क्योंकि एम् एस के लक्षण ब्रोड रेंज लिए होने के अलावा अति सूक्ष्म रूप लिए रहतें हैं इसलिए कई मर्तबा महीनों क्या सालों साल भी पकड़ में नहीं आतें हैं .नर्वस सिस्टम के रोगों के माहिर न्यूरोलोजिस्ट इसीलिए पूरा पूर्व वृत्तांत जुटाने के अलावा पूरा कायिक (फिजिकल )और स्नायुविक परीक्षण (न्युरोलोजिकल परीक्षण )भी करतें हैं ।
निम्न परीक्षण किये जातें हैं :-
(१)मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एम् आर आई ):इसमें पहले इंट्रा -वीनस गादोलिनम देने से ब्रेन लीश्जंस की शिनाख्त (प्लाक )तथा यह कितने समय से बने हुए हैं यह भी पता चल जाता है ।
(२)इलेक्ट्रो -फिजियोलोजिकल टेस्ट :इससे प्रेरित विद्युत् दाब (पोटेंशियाल्स)नाड़ियों में आगे बढ़ते प्रसारितहोते विद्युत् स्पंदों का जायजा लेती है .देखना यह होता है इन स्पंदों की नाड़ियों से आवा- ज़ाही निर्बाध हो रही है या बाधित हो रही है .
(३ )सेरिब्रो -स्पाइनल फ्लुइड परीक्षण :हमारे दिमाग और रीढ़ रज्जू को जो तरल घेरे रहता है इसमें एब -नोर्मल सेल्स (एंटी बॉडीज ),या अ -सामान्य रासायनिक पदार्थों की मौजूदगी मल्तिपिल स्केलेरोसिस का संकेत हो सकती है .इस परीक्षण में यही पता लगाया जाता है ।
एम् एस के रोग निदान को सुनिश्चित करने में ये तीनों ही परीक्षण न्यूरोलोजी के माहिर के हाथ मज़बूत करतें हैं .समय के साथ साथ एम् आर आई में आने वाले बदलाव भी बहुत कुछ कह जातें हैं .दोहराया जाता है इन परीक्षणों को क्योंकि यह एम् एस समय के साथ बढ़ते चले जाने वाला एक अप -विकासी रोग है नर्वस सिस्टम और स्पाइनल कोर्ड का ।
(ज़ारी....).
रविवार, 29 मई 2011
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