बुधवार, 1 सितंबर 2010

रेबीज़ एक खतरनाक रोग सिद्ध हो सकता है ..

रेबीज़: स्केयरी कन्सिक्युवेंसिज़ (वेलनेस ,दी ट्रिब्यून चंडीगढ़ ,सेप्टेम्बर १ ,२०१० ,पृष्ठ १४ /डॉ .जे .एल अग्रवाल ,प्रोफ़ेसर एंड हेड .एस आई एम् एस ,हापुड़ (गाज़ियाबाद ,यू .पी )।
एक खतरनाक रोग है रेबीज़ जिसे जलांतक (जल भीती या हाई -ड्रो -फोबिया )भी कहा जाता है .क्योंकि इस रोग में मरीज़ पानी भी नहीं सटक पाता है .पानी के देखने से भी उसे आकस्मिकतौर पर दौरा पड़ जाता है .
कैसे फैलता है यह रोग संक्रमण ?
ज़ाहिर है रेबीज़ ग्रस्त एनीमल के काटने या फिर खुले घाव को चाटने से भी यह रोग आदमी को अपनी चपेट में ले लेता है .ऐसे एनीमल को इसीलियें रेबिड एनीमल कहाजाता है .आम तौर पर स्ट्रीट डॉग्स वैसे कुत्ते बिल्ली ,बन्दर ,कभी कभार रीछ ,भेड़िया,अफ्रिका और एशिया में पाए जाने वाली जंगली कुत्तो की एक नस्लजो मरे हुए पशुओं पर ही ज़िंदा रहती है (हयेना ) को भी यह रोग हो जाता है .और इन रेबिड एनिमल्स के काटने ,आदमी के खुले जख्मो को चाटने से यह रोग मनुष्यों को हो जाता है ।
तकरीबन तीस लाख लोग हर साल इन एनिमल्स के काटे जाने पर रेबीज़ के टीके लगवातें हैं .
बुनियादी तौर पर यह पशुओं का ही रोग है .जंगली पशुओं और गली मोहल्ले के कुत्तों में यह अकसर देखा जाता है .इन रेबिड एनिमल्स की लार में ही इसका वायरस (विषाणु )पाया जाता है .इसीलिए इनके काटने के अलावा वायरस इसके चाटने से भी कटी फटी त्वचा में दाखिल हो सकता है ।
दाखिल होते ही यह मनुष्य के कनेक्तिव टिश्युज (आबन्धी ऊतकों )में द्विगुणित होने लगता है ,मल्टीप्लाई करता है .पेशियों में पहुंचता है .स्नायु में दाखिल होकर यह हमारे दिमाग तक अपनी पहुँच बनाता है .और यहाँ पर एक बार फिर अपनी कुनबा पुरसी करता है ,ज़मके मल्टीप्लाई करता है .दिमाग से यह इसके विषाणु नर्व्ज़ से होते हुए अन्य अंगों तक पहुंचतें हैं ।लार ग्रंथियों तह भी आखिरकार आ ही jaaten हैं .
काटने के दस दिन बाद से तीन साल तक भी यह रोग आदमी को अपनी चपेट में ले सकता है .आम तौर पर यह अवधि एक से तीन माह ही होती है .बच्चों में यह अवधि (इन्क्यूबेशन पीरियड और भी कम रहता है )।
रेबीज़ के विषाणु लार के अलावा रेबीज़ ग्रस्त मरीज़ के अन्य स्रावों में भी आ jaaten हैं ,इसलिए तीमारदार को भी पूरी एहतियात के साथ खुद को बचाए रहना पड़ता है ।
लक्षण क्या है रेबीज़ के ?
रेबीज़ एक खतरनाक रोग है एक बार हो जाए फिर अल्ला ही मालिक है .मृत्यु अवश्यम- भावी है .आदमी में इस रोग के कई चरण दिखलाई देतें हैं ।
मसल्स की आकस्मिक ट्विचिंग(एक दम से पेशी का सिकुड़ना जिस पर मरीज़ का कोई बस नहीं रहता .),नर्व्ज़ (स्नायु )और पेशी में पीड़ा .,बेहद हो सकती है .ज्वर ,सिरदर्द के अलावा जनरल मेलिस दिखलाई देगी .भूख गायब हो जायेगी .मरीज़ एक दम से बे -चैनी अनुभव करेगा ,बेहद उत्तेजित और चिड- चिडा हो जाएगा .हाइपर एक्टिव होने के अलवा jyaadaa तर मामलों में मरीज़ का व्यवहार अजीबो गरीब और फ्यूरियस दिखलाई देगा ।
प्रकाश और आवाज़ दोनों ही आकस्मिक दौरे (रोग के बेहद बढ़ने की वजह बन सकतें हैं .).स्पर्श भी बेहद सीज़र्स की वजह बन सकता है .एक साथ मिलकर भी ये कारक सीज़र्स की वजह बन सकतें हैं ।
पानी पीने से लेरिंक्स (स्वर पेटी ,जहां स्वर -तंत्री यानी वोकल कोर्ड्स होतीं हैं )की एंठन पैदा होती है और इसीलिए मरीज़ पानी से खौफ खाने लगता है .यहाँ तक की पानी आवाज़ और पानी को देखना भी उसमे खौफ पैदा करता है .हाई -ड्रो -फोबिया से ग्रस्त हो जाता है मरीज़ ।
मृत्यु की वजह रिस्पाय्रेत्री अरेस्ट बनती है .सांस की धौंकनी रुक जाती है ।
कुछ मरीज़ लकवा ग्रस्त हो jaaten हैं .फालिज या पेरेलेसिस की चपेट में आ jaaten हैं .बेशक जीवन के आखिरी क्षण तक यह चेतन्य बने रहतें हैं .जो बच jaaten हैं वह कोमा में चले jaaten हैं .गहन देख रेख के अभाव में सभी मरीज़ १-३ सप्ताह में शरीर छोड़ jaaten हैं ।
रेबीज़ से कैसे बचा जाए ?
रेबिड एनीमल के काटे जाने के बाद हर चंद कोशिश यह रहनी चाहिए ,विषाणु नर्व टिश्यु तक ना पहुँच पाए .इसके बाद वेक्सीन या कोई और चिकित्सा बे -असर ही सिद्ध होती है .जख्म की संभाल बेहजद zaroori है .काटे जाने के बाद उस स्थान को कमसे कम दस मिनिट तक साबुन रगड़ रगड़ कर पानी से साफ़ करते रहना चाहिए .उसके बाद खुले पानी से जख्म को फ्लश करते रहिये .अब १%सोल्यूशन बेन्ज़ल -कोनियमक्लोराइड से जख्म को इर्रिगेट करते रहिये .ऐसा करने से रेबीज़ के वायरस आम तौर पर मर jaaten हैं .इसके बाद टेटनस का टीकामरीज़ को लगना ही चाहिए .एंटी -बाय्तिक्स भी डॉ की सलाह पर सही दिए जाने चाहिए .घाव के गिर्द के डेड या बेहद विक्षत ऊतकों को काटकर साफ़ कर देना चाहिए .घाव पर टाँके किसी भी हाल में नहीं लगाने हैं .नो सूचर्स प्लीज़ ।
टीका कौन सा लगवाया जाए ?
पहले रेबीज़ के टीके मरीज़ के पेट में लगते थे जो बेहद तकलीफ देते थे ,इन्हें बकरे के दिमाग से तैयार किया जाता था ।उतने असर- कारी भी नहीं थे ये टीके .
अब टिश्यु कल्चर वेक्सींस उपलब्ध हैं .बेशक महंगी हैं यह वेक्सीनें ,लेकिन एक दम से सुरक्षित ,पीड़ा रहित एवं कारगर रहतीं हैं .
टीका कब लगवाया जाए ?
जब कुत्ते में रोग के लक्षण दिखलाई दें (ज़ाहिर है नजर रखनी पड़ेगी कुत्ते पर,उस रेबिड एनीमल पर जिसने काटा है ).जब वह पशु दस दिनोंके अन्दर ही मर जाए .(आपको काटने के बाद )।
आप उसके बारे में कुछ भी ना जान सकें और वह गायब हो जाए .बिना उकसाए जब वह आपको काट ले .जब वह खुद रेबीज़ से ग्रस्त (पाजिटिव )पाया जाए .उसके मारे जाने के बाद या खुद मरने के बाद परीक्षणों से रेबीज़ की शिनाख्त हो जाए ।
टीका लगवाने के एक माह बाद तक भी शराब (किसी भी रूप में एल्कोहल का सेवन ना किया जाए ).बिला वजह बेहद मानसिक और शारीरिक श्रम से बचा जाए .देर रात के बाद ना सोया जाए .(टाइम से सोना zaroori है )।
स्तिरोइड्स तथा इम्यूनो -सप्रेसर ड्रग्स का स्तेमाल ना किया जाए .टीकों का कोर्स हर हाल में पूरा किया जाए .बीच में छोड़ना खतरनाक हो सकता है .रोग ग्रस्त हो सकता है मरीज़ .

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