सा -इंज़ एंड सिम्पटम्स ऑफ़ जनरल एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर (जी ए डी यानी गेड ):
इस विकार से ग्रस्त लोग दीर्घावधि तक दवाव ग्रस्त ,क्रोनिकाली टेंस बने रहतें हैं ,बे -चैन ,नर्वस तथा जैसे चिंता ही को इनका उपभोग करना है चिंता इन्हें खाए ही जाती हैसारी ऊर्जा निचोड़ लेती है इनकी . .इनमे ये लक्षण दिखलाई दे सकतें हैं :
(१)निरंतर बनी रहने वाली थकान ।क्रोनिक फटीग ।
(२)अवसाद ।
(३)चिड -चिडाहट (इर्रितेबिलिती ).
(४)अस्थिर डावांडोल चित्त ,लेक ऑफ़ फोकस ,कहीं मन नहीं टिकेगा इनका ,ध्यान नहीं जाएगा ,अपनी दुश्चिंताओं से हटके इधर उधर ।
(५)नींद का अकाल (स्लीप डिप -राइवेशन),रात भर उठतें रहेंगें तोइलित जाते रहेंगें ,पानी भी पीते रह सकतें हैं रात भर .
चिंता तो हर कोई किसी न किसी बात पे करता है लेकिन ये चिंता को हदों के पार नै ऊंचाइयों पर ले जातें हैं अफवाह जैसे बे -बुनियाद होती है और अफवाह का पंछी ऊंची से और ऊंची उड़ान भरता रहता है वैसे ही ये अपनी चिंताओं को नै परवाज़ देतें हैं ।अनुमान आधारित होती हैं इनकी चिंताएं और अनुमान की हदें नहीं होतीं .
कोर्स ऑफ़ जनरल एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर :
किशोरावस्था में ही इसका प्रगटन शुरू हो जाता है लेकिन बालिग़ होजाने पर ही लोग इसकी सुध लेतें हैं इलाज़ का सोचते हैं .इलाज़ के लेने बाद भी कितने ही लोग ताउम्र नर्वस ,और चिंता ग्रस्त रहतें हैं .खुद लोग ही ऐसा दावा करतें हैं ज़ाहिर है दुश्चिंता को डी -लर्न करना उन्होंने नहीं सीखा है क्योंकि चिंता कई बार एक अर्जित व्यवहार होता है आप छोटी - छोटी बेकार बातों की चिंता करने लगतें हैं क्योंकि आपके माँ -बाप में से कोई एक ये ता -उम्र करता रहा .बीस या फिर बीसम बीस के बाद ये व्यवहार ये विकार बिरले ही देखा जाता है ।
ज्यादातर लोगों में यह उम्र भर का ही विकार बना रहता है दवाब के क्षणों में लक्षणों का प्रगटन उग्र होकर मुखरित होता है .लेकिन जब वक्त अच्छा होता है ,स्टेबिलिटी के वक्त इनमे सुधार भी आता है ।
डिप्रेशन और पेनिक भी इनमे घर बना सकता है ।
२५%लोगों को जी ए डी के साथ -साथ पेनिक डिस ऑर्डर का भी रोड निदान (डायग्नोज़ )किया जाता है .४०%अवसाद की गिरिफ्त में भी आजातें हैं ।
एन्ग्जायती से बचने के लिए इस विकार से ग्रस्त जो लोग एल्कोहल और ड्रग का सहारा लेते हैं उन्हें इन चीज़ों की लत ही पड़ जाती है .डिपेंडेंसी दिखलाई देती है ।
लेकिन इस सबके बाद भी (डिप्रेशन ,एन्ग्जायती और सब्सटेंस एब्यूज )इन लोगों में आत्म ह्त्या की दर कम रहती है ।
(ज़ारी ...).
इस विकार से ग्रस्त लोग दीर्घावधि तक दवाव ग्रस्त ,क्रोनिकाली टेंस बने रहतें हैं ,बे -चैन ,नर्वस तथा जैसे चिंता ही को इनका उपभोग करना है चिंता इन्हें खाए ही जाती हैसारी ऊर्जा निचोड़ लेती है इनकी . .इनमे ये लक्षण दिखलाई दे सकतें हैं :
(१)निरंतर बनी रहने वाली थकान ।क्रोनिक फटीग ।
(२)अवसाद ।
(३)चिड -चिडाहट (इर्रितेबिलिती ).
(४)अस्थिर डावांडोल चित्त ,लेक ऑफ़ फोकस ,कहीं मन नहीं टिकेगा इनका ,ध्यान नहीं जाएगा ,अपनी दुश्चिंताओं से हटके इधर उधर ।
(५)नींद का अकाल (स्लीप डिप -राइवेशन),रात भर उठतें रहेंगें तोइलित जाते रहेंगें ,पानी भी पीते रह सकतें हैं रात भर .
चिंता तो हर कोई किसी न किसी बात पे करता है लेकिन ये चिंता को हदों के पार नै ऊंचाइयों पर ले जातें हैं अफवाह जैसे बे -बुनियाद होती है और अफवाह का पंछी ऊंची से और ऊंची उड़ान भरता रहता है वैसे ही ये अपनी चिंताओं को नै परवाज़ देतें हैं ।अनुमान आधारित होती हैं इनकी चिंताएं और अनुमान की हदें नहीं होतीं .
कोर्स ऑफ़ जनरल एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर :
किशोरावस्था में ही इसका प्रगटन शुरू हो जाता है लेकिन बालिग़ होजाने पर ही लोग इसकी सुध लेतें हैं इलाज़ का सोचते हैं .इलाज़ के लेने बाद भी कितने ही लोग ताउम्र नर्वस ,और चिंता ग्रस्त रहतें हैं .खुद लोग ही ऐसा दावा करतें हैं ज़ाहिर है दुश्चिंता को डी -लर्न करना उन्होंने नहीं सीखा है क्योंकि चिंता कई बार एक अर्जित व्यवहार होता है आप छोटी - छोटी बेकार बातों की चिंता करने लगतें हैं क्योंकि आपके माँ -बाप में से कोई एक ये ता -उम्र करता रहा .बीस या फिर बीसम बीस के बाद ये व्यवहार ये विकार बिरले ही देखा जाता है ।
ज्यादातर लोगों में यह उम्र भर का ही विकार बना रहता है दवाब के क्षणों में लक्षणों का प्रगटन उग्र होकर मुखरित होता है .लेकिन जब वक्त अच्छा होता है ,स्टेबिलिटी के वक्त इनमे सुधार भी आता है ।
डिप्रेशन और पेनिक भी इनमे घर बना सकता है ।
२५%लोगों को जी ए डी के साथ -साथ पेनिक डिस ऑर्डर का भी रोड निदान (डायग्नोज़ )किया जाता है .४०%अवसाद की गिरिफ्त में भी आजातें हैं ।
एन्ग्जायती से बचने के लिए इस विकार से ग्रस्त जो लोग एल्कोहल और ड्रग का सहारा लेते हैं उन्हें इन चीज़ों की लत ही पड़ जाती है .डिपेंडेंसी दिखलाई देती है ।
लेकिन इस सबके बाद भी (डिप्रेशन ,एन्ग्जायती और सब्सटेंस एब्यूज )इन लोगों में आत्म ह्त्या की दर कम रहती है ।
(ज़ारी ...).
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