भाई साहिब बात इतनी सी है हम जब सेवा निवृत्त हुए तो हमें अच्छा खासा पैसा मिल गया इतना कि जितना हम ने कभी इससे पहले हाथ में लिया था न देखा था .एक लेक्चरार ,प्रवक्ता या याख्याता कि बिसात भी क्या होती है खासकर ऐसे व्याख्याता कि जो पढाता तो विज्ञान (भौतिकी )हो लेकिन खाली वक्त में स्वाध्याय और पत्र- कारिता करता हो और पत्रकारिता में भी हिंदी पत्रकारिता और उसमे भी लोकप्रिय विज्ञान लेखन .खैर छपास का रोग लगा और छक के पूरा भी किया .आकाशवाणी (रोहतक )से भी दबाके वार्ताएं प्रसारित कीं ।पात्र पत्रिकाओं ,तमाम हिंदी के रिसालों में भी ,विज्ञान पत्रिकाओं में चाहे वह "आविष्कार "हो या विज्ञान(अलाहाबाद ) /विज्ञान प्रगति(सी एस आई आर ) /वैज्ञानिक (बी ए आर सी ),राष्ट्रीय /आंचलिक अखबार .आकाशवाणी दिल्ली तक भी पहुंचे (जे एलएन स्टेडियम ).
उस दौर में वार्ताकार को पच्चीस रूपये एक वार्ता के मिलते थे .आकाश वाणी रोहतक में वह टेलेंट हंटिंग का दौर (१९७० का दशक )था .वार्ताकार खासकर विज्ञानों के विषय में मिलते ही नहीं थे क्योंकि आयोजन हिंदी भाषा में होता था .अभी भी हिंदी में वार्ताएं प्रसारित होतीं हैं तमाम विज्ञान और लाइफ साइंसिज़ अर्थ -साइन्सेज़ के लोक प्रिय विषयों पर .गर्ज़ ये हृदय -कंप ,से लेकर भूकंप तक ,राम की शक्ति पूजा से लेकर मनो -रोगों पर बोला ,वार्ताओं का संचालन किया .ता-उम्र कोलिज हो या यूनिवर्सिटी का अपना महा -विद्यालय ,यूनिवर्सिटी कोलिज साइकिल का ही स्तेमाल किया .लड़कियों की शादी को छोड़ कर कभी पी ऍफ़ को हाथ नहीं लगाया ,कार तो क्या स्कूटर भी कभी न खरीदा न ज़रुरत महसूस की और इसीलिए सेवानिवृत्ति के वक्त २६ -२७ लाख रुपया मिल गया .कोई हाउस लोनया दूसरा लोन नहीं लिया ,औकात ही नहीं थी ,तीन बच्चे हमारा निवेश थे ,दौलत हैं .
समाज शाश्त्र की मेरी एक सहयोगी व्याख्याता कहतीं थीं शर्मा साहिब लड़कियों को देना जो भी देना ,लडकियां वफादार होतीं हैं .एकल पुत्र वैसे भी भारतीय नौ -सेना में कमीशन प्राप्त कर चुके थे .लिहाजा लडकियों को ६-६ लाख दे दिया .मंथली इनकम स्कीम में डाल दिया ६साला में .२००५ में हम सेवानिवृत्त हुए .ये दोनों स्कीमें अब मेच्युओर हो रहीं हैं .एक जून और दूसरी नवम्बर २०११ में हमारा नाम दोनों में ही दूसरे साझीदार के रूप में है -आइदर और सर्वाइवर प्लान के तहत ।
अब बड़ी लडकी ने कुछ ज्योत्षियों के चक्कर में अपना नाम स्वाती शर्मा से बदलकर स्वाती भारद्वाज कर लिया .अखबार में नोटिफिकेशन फिर गजट में नया नाम आया .इस दरमियान शादी भी हो गई अब नाम हो गया स्वाती चोपड़ा लेकिन बैंक एकाउंट्स एक स्वाती भारद्वाज और दूसरा स्वाती चोपड़ा के नाम से है . चेक मिलेगा रिज़र्व बेंक का स्वाती शर्मा के नाम से ।स्वाती शर्मा के नाम से सिर्फ पोस्ट ऑफिस की मंथली स्कीम ही है .हिन्दुस्तान में नियम कायदों का इतना कुहासा है ,हर मुलाजिम इतना डरा सहमा ,स्वकेंद्रित है कोई कुछ न सुनना चाहता है न समझना .
एक अकाउंट है केनरा बेंक ,मंडी हाउस परिसर (सरोजनी नायडू भवन में स्थित बैंक में )स्वाती भारद्वाज के नाम से .दूसरा है रोहिणी में इसी बैंक में स्वाती चोपड़ा के नाम से ।
हमने एहतियात के तौर पर दरयाफ्त करवाया -भाई साहिब स्वाती शर्मा और स्वाती भारद्वाज /चोपड़ा एक ही शख्शियत है ,आप चेक आनर करेंगें .ज़वाब मिला नहीं ।
हमारा नाम हरयाना शिक्षा सेवा में था -वीरेंद्र कुमार (शर्मा लिखा ही नहीं था इस भय से कि कोई घास नहीं डालेगा जात -पात के दौर में )।
कोलिज के कागजों में वही नाम आया जो स्कूल और विश्व- विद्यालयीय शिक्षा में चलता आया ,प्रमाण पत्रों में भी ।
सेवा में आके हम वी .के .शर्मा हो गए,वीरेंद्र कुमार शर्मा से . .रेडिओ वाले हमें वीरेंद्र शर्मा कहते उसी नाम से चेक बनता .हम चेक के पीछे लिख देते -प्रमाणित करता हूँ वीरेंद्र शर्मा और वीरेंद्र कुमार शर्मा एक ही व्यक्ति है .दस्तखत कर देते .ड्यूटी ऑफिसर की मोहर लगवा लेते हस्ताक्षर प्रमाणित करवाके .और पैसे हमें स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ,रोहतक केश मिल जाते .बढ़ते बढ़ते रकम प्रति वार्ता २५० रूपये हो गई थी ।दिल्ली वाले ५०० देतें हैं प्रति वार्ता .वैसे हर वार्ताकार का रेट होता है .
अब हम सेवा निवृत्त क्लास वन गज़ेतिद ऑफिसर हैं .हरियाणा के किसी भी विभाग में हम सेल्फ अतेस्तिद किये कागज़ मज़े से ज़मा करवा देते हैं लेकिन हरयाना के बाहर हम एक एकाउंट भी बैंक में आज नहीं खुलवा सकते .अब हरियाणा में भी नहीं .कहतें हैं रेजिडेंस सर्टिफिकेट लाओ .आवासी प्रमाण पात्र लाओ .कहाँ से लायें .घर तो बनाया नहीं .कभी मुंबई या जहां भी बेटा हो उसके पास कभी यहाँ छोटी बेटी के पास अमरीका .काश एक सिक्योरिटी नंबर हमारा भी होता तो आये दिन ये लफडा न होता .साला एक मोबाइल भी अपने नाम से नहीं खरीद सकते .पेन नंबर को अब कोई घास नहीं डालता .इलेक्शन आई. डी .है नहीं .दिल्ली में अप्लाई किया हुआ है अभी मिला नहीं है .ये दिल्ली का ज़िक्र यूं हैं दिल्ली की हमारी महरूम पत्नी थीं तो साले साहिब के बेटे ने जो चुनाव कार्यालय में काम करते थे उस दौर में हम पे रहम खा के लिखवा दिया -फूफाजी सेवानिवृत्ति के बाद हमारे साथ रह रहें हैं .देखो मिलता है या नहीं क्योंकि उस दस्तावेज़ में नाम पता सब होता है ।
हमारा तो पेंशन हेतु भी पता छोटी बिटिया की ससुराल का है वही लिखवा दिया था बदल कर जब किराए का मकान छोड़ा था सेवाकाल भुगताने के बाद .लेकिन वहांरोहतक में भी न हमारा नाम राशन कार्ड में है न अब मत दाता सूची में .
कोई हमें बतलाये के हम बतलाएं क्या -
यही बस -"नाम था अपना पता भी ,दर्द भी इज़हार भी ,
पर हम हमेशा दूसरों की मार्फ़त समझे गएँ हैं ।
होश के लम्हे नशे की कैफियत समझे गएँ हैं ,
फ़िक्र के पंछी ज़मी के मातहत समझे गए हैं ।"
शुक्रवार, 6 मई 2011
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6 टिप्पणियां:
भला हो निलेकणी साहब का... इस तरह के झंझटों से लगता है कि जल्दी ही छुटकारा मिल जाना चाहिये जब यूनीक आइडेंटीफिकेशन अथारिटी से 'आधार' नंबर मिलने लग जाएगा
bhaai saahib yahaan US me sabke paas social security number hai aisaa koi sankat nahin aataa hai .HIndustaan to mulk hi azeeb hai .
social security kyaa kaisi bhi security nahin hai -dookaanon pe saaf likhaa rahtaa hai bikaa huaa maal vaapas nahin hogaa yahaan(US) koi bhi saaman 90 din tak lautaa sakten hain exchange bhi kar sakten hain .
veerubhai ."NILEKANI SAHIB KA HAME BHI INTZAAR HAI "
मौजा ही मौजा है अब तो
परम स्वतंत्र न सर पर कोऊ :)
लिखते रहिये आपबीती -अभी झोली में बहुत कुछ है !
हम भी एक अदने से विज्ञान लोकप्रिय कारण के सिपाही हैं !
shukriyaa,zanaab .
Absolute is something which is not related to anything external .
We are relative physical quantities ,conscious energy bundles .
Thanks for yr encouragements .
veerubhai .
yr work is excellent worthy of refrencing .I am reporting popular sciences in our Hindi metaphor ,and myths .
नमस्कार चिकित्सक जी,
आपसे एक अनुरोध है कि आप कही भी कमेंट हिन्दी में देने का कष्ट करे हम सब हिन्दी भाषी ज्यादा खुश होंगे।
आपका ये ब्लाग तो एक नगीना है।
dost !yakeen maaniye ,main khud bhi is sthiti se dukhi hoon .mujhe pest karnaa aur stf post karnaa bhi nahin aataa hai ek jagah se uthhhaakar doosri jagh .
veerubahi .
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