बुधवार, 11 मई 2011

प्रिय तुम्हारे दीर्घ मौन को क्या समझूं हाँ समझूं या न समझूं

कविता -रचनाकार डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश ",शब्दालोक ,१२१८ ,अर्बन एस्टेट गुडगाँव,भारत । दूरध्वनी :०१२४-४०-७७-२१८॥
प्रिय तुम्हारे दीर्घ मौन को क्या समझूं ,हाँ समझूं या न समझूं ।

अति मुखर की सीमा भी है मौन ,यही क्या भाव तुम्हारा ,
तड़प लहर की कब बुझती ,पा शांत किनारा ,
इन शांत तटों में मर्यादा या उद्वेलन है क्या समझूं ,हाँ समझूं या न समझूं ॥

विस्फोटों के विकट ज्वाल में मौन छिपा है ,
संघर्षों की बलि वेदी पर मौन छिपा है ,
मौन कौन सा तुमने धारा क्या समझूं ,हाँ समझूं या न समझूं ....

रजनी के हाथों में अपनी नींद धरोहर रखकर ,
घर से निकल पड़ी है श्यामा ,मौन इशारा पाकर ,
सुखद मिलन की इन घड़ियों को क्या प्रियतम की जय समझूं ,हाँ.....

स्पर्श विकल या रक्षा के हित ,तरु शिखरों से आलिंगन ,
लतिका के इस मिलन दृश्य को ,
शरणागत या प्रेम पगी है क्या समझूं ,हाँ समझूं या न समझूं .
सहभावी एवं प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा .डॉ .नन्द मेहता वागीश डी .लिट की इस रचना को "गेस्ट आइटम "के तहत प्रकाशित किया है .डॉ .नन्द मेरे सेवाकालीन सहयोगी और मार्ग दर्शक मित्र रहें हैं .

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