जनरल एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर ओवर व्यू :
एन्ग्जायती वास्तव में इक सामान्य प्रति -क्रियाहै , किसी भी खतरनाक ,अनिश्चित ,थ्रेत्निंग ,महत्व -पूर्ण स्थिति के प्रति .मनो -रोग -चिकित्सा एन्ग्जायती (बे -चैनी,बनी रहने वाली चिंता ,औत्सुक्य )को दो वर्गों में रख के देखती है :
(१)नोर्मल एन्ग्जायती ।
(२)पैथो -लोजिकल एन्ग्जायती .(रुग्नात्मक ,रोगकारक या रोग -वैज्ञानिक ,रोग सम्बन्धी )।
नोर्मल एन्ग्जायती अकसर प्रो -दक्तिव होती है ,जैसे मंच पर जाने की एन्ग्जायती ,परीक्षा के लिए जाने की एन्ग्जायती ,इसका प्रदर्शन पर अच्छा ही प्रभाव पड़ता है ,यह उत्पादकता और काम करने ,प्रदर्शन की क्षमता दोनों में सुधार ला सकती है .खासकर उनलोगों में जो दवाब के तहत काम करतें हैं ,लक्ष्य का पीछा करतें हैं ।
"जीएडी "जी -ए -डी "यानी जन -रे -लाइज्द एन्ग्जायती "विकार लिए, जो लोग हैं ,उन्हें पैथोलोजिकल एन्ग्जायती से दो चार होना पड़ता है (अनुभव शब्द हल्का पड़ जाता यहाँ पर ),बेहद की बे -चैनी ,ऐसी बे -चैनी जो दीर्घावधि तक बनी रहती है ,रोज़ -मर्रा के कामों के भी आड़े आती है .जन्रेलाइज़्द या फ्री -फ्लोटिंग -एन्ग्जायती "फोबिया यानी भीती से फर्क है ,क्योंकि इस ख़ास एन्ग्जायती के फोकस में कोई इक ख़ास चीज़ नहीं है ,कोई इक ख़ास स्थिति भी नहीं हैं ,लेटा हुआ ,बैठा हुआ व्यक्ति अनेक चीज़ों की एक के बाद एक चिंता करता रहता है जो स्थिति के अनुरूप नहीं होती .मसलन उसने किसी को टेलीफोन किया और उस व्यक्ति ने काल बेक नहीं किया .आगामी स्थितियों के बारे में भी .जो अभी बहुत आगे जाके आनी हैं .इस सबकी चर्चा विस्तार से आगे करंगें ।
अभी के लिए इतना ही ।
(ज़ारी ..).
बुधवार, 4 मई 2011
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