रविवार, 15 मई 2011

रिसर्च इन दी फील्ड ऑफ़ स्ट्रोक .

व्हाट रिसर्च इज बींग डन?
असली समाधान तो कुछ जीव जंतुओं का शीत निद्रा में जाने के बाद भी सही सलामत बचे रहना हैजिसे जानना है जबकि इस शीत निद्रा (हाई -बर-नेशन )के दौरान दिमाग को होने वाली आपूर्ति नाटकीय तरीके से इतना घट जाती है जो किसी भी "नॉन -हाई -बर -नेटिंग एनीमल "की मौत की वजह बन सकती है ।
साइंसदान यदि यह जान लें ,दिमाग को बिना कोई नुकसानी के ये प्राणी कैसे शीत निद्रा में बने रहतें हैं तब स्ट्रोक की उस वजह से ज़रूर मरीजों को निजात दिल वाई जा सकेगी जो दिमाग को होने वाली रक्तापूर्ति में बाधा आने से पैदा होती है तथा ८० %दिमागी दौरों की वजह बनती है ।

हाइपो -थर्मिया का रोल भी स्ट्रोक से बचाव में समझा जाना है ,जो मेटा -बोलिज्म और न्यूरो -प्रो -टेक -शन को प्रभावित करता है ।
कई योगी भी शरीर के तापमान को गिराकर मेटाबोलिज्म को कम कर लेतें हैं (रेट ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ इज काल्ड मेटा -बोलिज्म )।कमतर ऑक्सीजन की खपत पे ज़िंदा बने रहतें हैं सालों साल .
कैसे क्षति ग्रस्त दिमाग नुकसानी की भरपाई और बढ़िया तरीके से करे ,साइंसदान इस दिशा में भी काम कर रहें हैं .ट्रांस -क्रेनियल मेग्नेटिक स्ति -म्युलेशन :के तहत दिमाग के एक छोटे से हिस्से में करेंट भेजा आजाता है .यह प्राविधि दिमाग की प्लास्तिसिती को बढ़ाती है ,मोटर फंक्शन में सुधार लाकर अक्षमता को रोगी की कम करती है .सेकेंडरी डेमेज को कम करना :स्ट्रोक के बाद दिमागी कुछ कोशाओं के मृत हो जाने पर दिमागी ऊतकों को रक्त की पूरी आपूर्ति न हो पाने की वजह से दिमाग को जो नुकसानी उठानी पडती है वही सेकेंडरी डेमेज है .
प्राइ -मेरी -डेमेज के प्रति एक टोक्सिक रिएक्शन का होना इस नुकसानी की वजह बनता है .यह विषाक्त प्रक्रिया जिस तरह संपन्न होती है ,रिसर्चर इसे जान लेना चाहतें हैं ताकि इस अतिरिक्त नुकसानी से बचा जा सके .इस एवज़ अध्ययन चल रहें हैं .
इस नुकसानी से बचाव के लिए न्यूरो -साइंसदान अभिनव न्यूरो -प्रो -टेक -टिव एजेंट्स की तलाश में हैं .
वैसो -डाय -लेटर्स पर भी अनुसंधान ज़ारी है ,ताकि ब्लड वेसिल्स को फैला विस्फारित कर दिमाग को पर्याप्त रक्तापूर्ति बहाल करवाई जा सके .आप जानतें हैं ब्लड वेसिल्स को एक्स -पांड करतें हैं वैसो -डाय -लेटर्स ।
स्ट्रोक के आनुवंशिक आधार की पड़ताल भी की जा रही है ताकि एक जीन चिकित्सा को विकसित किया जा सके ,जेनेटिक्स से जुड़े अन्य जोखिम तत्वों की बेहतर पड़ताल की जा सके ।
(ज़ारी ...)
इस मर्तबा का शैर सुनिए :
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का ,
उसी को देख कर जीतें हैं ,जिस काफिर पे दम निकले .
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये थे यारब !
बहुत/बड़े बे -आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले .

4 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

बिलकुल नहीं साहब ..हम तो कब भी इस कून्चें में आते हैं बहुत अपना समझते हैं ....बार बार आयेगें!
आपकी खासियत यह है कि आप किसी बात की जड़ तक जाते हैं केवल बीमारी का तात्कालिक उपचार ही नहीं बताते !

virendra sharma ने कहा…

शुक्रिया भाई साहब !

Satish Saxena ने कहा…

डॉ अरविन्द मिश्र के साथ, मुझे भी मानिए वीरू भाई ! एक शेर केवल आपके लिए ...

तेरी सूरत से किसी से नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तेरी तस्वीर लिए फिरते हैं

virendra sharma ने कहा…

अब इससे आगे क्या कहूं तू मुझमे है ,
मैं तुझमे हूँ ।
शुक्रिया ज़नाब !सतीश भाई .