाया पीया.अलबत्ता सामिष भोजन ग्रहण के दौरान लेना वाँछित नहीं है .ग्रहण के दौरान जीव को जिबह (स्लोटर ) करने की प्रकिर्या के दरमियान गोश्त में खून के थक्के बन सकतें हैं ,मॉस संदूषित और टोक्सिक (विषाक्त ) हो सकता है .आपकी सृद्धा है तो ज़रूर स्नान ध्यान कीजिये ,पाप नही कटेंगे ,(करम गति टारे न तरे....) शरीर ज़रूर शुद्ध हो जाएगा इसमें भी शक है ,नदी नाले संदूषित हैं , इ -कोलाई का डेरा है ,गंगा जल में ,इतर टोक्सिक वेस्ट है ,रसायन हैं ,चर्म रंगाई उद्योग का कचरा है .सूर्य ग्रहण से न रिसेस्सन (आलमी मंदी )घटेगी न बढेगी ,जैसी की ज्योतिष शास्त्र (प्रिदिक्श्नल अस्ट्रोनोमी ) के कई पंडितों ने प्रागुक्ति की है ,जलवायु परिवर्तन तो हमारी अपनी करतूतों से होता है ,दीर्घावधि में ,किसी सूर्य ग्रहण से नहीं .होता तो हमारे विज्ञानी ,क्षात्र ,उद्योग से जुड़े लोग भारी धन राशिः खर्च के कुदरत के इस बिरले नजारे को देखने ,केमरे में कैद करने विशेष एक्लिप्स फ्लाईट एस २ २२७९ में सवार होकर एस्ट्रो -टूरिज्म का मज़ा नहीं लेते .अर्थ नारायांस्त्रम है सूर्य ग्रहणसे ,हमारी ग्रहों की गति ,सोलर प्रोमिनेंसिस (सौर ज्वाला ) ,सौर किरीट ,सौर मुकुट ,सौर ताज ,कोरोना सम्बन्धी ज्ञान में इजाफा हुआ है ,हम प्रकिर्ति के कूट संकेतों को पकड़ रहें हैं ,बे शक हममें से कई "आँख के अंधे नाम नैन सुख है ",बुद्धिमान पशु हैं ,हममें से कई लोग . अरे साहिब ४ मिनिट में (पूर्ण सूर्य ग्रहण की अवधि ,भारत में ) होता भी क्या ?

एक और जेट लेग


हालफिलाल ही मिशिगन राज्य के शहर देट्रोइत के उपनगर कैंटन से लौटा हूँ ,एक जेट लेग से बाहर आगया हूँ (सर्कादियन रिदम ) ठीक से चलने लगी है ,लेकिन एक और जेट लेग की चपेट में आगया हूँ .पहली मर्तबा जब गया था ,बच्चे अपार्टमेन्ट में थे ,ज़िन्दगी का स्वरूप और था ,मौज मस्ती की चर्चा थी ,मौजमस्ती भी थी ,सान्होज़े से लेकर (कलिफोर्निया )नेवादा राज्य के रेनो तक सैर कर आया था ,सैनफ्रांसिस्को ,लेक टाहो ,ओहायो में सेडर पॉइंट ,पुट इन बे एक छोर से दूसरे तक कई राज्यों की खाक छानी ,कहीं कोई तनाव नहीं था ,न तनाव का वायस (कारक ) ,इस मर्तबा एक तो इन ३-४ सालों में बच्चों की ग्रिहिस्थी का स्वरूप बदला ,जिंदगी के तकाजे बढे ,यहाँ तक सब ठीक लेकिन आलमी मंदी (ग्लोबल रिसेस्सन ) का दबाव पारिवारिक दबावों से बढ़ कर था ,दीगर है ,फ़िर भी ,वाशिंगटन डी सी तक पित्त्स्बर्ग रुकते रुकाते टहल आए ,ओल्ड सिटी आफ अलेक्सेन्ड्रिया की सैर की ,लेकिन इस मर्तबा पैसे धेले का हिसाब था ,फिजूल खर्ची उतनी न थी .फिजूल खर्ची की आदत भी छुटते-छुटते छुट -ती है .हर तरफ़ एक शोर था :यार तेरी नौकरी ठीक चल रही है ,इस महीने कितना परसेंट पे कट है ?भाभीजी की नौकरी का क्या हुआ ?"घर पर हैं "-ज़वाब मिला ,बच्चों का प्री -स्कूल ५से घटाकर तीन दिन कर दिया है .आज एक अच्छी ख़बर पढ़ी :"हंड्रेड थिंग चैलेन्ज "-डेविड ब्रुनो .आप सान डिएगो में कंप्यूटर एक्जीक्यूटिव है .आपने प्रस्तुत किया है :किफायत शारी का दर्शन .आपके पास कितनी चीजें है ,क्या यही ,इतना भर ही व्यक्ति की पहचान है .यदि नहीं तो जिंसों की संख्या मुक़र्रर (निर्धारित )कीजिये ,इस दौर में ये इसलिए भी ज़रूरी है ,प्रकिर्ति के साथ हमारी लय ताल ,हमारा संतुलन टूट रहा है ,एक और जेट लेग में फस गए हैं हम ."गर्दिशे ऐयाम तेरा शुक्रिया ,हमने हर पहलू से दुनिया देख ली .ग्लोबल रिसेस्सन का शुक्रिया अता कीजिये ,डेविड ब्रुनो का ध्यान आधुनिक सन्दर्भ में फ़िर "सादा जीवन उच्च विचार की ओर गया है "गांधी जी जीवित हैं ,उनका दर्शन भी ".हमारे बच्चे भी संभलेंगे ,इधर फ्लैट से निकल कर अपनी कोठी में चले आए ज़रूर हैं ,किश्तें बढ़ गईं है ,पहले के बनिस्पत .डेविड ब्रुनो को पढ़ना ही नहीं गुनना भी होगा .

बुधवार, 22 जुलाई 2009

भारतीय संस्कृति में कमल पुष्प का महत्व क्यों ?


भारत का राष्ट्री पुष्प है कमल का फूल बहुत दिन नहीं बीतें हैं ,भारत के झील तालाब विविध रूप वर्णी कमल दल से आच्छादित रहते थे .सत्यम -शिवम् -सुन्दरम का रूपक रचता है ,कमल पुष्प .कमल हस्त ,चरण कमल ,कमल सा खिला खुला दिल ये उसी परमात्मा के ही तो गुन धर्म है .कहा गया :चरण कमल वृन्दों हरिराई ,जाकी कृपा पंगु ,गिरी लंघे ,अंधे को सब कुछ दर्शाइन.वेदों पुराण में कमल का गायन है ,प्रशंशा है .विविध कला रूपों में ,आर्किटेक्चर में कमल मुखरित है ,दिल्ली और पोंडिचेरी (ओर्लेविले विलिज )में लोटस टेम्पल भवन निर्माण को नए आयाम देता है .पद्मा ,पंकज ,नीरज ,जलज ,कमल, कमला ,कमलाक्षी आदि नाम सबने सुने हैं .लक्ष्मी कमल पुष्प में विराजमान है ,उनके हाथ में भी कमल शोभता है .सूरज के उगने के संग खिलता है कमल दल और अस्त होने पर pankhudiyaan बंद हो जातीं हैं .ज्ञान के प्रकाश की प्राप्ति पर ठीक ऐसे ही हमारा मन खिलता विस्तारित होता है ,गांठे (हीन भावना )खुल जातीं हैं ,मन मन्दिर की .तभी तो कहा गया :शीशाए दिल में छिपी तस्वीरे यार जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली .यार यानि परमात्मा .सूफी वाद में तो परमात्मा को बहुरिया ही कह दिया गया है .आशिक माशूक संवाद ही ग़ज़ल है हुजुर .कीचड़ में ,दलदली प्रदेश में भी पुष्पित होता है कमल ,पंक उसका स्पर्श नहीं करता (आत्मा भी कमल के समान सांसारिक वासनाओं से निर्लिप्त रहे ऐसा है कमल का आवाहनहै .ज्ञान की प्राप्ति पर मन का मेल मिट जाता है ,कमल की पंखुडियां (कलियाँ )कब पंक का स्पर्श करती हैं ?अंतस की पवित्रता का प्रतीक है कमल .ज्ञानी पुरूष के तमाम कर्म उसी इश को समर्पित होतें हैं इसीलियें वह सुख दुःख में समान भावः बनाए रहता है ,सदेव ही प्रसन्न रहता है .यही संदेश है कमल का .पाप से घृणा कराओ ,पापी से नहीं .जो ज्ञानी के लिए सही है उसी का अनुकरण तमाम साधक फ़कीर आम जन करें .योग विद्या के अनुसार हमारे शरीर में ऊर्जा के केन्द्र हैं ,सभी का सम्बन्ध लोटस से है ,कमल जिसमे निश्चित संख्या में पिताल्स हैं .सहस्र चक्र में १०००पितल्स हैं ,यह योग साधना की वह अवस्था जिसमें योगी को ज्ञान प्राप्त हो जाता है ,इश्वरत्व से से संपन्न हो जाता है ,वह .पद्माशन की मुद्रा में बैठने का विधान है ,साधकों को .विष्णु की नाभि से निसृत कमल से ब्रह्मा और ब्रह्मा से सृष्ठी की उत्पात्ति हुई बतलाई जाती है .यानि सृष्टि करता से सीधा सम्बन्ध ,संपर्क ,कोन्नेक्टिविटी है ,कमल की .हॉटलाइन है दोनों के बीच .जाहिर है स्वयं ब्रह्मा का प्रतीक है कमल .स्वस्तिक चिन्ह भी इसी कमल से उद्भूत हुआ माना जता है .इसीलियें तो ये अजीम्तर पुष्प राष्ट्रीय है .

भारतीय संस्कृति में ॐ ध्वनी का महातम्य क्या है ?


भारत में यदि कोई एक शब्द अब तक सबसे ज्यादा उच्चारित हुआ है तो वह ॐ है .हमारे तन मन हीनहीं पारिस्तिथि -पर्यावरण ,तमाम तरह के एको सिस्टम पर भी इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है .ज्यादा तर वैदिक मंत्रो ,रिचाओं ,प्रार्थनाओं का श्री गणेश इसी आखर ॐ से होता है ,यहाँ तक के स्वयं साड़ी कयानात ,साड़ी सृष्ठी ,यूनिवर्स का आरम्भ भी इस बीजाक्षर ॐ से ही हुआ माना जाता है .ॐ ,हरी ॐ ,ॐ शान्ति अभिवादन (राम राम )के बतौर भी चल निकला है .ॐ का जाप ध्यान बन गया है .इसका रूप आकार पूजन चिंतन में आ बसा है .शुभ ,मांगलिक चिन्ह है ॐ .आख़िर ॐ जाप क्यो ?परमात्मा का सार्देशीय ,सार्वकालिक (यूनिवर्सल) नाम है ॐ .यह अंग्रेजी वर्णमाला के तीन अक्षरों "ऐ" " यु " और "एम् "का जमा जोड़ है .धवन विज्ञान (फोनेतिक्स )की बात करें तो ऐ की ध्वनी अराउंड से है ,यु जैसे पुट में है और एम् जैसे मम में है (माम ).ऐ स्वर्तंत्री के आधार ,मूल यानि बेस से उपज रहा है ॐ में ,शेष ओष्ठ्य हैं ,लिप्स को बंद कीजियेगा यु की आकृति बन जायेगी ,खोलियेगा होठों को ,तमाम ध्वनियाँ जो ॐ से उपज्तीं हैं ,एम् में संपन्न होती हैं .ये तीनो अक्षर (ऐ यु एम् )जागृत अवस्था (अवेकिंद )स्टेट ,सुप्तावस्था तथा गहन निद्रा को दर्शातें हैं .त्रि -देव ब्रहमा -विष्णु -महेश का रूपक रचते , हैं ये :ॐ परमात्मा इन है इनसे परे भीye ध्वनियाँ और aum .parmatma in सब में भी hai inse pare bhi है .परमात्मा का निर्गुण निराकारी रूप मुखरित होता है दो ॐ ध्वनियों के बीच.प्रणव है ॐ अर्थात वह ध्वनी जिसे परमात्मा प्रसन्न होतें हैं ,वेदों का सार भी यही ध्वनी ॐ है .भगवान् ने कहा :ॐ और अथ और ये कयानात ,सृष्ठी अवतरित हो गई .इसीलियें हर शुभ काम की शुरुआत इसी ॐ से की जाती है ,और समापन ॐ शान्ति से ,.ॐ जाप में मदिरों की घंटी का आवर्तन ,गुंजन रिवरबरेशन है .मन को प्रशांत कर देता है ॐ (चित्त प्रशामक है ॐ ),इसीलियें इसके अर्थ और रूप का चिंतन और ध्यान किया जाता है .ॐ गणेश का प्रतिक है ,इस अक्षर की संरचना में उपरी कर्व गणेश जी के सर का ,निचला उनके उदर का और बगलिया (पार्श्व कर्व ) उनके ट्रंक को रूपायित करता है .और चन्द्र बिन्दु ,मोदक यानि लड्डू का प्रतीक है .जीवन का साध्य और साधन है ॐ ,ये भौतिक संसार और इसके पीछे का सच भी यही ॐ है ,भौतिक और पराभौतिक ,आकारीय और निराकार ,पाकीजा ,पवत्र तं भी यही है .बड़ा ही सुंदर ये मन्त्र मनहर ॐ शान्ति ॐ .

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

शान्ति ,शान्ति ,शान्ति तिन बार क्यों ?

त्रि -वाराम सत्यम ,अर्थात जो बात तीन बार कही ,दोहराई जाए वह सच हो जाती है (या उसे सच मान लिया जाता है ,प्लेसिबो इफेक्ट आफ दा ड्रग ), कचेहरी में कहा जाता है :जो भी कहूँगा सच कहूँगा ,पुरा सच कहूँगा और सच के अलावा कुछ नहीं कहूँगा .तलाक़ ,तलाक ,तलाक कहने से तलाक हुआ मान लिया जाता है ,त्रि -वाराम आग्रह मूलक है ,आवेग बढ़ाने के लिए किसी भावः का ,भावदशा का एक शब्द तीन मर्तबा दोहराया जाता है ,इसीलिए कहा जाता है :शान्ति शान्ति ,शान्ति .शान्ति की उत्कट अहिलाषा का द्योतक है ,शान्ति ,शान्ति ,शान्ति का दोहराव .व्यक्ति का मूल स्वभाव (होना मात्र )शान्ति है (आत्मा का बुनियादी गुन ,शान्ति है .कोई चीज़ जब तक अपनी जगह कायम रहती है ,जब तक विक्षोभित न हो ,उसे आंदोलित ,डिस्टर्ब न किया जाए ,विज्ञान में इसे जड़त्व (जड़ता या इनर्शिया )कहतें हैं .अध्यात्म की शब्दावली में शान्ति .अशांत होने पर जब विक्षोब कारी बाहरी कारक ( बल या फोर्स ) हठालिया जता है ,व्यक्ति शांत हो जाता है ,स्वभाव गत स्तिथ होजाता है .इसीलियें कहा जाता है :विस्फोटों में मौन छिपा है .शान्ति हमारे अन्दर बाहर के (मानस )आन्दोलन को रेखांकित करती है .शान्ति तो पहले थी ,पहले से ही थी ,आन्दोलन बाहर से आया है .हर कोई शान्ति चाहता है ,क्योंकि शान्ति ही प्रसन्नता है ,हमारा अपना अंतस ही उसे आच्छादित किए रहता है .बिरले ही झंझाओं से घिर जाने पर भी शांत रहतें हैं ,यही योग की स्तिथि है .कुछ और हर दम "विघ्न संतोष बन अपने होने की ख़बर देतें हैं ,तो कुछ ट्रबुल- शूटर्स भी होतें हैं विपदा से घिर जाने पर मात्र साधना ,आराधना ,प्राथना करतें हैं ,मूल मन्त्र है :शान्ति ,शान्ति ,शान्ति .आधिदेविक आपदाओं (प्राकृत आपदाओं )यथा ,भू कंप ,बाढ़ ,तुषारापात ,ज्वाला मुखियों का फटना हमारे बस की बात कहाँ ,कुदरत की लीला कह्देतें हैं हम इनको .आधी भौतिक कारक हैं :प्रदुषण ,आदमी की आदमी से भिडंत ,दुर्घटना ,अपराध .आधाय्त्मिक (तन मन का संताप ,साइको -सोमाटिक बीमारियाँ .तीन बार कहिये शान्ति ,शान्ति ,शान्ति ,पहली मर्तबा अदृश्य ताकतों को बल पूर्वक ,दूसरी मर्तबा मृदु स्वर में परिवेश को ,आस पास को और तीसरी मर्तबा धीरे से ,स्वगत कथन सी ख़ुद को संबोधित होती है :शान्ति .

आरती वंदन क्यों ?


प्रत्येक पूजा अर्चना का आखिरी मुकाम होता है ,आरती ,तभी मांगलिक अवसरों की पूजा संपन होती है ,चाहें किसी विशेष अतिथि के स्वागतार्थ हो या महात्मा के आगमन पर ,आरती घंटियों अन्य वाद्यों की ताल पर गाईजाती है .पूजा के सोलह चरणों (षोडश उपचारों )मैं से एक है ,आरती .इसीलिए इसे ,मंगला -निराजानाम (मंगला निरंजन )पावन-प्रखरतम ज्योति भी कहा जाता है .आरती की थाली में जलती दीप शिखा को ,दाहिने हाथ में थाली थामे क्लोक -वाइज़ ,वेव (तरंगायित )किया जाता ,दक्षिणा वर्त घुमाते हुए आराध्य के ,परमात्मा के अंग प्रत्यंग को आलोकित किया जाता है ,इ दरमियाँ भावावेश में या तो हमारी पलकें बंद हो जाती हैं या फ़िर हम सस्वर पाठमें शरीक हो जातें हैं ,कई मन्त्र जाप करने लागतें हैं .उसकी सुंदर छवि हमारी प्राथना को एक सात्विक आवेग प्रदान करती है .आरती संपन होने पर थाली सबके सामने लाइ जाती है ,बारी बारी से हम अपनी हथेलियों में उस प्रकाश को लेकर अपने नेत्रों ,मस्तक ,और सर पर लगातें हैं .यही खुली आंखों का मेडिटेशन है ,उसके अप्रतिम स्वरूप का स्मरण है ,धुप दीप फल फुल उसे अर्पित करने ,मूर्तियों को सुंदर पोशाकों से सज्जित से कर हम उसके रूप की आराधना करतें हैं .हमारा मन बुद्धि ,सम्भासन प्रखर हो उसके तेज से आलोकित हो इसीलियें हम उसके मूर्त रूप को आलोकित करतें हैं ,उसका रिफ्लेक्शन ही हमारा प्राप्य है .इसीलियें हाथ को आँख मस्तक सर तक लातें हैं ,आरती के शिखर से ,लो से .सामूहिक गायन ,वादन ,शंख धवनी ,घंटीकी माधुरी हमें अन्दर तक आंदोलित कर देती है ,आप्लावित करदेती है ,प्रेम से .कपूर (केम्फर )जलने का ,आरती के वक्त आरती की थाली में कपूर के जलाने का एक विशेष महत्व है ,ज्ञान की ज्योति से आलोकित हो हमारी तमाम वासनाएं पुरी तरह दहन हो जाती हैं ,कपूर का जलना ,पूर्ण दहन है ,कपूर जलकर भी अपने आस पास सुरभि फैला देता है .समाज और अध्यात्म सेवा में कपूर की तरह जल कर भी सुवास फैलाओ .आरती के वक्त कईयों की पलकों के कोटर बंद हो जातें हैं ,यह अपने ही दिव्य रूप का अन्तर मन की आंखों से दर्शन का सोपान है .परमेश्वर को आरती की लो से आलोकित करना ,आत्म रूप ज्योति ,परमात्म रूप परम ज्योति ,का अभिनन्दन स्मरण है .इसी ज्योति से तारा चन्द्र ,सूर्य आलोकित हैं ,चाँद हमारे मन मस्तक का ,सूर्य बुद्धि तत्व (इन्तेलेक्त ) का ,और अग्नि ,लो ,सम्भासन का देवता है .ज्ञान अग्नि से ही वाणी में सरस्वती का वास आता है .वागीश बनाती है ,ज्ञान अग्नि .परम चेतना है परमेश्वर ,मन बुद्धि सम्भासन से परे है ,उसीके नूर से सूरज ,चाँद तारा ,आलोकित हैं ,सिमित स्रोत हैं प्रकाश के ,और इश्वर का प्रकाश वहाँ भी है (ज्ञान ज्योति )जहाँ चाँद तारा सूरज नहीं हैं ,नहीं पहुँच सकते .में इस लघु दीप से उसे कैसे आलोकित कर सकता हूँ .सभी और उसी का प्रताप है ,इसीलिए दुष्यंत कुमार जी ने कहा होगा ,देखिये उस तरफ़ ,उजाला है ,जिस तरफ़ ,रौशनी नहीं जाती .

तुलसी की पूजा क्यों ?


भारतीय घरों में तुलसी पादप का डेरा रहा है ,आँगन के बीचों बीच,कोर्टयार्ड के आगे या फ़िर पिछवाडे इसका वास होता था एक वेदी में .आज भी ये गमलों में मौजूद है .सुबह शाम स्तुति के बाद दिया जलाया जाता है तुलसी को अर्पित .आराध्य देव का प्रसाद बनता है तुलसी का पावनपत्ता .दक्षिण भारत में देवता को chadhaaya jata hai तुलसी का पौधा ,ये अकेला ऐसा पादप है जो पुनर प्रयोज्य है ,स्वयं शुद्ध हो जाता है .भागवानvइष्णु और उनके अवतार रूपों को अर्पित किया जाता है तुलसी का पौधा .जो अतुलनीय है ,वह तुलसी है .(तुलना नास्ति अथेवा तुलसी ).किम्वदंती है ,कथा है :तुलसी चंद्रचूड की पत्नी थी ,नटखट कृष्ण ने इन्हें अपने मोहपाश में आबद्ध करना चाहाथा ,इन्होने कुपित हो लोर्ड कृष्ण को शाप दिया "शालिग्राम "बन जाने का .तभी से कृष्ण का एक रूप शालिग्राम भी है जिसकी पूजा होती है .कृष्ण तुलसी के सदाचरण और मर्यादा से आप्लावित हो उठे ,आशीष दिया ,तुलसी को एक स्तुत्य पादप हो जाने का ,आज कोई भी पूजा अर्चना तुलसी के बिना संपन्न नहीं होती ,अधूरी समझीं जाती है .ऐसा है तुलसी का महातम्य .लक्ष्मी रूपा है तुलसी ,विष्णु जी की संगिनी .बाकायदा लोग विधि विधान से तुलसी का विवाह रचातें हैं .परमेश्वर के आशीष से तुलसी को ये स्थान प्राप्त हुआ .एक और रोचक वृतांत है ,तुलसी के सन्दर्भ में :एक बार सत्य भामा ने भगवान् कृष्ण को अपनी धन सम्पदा से तौलने की चेस्थ्था की ,साडी दौलत चढ़ गई ,पलडा कृष्ण की और झुका रहा ,तब रुकमनी ने भक्ति भावः से तुलसी का एक पत्ता दौलत वाले पलडे में रख दिया .दोनों और का भार बराबर हो गया .सत्य भामा की साड़ी दौलत एक तरफ़ और तुलसी का एक पत्ता एक तरफ़ .भक्ति भावः से अर्पित तुच्छ से तुच्छ चीज़ बेमिसाल बन जाती है ,सवाल छोटे बड़े का नहीं है ,भावः का है .आज तुलसी का औषधीय पादप कामन कोल्ड से लेकर एच आई वि एड्स तक की दावा बनाहुआ है .बहुविध उपयोगी है तुलसी का बिरवा .दुर्भाग्य देश का ,आज की स्तिथि देखिये :तुलसी के पत्ते सुखें हैं ,और केक्टस आज हरे हैं ,आज राम को भूख लगी है ,रावन के भण्डार भरें हैं ।

मंदिरों में घंटे घड़ियाल क्यों बजाये जातें हैं ?


क्या भगवानजी निद्रा मग्न है ,घंटे बजाकर हम उनेह जगातेंहैं या फ़िर अपने आने की ख़बर देतें हैं .लेकिन परमात्मा तो सदेव ही चेतन्य स्वरूप है ,अंतर्यामी है ,हम उसे क्या जगायेंगे ,उसे हमारे आने की भी ख़बर है .वह तो सर्व ज्ञाता है ,उससे छिपा क्या है ?मन्दिर मस्जिद गुरद्वारे हमारा अपना घर है ,घर आयें हैं तो अनुमति कैसी ?इस्वर तो सदेव ही हमारे स्वागत के लिए तैयार है .दरअसल घंटे के नाद से ॐ स्वर धव्नित होता है ,जो अन्दर बाहरसे सारे प्रांगन को आलोडित करता है ,अवांछित आवाजों से निजात दिलवाता है .इसीलिए खासकर मंदिरों में आरती के वक्त घंटे घड़ियाल बजाए जातें हैं ,शंख फूंका जाता है ,ढोल नगाडे ,अन्य वाद्य स्थानीय चलन के मुताबिक बजाए जातें हैं ,ज्वालाजी (हिमाचल प्रदेश )के मंदिरों में आज भी सहनाई (सहनाई )गूंजती हैं आरती के वक्त ,पुरा परिवेश एक सात्विक संगीत से स्पंदित होने लगता है ,घंटियाँ तानपुरा बन जाती हैं .पुरा फोकस (ध्यान )उस इश से लग जाता है तब .घंटियों के ज़रिये मैं आवाहन करता हूँ ,उस परम पुरूष परमात्मा का वो मेरे मन मन्दिर में आ विराजें ,उस दिव्यता को निमंत्रण देता हूँ जो राक्षसी प्रवितियों का नाश करें .याद है ,बचपन में माँ ८४ घंटों वाले मन्दिर में ले जाती थी,भवन कोलोनी ,बुलंदशहर (यु पि ,उत्तर प्रदेश में )स्तिथ है ये मन्दिर आज भी ,लेकिन आज माँ नही है उसकी विरासत है हमारे साथ ..वह भी तो भगवती रूपा थी .

सोमवार, 20 जुलाई 2009

भारतीय संस्कृति में उपवास की महत्ता क्यों ?


भारत में सप्ताह के सातों दिवसों में से कभी भी लोग अपनी सृद्धा भक्ति ,आराध्य देव के हिसाब से उपवास रख लेतें है ,सोम के दिन शिव भक्त ,मंगल को हनु -मान ,बृहस्पति को साइन बाबा और बृहस्पति देव का दिन तो शुक्र वार संतोषी माँ को समर्पित ,शनि को शनि का व्रत ,रवि को सूर्य की उपासना ,अलावा इसके साल भर मनमाफिक तीज -त्योंहार व्रत उपवास ,साल में दो बार नवरात्र (मुस्लिम भाइयों में रमादान का महिना रोजों के निमित्त है .कभी देवुथ्थान एकादशी का वर्त तो कभी पूरनमासी (पूर्णिमा ),यहाँ वरतों का डेरा है गाहे बगाहे .क्या व्रत खाद्य सामिग्री बचाने का उपादान है ?या स्वाद बदल ,चटकारे मांगती जुबान की मांग ?दरअसल उपवास शब्द उपा +वास का योग है .उपा माने निकट तथा वास माने रिहाइश ,रहना .किसके निकट रहना है ?स्वाभाविक तौर पर उस परमेश्वर के ,जो मन और तन दोनों की शुद्धीका ज़रिया बनता है .उपवास सिर्फ़ उपयुक्त आहार चयन का अवसर ही नहीं है ,संकल्प शक्ति को भी बढाताहै कई लोग तो उपवास के दौरान जल भी ग्रहण नहीं करते ,निर्जला रहतें हैं .ज़ाहिर हैं :इन्द्रियों का मालिक बनाता है हमें उपवास .गीता में उपयुक्त उपहार का उल्लेख है ,उपहास पाचन तत्र को विराम देकर उसका विनियमन करता है .सत्य के आग्रह के लियें गांधीजी ने उपवास रखा ,नेता लोग आमरण अनशन पर बैठतें है .सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का नाटक (एकांकी )बकरी उनके उप्वासीय ढोंग की पोल खोलता है :अरे भाई आमरण अनशन नही सिर्फ़ उसकी धमकी देनी है ,भूखा नहीं रहना है ,रोज़ रत को मौसमी का जूस मिलेगा ,उपवास सांसारिक ढोंग से मुक्ति दिलवाता है ,तरह तरह के पकवान खाने के लिए नहीं है उपवास ,और न ही ये डाइटिंग है यहाँ तो संदेश है :सादाजीवन उच्च विचार जो हमें परमेश्वर के निकट लातें हैं ,इसीलियें कहा गया :जैसा अन्न ,वैसा मन ,जैसा पानी वैसी वाणी .इश्वर की याद में लिया गया अन्न सात्विक हो जाता है ,मन और शरीर को शांत करता है उत्तेजित नहीं ,भोजन में रोज़ खपने ,भोजन का चयन करने उसे बहुविध पकाने का समय बचता है ,हमारी ऊर्जा का संरक्षण करता है व्रत .जीवन को (देनन्दिन) एक ब्रेक देता है व्रत .सेहत के लियें व्रत रखिये ,स्वास्थ्य कर भोजन खाइए व्रत रखिये गाहे बगाहे ,तंदुरुस्त रहिएगा ,गारंटी है .यही व्रत का संदेश है ,व्रत रखने का व्रत लीजिये .

भस्म ,विभूति या फ़िर भभूत का चलन क्यों ?


भा और स्मा दो अक्षरों का योग है भस्म भा यानि भरत्स्नम यानि विनस्टकरना ,तू देस्त्रॉयस्मा यानि स्मरण ,याद .जब दुर्गुणों का नाश होता है तब उस परम तत्व (परमेश्वर शिव से हम मिलन मनाते हैं ),उसकी याद आती है .भस्म को विभूति भी कहा जाता है जिसका एक अर्थ है ,ग्लोरी ,उस प्राणी की रक्षा ,उसकी सेहत की हिफाज़त ,बुरी शक्तियों से बचाव का एक कवच .इसीलियें कुछ लोग सिर्फ़ माथे पर ,कुछ बाजुओं के उपरले हिस्से (अप्पर आर्म्स )पर ,सिने पर (चेस्ट )तो कुछ तमाम शरीर पर भस्म मल लेतें हैं .शिव भक्त माथे पर भस्म से त्रिपुंड (तीन समांतर रेखाएं खीच कर बीच में कुमकुम की लाल्बिंदी लगा लेतें हैं .लाल बिंदी को शिव शक्ति (एनर्जी -मैटर )को एक तत्व के रूप मेंरूपायित करती है .मान्यता है कि शंकर भोले अपने तमाम शरीर पर भस्म लगाये rahten हें .darsal भस्म दहन कि किर्या (कोम्बस्चन ) कम्बुस्चन का अन्तिम up पाद है ,अवशेष है .अन्तिम सत्य है ,शिव है जो कभी विनस्ट नहीं होता .होम कर देतें हैं हम yajy कि jyanagni में अपने एहम को एहम केंद्रित एश्नाओं को ,havy samigri की विशेष लकड़ी हमारे jadatv (inertia )की pratik है .हम सिर्फ़ शरीर नहीं हैं ,भस्म lepan इस khayaal से mukti है .शरीर के बारे में तो कहा गया है :haad जले जो laakdi ,kesh जले ज्यों ,ghas ,सब jag jalta देख कर ,kabira bhaya उदास .भस्म हमें याद dilati है ,karm karon ,समय कम है ,सब कुछ वक्त आने पर वक्त की shasvat aanch में जल janaa है shesh रह jani है "भस्म ",asli तत्व ,karm fal क्या किया इस जीवन में जो इतना अनमोल था ?मौत का एक pal ,muaiyan है ,नींद क्यों रात bhar नहीं आती ,iisliyen तुलसी बाबा ने कहा :तुलसी भरोसे ram के रहो ,khat पे soy ,anhoni होनी नहीं ,होनी होय सो होय .यानि pramaad नहीं karm कीजिये उसकी याद में ,chinta नहीं ,chinta चिता समान .भस्म ही srishthi का अन्तिम सत्य है जिसका aavadhik vinash और nirman होता रहता .big bang ,होते रहें हैं होते रहेंगे .shesh bachegi भस्म ,एनर्जी -मैटर soup .भस्म शरीर से atirikt nami sokh लेती है ,सर्दी jukaam से bachati है ,कई aayurvedik davaaon में काम आती है भस्म .भस्म trinetri शिव की याद में lagai jati है ,जो दुःख bhajak है ,mukti data है ,जनम janmantar से chutkara dilvata है ,यही है भस्म lepan का falsafa ,विभूति के piche का दर्शन .होम ,yajy abni का अवशेष है "भस्म ".sadharan राख नहीं है .,विशेष है ,jyan अग्नि का fosil है अवशेष है .

रविवार, 19 जुलाई 2009

पिस्तकों ,कागजपत्रों ,जीवित प्राणियों को हम पाँव नहीं लगाते ,क्यों ?

पुस्तकें हमारे यहाँ सृष्ठी के आरम्भ से ही पूज्य रहीं हैं ,होमोसपिएंस (आधुनिक मानव ) ने भोज पत्रों को भी पूजा है ,फ़िर किताब तो ज्ञान का खजाना हैं ,सभी विद्या पूज्य रहीं हैं ,वर्गीकरण सुविधा की दृष्टि से ही किया गया है ,सभी ज्ञान विज्ञान ही तो है ,ज्योतिष हो या ज्योतिर्विज्ञान (खगोल विज्ञान या अस्त्रोनामी ),या फ़िर धार्मिक ग्रन्थ ,सभी स्तुत्य रहें हैं .ज्ञान की देवी ,सरस्वती है ,विद्या या किसी भी प्रकार की पढने पढाने के काबिल सामिग्री को pair नहीं लगाया जाता ,आकस्मिक तौर पर पाँवकर पड़ जाने पर तत्काल सामिग्री का स्पर्श क्षमा मांगी मांग ली जाती है हाथ का आंखों से mastak कर माफ़ करो "maaf karo विद्या देवी कह दिया जाता है .विद्या की देवी सरस्वती है ,इसीलियें मीठी वाणी बोलने वाले को कहा जाता है :इसकी वाणी में सरस्वती का वास है .और क्योंकि सभी प्राणियों में उसी देवता का वास है ,मानव और मानव देह सप्राण (लिविंग तेम्पिल ) मन्दिर हैं ,इसीलिए बच्चे बड़े किसी को भी पाँवसे छुना,स्पर्श करना वर्जित है ,देवता का अपमान है ,उस आत्मा का अपमान है देह जिसकी अमानत है ,मन्दिर है .ज्ञान को पवित्र माना गया है ,इसीलियें साल में एक मर्तबा कहीं विजय दसमी (दुशेहरा )के दिन तो कहीं सरस्वती पूजा दिवस पर तो कहीं अयोध्या दिवस पर पुस्तकें ,वाहन तथा संगीत वाद्य पूजे जातां हैं .ऊंचा बहुत ऊंचा और पाकीजा मुकाम हासिल रहा है ,विद्या को ,पुस्तक और तमाम पुस्तकीय सामिग्री को .बच्चो को आरम्भ से ही सिखाया जाता है :पुस्तकें आदरणीय हैं ,स्तुत्य हैं ,देवस्वरूप हैं .विद्या देवी है ,वन्द्य है .नालिज इकानामी की बात अब होने लगी है ,भारतीय समाज एक ज्ञान आधारित समाज रहा है .चाहें गीता बांचिये ,या पढिये पुराण(कुरान ),तेरा मेरा प्रेम ही हर पुटक का ज्ञान .

तुलसीदास चंदन घिसें(भारतीय संस्कृति में तिलक का महत्व ?)


परंपरागत भारतीय परिवारों में खासकर दक्षिण भारत में स्नान (बाथ ) के बाद माथे पर तिलक लगाने का रिवाज़ है ,एक रिचुअल (रिवाज़ )के तहत भी महिलायें खासकर तिलक बिंदी माथे पर लगातीं हैं या फ़िर दिन भर कुमकुम की बिंदी माथे पर शोभती है .उत्तर भारत में आतिथ्य सत्कार तिलक लगाकर किया जाता है ,चाहें किसी की बारात हो या सगाई ,लड़की की विदाई ,समधियों की मिलाई हर मौके पर तिलक लगाया जाता है .संतों महात्माओं ,देवताओं की प्रतिमा का मांगलिक अवसरों पर तिलक अभिषेक किया जाता है .मानस की पंक्तियाँ :चित्रकूट के घाट पर भई संतनकी भीड़ ,तुलसीदास चंदन घिसें ,तिलक देत रघुबीर .तिलक परम्परा का अनुमोदन करतीं हैं .आज भी फौजी जब शत्रु से मोर्चे के लिए घर से विदा लेता है ,तो माँ बहिन पत्नी उसको तिलक लगातीं हैं ,यात्रा पर जाने से पूर्व तिलक लगाने को शुभ माना जाता है .बटेयु (दामाद ) का हर मौके पर तिलक किया जाता है .वैदिक काल में तिलक परम्परा का उल्लेख नहीं हैं ,पौराणिक काल में ही ये अस्तित्व में आई .संभवतय दक्षिण भारत से इस चलन की शुरुआत हुई .माथे पे शोभता तिलक एक सात्विक भावः की सृष्ठी करता है .विदेशों में तो यह भारतियों को एक अलग पह्चानदेताहै ,आज आस्ट्रेलिया में खूब करी बेशिंग (भारतियों की पिटाई हो रही है ),करी योरप में भारतियों को कहा समझा जाता हैं ,करी प्रधान है ,हमारा भोजन .कल तिलक भी ऐसे ही समझा जाएगा .वर्ण व्यवस्था के तहत तिलक जाति और व्यवसाय दोनों का प्रतीकबना हुआ था .मसलन पुरोहिताई ,पंडिताई करने वाला ब्राह्मिनचंदन का स्वेत तिलक ,क्षत्रिय कुमकुम का टीका लगाता था .लाल रंग कुमकुम का वीरता ,शौर्य सूचक समझा गया है .वेश्य केसर (हल्दी ) का टीका लगाए रहता था .पीत वर्ण वैभव ,धन धान्य व्यवसाय का प्रतीक बन बैठा .शूद्र माथे पर श्याम भस्म ,कस्तूरी ,चारकोल मार्क लगाता था ,जो सेवा का का प्रतीक समझा जाता था .तिलक धार्मिक आस्था की ख़बर भी देता है .मसलन वेंकटेश्वर (विष्णु भक्त )यू आकार(इंग्लिश ) का टीका लगाता है तो शिवभक्त त्रि पुंड (तीन समांतर रेखाए ,क्षेतिज ) चंदन से माथे पर बनाता है .तीनो रेखाओं के बीचों बीच एक बिंदी भी बनाई जातीहै ,यहाँ तीन रेखाएं त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु -महेश तथा बिंदी शिव का रूपक रचतीं हैं ,त्रिदेवों का भी रचैता शिव हैं ,वह देवों का भी देव है ,एक वही करण हार है ,सर्वोच्च आत्मा (परमात्मा ) है .चंदन हो या कुमकुम या फ़िर भस्म देवता को अर्पण के बाद ही प्रसाद स्वरूप माथे पर लगाया जाता है ,दोनों भवों(भ्रू -मध्य )के बीच ,यही आत्मा का आवास है (हबिटेत) है ,सीट आफ एनर्जी है ,इसी के नीचे मस्तिष का वह भाग है जो हमारी स्मृति ,सोचने के माद्दे( थिंकिंग फेकल्टी ) से ताल्लुक रखता है .योग की शब्दावली में यही भ्रू -मध्य "आज्ञा -चक्र " कहलाता है .यही तिलक हमें अपने शिवत्व आत्म स्वरूप की याद दिलाता है ,पूछता है :शिव बाबा याद है .यदि हम सांसारिक झमेलों में परमात्मा को भूल जाए तो दूसरे के भाल पे शोभता तिलक हमें उसकी याद दिला देता है .इश्वर का आशीर्वाद है तिलक जो हमें सदाचरण की याद दिलाता रहता है .विज्ञान कहता है ,जो भी पिंडजीरो केल्विन तापमान से ऊपर है उससे विद्युत -चुम्बकीय विकिरण (इलेक्त्रोमेग्नेतिक वेव )निकलता रहता है .भ्रुमधय से इस विकिरण का बहुलांश निकलता है .परेशानी की स्तिथि में इसीलिए सर में दर्द हो जाता है ,पेशानी में बल पड़ जातें हैं .तिलककहो या पोट्टू ,चंदन का टीका माथे को सीतलता प्रदान करता है .कोईकोई तो पूरेमस्तक पर चंदन का लेप कर लेतें हैं .बहुरूपा बिंदी (विविध वर्ण) प्लास्टिक बिंदी सौन्दर्य का कृत्रमसाधन तो है ,पर प्लास्टिक की बिंदी में वो बात कहाँ .सौन्दर्य वही जो सर चडके बोले ,चंदन की बिंदी एक सात्विक सौन्दर्य रचती है .

शनिवार, 18 जुलाई 2009

मात-पिता विद्वद जनों का चरणस्पर्श क्यों ?


भारतीय परम्परा में हम नित्य प्रति दिन की शुरुआत मातु -पिता के चरण छू -कर करतें हैं ,बदले में वो हमें आशीष से नवाज़ ते हैं ,स्नेह का हाथ हमारे सर पर रख देतें हैं .नौकरी के लिए ,किसी साक्षात् -कार (इंटर -वू )के लिए जाते वक्त ,परीक्षा की किसी भी घड़ी में हम झुककर उनकी चरण वंदना करतें हैं .इस किर्या में एक और हम अपना अंतरतम ,अन्दर की भावनाओं से आप्लावित होतें हैं ,तो बुजुर्गों के आशीष से एक पाजिटिव स्पंदन हमें अन्दर तक आलोडित ,आंदोलित कर देता है ,जसे इस झुकी हुई मुद्रा में हमारे तमाम शरीर पर एक पाजिटिव वाइब-रेशन की बौछार पर रही हो ,कोई हमें हमारी आत्मा रूपी बेटरी को रिचार्ज कर रहा हो .हमारा अपना प्रोजेक्शन दुगुणित हो हमें वापस मिल जाता है इस प्रकिर्या में .आदमी अपने पैरों पर ही खडा होता है .पैर छुना (पैरों पड़ी ),पायन लागू ,एक तरफ़ उम्र ,परपक्वता को सलाम है ,दूसरी तरफ़ उस दिव्यता ,निस्स्वार्थ प्रेम का स्वीकार है जो बड़ों ने हमें दिया है .माबाप का छाता ,निस्स्वार्थ प्रेमाशीश हमें दुनिया के आंधी तूफानों से बचाए रहता है .चरण स्पर्श उनकी इसी महानता का ,महानता के मूर्त रूप का स्वीकरण है .चरण स्पर्श उस अदृशय डोर का रेखांकन है जिसे प्रेम कहतें हैं और जिसकी डोर से भारतीय परिवार परम्परा से बंधें रहें हैं .बड़ों की सद्भावना (संकल्प ),आशीष से ,जो प्रेमिल हिरदय की गहराइयों से निसृत होतें हैं ,एक सकारात्मक ऊर्जा की बरसात होती है ,यही ऊर्जा हमारे बिगडे काम बना देती है .बड़ों के प्रति सम्मान प्रर्दशित करने के अनेक तरीके हैं :(१)उनके मान -सम्मान में खड़े हो जाना (प्रत्युथान )(२)हाथ जोड़ कर प्रणाम करना (नमस्कार )(३)झुककर बड़ों ,गुरुजनों ,सभी आदरणीयों के पाँव छुना(उप्संग्रहण ) (४) दंडवत प्रणाम यानि पेट के बल हाथों को फैलाकर ,पैरों को जमीं का स्पर्श कराते हुए ,चरणों के आगे की भूमि का वंदन .(शाष्टांग)(५) प्रत्य -अभिवादन यानि प्रति अभी -नंदन .शास्त्रों पुरानो में आख्यान हैं ,किस प्रकार राजे महाराजे भी प्रज्ञा के आगे ,गुरुओं को झुक कर प्रणाम करते थे .जिसके पास जितना आत्म बल ,नेतिक बल होता था वह उसी अनुपात में सम्मान पाता था .वैभव ,वंश नाम (कुल नाम ),नैतिक और अध्यात्मिक बल शक्ति को आदर मिलता था .चरण स्पर्श की एक लम्बी परम्परा रही है .बरकरार रखिये इसे ."दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले ,हम अपने बुजुर्गों का ज़माना नहीं भूले ."पायन लागुन :गुरु गोविन्द दोउ खड़े ,काके लागू पाँव ,बलिहारी गुरु आप की ,जिन गोविन्द दियो ,मिलाय.

नम:ते (नमस्ते ) क्यों करतें हैं ,,आप और हम ?


किसी भी छोटे बड़े ,हमउम्र ,आबाल्वृधों का अभिवादन हम हाथ जोड़कर ,जुड़े हाथ सिने पे रख ,गर्दन झुका कर करतें हैं ,ये हमारी परम्परा गत विरासत .शास्त्रों में पाँच प्रकार से अभिवादन -अभिनन्दन करने का ज़िक्र है .नमस्कारम उनमे से एक है .प्रोस्त्रेशन(साक्षात् दंडवत प्रणाम ) के बतौर हम इससे वाकिफ हैं .दोस्तों को ही नहीं हम दुश्मनों को भी प्रणाम (सलाम )करतें हैं .इसे हमारी संस्कृति थाती कहो या फ़िर पूजा अर्चना की विधि ,अर्थ और निहितार्थ इसके गहरे हैं .नम : ते ,नमन करता हूँ मैं आपको ,विनम्रता से शीश नवा कर प्रणाम करता हूँ ,नत मस्तक हूँ ,आपके लिए .नमस्ते का एक और अर्थ है :"ना माँ " यानि नोट माइन यह एक प्रकार से अपने "मैं "एहम से दुसरे के समक्ष मुक्त है .जुड़े हाथों का सिने पे रखना अपनी अर्थच -छठा लिए है :हमारे दिल मिलें (में आवर माइंड्स मीट ) .असली मिलना तो दिल से मिलना है ,दिलों का मिलना हैं .अपने ही दिव्य अंश ,परमात्म स्वरूप का प्रोजेक्शन ,दुआ सलाम ,नमस्कार ,जो मुझमें हैं वो तुझमें है ,जो तुझमें (आत्म स्वरूप परमात्म है )में है वाही मुझमें हैं .सिने पे रखे जुड़े दो हाथ ,अपना ही स्मरण है ,इसीलिए नयन कटोरे ,पलक बंद हो जातें हैं ,भावावेग में .यह व्यक्ति के दिव्य अंश को प्रणाम है ,आत्म स्वरूप हम सब भाई -भाई हैं ,एक ही पिता शिव संतान .सब में उसी का नूर (दिव्य अंश है ),एका है .अनेक में एक है ,एक ही है .राम राम ,जय-श्री राम ,जय -श्री कृष्ण ,नमो नारायण ,जय -सिया राम ,ॐ शान्ति इसी के विविध रूप हैं .इसीलियें तुलसी दास जी ने कहा :सिया राम में सब जग जानी ,करहूँ प्रणाम ,जोरी कर पानी (प्राणी ).जय श्री राम ,"राम राम भाई ".

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

घर आँगन में पूजा घर क्यों ?

पहले तक़रीबन सभी भारतीय घरों में एक पूजा घर ,एक मन्दिर होता था .परम्परा से जुड़े घरों में आज भी है ,कहीं कहीं आधुनिक कहे समझे जाने वाले घरों में भी है ,कईओं के लियें पूजा गृह एक दकियानूसी चीज़ है .घर में उनके बार और एकता कपूर के सिरिअल्स के लिए अलग कमरा है ,डाइनिंग है ,लाबी है ,बेडरूम हैं ,एक नहीं २-२ ,रेस्ट रूम हैं ,कई कई लेकिन पूजा गृह नहीं है ,इसका होना दकियानूसी होना या फ़िर गैर -ज़रूरी समझा जाता है .दरअसल पूजा घर हमें याद दिलाता है ,हमारा अपना घर भी जो इस धरती पर है ,पट्टे पर है ,उसकी मिलकियत है ,जो सभी आत्माओं का पिता (घर वाला पिता हमारी देह का पिता है )है ,असली मालिक हमारे घर का वही है ,हम अधिक से अधिक केअर टेकर हैं ,घर के मालिक नहीं हैं .ये विचार रस नहीं आता न सही ,कमसे कम वह हमारा खास मेहमान है ,इसीलियें जसे घर के अलग अलग कमरों को हम उनके उपभोक्ता के अनुरूप सजाकर एक आशियाना बनाते हैं ,वैसे ही पूजा घर का एक अलग माहौल रचते हैं,चंदन अगरु ,धूप -दीप ,देव मूर्तियाँ स्थापित करतें हैं ,मन्दिर का एक अलग संस्कार ,एक अलग स्पंदन होता है ,घरके सदस्यों द्वारा नित्य आरती वंदन एक वाइब्रेशन चोदता है ,और इसीलियें पूजा घर में आकर हमारा सारा तनाव कपूर की तरह उड़ जाता है ,आप जानतें हैं ,कपूर (केम्फर पुरा जल जाता है ,अवशेष नहीं छोड़ता ,कार्बन नहीं बचता ,पूर्ण दहन है ये )वैसे ही पूजा घर में हमारा "मैं -भावः ",सारा गुमान गल जाता है .जब कभी तनाव ग्रस्त हों पूजा घर में आकर सो जाएँ (नींद की गोलियाँ वेस्तिजिअल ओरगन (अपेंडिक्स ) की तरह फालतू हो जायेंगी .

भारतीय संस्कृति में नारिअल का बहुविध पूजन -अर्पण क्यों ?

नारिअल एक बहु -उपयोगी वृक्ष है ,जिसका अंग -प्रत्यंग आदमी के काम आता है ,नारिअल का पानी शरीर के इलेक्त्रोलितिक बेलेंस को बनाए रखने के अलावा आवश्यक खनिज लवण एवं कबोहैद्रेट (शर्करा ),गरी (कर्नेल या गिरी ) तेल तथा बाहरी आवरण (रेशे )चटाई (मेट्स )से लेकर रस्सी ,गरीब का छप्पर तक डालने में काम आते हैं .वृक्ष के पत्ते दक्षिण भारतीय थाली बने हुए है ,जो खाने की शुचिता तथा हाइजीन बनाए रखने में मदद गार हैं ,इतना ही नहीं नारिअल का वृक्ष खारे पानी में भी उग आता है ,जड़े खारे पानी को धरती से खीचकर कर्नेल में विद्यमान मीठे सुपाच्य मिनरल वाटर में तब्दील कर देती हैं .नारिअल (फल )साफ़ करने यानी बाहरी रेशा हठाने के बाद हमारी खोपडी (कपाल) सा लगता है .इस पर बने चिन्ह त्रिनेत्री शिव (शंकर )का आभास कराते हैं .जल से भरे ,आम्र पत्तियों से सज्जित कलश पर जब यही नारिअल रखा जाता है ,तब यह हमारे ही शिव रूप का स्मरण कराता है ,पूज्य हो जाता है ,आदर योग्य महानुभावो के स्वागत अभिनन्दन का प्रतीक बन जाता है ,कलश मुख शोभित नारिअल .मांगलिक अवसरों पर नारिअल फोड़ने ,इश अर्पण के बाद प्रसाद स्वरूप बांटने का अलग महत्व है .गर्भ प्रदेश में मौजूद नारिअल पानी हमारी वासनाओं का ,गिरी हमारे दिमाग (ब्रेन ) का प्रतीकहैं इश अर्पण के बाद यही वासना मुक्त हो प्रसाद बन जाता है ,नारिअल का फूटना हमारे एहम का विसर्जन है ,एहम से छुटकारा है (मृत्यु के समय भी कपाल किर्या करके आत्मा को इस शरीर से मुक्त किया जाता है ,घडा फोड़ा जाता है ,ताकि घट में मौजूद आकाश यानि आत्मा ,महा आकाश यानि परमात्मा में विलीन होजाए ).सबसे बड़ी बात :हव्य सामिग्री में आज नारिअल होम किया जाता है .कल तक पशु बलि की प्रथा प्रचलित थी (आज भी कुछ अंचलों में इसका पाशविक चलन है,जैसे कल तक सटी प्रथा भी एक बुराई के रूप में मौजूद थी ,बल -विवाह की प्रथा थी ),नारिअल -अर्पण ने अब पशु बलि का स्थान लेकर हमें हमारी एक आदिम animalstic (पाशविक )प्रवृति -परम्परा से बच्चा लिया है .निस्स्वार्थ सेवा से लेकर समाज शिक्षण का वायस बन गया है ,नारिअल .

आत्म स्वरूप मिटटी का दीया.


साँझ ढले आज भी घर आँगन में ,घर के पूजा घर में ,नियमित पूजा अर्चना के समय मिटटी का दीप प्रज्जवलित किया जाता है .दीये का शरीर माटी के पुतले इंसान का रूपक रचता है ,और दीपक की लओ(फ्लेम ),ज्योति बिदु स्वरूप हमारी आत्मा का प्रतीक है .परमात्मा तो ज्ञान रूपी प्रकाश का ही दूसरा नाम है .वंश (आत्मा )और वंशी दोनों ही ज्योति बिन्दु स्वरूप हैं .स्वभाव तय ज्ञान स्वरूप ,आनंद स्वरूप ,सदा ही चेतन्य (चिन्मय ) हैं .प्रेम स्वरूप हैं .लेकिन देह अभिमान हमें प्रकाश से अन्धकार की और ले जाता है .दीपक का तेल -घी हमारी वासनाओं का और बाती(एहम ,अभिमान ,देहा -अभिमान का रूपक प्रस्तुत करता है ,परमात्मा की याद में जब सुबह -शाम दीपक जलाया जाता है ,तो उसी के ज्ञान से वासनाओं और एहम का विसर्जन हो जाता है ,क्षण भर को हमें अपने आत्मिक स्वरूप का स्मरण हो आता है .और हम ज्ञान के आगे झुक जातें है ,अपने ही मूल स्वरूप में अवस्थित होजाते हैं .ज्ञान ही तो सबसे बड़ी दौलत है ,ऐसी जो बांटने से बढती है .जैसे एक से अनेक दीप जलाते चलो ,ऊर्जा का क्षय नहीं होगा .अज्ञान से ज्ञान की और यात्रा है ,दीप प्रज्जवलन .इसीलिए सभी सांगीतिक ,साहित्यिक ,सामाजिक धार्मिक कार्य क्रमों की शुरुआत दीप प्रज्जवलन से होती है और समारोह के अंत तक यही दीप रोशन रहता है .यह हमारे भावो अनुभावों ,अच्छे बुरे को साक्षी भाव से देखता है .दीप की उपासना इश की ही उपासना है .

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

गर्भ गृह की परिक्रमा क्यों ?

मंदिरों में पूजा अर्चना के बाद प्रदक्षिणा का विधान है ,यहाँ सरोजनी नगर ,नै -दिल्ली में हमारे नजदीक "विनायक मन्दिर" है .लार्ड गणेश के इस मन्दिर में पूजा पाठ के बाद १०८ परिक्रमा गर्भ गृह की भक्त गन करतें हैं .ऐसी मान्यता है ,इससे व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है .प्रदक्षिणा क्लाक वाईस (दक्षिणा वर्त ) करने का विधान है .इसका आशय यह है ,जब हम गर्भगृह (मन्दिर का सबसे भीतरी भाग ,जहाँ ,गणेश प्रतिमा प्रतिष्ठित है ) की परिक्रमा करें तो हमारे आराध्य गणेश हमारे दाहिने हाथ हों .कहा भी जाता है :अमुक अमुक का राइट हेंड है (गाइड है ),मार्ग दर्शक ,भाग्य विधाता है .इसी तरह गणेश हमारा पथ प्रदर्शक ,फोकल पाइंट है .बीकानेर के पास करनी देवी का मन्दिर है (चूहों वाला मन्दिर आम जुबां में )यहाँ भी प्रदिक्षना का विधान है .यहाँ चूहों का साम्राज्य है ,परिक्रमा के समय चूहे आगे पीछे चलते हैं ,काटते नहीं ,क्या विनायक और क्या करनी देवीजी ,सभी मंदिरों में आराध्य की प्रदक्षिणा का विधान है .इसके खास मानी हैं .हरेक परिक्रमा (वृत्त ,सर्किल ) का एक केन्द्र होता है ,बिना केन्द्र के वृत्त का अस्तित्व नहीं ,कल्पना नहीं .वैसे ही इश्वर हमारी जीवन ऊर्जा का ,हमारी आस्था ,कार्य प्राप्ति का केन्द्र है .देनन्दिन पूजा पाठ के बाद व्यक्ति अपने ही गिर्द जब घूमता है ,एक उर्ध्वाधर अक्स के गिर्द (जो सर नाभि से होते टांगो के बीच से गुजरती है )तब वह इस नर्तन (इस्पिं )के दौरान अपने अन्दर विद्द्य्मान इसी इश्वरी अंश की परक्रमा करता है .हम उसी अंशी का ही तो अंश हैं .उसी दिव्य रूप की प्रदक्षिणा है ये ,जिसे हमने मूर्त रूप मन्दिर मैं ला बिठाया है .गणेश परिक्रमा विख्यात है ,तभी से विधान है :मात्री देवो भव ,पित्री देवो भव,आचार्य देवो भव.मानयता है :प्रदक्षिणा के दौरान जन्म जन्मान्तर के पाप कट जाते हैं ,पग -दर-पग .वैसे भी आम संसारी जीवन में हम किसी किसी की परिक्रमा करतें है (छोटे लक्ष्यों के लिए ).प्रदक्षिणा भव्यता लिए होती है ,क्यों की आराध्य देव की याद में संपन्न होती है .

शंख -ध्वनी और नाद ब्रहम

घर हो या मन्दिर या फ़िर कोई अन्य मांगलिक अवसर शंख ध्वनी का भारतीय संस्कृति में अपना महत्व है .हर की पौडी की आरती जिसने देखी है वह इस नाद -ब्रह्म ,ॐ की मांगलिक धवने की और खींचा चला आता है .महाभारत में युद्ध की शुरुआत और समाप्ति इसी धवनी से होती है .मेरा इस धवनी से पहला परिचय तब हुआ जब नन्हा बच्चा था .हमारी नानी ने ८५ वर्ष की उम्र में सधवा के बतौर शरीर छोडा था ,हमारे नाना जिंदा थे ,नानी का पार्थिव शरीर सजा धजा लाल वस्त्र से ढका था ,अर्थी उठी तो शंख धवनी हुई ,लगा एक आत्मा उर्ध्व गामी हो गई ,जैसे कोई जहाँ से उठता है ,तब इस शब्द के मानी भी कहाँ पता थे .कहते हैं जब ब्रह्मा जी ने सृष्ठी का निर्माण किया तब ॐ शब्द प्रस्फुटित हुआ ,यही नाद ब्रह्म था .ॐ मानीश्रीष्ठी (सृष्ठी )और उसके पीछे का सच .मैं एक शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ .वेदों में निहित ज्ञान का यही मूल है ,यही धर्म है ,शंख से ही "थर्था "होली वाटर (मन्त्र अभिसिक्त जल )भक्तों को मुहैया करवाया जाता है ,यही बुद्धि को सच के करीब ले जाता है .शंख धवनी अवांछित शोर ,नकारात्मक को दिमाग से बाहर निकाल कर परिमंडल को अनुकूल बनाती है ,५०० मीटर के दायरे में तमाम पेथोजंस (विषाणु ,जीवाणु ,परजीवी ,इतर रोग कारको )को नष्ट कर देती है .कथा है :शंखासुर देत्तय(दानव ) ने देवों को पराजित कर वेदों को चुरा लिया .और गहरे समुन्दर (एबीस )में जा बैठा .देव भागे भागे विष्णुजी के पास गए ,जिन्होंने "मतस्य का रूप धरा (मतस्य अवतार )और गहरे समुन्दर में गोतालगाया ,शंखा -सुरा के कान की शंखा कारी हड्डी और सर समेत उड़ा दिया .इसी फूंक से ॐ अक्षर फूटा .वेद प्रकट हुए .वेदों का सारा का सारा ज्ञान इसी ॐ शब्द की व्याख्या करता है .शंखासुरा से ही शंख शब्द की व्युत्पत्ति हुई .विष्णुजी के इसी शंख को "पान्च्जन्नय"के नाम से जन जाता है .बीजेपी के पार्टी ओरगन (मुख पत्र ) का नाम भी यही पान्च्जन्नय है .धर्म और चारों पुरुषार्थ ,धर्मानुकुल आचरण का प्रतिक है शंख नाद .अ -धर्म पर धर्म की विजय का आवाहन है ये मंगल धवनी ."ये धवनी मंगल धवनी ,ॐ शान्ति ,ॐ ,बड़ा ही सुदर ये मन्त्र मनहर ॐ शान्ति ॐ ".भारत जो छोटे छोटे गावों में आबाद है ,यहाँ मंदिरों में जब शंख बजता था ,तो ये "ट्रेफिक ब्रेक " का प्रतिक बन जाता था ,ॐ ध्वनी सारे गाँव में फेल जाती थी ,सारे काम के बीच वो क्षण इश आराधना को समर्पित हो जाता था .आज शहरी शोर में दब गया है ,ये नाद .