हु इज एट रिस्क फॉर स्ट्रोक ?
कुछ लोगों को औरों की बनिस्पत स्ट्रोक का जोखिम ज्यादा रहता है .अन -मोडिफाए -एबिल रिस्क फेक्टर्स यानी ऐसे जोखिम घटक जिनमे रद्दोबदल ,तबदीली मुमकिन ही न हो हैं :
व्यक्ति की उम्र ,जेंडर या सेक्स (लिंग वह नर है या मादा ,औरत है या मर्द या अन्य वर्ग )नस्ल और आंचलिकता ,तथा परिवार में स्ट्रोक का पूर्व -वृत्तांत रहा आना (स्ट्रोक हिस्ट्री )।
मोडिफाइए -एबिल रिस्क फेक्टर्स :में हाई -ब्लड प्रेशर ,स्मोकिंग आदि को रखा जा सकता है .इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है ,सुधार लाया जा सकता है ,आदत और कंडीशन दोनों में ही ।
अन -मोडिफाइए -एबिल रिस्क फेक्टर्स :
महज़ इक मिथ है ,स्ट्रोक सिर्फ अपेक्षाकृत उम्र दराज़ ,एल्डरली लोगों को ही अटेक करता है .हकीकत में यह सभी आयु वर्गों को निशाने पे लेता है ,गर्भस्थ से लेकर जो अभी इस दुनिया में आये ही नहीं हैं ,शतायु लोगों तक को ।
बेशक आम आबादी के बरक्स उम्र दराजों के लिए इसका जोखिम उच्चतर रहता है तथा उम्र के साथ जोखिम बढ़ता है .(क्योंकि खून में थक्का बनने के प्रवृत्ति भी बढती है )।
५५ साला होने के बाद हर दस सालों में स्ट्रोक का खतरा पहले से दोगुना होता चला जाता है .तथा स्ट्रोक के कुल मामलों में से दो तिहाई मामले ६५ साल से ऊपर के लोगों में ही दर्ज़ होतें हैं ।
अलावा इसके ६५ के ऊपर स्ट्रोक से मौत का ख़तरा भी आम आबादी के बरक्स सात गुना ज्यादा बढ़ जाता है .ज़ाहिर है जैसे -जैसे बुजुर्गों की संख्या में इजाफा हो रहा है स्ट्रोक के मामले भी बुजुर्गों में आनुपातिक तौर पर बढ़ रहें हैं .
बेबी बूमर्स (वर्ल्ड वार -२ के बाद पैदा हुए लोग )जैसे जैसे ६५ के पार जा रहें हैं स्ट्रोक और दूसरी बीमारियों का महत्व स्वस्स्थ्य देखभाल के क्षेत्र में और भी बढ़ता जा रहा है .बढ़ता जाएगा भी ।
रिस्क फेक्टर्स में जेंडर भी अपनी भूमिका निभाता है ,बेशक मर्दों के लिए स्ट्रोक का ख़तरा ज्यादा रहता है लेकिन स्ट्रोक से ज्यादा मृत्यु औरतों की होती है ।
मर्दों के लिए स्ट्रोक का ख़तरा औरतों से सवा गुना (१.२५ टाइम्स )ज्यादा रहता है .लेकिन सच यह भी है मर्दों की औसत उम्र औरतों से कम होती है ,इसलिए स्ट्रोक की चपेट में मर्द जब आतें हैं उनकी उम्र आमतौर से औरतों से कम रहती है .और इसलिए इनके बचने की संभावना भी औरतों से ज्यादा रहती है ।
इसका मतलब यह हुआ बेशक औरतों को कम स्ट्रोक पडतें हैं ,लेकिन स्ट्रोक के वक्त आमतौर पर उनकी उम्र ज्यादा रहती है ,और इसी लिए मौत के अवसर ज्यादा पैदा हो जातें हैं ।
कुछ परिवारों में चलता देखा जा सकता है स्ट्रोक का सिलसिला .पारिवारिक स्ट्रोक को हवा देने वाले अनेक कारक हो सकतें हैं .एक वंश वेळ के लोगों में स्ट्रोक के जोखिम तत्वों की प्रवृत्ति रही हो सकती है ,हाई -पर -टेंशन या डायबिटीज़ की रोग प्रवणता ,प्री -डिस -पोजीशन ) रह सकती है ,एक जैसी चली आई जीवन शैली भी इसकी एक वजह हो सकती है ।
नस्लों और समूहों में भी स्ट्रोक की दर अलग अलग देखी जा सकती है .अफ्रकी अमरीकियों में स्वेत अमरीकियों के बरक्स दोगुना मामले देखे गएँ हैं .तथा इनके स्ट्रोक से मौत के अवसर भी स्वेतों की बनिस्पत दो गुना ज्यादा रहतें हैं ।
४५-५५ साला अफ़्रीकी -अमरीकियों में स्ट्रोक डेथ रेट्स स्वेतों के बरक्स ४-५ गुना ज्यादा है ।
५५ के पार स्वेत अमरीकियों के लिए भी मौत की दर( स्ट्रोक से )अफ़्रीकी अमरीकियों के समतुल्य हो जाती है ।
स्वेतों के बरक्स अफ़्रीकी -अमरीकियों में स्मोकिंग और ब्लड प्रेशर जैसे स्ट्रोक के लिए महत्वपूर्णजोखिम तत्व,खतरे की निशानियाँ , ज्यादा दिखलाई देतीं हैं ।
सिकिल सेल एनीमिया ,डायबिटीज़ जैसे आनुवंशिक रोग भी इनमे ज्यादा रहतें हैं जो स्ट्रोक के जोखिम के वजन को बढाने वाले ज्ञात रिस्क फेक्टर्स हैं ।
हिस्पानिक्स और नेटिव अमरीकियों में स्ट्रोक की दर और इससे मौत कीदर स्वेतों की तरह ही कामोबेश दर्ज़ हुई है एशियाई अमरीकियों में भी स्ट्रोक की इन्सिदेंस (मामले प्रति हज़ार )तथा मृत्यु दर स्वेतों की तरह ही पाई गई है .हालाकि एशियाई लोगों में जापान ,चीन तथा सुदूर पूर्व के देशों में स्ट्रोक के मामले और इससे होने वाली मृत्यु दर स्वेत अमरीकियों से ज्यादा दर्ज हुई है ।
इसका मतलब यह हुआ पर्यावरण और जीवन शैली की भी कुछ न कुछ भूमिका स्ट्रोक के मामलों को हवा देने में बनी ही रहती है ।
(ज़ारी ...)।
शैर आप भी पढ़िए ,हमेशा की तरह :
अंदाज़ अपना आईने में देखतें हैं वो ,
और ये भी देखतें हैं ,कोई देखता न हो .
मंगलवार, 10 मई 2011
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