शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

२०३० तक उत्तरी ध्रुव नगा (हिम -शून्य )हो जाएगा ?

उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के माहिरों ने पता लगाया है -इस क्षेत्र से सेम्क्दों बरसों से जमा व्यापक हिम चादर का सफाया करीब करीब हो चुका है ।
तब क्या अब यह मान लियाजाये -इस क्षेत्र के जहाजरानी मार्ग (शिपिंग रूट्स )पर आवाजाही शुरू होने जा रही है ?
८० मीटर तक मोटी यह हिम चादर उस पौराणिक समुंदरी मार्ग को रोके हुई थी जो -अंध महा सागर से प्रशांत महासागर तक जाता है .,और उत्तर -पश्चिम मार्ग (नॉर्थ -वेस्ट पैसेज )के नाम से जिस की गौरव गाथा का गायन हुआ है ।
आर्कटिक सिस्टम्स साइंस ,यूनिवर्सिटी ऑफ़ मनितोबा ,कनाडा के डेविड बार्बर हाल ही में उस अभियान से लौटे हैं जिसे मल्तिलेयर आइस की तलाश थी .इसके एथान पर उनके आइस ब्रेकर को जगह जगह मीलों क्षेत्र में ५० सेंटीमीटर पतली "रोत्तें आइस "से ही दो चार होना पडा ।
गत तीस सालों में बार्बर को यह अप्रत्याशित नज़ारा देखने को नहीं मिला था ।
वह भी हाई -आर्कटिक में ।
बेहिसाब तरीके से हिम चादर का सफाया हो रहा है -तो इसकी साफ़ वजह ग्रीन हाउस गैसों से पैदा विश्व -व्यापी तापन ही है ।
यही आलम रहा था -२०३० तक उत्तरी ध्रुवीय शिखर गंजा हो जाएगा .,ग्रीष्म के आते आते जहाज रानी निगम इसका फायदा उठाने की आस में हैं .इस बरस ही दो समुंदरी जहाज (दोनों जर्मनी के हैं )दक्षिण कोरिया से चलकर रूस के उत्तरी साईं बेरिया तक पहुंचे हैं .वह भी बिना किसी आइस ब्रेकर के ।
सन्दर्भ सामिग्री :-आर्कटिक में हेव आलरेडी रन आउट ऑफ़ मुलती -ईयर आइस कवर (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर ३१ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

वेस्ट बेल्ट के संग सेल फोन पहने रहने के खतरे ..(जारी)

(गतांक से आगे ॥)
अपने अध्धययन में शोध छात्रों ने १५० सेल धारकों के मामले में पेल्विस (वस्ति -प्रदेश )के बाहरी घेरे की बोन डेन्सिटी का जायजा लिया .ये तमाम लोग अपनी बेल्ट से सेल फोन बांधे रहते थे ।
इनमे से १२२ लोग राइट साइड में तथा बाकी २८ लेफ्ट साइड में फोन बांधे रहते थे .कुल अवधि रहती थी औसतन ६ घंटा रोज़ ।
अस्थि घनत्व नापने के लिए एक्स -रे -एब्सोर्प -शियों -मीटरी टेक्नीक का स्तेमाल किया गया ।
ओस्टियो-पोरोसिस (जिसमे एक उम्र के बाद अस्थियों से बोन मॉस लोस होने लगता है )तथा अस्थियों के इतर रोगों में भी एक्स -रे -अवशोषण -मिति का ही स्तेमाल अस्थि घनत्व मापन में किया जाता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-वियरिंग यूओर सेल फोन ओं न हिप वीक्न्स पेल्विक बोनस(टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर ३१ .,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

वेस्ट बेल्ट में सेल फोन पहने रहने का मतलब ....

विज्ञानियों ने आशंका व्यक्त की है -वेस्ट बेल्ट में सेल फोन पहने रहने से वस्ति प्रदेश (पेल्विक रीज़न -लोवर अब्दोमिनल केविटी फोर्म्द बाई दी हौंच एंड अदर बोनस )से अस्थि घनत्व (बोन डेन्सिटी )ह्रास हो सकता है ।
तुर्की के सुलेमान देमिरेल विश्व -विद्यालय के विज्ञानी तोल्गा आते और उनके साथियों ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमे सेल फोन सेवस्ति अस्थि के कमजोर होते जाने के बारे में बतलाया गया है ।
जी एन ऐ के अनुसार प्राथमिक अध्धययन से यही नतीजे निकाले गए हैं जिन्हें अन्तिम या फ़िर निर्णायक नहीं माना जा सकता .बहरहाल विश्व -स्वास्थ्य संगठन के विज्ञानियों ने सेल फोन के इस तरीके से स्तेमाल के प्रति सावधानी बरतने को ज़रूर कहा है ।
इन्हें (सेल फोन्स )को शरीर से अधिकाधिक दूरी पर ही रखना भला ।
दीर्घावधि स्तेमाल के नतीजे अस्थियों को कमजोर बना सकतें हैं ।
सर्जिकल प्रोसीज़र्स खासकर बोन ग्रेफ्ट्स को तो सेल फोन्स असर ग्रस्त मना ही सकतें हैं .

सेहत को नुकसानी के मामले में शराब और सिगरेट्स एलेस्दी से आगे ...

चोरी छिपे बिकने वाली प्रतिबंधित नारकोटिक ड्रग्स ,नशीली दवाओं -गांजा (कैन्न्बिस ),एलेस्दी (एल एस दी )और एक्सटेसी से ज्यादा खतरनाक है सेहत के लिए शराब और सिगरेट की लत ।
इम्पीरिअल कॉलेज लन्दन के डेविड नत ने इसीलिए ब्रितानी सरकार से वैधानिक और गैर -वैधानिक रूप में बिकने वाली दवाओं के पुनर वर्गीकरण की सलाह दी है ताकि सेहत को होने वाली नुकसानी का सही जायजा लिया जा सके -लीगल और इल्लीगल सब्सटेंसिस के मामले में ।
सिगरेट और शराब से होने वाली सापेक्षिक नुकसानी (स्केल्सऔर चलन का जायजा लेने पर ज्यादा ठहरती है )।
डेविड ब्रितानी सरकार के ड्रग सलाहकार हैं .आपके अनुसार ज्यादा सेहत को नुकसानी पहुचाने वाले पदार्थों में हेरोइन (मार्फीन से तैयार एक सफ़ेद नशीला पाउडर )कोकेन (बेहोशी लाने वाली ,सुन्न करने वाली एक दवा ,ऐ ड्रग ,एनेस्थेटिक, फ्रॉम कोका प्रोद्युसिंग नाम्ब्नेस ,विच सम पीपुल टेक इल्लिगली फॉर प्लेज़र ,कोका एक बूटी की सूखी हुई पट्टियां होतीं हैं जिनसे कोकीन बनाई जाती है ,जिसे थकावट दूर करने के लिए भी चोरी छिपे खाया जाता है .)बार्बीचयुरेतस और मेथादों -न के बाद शराब पाँचवे स्थान पर बरकरार है ।
यह जानकारी आपने किंग्स कॉलेज लन्दन के "सेंटर फॉर क्राइम एंड जस्टिस स्टडीज़ के समक्ष पढ़े गए एक पर्चे में दी है ।
सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक पदार्थों में तम्बाखू नौवें जबकि कैन्न्बिस एल एस दी और एक्सटेसी ११ ,१४, १८ वें स्थान पर बनी हुई हैं ।
वर्गीकरण तालिका में रेंकिंग का आधार सेहत को होने वाली नुकसानी ,फिजिकल हार्म ,दिपेंदेंस (लत ),सोसल हार्म (सामाजिक नुकसानी )को बनाया गया है ।
इसका मतलब यह नहीं है ,प्रतिबंधित नारकोटिक दवाएं नुकसानदायक नहीं है ,डेविड के ही शब्दों में "दी क्रिटिकल क्वेश्चन इज वन ऑफ़ स्केल एंड डिग्री "कितने बड़े पैमाने और व्यापक तौर पर ये पदार्थ चलन में हैं .,असल बात यह है ।
डेविड ब्रितानी सरकार की दवाओं के दुरोपयोग के लिए नियुक्त सलाह कार परिषद् के भी मुखिया हैं ।
हमें तस्दीक़ करना ही होगा -युवा भीड़ में मौजूदहर चीज़ ,दवा -दारु को आजमाने की प्रवृत्ति को ,ताकि उन्हें संभावित नुकसानी से बचाया जा सके ।
सन्दर्भ सामिग्री :-एल्कोहल ,सिगरेट्स बीत एल एस दी इन लिस्ट ऑफ़ हार्मफुल सब्सटेंसिस (टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर ,३१ ,२००९ ,पृष्ठ २१ ।)
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

डायरिया -अनुमान से ज्यादा मौतें .....

विश्व -स्वाश्थ्य संगठन द्वारा प्रस्तुत नवीनतर आंकडों के अनुसार पाँच साल से ऊपर आयु वर्ग के ११ लाख नौनिहाल अफ्रिका और एशिया में हर साल डायरिया का ग्रास बन रहें हैं .यह आंकडा २००२ में शुरू किए गए अध्धययन में प्रस्तुत ३००,००० मौतों से कहीं ज्यादा है ।
यह ६ साला अध्धय्यन २०१२ तक जारी रहेगा .ताजा अध्धय्यन फ़ूड बोर्न दीसीज़ के हर पहलु को विस्तार से खंगालता है .यह कितना दुर्भाग्य पूर्ण हैं ,चाँद पर एक तन मिटटी में एक लीटर पानी होने की तस्दीक़ करने वाला भारत आजादी के ६२ साल बाद भी अपने नौनिहालों को साफ़ पानी मुहैया नहीं करवा पा रहा है .साफ़ खान पानी से जुड़ी है -अतिसार (डायरिया ,पेचिस )की नवज ।
सन्दर्भ सामिग्री :-"डायरिया किल्स ३ टाइम्स मोर पीपुल देन थोट (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर ,३१ ,२००९ ,पृष्ठ २१ ।)
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

खानदानी वजह भी हो सकती है-बेड ड्राइविंग की .

सड़क पर आपने अक्सर कुछ लोगों को ड्राइविंग के दौरान बिला वजह दिशा और लेन् कुछ ज्यादा ही बदलते देखा होगा ।
अब पता चला है -इनमे एक म्युतेतिद जीवन ईकाई होती है (वेरिएंट ऑफ़ ऐ नोर्मल जीन )यही जीन बेड ड्राइविंग के लिए कुसूरवार है ।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निआअ के स्टीवेन क्रेमर और उनकी टीम ने २९ लोगों पर एक परीक्षण किया .इनमे से २२ में इस जीन का नोर्मल वर्षं न जबकि ७ में उत्परिवर्तित जीन मौजूद थी ।
इन्हें एक सिम्युलेटर पर १५ लेप्स ड्राइव करने के लिए कहा गया .हफ्ते भर बाद यही काम दोबारा करके दिखलाने को कहा गया .जिनके अन्दर म्युतेंत जीन मौजूद थी वे सीखी हुई टास्क तकरीबन भूल चुके थे .टास्क सीखते वक्त इनके दिमाग का कमतर भाग ही उद्दीप्त हुआ था ।इसलिए भूल भी जल्दी गए .
दरअसल एक ख़ास जीनहै (जीवन ईकाई है )जो ब्रेन दिरैव्द न्युरोत्रोपिक फेक्टर (एक प्रोटीन होती है यह )को काबू में रखती है .यही प्रोटीन याददाश्त को असर ग्रस्त बनाती है .वेरिएंट जीन के मामले में इस प्रोटीन पर से नियंत्रण ख़त्म हो जाता है .नतीजा होता है -बेड ड्राइविंग -वीविंग इन एंड आउट ऑफ़ ऐ ट्रेफिक लें न फ़्रिक्युएन्त्ली ।
यही वजहहै ३० फीसद अमरीकी सड़क पर कसरत सी करते रहतें हैं -टिकिट भी इन्हीं को ज्यादा इश्यु होता है -निगेटिव पाइंट्स भी मिलतें हैं .

खानदानी वजह भी होती हैं बेड ड्राइविंग की .....

यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफोर्निया इर्विन के विज्ञानियों ने स्टेवेंक्रेमर के नेत्रित्व में पता लगा या है -एक वेरिंत जीन ख़राब ड्राइविंग के लिए कुसूरवार है .एक ड्राविंग टेस्ट के दरमियान ऐसे ही लोगों का परिक्षण २० फीसद से भी ज्यादा ख़राब देखा गया ,ज्यादा गलतियां की इन लोगों ने ।
एक अनुमान के अनुसार तकरीबन ३० फीसद अमरीकियों में यही जीन है .यही वह लोग हैं जो लें न बहुत ज्यादा बद्लतें हैं .दे वीव इन एंड आउट ऑफ़ दा ट्रेफिक लेन्मोर ओफ़्तेन।
सीखे गुर भी ये लोग जल्दी भूल भूल जातें हैं वजह होती है ,दिमाग के अपेक्षया कमतर हिस्से का कोई भी नै टास्क सीखतें वक्त उद्दीप्त होना .,बरक्स उन लोगों के जिनमे इसी जीन का आम रूप मौजूद होता है .

एस्मा (दमा )और मधुमेह (डायबिटीज़ )से बचाए रहतें हैं खाद्य रेशे .

एक ऑस्ट्रेलियाई शोध के अनुसार जो अभी हाल ही में प्रकाशित हुई है -फाइबर से युक्त खुराख कमोबेश -एस्मा (यानी दमा )मधुमेह (यानी डायबिटीज़ )और जोडों के दर्द यानी आरथ्रैतिस से बचाव में कारगर रह सकती है ।
तब क्या यह कहा समझा जाए -
"एन ऐपल ऐ दे में कीप दी डॉक्टर अवे ,
फाइबर कीप्स एस्मा ,डायबिटीज़ अत बे ।"----
जो हो गर्वंन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ,सिडनी के विज्ञानियों के अनुसार खाद्य रेशे हमारे रोग से लड़ने जूझने वाले कुदरती प्रतिरक्षा तंत्र के हाथ मजबूत कर उसे रोगों से जूझने का माद्दा प्रदान करतें हैं ।
उन्हीं के शब्दों में -"फाइबर नाट ओनली हेल्प्स कीप पीपुल रेग्युलर ,ईट बूस्ट्स दी इम्यून सिस्टम तू बेत्टर काम्बेट दीसीजिज़ "
फाइबर बहुलखाद्य ड्राई फ्रूट्स (जैसे पिस्ता ,बादाम ,अखरोट ,किसमिस ,तिल्गोज़ा आदि ),फलियाँ (बीन्स )मोटे अनाज से तैयार ब्रेकफास्ट सीरिअल ,इसबगोल आदि ,फल ,दांतों में फंसने वाली हरी सब्जी आदि जब हमारी गत (आंत ,अन्तडी )तक पहुंचतें हैं ,जीवाणु यहाँ इन को शोर्ट चेन फेटी एसिड्स नामक योगिकों में तब्दील कर देते हैं ।
दीज़ एसिड्स आर नॉन तू एलीवियेत सम इन्फ्लेमेत्री दीसीज़ इन दी बोवेल ।
संक्रमण और शौज़ (सौजिश ,इन्फ्लेमेशन )पैदा करने वाले रोगों की उग्रता को कम कर देतें हैं यह तमाम यौगिक ।
(दमा में साँस नाली की सिकुडन और जोडों के दर्द में जोडों की सूजन ही तो तंग करती है ।).जहाँ तक मधुमेह का सवाल है -ईट इस एन ऑटो इम्यून दीसीज़ -व्हिच अफेक्ट्स दी एन्डोक्राइन सिस्टम ,ऐ क्रोनिक दिसोरदार ऑफ़ कार्बोहैद्रेट मेटाबोलिज्म ,मार्क्ड बाई हाई -पर -ग्ल्य्समिया एंड ग्ल्य्कोसुरिया एंड रिज़ल्टिंग फ्रॉम इनेदिक्युएत प्रोडक्शनआर यूज़ .ऑफ़ इंसुलिन ॥
सन्दर्भ सामिग्री :-फाइबर कीप्स एस्मा ,डायबिटीज़ ईट बे :(टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर ३० ,२००९ ,पृष्ठ २१ )।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

हेरोइन की तरह लत पड़ जाती है -जंक फ़ूड की .

विज्ञानियों ने चेताया है -जंक फ़ूड की खुराख -एडिक्टिव डाइट बन सकती है .नारकोटिक ड्रग हेरोइन (मार्फीन से तैयार एक सफ़ेद पाउडर जो नशीला और लती -कारक होता है )की तरह .जो लोग नियमित बर्जर्स और चोकलेट केक्स भकोस्तें हैं (बीजं ईटर्स )उनके लिए यही आनंदानुभूति का सबब बन जाता है .हाई में जातें है ये लोग
शोध छात्रों ने पता लगाया है जो लोग रोजाना दोनाट्स ,बर्जर्स ,चोकलेट केक्स आदि भकोस्तें हैं (बेहिसाब खातें हैं ,दबा के खातें हैं )वे नशीले पदार्थों के सेवन की तरह इनके आदि हो जातें हैं .ठीक नारकोटिक ड्रग्स की तरह ही कबाड़ -इया (तुरता कथित रेडी तू सर्व फ़ूड )भोजन की लत पड़ जाती है .(वैसे तो इसे भोजन कहना भोजन का ही अपमान है यह तो तमाम तरह का बासा खाना बेहद की चिकनाई सना होता है )।
गुयस हॉस्पिटल लन्दन के न्यूरो -बाय्लोजिस्त पाल कन्नी ने यह निष्कर्ष चूहों पर संपन्न एक अध्धय्यन से निकाले हैं .कन्नी कहतें हैं चिकनाई सने (हाई फेट )बेहद मीठे (हाई -सूगर फूड्स )को खातें समय आप नियंत्रण खो बैठतें हैं ,बेहिसाब खाते ही चले जातें हैं
यहीं से इन पदार्थों की लत पड़ जाती है .दिमाग इस चिकनाई -सुगर बहुल खाने के प्रति वैसी ही प्रतिकिर्या करने लगता है जैसी की वह नारकोटिक ड्रग्स के प्रति करता है
इसका मतलब यह हुआ -मोटापे (ओबेसिटी )और ड्रग एडिक्शन का एक सांझा (कामन )न्यूरो -बायालोजिकल (स्नायुविक जैविक )आधार है ,कामन न्युरोबायोलोजिकल फाउन्देशन है
पाल जॉन्सन कन्नी के साथी भी ऐसा ही मानतें हैं
अपने अध्धययन में शोध छात्रों की इस टीम ने कन्नी की अगुवाई में चूहों को तीन वर्गों में रखा .पहेल को आमसेहत कारी खुराख यानी नार्मलहेल्दी फ़ूड (फीड )दी गई ,दूसरे वर्ग को सीमित मात्रा में जंक फ़ूड तथा तीसरे को बेहिसाब जंक फ़ूड दिया गया जिसमे शामिल थे -चीज़ -केक्स फेटी मीत प्रोडक्ट्स (चर्बी युक्त गोस्त ),चीप स्पोंज केक्स तथा चोकलेट स्नेक्स
पहेल दो समूहों पर कोई विपरीत प्रभाव देखने को नहीं मिले लेकिन तीसरे वर्ग के मूषक जल्दी ही ओबेसिटी की गिरिफ्त में गए मोटे हो गए बेहिसाब .देखते ही देखते ये बींजिंग करने लगे बेहिसाब जंक फ़ूड खानेउडाने लगे
अब बारी बारी से इनके दिमाग को इलेक्त्रोनी तरीके से उद्दीप्त (स्तिम्युलेट )किया गया ताकि इन्हें सुखाभास हो सके
उतनी ही सुखा नुभूति पैदा करने के लिए तीसरे वर्ग के मूषकों को अधिकाधिक इलेक्त्रोनिकाली स्तिम्युलेट करना पड़ा
बात साफ़ है -स्वास्थ्य -वर्धक भोजन से अलग उन्हें जंक फ़ूड (कबादिया भोजन ,तुरंता भोजन की लत पड़ चुकी थी )।
सन्दर्भ सामिग्री :-जंक फ़ूड कैन हूक बिन्जर्स लैक हेरोइन (टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २९ ,२००९ ,पृष्ठ १९ ।)
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

एक सिगरेट भी काफ़ी है आपकी सेहत का सत्या -नाश करने के लिए ...

म्क्गिल यूनिवर्सिटी हेल्थ सेंटर के स्तेल्ला दस्कलोपौलोऊ ने अपने एक अध्धय्यन में जो १८-३० साला युवाओं पर हाल ही में संपन्न किया गया है ,पता लगाया है -एक सिगरेट पीने से भी इन युवाओं की धमनियों (हृद -रक्त वाहिनियों )में २५ फीसद की बेशुमार स्तिफ्फ़ -नेस आ जाती है ,धमिनियों का अस्तर अन्दर से कठोर हो जाता है ।
नतीज़तन रक्त वाहिनियों का रक्त संचार के प्रति प्रति -रोध (रेसिस्टेंस )बढ़ जा ता है ,यानी रक्त प्रवाह निर्बाध नहीं हो पाता है ।
दुर्भाग्य यह भी है -इसी युवा वर्ग (२० -२४ )साला में धूम्रपान धूम्र -पान का चलन कनाडा के दूसरे आयु वर्ग के बरक्स सबसे (वास्तव में लत )ज्यादा है ।
नोट :गरीब दुनिया का हाल इससे भी ज्यादा ख़राब है ,यहाँ धूम्र -पान किशोर अवस्था में (औसतन १४ साल की उम्र में ही )ही किशोरों को अपनी ज़द में ले लेता है ,आदर्श बन तें हैं
रोल मोदिल्स ) ।
स्टेला के मुताबिक नतीजों से पता चलता है -दिन भर में २-४ सिगरेट फूँकने के भी धमनियों पर बेहद ख़राब प्रभाव पडतें हैं .(युवा समझे तब ना ,वह तो अपनी ही झोंक में रहतें हैं ।).
इस तथ्य का खुलासा तब हुआ जब इन्हीं कथित युवाओं से कठोर व्यायाम इतर कसरत आदि करवाए गए ."yahoo ज़वानी मांजा ढीला "यानी शरीर की उम्र से धमनियों की उम्र ज्यादा ।
सन्दर्भ सामिग्री :"वन सिगरेट इज एनफ तू रूं -इन यूओर हेल्थ "(टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २९ ,२००९ ,पृष्ठ ,१९ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।
विशेष कथन :-आई एम् एन एक्स स्मोकर हूँ स्मोक्द फॉर १८ ओद्द ईयर्स commencing अत एज २० ईयर्स .निकोटिन स्मोक्द अवे माई गमस .आई हेड तू अन्दर गो ओपन हार्ट सर्जरी विद बीटिंग हार्ट (ओं न पम्प ,नॉन अज सी ऐ बी जी देत इज -कोरोनरी आर्टरी बाई पास ग्रेफ्टिंग )अत दी एज आफ ५९ ईयर्स कोस्तिंग मी रूपीज़ २.२५ लक्स पोस्ट माई रिटायरमेंट अत एज ५८ ईयर्स .इफ आई हेड कन्तिन्युद स्मोकिंग ,आई वुड नाट हेव सर -वैव्द देत लांग .आई ऍम नाओ ६२ प्लस .थेंक्स तू माई मोडिफाइड लाइफ स्टाइल ,नो स्मोकिंग ,लिटिल आर नो फेट्स ,लोटस आफ ग्रीन वेगीज़ ,वाल्किंग ऐ लोट एवरी दे .

बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

पालतू कुत्तों का कार्बन फ़ुट -प्रिंट कितना ज्यादा ......

हैरत में आ -जाइयेगा यह जानकर ,आपके पालतू डौगी (स्वान )का फ़ुट प्रिंट एक स्पोर्ट्स यूटिलिटी वीकल से दोगुना ज्यादा रहता है ।
दो भवन निर्माताओं ने मिलकर एक किताब लिखी है -"टाइम तू ईट दा डॉग".आप दोनों न्युजिलेंद के रहने वालें हैं .आप की यह किताब कायम रहने लायक रहनी सहनी को रेखांकित करने वाली गाइड से कम नहीं है ।
आपने आपका स्वान (कुत्ता )कौन सी नसल का है क्या खाता पीता है -कितने हेक्टेर क्षेत्र से पैदा होगा यह खाद्य -इस सबका हिसाब किताब लगाकर आपके वफादार फरमा बरदार "दोगी "के कार्बन फ़ुट प्रिंट का जायजा लिया है ।
फॉर वील ड्राइव वीकल्स के बराबर ही कार्बन फ़ुट प्रिंट ठहरता है लार्ज दोग्स का ।
ब्रेंडा और रॉबर्ट वेळ यही निष्कर्ष निकाल्तें हैं .आप दोनों वेलिंग्तंस विक्टोरिया यूनिवर्सिटी में शोध छात्र हैं ।
लोगबाग स्पोर्ट्स यूटिलिटी वीकल्स की प्रासंगिकता पर तो यह कहकर ऊंगली उठा देतें हैं ,ज्यादा कार्बन एमिशन पैदा करतें हैं यह वीकल लेकिन कद्दावर अल्शेसियन कुत्तों से पर्यावरण को होने वाली क्षति पर चुप्पी साध लेतें हैं ,जबकि स्वान ज्यादा कुसूरवार हैं ।
इससे तो मुर्गी -पालन भला ,वह अपने कार्बन फ़ुट प्रिंट्स की भरपाई अंड्डे देकर कर देती है जो हमारे खाद्य का हिस्सा हैं ,मुर्गी को आप पकाकर खा भी सकतें हैं ।
दोनों का सुझाव है -नार्थ ईस्ट (इंडिया )की तरह कुत्ते का मांस भी खाइए फ़िर भले ही शौक से पालिए स्वान ।
दोनों ने अनुमान लगाया है -एक औसत कदकाठी (मीडियम साइज़ )का स्वान एक साल में १६४ किलोग्रेम मांस तथा ९५ किलोग्रेम अनाज हज़म कर जाता है ।
एक किलोग्रेम चिकन पैदा करने के लिए ४३.३ वर्ग मीटर लैंड चाहिए .कुलमिलाकर एक स्वान कोसाल भर जिमाने (खिलाने -पिलाने )के लिए ओ.८४ हेक्टेर लैंड चाहिए .(एक हेक्टेर यानी १० ,००० वर्ग मीटर क्षेत्र ,१०० गुना १०० वर्ग मीटर क्षेत्र )।
जर्मन शेफर्ड जैसा भारी भरकम शरीर वाला कुत्ता १.१ हेक्टेर क्षेत्र से पैदा खाद्य हज़म कर जाएगा ।
एक टोयोटा लैंड क्रूज़र १० ,००० किलोमीटर चलने के बाद बामुश्किल ०.४१ हेक्तिअर फ़ुट प्रिंट पैदा करती है .जबकि इसे तैयार करने के लिए भी अलग सेजितनी एनर्जी चाहिए .,इसे भी आकलन में शामिल किया गया है ।
यूँ बिल्लियाँ भी एनर्जी गज्लार्स हैं जिनका फ़ुट प्रिंट आता है ०.१५ हेक्टेर .(वोल्क्स्वगें गोल्फ से थोडा कम ही है यह .).इसी प्रकार हेम्स्टर का कार्बन फ़ुट प्रिंट ०.०१४ हेक्टेर है (हाल्फ दी प्रिंट आफ ऐ प्लाज्मा टी वी .).

गर्भ -निरोधी टिकिया खाने का मतलब ?

दुनिया भर में तकरीबन १० करोड़ महिलायें (प्रजनन -क्षम आयु -वर्ग )गर्भ -निरोधी टिकिया का सेवन कर रहीं हैं ।
हालाकि पहले के बरक्स अब इन गोलियों में स्त्री हारमोन इस्ट्रोजन की मात्रा कम कर दी गई है ,तो भी ऐसी एक लाख महिलाओं में जो गर्भ रोधी उपाय के बतौर इन गोलियों का सेवन नहीं करतीं हैं ,४.४ कोही इस्केमिक स्ट्रोक्स यानी सेरिब्रो -वेस्क्युलर एक्सीडेंट झेलना पड़ता है ।
गोलियों का सेवन करने वाली महिलाओं के लिए यह ख़तरा बढ़कर दोगुना हो जाता है .
(स्ट्रोक मीन्स स्तोपेज़ आफ ब्लड फ्लो तू दी ब्रेन ,ऐ सद्देन्न ब्लोकेज़ आर रप्चर आफ ऐ ब्लड वेसिल इन दी ब्रेन रिज़ल्टिंग इन फार एक्साम्पिल लास आफ कोंश्श्नेस ,पार्शिअल लॉस आफ मोवमेंट आर लॉस ऑफ़ स्पीच ।)
आम भाषा में हम इसे दिमाग की नस फटना भी बोल देतें हैं ।
लोयोला यूनिवर्सिटी केतीन न्युरोलोजिस्तों ने उक्त निष्कर्ष अपने हालिया अध्धय्यन से निकाले हैं ।
न्यूरोलोजी क्या है ?
दी ब्रांच ऑफ़ मेडिसन देत डील्स विद दी स्ट्रक्चर एंड फंक्शन ऑफ़ दी नर्वस सिस्टम एंड दी ट्रीटमेंट ऑफ़ दी दिसीजेज़ एंड दिसोर्देर्स देत अफेक्ट ईट इज कॉल्ड न्यूरोलोजी ।
यानी हमारे स्नायु -तंत्र की बनावट और प्रकार्य (काम करने के ढंग )तथा इस तंत्र को बीमार बनाने वाले रोगों (स्नायुविक रोग )का इलाज़ चिकित्सा -विज्ञान की जिस शाखा के अर्न्तगत किया जाता है उसे स्नायुविक चिकित्सा विज्ञान कहा जाता है .दिमाग की एकल कोशिका को (सिंगिल सेल ऑफ़ दी ब्रेन )न्यूरोन कहा जाता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-पिल डबल स्ट्रोक रिस्क (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २८ ,२००९ .,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

खरी -खोटी -विज्ञान और राष्ट्रीयता -विसंवादी स्वर .

इन दिनों किसी राष्ट्रिय इमारत की एक ईंट खिसक जाए ,उसमे से चार प्रशंशक नोबेल लाउरेट वेंकटरमण रामा कृष्णन के निकल आयेंगे .रातों रात उनके कई पूर्व -शिक्षक भी पैदा हो गए हैं -खीझकर उन्होंने बस इतना कहा था -"लीव मी अलोन एंड सर्व साइंस ।"
बेशक उन्होंने हमारे कथित राष्ट्रीय गौरव को आइना दिखाया है .दुखी होकर उन्होंने बस इतना और कहा -इनाम (नोबेल प्राइज़ )मिलने से पहले कोई मेरे काम के बारे में नहीं जानता था -जो अब मेरे स्तुति गायन में मुब्तिला है उन्हें आज भी मेरे काम के बारे में इल्म नहीं है .तो साहिब काम को देखो नाम और बेमेल राष्ट्रीयता में क्या रख्खा है ?
राष्ट्रीयता तो बुनियादी शोध को फूटी आँख नहीं देखती -देखती तो इसरो (भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन )को समानव अन्तरिक्ष अभियान के लिए सरकार मुखापेक्षी बनके नहीं रह जाना पड़ता ,जिसे अनुदान देने में सरकार झिझक रही है तालम टोल रवैया इख्तियार किए हुए है ।
बीमार "एअर इंडिया "को तो वह सालाना ५००० करोड़ की खर्ची उठाके ओक्सिजन पर रखे है -इसरो को १५ ,०० करोड़ देने को तैयार नहीं है .किसानो का ६०,००० करोड़ खर्चा माफ़ करके बारहा वाह वाही लूटने को राजी है ।
अलावा इसके यहाँ हमने ज्ञान को भी खानों में बाँट दिया है .जबकि समस्त ज्ञान ही (विश्व ज्ञान )ही विज्ञान है .लेकिन यहाँ तो "विश्व -विद्यालयों में ज्योतिष शास्त्र का अध्धय्यन क्यों "जैसे विषयों पर वाद विवाद होता है .स्कूल स्तर से ही फेकल्टी को -कला ,वारिन्ज्य ,विज्ञान आदि में तकसीम कर दिया जाता है ।
ह्युमेनितीज़ में ही विषयों की अदला बदली सम्भव नहीं है ,अन्तर अनुशाशन क्रोस -फेकल्टी आवा जाही कैसे मुमकिन हो ?
जो जहाँ है ,वहीं ठीक है .शिक्षा आजीविका कमाने का ज़रिया भर है ,और शोध अपनी वर्तमान अकादमिक पोजीशनकी बेहतरी भर के लिए सुरक्षित है . ।
हमने एम् एस सी (फिजिक्स )सागर विश्व -विद्यालय से १९६७ में उत्तरीं न किया .साहित्य में शुरू से ही अनुराग था ,१९७२ तक यह अनुराग ओबसेशन में बदल चुका था ।
सागर पहुंचे -डॉक्टर राम रतन भटनागर साहिब(अध्यक्ष हिन्दी विभाग ) से कहा -हमारा
पी एच दी के लिए रजिस्ट्रेशन कर लो -"पहले बेसिक डिग्री लो हिन्दी एम् ऐ "-ज़वाब मिला ।
अनंतर मह्रिषी दयानंद विश्व -विद्यालय से सम्बद्ध महा -विद्यालयों में अधय्यापन के दरमियान मनोविज्ञान विषय ख़ास कर मनोरोग सम्बन्धी जानकारी ,सेहत और चिकित्सा से जुड़ी जानकारी में मन रमता गया .साइको -फिजिक्स में पी एच दी का सोचा -फ़िर वोही सवाल -मनोविज्ञान में बुनियादी डिग्री चाहिए ।
तो ज़नाब इन तमाम तकलीफों से दो चार होने के बाद ही कोई वेंकट रमन रामा कृष्णन पैदा होता है -पैदा यहाँ होता है -पल्लवित विदेशी धरती पर होता है .जब उसे पुरुष्कार मिलता है -हम राष्ट्रीय झंडा उठालेतें हैं .जब वह इस फिजूल प्रदर्शन पर नाराजगी ज़ाहिर करता है -हम कह देतें हैं (इंटेलिजेंस इस लेकिंग इमोशनल कोशेंट ),साला राष्ट्रीय ज़ज्बा नहीं है इस इंसान में (मनु अभिषेक सिंघवी -प्रवक्ता ,कोंग्रेस ,से क्षमा -प्रार्थना सहित ।)
तो साहिब शिक्षा का कम्पार्ट -मेंतालाई -जेशन बंद हो ,अन्तर -अनुशाशन दो तरफा आवा -जाही बेरोक टोक शुरू हो .तभी कुछ आगे हासिल है .वगरना हम भी किसी से कम नहीं है .यहाँ संकट रोज़ी रोटी का एहम है .

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

बुढापे में डेडी -संतान की सेहत दाव पर ......

यूँ ही नहीं कहा गया है -बुढापे की संतान मरिअल रह सकती है ,सेहत को जिसकी सौ खतरे हो सकतें हैं ।
अब ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध छात्रों की एक टीम ने पता लगाया है -उम्र दराज़ होने के साथ ही मर्दों में तेस्तिक्युलर ट्यूमर सेल्स की मौजूदगी बलवती हो जाती है -साथ ही बढ़ जाती है उनके "दी एन ऐ "में म्युतेसंस की संभावना ।
ऐसे मर्दों के बच्चों को विरासत में यह उत्परिवर्तित जींस बारास्ता डेडी के शुक्राणु मिल सकती है ।
यानी डेडी के स्पर्मेताज़ोआन से यह म्युतेतिद जीन बच्चों को अंतरित हो सकती है ।
उम्र दराज़ होने पर ट्यूमरपैदा करने वाले सेल्स के सूक्ष्म झुंड अन्डकोशों के ऊतकों में अक्सर पैदा होने लगतें हैं .यही ऊतक जर्म्स सेल्स तैयार करतें हैं जिनसे पैदा होतें हैं -शुक्राणु (स्पर्म्स )।
एंड्रयू विल्की कहतें हैं -ज्यादर तर मर्दों में उत्परिवर्तित कोशिकाओं के सूक्ष्म झुंड तेस्तिकिल्स में उम्र दराज़ होने पर पैदा होने लगतें हैं ।
यह ठीक वैसे ही है जैसे चमड़ी पर तिल (मोल्स )का बन ना ,अक्सर बिनाइन इन नेचर (यानी निरापद )।
लेकिन अन्डकोशों में इनकी मौजूदगी निरापद ही रहे यह ज़रूरी नहीं है .एंड कोष शुक्राणु भी तो बनातें हैं .ऐसे में पैदा होने वाले बच्चे जन्मजात गंभीर रोगों से ग्रस्त हो सकतें हैं .
तो साहिब हर चीज़ की एक उम्र है -प्रकृति का अपना विधान है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-वाई किड्स आफ ओल्डर दैड्स आर प्रोन तू हेल्थ रिस्क्स (टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २७ ,२००९ ,१५ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

स्वच्छ माहौल हमारे आचरण पर भी अच्छा असर डालता है .

एक साफ़ सुथरा माहौल काम करने के लिए बेहद ज़रूरी है क्योंकि स्वच्छ परिवेश हमारे नैतिक आचार विचार को भी प्रभावित करता है .इसीलिए कहा गया -क्लीन्लिनेस इज नेक्स्ट तू गोद्लिनेस ।
एक नवीनतर अमरीकी अध्धययन ने भी उक्त निष्कर्ष की पुष्टि की है .अध्धय्यन में स्वछ्तर माहौल (क्लीन स्मेलिंग इनवायरनमेंट )के कामकाजी लोगों के अचार व्यवहार पर पड़ने वाले असर की पड़ताल की गई ।
आप जानतें हैं -दफ्तरों में कम्पनियों और निगमों में नियम कायदे से लोग चलें इस एवज एक अलग निगरानी तंत्र रहता है -इसे आप ट्रेडिशनल सर्विलिएंस मेथड तू एनफोर्स रूल्स की केटेगरी में रख सकतें हैं ।
कम्पनीज ओफ्तें इम्प्लोय हैवी -हेन्दिद इन्तार्वेंसंस तू रेग्युलेट कंडक्ट बत दे कैन बी कास्टली आर आप्रेसिव -यह कहना है इस अध्धय्यन के अगुवा रहे केटी लिल्जेन्क़ुइस्त का .आप ब्रिघम यौंग यूनिवर्सिटी मैरियट स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट से सम्बद्ध हैं .लेकिन स्वच्छ माहौल की बात ही और है -यहाँ माहौल ही प्रेरक की भुमिका में देखा जा सकता है जो नैतिक आचरण को उभारता है ।
एक प्रयोग में फे -यार्नेस का जायजा लिया गया .औचित्य न्याय स्वच्छता का जायजा लेने के लिए सहभागियों के बीच ट्रस्ट गेम खेला गया .एक सब्जेक्ट्स के पास दूसरे कमरे में मौजूद एक बेनामी सब्जेक ने १२ डॉलर भेजे .उन पर भरोसा करते हुए उसे आपस में तकसीम करने के लिए कहा गया ताकि बाकी सहभागियों को भी उनका हिस्सा दे दिया जाए .सेंतिद रूम में बैठे सब्जेक्ट्स ने अपेक्षाकृत ज्यादा हिस्सा सहभागियों को लौटाया ,ख़ुद कमतर रखा ।
ज़ाहिर है -एक खुशनुमा सुरभित माहौल हमारे अन्दर का सर्व श्रेष्ठ बाहर लाने में मदद गार रहता है .यही इस अध्धय्यन का संदेश है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-क्लीन्लिनेस ब्रिंग्स आउट दी बेस्ट इन यु :स्टडी (टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २६ ,२००९ .पृष्ठ १३ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

लोवर बेक पैन की वजह भी बन रही है -स्मोकोइंग

कनाडा के शोध छात्रों ने "क्रोनिक बेक पैन और स्मोकिंग "के बीच परस्पर अंतर्संबंध की पुष्टि की है ,
अध्धय्यन के अनुसार जो लोग रोजाना धूम्रपान करतें हैं उनमे "क्रोनिक बेक पैन "की शिकायत ज्यादा दर्ज की गई ,बनिस्पत नॉन स्मोकर्स के ।
रोयल नॉर्थ शोर हॉस्पिटल ,सिडनी के निदेशक मिशेल कजिन्स के अनुसार धूम्रपान पैन ट्रांस्मितार्स के काम में दखल अंदाजी करता है ,नतीजा होता है -ओस्टियो -पोरोसिस ।
यही ओस्टियो -पोरोसिस "क्रोनिक बेक पैन "की वजह बन जाती है .जिसे अब एक स्वतंत्र रोग का दर्जा हासिल है -डिप्रेशन की तरह (डिप्रेशन को पहले किसी और मनोरोग का एक लक्षण मात्र समझा जाता है ,जबकि "दी एस एम् ४ "यानी दिअगोनिस्टिक स्तातिस्तिकल मंयुअल ४ के अनुसार अब डिप्रेशन को अपने आप में एक अलग रोग भी माना जाता है ।
गौर तलब है -लोवर बेक पैन कैन ट्रिगर ऐ "डाउन वर्ड स्पायरल "इन ऐ पर्सन्स लाइफ ।
सन्दर्भ सामिग्री :-स्मोकिंग कैन ट्रिगर बेक पैन :(टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २६ ,२००९ .पृष्ठ १३ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

क्या है इम्पैयार्ड ग्लूकोज़ टोलरेंस यानी प्री-दायाबेतिक्स ?

भारत में इस वक्त ५ करोड़ अस्सी लाख लोग मधुमेह ग्रस्त हैं ,अलावा इसके आबादी का तीस फीसद (३० इज़ -४०ईज़ एज ग्रुप )प्रिदाय्बेतिक है यानी इम्पेयार्ड glऊकोज़ टोलरेंस से ग्रस्त है ।
प्रिदायाबेतिक्स लोगों में फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज़ का खून में स्तर १०० -१२५ मिलिग्रेम पर देसिलीटर (फीसद )जबकि सेकेंडरी दायाबेतिक्स (नॉन -इंसुलिन डिपेंडेंट दायाबेतिक )में यही प्रतिशत १२५ मिलिग्रेम परसेंट से ज्यादा रहता है ।
इसे बिना लक्षणों की मधुमेह (एसिम्प्तोतिक कंडीशन )भी कहा जाता है -यूँ कभी कभार इन लोगों में भी मधुमेह के आम लक्षण यथा बेतहाशा भूख -प्यास लगना ,ज्यादा पेशाब आना ,थकान आदि देखे जा सकतें हैं ।
ग्लूकोज़ -इम्पैयार्ड -टोलरेंस एक संक्रमण कालीन स्तिथि है (०-१० साल ) -नोर्मलेसी से डायबिटीज़ की तरफ़ जाना है ।
मधुमेह ग्रस्त होने (सेकेंडरी डायबिटीज़ )से पूर्व ९३ फीसद मामलों में लोग इसी प्रावस्था में बने रहतें हैं .रोग का पता ही नहीं चल लगता ।
संतोष का विषय यही है -यह एक रिवार्सिबिल कंडीशन है खान पान में बदलाव ,सक्रीय जीवन शैली जिसमे व्यायाम के लिए भी अवकाश हो ,खुराख में ५ तरह के फल ,सलाद सतरंगी ,मोटे अनाज ,रेशे युक्त भोजन और परिष्कृत चीज़ों से परहेजी (सफ़ेद चावल ,चीनी ,सफ़ेद मैदा युक्त रोटी ,यानी तमाम सफ़ेद चीज़ें मोटे तौर पर )रख कर इस स्तिथि से बाहर आया जा सकता है ।
बस १० फीसद अपना वजन घटा लिजीये ,हफ्ते में ढाई घंटा सैर ज़रूर कर लिजीये ।
बेकरी से परहेज़ कम नमक का सेवन मुफीद रहेगा ।
साल में एक मर्तबा उन लोगों के लिए "एक्सेक्युतिव चेक एप "करवाना लाजिमी है -जो हाई -रिस्क ग्रुप में हैं -यानी चर्बी जिन पर चढी हुई है (ओबेसिटी की जो ज़द में हैं ),काम के घंटों का तनाव जिन्हें घेरे रहता है हर पल ,उलटा सीधा जो कुछ भी खा पी लेतें हैं -यानी फालती फ़ूड के सहारे चल रही है जिनकी जिंदगी झट -खोले खाकर .,व्यायाम के लिए जहाँ बिल्कुल गुंजाइश ही नहीं है ,ऊपर से मधुमेह जिनका पारिवारिक रोग बना रहा है ।
एक अध्धय्यन में ३०० ऐसे ही लोगों की जांच करने पर ४५ इम्पेयर्ड ग्लूकोज़ से ग्रस्त पाये गएँ हैं ।
९५ फीसद मामलों में ऐसे ही लोगों को रोग का पता तब चल ता है जब रोग के लक्षण अपनी पूरी उग्रता के साथ इन्हें अपनी गिरिफ्त में ले लेतें हैं ।
इसीलियें साल हर साल ऐसे लोगों की नियमित जांच होनी ज़रूरी है ।
दो साल में एक बार स्वस्थ लोगों को भी जांच के लिए आगे आना चाहिए .मोटापा और ग़लत खुराख के चलते भारत के लिए मधुमेह का ख़तरा औरों से बहुत ज्यादा है ,बचाव में ही बचाव है .रोग का इलाज़ ना सही बचाव पुख्ता किया जा सकता ।

जीवन रक्षक प्रोटीन शीट

मधुमेह होने पर खासकर लाइलाज (क्रोनिक )हो जाने पर जख्म आसानी से नहीं भरता ,जान लेवा भी सिद्ध होता है .नतीजा होता है -दायाबेतिक फ़ुट ,और फ़िर लिम्ब एम्प्युटेशन ।
डॉक्टर पी के शिबू (बायो -कोस्मो -मेडिकल टेक्नोलोजीज के संस्थापक ) दायाबेतिक फ़ुट से बचाव के लिए लेकर आयें हैं एक "प्रोटीन शीट ".-कललो-डर्मिस ।
दरअसल यह प्रोटीन शीट नष्ट हो चुके ऊतकों का पुनर -उत्पादन करने लगती है (ईट हेल्प्स इन रिजेंरेशन आफ देमेज्द तिस्युस )।
इस प्रकार जख्म पर यह शीट लगाने के बाद ऊतकों का नवीनीकरण होने लगता है ।
इस प्रोटीन पैच कों -ला - इफ सेविंग पैच कहा जा रहा है ।
अलावा इसके कोलोदार्मिस बेद- सोर्स ,स्किन- अल्सर्स तथा बर्न्स कों भी दुरुस्त कर सकता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :लाइफ सेविंग पैच (टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २५ ,२००९ ,पृष्ठ २० )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

भारत की ख़राब होती सेहत

धीरे धीरे भारत रोगों की राजधानी बनता जा रहा है ,वजह है गत तीन दशकों में खान -पान की आदतों में आया बदलाव ।
आज भारत में कुल ५ करोड़ ८० लाख लोग मधुमेह (डायबिटीज़ )से ग्रस्त है २०१० तक इनकी संख्या बढ़कर ५ करोड़ ८७ लाख हो जायेगी (स्रोत इन्टरनेशनल दाय्बेतिक फॉरम )।
लांसेट (ब्रितानी विज्ञान पत्रिका )में २००८ में संपन्न एक अध्धय्यन के नतीजे प्रकाशित हुए है जिनमे बत - लाया गया है ,२०१० तक दुनिया भर में दिल के मरीजों का ६० फीसद भारत में होगा ।
कैंसर ,हाई -पर्तेंशन ,ओबेसिटी में भी भारत का ट्रेक रिकोर्ड अच्छा नहीं हैं .गर्भाशय -ग्रीवा (सर्विक्स ),ओरल कैंसर आदि के मामले भारत में बेशुमार बढ़ रहें हैं ।
चिकित्सा विज्ञान के माहिर इसकी वजह खान पान में आया आकस्मिक बदलाव बतलातें हैं -नतीजा है ,जीवन शैली रोग का फैलाव ।
आबादी में हमसे बहुत आगे रहा आया चीन सेहत के मामले में हमसे बेहतर है तो इसकी वजह साइकिल पर आना जाना रहा है ।
अलावा इसके चीनी खुराख में प्रोटीन ज्यादा चिकनाई कम है ,जबकि भारत में चिकनाई अन्य नस्लों के बरक्स २५ फीसद ज्यादा खाई जा रही है .मीठे (कार्बो -हाइड्रेट्स )के भी शौकीन रहें हैं भारतीय ।
असली कुसूरवार एक जीन है (थ्रिफ्ती जीन है यह )।
नतीजन एशियाई भूखों तो रह सकतें हैं ,अधिक खाना पीना इन्हें रास नहीं आता .इसीलिए इंसुलिन इन्तोल्रेंस बढ़ रहा है ,इंसुलिन इन्तोल्रेंस का मतलब है -डायबिटीज़ और मोटापा ।
सन्दर्भ सामिग्री :-इंडिया :डिजीज केपिटल (टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २५ ,२००९ ,पृष्ठ २० )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

पृथ्वी को गर्माहट से बचाने के लिए ....

पृथ्वी को विश्व -व्यापी तापन से पैदा गर्माहट से बचाने के लिए अब विज्ञानी बादलों में नमकीन पानी की पर्त रोप रहें हैं ।
भू -इंजीनिअरिंग प्रोद्योगिकी के ज़रिएअब बादलों की ब्रा -इत्नेस बढ़ाई जायेगी -इस एवज वायुयानों से महासागरों के ऊपर नमकीन पानी का बड़े पैमाने पर छिडकाव किया जाएगा .अल्ट्रा -फा- इन साल्ट वाटर मिस्ट (नमकीन पानी की अति -महीन धुंध ,हवाई -जहाजों से सागरों के ऊपर फैलाई जायेगी ।).
इन सूक्ष्म कणों की मौजूदगी में बादल अधिकाधिक पृथ्वी पर आपतित सौर विकिरण का अंश वापस अन्तरिक्ष में लौटा कर ठंडक पैदा करेंगे -जो ग्रीन हाउसिस गैसिस एमिशन से पैदा गर्माहट खासकर कुल जीवाश्म ईंधन से पैदा कार्बन -डाइऑक्साइड जन्य गर्माहट को नालिफाई (बराबर ,निष्क्रिय करेंगे )।
यूँ ग्रीन हाउस गैसें ही पृथ्वी को एक जीवन क्षम तापमान मुहैया कराये रहीं हैं ,पृथ्वी से निकलने वाली गर्मी (लॉन्ग वेव रेडिएशन को रोक कर ).लेकिन गत सौ सालों में कार्बन -डाइऑक्साइड की प्रति दस लाख भागों में एक सीमा से आगे की वृद्धि जलवायु परिवर्तन की घंटी बजा चुकी है -इसीलिए अभिनव उपाय आजमाए जा रहें हैं ।
"साल्ट वाटर फ़िल्म इन वाटर तू कूल अर्थ ?"इसी की अगली कड़ी है ।
एडिनबरा विश्व -विद्यालय में इंजीनिअरिंग डिजाइन के प्रोफेसर एमिरितास स्टीफेन साल्टर के शब्दों में "मेरीन क्लाउड ब्रा -इत्निंग कूद बी दन बाई पापुलेटिंग दी वर्ल्ड्स ओसन्स विद अपतु १५०० शिप्स ऑफ़ ऐ सम -व्हाट एक्सोटिक डिजाइन -सम -टाइम्स नॉन एज एल्बीदो -याच्ट्स ।
दीगर है की हादले सेंटर फार कलाई मेट प्रिदिक्षण एंड रिसर्च के एंडी जोन्स इसे अमेज़न के वर्षा वनों के लिए खतरे की घंटी बतलातें हैं ।
एंडी जोन्स कहतें हैं -दक्षिणी andh -महा -सागर (साउथ एटलांटिक )के ऊपर बादलों की चमक बढ़ने से एक तरफ़ क्लाउड कवर कम हो जाने से बरसात कम गिरेगी ,दूसरी तरफ़ अंध -महा -सागर के ठंडा हो जाने से वाष्पीकरण भी कमतर होता चला जाएगा ,आखिरकार अमेज़न के रैन फारेस्ट एक रेगिस्तान बन के रह जायेंगे -एक भरा पूरा एको सिस्टम नष्ट हो जाएगा .

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

गर्भा -वस्था का तनाव नर -फीटस को आगे चलकर बाँझ बना सकता है .

यूनिवर्सिटी आफ एडिनबरा एवं मेडिकल रिसर्च कौंसिल ने पता लगाया है -गर्भा -वस्था का तनाव वयस्क होते होते पुरूष की प्रजनन क्षमता को असरग्रस्त बना सकता है ।
विज्ञानियों ने अपने इस अध्धय्यन में स्ट्रेस हारमोन "ग्लूको -कोर्टी-कोइड्स "के साथ साथ ग्लूज़ ,पैंट्स और प्लास्टिक्स आदि उत्पादों में आम तौर पर पाये जाने वाले एक और रसायन की असर ग्रस्तता (प्रभाव )की पड़ताल की ।
पता चला दोनों का सांझा असर "रिप्रोदाक्तिव बर्थ दिफेक्ट्स की वजह बन सकता है .बात साफ़ है -एम्ब्रियो से लेकर फीटस तक गर्भा -वस्था में माँ द्वारा झेला तनाव जन्म जात "प्रजनन सम्बन्धी जन्म दोष" की वजह बन सकता है ।
क्र्य्प्तोर्चिदिस्म (फेलियोर आफ दी तेस्तिकिल्स तू दिसेंद इनटू दी स्क्रोतम )।
क्रिप्तोर्चिद (क्र्य्तोर्चिस )-एन इन्दिविज्युअल इन हूम आइदर आर बोथ तेस्तिकिल्स हेव नाट दिसेंदिद इनटू दी स्क्रोतम .,देत इज तेस्तिकिल्स फेल तू ड्राप ।
एक प्रजनन सम्बन्धी जन्म दोष और देखा गया है -तनाव की सौगात के रूप में -"ह्य्पोस्पदिअस "वें न दी यूरिनरी ट्रेक्ट इज रोंगली एला- इंद ।
दी कंडीशंस आर दी मोस्ट कामन बर्थ दिफेक्ट्स इन मेल बेबीज़ ।
अध्धय्यन के तहत चिकित्सा -विज्ञानियों ने नर -चूहे की एम्ब्रियो से लेकर फीटल से लेकर गर्भा -वस्था की पूर्ण अवस्था तक हर चरण में पड़ताल की है ।(ड्यूरिंग दी स्टडी दी रिसर्चर्स एक्सामिंद दी मेल फीटल डिवेलपमेंट इन रेट्स .)
नतीजा आपके सामने है -एक्सपोज़र तू स्ट्रेस ,व्हाइल इन फीटस कैन इफेक्ट मेल फर्टिलिटी ।
सन्दर्भ सामिग्री :-
(टाईम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २३ ,२००९ ,पृष्ठ १६ )

मेंथ्रो -पोलाजी और आधुनिक मानव (होमिओसेपियन ).

मानव विज्ञान (न्रि-विज्ञान यानी अन्थ्रा-पालाजी ) से हम और आप कला संकाय (आर्ट्स फेकल्टी )के एक विषय के रूप में परिचित हैं .लेकिन इधर चर्चा "मेंथ्रा-पोलोजी "की चल पड़ी है -यह सिलसिला तब से जारी है जबसे क्रोमोजोम्स -वाई (गुणसूत्र -वाई )के छीजते चले जाने के बारे में आनुवंशिक - विदों ने इत्तला दी है ।
गत सप्ताह डेनमार्क में संपन्न एक अध्धय्यन में बतलाया गया है -ह्यूमेन स्पर्म काउंट (एक बार के संख्लन यानी इजेक्युलेषण से निसृत (प्राप्त )स्पर्मेताज़ोआन की तादाद ,शुक्राणुओं की संख्या )भी तेज़ी से घट रही है ।
एक औत्रेलियन मानव -शास्त्री (एन्थ्रोपोलोजिस्त )पीटर म्काल्लिस्टर ने तो बाकायदा एक किताब ही लिख दी है -"मेंथ्रोपोलोजी "जिसमे आधुनिक मानव के एक कमज़ोर ,आत्म विश्वाश हीन इंसान "विम्प "बनते चले जाने का किस्सा है ।
"मेंथ्रोपोलोजी कैन बी दिफा -इंद एज दी साइंस आफ इन -एडिक्युएत माड्रन मेल .-पीटर म्काल्लिस्टर "
बकौल पीटर प्रागैतिहासिक इंसान (मेल )ने आधुनिक ओलम्पिक खेलों के तमाम रिकार्डों को बौना साबित कर दिया होता ।
आज के योरपीय मर्द से निएन्दर्थाल औरत कहीं ज्यादा स्थूल काय (१० फीसद ज्यादा मसल पावर लिए थी )थी वह मर्दों के साथ शिकार पर निकलती थी ।
सौ साल पहले मर्द ने भी आज के हाई -जम्पर्स (रूसी आंद्रे सिल्नोव ,तुत्सी में इन रवांडा का २.४५ मीटर्स हाई -जम्प का विश्व -कीर्तिमान तोड़ दिया होता ।
जो हो किस्सा एक्स -वाई शख्शियत (आधुनिक मर्द )के कमज़ोर पड़ने का बयान किया गया है ।
जो हो आदमी की हर तकलीफ के लिए कुसूरवार औरत नहीं रही है -मर्द का ही व्यवहार मुर्खता - पूर्ण सनक भरा रहा होगा ।
शुक्राणुओं का तादाद घटने की और भी वजह रहीं होंगीं ।
मसलन टाइट पेंट्स (क्षमा करें जींस ),हाट तुब्स ,मोबाइल फोन्स ,लेप -टोप्स ,मोटापा ,विनाशक -जीव -नाशी यानी पेस्तिसैड्स भी इसकी वजह रहे होंगे ।
धूम्र -पान को कैसे छोड़ सकतें हैं जो पीनाइल -आर्त्रीज़ में ब्लड आपूर्ति को असर ग्रस्त करसकता है ,इरेक्टाइल -डिसफंक्शन की भी वजह बन सकता है -धूम्र -पान ।
फास्ट फूड्स की अपनी यशो गाथा है -इनमे मौजूद सोय फिमेल हारमोन इस्ट्रोजन को मिमिक करता है ।
जीवन शैली से जुड़ी और भी खुराफातें (यथा एल्काहलिज्म ,तम्बाखू का बहुविध सेवन आदि ) इसके लियें उत्तरदाई होंगी ।
रही सही कसर मर्द को खिजाने की विज्ञानियों ने पूरी करदी है ।
ब्रितानी स्टेम सेल रिसर्च के माहिरों ने जुलाई २००९ में स्टेम सेल लेब में "ह्यूमेन स्पर्म "तैयार कर लेने की सगर्व घोषणा की थी ।
कुछ फेमिनिस्ट खुश फ़हमी पाल सकतीं हैं इस इत्तला से .क्लोनिग की ख़बर आने पर भी कहा गया था -सिर्फ़ दो औरतें भी अब प्रजनन (संतान उत्पत्ति )कर सकतीं हैं ।
मर्द अपेंडिक्स की तरह वेस्तिजिअल ओर्गेंन हो गया है ।
पडा रहेगा एक कोने में "सेक्स तोय ",एक मर्दानी -बिम्बों (यानी हिम्बो )की तरह ,एक खूबसूरत लेकिन बेवकूफ पुरूष रंडी (व्होर )की तरह ।
प्रजनन के अलावा दिल बहलाव ,एफ्रो -दीजियाक ,यौन उद्दीपक का काम करेगा मर्द ।
हमारा मानना है -दिल के बहलाने को गालिब ख़याल अच्छा है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २२ ,२००९ ,पृष्ठ १६ ,कालम "एर्रतिका "-हेल्लेलुजः ,इट्स स्त्रेनिंग में -बची करकरिया ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

वायु प्रदुषण और बुढापे का डिमेंशिया .

हेनरिख हैइन यूनिवर्सिटी दुस्सेल्दोर्फ़ के शोध कर्ताओं ने अपने एक अध्धय्यन में बुजुर्ग महिलाओं में होने वाले "कोगनिटिव इम्पैर्मेंट "संज्ञानात्मक -क्षति और वायु -प्रदूषण में एक अंतर्संबंध की पड़ताल की है ।
अध्धय्यन में उन महिलाओं के नाम पते ,उम्र ,व्यस्त राज मार्गों से उनके आवासों की दूरी दर्ज की गई .संज्ञानात्मक परीक्षणों से पता चला -७४ साल से नीचे की उम्र वाली महिलायें जितना अधिक इन राजमार्गों के समीप रहतीं थीं ,उनमे कोगनिटिव -इम्पैर्मेंट भी उतना ही ज्यादा है ।
ऐसा प्रतीत होता है -वायु में मौजूद महीन कण बारास्ता लंग्स दिमाग के उस हिस्से में पहुँच कर इन्फ्लेमेशन पैदा कर्देतें हैं जिसका सम्बन्ध डिमेंशिया से जोड़ा जाता है ।
बात साफ़ है .जीवन की गुणवता को बनाए रखने में -आबो हवा का अपना हाथ है .हमने अपनी करतूतों से ,अपने कार्बन फ़ुट प्रिंट से अपनी ही हवा पानी की गुणवता ,तात्त्विक ता नष्ट कर डाली है ,अंजाम तो भुगतना ही होगा .

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

उम्र सौ की शरीर पचास साला .

ब्रितानी विज्ञानी रिजेंरेतिव थिएरेपी पर काम कर रहें हैं -जो सौ साला (शतायु लोगों को )लोगों को पचास साला होने का एहसास करवा सकेगी .,जिसके तहत उम्र के साथ नाकारा हो चुके बॉडी पार्ट्स को (ओंन ग्रोन तिस्युस एंड द्युरेबिल इम्प्लान्ट्स )को टिकाऊ बॉडी पार्ट्स से बदला जा सकेगा .शुरुआत होगी -न्यू हिप्स ,नीज और हार्ट वाल्वस से ।
लीड्स यूनिवर्सिटी के शोध छात्र अगले ५ सालों में इस एवज ५० मिलियन पौंड्स खर्च करने जा रहें हैं ।
मौजूदा आर्तिफ्शिअल हिप्स की आयु लेदेकर २० साल है जबकि युनिवार्सितिज़ इन्स्तित्युत आफ मेडिकल एंड बायो -इंजीनियरिंगने एक ऐसा हिप इम्प्लांट कर दिखाया है जिस पर ता -उम्र भरोसा किया जा सकता है .बकौल प्रोफेसर जान फिशर इसमे कोबाल्ट -क्रोम मेटल का एक सोकित और एक सिरेमिक बाल है -इसे धारण करने वाला पचास साला व्यक्ति आइन्दा पचास सालों में १० करोड़ कदम आराम से चल सकेगा सौ साला होने तक ।
शरीर से स्वीकृति दिलाने के लिए (विजातीय प्रत्यारोपित अंग को शरीर प्रति -रक्षा तंत्र अस्वीकृत कर देता है )ऐसे तिस्युज़ और ओर्गेंस पर विज्ञानी काम कर रहें हैं जिन्हें स्वयं हमारा शरीर ही तैयार करेगा .ताकि प्रत्यारो प के अस्वीकृत होने की संभावना ही ना रहे एक ऐसी टेक्नीक के तहत एक हेल्दी डोनर हार्ट वाल्व लेकर उससे एंजाइम्स की एक कोक टेलऔर दितार्जेंट्स की मदद से उसकी कोशिकाएं अलग करके पूरी तरह कार्य क्षम हार्ट वाल्वस तैयार भी कर लिए गए हैं ।
(दी इनर स्केफोल्ड लेफ्ट कैन बी ट्रांस -प्लान्तिद इनटू दी पेशेंट विद आउट एनी फियर आफ रिजेक्शन -दीमें न रीज़न वाई नोर्मल ट्रांस -प्लांट्स विअर आउट एंड फेल .वंस दी
स्केफोल्ड इज ट्रांस -प्लान्तिद दी बोदी टेक्स ओवर एंड रिपोपुलेट्स इत विद सेल्स ।अब तक -
पशुओं और ४० मनुष्यों पर किए गए परीक्षणों के नतीजे उत्साह वर्धक रहें हैं ।
इसी तरीके की आज़माइश अब बर्न पेशेंट्स के लिए डोनर स्किन पर की जायेंगी ।
३० -५० सालों में तमाम डोनर तिस्युस को रिप्लेस किया जा सकेगा .बेशक हरेक प्रोडक्ट (बोदी पार्ट )के लिए अलग से आज़माइश करनी होगी .धीरे धीरे डोनर ओर्गेंस का स्थान शरीर से बाहर रिजेंरेतिव चिकित्सा से तैयार किए गए अंग ले लेंगें .यकीनन सौ साला लोग (शत-आयु लोग )उम्र के दूसरे पचास(सेकिंड हाफ सेंचुरी) में भी उतने ही चुस्त दुरुस्त रह सकेंगे जितना पहले पचास (फस्ट हाफ सेंचुरी में )।
सन्दर्भ सामिग्री :-लिव तू ऐ हंड्रेड विद बोदी आफ ऐ ५० -इयर -ओल्ड (टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २१ ,२००९ ,पृष्ठ २१ ।)
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

कृषि कचरे से पहले चीनी फ़िर ईंधन ?

एक डच माइक्रो बाय्लोजिस्त (नीदर्लेन्ड वासी सूक्ष्म जैव -विज्ञानी )की माने तो जल्दी ही हमें लोगबाग कोर्न कोब्स के बने स्वेटर्स पहने दिखलाई देंगें ,अमरीका और कनाडा के घास के मैदानी इलाको से प्राप्त घास से तैयार ईंधन से हमारे वाहन दोड़ रहें होंगे जो हो -"नोवोज़ईम्स "जो आलमी स्तर पर उद्योगिक एंजाइम्स तैयार करने वाला सबसे बड़ा निगम है के मालिक स्टीन रीस्गार्द इसे कपोल कल्पना नहीं मानते ,करके दिखाने पर दृढ़ हैं कोर्न कोब्स क्या हैं ?ईट इज कोर आफ मेज़ इअर -दी हार्ड कोर तू विच इन्दिविज्युअल कर्नेल्स आफ मेज़ आर अटेच्ड .(भुट्टे का वह भाग जिसे भुट्टा खाकर आप फेंक देतें हैं -अब इसी से बनेंगे गरम -स्वेटर ,सक्रोज़ (शक्कर ),वाशिंग पाउडर एडिटिव्स ।
रीस्गार्द गन्ने और मक्का से जैविक ईंधन ,वाशिंग पाउडर एडिटिव्स के अलावा रासायनिक उद्योग से प्राप्त इतर सामान बनाने का बीडा उठा चुके हैं उनका कहना है -सारा काम चीनी से लिया जाएगा -आज का जैवरसायन इसे अन्य उपयोगी उत्पाद में तब्दील नहीं कर सका है ।
रीस्गार्द यही अजूबा करके दिखाना चाहतें हैं .गत दशक से वह एक कायम रहने लायक ,पुनर्प्रयोज्य ईंधन तेल (आइल )बना लेने की फिराक में हैं .एक पूरे रासायनिक उद्योग की रीढ़ बन ने जा रही है -विविध रूपा चीनी .कोर्नकोब्स पर लौट तें हैं -
फिलवक्त प्राप्त एंजाइम्स (किण्वक )मक्की के दानों या फ़िर "मारो आफ दी सुगर कैन "
को ही सरल रूपों में तोड़ पातें हैं ।गन्ने की रस निकाल ने के बाद बची "पोई "हस्क कचरा समझ के फेंक दी जाती है ।
इस प्रकार सभी पौधों का शल्क (छिलका ,भूसी )आदि की विशाल मात्रा बेकार चली जाती है -कृषि कचरे के रूप में ।
"नोवोज़ईम्स "निगम ने एक "ब्रेकथ्रू एंजाइम -कोक टेल तैयार की है जो इसी अपशिष्ट (फाइब्रस मेतिरिअल सख्त ,रेशों को )सरल रूपों में तोड़ कर पहले ग्लूकोज़ फ़िर (एक बुनियादी शक्कर )उससे -फ्यूअल ,फेब्रिक्स ,पैकेजिंग ,इतर उद्योगिक उत्पाद तैयार करने की मुद्रा में है ।
"नोवोज़ईम्स "ने अनुमान लगाया है -विश्व की एक चौथाई ईंधन खपत की आपूर्ति इसी कचरे को प्रयोज्य बनाकर की जा सकेगी ।
दूसरी पीढी के बायो -फ्युअल्स के लिए प्रेरी घास का स्तेमाल किया जाएगा -जो उत्तरी अमरीका और कनाडा के विशाल घास के मैदानों में बिना ऊर्वरक के उग आती है .यहाँ तक की इसे "वुड चिप्स "की भी ज़रूरत नहीं पड़ती है ।
"नोवोज़ईम्स "निगम यकीनन दुनिया का पहला निगम होगा -जो उक्त "एंजाइम्स कोक टेल का व्यावसायिक उत्पादन करेगा ।
अमरीकी निगम "वेरेनिम "२०१२ तक दूसरी पीढी के ईंधनका उत्पादन फ्लोरिडा राज्य में अपने प्लांट से करने लगेगा ।
यह तो वही बात हो गई _हींग लगे ना फिटकरी रंग चौखा ही चौखा और आम के आम गुठलियों के दाम ।
खरपतवार और कृषि उत्पाद से एक भरा पूरा रसायन उद्योग दौडे गा ।
सन्दर्भ सामिग्री :-सुगर सेट तू रिप्लेस आइल एज दी न्यू फ्यूअल ?(टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २० ,२००९ ,पृष्ठ १३ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

बोवेल कैंसर की शिनाख्त (अर्ली -डायग्नोसिस )के लिए -विर्च्युअल कोलोनोस्कोपी .

अंतडियों के कैंसर के शुरूआती चरण में ही निदान के लिए अब एक आसान सी तरकीब (नॉन -इनवेसिव ,आसान परिक्षण )वर्च्युअल -कोलोनोस्कोपी ईजाद की गई है -जिसके तहत शरीर के बाहर से ही शरीर में ताकझाँक के लिए विभिन्न दिशाओं से अंतडियों का एक्स -रे उतारा जा सकेगा .कम्प्युत्रिकृत तोमोग्रेफी के ज़रिये अंतडियों की त्रि -आयामी तस्वीर उतारी जा सकेगी ।
बस मरीज़ को ४८ घंटे की फास्टिंग करनी होगी एक एक विरेचक (पेट साफ़ करने के लिए एक पावरफुल लेक्सेतिव लेना होगा ।
अलबत्ता इस रोग्नैदानिक परिक्षण में मात्र ५ मिनिट लगेंगें ।
सन्दर्भ सामिग्री :टेस्ट दितेकेट्स बोवेल कैंसर फ्रॉम आउट -साइड :(टाइम्स आफ इंडिया .अक्टूबर ,१९ ,२००९ ,पृष्ठ १३ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).

ओर्थोरेक्सिक ,बुलिमिया ,अनोरेक्सिक नर्वोसा की जद में आते .....

खूबसूरत दिखने का ओब्सेसन इनदिनों -बुलिमिया ,ओर्थोरेक्सिक और अनोरेक्सिक नर्वोसा के रूप में अधिकाधिक सामने आ रहा है .सेहत के लिए तीनो ही खतरनाक हैं ।
बुलिमिया में आप पहले बे -इन्तहा खाए चले जातें हैं (बिंजईटिंग करतें हैं )और फ़िर वजन ना बढे और पोषक तत्व शरीर में रह जाएँ इस दिल्युस्जन (भ्रांत धारणा )में आप सेल्फ इन्द्युस्द डायरिया और वोमिटिंग के लिए लेक्सेतिव्स और अन्य उपाय आज़मातें हैं -ताकि आदर्श कद काठी के अनुरूप आपका वेट बना रहे (अक्सर पहलवान ऐसा करते देखे जातें हैं )।
अनोरेक्सियानर्वोसा १२ -२१ साला युवतियों का ओबसेशन है ,मोटा होते जाने का भ्रम है ,जीरो फिगर को पाने का ओबसेशन है .जिसमे युवतियां शीशे के सामने अपनी फिगर जब भी निहारतीं हैं -उन्हें लगता है ,वे बेहद मुतिया रहीं हैं -चाहें शरीर सूख कर कृशकाय हो जाए .बोदी वेट आदर्श कद -काठी के अनुरूप वेट से २५ फीसद या और भी ज्यादा कम हो जाए और इन्हें यह भ्रम बना रहे -हम मोटे हो गए ,हमारा फिगर ख़राब हो गया यही वहम सालता रहे ।
और तीसरे छोर पर है -२४ घंटा हेल्दी और सिर्फ़ हेल्दी फ़ूड के बारे में सोचते रहना ,फ़ूड केलोरीज़ गिनते रहना ,और इस प्रक्रिया में और कुछ भी ना कर पाना ।
जीवन में थोडा बहुत ओबसेशन तो सब को ही होता है -मसलन घर लोक करने के बाद एक बार लौट कर फ़िर चेक करना -लोक लगाया था या नहीं ,ठीक से लोक हुआ या नहीं ,लेकिन बार बार लौट कर लोक ही चेक करते जाना ,आफिस से बीच में कई मर्तबा आकर ऐसा कर जाना ॥
सिर्फ़ हाथ धोते रहना या फ़िर बार बार झाडू पौंछा करते रहना दिन में बीसियों बार एक ओबसेशन है एक "ओब्सेसिव कम्पल्सिव दिस -आर्डर है ,जिसका बा कायदा इलाज़ होना चाहिए ।
बुलिमिया नर्वोसा ,ओर्थोरेक्सिक नर्वोसा और अन्रोक्सिया नर्वोसा इसी का प्रकट रूप है ,मेनिफेस्तेशन है ।
एक आधुनिक जीवन शैली रोग है ,जिसका बाकायदा इलाज़ होना चाहिए ।
अनोरेक्सिया नर्वोसा का एक माम ला मैंने ख़ुद अपने आस पास देखा है .वह खूबसूरत किशोरी बाकायदा हमारे घर आती थी .हमारे बच्चों के साथ एक ही स्कूल में पड़ती थी .माँ उसकी सी एम् ओ ज़रूर थी लेकिन उसकी बीमारी उन्होंने किसी से सांझा नही की .वह लड़की हमारे घर आकर छुप जाती थी ,भूख जैसा कुछ लगने पर सिकी हुई रोटी को और सेंकती थी दरहकीकत जला लेती थी ,दाल में और पानी मिला लेती थी .मुझे अपनी बिटिया से पता चला उसकी माहवारी भी बंद हो गई थी .कृशकाय देह अस्थि पंजर हो चली थी ,उसे बचाया नही जा सका .आज तक मैं यह हादसा भूल नहीं सका .

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

सौर मंडल के बाहर ३२ नए ग्रहों का और पता चला ,क्या जीवन भी है ?

अब तक सौर मंडल के बाहर ४०० से भी ज्यादा ग्रहों (एक्सो -प्लेनेट्स )का पता चल चुका है ।
यूरोपीय सदरणobservatory (वैध शाला )टेलिस्कोप के खगोल विज्ञानियों ने एक साथ सौर मंडल के बाहर ३२ नए ग्रहों का पता लगाया है .बेशक इनमे से एक भी पृथ्वी के आकार का नहीं है ,जहाँ आवास की संभावना दिखे,इनमे से कुछ पृथ्वी से ५ गुना तो कई बृहस्पति से भी ५-१० गुना भारी हैं ,ज्यादा द्रव्य राशि छिपाए हुए हैं ।
जिनेवा विश्व -विद्द्यालय के खगोल विद स्टेफेन उदर्य कहतें हैं ,इससे इस संभावना को बल अवश्य मिला है ,सृष्ठी (ब्रह्माण्ड )में पृथ्वी जैसे ग्रह और भी हो सकतें हैं ,जहाँ जीवन हो सकता है ।
पुर्तगाल में संपन्न एक बैठक में इन ग्रहों के बारे में बतलाया गया है ,इनके अन्वेषण में ला सिल्ला स्तिथ हर्प्स स्पेक्ट्रोमीटर का स्तेमाल कियागया है ,अब तक ग्रहों की शिनाख्त में कई किस्म की खगोल विज्ञानिक तकनीकों ,दूर -बीनों ,रेडियो -तेलिस्कोप्स आदि का स्तेमाल किया जाता रहा है .और इस प्रकार ४०० से भी ज्यादा भोमैतर ग्रहों का पता लगाया जा चुका है .अन्वेषण अभी जारी हैं .खगोल विज्ञानियों का एक खेमा मानता है -पृथ्वी के अलावा भी अन्य ग्रहों पर जीवन है -सर्च फार एक्स्ट्रा तेरिस्त्रल इंटेलिजेंस (सेती )उसी का हिस्सा है .

एनर्जी ड्रिंक्स का सच

मिथ या यथार्थ :एनर्जी ड्रिंक्स अप परफोर्मेंस ।
जहाँ तक खेल कूद में आपकी परफोर्मेंस का सवाल है -खिलाडियों की क्षमता और उनके अपने ही रिकोर्ड को सुधारने में ड्रिंक्स का कोई हाथ नहीं है ।
प्रदर्शन नहीं सुधरता है खिलाड़ियों का एनर्जी ड्रिंक्स (स्पोर्ट्स ड्रिंक्स )से .यूँ कितने ही लोग खेलकूद में अपना प्रदर्शन सुधारने के लियें एनर्जी ड्रिंक्स का स्तेमाल करतें हैं ,वह भी एक दैत्य की तरह ,और कुछ ना सही उन्हें प्रदर्शन सुधरने का भ्रम ज़रूर रहता है ।
एक शोधार्थी (१२ वर्षीय )ब्रेंडन ओ ,नील ने अपने एक अध्धय्यन में इसकी पड़ताल के लिए -एक श्रृंख्ला बद्ध परिक्षण के दौरान एक केफिनेतिद मोंस्टर की तुलना एक दी -केफिनेतिद स्प्राईट (यक्ष या बेताल )से की .पता चला -खिलाडिओं के प्रदर्शन सुधार में "एनर्जी ड्रिंक्स "का कोई हाथ नहीं है .महज विज्ञापनी माया जाल हैं -एनर्जी ड्रिंक्स ।
सन्दर्भ सामिग्री :-एनर्जी ड्रिंक्स डोंट अप परफोर्मेंस (टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २० ,२००९ ,पृष्ठ १३ .)

विटामिन पिल्स से हो सकता है -कैंसर .

जो लोग संतुलित खुराख ना लेकर -विटामिन सप्लीमेंट्स और खनिज संपूरक का नियमित सेवन करने लागतें हैं उन्हें कैंसर का ख़तरा और भी बढ़ जाता है ।
बेशक कुछ ख़ास पुष्टिकर तत्वों से भर -पूर ,एक ख़ास दायित्री पेट्रन कैंसर से बचाव में मददगार हो सकता है ,लेकिन उन्हीं तत्वों से भर -पूर संपूरक विटामिन और खनिज लवण वही बचावी असर पैदा करें यह कतईज़रूरी नहीं .इन सम्पूर्कों की हाई -दोजिज़ क्या गुल खिलाएं इसका कोई निश्चय नहीं ।
शोध से पता चला है -विटामिन -ऐ और इ की बड़ी खुराखें आपको बीमार ज़रूर बना सकतीं हैं ।
बीमारी दूर करने की तो दूर कैंसर की सौगात थमा सकतीं हैं -विटामिन -पिल्स ।
वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड के लिए -विज्ञान और चिकित्सा सलाहकार प्रोफेसर मार्टिन वाइज़ मन उक्त तथ्य की पुष्टि करतें हैं .

काफी के प्याले में "न्यूट्री -कास्मेटिक्स "-विज्ञापन जगत का नया फंडा

सिंगापुर के बाज़ार में इन दिनों एक ऐसी "इंस्टेंट काफी "उतारी गई है जिसमे बहुचर्चित "न्यूट्री -कास्मेटिक्स "का एक मुख्य घटक कोलाजन शामिल किया गया है ।
न्युत्रिकास्मेतिक्स को ना सिर्फ़ आपकी आंखों ,केशराशि त्वचा और आपकी खूबसूरती के लिए बढिया बतलाया गया कुलमिलाकर आपकी शख्सियत को चार चाँद लगाने वाला भी इसीलियें इनदिनों "न्यूट्री कास्मेटिक्स "का बारहा ज़िक्र किया जाता है ।
खाने की चीज़ों से लेकर ड्रिंक्स तक आज न्यूट्री -कास्मेटिक्स का ही बोलबाला है -ऐसे में हरदिल अज़ीज़ काफी कैसे इसके हल्ले से बचती ।
बतलाया गया है -काफ़ी का एक प्याला आपके चेहरे को दर्शनीय बना सकता है -बशर्ते आप "कोलाजन युक्त काफी "का नियमित सेवन करें ।
बेशक विज्ञान इस तरह के दावों पर अपनी मोहर नहीं लगाता -लेकिन साहिब -विज्ञापनी चकाचौंध में विज्ञान के खरीदार हैं कितने ?
विज्ञान तो साफ़ लफ्जों में कहता है -कोलाजन जो एक प्रोटीन ही है -हमारी अंतडियों में पहुंचकर जो साधारण घटकों में टूट जाता है और मल के साथ निष्कासित हो जाता है (ईट
इज ब्रोकिन डाउन बाई दा गट बिफोर बीइंग एक्स्क्रेतेद )।
ऐसे में जनाब त्वचा की चमक (ग्लो )कैसे पाइयेगा ?
बेशक कोलाजन एक इलास्टिक (प्रत्त्या स्तिथ पदार्थ है ,एक इलास्टिक मैटिरियल है )जो त्वचा की शेप को बनाए रखने में मददगार है -कास्मेटिक सर्जन इसका स्तेमाल एक फिल्लर के बतौर करतें हैं ,बहुप्रचारित (हां -इप्द )एंटी -रिंकल क्रीम्स का यह एक घटक मात्र है -खुदा नहीं है -जो उम्र के निशानों को मिटा देगा .आगे मर्जी आपकी ?
सन्दर्भ सामिग्री :-नाओ इंस्टेंटफेस लिफ्ट विद ऐ कप आफ काफ़ी (टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २० ,२००९ )

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

दादाजी के नेट पे बैठने का मतलब "डिमेंशिया"से बचाव .

यूनिवर्सिटीआफ केलिफोर्निया लासेंजीलीज़ में न्यूरो -साइंस के प्रोफेसर गेरी स्माल द्वारा संपन्न एक अध्धय्यन से इस बात की पुष्टि हुई है ,नेट सर्फिंग से बुजुर्ग लोगों का दिमाग पैना हो जाता है ,दिमागी सक्रियता बढ़ जाती है ,नतीजतन उम्र सम्बन्धी डिमेंशिया ,याद -दाश्त का छीजना भी कमतर हो जाता है .अपने इस अध्धय्यन में गेरी ने ५५ -७८ साला २४ मर्दों और औरतों को शामिल किया -इनके फंक्शनल मेग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग के ज़रिये ब्रेन स्केन्स उस समय लिए गए जब ये इंटरनेट सर्चिंग में मशगूल थे ।
पता चला नेट सर्चिंग एक ब्रेन -स्तिम्युलेंत का काम कर रहा है -ब्रेन की सक्रियता यकायक बढ़ गई है ,सैसन समाप्त होने पर भी सक्रियता बढ़ी हुई दर्ज की गई ।
इस प्रक्रिया में रक्त संचरण में होने वाले परिवर्तन (ब्लड फ्लो )के ज़रिये इस बात का जायजा लिया गया -दिमाग का कौन सा हिस्सा सबसे ज्यादा और कौनसा कमतर सक्रीय रहा .,नेट सर्फिंग के दरमियान और थोडा उसके बाद में भी यही सक्रियता कायम देखी गई -इसके बाद इन लोगों को घर पर एक पखवाडेमें केवल सात बार एक घंटा विशेष सार्फिंग करते रहने के लिया कहा गया ।
इस स्पेसल टास्क को संपन्न कर लेने पर एक बार फ़िर इनका ब्रेन स्केन उतारा गया ।
पता चला -पहले लिए गए स्कैन में दिमाग के उन हिस्सों में बढ़ी हुई सक्रियता दर्ज की गई -जिनका सम्बन्ध भाषिक नियंत्रण ,पढने ,याद दाश्त और विज़न (नज़रिए )से होता है ।
दूसरे स्केन के वक्त तक एक्तिवेतिद एरियाज़ (दिमाग के सक्रियकृत क्षेत्र ) विस्तारित होकर फ्रंटल ज्ञ्रुस तक पहुँच चुके थे ।
यही वह क्षेत्र है (ऐ रौंदिद रिज आन दी आ -उतर लेयर आफ दी ब्रेन -फ्रंटल जैरुस )जो वर्किंग मेमोरी और दिसिज़ं न मेकिंग (निर्णय लेने की क्षमता )से तालुक्क रखता है ।
जाहिर है पढने से ज्यादा मुफीद है -नेट सर्फिंग जिसमे एक साथ कई टास्क संपन्न करने पडतें हैं -ला -इक होल्डिंग इन्फार्मेशन इन मेमोरी वा -इल असेसिंग दाता आन स्क्रीन .

रविवार, 18 अक्तूबर 2009

हिमनदों का पिघलाव जारी .......

भारत सरकार हमेशा की तरह डिनायल (नकार )की मुद्रा में है .बकौल पर्यावरण मंत्री जैराम रमेश -अभी जलवायु परिवर्तन और हिमनदों के पिघलाव के बीच किसी भी नतीजे पर पहुँचने से पहले और अध्धय्यनों की ज़रूरत है ।
बेशक (बकौल मंत्री ,पर्यावरण )कुछ हिमनद (हिमालय क्षेत्र से )पश्चगमन कर रहें हैं (रिसीद )कर रहें हैं ,लेकिन कुछ और जैसे सियाचिन ग्लेसिअर आगे की और बढ़ रहें हैं ,यानी विस्तार पा रहें हैं सिकुड़ नहीं रहें हैं ,जबकि कुछ और जैसे की गंगोत्री ग्लेसियर का पश्चगमन (रिसीद करना ) अब कमतर हुआ है गत दो दशकों की तुलना में ।
लेकिन हिमनद विज्ञानी (कश्मीर विश्व -विद्द्यालय ,भूगर्भ विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर शकील रामसू )अलग ही कहानी कह रहें हैं ,कश्मीर राज्य का सबसे विशाल हिमनद झेलम और और उसकी अनेक धाराओं ,झीलों की जीवन रेखा रहा आया हिमनद "कोलाहोई ग्लेशिअर "अलार्मिंग स्पीड ०.०८ वर्ग किलोमीटर प्रति साल "(क्षमा करें यह स्पीड की ईकाई नहीं है )से पश्च -गमन कर रहा है ,इतना ही नहीं कश्मीर के अन्य अनेक लघु ,लघुतर ग्लेशिर भी सिकुड़ रहे हैं .वजह है -शीत -रितू के तापमानों का लगातार बढ़ते जारी रहना .यह जलवायु परिवर्तन के शुरू होने की घंटीतो नहीं है -जय -राम -रमेशजी ?
सन्दर्भ सामिग्री :-ग्लेसिअर फीडिंग झेलममेल्टिंग अत एलार्मिंग स्पीड ,फांड्स स्टडी(टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर १३ ,२००९ ,पृष्ठ १५ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

झेलम की जीवन रेखा रहे हिमनद अब तेजी से पिघल रहें हैं .

हिमालय के दूसरे हिमनदों की तुलना में झेलम की अब तक जीवन रेखा रहे हिम नाद कहीं ज्यादा तेजी से पिघल रहें हैं ,एक हालिया अध्धय्यन ने इसकी पुष्टि की है ।
गत सौ सालों में इस पर्बतीय क्षेत्र के तापमानों में अब तक १.१ सेल्सिअस की वृद्धि दर्ज की जा चुकी है ,इसीलिए हिमालय क्षेत्र के हिमनदों का तेज़ी से सफाया होता रहा है -यह सब जलवायु परिवर्तन की तरफ आम औ ख़ास का ध्यान खींचने के लिए क्या नाकाफी है ?
गत तीस सालों में ११ वर्ग किलोमीटर में फैला कश्मीर का "कोलाहोई -हिमनद "२.६३ वर्ग किलोमीटर सिकुड़ चुका है ।
हर साल यह हिमनद ०.०८ वर्ग -किलोमीटर तक सिकुड़ रहा है ।
कश्मीर विश्व -विद्द्यालय के भू -गर्भ विभाग के हिमनद -माहिर शकील रामसू ने उक्त नतीजे हाल ही में एक वर्क शाप में श्रीनगर में प्रस्तुत किए हैं .यह अध्धय्यन तीन सालों तक जारी रहा है ।
कश्मीर की जीवन रेखा झेलम ,इतर सहायक जल धाराओं ,झीलों को यही हिमनद सींचता रहा है ।
नै सहस्राब्दी में हिमनदों के पिघलने की रफ़्तार दोगुना हो चुकी है -२००६ में हिमनद सबसे ज्यादा पिघलें हैं .युनैतिद नेशंस इनवायरनमेंट प्रोग्रेम एंड वर्ल्ड ग्लेशियर मानिटरिंग सर्विस ने उक्त तथ्य की पुष्टि की है .

शिशूयों में पैरा- सितामोल टीकों के असर को कम करती है .

आम तौर पर एक ख़ास शेड्यूल के तहत (०-३साला बच्चों को )हिमोफिलास इन्फ़्ल्युएन्ज़ा टाईप-बी ,दिफ्थिरीया (गले का रोग रोहिणी जिसमे गले में सूजन आ जाती है ) टेटनस ,वूपिंग कफ (कुकर खांसी ,कुकास ),हिपेतैतिस -बी ,पोलियो तथा रोटा वाय
-रस आदि से बचाव के लिए टीके लगाए जातें हैं .टीको केफ़ौरन बाद अक्सर बच्चों को ज्वर (फिब्रिल कन्वल्शन आदि )से बचाव के लिए डॉक्टर एंटी -पाय -रितिक दवा -पेरासिटामोल (एसिता मिनोफें न ) लिख देतें हैं ।
अब चेक (चेकोस्लोवाकिया )रिपब्लिक के चिकित्सा कर्मियों ने पता लगाया है -यह ज्वर नाशी दवा टीको के असर को कम कर देती है ।
चेक यूनिवर्सिटी आफ डिफेन्स के रोमन प्र्य्मुला ने अपने एक अध्धय्यन में बतलाया है -यह दवा टीकों के उत्तर प्रभाव (पार्श्व प्रभाव )के बतौर होने वाले ज्वर (फिब्रिल कन्वल्शन आदि )की उग्रता को बेशक कम करदेती है लेकिन साथ ही यह बच्चों के रोग प्रति -रोधी तंत्र द्वारा कुछ वेक्सीन एंटीजन्स के प्रति होने वाली अनुक्रिया को भी कम कर देती है ,इसीलिए नफ़ा नुक्सान दोनों का ही जायजा लेने के बाद ही दवा (एसितामिनोफें न )दी जानी चाहिए ।
सन्दर्भ सामिग्री :-परा -सितामोल देम्पिंस वेक्सीन इफेक्ट इन किड्स :स्टडी (टाईम्स ऑफ़ इंडिया अक्टूबर १७ ,२००९ ,पृष्ठ -१७ )।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

प्रोढ़ अवस्था में मातृत्व के लियें -वित्रिफिकेशन (तीसरी किश्त )

डबल इनकम नो किड्स (यानी दी आई एन के -डिंकके बाद अब सिंगिल मदर -हुड का विचार जोड़ पकड़ने लगा है -कारण है -कैरियर कान्शाश नेस और मनपसंद साथी का ना मिल पाना .और इस विचार को परवान चढाया है -वित्रिफिकेशन ने (इस आलेख से पूर्व के दो आलेख में वित्रिफिकेशन को समझाया गया है जिसके तहत फिमेल एग (ऊसाईट या ओवम )को अतिप्रशीतित कर सुरक्षित रख लिया जाता है -आइन्दा स्तेमाल के लियें ।
भारत में गत डेढ़ दो सालों से फर्टिलिटी की माहिर डॉक्टर नंदिता पाल -स्हेत्कार (लीलावती और फोर्टिस ला फेमिन अस्पताल ,नै दिल्ली )के पास अब तक तीन महिलायें अपने उसा -इट्स फ्रीज़ करके रखवा चुकी हैं -इसी उम्मीद में "कभी ना कभी कहीं ना कहीं कोई ना कोई तो आयेगा ,अपना मुझे बनाएगा ,दिल में मुझे बिठाएगा "वगरना सिंगिल मदर -हुड तो है ही भविष्य के गर्भ में ।
"क्रयोज़ "देश का पहला अन्तर -राष्ट्रीय स्पर्म बेंक अभी तक स्पर्मेताज़ोआन (शुक्राणु )प्रशीतित करके रखता रहा है ,अब इस पर भारतीय चिकित्सा परिषद् का दवाब उसा -इट्स prasheetit karke rakhne ke liyen ban rahaa hai ,is aashay kaa ek bil bhi :assisted reproductive technology ke viniyaman ke liye aa saktaa hai .
Those females who undergo chemothreapy and radiothreapy treatment
for the क्युओर आफ कैंसर आफ दा ब्रेस्ट एंड और सर्विक्स रिद्युसिस दे आर चांस आफ फर्टिलिटी ।
वित्रिफिकेशन टेक्नीक ऐसी ही महिलाओं को उम्मीद से लबालब भर्ती है -जो स्तन कैंसर के इलाज़ के बतौर किमोत्थियेरिपी और विकिरण चिकित्सा (रेडियो थिरेपी )करा चुकी हैं और जिनके गर्भ धारण की संभावना उक्त चिकित्सा के पार्श्व प्रभावों की वजह से कमोबेश छीज चुकी है या कमतर हो चुकी है ।
अभी तक ऐसी महिलाओं को अंडाशय ही निकलवाकर एक पेचीला प्रक्रिया के तहत रखवाना पड़ता था जिसमे सर्वाइकल कार्टेक्स को ही टुकडा टुकडा कर प्रशीतित करके रखवाना पड़ता है .इस प्रक्रिया में अन्द्वाहिनी नालियां (फोलीकल्स )इसे तहा कर दोबारा तिस्यु कल्चर के सहारे तैयार करवानी पड़तीं हैं ।
वित्रिफिकेशन एक आसान और अपेक्षया कामयाब तरकीब है .

३५ के पार मातृत्व के लियें -वित्रिफिकेशन (दूसरी किश्त )

क्या है वित्रिफिकेशन ?
दी प्रोसेस आफ कंवर्टिंग मेतिरिअल्स इनटू ग्लास यानी पदार्थों को ग्लास (शीशे )में बदलने की क्रिया कहलाती है -वित्रिफिकेशन .वित्रिअस का अर्थ होता है ग्लास जैसा ।
वित्रिफिकेशन इज ऐ पाइंट एट विच ऐ पोट लूजिज़ इट्स पोरोसिटी ड्यूरिंग ऐ फायरिंग वित्रिफिकेशन in देन्तिस्ट्री :दी प्रोसिस आफ कंवर्टिंग ऐ सिलिकेट मेतिरिअल इन्तो ऐ
स्मूथ विस्क्स सब्सटेंस बाई हीत इज कॉल्ड वित्रिफिकेशन ॥
दी सिलिकेट मेतिरिअल हार्दिंस आन कूलिंग एंड पज़सिस ऐ स्मूथ ग्लासी सर्फेस ।
इन देन्तिस्ट्री ईट इज रिलेटिड तू दी एक्स्तेंसिव यूज़ आफ सिरेमिक्स ,सीमेंट्स एंड पोर्सिलेंस .दीज़ वेरी बाई दी एडिटिव कम्पोनेंट्स देत दितार्मिन दे -आर डेन्सिटी एंड रिफ्रेक्तिव क्वालितिईज़ ।
लेकिन फर्टिलिटी क्लिनिक में आकर इस का रूप बदल जाता है जहाँ उसा -इट्स (दी अर्ली एंड प्रिमिटिव ओवम बिफोर ईट हेज़ दिवेलेप्द कम्प्लीटली )यानी फिमेल एग को शरीर के सामान्य तापमान ३७ सेल्सिअस से तीन मिनिट के अन्दर अन्दर शून्य से १९६ सेल्सिअस नीचे लाकर फ़टाफ़ट तरल नाइट्रोजन के नन्ने बेरेल्स में ठंडा होने के लिए मनचाहे समय तक सुरक्षित रख लिया जाता है ।
जो महिलायें किसी भी वजह से बिना पति को प्यारी हुए (अविवाहित रहते )माँ बन ने का फैसला उम्र के किसी भी मुकाम पर आकर करतीं हैं ,वह स्पर्म बेंक से डोनर सिमें लेकर फर्टिलिटी के माहिरों के पास आ सकतीं हैं . कामयाबी ४० फीसद हाथ लगती है .१.५ लाख रूपया चाहिए ओवम के वित्रिफिकेशन के लिए जिसे आइन्दा कभी भी स्तेमाल में लिया जा सकता है .रजोनिवृत्ति के बाद भी इस विधि से "इनवीट्रो -फर्तिलैजेशन "मुमकिन है .

अधेड़ उम्र (३५ के पार )मातृत्व के लिए -वित्रिफ़िकेशन.

फर्टिलिटी के माहिरों ने उन महिलाओं के लिए मातृत्व के दरवाजे खोल दियें हैं ,जिन्हें संतान तो चाहिए लेकिन अपनी मह्त्व्कान्शाओं की कीमत पर नहीं ,जिन्हें अपना काम भी प्यारा है ,मर्द भी (जीवन साथी पढ़ें )मनपसंद नहीं मिल पा रहा है ।
फिमेल एग को प्रशीतित करके रखने की अब तक प्रचलित विधि में "इन वीट्रो फर्तिलाजेशन -परखनली गर्भाधान )"की कामयाबी डर बहुत ही कम रहती थी -१०० प्रशीतित अण्डों में से दो को ही लेदे कर कामयाबी मिल पाती थी संतान के रूप में (२ बर्थ्स पर १०० एग्स प्रिज़र्व्द ).कारण होता था -ह्यूमेन एग का धीरे धीरे ठंडा करके रखने की प्रक्रिया में विनाशक आइस -क्रिस्टल्स में तब्दील हो जाना .कारण है -एग के बहुलांश का जल सदृश्य तरल रूप होना .हमारे शरीर का ७५ फीसद भी तो पानी ही है ।
नै -तकनीक (फर्टिलिटी प्रोद्द्योगिकी )को नाम दिया गया है -वित्रिफ़िकेशन जिसके तहत ह्यूमेन एग सेल को तेजी से प्रशीतित किया जा ता है -सामान्य तापमान ३७ सेलिसिअस से (-१९६ सेल्सिअस )तक .इसके लिए अति सान्द्र क्रायो प्रोतेक्तेंत का प्रयोग किया जाता है .३ मिनिट में तापमान शून्य से १९६ सेल्सिअस हांसिल कर तरल नाइट्रोजन के बेरेल्स में अण्डों को सुरक्षित कर लिया जाता है -जैसे कोई रूपसी निद्रा में चली गई हो सुधबुध खोकर .यही है -वित्रिफ़िकेशन .(शेष अगले अंक में ....जारी )

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

ट्रांस्जेनेतिक ब्रिंजल के फायदे नुक्सान ?

एक अध्धय्यन में बी टी हाई ब्रीद ब्रिंजल में जहाँ फ्रूट नुकसानी २.५ -२० फीसद तक पाई गई वहीं इसकी नॉन बी टी किस्म में यह २४ -५८ फीसद तक दर्ज की गई ।
सेहत को खतरे कितने वाजिब ?
पाया गया है वेजिटेबिल कोशिकाओं में बी टी ब्रिंजल एक प्रोटीन बना डालता है जो एंटी बायोटिक रेजिस्टेंस खडा कर देती है .यानी इस तरकारी का सेवन करना सेहत के लिए निरापद नहीं है क्योंकि यह प्रति जैविकीय पदार्थों के प्रति एक प्रति रोध खडा कर लेती है ऐसे में एंटी बायोटिक बेअसर हो जा सकतें हैं ।
बी टी ब्रिंजल में नॉन बी टी के बरक्स १५ फीसद केलोरीज़ कम हैं .इसमे पाये जाने वाले एल्केलोइड्स भी जुदा हैं ।
इसमे १६ -१७ मिलिग्रेम /किलोग्रेम बी टी इन्सेक्तिसैद तोक्सिन हैं .यानी एक किलोग्रेम वेट बेंगन में १५ -१६ मिलिग्रेम कीट विष मौजूद है ।
यही विष मवेशियों की ब्लड केमिस्ट्री को असर ग्रस्त बना देता है .नर और मादा पशुओं में इसका असर जुदा देखा गया है ।
ब्लड क्लोतिंग टाइम (प्रो -थ्रोम्बिं न ),बिलीरूबिन की कुल मात्रा (यानी यकृत स्वाश्थ्य )तथा बकरियों और खरगोशों में अल्केलाइनफोस्फेत aसर ग्रस्त देखे गए ।
जिन चूहों को प्रयोग के तौर पर बी टी ब्रिंजल खिलाया गया उन्हें डायरिया हो गया ,पानी का इंटेक बढ़ गया लीवर वेट घट गया .लीवर तू बोदी वेट भी असर ग्रस्त हुआ ।
लेदेकर सुरक्षा मानक जांच ९० दिनों तक चलाई गई जबकि दीर्धावधि जांच से ही संभावित कैंसर्स और त्युमर्स होने का ख़तरा भांपा जा सकता है ।
दुधारू मवेशियों (गाय ,काओज़ )को जब बी टी ब्रिंजल खिलाया गया तब अलबत्ता उन्होंने दूध तो पहले से१० -१४ फीसद ज्यादा दिया लेकिन उनका वजन भी बढ़ गया ,सूखा चारा (ड्राई रफेज़ )भी उन्होंने पहले से ज्यादा खाया .ऐसा लगा जैसे उन्हें कोई हारमोन ट्रीटमेंट दिया गया हो ।
उधर ब्रोइलर चिकिंस (ज्यादा मांस देने वाली प्रजाति मुर्गियों की )के फीड इंटेक (खाई गई चारे की मात्रा )में भी फर्क दर्ज हुआ ।
१९९० आदि दशकों के बाद से ही जेनेटिकली मोडिफाइड ओर्गेनिस्म के ख़िलाफ़ इन्हीं सब बातों के मद्दे नज़र एतराज़ उठता रहा है ,अब तक ७०,००० लोग विरोध में आ चुकें हैं -आनुवंशिक तौर पर संशोधित फसलों के ,फूड्स के ।
मजेदार बात यह है -चोर से ही जांच करवाई गई है .मोंसंतो तो ख़ुद बीज निर्माता निगम है ,जिनका मकसद अधिकतम लाभार्जन ही होता है जन हित बाद में आतें हैं ।
मध्य प्रदेश में संपन्न एक अध्धय्यन में खेत और खेत मजदूर फेक्ट्री वर्कर्स को भी जी एम् फूड्स से असरग्रस्त पाया गया है ।
पर्यावरण के पहरुवे कीट पतंगों तितलियों माथ आदि पर बी टी ब्रिंजल की खेती क्या असर डालेगी इसकी किसे परवाह है ?ऐसे में पर्यावरण विदों का आवाज़ उठाना प्रासंगिक नहीं तो और क्या है ?प्री -एम्प्तिव एक्शन ज़रूरी है .

क्या पार जातीय बैंगन (जेनेटिकली मोडिफाइड ब्रिंजल )?

साइलबेक्तीरियम (मिटटी में मौजूद एक जीवाणु )बेसैलास -थ्युरिन -जिएंसिस से एक जीन निकालकर बेंगन में डालकर बेंगन की एक हाई -ब्रीद आनुवंशिक तौर पर तैयार की गई नाशक -जीव रोधी (पेस्ट रेजिस्तेंत )किस्म को ट्रांसजेनिक ब्रिंजल या फ़िर बी टी -ब्रिंजल कह दिया जाता है .बेंगन की खेती भारत के अलग अलग राज्यों में गत ४,०००सालो से हो रही है -अनेक स्थानीय किस्में हैं बेंगन की जो ना तो खाद की मांग करतीं हैं ना कीटनाशी या फ़िर विनाशक जीव -नाशी (पेस्तिसाईद )की .अलबत्ता इस फसल का ५० -७० फीसद भाग नाशक -जीव ब्रिंजल फ्रूट एंड शूट बोरर (एक कीट यथा लेपिदोप तेरां )द्वारा नष्ट कर दिया जाता है ,फसल को यह कीट बरबाद कर जाता रहा है ,गत दो तीन दशकों से यही हो रहा है .इन्सेक्ट लयूसिनोदेस ओर्बोनालिस ब्रिंजल फ्रूट एंड शूट बोरर तथा हेलिकोवेर्पा अर्मिगेरा फ्रूट बोरर के रूप में कुख्यात है ।
दरअसल बेंगन की संकर किस्म में शामिल बी टी तोक्सिन इस कीट की पाचन क्रिया को तहस नहस कर इसे नष्ट कर डालती है ,और फसल की बर्बादी कम तर हो जाती है ।
आर्थिक रूप से यदि अब तक होने वाली नुकसानी का जायजा लिया जाए तो गत दो या तीन दशकों में ही २२ करोड़ दस लाख डालर की फसल नष्ट हो चुकी है ,शायद इसीलिए बी टी ०ब्रिन्जल का गुन्गायन इन दिनों चल रहा है ।
एक तुलनात्मक आंकडा देखिये -जहाँ बी टी ब्रिंजल हाई ब्रीद में शूट नुकसानी ०.०४ -०.३ तक थी वहीं इसकी नॉन बी टी हाई ब्रीद में यही नुकसानी ०.१२ -२.५ फीसद बतलाई गई है .

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

तरंग आनुवंशिकी का मायावी संसार -तीसरी किश्त

विज्ञानियों का कहना है ,यदि एक सम्पूर्ण मानव अपनी शख्सियत के साथ -साथ "सामुदायिक चेतनता -ग्रुप कोंशाश्नेस "को भी फ़िर से हासिल करले तो वह तो भगवान् बन जाएगा ,वह चीज़ों का स्वरूप मनमाफिक तरीके से बदल सकेगा -मानवता धीरे धीरे इसी और बढ़ रही है ।ग्रुप कान्शाशनेस के माहिर -
शोध -छात्रों ने टाईप -वन सिविलिजेशन सिद्धांत का प्रतिपादन किया है -एक ऐसी मानवता के सामने ना किसी किस्म की पर्यावरण सम्बन्धी समस्या होगी ना ऊर्जा संकट .क्योंकि ये तमाम लोग एक सामुहिक्चेतना एक ग्रुप कान्शाश नेस के तहत अपनी तमाम मानसिक शक्तियों का stemaal prithvi naamaaak ग्रह पर maujood ऊर्जा sanshaadhanon के niyantran me कर सकेंगे ।
एक siddhantik (theoretical Type -२ ,civilisation )would even बी able तूकंट्रोल अल energies ऑफ़ their home गैलेक्सी ।
whenever अ great many people focus their attention or consciousness on something similar like Christmas टाइम ,foot बाल वर्ल्ड championship or दी funeral ऑफ़ michal jeckson then certain random नम्बर generators इन computers start तू डिलीवर ordered numbers instead ऑफ़ दी random ones .An ordered group consciousness creates order इन its whole surroundings ।
As अ rule weather इस rather difficult तू influence by अ single indvidual .But it may बी influenced by अ group consciousness (nothing new तू some tribes doing it इन their rain dance s .).weather इस strongly influenced by earth resonance frequencies ,दी सो called Schumann frequencies .but डोज़ same frequencies are आल्सो produced इन आवर ब्रेन्स एंड व्हेन मानी पीपुल सिन -करोनैज डे -आर थिंकिंग ,और इन्दिविदुअल्स (स्प्रितुअल मास्टर्स ,फॉर इन्स्तांस )फोकस डे -आर थाट्स इन लेजर -लैक फैशन ,देन ईट इज सा -इनती -फिकाली स्पीकिंग नाट इत आल सर -प्रैजिंग इफ दे कें एन दस इन फ्लुएंस वेदर .
यानी वाही शूमाँ आन फ्रीक्युएंसी अपना करिश्मा दिखा सकतीं हैं जब बहुत सारे लोग मिलाकर एक ही दिशा में सोचतें हैं .
यानी जो जड़ में है वाही तो चेतन में भी है ,इसलिए प्रकृति और हामारे जीवन खंडों ,जीवन इकाइयों जींस के साथ छेड़ छाड़ करना ठीक नहीं हैं ,खतरनाक है .अपने अन्दर समाहित ताकतों जेनेटिक साफ्ट वेअर जीन -प्रोग्रेमिंग पर भरोसा किजीये ।
सन्दर्भ सामिग्री :इवोल्यूशन -बायलाजी -वेव जेनेटिक्स दी वेव स्ट्रक्चर आफ मैटर एंड वेव जेनेटिक्स -गूगल सर्च -वेव जेनेटिक्स ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
नोट :पूअर ट्रेन्स -लिटरेशन सर्विस ने खिचडी भाषा ही परोसने दी ,माफ़ी चाहता हूँ -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

वेव जेनेटिक्स का मायावी संसार -दूसरी किश्त .

इन दिनों जेनेटिक इंजीनिरिंग एप्रूवल कमिटी द्वारा -बी टी -ब्रिंजल (आनुवंशिक तौर पर संवर्द्धित बेगन की सुधरी खेती )को हरी झंडी मिलने की बाद एक बार फ़िर यह चर्चा चल पड़ी है -जीन संवर्द्धित खाद्य प्रकृति पर्यावरण और स्वयं हमारे स्वाश्थ्य के लिए कितने निरापद हैं ?
पता चला है -बी टी ब्रिंजल बेंगन को शूट -बोरर से तो बचा लेता है ,फसल को कीडा नहीं लगता और कम -उपजाऊ धरती पर भी अच्छी फसल निकल आती है -लेकिन इसमे मौजूद एंटी -बायटिक हमारी रोग प्रति -रोधक क्षमता को असर ग्रस्त बनाता है -इम्मुं उन सिस्टम को कमजोर बनाता है ।
बात साफ़ है -जीव और जगत के रिश्ते लिनिअर नहीं हैं ,पेचीला हैं ।
आइये हाई -पर कम्युनिकेशन पर एक बार फ़िर लौट -ते हैं ,जिसके दरमियान हमारे दी एन ऐ में विशेष फिनोमिना देखी जा सकती है ।
अपने एक प्रयोग में रूसी विज्ञानियों ने जब एक दी एन ऐ साम्पिल पर लेजर प्रकाश डाला (आलोकित किया ,इरादिएत किया लेजर लाईट से ),एक विशेष वेव पट रन परदे पर उभरा ,जो तब भी बना रहा जब दी एन ऐ साम्पिल को ही उठा लिया गया ।
वजह थी दी एन ऐ के एनर्जी फील्ड का बने रहना .इस प्रभाव को अब फेंटम दी एन ऐ प्रभाव कहा जाता है .इसी प्रकार पहुंचे हुए सिद्ध पुरुषों के गिर्द भी एक एनेर्जी फील्ड बना रहता है .यही प्रभा मंडल है (औरा )।
इसी फील्ड की वजह से सी दी प्लेयर्स ,इतर इलेक्त्रोनी उपकरण काम करना बंद कर देतें हैं ,रिकॉर्डिंग दिवैसिज़ बेकार हो जातीं हैं ,लेकिन ऊर्जा -क्षेत्र के छीज जाने पर दोबारा काम करने लगतीं हैं ।
कई हीलर्स और साईं किक्स (मृत आत्माओं का आवाहन कर उनसे संवाद करलेने वाले सिद्ध पुरूष ,भविष्य जान लेने वाले ,दूसरे के विचार दूर से ही पढ़ समझ लेने वाले )इस फेंटम दी एन ऐ प्रभाव से अवगत हैं ,वाकिफ हैं इसके लीला संसार से -इसीलियें दी एन ऐ के साथ आनुवंशिक काट छाँट ,दी एन ऐ स्लैसिंग ठीक नहीं है ।
पहले के आदमी में isi haai par kamyunikeshan ke chalte ek saamudaayik chetnaa thi ,pashu jagat kaa kaaray vyaapaar aaj bhi isi group consciousness se chaltaa hai .पहले के आदमी में यही सामुदायिक चेतना थी ,पशु जगत का कार्य -व्यापर इसी ग्रुप कान्शाश्नेस से ही चलता है .ऐसा है -हाई पर कम्युनिकेशन का जादू जो सिर चढ़के बोलता है .
vayektik chetnaaa ke vikaas (individual consciousness ) hamaari haai par kamyunikeshan ki kshmtaa jaati rahi ,"now we are fairly stable in our individual consciousness "व्यक्ति गत चेतना के उद्भव और विकास के बाद हमारी हाई पर कम्युनिकेशन की क्षमता छीजती चली गई और एक दिन समाप्त हो गई ,हम एक पूर्ण -व्यक्ति (स्तेबिल इन्दिविज्युअल बन गए ).
now that we are fairly stable in our individual consciousness ,we are at the threshold of creating a new form of "group consciousness ",namely in which we attain access to all information via our DNA without being forced or remotely controlled about what to do with that information .
we know that just as on the internet our DNA can feed its proper data into the network ,can call up data from the net work and can establish contact with other participants in the network .remote healing ,telpathy or "remote sesnsing "about the state of relatives etc ,can thus be explained .some animals (specially dogs and cats )know also from afar when their owners plan to return home .that can be freshly interpreted and explained via the concepts of group consciousness and hypercommunication .
but any collective consciousness can not be used over any period of time without a distinct ive individuality .otherwise we would revert to a primitive herd instinct that is easily mani pulated .hypercommunication in the new millennium means something quite new ,quite different .,about which ,I shall talk in the next and concluding article of this series .

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

वेव जेनेटिक्स (तरंग आनुवंशिकी )का मायावी संसार .

इंसान का दी एन ऐ कुदरत का बख्शा हुआ एक नायाब जैविक इंटरनेट है जो साइबर जगत से बढ़चढ़ कर है .बेशक विज्ञानी (खासकर पश्चिमी जगत )इसके सिर्फ़ दस फीएसाद अंश को ही काम का मानते हैं जो प्रोटीन संसाधन करता है लेकिन शेष ९० फीसद अंश अपने कलेवर में पूरा वाक्य विज्ञान (सिंटेक्स ),पूरा शब्दार्थ विज्ञान (सिमेंतिक्स )एक अनुक्रम (दी एन ऐ सिक्युएंस )में छिपाए है ।
दी एन ऐ के एल्केलाइंस का अपना एक नियमित व्याकरण है ,भाषा विज्ञानिक नियम कायदे हैं .हमारी भाषाओं का रिफ्लेक्शन है यह दी एन ऐ सिक्युएंसिंग ।
इसीलियें हमारा दी एन ऐ अपने जैविक इंटरनेट से कोई भी सूचना ले दे सकता है .सूचना फीड भी कर सकता है ,डाउन लोड भी ।
अपने इतर संगी साथियों नाती -रिश्तेदारों मित्रों से संवाद भी कर सकता है .रिमोट हीलिंग (दूर नियंत्रण से इलाज़ ,दूर -संप्रेषण यानी टेलीपेथी ,दूर नियंत्रण तोही (रिमोट सेंसिंग )का काम कर सकता है ।
कारण है कुछ वैसी ही फ्रेक्युएंसी का हमारे दिमाग में होना जिन्हें स्चुमन्न फ्रेक्युएंसिज़ (शूमाँ -आवृत्ति )कहा जाता है .,और जैसी हमारी पृथ्वी के पास भी हैं जो मौसम का रुख निर्धारित करतीं हैं ,मौसमी फेर बदल भी ।
कुछ ऐसे ही हमारा दिमाग भी एक लेजर बीम की तरह हमारे विचारों को संकेंद्रित कर सकता है ,फोकस कर सकता है कहीं भी और दूरगामी प्रभाव पैदा कर सकता है .बस कुछ ख़ास अनुनादी आवृत्ति चाहिए एक शुद्ध अंतस ।
हमारे दी एन ऐ जींस एक अनुनादी बुनावट (सरंचना )लिए हुए हैं ,रेजोनेंत स्ट्रक्चर हैं .जो अति सूक्ष्म रूप में अपने परिवेश पर्यावरण पारिस्तिथिकी के साथ संवाद कर सकतें हैं वेव इंटरेक्शन के ज़रिये ,बस कुछ ख़ास आवृत्ति की तरंगे अनुनाद (रेसोनेंस ) यानी प्रकृति के साथ संवाद के लिए चाहियें .यही शूमाँ -फ्रीक्युएंसिज़ हैं ।
यानी जींस के साथ काट छाँट किए बिना भी आनुवंशिक अनुक्रम एक से दूसरे मनुष्य इतर तक अंतरित किया जा सकता है . प्राणी स्वरूप को अनुवांशिक तौर पर संवर्द्धित संशोधित किया जा सकता है ।
विज्ञानियों ने एक फ्राग एम्ब्रियो को सालामेंदर (एक उभय चर )एम्ब्रियो में इसी विधि से तब्दील कर दिखाया है .यानी दी एन ऐ कोड त्रेंस्फार किया है .सिर्फ़ वाणी से (तरंग से )।
इसी विधि से एक्स रेज़ से गुन -सूत्रों को पहुँचने वाली नुकसानी की भरपाई की जासकती है ।यह इस लेख माला की पहली किश्त है .धन्य वाद -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
(शेष जारी .......)

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

पेट का दर्द दूर करने के लिए रिलेक्शेशन -सी दी

चिल्ड्रन केन बी तोत तू इमेजिन अवे पेन :स्टडी (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर १३ ,२००९ ,पृष्ठ १७ ) सुर्खी है एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक की .जिसमे एक अभिनव अध्धय्यन के हवाले से बतलाया गया -बच्चे बेहद कल्पना शील होतें हैं वे बादलों पर सवार हो तैरने की कल्पना भी कर सकतें हैं ,उनकी इसी कल्पना शीलता का फायदा उठाते हुए नार्थ केरोलिना विश्व -विद्यालय एवं ड्यूक विश्व -विद्यालय के शोध कर्ताओं ने एक "रिलेक्शेशन -सी दी "तैयार की है जो बच्चों को कल्पना के घोडे पर सवारी करा दर्द से राहत दिलवा सकती है ।
इस अध्धय्यन के तहत २० मिनिट के एक गा -इदिद इमेजरी सेशन के तहत बच्चों को यह सी दी सुनवाई गई -जिसमे उन्हें यह कल्पना करने के लिए कहा गया -"उनके हाथ पर एक एक विशेष चमकीला पदार्थ रखा रखा पिघल रहा है .उनका हाथ गर्माहट से भर गया है ,अब वह इस आंच से (स्पर्श की आंच से ) अपने पेट को सेंक रहें हैं "और बस पेट का दर्द काफूर ।
दर्द -हारी साबित हुआ यह बीस मिनिट का सेशन .तमाम बच्चों को ऐसा लगा एक सुरक्षा कवच उनकी दर्द से हिफाजत कर रहा है ।
इस प्रकार "कल्पना शील मन "दर्द की अचूक दवा बन सका ।
पता चला -जिन बच्चों ने इस सी दी के अनुरूप कल्पना को पंख लगाए उनमे से ७३.३ फीसद बच्चों की पीडा की उग्रता घट कर आधी रह गई ,कोर्स समाप्त होते होते जब की जिन बच्चों को स्तेंदर्द केयर मुहैया करवाई गई उनमे से २६.७ फीसद को ही दर्द से राहत मिल सकी .

अच्छी नहीं हैं -दी -टोक्स दाइत्स सेहत के लिए ...

इन दिनों देश -विदेश में वजन घटाने का दावा करने वाली "दी -टोक्स दाइत्स "का बोलबाला है ,बहुत ज्यादा हाइप किया जा रहा है ,केवल तरल आधारित खुराख लेकर वजन घटाने को .बेशक यह एक प्रकार का कल्प है जो शरीर से टोक्सिक -एलिमेंट्स (विषाक्त पदार्थों )की निकासी में सहायक हो सकता है ,लेकिन खुराख के माहिर विशेषज्यइसे शरीर के लिए खतरनाक बतलातें हैं .किसी भी अध्धय्यन से इसके लाभार्थ का पता नहीं चला है ।
रोयल कालिज आफ जनरल प्रेक्टिशनर के जेन स्मिथ ने "डेली टेलीग्राफ में एक लेख के ज़रिये यह सब बतलाया है ।
सारा अभियान विज्ञापन की चकाचौंध से आक्रांत और असर ग्रस्त युवा महिलाओं को लक्षित करके चलाया जा रहा है ।
गत माह इंडिया हेबितात सेंटर में एक योगी महाराज पधारे थे -बतलाया गया था वे सिर्फ़ धूप के सहारे सालों साल जीवित रहें हैं .जन -सामान्य में कोई गलत संदेश ना जाए इसलिए अब थोडा सा खालेतें हैं .लेकिन यह सब लोक जीवन के अपवाद हैं नियम नहीं .दी -टोक्स दाइत्स भरम पैदा करतीं हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :दीतोक्स दाइत्स (टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर १३ ,२००९ ,पृष्ठ १७ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )