फिजिकल एंड साइकोलोजिकल इवेल्युएशन :कायिक और मनो -वैज्ञानिक दोनों तरह के परीक्षण और जांच की जाती है जब आप अपने को इलाज़ और रोग निदान के लिए प्रस्तुत करतें हैं तैयार करतें हैं खुद को इसके लिए ।
इस संभावना को सबसे पहले खारिज करना पड़ता है किसी कायिक रोग से तो आपके मौजूदा लक्षण पैदा नहीं हुए है .इसलिए भौतिक जांच ज़रूरी होती है .
अलबत्ता कोई लेब टेस्ट्स नहीं है जो इस रोग का फ़टाफ़ट निदान कर दे .आपसे ही इसके लक्षणों के बारे में पूछा जाता है .कब कब किन हालातों में और कितनी बार इन लक्षणों का प्रगटीकरण होता है ।
एक मनोवैज्ञानिक प्रश्नोत्तरी भी आपसे भरवाई जाती है ताकि उन कारणों को लिस्ट किया जासके, रेखांकित किया जा सके जो एन्ग्जायती को हवा देतें हैं .इन सभी से रोग निदान तक पहुँचने में मदद मिलती है ।
डी एस एम् (डायग्नोस्टिक एंड स्तैतिस्तिकल मेन्युअल )द्वारा बखान किये गए और बतलाये गए क्राई -टेरिया के आलोक में रोग निदान किया जाता है .अमरीकी मनो -रोग संस्था द्वारा इसका प्रकाशन किया जाता है मनो -विकारों के रोग निदान के निर्धारण के लिए .इन्स्युरेंस कम्पनियां भी इसका स्तेमाल करतीं हैं चिकित्सा भत्ता और री -इम्बर्स्मेंट का निर्धारण में ।
निम्न लिखित बातों पर गौर किया जाता है :
(१)लगातार सामाजिक स्थितियों से रु -ब -रु होने का भय और उसकी व्याप्ति का बने रहना .जिनमे आपको यही आशंका रहती है आपको ओब्ज़र्व किया जा रहा है .आपकी फूहड़ता ,इन -एडी -क्युएसी सामने आजायेगी .जिससे आपको शर्म -शारी का सामना करना पड़ेगा ।
(२)ये तमाम सोशल सिच्युएशन आपके लिए बेहद की नर्वस नेस का वायस बनजाती हैं ।
(३)आप मानतें हैं ,जानतें भी हैं ,आपकी नर्वस -नेस स्थिति के अनुरूप नहीं है ।
(४)जहां- जहां सामाजिक सरोकारों से आपके लिए एन्ग्जायती के रिसने की आशंका रहती है वहां -वहांजाने से आप कतराने लगतें हैं ।
(५ )यही एन्ग्जायती आपके रोजमर्रा के कामों में बाधा डालती है ।
(ज़ारी ...).
शनिवार, 7 मई 2011
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