क्यों ज़रूरी और उपयोगी है गर्भाशयीय गांठों के बारे में जानना ?
तंतु जैसे याफिर तंतुओं , रेशों से ही बने होते हैं ,फाइबर -नुमा ऊतकों की ही निर्मिती होतें हैं फ़ाइब्रोइद्स जो अकसर गर्भाशय की दीवार में ही विकसित होतें हैं और निरापद (बिनाइन )होतें हैं ।
२०-८० फीसद महिलाओं में ये उनके पचास साला होते होते गर्भाशय दीवार में विकसित होने लगतें हैं .चालिसे और पचासे के दशक के बरसों में फ़िब्रोइद्स आम देखे जातें हैं .इनका विकसित होना आम बात मानी जाती है .
बेशक उन सभी महिलाओं मेंसे हरेक में ज़रूरी तौर पर इनके लक्षणों का प्रगटीकरण नहीं होता है जिनके गर्भाशय की दीवार में ये घर बना लेतें हैं .
लेकिन जिनमे इन लक्षणों का प्रगटीकरण होता है उन्हें इनके साथ बने रहना मुश्किल लगता है .कष्टप्रद भी .कुछ में लोवर एब्दोमन (पेडू )में दर्द के अलावा माहवारी में ज़रुरत से ज्यादा रक्त स्राव हो जाता है .(हेवी मेन्स्त्र्युअल् ब्लीडिंग )।
मूत्राशय पर दवाब बना रहता है (दे एक्स्पीरेइयेन्स प्रेशर ऑन दी ब्लेडर ),बार -बार पेशाब की हाज़त पेशाब का आना बना रहता है .
रेक्टल प्रेशर भी पैदा होता है ।
रेक्टम या मलाशय बड़ी आंत का निचला हिस्सा होता है जो जो "कोलन "और तथा" एनल केनाल" (गुदा नाली )के बीच में रहता है ।
फाब्रोइड्स के बहुत अधिक बढ़ जाने पर महिला का पेट बाहर को वैसे ही उभर आता है जैसे गर्भ- काल की तीसरी तिमाही में .
(ज़ारी ...)
बुधवार, 18 मई 2011
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