स्ट्रोक :मेडिकेसंस ।
स्ट्रोक के इलाज़ के लिए अनेक चिकित्सा प्रणालियाँ उपलब्ध हैं किस मामले में कौन सी प्रणाली अपनाई जाए इसका फैसला इस बात से तय होता है रोग किस चरण में है .तीन चरण होतें हैं चिकित्सा आयोजना के :
(१)स्ट्रोक प्रिवेंशन यानी बचावी चिकित्सा .(२)स्ट्रोक के फ़ौरन बाद किया जाने वाला इलाज़ (३)स्ट्रोक के बाद मरीज़ के पुनर्वास में अपनाई गई चिकित्सा प्रणाली ।
बचावी चिकित्सा :पहले और इसके बादके रिकरेन्ट स्ट्रोक से बचाव के लिए रिस्क फेक्टर्स को कम करने के लिए चिकित्सा की जाती है .हाई -पर -टेंशन ,एत्रियल फिब्रिलेशन ,मधुमेह को टालेरखने ,तथा खून के थक्कों को बनने से रोकने वाली चिकित्सा की जाती है .चाहें ये जोखिम तत्व हो या न हों .खून के थक्कों को बनने से रोकने वाली चिकित्सा "स्कीमिक स्ट्रोक "से बचाए रहती है ।
एक्यूट स्ट्रोक थिरेपीज़ स्ट्रोक को थामने के लिए आजमाई जाती है ,जल्दी से जल्दी खून के थक्कों को जो स्ट्रोक की वजह बन रहें हैं को घोलने वाली दवा दी जाती है .हेमरेजिक स्ट्रोक के मामले में रक्त स्राव को रोकने के उपाय किये जातें हैं ।
पुनर्वास चिकित्सा का मकसद मरीज़ को फिर से जितना हो सके समर्थ बनाना होता है ,स्ट्रोक से पैदा अक्षमताओं को दूर करने कम करने के प्रयास किये जातें हैं .कुल मिलाकर -
मेडिकेसन,सर्जरी और रिहेबिलिटेशन स्थिति के अनुरूप आजमाई जाती है ।
(ज़ारी ....)
अगली पोस्ट में चर्चा सिर्फ मेडिकेसन की ही होगी ।
इस बार का शैर :
कहने वालों का कुछ नहीं जाता ,
सहने वाले कमाल करतें हैं .
शुक्रवार, 13 मई 2011
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